May 31, 2022

रुदालियाँ

एक बार एक पति ने अपनी पत्नी से पूछा कि मैं मर जाओ तो क्या तुम बहुत रोओगी |  पत्नी बोली मैं तो रोने के लिए रुदाली बुला कर साथ में रोऊंगी |  पति ने परीक्षा लेने के लिए मरने का नाटक किया पत्नी ने अपने कहे के अनुसार रुदाली बुला ली | रुदाली से मोलभाव के बाद चार मक्के की रोटी और दो रुपये पर बात  तय हुयी | 


रुदाली रोते हुए बोली बहन तब से तवे पर रोटी चढ़ा दे बाद में इंतज़ार ना करना पड़े | पत्नी रोते बोली मैं कही भागे ना जा रही पहले अपना काम ठीक कर फिर रोटी बनाउंगी | रुदाली रोते बोली बहन भूख लगी हैं रोटी तवे पर चढ़ा देगी तो चार रोटियां बनते बनते मेरा काम ख़त्म हो जायेगा | 


पत्नी रोते रोते रोटियां तवे पर डाल महंगाई का रोना रोने लगी कि उसके  दो रुपये जा रहे  हैं | रुदाली रोने लगी ये तो तवे पर रोटी रख चली आयी मेरी रोटियां जल रही हैं | मरने का नाटक करता पति सोच रहा हैं दोनों अपने अपने लिए रो रही हैं मेरे लिए यहाँ कौन रो रहा हैं | 


इसमें कोई दो राय नहीं हैं कि आजादी के बाद अभी तक इरादतन स्वतंत्रता संग्राम के बहुत से सिपाहियों शहीदों को इरादतन याद नहीं किया गया ,उन्हें भुला दिया गया , नयी पीढ़ी को उनके बारे में जानने नहीं दिया गया | ये काम किया गया  ताकि स्वतंत्रता संग्राम में कुछ  ख़ास लोगों , परिवारों की भूमिका को  चढ़ा कर दिखाया जाए और उन्हें ही एक मात्र और असली हीरो बता उसका राजनैतिक फायदा उठाया जा सके | 


सालों बाद अब सत्ता में दूसरी विचारधारा  का मजबूत आगमन हुआ और फिर उन्होंने इरादतन उन भूले बिसरे स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों और शहीदों को याद करना , चर्चा के केंद्र में लाना शुरू किया ताकि पहले से फोकस में रहे लोगो को नीचा दिखा सके उन्हें कमतर बता कर राजनैतिक फायदा उठा सके | 


बीते सुभाषचंद्र की  जयंती पर एक विचारधारा ने सुभाषचंद्र बोस को याद किया कि वो देश के पहले प्रधानमंत्री थे ताकि पहले प्रधानमंत्री के रूप  में नेहरू को कमतर किया जा सके | दूसरे ने ये बताते याद किया कि बोस ने तुम्हारी विचारधारा वालो को गालियां दी थी उनसे नफ़रत करते थे  उन पर बैन की मांग की थी | 


लगभग हर स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को याद करते हुए इसी क्रम को दोहराया जाता हैं | 


बेचारे बोस बाबू या अन्य कोई भी स्वतंत्रत सेनानी आज जहाँ होंगे वहां सोच रहें होंगे कि क्या  देश के स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में हमारी  बस ये भूमिका थी |  अपने पुरे जीवन सबसे महत्वपूर्ण काम बस ये किया था , क्या मेरे देश की जनता मुझे बस इस भूमिका के लिए याद रखना चाहती हैं |  मेरी शहादत का बदला ऐसे चुकाया जायेगा मुझे याद करने के नाम पर एक दूसरे को नीचा दिखाने का काम किया जायेगा | 


अरे रुदालियों तुम सब अपने अपने लिए रो रहें हो हमें  कौन याद कर रहा हैं | यही सब करना हैं तो इससे अच्छा हमें  मत ही याद रखो , ये सब करने से हमें  भुला देना बेहतर हैं | 

May 30, 2022

फ़िल्मी विवाद , विवाद या पब्लिसिटी स्टंट

फिल्म और शो बिजनेस में क्या सच में हो रहा हैं और क्या सिर्फ पब्लिसिटी के लिए कई बार ये बता पाना बहुत मुश्किल होता हैं | यहाँ प्रचार प्रसिद्धि के लिए किसी तरह का विवाद खड़ा करना या बेमतलब की हरकते करना बड़ी आम बात हैं | 


आम लोगों दर्शको के लिए कई  बार ये पता करना भी एक मुश्किल काम होता है कि क्या असली हैं और क्या पब्लिसिटी स्टंट | इस चक्कर में कई बार मासूम दर्शक उन्हें सच असली मान ठगा जाता हैं | जैसे ऑस्कर एवार्ड में विल स्मिथ के मारे गए थप्पड़ को भी बहुत सारे लोग   असली मान बैठे थे  प्बलिसिटी  स्टंट नहीं | 


पिछली बार इन अवार्ड वालों ने कार्यक्रम के कुछ दिन पहले बताया कि सारे अवार्ड चोरी हो गए हैं अब नया बनाने के लिए समय नहीं हैं और पता नहीं ऑस्कर अवार्ड में क्या होगा | फिर चमत्कारिक रूप की कार्यक्रम के एक दिन पहले वो एक सार्वजनिक कूड़े के डब्बे में एकदम चमचमाते हुए मिल गए थे | 


लोगों  को ये भी नहीं पता कि भारत में ऐसे सिनेमाई पुरस्कारों में जो कलाकार नाचते गाते हैं टीवी पर दिखाने के लिए उसी स्टेज पर एक दिन पहले ही कई टेक में रिकॉर्ड कर लिया जाता हैं | फिर लाइव रिकार्डिंग लॉन्ग शार्ट और पहले की रिकॉर्डिंग क्लोजअप शार्ट को मिला कर टीवी पर दिखाया जाता हैं | 


लोग ये  भी नहीं जानते  कि ऐसे पुरस्कारों के समय एंकर , कलाकार और नीचे बैठे कलाकार के बीच की नोकझोक , बातचीत पहले से तय होती हैं | फिर अपनी नादानी में ये वीडियों फॉरवर्ड कर लिखते हैं देखो कैसे अवार्ड  फंक्शन में अक्षय कुमार ने शाहरुख की बेइज्जती की या विद्या बालन ने शाहरुख़ की पोल खोली कि वो अवार्ड खरीदते हैं | 


इन बेचारो को तो ये भी नहीं पता कि बहुत से इंटरव्यू और कपिल शर्मा जैसे हास्य शो में बड़े कलाकारों का  हँसी मजाक और तपाक से दिया मजाकिया जवाब भी स्क्रिप्टेड होता हैं |  बेचारे दर्शक  लोग समझते हैं कि फिल्मो से जुड़े विवाद और  उनसे जुड़े कलाकारों का विवादित बयान असली होते हैं | उनके अफेयर की हर खबर असली होती हैं | 

वास्तव में जब कोई फिल्म आने वाली होती हैं तो उसके बारेमे ज्यादा बात हो वो खबरों में बना रहें जिससे उसका  प्रचार हो  सके | इसके लिए खुद उस फिल्म या स्टार से जुड़े पीआर के लोग विवादी खबरे या अफेयर की खबरे फैलाते हैं | 






May 29, 2022

हर मर्ज की दवा मम्मी

"  मम्मी बायो की बुक कहाँ हैं " 

"  वही  होगी जहाँ तुम रखी हो " 

" मेरे अलमारी में नहीं मिल रही " 

" मैं जरुरी काम कर रही हूँ | ठीक से देखो वही होगी " 

" बोल रही हूँ  ना  नहीं मिल रही हैं ज़रा सा आ कर देख नहीं सकती क्या " 

"  मैं आयी और  बुक वहीँ मिली मुझे ,  तो सोचके रखना फिर तुम "  

"  पापा तुम ही  थोड़ी हेल्प करो , एक बार देख लो ना कहीं हैं क्या "  

अंततः बाप बेटी दोनों को बुक वहां नहीं मिली और अपना जरुरी काम छोड़ मुझे उठना पड़ा और बुक एकदम सामने वही पर  मिल गयी | 

" पापा मुझे पता ही था कि मम्मी आयेगी और बुक उसे ही मिलेगी  " 

" बाबू तुमको पता था कि मम्मी को ही बुक मिलेगी तो बीच में मुझे  बुला कर क्यों फंसा दिया | अब लो तुम्हारे साथ मुझे भी सुनना पडेगा | बैकग्राउंड में मम्मी चालू थी 

" दोनों के दोनों अंधे हो | क्या मजाल की एक काम तुम लोग ठीक से कर लो | दो मिनट भी शांति से बैठने नहीं दे  सकते दोनों | तुम दोनों सुबह आंख खोलते ही हो ये टास्क  लेकर कि आज कैसे मुझे परेशान किया जाए | कैसे मुझे  शांति से कुछ करने ना दिया जाए ब्ला ब्ला ब्ला ब्ला ब्ला ब्ला ब्ला ब्ला -----


May 28, 2022

परहेजी खानपान और बच्चे

बिटिया के हर जन्मदिन पर उनके जैन मित्र आते हैं तो बिना लहसुन प्याज के खाना बनाने की आदत हैं | लेकिन इस बार तो गजब ही हो गया जब जन्मदिन महावीर जयंती के एक दिन पहले था ना खाने वाली चीजों की लिस्ट खूब लंबी हो गयी | लहसुन प्याज के साथ आलू , गाजर , मशरूम , रोटी , ब्रेड , चीज आदि की भी मनाही हो गयी | 


ये तो फिर भी गालीमत था इसके आलावा एक मित्र वेगन हैं भी तो दूध दही घी मक्खन क्रीम भी नहीं चलेगा उसके लिए | एक दिन पहले हमें बताया गया इसके बारे में और हम सोचने लगे अब बनाने के लिए बचा क्या जो इन बच्चो के खाने लायक हो | 


मैं तो बिटिया से बोली कि पहले  ही बताना था ना गोलगप्पे बना देती झंझट ही ख़त्म हो जाता | लेकिन इन बच्चो को ये सब कहाँ भाता हैं पार्टी मतलब हैं पास्ता , चाइनीज , मैक्सिकन कुछ चाहिए | दो मित्र और बिटिया आलू खाने वाली थी और ख़ास हमें कहा गया था  कि वेगन मित्र के लिए फ्रेंच फ्राइस बना देना तुम्हारे हाथ का उसे बहुत पसंद हैं  |  


जैन लोगों के लिए स्टार्टर में नाचोस बने बिन चीज के टमाटर और कच्चे आम के सालसा के साथ और फ्रेंच फ्राइस बनी बाकि के लिए  | बच्चे तो आखिर बच्चे ही होते हैं तले आलू देख कर सबका व्रत टूट गया | उसके बाद दो ढाई किलो आलू मैंने तले आठ लोगों के लिए | 


कई बार सोचती हूँ मैं भी चौमासे के बाद सभी जैन  लोगों से माफ़ी मांग लिया करू सालाना |  बच्चे कितनी बार घर आ कर या बिटिया के टिफिन से अपना धर्म ख़राब कर लेते हैं |  वैसे जैन लोगों के नर्क में टॉर्चर का कौन सा तरीका होता हैं | इधर वाला  तेल में तला जाना मेरा तो पक्का है उधर वाला भी कोई बताये | 


May 27, 2022

रसियन , रुसी भाषा और एक मजेदार किस्सा

 

मेरी शादी को कोई डेढ़ दो साल हुए होंगे जब मेरी एक मित्र और  उसकी छोटी बहन मेरे घर मुंबई आये | घूमने के क्रम में हम लोग वाटर पार्क भी गए | वाटरपार्क घूम कर वापस आते समय हम लोग घर जाने के लिए खाड़ी के पास बोट का इंतज़ार करने लगे | वहां से बोत दो तरफ जाती हैं | हमारी वाली बोट आयी नहीं थी लेकिन दूसरी तरफ जाने वाली बोट आ गयी थी | पूरा भरने के इंतज़ार में वो भी वही खड़ी ही थी | 


उस बोट में कोई चौदह पंद्रह बिलकुल यंग विदेशी लडके सवार थे | उनमे से ज्यादातर की आयु कोई सोलह से बीस के बीच लग रही थी | चार  पांच लडके अब भी बोट के बाहर प्लेटफॉर्म पर बिलकुल हमारे आगे खड़े थे | मेरी सहेली और उसकी बहन उन लोगों की तरफ मुंह किये खड़ी थी जबकि मेरी पीठ उनकी तरफ थी | 


