October 30, 2023

सत्तर घंटे काम - कम या ज्यादा


1- ज्यादा समय नही हुआ जब आईटी कंपनियों का टाॅप मैनेजमेंट इस बात की शिकायत कर रहा था कि उसके यहां काम करने वाले ऑफिस से जाने के बाद और वीकेंड पर कहीं और भी काम कर रहें है जो नैतिक रूप से सही नही है।

तब लोग उन पर भड़क गयें कि ऑफिस के बाद हम कही और काम करे इससे आपको क्या । हमे ज्यादा पैसा कमाने का मौका मिल रहा है तो आपको क्या । 

अब वही जनता अब हफ्ते के सत्तर घंटे काम करके अपनी प्रोडक्टीविटि बढ़ाने ग्रोथ बढ़ाने की बात पर भड़का हुआ है । हमे लगा लोग पैसा बढ़ाने की बात करेगें पिछली बार की तरह पर लोग इस बार कह रहें हैं कि हम काम क्यों करे इतना देर । 



2- हम बिजनेस वाले परिवार से आते है । हमने तो बिना छुट्टी ,संडे ,होली , दिवाली अपने घर या बोले तो हर बिजनेस , दुकान वाले को इससे भी ज्यादा काम करते  हमेशा देखा है और देख रहें है ।

 इसमे तो कुछ भी अनोखा और नया नही हैं । सब मान कर चलतें हैं ज्यादा पैसे कमाने के लिए अपने मन की करने के लिए इतना काम और मेहनत तो करना ही पड़ेगा । कभी इसके लिए शिकायत करते किसी को नही देखा है । 

3-हर नौकरीपेशा महिला सालों साल से ऑफिस घर बच्चे की तीन तीन फुल टाइम जिम्मेदारियां संभालते इससे कहीं ज्यादा समय काम करते बिताती है । कभी कोई उसकी तरफ देखता तक नही कोई बवाल नही होता कोई सवाल नही करता ।

और आज वही नौकरी पेशा , घर के अंदर आँखे बंद किया पुरूष सिर्फ बात कहने भर से ऐसे भड़क गयें हैं कि जैसे कोई ऐसी बात कह दी  गयी हो जो इस धरा पर हो ही नही रहा था ।  

4- वो किस्सा सुना है जब आदमी भीखारी से कहता है कि भाई इसकी जगह काम करो तो ज्यादा पैसा कमा पाओगे । एक घर गाडिय़ा, इज्जत होगी , परिवार और तुम खुश होगे । तो भीखारी कहता है तो खुश होने के लिए काम करने की क्या जरुरत है मै तो ऐसे भी खुश हूँ।  

अपने गांव छोटे शहरो और आसपास के उन बहुत  सारे लोगों को याद किजिए जो आपसे बहुत पीछे छुट गयें और आप अपनी मेहनत के बल पर उनसे कितना आगे बढ़ गयें । वो लोग जिनसे आप कहतें रहें कि भाई कुछ मेहनत कर लो , पढ़ लो , दिमाग  लगा लो , ढंग का काम कर ले और वो आपकी बात अनसुना कर कहते रहें उनके लिए उतना ही बहुत है । 

किस तरह देखते हैं आप उनका और खुद को , अपने और उनके जीवन का अंतर समझ आ रहा है । जब वो कहतें है कि वो अपनी स्थिति से खुश हैं तो आपको वो सच लगता है । 

5- जितना मुझे समझ आया युवाओं को प्रोत्साहित किया गया है कि बस पहली सफलता के बाद वही रूक मत जाओ । युवा हो जोश है यही समय है और मेहनत करों और अपनी ग्रोथ को अभी ही तेजी से बढ़ा लो । 

ये प्रोत्साहन भी ऐसे व्यक्तित्व से है जिसने खुद ये करके दिखाया हैं । लेकिन अंकिल जी लोग भड़क गये हैं । भाई आप काहें अपना बीपी बढ़ा रहें हैं ऑफिस हाॅवर बढ़ाने की बात नही हुयी है । 

6- बहुत से युवा बड़े शहरों मे काम करने जातें हैं । कुछ का सपना कुछ साल की नौकरी से पैसा जुटा आगे पढ़ाई करने का , कुछ को अपने खर्च के बाद पैसा घर भी भेजना होता है । कुछ को अपना लोन भी चुकाना है ,कुछ को आईफोन जैसी विलासितापूर्ण जीवन जीना है । 

