November 25, 2017

ट्रेजिडी क्वीन नहीं खुशमिजाज औरते ---------mangopeople


             


                                                          एक है श्रीमान सुरेश त्रिवेणी उन्होंने एक फिल्म बनाई है "तुम्हारी सुलु " चोर राम ( लिखना तो चोट्टा चाहती थी पर वो गाली टाइप  हो जाती ना  ) ने कहानी चुरा कर एक फिल्म बना दी और न ही जिनकी कहानी चुराई है उन्हें कोई रॉयल्टी दी और न ही क्रेडिट दिया है | कहानी भी किसी एक से नहीं कई अलग अलग जगह से चुराई है और किसी का भी नाम देने तक की जरुरत नहीं समझी है | उन्होंने मुंबई जैसे बड़े शहरों में रह रही मुझे जैसी ;)  खुशमिजाज और अपनी मर्जी  और अपने तरीके से जीवन जी रही महिलाओ के जीवन से छोटी छोटी सच्ची कहानियां चुराई है और फिल्म बना दी लेकिन एक पैसे का क्रेडिट  न दिया है , बड़ी ज्यादती है | फिल्म देखते कई बार वो इतनी अपनी लगती है कि मुंह से निकल जाता है अरे कम्बख्त ने मेरा किस्सा चुरा कर फिल्म बना दी है , अरे ये  वाला किस्सा तो मेरी दोस्त का है ,मतलब की बस  हद ही  है | कोई ट्रेजडी क्वीन नहीं , कोई बड़े बड़े सपने नहीं , कुछ कर गुजरेंगे का कोई तूफानी जज़्बा नहीं , सिंपल स्वीट सी लाइफ और सिंपल सी इच्छाए | खुशमिजाज औरत , खुराफाती औरत , कुछ भी कर सकने का आत्मविश्वास वाली औरत  , छोटी छोटी खुशियों का बड़ा सेलिब्रेशन करने वाली औरत | सबसे ज्यादा शुक्र है कि  पति बड़ा रियल सा और सामान्य सा है , शुक्र है कि उन्होंने पति को पत्नी के जीवन का "विलेन" नहीं बनाया है शुक्र है कि उन्होंने पति की भूमिका के साथ कोई अत्याचार नहीं किया है  | इस फिल्म को सिर्फ किसी स्त्री की कहानी मत सोचिये ,उन्होने बड़े शहरों में रह रहे पति पत्नी के बदलते रिश्तो को दिखाया है , दिखाया है बड़े शहरों में परिवारों में गृहणी की भूमिका , सोच  उसके  प्रति पति के नजरिये में बहुत बदलाव आया है और  पत्नी का भी पति के प्रति वो ,आप , सुनो जी , तम्हे जैसा ठीक लगे वाला , मेरी दुनियां तेरे बिना कुछ नहीं टाईप से बहुत बदल गया है | फिल्म में तो लव मैरिज है किन्तु असल जीवन में बहुत सारे अरेंज मैरिज भी अब एक तरफे प्रेम  और समर्पण पर नहीं टिके है |
                                                         