अचानक से मेरी सहेली की बहन ने कहा आप सामने से हट कर मेरे बगल में खड़ी हो जाये उन्हें फोटो लेने में परेशानी हो रही हैं | मैं उसके बगल में खड़ी तो  लेकिन फिर कहा लेकिन उन्हें फोटो लेने में क्या परेशानी हो रही हैं हम तो उनके पीछे हैं | 


तो उसने कहा जो लड़का फोटो ले रहा हैं उसने अभी कहाँ कि जो लड़की पीठ किये खड़ी हैं अगर वो सीधी हो जाए तो तुम लोगो के साथ प्रीटी भारतीय लड़कियों की भी फोटो साथ में आ जायेगी | मुझे हँसी आ गयी , मैंने कहा फिर तो मैं बाहर हूँ तुम लोग अच्छे पोज़ दे कर फोटो खिंचवा लो | 


फिर हम तीनो ने आराम से हँसते हुए उनके पीछे अच्छे से स्टाइल में खड़े   हुए ताकि उनकी फोटो में हम तीनो आ जाये  तम्मन्ना पूरी हो | सभी विदेशी थी तो कोई डर नहीं था कि कोई मुसीबत होगी , वो अपने रस्ते हम अपने रस्ते | पर तभी मैंने ध्यान दिया कि वो अंग्रेजी में बात नहीं  कर रहें हैं | मैंने पूछा ये किस भाषा में बात कर रहें हैं | तो मित्र की बहन ने कहाँ रसियन में | 


मित्र की बहन ने रूस से अपने मेडिकल की पढाई की थी और लखनऊ में प्रेक्टिस कर रही थी उसे रसियन आती थी | उसके बाद उसने शुरू किया उन यंग लडको की बातों को ट्रांसलेट करना | एक ने कहा उसे इंडियन ड्रेस पहने किसी लड़की के साथ फोटो खिंचवानी हैं | दूसरे ने कहा वो दूसरी वाली ड्रेस जो सेक्सी होती हैं | 


वहां सूट पहने कई लड़कियां थी लेकिन साड़ी पहने एक भी नहीं तो हम लोगों ने अंदाजा लगाया ये साड़ी की  बात कर रहें हैं | बहुत बाद में एक बार शिखा जी से पूछा था इस बारे में तो उन्होंने कहाँ रूस एक बहुत ठंड वाली जगह हैं यहाँ पर पेट पीठ दिखाते कपडे बहुत कम पहने जाते हैं | इसलिए हो सकता हैं पेट दिखाती साड़ी उनके लिए सेक्सी हो | देख लो संस्कारी लोग जिस साड़ी को अब सबसे संस्कारी मानते हो वो किसी ठंडी जगह वाले या किसी अरब वाले  दिखाऊ सेक्सी ड्रेस हो सकती हैं | 


खैर कुछ देर तक उनकी सारी बातें भारतीय लड़कियों पर ही केंद्रित थी | फिर जब हमें लगा कि उनकी बोट भर गयी हैं और वो जाने वाले हैं तो मैंने उससे कहा कि अब जा कर उनसे  रसियन में बात करों | मजा तो तब हैं जब उन्हें पता चले की हमने उनकी सारी बाते सुनी और समझी हैं | 


मित्र की बहन गयी और सबसे पहले रसियन में उनको अभिवादन करते पूछा आप सब कैसे हैं | हाय हाय कसम से बता रही हूँ लडको की शकल देखने लायक थी | एक लड़का जो फोटो खिंच रहा था वो आँखे बड़ी बड़ी कर लगभग चीख ही पड़ा लेकिन इस बार अंग्रेजी में यू नो रसियन | इतना कह उसने प्लेटफार्म से सीधे बोट में छलांग लगायी और वहां बैठे बाकी लडको से खुसर फुसर करने लगा | निश्चित रूप से वो उन्हें सारे कांड को बता रहा होगा | 


उसके भागते ही बाकी लडके  भी उसके पीछे बोट में भांग गए बस एक वही खड़ा रहा हम लोगों से बातचीत करने के लिए | वो उम्र में बाकियो से बड़ा लग रहा था कोई पच्चीस छब्बीस का  रहा होगा | फिर उसन बताया वो तीसरी बार भारत आ रहा हैं और मुंबई जरूर आता हैं | उसे मुंबई काफी पसंद हैं और वो वाटरपार्क भी , इसलिए वहां जरूर आता हैं | 


जीतनी देर वो हमसे बात करता रहा उतनी देर बोट में बाकी लडके उन चार पांच लडको की बात सुन सुन हँसे जा रहें थे और उन चार पांच के आश्चर्य में पड़ना चेहरे से जा नहीं रहा था | उनमे से किसी ने भी उम्मीद नहीं की होगी कि ऐसे मुंबई में किसी सड़क पर उनकी भाषा समझने वाला कोई मिल जाएगा और उनकी ऐसी बातों को सुन समझ लेगा जो वो बिलकुल भी नहीं चाहेंगे | 


बस इतनी ही बात हुयी उससे कि उनके बोट के जाने का टाइम हो गया और बात करने वाला लड़का भी चला गया | बोट आगे सरकते ही सब हाथ हीला  बाय करने लगे | हमने कहा वो शायद ही हमें कभी हम सबको भूल पाए और हमें याद रखने के लिए उनके पास हमारी तस्वीरें भी हैं | जब भी वो अपनी फोटो देखेंगे बैकग्राउंड में हमें देख उन्हें ये किस्सा याद आएगा | जैसे रूस और रुसी भाषा की बात आने पर मुझे ये किस्सा याद आ जाता हैं | 

May 26, 2022

देशभक्ति फिल्मे ,व्यवसाय या असली राष्ट्रवाद

सोचिये अगर आज के समय में मुगले आज़म फिल्म बनी होती तो एक वर्ग कहता की  फिल्म अकबर की छवि खराब करने के लिए बनायीं गयी हैं | महान अकबर को प्यार का दुश्मन बताया जा रहा हैं | वैसे आज के समय में मनोज कुमार ने उपकार फिल्म बनायीं होती तो उनको भी नहीं छोड़ा जाता |  कहा जाता सरकार का प्रचार कर रहें हैं उसका एजेंडा , नारा 'जय जवान जय किसान'  को बढ़ावा देने के लिए फिल्म बनायीं हैं , भक्त कहीं के |  


मनोज कुमार को  उनकी देश भक्ति वाली फिल्मो के लिए तब सम्मान से भारत कुमार का नाम दिया गया था | आज होते तो अक्षय की तरह उनकी खिल्ली उड़ायी जाती उनकी देशभक्ति वाली फिल्मो के लिए  | 


कोई भी फिल्म निर्माता निर्देशक किसी भी फिल्म का निर्माण माहौल देख कर करता हैं | उनका मुख्य उद्देश्य पैसा कमाना होता हैं अपनी भावना दिखाना नहीं | इसलिए वो ये देखते हैं कि देश के लोग किस भावना में बह रहें हैं , वो इस समय किस तरह की फिल्मे पसंद कर रहें हैं | जिस समय काल में जिस तरह की फिल्मे चलती हैं लोग जैसी फिल्मे देखना पसंद करते हैं फिल्म वैसे ही बनते जाती हैं | जब तक कि दर्शक उसे देखना बंद ना कर दे बोर ना हो जाए | 


याद कीजिये एक समय डाकुओ और गांव के जमींदारों पर कितनी फिल्मे बनती थी | फिल्मो ने डाकुओ को लेकर लोगों की राय ही बदल दी थी | दर्जनों फिल्मो में डाकुओ को इतना  अच्छा दिखाया कि जनता की सहानभूति उनकी ओर हो गयी थी |  पता नहीं उन फिल्मो को देख कर कितने डाकुओ ने आत्मसमर्पण किया था  | 


उसके पहले के समय में ईश्वर भक्ति पर फिल्मे बनती थी क्योकि एक बड़ा दर्शक वर्ग  बाकी की फिल्मो को ख़राब और भगवान वाली फिल्मो को अच्छा मान उन्हें देखने जाता था | उस समय काल में शायद ही कोई भगवान बचे हो जिन पर फिल्म ना बनी हो | मेरे दादा जी ने सिनेमा हाल में दो चार फिल्म ही देखी थी सब भगवान भक्ति वाली ही थी | 

रामगोपाल वर्मा ने अंडरवर्ड वाली फिल्मो से पैसा बनाया | उन्होंने ने भी गैंगस्टर और अंडरवर्ड डॉन की  भी खूब छवि बदलने  की कोशिश की | उस समय तो कुछ फिल्म निर्माता सीधे पाकिस्तान दुबई फोन कर वहां छुपे  डॉन से फिल्म के लिए प्लॉट तक ले रहें थे और उनके ही पैसे से फिल्म बना रहें थे | 


खेल और खिलाडियों की बॉयोपिक का भी दौर था और फिल्म तो बस शाहरुख और सेक्स पर बिकेगी का भी दौर था | कम उम्र वाली प्रेम कहानियां तो सिर्फ संगीत के बल पर चलने वाली फिल्मो का  भी दौर था |  संगीतमय प्रेम कहानियां देख जब लोग बोर होने लगे तो आया एंग्री यंग मैन वाला समय  | वो दौर शुरू हुआ  डिशुम ढिशुम वाले एक्शन का दौर | 


जो कॉमेडी कभी फिल्मो का एक छोटा हिस्सा होती या एक दो फिल्मे ही हास्य पर आती एक समय कॉमेडी फिल्मो का रेला लग गया | फिर कॉमेडी के नाम पर फूहड़ता , अश्लीलता शुरू हो गयी तो वो भी बिदा हो गया | आर्ट फिल्मो का एक दौर था सालो बाद वो समान्तर फिल्मो के नाम से वापस आया | फिर वही कम बजट रियलिस्टिक फिल्मो के नाम से पुकारा जाने लगा | सबका दौर समय आता हैं और फिर चला जाता हैं | 


मनोज कुमार के बाद आज का समय फिर से देशभक्ति काल हैं साथ में ऐतिहासिक चरित्रों पर बनी फिल्मो का समय  | सभी फिल्मकारों को पता हैं जनता आज एक ही भावना में बह रही हैं और वैसी ही फिल्मे लोग देख रहें हैं | जब राष्ट्रवादी देशभक्ति वाली फिल्मे  पैसे ला रही हैं तो क्यों नहीं वैसे ही फिल्मे बनाया जाए जिसमे पैसे वापस आने की गारंटी हो  |


कहने का मतलब बस इतना हैं कि किसी भी तरह की फिल्मो का दौर  किसी निर्माता , निर्देशक , कलाकार की भावना को व्यक्त नहीं करते असल में वो बताते हैं कि दर्शक वर्ग उस समय में किस भावना में बह रहा हैं | तो जब तक बड़ा दर्शक वर्ग ऐसी फिल्मो से ऊब ना जाए ये बनती रहेंगी | 


मनोरंजन के नाम पर कुछ ऐसा देखना पसंद हैं तो देख आइये ऐसी फिल्मे नहीं पसंद हैं तो मत जाइये लेकिन उसमे इतिहास , भूगोल , विज्ञान , सच्चाई मत खोजिये | अब वो चाहे फिल्म के समर्थक हो या विरोधी | 

#सिने_माँ  



May 25, 2022

जनप्रतिनिधि की नजर में आम जनता

2008 मुंबई हमले में मेजर संदीप उन्नीकृष्णन शहीद हो गये थे | वो मूल रूप से केरल के रहने वाले थे | उनकी शहादत के कुछ दिन बाद जब केरल के मुख्यमंत्री और सीपीएम नेता वीएस अच्‍युतानंदन की उनके घर जा कर श्रद्धांजलि ना देने की आलोचना हुयी तब  वो अगले दिन उनके घर  पहुँच गए | 

अपने एकलौते पुत्र की शहादत से दुःखी  और नाराज मेजर संदीप के पिता उन्नीकृष्णन ने उनसे मिलने से इंकार कर दिया | इस पर सीपीएम नेता इतना तमतमाये की  भूल गए कि वो एक राज्य के मुख्यमंत्री भी हैं और एक शहीद के घर आये हैं | बाहर आ कर उन्होंने कहा  'अगर यह घर मेजर संदीप का घर न हेाता तो इस ओर एक कुत्‍ता भी नहीं आया होता।' 


