December 07, 2022

लैंगिक भेदभाव


 हाल ही मे न्यूजीलैंड की पीएम जैसिंडा अर्डर्न और फिनलैंड की पीएम सना मरीन से एक संयुक्त प्रेस कांप्रेंस मे एक पत्रकार पूछ बैठा कि लोग कह रहे है कि आप दोनो इसलिए मिली क्योकि आप दोनो हमउम्र है और दोनो एक जैसा सोचती है । इस तरह के सवाल पर दोनो महिला पीएम हैरान हो गयी ।

अर्डर्न ने उलटा पत्रकार से सवाल किया कि क्या ओबामा और  जाॅन , न्यूजीलैंड के पूर्व प्रधानमंत्री , जब मिले थे तब भी ये सवाल हुआ  था कि वो हमउम्र है इसलिए मिल रहे है । हम इसलिए मिले है क्योंकि  हम दो देशो के प्रधानमंत्री है । 

ये नया नही है जब महिलाओ के साथ चाहे वो किसी भी पद पर हो उनके साथ लैंगिक भेदभाव किया जाता है उनकी बातो को गम्भीरता से नही लिया जाता और उनके स्त्री होने को उनके पद और कार्य से अलग नही किया जाता और ये सब लगभग दुनियां के हर कोने मे हो रहा है । 

सालो पहले जब पाकिस्तान की विदेश मंत्री हिना रब्बानी भारत आयी थी तो यहां कि मिडिया उनके पर्स, कपड़ो , सुंदरता पर बात ज्यादा कर रहा था बजाये विदेश नीति के । जबकि शायद ही  कभी ऐसा हुआ हो कि किसी दूसरे देश से पुरुष मंत्री के सूट शर्ट जूतो पर उनके ब्रांड पर चर्चा हुयी हो । काम दोनो एक ही कर रहें है । 


सिर्फ राजनीति ही नही लगभग हर क्षेत्र की यही हालत है । याद होगा पत्रकार राजदीप सरदेसाई सानिया मिर्जा से पूछ बैठे थे कि आप सेटेल कब होंगी । सानिया ने पलट कर जवाब दिया ग्रैंड स्लैम जीत लिया , डबल मे रैकिंग नंबर वन हो गयी , दस साल से ज्यादा से खेल रही हूँ,  शादी हो गयी अब और कितना सेटेल होना है । वास्तव मे पत्रकार महोदय पुछना चाह रहें थे कि वो बच्चे कब पैदा करेंगी । 

आप ही सोचिए कोई  महिला शादी के बाद बिना बच्च पैदा किये कैसे सेटेल कहला सकती है । जबकि  आपने कभी नही सुना होगा कि किसी पुरुष खिलाड़ी से ये पूछा गया हो कि आप बच्चे कब पैदा करेगे या सेटेल कब होंगे । 

महिलाओ के साथ लैंगिक भेदभाव मे उनकी बातो को गम्भीरता से ना लेना , उनकी शादी-ब्याह, बच्चे की हर समय चर्चा के बाद नंबर आता है उनका चरित्र हरण करना । 

किसी महिला पत्रकार की पत्रकारिता पसंद नही आयी तो कार्टूनिस्ट ने उनकी वर्जीनिटी पर सवाल वाला कार्टून बना दिया । पुरुष पत्रकार को रीढविहिन कहा जाता है उसके वर्जीनिटी,  चरित्र पर सवाल नही किये जाते । रीढविहिन कहना उसके कार्य पर प्रहार है लेकिन स्त्री की बात आते ही हमला कार्य पर नही उसके चरित्र उसके स्त्री होने पर किया जाता है । 

आम जीवन मे हर आम आदमी ये भेदभाव रोज करता है । हम सड़क पर रोज सैकड़ो लोगो को खराब ड्राइविंग करते दुर्घटना होते देखते है लेकिन दो चार महिने मे एक बार भी किसी महिला को खराब ड्राइविंग करते किसी पुरुष ने देखा । फटाफट उसका विडियों फोटो लेकर वायरल  किया जाता है या पोस्ट लिख कर उपहास उड़ाया जाता है । रोज सैकड़ो पुरूषो को खराब ड्राइविंग करते देखने की बात भूल जाते सब । 