                                                              पति विलेन नहीं है लेकिन पत्नी के अचानक काम करने से उसके इतर खुशियो से  थोड़ी जलन में जो प्रतिक्रिया है वो बड़ी वास्तविक सी है | एक सीन में मन किया जोरदार ताली बजाउ ,पति अपनी पत्नी को काम करने से रोकने के लिए कहता है उसे बेटी चाहिए और उसने उसका नाम तक सोच लिया है उनका पहले से ही १० -१२ साल का बच्चा है |  बिलकुल यही मेरी पड़ोसन के साथ हुआ था  वो ग्रहणी थी मुझे जॉब करता देख उनकी भी इच्छा हुई और जैसे ही ये पति को बोला पति के अंदर दूसरे बच्चे की इच्छा जाग गई थी और तीन महीने बाद प्रेग्नेंट होने की खुशखबरी भी  |  बड़ा ही कॉमन सा फंडा है महिलाओ को काम पर जाने से रोकने का उन्हें बच्चो में फंसा कर रखो | वैसे फिल्म में उसे पत्नी के काम करने से नहीं  आरजे वाले काम से परेशानी है और उसका भी एक कारण है , वो आप फिल्म देखेंगे तभी समझेंगे | पति के ये कहने पर विद्या हँस कर पति को चिढ़ाती है मजाक उड़ाती है कि इस उमर में बेटी के दादा जी लगोगे | ( मेरे पतिदेव ऐसा कहते तो मेरी प्रतिक्रिया भी यही होती ) लेकिन वो विद्या पर कोई दबाव नहीं डालता अपनी तरफ से बस एक ट्राई मारता है और ऐसी बातो को सुलझे रिश्ते ऐसे ही हलके में उड़ा देते है |  विद्या का एक  मायके का परिवार भी है जो   उनके १२ वि फेल  होने पर पर बार बार ताने भी देता है और उनके लिए फ़िक्र भी करता है | परिवार  उन्हें पहले काम करने के लिए फिर काम छोड़ने के लिए कहता है  | एक बार उनकी बहन कहती है काम छोड़ दे वरना बाद में पछ्तायेगी फिर रोते हुए हमारे पास आयेगी , विद्या  गुस्से  में  पलट कर बोलती है हां आउंगी बिलकुल आउंगी  तुमलोग परिवार हो मेरे |  हाय राम ये भी मेरा डायलॉग है , जब किसीने एक बार कहा कि भाई  के विवाह के बाद बहनो को  अपने घर से दुरी बना लेनी  चाहिए , मैंने यही कहा फिर परिवार के होने का मतलब क्या है , यदि उसमे एक दूसरे का ख्याल न रखा जाये | एक बेटा है उनका अंत में दिखाता है कि कैसे बच्चे   घर में हो रही सारी बातो को समझते है और हम उन्हें बस बच्चा ही समझते रह जाते है |  फिल्म का अंत जिस पॉजिटिव नोट पर होता है वो बड़ा कमाल है , नहीं नहीं आखरी सीन नहीं वो तो फ़िल्मी है , जब लगता है कि एक स्टोरी एक सैड एंड पर ख़त्म होगी तभी उसकी खुशमिजाजी  वापस आना बड़ा सही और वास्तविक लगता है |

                                                                        जब मुंह से निकले क्या एक्टिंग की है कमाल है तो वो बड़ी बात नहीं है , बड़ी बात तो वो है जब ये बोला जाये , क्या ये एक्टिंग कर रही थी | विद्या और उनके पति की भूमिका निभा रहे मानव कौल दोनों ने इतनी सहज एक्टिंग की है कि आप को ये नहीं लगता कि किसी एक्टिंग को देख रहे है |  जरा भी लाऊड नहीं इसके लिए डॉयरेक्टर भी तारीफ के काबिल है उन्हें अच्छे से पता था कि  सुलु  को किस रूप में पर्दे पर दिखाना है और विद्या का बेस्ट चुनाव उन्होंने किया मानव कौल का भी | एक रिव्यू फिल्म देखने बाद पढ़ी "फिल्म के कुछ सीन आप को गुदगुदाएंगे"  कम्बख्त उस सीन में मै बगल वाली खाली सीट पर गिर गिर कर हँसे जा रही थी , पहली बार हँसने के कारण मेरे इतने आँसू गिरने लगे की शर्ट की बाहे गीली हो  गई , क्यकि पर्स से टिशू या रुमाल निकालने के चक्कर में मै सीन मिस नहीं करना चाहती थी , क्योकि उसमे से एक खुराफात तो मै भी करती हूँ और  पहली बार फिल्म देखते  पतिदेव को मिस किया ये फिल्म दिखाने उन्हें क्यों नहीं लाई  | यदि आप खुराफाती , कुछ नया करते रहने वाले नहीं है या छोटे शहरों से है तो आप को ये फिल्म समझ नहीं आयेगी | एक सीन में तो नेहा धूपिया भी आश्चर्य से पूछती है क्या तुम अपने हसबैंड  से ऐसे बाते करती हो , तो फिल्म तो किसी किसी  लिए है |