इस बयान पर उनकी आलोचन भी हुयी लेकिन उन्होंने अपनी  गलती मानने के बजाये और अकड़ दिखाया और माफ़ी मांगने से इंकार कर दिया | जनप्रतिनिधि ऐसे ही आम आदमी को दो कौड़ी का समझता हैं जबकि वो उसी के वोट के बल पर वहां होता हैं जहाँ से वो अकड़ दिखा रहा होता हैं | 

पंचायत का दूसरा सीजन देखते ये किस्सा याद आ गया | 

 #पंचायत2 


May 24, 2022

हर स्त्री समस्या का समाधान समानता नहीं हैं

एक मुस्लिम महिला ने कोर्ट में याचिका दायर की हैं कि उसके पति को दूसरा विवाह करने से रोका जाए | महिला के अनुसार पति ने मारपीट की दहेज़ के लिए परेशान किया और उसके बाद बच्चे के साथ उसे घर से निकाल कर वो दूसरा विवाह करने जा रहा हैं |

जब तक उसकी लिखित इजाज़त ( जैसा की रिवाज हैं कि पहली पत्नी की रजामंदी से ही दूसरा निकाह हो सकता हैं ) पतिके पास ना हो उसे बहु विवाह से रोका जाए | माना जा रहा हैं इस याचिका के बहाने बहु विवाह पर रोक लगायी जा सकती हैं अब भारत में |

भारत सही कई देशो में बहु विवाह को क़ानूनी मान्यता प्राप्त हैं | किन्तु अब धीरे धीरे अन्य देशो के साथ मुस्लिम देश भी इसको बंद करते जा रहें हैं | लेकिन इस मामले में महिलाओं की समस्याओ का सबसे अच्छा और मजेदार समाधान दक्षिण अफ्रीका ने निकाला हैं |

कुछ महीने पहले उन्होंने महिलाओं को समाज में समानता देने के लिए एक कानून पास करके महिलाओं को भी बहु विवाह अर्थात एक समय में एक से ज्यादा विवाह करने की इजाजत दे दी हैं | इसे ऐसे समझिये की कमला बता रही हैं कि कमाई का आध हिस्सा पति शराब में उड़ा देता हैं और पीने के बाद उसे मारता पीटता हैं | उसका समाधान ये बताया गया चलो अब से सभी महिलाओं को आधी कमाई शराब में उड़ाने और पति को मारने की इजाजत होगी |


पहली बात ज्यादातर बहु विवाह में स्त्री की स्थिति समाज में पुरुष के मुकाबले दोयम दर्जे की निशानी हैं | पति से नीचे का दर्जा रखने वाली स्त्री एक पति के रहते एक तो दूसर विवाह कर नहीं सकती और किसी अप्रत्याशित स्थिति में कर भी ले तो ये उसकी मुसीबते डबल करने के बराबर होगा |


मान लीजिये कोई दूसरी ताकतवर महिला एक से ज्यादा विवाह कर भी ले तो इससे हजारों लाखो उन महिलाओं की समस्या परेशानी कम कैसी होगी जो बहु विवाह के कारण प्रताड़ना सह रही हैं | आप को क्या लगता हैं क़ानूनी मान्यता मिलने का बाद भी क्या दुनियां का कोई भी पुरुषवादी मानसिकता रखने वाला समाज इसे स्वीकार कर लेगा , जवाब हैं नहीं किसी कीमत पर नहीं |


वहां पर इस कानून का जोरदार विरोध पुरुषो द्वारा होने लगा | खासकर उन पुरुषो द्वारा जिनकी खुद एक से ज्यादा पत्नियां हैं | सबसे बड़ी मुसीबत उन्हें ये लगी कि महिला के कई पति होंगे तो पता कैसे चलेगा कि बच्चे का पिता कौन हैं |
पहले तो ये समझ लीजिये प्रकृति के लिए किसी बच्चे की पहचान उसकी माँ होती हैं पिता की कोई हैसियत नहीं होती ज्यादातर |

पिता का नाम मनुष्यों और खासकर पुरुष सत्ता की बनायीं व्यवस्था हैं वरना माँ का नाम ही काफी हैं किसी बच्चे के पहचान के लिए | बस पिता का नाम वाला कॉलम हटा कर माँ के नाम का कॉलम बना दीजिये , समस्या ही ख़त्म | उसके बाद चाहे पुरुष या स्त्री कोई भी बहु विवाह करे बच्चे के पहचान की कोई समस्या ही नहीं होगी |


लेकिन देखने वाली बात ये हैं कि पुरुषवादी समाज में कितने पुरुष किसी स्त्री का दूसरा पति बनना चाहेंगे और कितने पुरुष इस बात को बर्दास्त करेंगे कि उनके होते उनकी पत्नी दूसरा विवाह करे , या दो पति एक साथ रहें | मतलब किसी विवाहित महिला का प्रेमी तो हर तरह का पुरुष बन जायेंगा किन्तु पति , बहुत मुश्किल बात हैं | वहां भी सारी बात महिला के पद प्रतिष्ठा और हैसियत का होगा | स्त्री समाज में किसी पुरुष से ऊँचा दर्जा पहचान हैसियत रखती हैं तो अपने फायदे के लिए उससे नीचे की हैसियत रखने वाला तो दूसरा पति बनना स्वीकार कर लेगा किन्तु बराबरी वाला या उससे ऊपर वाला तो कभी भी नहीं |



तो कहने का मतलब ये हैं कि महिला समानता के नाम पर जो कानून वहां बनाया गया हैं वो महिलाओं को मुर्ख बनाने से ज्यादा कुछ नहीं हैं | महिलाओं की समस्या और समानता दो अलग चीजे हैं | बहु विवाह स्त्रियों के लिए एक समस्या हैं उन्हें इस समस्या से निजात चाहिए इस मामले में पुरुषो से बराबरी नहीं |


वैसे अपने देश में लोग कहते हैं कि बहु विवाह की समस्या बहुत छोटी हैं शायद प्रतिशत भी ना निकले फिर इसके लिए इस मुद्दे पर बात करने या कानून की क्या जरुरत हैं | तो मेरा कहना हैं आप समस्या को ठीक से नहीं देख रहें हैं | बहु विवाह भले बहुत कम होते हैं लेकिन ये धमकी के रूप में लाखों उन स्त्रियों को जो पूरी तरह से पति पर निर्भर हैं के नाक में नकेल डाल उन्हें अपने काबू में रखने में ज्यादा काम आता हैं |


धर्म न देखिये इसमें धर्म चाहे कोई भी हो , दूसरा निकाह , तलाक , तुम्हे छोड़ कर दूसरी शादी की धमकी पति और ससुराल के अंगूठे के नीचे रखती हैं स्त्रियों को पुरे वैवाहिक जीवन में |



May 23, 2022

पंचायत की पंचयती

सोचा था पतिदेव  को फुर्सत ना मिल रही सप्ताह के बीच   में तो इतवार को आराम से दोनों जन प्रेम से एक सिटिंग में पंचायत निकाल देंगे | लेकिन जमाना तो शुरू से प्रेम का दुश्मन हैं अब पीछे काहे रहता | 

भाई रिलीज के पहले दिन से लोग खुद को पंचायत का जबरा फैन दिखाने के लिए ऐसा शुरू हुए सोशल मिडिया पर कि पूछिए मत  | कोई धड़ाधड़ डायलॉग पर डायलॉग लिखे जा रहा हैं तो कोई कहानी बताया जा रहा हैं | 

कोई दृश्य सविस्तार बता रहा तो कोई मीम बना बाकी लोगो के देखने का मजा ख़राब कर रहा | एक बारगी लगा किसी का बस चलता तो लाइफ ही लगा देता यहाँ |  देखो भाई देखो हमको पंचायत देखते देखो | 

भाई हम तो  पंचायत देख कर किला फतह कर लिए अब तुम्हारे लिए कुछ ना बचा वहां हम बचने ही ना देंगे कुल रायता यहाँ फैलायेंगे | वो क्या कहते हैं आजकल उसे स्पोइल कर देंगे  |  

सबको बताना हैं कि उनसे अच्छा पंचायत कोई  नहीं समझा , सबको करीबियत दिखाना हैं |  भाई हम बलिया जिले  के बगल के जिल्हे के हैं हम तुमको बताते हैं पंचायत के बारे में | तो दूजा , अरे छोड़िये आप क्या बतायेंगे हम खुद बलिया के हैं आप हमसे ज्यादा जानेगें क्या | 

आप लोग रहने दीजिये हमारे चाचा के साढू बिटिया ब्याही हैं फुलेरा गांव में आप लोग हमसे क्या मुकाबला करेंगे | हमारे तो सग्गे भाई के सारे हैं फुलेरा गांव में सचिब हमारा रोज का उठाना बैठना हैं फुलेरा गांव में  | हमसे बढियाँ पंचयती पंचायत पर आप लोग क्या करेंगे , अरे पीछे हठिये | 

मतलब देखने के बाद सब कुछ यहाँ उलटी ना किया तो लोग मानेंगे ही नहीं की पंचायत देख लिया | भाई वाह  क्या सीरीज हैं फिर से मजा  आ गया , बस इतना लिखना भी कोई लिखना हैं |  सीरीज के  प्रचार की कुल जिम्मेदारी तो हम पर हैं | लोग समीक्षा के  हमारी तरफ मुंह किये तांक रहें हैं कि आप बोलिये की शानदार हैं का का हैं सब उसमे , कौन सा एपिसोड ज्यादा महत्वपूर्ण हैं कौन  सा कम , शुरू कैसे  हुआ अंत कैसे  बताओ तब्बे देखेंगे नहीं तो  ना देखेंगे | 


गांव वालों कोई सीरीज आती हैं तो देखने के बाद कम से कम हफ्ता भर रुको उस पर पंचायत करने से पहले | शानदार , पहले वाले से भी   बढ़िया या टक्कर का  , मजा आ गया देख कर आदि इत्यादि काफी है उसके प्रचार के लिए और ये बताने के लिए की आप जबरा फैन हैं |  दुसरो को भी देखने दो , उनका मजा  काहे ख़राब करना | 


मजबूरी में हमें अकेले ही कल ख़त्म करना पड़ा लगा ये लोग सब बता देंगे तो देख ही डालो | फिर भी दो चार चीज तो पता चल ही गयी थी  | 


#पंचायत2 

May 22, 2022

गोडसे दिवस

हम  छोटे से बड़े हो गए और सिर्फ इतना समझा पढ़ा और जाना था कि गाँधी को किसी गोडसे नाम के सिरफिरे हत्यारे ने गोली मार दी थी | उससे ज्यादा ना कभी बताया पढ़ाया गया और ना किसी की भी इच्छा हुयी जानने की कि  हत्यारा गोडसे क्या था क्या सोचता था | 


कहते हैं हमारी संस्कृति में अपराधी का नाम लिखने की मनाही थी | तर्क ये था कि जब अपराधी के बारे में उसके जीवन , सोच विचार आदि के बारे में ज्यादा लिखा बोला जाता हैं तो उसके जैसे विचार वालो उभर  कर सामने आते हैं | उसके समर्थक उसके अपराध को दूसरे तरीको से पेश करते है और जनता के बीच सहनभूति पाने के लिए उसके अपराध  को न्याय की तरह पेश करने का प्रयास करते हैं |   दुनियां में हर ख़राब से ख़राब विचार के भी समर्थक मिल जायेंगे | 


सालो तक इसलिए गोडसे एक मामूली अपराधी बन कर ही देश  में रहा  | लेकिन सत्ता , शक्ति और गद्दी से तथाकथित  सांप्रदायिक ताकतों को दूर रखने के नाम पर गोडसे का नाम बार बार आरएसएस से जोड़ गया ताकि  उससे जुडी बीजेपी को  गाँधी की हत्या के लिए कटघरे में खड़ा किया जा सके | अपने राजनैतिक स्वार्थो को पूरा करने के लिए खूब गाँधी और उनके हत्यारे गोडसे के नाम का प्रयोग हुआ | 