सड़क दुर्घटनाओ के आकड़े निकाल कर देख लिजिए दुर्घटना करने वाले  सब पुरुष ही होगें महिलाए नाम मात्र की होगीं । लेकिन कहा ये जायेगा कि महिलाएं खराब ड्राइविंग करती है । मजेदार बात ये है कि ये कहने वाले पुरूष उस मौलाना पर हँसेगें जिसने महिला पायलट होने के कारण विमान मे सफर करने से इंकार कर दिया था । जबकि दोनो ही जगह एक ही स्तर की बात हो रही है । 

बचपन से सिखाया पढ़ाया गया है कि महिलाए अक्षम है कमतर है ।  घरो मे लोगों के जुबान पर रहता है हर छोटी बात पर , अरे तुम औरतों से हो क्या सकता है , तुम लेडिज को कुछ आता भी है । वही बाहर भी आ जाता है किसी महिला को कुछ करते देखते । वो उसके काम पर कमेंट करने की जगह उसके महिला होने पर   कमेंट  करने लगते है । 

और ये सब सिर्फ कम पढे लिखे लोग , छोटे शहरो के लोग , पुरुषवादी सोच रखने वाले ही नही सब करते है । पढे लिखे समझदार भी , फेमिनिस्ट सोच रखने वाले भी । कभी कोई जानबूझकर कर करता है तो कभी आदत है , तो कभी अनजाने मे कर देते है । कुछ टोकने पर इस लैंगिक भेदभाव को समझ जाते है और कुछ समझाने पर भी नही समझते । आप किस वर्ग मे है खुद सोच लिजिए।  

वैसे  एक खास प्रकार  का लैंगिक भेदभाव पुरूषो के साथ भी होता है इस पर भी कभी बात करेंगे । 

November 29, 2022

दृश्यम 2- फिल्म समीक्षा



जिन लोगो को गांधी और उनकी जयंती से समस्या है उनके लिए सलाह है कि दृश्यम थ्री फोर के प्रड्यूसर बन जाये ।  कुछ सालो बाद दो और तीन अक्टूबर का जिक्र आते लोगो को ये फिल्म पहले याद आयेगी ना की गाँधी जयंती । 

इस फिल्म की टिकट रविवार के लिए मिलना आसान नही है पता था लेकिन लोग सोशल मीडिया पर फिल्म के रहस्य खोले जा रहे थे तो मजबूरी मे टिकट खरीदना पड़ा । हमने कहा ज्यादा से ज्यादा क्या ही होगा गर्दन दुखेगी  इतने आगे की सीट पर , इस फिल्म के लिए सह लेगें थोड़ा । 

घर बैठ कर न्यूजीलैंड का मौसम का हाल देखते हुए समय बिताने से तो अच्छा ही है । एकदम कार्नर की सीट मिली लेकिन ऐसी फिल्म जो  स्क्रिन से नजर हटाने ना दे उसमे कार्नर सीट पर बैठ कर रोमांस की कौन सोचेगा । तब तो और भी नही जब फिल्म का सुबह का शो भी हाउसफुल हो । 

भाई साहब फिल्म की तो बात ही क्या करे । अब आप ये सोचिये कि एक सस्पेंस वाली फिल्म की मूल कहानी दर्शक को पहले से पता है । एक हत्यारा है और  पुलिस को उसे पकड़ना है । वो बस ये देखने आया है कि फिल्मकार ने उसे बनाया कैसा है । उसके बाद भी अंत मे फिल्म की पूरी टीम दर्शक को चकित करके वाह , गजब , तालियाँ वाला रिएक्शन निकलवा लेती है । 

  कहानी फिर से शुरू कैसे होगी ,  ऐसी फिल्म के दूसरे पार्ट मे दिखायेगें क्या का जवाब पहले ही दृश्य मे उस  मिल जाता है  । फिल्म एकदम वही से शुरू होती जंहा खत्म हुयी थी । 

सबसे मजेदार ये है कि पहले ही दृश्य मे फिल्म दर्शकों को एक सुबूत दे देती है और उन्हे जासूस बनने के लिए मजबूर कर देती है । दर्शक सोचता है कि पुलिस से ज्यादा सुबूत उसके पास है पहले वो केस हल कर लेगी  । 
आखिर सालो साल सीआईडी और एकता के डेलीसोप मे बहुओ को जासूसी करते  देखने के बाद  इतना असर तो आता ही है ।  लेकिन दर्शक जो सोचता है बाद मे पता चलता है कहानी उससे अलग है । इससे दर्शक का रोमांच और बढ़ जाता है । 