 बड़े शहरों मे ना उनका कोई अपना होता है ना ऑफिस के बाद कुछ करने को उन सबको कहूंगी कि पैसे की बात करो पैसे की । काम सत्तर कर लेगें घंटे के हिसाब से पेमेंट भी करो । 

बाकि बांतें और भी बहुत है पर अभी ही बहुत कह दिया है तो बस करतें हैं । 
















October 17, 2023

रिश्ते और उसके सम्बोधन

 मुंबई आयी तो ससुराल की एक मजेदार बात पता चली कि मेरे चाचा ससुर के बच्चे अपने पापा को चाचा कहतें हैं । शुरू मे उन लोगों से बात करते बहुत कन्फ्यूजन होता था ।  लगा गांव से चाचा आयें हैं उनकी बात हो रही है । 

बाद मे पता चला मेरे ससुर बड़े थे उनके बड़े  बच्चे चाचा कहते उन्हे  देख चाचा के बच्चे भी उन्हे चाचा ही कहने लगें । 

ऐसी ही बनारस मे मेरी एक मित्र अपनी मम्मी को बाजी कहतीं थीं । बचपन से वो नानी के घर रहतीं थीं । उनकी मम्मी सबसे बड़ी, सात छोटे भाई बहन वो सब उन्हे बाजी बुलातें मेरी दोस्त भी वही सीख गयी और उन्हे किसी ने मना भी नही किया । 

हम लोग तो दो तीन सालों तक यही समझते रहें कि वो अपनी बड़ी बहन की बात करतीं रही थीं । तब लगता वाह इसकी बड़ी बहन तो बहुत अच्छी है इसके सारे काम करती है । 

इसी तरह हमारे बचपन मे एक किरायेदार रहते थी उनके बच्चे उन्हे बहु बुलातें थे। शुरू मे लगा कि शायद इनके गांव इलाके मे ऐसा बुलाया जाता होगा । 

फिर एक दिन जब गाँव से उनके ससुर आयें वो भी बहु कहने लगे उन्हे तब पता चला कि उनकी तरफ कुछ ऐसा पुकारा नही जाता । 

वास्तव मे उनके बड़े संयुक्त परिवार मे वो सबसे छोटी बहु थीं । पूरा घर ही उन्हे बहु कहता था तो जेठ जेठानी के बच्चो से लेकर उनके अपने बच्चे भी उन्हें बहु ही पुकारने लगें । 

मेरी नानी मेरे सबसे छोटी मौसी के दोनो बेटो पर बहुत गुस्सा करतीं थीं क्योंकि दोनो अपने दादाजी को नाना बुलातें थें । 

असल मे उन दोनो से बड़ी उनकी एक बुआ की बेटी थी जो उनके साथ रहती थी । वो नाना जी बुलाती तो उन दोनो ने भी सीख लिया ।   

जब छोटी मौसी की शादी हुयी थी तो नाना गुजर चुके थे । इसलिए नानी गुस्सा करती कि अपने दादा को नाना बोल कर इस उमर मे  मेरा रिश्ता उनसे खराब कर रहे हो 😂😂

October 09, 2023

सर्वे और तथ्य

 किसी अन्तर्राष्ट्रीय संस्थान के किये सर्वे तकनीकि रूप से कितने गलत हो सकते है वो इस सर्वे को देख कर समझा जा सकता है । 

हाल मे ही एक अन्तर्राष्ट्रीय संस्थान ने अपने सर्वे मे बताया कि स्कूली शिक्षा के स्तर मे भारत सबसे नीचे से दूसरे पायदान पर है । उसके अनुसार भारत के ग्रामीण इलाके के दूसरी तीसरी कक्षा के छात्र ठीक से किताब मे लिखा पढ़ नही पा रहे थे और दो और दो चार जैसे जोड़ घटाना भी नही कर पा रहे थें । 

ये खबर पढ पर ज्यादातर शहरी भारतीय भी इससे सहमत हो जायेंगें और सरकारी शिक्षा के स्तर को कोसने लगेंगे कि हमारे बच्चे तो दूसरी तीसरी तक फर्राटेदार किताबे पढ़तें है । गणित मे कहीं आगे के प्रश्न हल करने लगते हैं ये बच्चे कैसे नही कर पा रहे हैं । 