इस चक्कर में बार बार इतनी बार उसका नाम लिया गया उसके हिंदूवादी  विचारों पर इतना बोला बतियाया गया  |  उसके सोच , विचारो आदि पर इतनी बहस हुयी   कि गोडसे मामूली सिरफिरे हत्यारे से एक पढ़ा लिखा समझदार , सिद्धांतवादी  और विचार रखने वाला विद्वान बनने लगा  |  वो मामूली हत्यारे से एक वैचारिक विरोधी , अपराधी बन गया | 


अब आप भले  उसके विचार और सोच को ख़राब , सांप्रदायिक अगैरा वगैरा  कहते रहें | लेकिन उसके  जैसी सोच वालो को उभरने का उसके बारे में बात करने का और अपने  जैसे लोगों के बीच उसे हीरो बना के प्रस्तुत करने का मौका देने का पुनीत काम तो आज विपक्ष में बैठे लोगों और गाँधी के विचारो से दूर दूर तक रिश्ता ना रखने वाले  सिर्फ गाँधी का नाम रटने वालों ने ही किया | 


आप छः सात सालों से  देखिये सोशल मिडिया पर चाहे  गाँधी का जन्मदिवस हो या  उनकी पुण्यतिथि खुद को गाँधी के समर्थक कहने वाले भी गाँधी के बारे में कम गोडसे के बारे में ज्यादा लिखते बोलते हैं ताकि उसके नाम पर सत्ताधारी पार्टी  को गरिया सके   |  ये दो दिन ऐसा लगता हैं जैसे गाँधी नहीं गोडसे दिवस हो (गोडसे समर्थको की इसमें गिनती  मत कीजिये )  |  क्या वास्तव में ये दो दिन सिर्फ और सिर्फ गाँधी को याद नहीं किया जा सकता क्या अपने राजनैतिक स्वार्थ  को किनारे नहीं किया जा सकता हैं  | 


इन दो दिन को छोड़ दीजिए आप सिर्फ ये देखिये कि इन कुछ सालों में गोडसे के नाम और विरोध पर कितना कुछ उसके बारे में लिखा गया और अपनी किताबे बेच अपना नाम बनाया गया |  आप ये भी देखेंगे ऐसा करने वाले ज़्यदातर को गाँधी के विचार , सोच छू के भी नहीं निकलते  हैं |   


अगर कभी गाँधी को पढ़ा समझा हैं तो एक बार सोच कर देखिये कि अपराध से घृणा करो अपराधी से नहीं  कहने वाले गाँधी क्या कभी अपने प्रति किये हुए अपराध पर अपराधी के बारे में इतनी बाते करते  जितना आज उनके समर्थक कहे जाने वाले करते हैं   |  क्या वो भी गोडसे से इतनी ही नफरत घृणा करते | उसे भूल जाते ताकि सारी दुनियां उसे भूल जाए उसका नामोनिशां ना बचे |  


चाहे  आरएसएस हो बीजेपी हो या कोई भी हिंदूवादी पार्टी गोडसे से अपने रिश्ते ना होने की बात करती हैं या गाँधी को नमन करती हैं तो वास्तव में इसे गाँधी के विचारो और गाँधी की  जीत उनकी सफलता के रूप में पेश करने की जरुरत हैं | कि देखिये एक हत्यारा जिस विचारधारा के नाम पर गाँधी की हत्या कर देता हैं आज उसी विचारधारा ,  संगठन के लोग उसे अपना मानने से इंकार करते हैं गाँधी को समर्थन देते  हैं उन्हे सम्मान देने योग्य समझते  हैं | ये हैं गाँधी की ताकत ,  प्रभाव,  असर  लोगो पर देश पर  |  


अफसोस हैं लेकिन  गाँधी को मारने वाले गोडसे को गाँधी के तथाकथित गाँधी समर्थको  ने ही पुनर्जीवित करने का काम   किया हैं |

May 21, 2022

बिटियानामा

बिटिया हिंदी की एक कहानी पढ़ते जब चौरासी लाख योनि पढ़ी तो उसका मतलब पूछने लगी | हमने तमाम जीव  जंतु कीड़े मकोड़े की प्रजाति का नाम लेते ,  बात का मतलब बताते एक छोटा सा  लेक्चर भी  साथ दिया कि मनुष्य के रूप मे जन्म लेना कितना महान हैं | 


तो कहती हैं मच्छर होने में क्या  बुराई हैं  | मस्त छोटी  सी जिंदगी लोगों का खून पीते बिता दो इससे आरामदायक और बिना टेंसन का जीवन क्या होगा | हमने कहा एक झटके में किसी ने ताली बजा का मार भी देना हैं |  


तो कहती हैं अरे मैं तो लोगों को गालो पर सीधा बैठूंगी और उन्हें जानबूझ कर काटूंगी जैसे ही वो मारने चलेंगे मैं उड़ जाउंगी | सब अपने गालों पर खुद ही थप्पड़ मारेंगे तो  कितना मजा आयेगा | मैं  तो रोज शाम को अपने दोस्तों  के साथ ऐसे मजे के लिए मनुष्यों के पास जाउंगी | 

May 20, 2022

डिग्रीधारी अनपढ़

बीए में मेरी    एक क्लासमेट थी हमारी अच्छी बातचीत थी | दूसरे साल  परीक्षाएं शुरू होने वाली थी और वो हमें फोन की कि मेरे पास अमेरिका  के प्रधानमंत्री  और नेपाल के राष्ट्रपति का कोई नोट्स ही नहीं हैं तुम्हारे पास हैं तो  कल कॉलेज ले आना हम झेरॉक्स ( फोटो कॉपी ) कराके दे देंगे तुमको | हमने माथा ठोका और कहा तुम्हारे पास नोट्स इसलिए नहीं हैं क्योकि ये दोनों होते ही नहीं हैं |  बाकायदा उन्होंने तीन साल का बीए पूरा किया और ग्रेजुएट कहलायी | उस समय मेरे क्लास में आधी लड़कियां इसी श्रेणी की स्नातक अर्थात ग्रेजुएट हुयी | 


अपने बड़के दादा के बारे  में पहले ही लिख चुकी हूँ कि उन्हें परीक्षा में मैंने अपने नोट्स नक़ल मारने के लिए दिए थे | मेरे नोट्स में प्रजातंत्र लिखा था पेपर में लोकतंत्र लिखा आ गया और उन्हें पता ही नहीं था दोनों एक ही चीज हैं | नक़ल मारने के लिए सामने नोट्स था फिर भी वो सवाल छोड़ कर आ गए | उनको टोटल में हमसे ज्यादा प्रतिशत आये परीक्षा में इस पर हमारा मजाक भी उड़ाया गया घर में  | 


वो अलग बात हैं कि स्नातक वो हो नहीं पाए बदकिस्मती से  क्योकि अगले साल बीएचयू ने परीक्षाएं अपने यहाँ कराना शुरू कर दिया और नकल का कोई चांस ही नहीं मिला | पहिला पेपर देने के बाद दूसरा पेपर देने भी नहीं गए | लेकिन उनके सारे दोस्त इस श्रेणी के स्नातक मतलबकी ग्रेजुएट हो गए थे उनके पहले | असल में वो बारहवीं पास करने  में तीन साल लगा दिए और मेरे बराबर आ गए  दोस्त पहले ही निकल गए थे | 


ये लोग नौकरी करने नहीं गए अपने काम धंधे में लगे अगर नौकरी खोजने जाते तो किस नौकरी के काबिल होते ये लोग  जिनको अपने पढ़ाई तक समझ नहीं आ रही थी और ग्रेजुएट बन बैठे थे | 


यूपी बिहार के ऐसे ऐसे महान ग्रेजुएट और उससे भी ज्यादा डिग्री धारियों  की पढाई और समझ का स्तर हमें बढियाँ से पता हैं | यहाँ मुंबई में पतिदेव का तो रोज ही  पाला पड़ता ऐसो यूपी बिहार वाले ग्रेजुएटों से | ट्रेनिंग के दौरान पता चलता कि उन्हें मामूली सा प्रतिशत निकालना  और सामान्य कैलकुलेटर चलाने तक का सहूर नहीं होता | 

सामान्य से सामान्य बात उन्हें समझ में नहीं आती | एक साधारण का ऑफिस का फार्म के बीस सवालो को   भरने के लिए पतिदेव को बीस फोन आएंगे  | ये तब हैं जब कंपनी बाकायदा एक ट्रेनिंग क्लास हर महीने रखती हैं | फिर उस ट्रेनिंग क्लास के बाद वही सब पतिदेव को फिर से चार बार समझाना पड़ता हैं | 


घर पर काम करते देख जब ये सब माथाफोड़ी मैं रोज देखती और सोचती हूँ  कि मुंबई दिल्ली या किसी बड़े शहर के किसी हाईस्कूल वाले बच्चे की समझ इनसे  ज्यादा होती होगी | 


जब अपना काम कर रही थी तो यूपी से आये ऐसे लडको से भी पाला पड़ा जो शैक्षिक योग्यता पूछने पर इंटर या हाईस्कूल का एडमिट कार्ड दिखाते लेकिन उनको हिंदी पढ़ना तक नहीं आता था और कुछ किसी प्रौढ़ साक्षर की तरह बस किसी तरह अपना नाम लिख सकते थे | 


बिहार टॉपर का पौढीकल साइंस वाला इंटरव्यू तो आप सब लोग देख ही चुके हैं | 1992 यूपी में जब कल्याण सिंह ने नक़ल अध्यादेश ला कर  नक़ल पर रोक लगा दी तो उस साल दसवीं का रिजल्ट 14.70  प्रतिशत और इंटरमीडियट का 30.30 था |  जबकि नक़ल के  सहारे पास होने का सपना देखने वाले लाखो ने परीक्षा बीच में ही छोड़ दी | 


पांच साल सरकार टिक गयी होती तो इंटर ग्रेजुएट किये लोगों की बेरोजगारी का प्रतिशत जमीन छू रहा होता क्योकि केवल पढ़े लिखे ही इंटर ग्रेजुएट हो पाते | बाकी अनपढ़  बेरोजगार की श्रेणी में आते | 


कुछ स्कूल या किसी हॉबी  क्लास या सिर्फ सूचना देने का ग्रुप ऐसे ही बनाते हैं | वरना बाकी लोग उस पर भी फारवर्ड मैसेज , बेकार के सवाल फालतू के चुटकुले भेजना शुरू कर देतें हैं | फिर जरुरी सूचना इस भीड़  में खो  जाती है  | 

May 19, 2022

राज-नीति

बनारस में हमारे मोहल्ले के सभासद गिरीश अंकल हमारे पडोसी ही थे | बीजेपी के थे और हमारी याद से वही सालो साल से जीत रहें थे | एक बार सीट महिला आरक्षित हो गयी तो उनकी पत्नी खड़ी हो गयी वो भी जीत गयी  | ऊपरी तौर पर पूरा  मोहल्ला उन्हें ही वोट करता था | चुनावों के समय बाकि मोहल्ले में भले प्रचार करते लेकिन अपने मोहल्ले में शायद ही कभी चुनाव प्रचार करते थे  | बस वोटिंग के दिन आते सबके घर इतना  कहने की वोट देने चले जाना | कभी ये नहीं कहा हमें वोट करना | 


लेकिन एक साल मेरे घर के सामने छोटी सी  स्टेशनरी की दूकान  और सामने की गली में अपने ही घर में  आठवीं तक का एक छोटा सा स्कूल   चलाने वाले पासवान भाई बंधुओ ने अपने हफ्तों चले बीएसपी के प्रचार से उनका विश्वास हिला दिया | 


वो समय बैनर झंडी झंडा और लाउडस्पीकर वाला था | दिनभर दूकान से रिकॉर्ड किया प्रचार इतनी जोर का बजता कि सबके कान पक गए | पहले दो तीन दिन सभी ने दबी जुबान मजाक उड़ाया कि इससे कुछ बदलने वाला नहीं तीन दिन में पैसा ख़त्म प्रचार बंद | लेकिन प्रचार बंद नहीं हुआ और बीजेपी समर्थक लोगों टेंशन में आने लगे | 


हफ्ते भर बाद ही गिरीश अंकल भी प्रचार के लिए निकल पड़े | उस साल उन्होंने भी प्रचार  के लिए  भागा  दौड़ी की और जब रिजल्ट आया तो सब आश्चर्य में पड़ गये |  क्योंकि उन्हें उस साल रिकॉर्ड वोट मिले लेकिन जिस बीएसपी के प्रचार से वो डरे उसे  कोई खास वोट नहीं मिले थे | 


