October 09, 2023

सर्वे और तथ्य

 किसी अन्तर्राष्ट्रीय संस्थान के किये सर्वे तकनीकि रूप से कितने गलत हो सकते है वो इस सर्वे को देख कर समझा जा सकता है । 

हाल मे ही एक अन्तर्राष्ट्रीय संस्थान ने अपने सर्वे मे बताया कि स्कूली शिक्षा के स्तर मे भारत सबसे नीचे से दूसरे पायदान पर है । उसके अनुसार भारत के ग्रामीण इलाके के दूसरी तीसरी कक्षा के छात्र ठीक से किताब मे लिखा पढ़ नही पा रहे थे और दो और दो चार जैसे जोड़ घटाना भी नही कर पा रहे थें । 

ये खबर पढ पर ज्यादातर शहरी भारतीय भी इससे सहमत हो जायेंगें और सरकारी शिक्षा के स्तर को कोसने लगेंगे कि हमारे बच्चे तो दूसरी तीसरी तक फर्राटेदार किताबे पढ़तें है । गणित मे कहीं आगे के प्रश्न हल करने लगते हैं ये बच्चे कैसे नही कर पा रहे हैं । 

पर ज्यादातर लोग इस बात को भूल जाते हैं कि शहरी मध्यम और उच्च वर्गीय बच्चा दो से ढाई साल की आयु मे प्लेग्रूप फिर नर्सरी , एलकेजी , यूकेजी  के तीन साल के बाद पहली फिर दूसरी तीसरी कक्षा मे जाता है । 

दूसरी से तीसरी कक्षा तक उसकी स्कूलिंग के पांच से छः साल हो चुके होते हैं । प्लेग्रूप मे वो अक्षरो को बोलना , नर्सरी मे पढ़ना लिखना उसके बाद शब्दो को जोड़ कर पढ़ना आदि सीख लेता है । तब पांच छः साल बाद फर्राटेदार रिडिंग करता है । 

जबकि सरकारी स्कूल जाने वाले बच्चे खासकर ग्रामीण इलाके के बच्चे छः से सात साल की आयु मे पहली बार स्कूल जाते है पहली क्लास मे जहां उन्हे अक्षर ज्ञान दिया जाता है । 

अब आप सोचिये पहली क्लास मे अक्षर और अंक बोलना सिखने वाला बच्चा दूसरी क्लास या तीसरी मे भी धाराप्रवाह पढ़ कैसे सकता है । 

पांच से छः साल स्कूलिंग किये बच्चो का मुकाबला क्या दो या तीन साल स्कूल गये बच्चो से किया जा सकता है । उसकी भी पांच या छः साल की स्कूलिंग हो जाये फिर उसके स्तर को देखा जाना चाहिए। 


ये ठीक है कि आज भी सरकारी खासकर ग्रामीण क्षेत्र के स्कूलों मे पढाई का स्तर ठीक नही है । अध्यापक छात्र की संख्या कम , वो अनियमित है ,अध्यापको का ठीक से प्रशिक्षित ना होना , बीच मे स्कूल छोड़ देना जैसी हजारो समस्याएं है । लेकिन वो दूसरा विषय और समस्या है । 

शहरों के सरकारी स्कूल की स्थिति इतनी भी खराब नही है । हमारे समय के ना जाने कितने लोग सरकारी स्कूलों से पढ़ कर ही आये हैं । बनारस जैसे शहर मे स्कूल,  अध्यापक,  पढाई सब अच्छे थे उस जमाने मे भी । आज मुंबई जैसे बड़े शहर मे तो सरकारी स्कूलों मे कहीं कहीं क्लास मे प्रोजेक्टर आदि भी लगे हैं। दिल्ली मे भी स्कूल अच्छी हालत मे हैं ।

ऐसे सर्वे आदि मे यदि गलत जगह या इरादे के साथ से सैंपल लिया जायेगा तो ऐसे सर्वे कभी सही नही हो सकते हैं । 

ज्यादा समय की बात नही है जब अपना पड़ोसी पाकिस्तान एक सर्वे के अनुसार हैप्पीनेस इंडेक्स मे हमसे ऊपर था और पेट्रोल के दाम हमसे कम । पर आज उसकी स्थिति ये है कि वहां के नागरिक हर हाल मे वहां से भागने की सोच रहे हैं । 

6 comments:

  1. बढ़िया | पर पाकिस्तान का होना बहुत जरूरी है :)

    ReplyDelete
  2. सटीक आकलन,इस सत्य से मुँह नहीं मोड़ा जा सकता है। पूर्णतया सहमत।
    सादर
    -----
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना मंगलवार १० अक्टूबर२०२३ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    ReplyDelete
  3. सटीक सार्थक और बेहतरीन रचना

    ReplyDelete
  4. शोध प्रमाणिक होना आवश्यक है, वर्ना देश की छवि धूमिल होती है, सही कहा आपने , चिंतन परक लेख के लिए अनंत शुभकामनाएं 🌹

    ReplyDelete
  5. शिक्षा पहले से अपने बेहतरीन स्थिति में है। खासकर मैने देखा है या देख ही रहा हु पूर्वांचल में ,अब पहले जैसी बात नही रह गई है सरकारी स्कूलों में अब ये और बेहतर कर रहे है। अंतराष्ट्रीय संस्थानों का काम ही क्या है इनका एक तरफा रिसर्च होता है भारत की छवि बिगाड़ने में लगे रहते है , बाकी बनारस तो है ही सर्व विद्या की राजधानी।

    ReplyDelete