पता नही क्यो लोग फिल्म के पहले हिस्से को धीमा बोल रहे है  मुझे तो बिल्कुल नही लगा । बल्कि इंटरवल होने पर लगा कि अरे फिल्म आधी हो भी गयी । क्योकि अंत मे पता चलता है उन एक एक दृश्य का क्या मतलब था । पहला हिस्सा ध्यान से देखा हो तब अंत मे रहस्य खुलने पर आप कहते है अच्छा तो वो ये था , तो उसका मतलब ये था । 

फिल्म अच्छी बनी उसके लिए पूरी टीम प्रयास दिखता है।  कहानी अच्छी  , उस पर लिखा स्क्रीनप्ले अच्छा ,  निर्दशन अच्छा , फिर अभिनय अच्छा अंत मे एडिटिंग अच्छी। कहानी के लिए श्रेय हिन्दी मलयालम दोनो वर्जन को जाता है । दक्षिण का रीमेक बनाना हो तो ऐसा बनाना चाहिए।  

"परिवार के लिए सबकुछ करूंगा" वाली फिल्म मे "अपने तो अपने होते है" वाला मेलोड्रामा इमोशन की भरमार नही है , जबरदस्ती का रोमांस और  गाना बजाना नही है और ना ही डर जाने और बहुत स्मार्ट होने की ओवर एक्टिंग।  

अक्सर किसी फिल्म का दूसरा भाग पहले भाग से कमतर होता है लेकिन मुझे ये फिल्म पहले भाग से बीस ही लगती है । मै अपराधियों के हिरोकरण वाली फिल्मे नही देखती , वो पसंद नही । लेकिन विजय सालगांवकर अपराधी नही है भाई , ऐसे के साथ तो मै भी ऐसा ही करती , ऐसा मैने बिटिया को समझाया जब वो कहने लगी विजय गलत है । 

November 23, 2022

पापा की परी

 बिटियां सातवीं मे थी जब उनकी पाॅकेट मनी शुरू किया ।  बड़े अरमान कि चलो अब पैसा बचाना खर्चना मैनेज करना सीखेंगी । लेकिन कुल अरमानो पर उनके पापा जी ने पानी फेर दिया ।

 पापा जी जब नीचे कुछ लेने जाते या ऑफिस से आते फोन करते तो फर्माइश कर देतीं पापा मेरे लिए ये ले आना वो ले आना । हम कहते पाॅकेट मनी मिली है उससे ले आओ , तो कहतीं पापा ले आओ मै पैसे  दे दूंगी । अब आप लोग ही अंदाजा लगा लो कि पापा चॉकलेट चिप्स ला कर उनसे पैसे लेतें ।

बचा खुचा एक साल  बाद लाॅकडाउन ले बिता । ना बाहर जाना आना ना बाहर का खाना पीना । सब ऑनलाइन आ रहा था तो उनके जरुरत का सामान भी हम मंगा देते । पैसे तो उनके सारे बस दोस्तो को गिफ्ट मे खर्च होते । लाॅकडाउन के बाद भी पापा ना सुधरे ना बिटियां पैसे मैनेज करना सीखी । 

पापा की परी का कुछ अलग ही मतलब ये आजकल के पापा लोग निकालते है । जब वैन से स्कूल जाती थी तब उनका बैग नुक्कड़ तक पापा उठा कर ले जाते थे । हम चिल्लाते नौवी मे आ गयी तुम क्यो बैग उठा रहे हो उसको लेकर जाने दो । लेकिन मेरी कौन सुनता है । 

लगभग सब पापा लोगो की यही हालत है । रोज सुबह देखते है बेटा छोटा है तो बैग मम्मी पापा लेते बस स्टाॅप तक लेकिन बड़े होते बेटे अपना बैग खुद  उठाना शुरू कर देते । लेकिन बेटियां बड़ी हो गयी है पर स्कूल बैग पापा लोग ले जा रहे है । 