होता ये हैं कि कई बार विरोधियों का अति सक्रिय होना प्रचार करना समर्थको को अपने आप जागृत कर देता हैं | किसी और के आने के डर से सुस्त पडा समर्थक घर से निकल निकल भारी वोट करता हैं | 


 यूपी में आखिरी के तीन चरणों के चुनाव बाकी थे तभी पूरा देश और दुनिया रूस और यूक्रेन के युद्ध में फंस गया  हर तरफ से सिर्फ युद्ध की बातें हो रही थी यूपी चुनाव सब लोग लगभग भूल गए थे |  एक बारगी बीजेपी समर्थक भी लगभग निष्क्रिय हो गए थे | 

उसके बाद यह सारी खबरें एक के बाद  एक मीडिया में बीजेपी द्वारा प्लॉट की गई | जो बीजेपी पहले से ही अपने समर्थकों को सपा के फिर से सत्ता में आने का डर दिखा रही थी | यह सारी खबरें उसके समर्थकों को सक्रिय करने के लिए काफी थी | 


मजेदार बात यह थी कि यह खबरें बीजेपी के  समर्थकों में प्रचार के लिए प्लॉट की गई थी और इसको फैलाने वायरल करने का काम सपा समर्थकों ने किया  | सपा समर्थक यह समझ ही नहीं पाए कि 3 चरणों के चुनाव होने के पहले ही  कोई नौकरशाह  क्या कोई चुनाव का जानकार भी यह नहीं बता सकता की  चुनाव कौन जीतेगा | 


फिर किसी नौकरशाह की यह हिम्मत कैसे हो सकती है की मौजूदा सरकार के रहते और केंद्र में बीजेपी सरकार के होते वह चुनाव रिजल्ट के पहले ही विरोधी पक्ष के साथ खड़ा हो जाए | आखरी चरण के चुनाव होने तक जब तक सपा समर्थकों को यह बात समझ आती  प्लॉट की गई खबरें अपना काम कर चुकी थी  | बीजेपी अपने विरोधियों को अपना प्रचार सामग्री आसानी से बना लेती हैं  | 

May 18, 2022

छुटपन की शरारतें

एकदम बचपन का जीवन संयुक्त परिवार में बिता हैं | दादी बाबा बड़े  पापा मम्मी और उनके चार बचे , चाचा चाची उनकी एक बेटी , एक छोटे चाचा और दो बुआ  , मम्मी पापा और हम चार भाई बहन ,हम सब साथ रहते | जैसा कि हर संयुक्त परिवार  में होता हैं जीतने लोग उतने तरीके का सबका व्यवहार | 


बड़का दादा जहाँ शांत था वही छोटका दादा एक नंबर का शैतान , खुराफाती और खिसियानी बिल्ली | दोनों दादा  स्कूल जाते और छोटके दादा की खुराफात वहां भी शुरू रहती ,बल्कि स्कूल में कुछ और शैतानियां सीखना शुरू हो गया | जब दोनों थोड़े बड़े हुए तो कुछ स्कूली खुराफात हमारे घर तक आने लगे | उस समय मैं बहुत छोटी थी शायद पहली में रही होंगी | 


घर  आये कुछ खुराफात मजेदार होते तो कुछ  बस पूछिये मत | उस समय बच्चो के बीच एक मजेदार खेल चला जैसे एक से बीस तक गिनती गिनो साथ में कुट लगा के  |  एककुट दोकुट तीनकुट अंत में वो बीसकुट बन जाता था | ऐसे ही एक और था एक से बीस तक की गिनती बोलो तुइया लगा के | एकतुइया , दोतुइया और अंत में बीसतुइया बन जाता | 


उस समय बच्चो के  लिए कोई मोबाईल ,वीडियोगेम  या टीवी पर कार्टून चैनल तो होते नहीं  थे | बच्चो के मनोरंजन और खेलने कूदने के नाम पर बस भाई बहनो के साथ खेलना और ऐसे ही मामूली शब्द पहेलियों  , बाते ही हमारे लिए मजेदार होती थी | हम बच्चे अंत में बीसकुट और बीसतुइया बोल कर ही  बहुत खुश हो जाते थे | 


ऐसे ही एक दिन छोटके दादा स्कूल से आये और बोले आज नया सीख कर आये हैं तुम बोलो इसको मजा आयेगा |  हम ख़ुशी ख़ुशी तैयार हो गए और बोलने लगे अभी के अभी बताओ | बोले शरीर के अंगो का नाम लो साथ में सड़ी लगाओ | हम मासूम से बिना सोचे समझे शुरू हो गए पैरसड़ी , पेटसड़ी , हाथसड़ी , कन्धासड़ी ,  पीठसड़ी | 


दादा बीच में टोकते बोले अरे तुम बहुत देर करोगी ऐसा करो सिर्फ चेहरे वाले अंग लो | हम फिर शुरू हो गए कान , नाकसड़ी ,  गालसड़ी ,  आँखसड़ी , भौ ---- स्यापा ये क्या बोल दिया छी छी ,  थू थू ,  राम राम  |  यहाँ  हम वो शब्द बोल कर हैरान परेशान कि हमारे मुंह से ये क्या निकल गया वहां दोनों दादा लोग हँस हँस लोटपोट हुए जा रहें थे | साथ में मुझे चिढ़ाते जा रहें थे तुमने गाली दी  | 



हमारे बनारसी संस्कारी घर में मेरे बाप चाचा को भी गालियां देने की मनाही थी |  घर के बच्चे तो छोडो पडोसी का बच्चा भी गाली दे दे तो पापा चाचा लोग उन्हें भी डांट देते थे  | ऐसे घर की मुझ मासूम पर क्या बीत रही होगी समझ ही सकते हैं |  तभी छोटे चाचा  आ गए हमने झट दोनों दादा लोगों  शिकायत उनसे लगाते पूरा किस्सा सुनाया |   


पहली बार में तो उनकी भी हँसी निकल गयी |   छोटके दादा को उन्होंने डांट लगायी लेकिन हँसते हँसते |  और मैं छुटकी सी रुआंसी सा मुंह बनाये सोचती रही भला इसमें मजाक  और हँसी वाली बात क्या हैं   | 

May 17, 2022

राज-नीति के षड़यन्त्रकारी पासे

 

शकुनि मामा चौपड़ के खेल में बहुत बड़े महारथी नहीं थे जो भी कमाल था वो उनके दोनों  पासों में होता था | इसलिए अपनी राजनैतिक मंसा के खेल में दुसरो को उकसा कर खेलने के लिए मजबूर करने के बाद उनका दूसरा काम होता था किसी तरह खेल में अपने पासे को फिट करना | 


प्रतिद्वंदी जानते थे कि बिन अपने पासे के शकुनि मामा कुछ नहीं है इसलिए वो दूसरे पासे से खेलने की बात करते लेकिन मामा खेल शुरू होने से बहुत पहले ही इस बात की व्यवस्था कर लेते कि कैसे खेल में अपने पासे को खींच कर लाना हैं | मजेदार बात ये हैं कि जो प्रतिद्वंदी उन पासों को दूर रखना चाहते थे  वो महज मामा के खेल में उनके मोहरों की तरह व्यवहार कर वही करते थे  जो शकुनि मामा चाहते थे  | 


धर्म और राष्ट्रवाद बीजेपी के दो जादुई पासे हैं जिनके बिना उसका कोई अस्तित्व इस चुनावी राजनीति में  नहीं हैं | जब बाकी लोग चुनावों का सोच भी नहीं रहें होते हैं वो यहाँ वहां दर्जनों संभावनाएं बना कर रखती हैं कि  कैसे चुनावों के बीच  में घर्म और राष्ट्रवाद को खींच लाना हैं | 


लोग अंदाजा भी नहीं लगा सकते कि  चुनावों भले ही कही पर हो लेकिन  जीत के लिए पासे कश्मीर से कन्याकुमारी और कर्नाटक तक भी फिट किये जा सकते हैं |  अंधा क्या चाहे दो आँखे , चुनावों में अपने मतलब के मुद्दे उछालने के लिए एक घाघ राजनेता क्या चाहे एक अति प्रतिक्रियावादी प्रतिद्वंदी या मोहरे की तरह हरकत करने वाली जनता जो उसके उछाले मुद्दे को झट लपक ले और शुरू हो जाए | बाकी काम तो बिना  वेतन उसके लिए काम करने वाले समर्थक कर ही देंगे | 


 ताली एक हाथ से नहीं बजती और ना कोई राजनीतिक दल केवल अपने समर्थकों के बलबुते किसी मुद्दे को केंद्र में ला सकता है | उसे चाहिए एक विरोध करने वाला  , ऐसा विरोध करने वाला जो हर बात में बिना सोचे समझे उसका विरोध करे  | 

चुनावों में जब धर्म का मुद्दा   जातिवादी , दलितवादी , विकास के मुद्दे में कहीं दब जाए तो  अचानक से उसे बदल दिया जाता हैं  |  वोटिंग होने होने से पहले  बहस का मुद्दा बदल जाता  हैं  |   



इसके पहले अमर जवान ज्योति और बोस को लेकर राष्ट्रवाद का मुद्दा भी केंद्र में खींचा गया था | प्रतिक्रियावादियों ने कभी नहीं सोचा कि वार मेमोरियल बने कई साल हो गए तभी अमर जवान ज्योति  को वहां शिफ्ट क्यों नहीं किया गया |  अब ये सब क्यों किया जा रहा हैं | बोस की मूर्ति लगाने का निर्णय इतना पहले ही क्यों नहीं  लिया गया कि उनके जन्मदिवस  तक लगाने के लिए मूर्ति तैयार रहें होलोग्राम ना लगाना पड़े | 


कहीं पढ़ा सूना कि एक राजा को लंबे समय तक स्थापित रहने के लिए एक दुश्मन की जरुरत होती हैं | आज की राजनीति में भी बिना अंध विरोधियों के बीजेपी सत्ता पर कब्ज़ा ही नहीं कर सकती | अंध विरोधी अंध समर्थको को सक्रीय करने का काम करते रहते हैं पूरे पांच साल | 

May 16, 2022

दान और कन्यादान

एक कथा सुनी हैं जब परशुराम में एक झटके में  समस्त धरा  दान कर दी तो एक समस्या खड़ी हो गयी कि अब वो रहेंगे कहाँ | क्योकि जो चीज दान कर दी जाती हैं उसका दुबारा उपयोग दान करने वाला व्यक्ति नहीं कर सकता  | उसे वो चीज सदा के लिए त्याग करनी पड़ती हैं उससे अपने संबंध ख़त्म करने पड़ते हैं | कहा जाता हैं कि तब परशुराम ने फरसे से समुन्द्र में मारा और वहां एक नयी  धरती बाहर आ गयी परशुराम वही निवास करने लगे | उस धरती को आज  हम केरल के नाम से जानते हैं | 


इसी प्रकार दान को लेकर एक और कथा की जब राजा हरिश्चंद्र ने  भी विश्वामित्र को  अपनी समस्त संपदा दान कर दी तो उसके बाद दक्षिणा देने या दान देने के बाद संकल्प छुड़ाने के पैसे भी उनके पास नहीं थे  | दान दिए हुए संपदा से वो एक कौड़ी भी नहीं ले सकते थे क्योकि उससे उनका अधिकार ख़त्म हो गया था | तो और पैसे के लिए उन्हें अपनी पत्नी बच्चे के साथ खुद को भी बेचना पड़ा |  


दान सिर्फ संपत्ति धन का नहीं होता व्यक्तिय का भी दान किया जाता हैं | कई जगह ये भी कहा गया हैं कि चाणक्य को चन्द्रगुप्त का  दान  चन्द्रगुप्त की माँ ने ही किया  था | पिता थे नहीं और उनकी माँ पुत्र को पालने में असमर्थ थी | दान किये गए चन्द्रगुप्त कभी मुड़ कर माँ के पास नहीं आये | अपने पुराने परिवार से उनका पूर्णतया संबंध विच्छेद हो गया | 


दान पाने के बाद व्यक्ति उस वस्तु , धन संपदा , मनुष्य का कैसे उपयोग दुर्पयोग करे या उसको बर्बाद कर दे ये उसकी मर्जी होती | दान देने वाले का इसमें कोई हस्तक्षेप नहीं होता हैं | क्योकि दान देने के बाद उस वस्तु व्यक्ति से आपका कोई मतलब नहीं रहा जाता हैं | 