पर ज्यादातर लोग इस बात को भूल जाते हैं कि शहरी मध्यम और उच्च वर्गीय बच्चा दो से ढाई साल की आयु मे प्लेग्रूप फिर नर्सरी , एलकेजी , यूकेजी  के तीन साल के बाद पहली फिर दूसरी तीसरी कक्षा मे जाता है । 

दूसरी से तीसरी कक्षा तक उसकी स्कूलिंग के पांच से छः साल हो चुके होते हैं । प्लेग्रूप मे वो अक्षरो को बोलना , नर्सरी मे पढ़ना लिखना उसके बाद शब्दो को जोड़ कर पढ़ना आदि सीख लेता है । तब पांच छः साल बाद फर्राटेदार रिडिंग करता है । 

जबकि सरकारी स्कूल जाने वाले बच्चे खासकर ग्रामीण इलाके के बच्चे छः से सात साल की आयु मे पहली बार स्कूल जाते है पहली क्लास मे जहां उन्हे अक्षर ज्ञान दिया जाता है । 

अब आप सोचिये पहली क्लास मे अक्षर और अंक बोलना सिखने वाला बच्चा दूसरी क्लास या तीसरी मे भी धाराप्रवाह पढ़ कैसे सकता है । 

पांच से छः साल स्कूलिंग किये बच्चो का मुकाबला क्या दो या तीन साल स्कूल गये बच्चो से किया जा सकता है । उसकी भी पांच या छः साल की स्कूलिंग हो जाये फिर उसके स्तर को देखा जाना चाहिए। 


ये ठीक है कि आज भी सरकारी खासकर ग्रामीण क्षेत्र के स्कूलों मे पढाई का स्तर ठीक नही है । अध्यापक छात्र की संख्या कम , वो अनियमित है ,अध्यापको का ठीक से प्रशिक्षित ना होना , बीच मे स्कूल छोड़ देना जैसी हजारो समस्याएं है । लेकिन वो दूसरा विषय और समस्या है । 

शहरों के सरकारी स्कूल की स्थिति इतनी भी खराब नही है । हमारे समय के ना जाने कितने लोग सरकारी स्कूलों से पढ़ कर ही आये हैं । बनारस जैसे शहर मे स्कूल,  अध्यापक,  पढाई सब अच्छे थे उस जमाने मे भी । आज मुंबई जैसे बड़े शहर मे तो सरकारी स्कूलों मे कहीं कहीं क्लास मे प्रोजेक्टर आदि भी लगे हैं। दिल्ली मे भी स्कूल अच्छी हालत मे हैं ।

ऐसे सर्वे आदि मे यदि गलत जगह या इरादे के साथ से सैंपल लिया जायेगा तो ऐसे सर्वे कभी सही नही हो सकते हैं । 

ज्यादा समय की बात नही है जब अपना पड़ोसी पाकिस्तान एक सर्वे के अनुसार हैप्पीनेस इंडेक्स मे हमसे ऊपर था और पेट्रोल के दाम हमसे कम । पर आज उसकी स्थिति ये है कि वहां के नागरिक हर हाल मे वहां से भागने की सोच रहे हैं । 

October 06, 2023

नकरातमकता से बचें

दुनियां के कुछ क्रिकेट स्टेडियम मे दर्शको के बैठने की क्षमता । गुगल के अनुसार 

मेलबर्न आस्ट्रेलिया 100000

लार्ड इंग्लैंड 31180 

पर्थ आस्ट्रेलिया 61266

एडिलेड ओवल आस्ट्रेलिया 53583

सिडनी 80000

ईडन पार्क न्यूजीलैंड 42000

प्रेमादासा और महेन्द्रा राजपक्षे  श्रीलंका 42000  और 40000

बाकि पचास हजार से ऊपर वाले सब भारत मे है और दुनियां के बाकी क्रिकेट मैदान की क्षमता पचास हजार से कम दर्शकों की है । 

कल अहमदाबाद मे खेले गये विश्व कप के पहले मैच मे साढ़े सैतालिस हजार लोग आये थे । वो भी सप्ताह के बीच यानी कामकाजी समय मे इसलिए शायद दर्शक धीरे धीरे मैदान मे आये , अपना काम जल्दी खत्म कर । दुनियां के ज्यादातर मैदान इतने दर्शकों के साथ पूरा या लगभग भरा होता । 