सातवीं तक तो पापा जी उन्हे जुते मोजे तक पहनाते थे । रोज सुबह उठने मे नाटक करती और देर होने लगती स्कूल के लिए।  वो नाश्ता कर रही होती मै बाल बना रही होती तो बोलती पापा जूते पहना दो नही तो वैन छूट जायेगी । 

हमारे लाख मना करने के बाद भी कि तुम ऐसे ही करते रहे तो ये  जिम्मेदार कैसे बनेगी सीखेगी कैसे ।  लेकिन पापा जी लोगो को इससे मतलब ही क्या है । नतीजा बिटियां उलटा पापा को बोलती पापा पहना दो नही तो तुम्हे ही स्कूल तक छोड़ने जाना होगा। अब स्कूल  पापा छोड़ने जाते है और बिल्डिंग के नीचे तक भी बैग पापा ले जाते है । हमारी कोई ना सुनता ना समझता । 

अभी दशहरे को एक पड़ोसी अपने बेटे के साथ मिलकर उसकी नयी बुलट धो चमका रहे थे । दशहरे पर अपनी गाड़ी साफ कर उस पर माला चढ़ाने का रिवाज है यहां । तभी पतिदेव ने दिखाया देखो चौथी मंजिल वाले की  बेटी ने जाॅब शुरू किया है तो उसके पापा ने स्कूटी दिलाया है लेकिन वो स्कूटी पिता जी अकेले धो रहे थे । 

हमने कहा ये क्या बात हुयी जब बेटा अपना बुलेट साफ कर रहा है तो बेटी स्कूटी साफ करने क्यो नही आयी । ये सच है कि अपनी कार साफ करने हम कभी नही गये लेकिन स्कूटी साफ करने पानी लेकर हमी जाते और ये भी देखते कि लोग मुझे ऐसा करता देख अजीब नजर से देख रहें ।

पापा की परी का मतलब बेटी को सपोर्ट करना होना चाहिए उसका बैसाखी बन अपाहिज ना बनाइये । जब स्कूटी या कोई भी गाड़ी दिला रहे है तो उससे जुड़ी जिम्मेदारी भी उसे दिजिए और उससे जुड़ी जानकारी भी । ताकि कोई छोटी मोटी समस्या आने पर उसे ठीक कर सके कोई  डिसीजन ले सके  ना कि मदद के लिए दूसरो का मुंह ताके। 

इतने सालो से अपनी कार हो या स्कूटी सर्विस सेंटर लेकर गयी पर रेयरली ही कोई लड़की महिला वहां आती थी । स्कूटी का तो कितनी ही बार रंग देख समझ आ जाता लड़की या महिला की है पर लेकर पुरुष आया है । कई बार लोग फोन करके पुछते है कि और क्या क्या समस्या बताया था । 

ऐसी ऐसी महिलाओ लड़कियो से मीली हूं जिन्हे अपनी कार मे ईधन खत्म होने का इन्डीकेटर समझ नही आया या किक करके स्कूटी स्टार्ट कैसे करना है ये पता नही होता । टायर बदलना तो बहुत दूर की बात है । 

हमारा पालन पोषण एक मातृसत्तात्मक परिवार मे हुआ है । जहां हम लोगो को राजकुमारियों की तरह नजाकत से कतई ना पाला गया । बेटियां लक्ष्मी होती उनसे पैर नही छुआते जैसे चोचले हमारे घर कभी हुए नही । पैर छुना बड़ो के अभीवादन का तरिका है तो बेटी वो क्यो नही करेगी । 

जब पितृसत्ता मे बेटे नाजुक नही मजबूत बनाये जाते है आगे के संघर्ष,  नेतृत्व के लिए  तैयार किये जाते है । तो मातृ सत्ता वाले परिवार मे भी हम बेटियां को शुरू से जिम्मेदार और मजबूत बनाया गया । हम लोग अपने अंदर बाहर के काम के लिए कभी घर के पुरूषो पर निर्भर ना रहे । यहां तक कि भारी सामान को उठाने के लिए भी हम लोग कभी भाई लोगो का मुंह ना देखते । 