पुराने जमाने में जब लोग कन्यादान करते थे तो लगभग यही स्थिति लड़कियों की होती थी | ससुराल वाले उसके साथ कैसा भी व्यवहार करे उसे कैसी भी स्थिति में रखे लड़की के माँ बाप का कोई हस्तक्षेप नहीं होता था | अपनी ही बेटी से उनका अधिकार ख़त्म हो जाता हैं  और बेटी का अपने माता पिता और घर पर | 


कथा तो सुनी होगी कि  जब सति बिन बुलाये अपने पिता के यज्ञ में चली जाती हैं तो वहां पिता द्वारा ही उनका अपमान होता हैं | दान की गयी बेटी अपने ही घर में मेहमान हो जाती हैं जो बिना निमत्रण आ नहीं सकती | 


जो संबंध रहते हैं तो इस कारण से बचे होते हैं कि साथ फेरे में एक वचन पति पत्नी को ये भी देता हैं कि वो वक्त जरुरत पर पत्नी को उसके सम्बन्धियों से मिलाने ले जाएगा | अर्थात ये पति और ससुराल पर निर्भर था कि वो  लड़की को मायके भेजे या ना भेजे लड़की की इच्छा का कोई मोल नहीं होता हैं  | तभी डोली में जा रही जहाँ वहां से  अर्थी में ही  लौटना वाली सीख बेटियों को दी जाती थी | मतलब अब मुड़ कर इस  घर में आने की ना सोचना भले वहां मौत हो जाए | 


ज़माने पहले हमारे घर में एक ब्राह्मण डॉक्टर किरायेदार रहते थे |  उनकी बहन ससुराल गयी तो पंद्रह साल  मायके लौटी ही नहीं | ससुराल वाले विवाह के इन्तजाम से खुश ना थे और इस पर कुछ कहा सुनी हो गयी | बस इतने पर उन्होने लड़की के बिदा होने के बाद कभी मायके नहीं भेजा और ना किसी से मिलने दिया | मायके वाले कभी कुछ नहीं कर पाए | पंद्रह साल बाद जब एक एक कर सारे बुजुर्ग ऊपर चले गए तब कही उनका आना जाना हुआ | 


तो वो लोग जो कन्यादान रस्म के बहुत पक्ष में खड़े हैं और अपने शास्त्रों धर्म की दुहाई दे रहें हैं क्या वो बताएँगे कि उनका इतना जिगरा हैं कि कन्यादान करने के बाद अपने सारे अधिकार अपनी बेटी से ख़त्म कर लेंगे | उसके साथ हुए किसी भी  ख़राब व्यवहार से , उसके दुःख तकलीफ से मुंह फेर लेंगे | उसे पूर्णतया पति और ससुराल के भरोसे छोड़ देंगे | क्योकि शास्त्रों के अनुसार दान , कन्यादान का यही अर्थ होता हैं | 


वास्तव में रस्म पूरा करने के नाम पर सभी  सिर्फ रस्म आदायगी करते है ना शास्त्रों में लिखे का पूर्णतयः पालन करते हैं ना उस पर विश्वास | लेकिन जिन रस्मो चीजों का पूरी तरह से लोग खुद पालन नहीं करते अगर कोई उस पर सवाल उठा दे उनका विरोध कर दे तो तुरंत लोगों का अपना शास्त्र और धर्म याद आने लगता हैं | 


हर विवाह में जिस धार्मिक रस्म को अदा करने का नाटक  किया जाता हैं उसका विरोध करते लोगों भावनाएं आहात हो जाती हैं | खुद रस्म का दिखावा करने वालेसवालउठाये जाने पर उसे धर्म शास्त्रों का अपमान कहने लगते हैं | 


हमारा धर्म और हमारे शास्त्र को हमारे आधुनिक सोच , बदल रहे माहौल  के आगे बहुत पीछे हम सबने खुद छोड़ दिया हैं | उनमे लिखी तमाम बातों की धज्जी सब  रोज के जीवन में उड़ाते हैं |  ना जान कितनी रूढ़ियों की बेड़ियाँ हमने कब की तोड़  दी हैं | लेकिन धर्म के नाम पर आज के माहौल में जो मूर्खता फैली हैं उसके साथ सब बिना सोचे समझे हुँआ हुँआ करने लगते हैं |  अगली बार हुँआ हुँआ करने से पहले सोचियेगा | 


May 15, 2022

विदेशी , भारतीय कैलेंडर

हमारे जीवन में जितना अंग्रेजी कैलेंडर का  उपयोग होता हैं उससे कहीं ज्यादा उपयोग हिन्दू कैलेंडर  का होता  हैं | हमारे जीवन में खुशियां  आन्नद और मजे लाने का काम हमारा विभिन्न तरीके का भारतीय हिन्दू कैलेंडर करता हैं | 


ज्यादातर लोग ध्यान नहीं देते लेकिन हमारे सारे तीज त्यौहार , हमारे यहाँ शादी विवाह आदि ज्यादातर शुभ काम सब भारतीय हिन्दू कैलेंडर से होता हैं और मुसलमानो का हिजरी | यहाँ अंग्रेजी कैलेंडर कोई नहीं देखता | 

ज्यादातर  सरकारी छुट्टियां भारतीय कैलेंडर के अनुसार होते हैं क्योकि त्यौहारों के कारण मिलने वाली ये छुट्टियां  अंग्रेजी कैलेंडर के हिसाब से नहीं होती | 


उपभोक्ता उत्पाद बनाने वाली कम्पनियाँ अपनी योजनाएं भी भारतीय कैलेण्डर को ध्यान में रख कर बनाती हैं | आपको बताऊ अकेले दिवाली पर जितने  फ्रिज टीवी एसी आदि इलेक्ट्रॉनिक सामन बिक जाते हैं उतना साल भर नहीं बिकता | वैसे ही सोना गहनों की बिक्री के लिए   अक्षय तृतिया,  धनतेरस  के साथ भारतीय शादियों के सीजन का ध्यान रख प्लानिंग बनानी पड़ती हैं , हिन्दू कैलेंडर के हिसाब से होता हैं |  


ज्यादातर भारतीयों की छुटियाँ मनाने समय भी  अपने अपने हिन्दू कैलेंडर और त्यौहार के हिसाब से फिक्स हैं | जैसे दुर्गापूजा पर बंगाली घूमने निकलते हैं , दिवाली पर गुजराती और गणपति पर मराठी | वहां पर स्कूलों की छुट्टियां भी उसी हिसाब से होती हैं जैसे महाराष्ट्र बोर्ड के स्कूलों में गणपति की लम्बी छुट्टी होती हैं  जबकि यही पर केंद्रीय बोर्ड में दिवाली की , बंगाल में दुर्गापूजा की बाकि जगहों पर भी उनके हिसाब से | 


ज्यादातर स्कूल भी अपनी योजनाएं भारतीय कैलेंडर सामने रख कर बनाते हैं | उसमे इस बात का ध्यान रखा जाता हैं कि बड़ा टेस्ट या  परीक्षा बड़े त्यौहार के छुट्टियों के पहले हो जाए या त्यौहार के अगले दिन कोई टेस्ट या परीक्षा ना रखा जाये | कितना कोर्स किस त्यौहार की छुट्टियों के  पहले पूरा कर लेना हैं | कुछ कान्वेंट स्कूलों से ये  शिकायते जरूर आती हैं इसको लेकर कि वो जानबूझ कर हिन्दू त्यौहारों के बाद परीक्षाए लेते हैं | मतलब आम लोगों को भी ये पसंद नहीं आता | 


हम में से बहुत लोग ध्यान नहीं देते कि जो अंग्रेजी कैलेण्डर हम खरीद कर लाते हैं उसमे भारतीय कैलेंडर भी साथ में छपा होता हैं | भारतीय तीज त्यौहार के साथ ही लोग उसमे प्रदोष , एकादशी ,पूर्णिमा अमावस्या भी हर महीने देखते हैं | उसका उपयोग वास्तव में भारतीय हिन्दू कैलेंडर के रूप में ज्यादा होता हैं | रोज की  तारीखे तो हम मोबाईल पर देख लेते हैं उसके लिए कैलेण्डर देखने नहीं जाते वैसे त्यौहार कब हैं ये भी मोबाईल पर देख लेते हैं | 


पता नहीं लोगों को याद हैं की  नहीं कि हमारा राष्ट्रिय कैलेंडर भारतीय हिन्दू कैलेण्डर शक संवत वाला हैं और इसे राष्ट्रिय कैलेंडर ना तो मोदी ने बनाया हैं और ना ये 2014 में बना हैं | बाकी की इसकी जानकारी के लिए लोग गूगल कर ले जिन्हेंनहीं पता हैं | 


लेकिन आजकल लोग हर बात का विरोध करते इतने अंधे हो जाते हैं कि पूछिये मत | कुछ समय पहले एक जने जो  मोदी विरोधी थे तो उनके लिए पूरा गुजरात ही दुश्मन था ,  शिकायत करने लगे ये गुजराती पगला गए हैं दिवाली पर ही  दिवाली के साथ नये साल की बधाई दे रहें हैं | एक तो उन्हें पता नहीं था की गुजरातियों का  दिवाली से नया साल शुरू होता हैं | जब किसी ने बता दिया उसके बाद भी गरियाते कहने लगे तो हमें क्यों दे रहें हैं | 


जब सोशल मिडिया नहीं था तब  भी ये त्यौहार थे और सबका  अपना अपना नया साल | तब सब आपस में एक दूसरे को बधाई ले दे लेते थे बाहर वालों को पता नहीं चलता  था | लेकिन सोशल मिडिया आने के बाद सारी  संस्कृति , क्षेत्र , समुदाय के लोग एक ही जगह एक दूसरे से मिलने लगे और एक दूसरे के त्यौहारों रीती रिवाजो से परिचित होने लगे | हर किसी को अपने त्यौहारों की बधाई देने लगे और लोग उन्हें उनके त्यौहारों की शुभकानाएं देने लगे | हमें तो याद नहीं कभी बचपन में किसी को हैप्पी दिवाली या होली कहा हो लेकिन सोशल मीडिया ये करना सभी को सीखा दिया | 


इसे एक अच्छे कदम के रूप में देखना चाहिए था कि  सांस्कृतिक रूप से एक दूसरे के करीब आ रहें हैं | लेकिन 2014 के बाद हिंदुत्व  की लहर आयी तो  उसका विरोध करने वाले  भी आये और वो हिंदूवादियों का विरोध करते करते इतने अंधे हो गये कि वो बिना सोचे समझे हर हिन्दू शब्द जुड़े चीज का विरोध करने लगे | अब लोग हिन्दू नए वर्ष मनाने का भी विरोध करने लगे हैं | 


मजेदार बात ये हैं कि हिन्दू नए सालका विरोध करने वाले हिन्दू , ईद और क्रिसमस पर हिन्दुओ को भी उसकी शुभकामनाएं देना नहीं भूलते हैं | ईद और क्रिसमस की शुभकामनाये देने  मनाने का मेरा कोई विरोध नहीं हैं | खुद मै दोनों त्यौहार अपने घर अच्छे पकवान बना खा मनाती हूँ वर्षो से  | 


मजेदार बात ये भी हैं कि मैं नास्तिक धर्म के खिलाफ  होते हुए भी ये पोस्ट लिख रही हूँ और तो और मैं तो अपना जन्मदिन  तक भारतीय हिन्दू कैलेंडर के हिसाब से मानती हूँ | माने की  हद हैं नास्तिक बिरदारी को मुझ पर लानत भेजनी चाहिए | 

May 14, 2022

भगवान परीक्षा में फेल

 

हम सब बहुत छोटे छोटे थे जब रविवार सुबह नौ बजे टीवी  पर मिक्की और डोनाल्ड आता था | हम बच्चे उसे देखने  के लिए मरे  जाते थे |  बस समझिये जब तक वो टीवी पर आता हम बच्चो की पलकें भी नहीं झपकती थी उतनी देर | पंद्रह बीस मिनट पहले ही टीवी चालो कर देतें और उतनी देर में बीस बार घड़ी भी देख लेते कि नौ बजा या नहीं | 