फिर  समझ ना आ रहा है लोग ये सवाल क्यों कर रहें है कि पहले मैच मे दर्शक कहां हैं । भाई अहमदाबाद स्टेडियम की क्षमता एक लाख बत्तीस हजार की है । उसे पूरा भरने के लिए भारत का मैच होना चाहिए। 

कल की दो टीमो मे से एक भी भारत क्या एशियाई टीम भी नही थी उसके बाद भी इतनी बड़ी संख्या मे दर्शक ना केवल मौजूद थे बल्कि ज्यादातर न्यूजीलैंड को सपोर्ट भी कर रहे थे । शायद मेरी ही तरह पिछले विश्व कप के फाइनल मे जिस तरह न्यूजीलैंड को हारा घोषित किया गया उसके कारण । 

कम से कम क्रिकेट के विश्व कप मे भी मेजबान और भारत तथा  पाकिस्तान के मैचों के अलावा ज्यादातर मैदान खाली ही रहता है । फुटबॉल की तरह लाखो दर्शक टीम के साथ आयोजित देश नही जाते । 

कौन है ये लोग कहां से आते हैं । इतनी निगेटिवीटि के साथ  कैसे जीते है । हर बात मे बुराई खोज लेना हर बात मे राजनीति डाल देना कैसे कर लेते हो आप लोग । चैन से सो और खा भी नही पाते होंगे ये लोग । 

जो पत्रकार क्रिकेट का क भी नही जानते जिनको ये भी नही पता की एक टीम मे खिलाड़ी कितने होते है वो भी दर्शकों को संख्या पर सवाल बस इसलिए कर रहे है ताकि अमित शाह के बेटे जय शाह को गरिया सकें । 

माने हद है भाई तुम लोगों क्रिकेट को बख्श दो अपनी गंदी राजनीति और नकारात्मक सोच से । 

October 04, 2023

दवाओं के सहारे जीवन

 

कल रात इमारत मे  किसी की हार्ट अटैक से मृत्यु हो गयी । 65  के करीब थें ।  कुछ साल पहले मुंह के कैंसर से पीड़ित थें पर अब उससे छुटकारा पा चुकें थे । 

बस दो दिन से अपने हाई बीपी की दवा नही खा रहें थें और बीपी बढ़ गया था । कल शाम ही बीपी नापा तो वो बहुत हाई निकला । 

घर आये पड़ोसी से इस बात का अफसोस भी जाहिर किया कि दवा नही खाया तो देखो कितना बीपी बढ़ गया है । कुछ समय बाद ही जब घर मे अकेले थे तो शायद हार्ट अटैक आया और बच नही पायें । 

इन्होनें तो दो दिन दवा नही खाया था । दो साल पहले हमारे फ्लोर के एक बुजुर्ग तो बस रात मे दवा नही खाया और अगली सुबह गुजर गयें। 

 उन्हे बहुत सारी समस्याएं थी , दवा खा खा कर तंग आ गये थे । उस रात जिद्द पकड़ ली कि अब से दवा नही खायेंगे जब मौत आनी है आ जाये । पत्नी बेटे से इस बात को लेकर झगड़ा भी हो गया । 

अगली सुबह ही तबियत बिगड़ गयी अस्पताल ले जाने के लिए बिल्डिंग के बाहर निकलते ही मौत हो गयी । 

हमारी अपनी छोटी चाची पचास से भी कम आयु मे पैरालाइसिस के अटैक का शिकार हो गयी बस दो तीन दिन दवा छोड़ने पर । हाई ब्लडप्रेशर और और पैरालाइसिस उनका फैमली इतिहास था । 

यही कारण था कि चाचा उनकी दवा का हमेशा ध्यान रखते थे । भाई दूज पर मायके गयी और दवा को लेकर लापरवाही बरत दी । तीन दिन बाद घर आयी तो दवा फिर से ले लिया था लेकिन शरीर के लिए देर हो चुका था । 

मंदिर मे सुबह पूजा करते गिर गयी । वो तो चाचा को फैमली हिस्ट्री उनकी पता थी तो तुरंत समझ गये । सीधा स्पेशलिस्ट हास्पिटल गये और डाॅक्टर को खुद बता दिया कि पैरालाइसिस का अटैक है । 