 नोट :- वैसे त्रिवेणी जी आप को बता दू खुराफाती होने के लिए १२ वि में दंडी मार या या बैकबेंचर होने की जरुरत नहीं है , वो फर्स्ट बेंचर भी हो सकते है |

  #tumharisulu         

November 06, 2017

अच्छी कहानियों के बुरे पहलू --------- mangopeople




                                                                      बिटिया का तीसरे जन्मदिन का दूसरा दिन था वो उपहार में मिले सभी खिलौनों से एक साथ खेलना चाहती थी और मेरा नियम बना था हर महीने एक खिलौना निकलेगा | क्योकि बच्चे के लिए एक खिलौने की आयु अधिकतम २०-२५ दिन होता है उसके बाद उससे बोर हो कर भूल जाता है और नये की मांग करता है एक साथ सब दिया तो २५ दिनों में सब से बोर | उन्हें बहलाने के लिए उन्हें काम में उलझने के इरादे से उन्हें कहा सभी खिलौने बेडरूम में लाओ बारी बारी , उसे करने के बाद जाओ अब स्टूल लाओ , चलो अब मै स्टूल पर चढ़ती हूँ एक एक खिलौना मुझे दो ऊपर रख दू , एक जो पसंद है उसे रहने दो | दो तीन खिलौने देने के बाद उन्होंने मुझसे कहा , क्या तुम मेरी स्टेप मम्मी हो | कानो में पिघला शीशा डाल देना , दिल में जहर बुझा खंजर घोप देना जैसी बाते सुन रखी थी महसूस उस दिन पहली बार किया था | इसे अतिश्योक्ति न समझे मुझे लगा जैसे मुझे चक्कर आ रहे है और मैंने टेक न लिया तो स्टूल से गिर पड़ूँगी | निचे उतरी और बेटी को गले लगाते फिर से पूछा क्या कहा बेटा और उसने बात दोहरा दी | जैसा की हर माँ का ख्याल होता है मेरा बच्चा दुनिया का सबसे मासूम बच्चा है और लोगो से ये देखा नहीं जाता और वो उसे गलत बाते सिखा कर उसे बिगाड़ते है और माँ से उसके रिश्ते ख़राब करते है वही मैंने भी सोचा  | तुम्हे ये किसने सिखाया की मै तुम्हारी स्टेप मम्मी हो | तो तुम मुझसे इतना काम क्यों करवा रही हो सिंड्रेला और स्नोवाइट की स्टेप मॉम की तरह  |

                                                                  इन बच्चो के लिए बनी प्यारी प्यारी राजकुमारियों के कहानियों से भी हम बच्चो को कुछ गलत सीखा सकते है उनमे कोई पूर्वाग्रह भर सकते है ऐसा तो सपने में भी नहीं सोचा था | ऐसे ही जाने अनजाने हम सभी अपने दिलो दिमाग की सारी बुराइयाँ सारे गलत विचार , पूर्वाग्रह अपने अगली पीढ़ी को आगे बढ़ाने के लिए दे देते है | जब कहानियां सुनाते है तो बुरे पात्रों को और बुरा बताते समय उसे अपनी भावभंगिमाओं से और डरावना बुरा बनाते है मन में भरा पूरा जहर उगल देते है |  खुद हम कितना ग्रसित है इन ऊलजलूल विचारो से , जीवन में कभी किसी सौतेली माँ  से नहीं मिली हूँ , सौतेले मामा है लेकिन उनसे रिश्ते सामान्य है , फिर भी खुद के लिए सौतेला सुनना , जहर बुझा लग रहा था | मुझे याद है उसके बाद जब मैंने उन्हें कृष्ण की कहानी सुनाई तो एक बार भी कंस के साथ मामा शब्द नहीं लगाया , क्या पता मामा के लिए कुछ गलत भर दूं  | याद रखिये बच्चो में भरा गया एक गलत विचार , किसी के लिए नफरत , किसी के लिए कोई पूर्वाग्रह एक दिन पलट कर किसी न किसी रूप में आप के ही सामने जरूर आयेगा | खुद को सुधारे न सुधारे विरासत में बच्चो को कुछ ख़राब न दे कम से कम |