आज के जमाने में दस बीस कार्टून चैनल पर चौबीसो घंटे कार्टून देखने वाले बच्चे कभी समझेंगे ही नहीं कि हफ्ते में बस एक दिन और वो भी बस आधे घंटे के लिए आने वाले किसी कार्टून फिल्म की क्या अहमियत हो सकती हैं हम बच्चो के जीवन में | 

लेकिन उस दिन हम सब पर बिजली गिर जाती जिस दिन रविवार नौ बजे के पहले बिजली चली जाती | नौ बजने से पहले तक उम्मीद रहती थी कि शायद समय रहते लाइट आ जायेगी लेकिन जैसे जैसे घड़ी नौ बजने की और बढ़ता तो दिल बैठने लगता | 

नौ बजे भी जब लाइट नहीं आती तो मोहल्ले में सबके घर लाइट नहीं हैं जांचने के बाद सीधा रुख भगवान जी की तरह होता , हे भगवान आधे घंटे के लिए लाइट आ जाए उसके बाद फिर भले चली जाये | भोले से  दिल दिमाग में ये विश्वास बना रहता भगवान के घर देर हैं अंधेर नहीं पांच दस मिनट लेट ही सही भगवान जी से कहा हैं तो लाइट आ ही जायेगी | लेकिन लाइट उसके बाद भी नहीं आती | 


फिर अंदर का धूर्त दिमाग मजे लेने के लिए दिल को कहता   कि अब हाथ जोड़ के भगवान से प्रार्थना   करो , भगवान जी बच्चो की जरूर सुनते हैं | चतुर दिमाग के चक्कर में आ कर    हमारा मासूम सा दिल वो भी कर लेता कि भगवान जी अब तो हाथ जोड़ कर प्रार्थना  कर रहें हैं आखिरी के पंद्रह मिनट बचे हैं  लाइट आ जाये तो भी  हम पुकार सुनी हुयी मान लेंगे | 


लाइट तब भी ना आती तो उसके बाद तो बात भगवान जी के ही इज्जत  पर आ जाती थी कि भाई वाह कैसे भगवान जी हो एक लाइट लाने जैसा मामूली काम भी नहीं कर सकते | अब तो बस दस पांच मिनट ही बाकि हैं अगर अब भी बिजली रानी नहीं आयी तो समझेंगे भगवान जी भक्त की परीक्षा में फेल हुए | 


लेकिन  बिजली रानी उस दिन क्या उसके बाद भी बहुत बार ना आयी और भगवान  जी हर बार अपने भक्त की परीक्षा  में  फेल हुए और अपनी इज्जत खो बैठे मेरी नजर में | आज सोचती हूँ तो लगता  ईश्वर में मेरी आस्था ना होने के पीछे खुद भगवान जी का ही बड़ा हाथ हैं , हर बार मेरी परीक्षा में फेल हुए | 


हमने तो आस्था ख़त्म होने के बाद भी कई बार भगवान की परीक्षा ली कि हे भगवान मैच बहुत बुरी तरह फंसा हुआ हैं अब तुम्ही जीता सकते हो लेकिन भगवान जी उस परीक्षा में भी हर बार फेल ही हुए | उम्मीद थी शायद अब पास हो जाए और हमारी आस्था लौटे लेकिन भगवान ने कभी मेहनत नहीं कि और हर बार फेल हो कर मुझ जैसा भक्त खो दिया | इतने के बाद तो हमने उनसे उम्मीद करना याद करना ही छोड़ दिया | 

May 13, 2022

विवाह स्त्री जीवन की धुरी नहीं हैं

स्त्रियों से जुड़े तीन अलग अलग मामलों में कोर्ट का फैसला आया हैं और फैसले हमें स्त्रियों की समाजिक स्थिति सोच पर ज्यादा काम करने को कहती हैं | 

पहले मामले में एक पिता अपनी चौदह साल की बेटी  से लगातार  रेप कर उसे गर्भवती  कर देता हैं और जब अस्पताल से मामला पुलिस तक पहुंचता हैं तो माँ बेटी दोनों पिता का नाम लेने से इंकार कर देती हैं | पुलिस का दबाव बढ़ने पर किसी और का नाम ले लेती हैं | 

पुलिस उनके आस पास के लोगों से पूछताछ और भ्रूण का टेस्ट कर पिता के  खिलाफ मुक़दमा  दर्ज करती हैं अब कोर्ट ने पिता को बीस साल की सजा दी हैं लेकिन माँ बेटी ने   पिता के   खिलाफ गवाही नहीं दी | 

दूसरा मामला ज्यादा महत्वपूर्ण हैं क्योकि इस फैसले से कोर्ट ने पति के खिलाफ रेप का मामला दर्ज करने के लिए कहा हैं | पत्नी दस सालो से ज्यादा समय तक क्रूर तरीके का यौन दुर्व्यवहार  सहती हैं जिसमे बार अप्राकृतिक  यौन सम्बन्धो के साथ बेटी के सामने यौन सम्बन्ध बनाने जैसे आरोप हैं | 


पत्नी ने क़ानूनी मदद तब ली जब नौ साल की बेटी के सामने यौन सम्बन्ध बनाने के बाद बेटी का भी यौन शोषण किया गया | पहले पॉक्सो एक्ट में मामला दर्ज किया गया था फिर कोर्ट ने फैसला दिया कि पत्नी से रेप के भी चार्जेस लगाये जाए क्योकि रेप तो रेप होता हैं चाहे वो कोई भी पुरुष करे | 

तीसरे मामले में कोर्ट ने अपने जीवनसाथी के चरित्र पर शक करने या चरित्र को लेकर निराधार आरोप बार बार  लगाने को क्रूरता माना हैं और इसके आधार पर तलाक को स्वीकार किया हैं | ये फैसला पत्नी के खिलाफ और पति के पक्ष में दिया हैं | 

1 - पहले मामले में पत्नी गरीब और पति पर निर्भर है | उन्हें ऐसे अपराधों से संरक्षण और सजा के लिए पहले से कानून मौजूद हैं लेकिन उनकी सामाजिक स्थिति और खुद उनकी सोच के आगे कानून का संरक्षण बेकार हैं | स्त्री सशक्तिकरण और अपराधों से उनके बचाव के लिए बना हर कानून तब तक इन जैसी स्त्रियों के लिए बेकार हैं  जब तक नीचे के स्तर तक स्त्रियों की सोच को नहीं बदला जाता | 


2 - दूसरे मामले में महिला काम तो नहीं करती लेकिन एक करोड़ से ज्यादा की संपत्ति उनके नाम है | जिसके  सहारे वो अपनी बेटी के साथ अलग जीवन बिता सकती थी इस विवाह से बाहर निकल कर | लेकिन एक दशक तक वो अत्याचार सहती हैं  जब तक पानी सर के ऊपर नहीं चला जाता और बेटी का भी   शोषण शुरू होता हैं  |  वो कानून का सहारा पहले भी लेकर अपना और अपनी बेटी को बुरे अनुभवों से बचा सकती थी  | 

3 - तीसरे मामले में महिला ना केवल पढ़ी लिखी है बल्कि एक कॉलेज में पढ़ाती भी हैं मतलब हर तरीके से आत्मनिर्भर  हैं  | लेकिन जिस पति  के चरित्र पर  शक है वो उसी के साथ रहने की ज़िद पर अड़ी है तब भी जब पति उन्हें तलाक देना चाहता हैं | आखिर वो कौन सी सोच हैं जो उन्हें उसी पति के साथ रहने के लिए मजबूर कर रहा हैं जिसको वो पसंद नहीं करती | 


जब तक स्त्रियां विवाह को अपने जीवन की धुरी , आधार मानना बंद नहीं करेंगी | जब तक वो  विवाह की सफलता असफलता को अपने जीवन की सफलता असफलता से जोड़ना बंद नहीं करेगी उनका कोई भला होने वाला नहीं हैं | उनके बचाव के लिए बने सैकड़ों कानूनों का कोई मतलब नहीं होगा जब तक वो अपने रूढ़िवादी सोच से बाहर नहीं निकलेंगी |


May 12, 2022

पापा की परी

बिटिया जब ढाई तीन साल की हुयी तो बर्थडे पार्टी का मतलब समझने लगी थी | अपना बर्थडे और सहेलियों के बर्थडे में जा कर उनके दिमाग में पार्टी का एक दृश्य फिक्स हो  गया |  


फिर आया इनके पापा का बर्थडे , आदत के अनुसार पतिदेव  सुबह  से मुझसे  कहने लगे कहाँ दे रही  हो  मेरे बर्थडे की पार्टी  | बिटिया बड़ी खुश की आज पापा का बर्थडे भी हैं और शाम को पार्टी भी हैं | 


शाम को हम सब बाहर खाना खाने जाने के लिए तैयार होने लगे तो ये  एक्साइटेड हो गयी कि बाहर पार्टी हैं तो बहुत ही बढियाँ होगी | हम लोग अपने वही पेट जगह पर खाने पहुँच गए  तो बिटिया थोड़े आश्चर्य में बाहर ही बोल पड़ी यहाँ पार्टी कैसे होगी ये तो रेस्टोरेंट हैं | 


अंदर जा कर कह रही हैं बाकी मेहमान कहा हैं , पार्टी कहाँ हैं | हमलोगों के ये कहने पर की यही पार्टी हैं तो वो  नाराज हो गयी की  तुम लोग तो सुबह से कह रहें थे पार्टी हैं ये तो हम लोग बस बाहर खाना खाने आये हैं | ये कोई पार्टी नहीं हैं , तीन लोगों की कहीं पार्टी होती हैं |  


उसके बाद अगले कई साल तक  वो पापा के बर्थडे पर  सरप्राइज पार्टी देती रही  | गुब्बारे से सजाने से लेकर पंखे पर फूल रखना , कार्ड बनाना , गिफ्ट लाना अलाना ढेकाना सब कुछ | साथ में ताने भी कि तुम लोगों को पार्टी करना नहीं आता , पार्टी ऐसे करते हैं | 


कई सालों तक मम्मी को सरप्राइज पार्टी नहीं दे पायी  तो अफसोस करती थी क्योकि मम्मी तो हर समय घर में ही उनके साथ रहती थी | 


वैसे वो आज भी कहती रहती  हैं कि तुम दोनों की लाइफ कितनी बोरिंग हैं मैंने उसे अच्छा बनाया हैं | मैं ना   होती तो तुम लोगो का क्या होता | ये तो वैसे सही ही बात हैं 


#पापाकीपरी 

May 11, 2022

कन्यापूजन कन्यादान

एक बार वैष्णव देवी गयी थी , वहां बहुत से लोग दर्शन करने के बाद  कन्या पूजन मतलब छोटी लड़कियों को खाना खिलाते  हैं | एक जने ऐसे ही वहां दर्शन करने आयी छोटी लड़कियों को खोज खोज पूड़ी हलवा दे रहें थे | 


मेरी कम हाइट और फ्रॉक पहने होने के कारण उन्होंने मुझे भी थमा दिया |  मुझे पता था कि पीरियड शुरू हुयी लड़कियों को कन्या पूजन में नहीं  बिठाया जाता  |  मैं उतनी बड़ी हो चुकी थी सो मैं उन्हें मना करने लगी कि मुझे   नहीं लेना हैं  लेकिन वो मानने को ही तैयार नहीं | 


हमें लगा हम ये सब माने ना माने वो तो मानते ही होंगे | बेकार उनका धर्म भ्रष्ट होगा और पाप अलग से लगेगा उन्हें  | सो हमने उनके जाने के बाद पूड़ी हलवा वही किनारे रख दिया | भिखारी तो वहां होते नहीं |   


बहुत बड़ी संख्या में लोग नवरात्रि में अपने अपने घरो में कन्या पूजन करते हैं | हमारे यहाँ  इसको कुआरी खिलाना कहते हैं | पीरियड शुरू होने से पहले लड़कियां कन्या कहलाती हैं | तभी उन्हें पवित्र और पैर पूजने लायक माना जाता हैं | पीरियड शुरू होने के बाद उन्हें स्त्री समझा जाने लगता हैं और फिर वो कन्या  नहीं कहलाती | 


उसी तरह हमारे धर्म और  शास्त्र में जो कन्यादान  हैं वो छोटी अर्थात पीरियड शुरू ना हुयी लड़कियों के दान की बात करता हैं |  इसलिए ही कन्यादान के समय दामाद और  बेटी दोनों के पैर पूजे जाते हैं | पहले अत्यंत छोटी लड़कियों के  विवाह का कारण यही शास्त्रों के अनुसार असली पुण्य कमाने का लालच ही होता था |  