समय से इलाज मिल गया और लंबी फिजियो थेरपी से  धीरे धीरे इतना रिकवर कर लिया कि आराम से चल फिर सकती है घर और अपना काम कर लेती है । लेकिन उलटे हाथ से कुछ पकड़ नही सकतीं और कहीं भी अकेले नही जाने दिया जाता है । 

अब आधा दर्जन दवा चार पांच सालों से रोज खा रहीं । कुछ कुछ महीनों मे हाथ पैर मे अकड़न और दर्द की समस्या अलग से । 

एक महीने पहले मेरी कामवाली अचानक स्टेशन पर चलते हुए एकदम से बेहोश हो कर पटरियों पर गिर गयी । बहुत ज्यादा चोट आ गयी थी एक महीना लगा उसे ठीक होने मे । 

डाॅक्टर ने बताया सुगर बहुत ज्यादा हाई हो गया था । उसे अपनी बीमारी के बारे मे पता ही नही था । वो तो शुक्र था कोई ट्रेन नही आ रही थी और लोगो ने उसे तुरंत पटरी से हटाया । 

दो दिन से काम पर आ रही है मैने उसे ढेर सारी हिदायते दी । परहेज को लेकर और दवा के प्रति लापरवाही ना करने को लेकर।  

तो भाई दवाओं और स्वास्थ्य को लेकर लापरवाही जरा भी ना बरते । अपने लिए नही तो अपने अपनों का सोचें । ठीक है मौत तो जब आनी  है तब आयेगी ही लेकिन ये सोच कर कोई बीच सड़क से चलना या नदी मे छलांग तो नही लगाता ना । 

तो ख्याल रखिये अपना भी और अपने अपनो का भी । 

October 01, 2023

इस अधर्म को कौन रोके




अपने देवता के साथ ऐसा  व्यवहार करने का महान कार्य अपना हिन्दू उर्फ सनातन धर्म ही कर सकता है । तस्वीरे देखिये,  जिस गणपति को दस दिन भक्तिभाव से पूजा और रोते खुश होते नाचते गाते विदा किया । उसे किस दुर्दशा मे समुद्र किनारे छोड़ आये हैं । 

कल बिटिया बीच की सफाई के लिए गयी थीं जो दृश्य देखा वो उनसे भी बर्दास्त नही हो रहा था । गन्दगी की पराकाष्ठा देख बहुत दुखी हुयी और  देवता की मूर्तियों की ऐसी हालत कि ईश्वर मे विश्वास ना होने के बाद भी उन्हे आश्चर्य रूपी दुख हो रहा था ।

समुद्र अपने पास कुछ ना रखता सब लौटा देता है नतिजा विसर्जन के दूसरे दिन मुर्तियां रेत पर टुटी फूटी खराब हालत मे पड़ी थी । बड़ी मूर्तियों को जेसीबी मशीन से तोड़ा जा रहा था ताकि उन्हे आसानी से निस्तारण किया जा सके। 

ये देख उनकी एक मित्र तो रोने लगी क्योंकि उसके घर गणपति आये थे और एक दिन पहले वो विसर्जन के लिए आयी थी । गणपति से उसकी श्रद्धा प्रेम के कारण ये सब उसके लिए असहनीय हो रहा था । 

सालों से पर्यावरण प्रेमी से लेकर समझदार वर्ग कहता आ रहा है कि मूर्तियों का आकार छोटा किया जाये और उन्हे मिट्टी से बनाया जाये । लेकिन श्रृद्धा कम बाजारवाद मे डूबे पूजा पंडाल इसको मानने को तैयार नही होते है । बीस से चालीस फिट ऊंची मूर्तियां बनायी जाती हैं । 

यही सारे मंडल तब चुपचाप सरकारी फरमान को मान रहे थें जब कोविड के कारण मूर्ति का आकार सिर्फ पांच फिट निर्धारित था । लेकिन उसके बाद सब अपने ढर्रे पर वापस आ गया । 

जिस धर्म के मानने वाले ही जब ऐसा व्यवहार अपने ही देवता की मूर्ति से करे तो उस धर्म को क्या किसी और से खतरा हो सकता है । 

खैर हम अ-धार्मिक लोगों का क्या बिटिया सब पूजनियों को कचरे की तरह साफ करने का सहयोग कर घर आ गयीं ।