#माँबापगिरी 

November 01, 2017

शुद्ध राजनीति है विचारधारा का नाम न दे -----mangopeople


                                                                       बात कुछ साल पहले की है जब श्रीलंका और भारत के बीच एक समुंद्री संरचना को तोड़ने को लेकर खूब बवाल हुआ था | उस समय की सरकार उस संरचना को तोडना चाहती थी क्योकि वो संमुद्री आवागमन में एक बड़ी बाधा थी जहाजों को घूम कर आना जाना होता था | उसे तोड़ने से रास्ता छोटा होता और सरकार को बहुत आर्थिक फायदा होना था | तब की विपक्ष ने कहा कि वो एक धार्मिक संरचना है और राम से जुडी है उसे नहीं तोड़ने दिया जायेगा | मामला अदालत तक गया और सरकार ने राम के अस्तित्व पर ही सवाल खड़ा कर दिया | आम लोग भी दो भागो में बट गए , प्रगतिशील लोग सरकार के साथ खड़े हो गये और राम भक्त विपक्ष के साथ | बड़ी आसानी से सरकार और विपक्ष ने अपने वोट के लालच में एक बड़े पर्यावरण से जुड़े मुद्दे से लोगो का ध्यान पूरी तरह हटा कर उसे केवल धार्मिक मुद्दा बना दिया |
       
                                                                      पर्यावरण के नजर से वो कोई आम संरचना नहीं थी असल में वो लाखो सालो में बनी मूंगे की चट्टानें थी जो एक तरह से समुंद्र के अंदर का जंगल था और जलीय जीवन उस पर वैसे ही निर्भर थे जैसे कि हमारे दूसरे जंगल में जानवरो का जीवन उस पर निर्भर है | एक तरह से उन्हें तोड़ना एक पुरे जंगल को काटने जैसा था , जो उस स्थान के जलीय जीवन को पूरी तरह नष्ट कर देता | सरकार इस बात से अच्छे से जानती थी इसलिए उसने विपक्ष के भावनात्मक और धार्मिक मुद्दों को इतना उछाला की पर्यापरण का मुद्दा कभी सामने आ ही नहीं पाया | नतीजा जो प्रगतिशील समाज पर्यावरण आदि मुद्दों को लेकर बड़ा सजग दिखता है वो भी उस तरफ ध्यान न दे कर सरकार के साथ खड़ा था | दूसरी तरफ विपक्ष भी इन मुद्दों से अनिभिज्ञ नहीं था किन्तु उसने भी इन मुद्दों को नहीं उठाया | जबकि इस मुद्दे को उठा कर वो उस संरचना को बड़े आसानी से तोड़ने से बचा सकती थी और जागरूक लोगो को भी अपनी तरफ कर सकती थी किन्तु उसने ऐसा नहीं किया | क्योकि हमारे देश में पर्यावरण जैसे मुद्दे वोट नहीं दिलाते है जबकि धार्मिक भावनात्मक मुद्दे वोट दिलाते है जो राजनैतिक रूप से आप को मजबूत करते है |
                                                                    इसलिए विचारधारा के नाम पर आम लोगो को बहस करते और लड़ते देख लगता है कि कैसे सरकार और विपक्ष मुख्य मुद्दों से ध्यान हटा कर लोगो को विचारधारा के नाम पर मुर्ख बना लेती है |