ये बात आप अच्छे से समझ ले कि ये जो आजकल बीस तीस या चालीस साल की लड़कियों के विवाह में लोग कन्यादान कर रहें हैं ना , असल में वो शास्त्रों को अनुसार फर्जी हैं | जब लड़की कन्या रही ही नहीं तो कन्यादान कैसा | स्त्री दान , बिटिया दान की कोई व्यवस्था हमारे शास्त्रों में तो नहीं हैं | 


भले पंडित जी विवाह के समय बोले की कन्या को बुलाइये पर स्त्री बन चुकी लड़की कन्या नहीं होती | जब लड़की कन्या नहीं होती तो उसका कन्यादान भी अपने दिल की तसल्ली और बस नाम के लिए रस्मो को निभा देने भर से आपको उसका पुण्य भी नहीं मिलने वाला | मतलब आपका किया कन्यादान शास्त्रों और धर्म के लिए आपके लेडीज संगीत के बराबर का हैसियत रखता हैं , मतलब की कुछ भी नहीं  | 


जिस जिस को लगता हैं कि उसके लिए उसका धर्म और शास्त्रों में लिखा उसकी पहचान हैं उसका पालन करना उसके लिए जरुरी हैं तो दिखाए अपने दस साल की बिटिया का कन्यादान करने का जिगरा | बाकि लोग समझ ले कि वो धर्म और शास्त्र को बहुत पहले ही  पीछे छोड़ आये हैं उसके बाद भी आराम का जीवन जी रहें हैं और दे रहें हैं अपने बेटियों को खुशहाल जीवन  |  

May 10, 2022

केंद्रीय विश्वविद्यालयों संयुक्त प्रवेश परीक्षा

 यूजीसी इस  साल से  केंद्रीय विश्वविद्यालयों में ग्रेजुएशन के लिए संयुक्त प्रवेश  परीक्षा शुरू करने वाला हैं | मेरी नजर में ये एक बहुत अच्छा कदम हैं | इससे बारहवीं में 99%नंबरों की बेतुकी  होड़ ख़त्म होगी जो बहुत सारे बच्चो पर अनावश्यक दबाव डाल  तनावों से भर देता था | 

इसके साथ ही देशभर  के विद्यार्थियों के साथ हो रहा भेदभाव ख़त्म होगा जो  अलग अलग शिक्षा बोर्ड  के कारण होता था | आप किसी यूपी बिहार राजस्थान आदि राज्य शिक्षा बोर्ड में पढ़ने वाले से उम्मीद ही नहीं कर सकते की वो  बच्चे  नब्बे प्रतिशत से ऊपर नंबर लायेंगे |  मैरिट लिस्ट में आने वाले बच्चे भी शायद ही नब्बे प्रतिशत से ऊपर नंबर लाते हो | 


आप सोचिये केंद्रीय बोर्ड में पढ़ने वाले उन बच्चो से जिनके पच्चीस तीस प्रतिशत बच्चे नब्बे प्रतिशत से ऊपर 99.96 प्रतिशत तक नंबर लाते हैं , उनका  मुकाबला राज्य शिक्षा बोर्ड वाले आम बच्चे कर क्या कर  पाएंगे | ये सारे बच्चे अपने पसंद के  विषय और विश्वविद्यालय   में कभी प्रवेश नहीं ले  पाते थे | राज्य और केंद्रीय शिक्षा बोर्ड के परीक्षा और नंबर देने का  पैटर्न  बहुत अलग था और यही भेदभाव का कारण था  | 


अब सभी विद्यार्थियों का कम से कम एक पैटर्न में परीक्षा देने और अपने पसंद का विषय तथा विश्वविद्याय चुनने का बरबरी का मौका मिलेगा | 


वैसे बता दूँ बीएचयू हमेशा से अपने सभी कोर्स में प्रवेश के लिए  खुद प्रवेश परीक्षा लेते आया हैं | पहले उससे जुड़े दो ग्रेजुएशन कॉलेज मैरिट से और एक खुद का प्रवेश परीक्षा लेते थे   | जिसमे बहुत तरह की गड़बड़ियां की जाती इसी को देखते बीएचयू ने खुद से जुड़े सभी कॉलेज में प्रवेश भी अपने इंट्रेंस एग्जाम से देने लगा | 


देश के बाकि के कॉलेज  से भी समय समय पर एडमिशन में गड़बड़ी की शिकायत आती रहती हैं कि  मैरिट के नाम पर 99 प्रतिशत से कम वालों को प्रवेश शुरू में नहीं दिया जाता लेकिन बाद में कोटा डोनेशन या जैसे भी उससे कम मैरिट वालों को प्रवेश दिया गया | 


वैसे इसमें बारहवीं को बिलकुल नजर अंदाजा नहीं किया गया हैं  जैसे ( हमारे समय में )  बीएचयू में बारहवीं में पैंतालीस प्रतिशत से कम नंबर वाले प्रवेश परीक्षा नहीं दे सकते थे | इसी तरह यूजीसी अभी भी विश्ववियालयों को ये छूट देगी कि वो बारहवीं के लिए कोई  प्रतिशत अपनी तरफ से तय कर ले | 


बस देखना हैं कि इसमें भी केंद्रीय विश्वविद्यालय इतना ज्यादा कटऑफ ना तय कर दे बारहवीं के लिए कि फिर राज्यों के शिक्षा बोर्ड के बच्चे प्रवेश से वंचित रह जाए | 

ऑनलाइन शॉपिंग और पैसे ट्रांसफर के लफड़े

लोगों को एसबीआई पर चुटकुले बनना छोड़ देना चाहिए क्योकि अब प्राइवेट बैंक में भी अगर आपके पैसे अटक जाये तो वपस लेने के लिए वैसे ही चक्कर लगाने पड़ते हैं जैसे की किसी  सरकारी बैंक में | जनवरी में अटका  पैसा अप्रैल में आखिर तब  मिला जब हम दस चक्कर लगाने के बाद भी छोड़ने को तैयार ना थे और रिजर्व बैंक में भी शिकायत तक दर्ज करा दी |  


ट्रांजेक्शन फेल होने के बाद भी पैसा ट्रांसफर कर दिया गया बैंक द्वारा अमेजन को | हम  में से ज्यादातर लोग ध्यान नहीं देते लेकिन जब हम अमेजन जैसे किसी कंपनी को पेय करते हैं तो पैसा सीधा अमेजन के पास नहीं बल्कि एक तीसरी पार्टी पेय इंडिया जैसो के पास जाता हैं और वो अमेजन को ट्रांसफर करती हैं | 


बैंक से पैसा ट्रांसफर हो गया  लेकिन वो अमेज़न को मिला नहीं | बैंक जिद पर अड़ा रहा कि उसने पैसे दे दिये उसकी जिम्मेदारी ख़त्म जिसके पास पैसा गया हैं उससे बात करूँ | अमेजन को पैसा मिला नहीं इसलिए वो भी मानने को तैयार नहीं कि उसे पैसा मिला तो वो रिटर्न करने को तैयार नहीं | 


मेरा और पेय इंडिया का कोई सीधा रिश्ता बिजनेस ही नहीं हैं तो में कैसे और किस बिना पर उससे बात करू ये मेरी समस्या थी | 


चुकीं बैंक ने ट्रांजेक्शन फेल बता कर पैसा ट्रांसफर किया था तो उसकी जिम्मेदारी थी कि वो पैसे तीसरी पार्टी से लेकर मुझे वापस करे | अमेज़न की भी भी जिम्मेदारी थी कि जब वो ग्राहको से सीधा पैसा अपने अकाउंट में नहीं लेती तीसरी पार्टी के माध्यम से लेती हैं तो उसे तीसरी पार्टी से भी चेक करना चाहिए था कि पैसा उसके पास तो नहीं गया | 


लेकिन दोनों अपना अपना पिंड छूटा कर  ग्राहक को मुर्ख बना उसे सब कुछ करने के लिए कह रहें थे | जबकि पहली जिम्मेदारी उन दोनों की थी | पेय इंडिया का हालत ये थे कि वो बैंक के भेजे दो तीन मेल का जवाब नहीं दे रहा था | अब सोचिए मैं उनसे संपर्क करती तो क्या मेरे किसी भी मेल और फोन का वो कोई जवाब देते | 


बैंक और अमेजन का कस्टमर सर्विस तो कस्टमर को साफ कहा दिया हमारी समस्या नहीं हैं आपकी समस्या हैं शिकायत हमारी तरफ से क्लोज हो गया , जा कर मरिये कहीं  |  बैंक में लिखित शिकायत दी गयी फिर दूसरे कम्प्लेन  नंबर के लिए एक और चक्कर लगाना पड़ा तब नया नंबर जनरेट हुआ | 


जूनियर वाले तो बैंक में भी हमें कॉल सेंटर वालों का फोन थमाने की कोशिश करते रहें | हमने  मना  कर दिया ब्रांच में हमारा खाता हैं और ये आपका काम हैं | उन्होंने तो एकबार ये भी कहा दिया ये ब्रांच का काम ही नहीं हैं आपको कॉल सेंटर पर बात करनी चाहिए | 


हमने कहा खाता ब्रांच में  खुलवाया था | आप सारे ब्रांच बंद कर दीजिये डिजिटल ही सब काम कीजिये हम भी पैसे मिलने के बाद अपना खाता बंद किये देते हैं | दो चार चक्कर में मैनेजर डिप्टी से लेकर ब्रांच मैनेजर तक पहुँच गए | फिर मैनेजर ने डिप्टी से कहा अमेजन , पेय इंडिया का कांफ्रेंस कॉल कर सबको एक साथ ला कर बात करो | 


उसके बाद भी ये डिजिटल कम्पनियाँ मानने को तैयार नहीं | अंत में हमने आरबीआई में शिकायत कर ही दी | लेकिन शिकायत के तीन दिन बाद ही बैंक से फोन आया कि पैसा आ गया हैं कल मिल जायेगा | आरबीआई में शिकायत सिर्फ शिकायत दर्ज होने के स्तर पर थी उसके आगे नही बढ़ी थी | तो मान कर चलते हैं कि बैंक ने अपने स्तर पर काम  किया लेकिन पैसे  मेरी ज़िद पर  मिले | 


मैंने अपनी शिकायत को लगातार फॉलो ना किया होता तो वो सब हर बार शांत बैठ जा रहें थे और आगे कुछ नहीं कर रहें थे | आरबीआई में शिकायत करने में देरी  इसलिए हुई  क्योकि वो लिखित शिकायत मांग रहें थे और औपचारिक रूप से लिखित शिकायत तो हमने ब्रांच में की थी | डिजिटल वाले में तो फोन पर हुयी बातों को मेल पर बस आगे बढ़ा रहें थे | 


इसलिए याद रखिये फोन पर कितनी भी बातें हो बैंक को पहले दिन ही एक औपचारिक लिखित शिकायत कर दीजिये | उसके बाद उनके रिप्लाई को भी लिखित में लीजिये | हमारे केस में भी बैंक हमारे मेल का जवाब बड़ी मुश्किल से मेल पर लिखित में दे रहा था | रिप्लाई ना करे तो एक रिमांडर भी डाले | 


आरबीआई बैंक को लिखित शिकायत के एक महीने बाद अपने यहाँ शिकायत लेता हैं और ये तीन चीजे मांगता हैं | अगली बार आपकी रकम अटके तो कम से कम एक लिखित शिकायत कर दे भले पैसे लेने में आपकी रूचि हो या ना हो | क्योकि किसी गरीब या आम आदमी के लिए वो रकम बड़ी हो सकती हैं | 


लोग पैसा भूल जाते हैं छोटी रकम कह करके तो बैंक भी बाकियो के साथ भी वही करने का सोचती हैं कि ग्राहक पैसा भूल जाए या परेशांन हो कर आना बंद करदे | बैंको में या आरबीआई में शिकायतों का भंडार लगेगा तब ये बैंक एक बार में काम करना सीखेंगे या शिकायतों को गंभीरता से लेंगे | बैंक के चक्कर लगाने की जरुरत नहीं हैं बस घर बैठे शिकायत दर्ज करा दीजिये डिजिटली | इससे दूसरों का भला होगा |