किसी के चिढ़ाने , टांग खिचने , गिरने पर रोना ना शुरू करते बल्कि मुंह तोड़ जवाब देते । कोई लड़का परेशान कर रहा जैसी समस्याएं हम लोगो को कभी घर लेकर आने की जरूरत ना पड़ी । पढ़ाई क्या करना है कैरियर क्या चुनना से जुड़ी काम खुद ही किये । पापा लोगो को तो ये भी पता नही होता कि हम लोग किस क्लास मे है । 

पर आजकल के नये नये पापा लोग परी बना बना बिटिया लोगो का भविष्य ही डांवाडोल कर रहे है । यही हर जरूरी अनुभव जिम्मेदारी से दूर रहने वाली बेटिया अकेले पढ़ने जाॅब करने जायेगी तो परेशान होगीं या गलत निर्णय लेती जायेगी ।  कैरियर मे भी और जीवन मे भी । 

तो ऐसा है पापा जी लोग्स अपनी अपनी परियों को बचपन से ही कल के गलाकाट प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार किजिए।  किसी ट्रोलिंग का जवाब देने लायक मजबूत बनाइये । मुसीबतों और असफलताओं से लड़ना सिखाइये। सही निर्णय लेना जिम्मेदारी उठाना सिखाइएये । योद्धा बनाइये नाजुक सी परी ना बनाइये । 

November 18, 2022

लक्ष्यभेदी पोस्ट

 राजू पढने मे बहुत होशियार था । लेकिन वो अपने पिता के जुआ खेलने की आदत से घर मे हो रही तमाम दिक्कतों से परेशान रहता था । एक दिन मास्टर साहब ने दीवाली पर निबंध लिखने के लिए कहा । उसने लिखा दीवाली हमारा एक प्रमुख त्यौहार है । इस दिन हम घर को दीये से सजाते है । लेकिन  कुछ लोग इस दिन जुआ खेलते है । जुआ खेलना एक खराब बात है । जुआ  खेलने से घर बर्बाद होते है  । घर मे आर्थिक तंगी आ जाती है ----- । आगे पूरा जुआ पर निबंध था । 

मास्टर जी ने कहा बढ़ियां है । फिर एक दिन होली पर निबंध लिखने को कहा गया । राजू ने लिखा , होली हमारा प्रमुख त्यौहार है । उस दिन हम रंग खेलते है । लेकिन  कुछ लोग इस दिन जुआ खेलते है । जुआ खेलना एक खराब बात है । जुआ  खेलने से घर बर्बाद होते है  । घर मे आर्थिक तंगी आ जाती है ----- । 

मास्टर जी ने कहा ये क्या बला है । फिर उन्होने होशियार दिखाते कहा तु पेड़ पर निबंध लिख। राजू ने लिखा , पेड़ हमारे लिए बहुत जरूरी है । पेड़ से हमे ऑक्सीजन मिलता है । लेकिन कुछ लोग पेड़ के नीचे बैठ कर  जुआ खेलते है । जुआ खेलना एक खराब बात है । जुआ  खेलने से घर बर्बाद होते है  । घर मे आर्थिक तंगी आ जाती है ----- । 

बस ऐसे ही आज सबके पास पहले से ही दोषी , अपराधी कौन है का जवाब तैयार है अपनी अपनी सोच , वाद और विचारधारा के हिसाब से । फिर कोई भी मुद्दा , अपराध,  खबर सामने आने दिजिए । दो लाइन के बाद उनका लेकिन आयेगा और हर बार  दोषी अपराधी उसी को साबित करेगे जिसे वो साबित करना चाह रहे है , नेता , सरकार,  विपक्ष, ये धर्म वो धर्म वाले ,समाज ,पुरुष , स्त्री ,बुजुर्ग,  युवा पीढ़ी,  माता पिता आदि इत्यादि।

आप लाख दलीले , तर्क दिजिए किन्तु आप ठीक कह रहे/रही है के बाद एक लेकिन आयेगा और वही जुआ पर निबंध शुरू हो जायेगा । 

राजू गाय पर निबंध लिखो । राजू , गाय एक पालतू जानवर है गाय हमे दूध देती है । लेकिन कुछ लोग गाय का दूध बेच कर उन पैसो से  जुआ खेलते है । जुआ खेलना एक खराब बात है । जुआ  खेलने से घर बर्बाद होते है  । घर मे आर्थिक तंगी आ जाती है ----- । 

राजू पर्यावरण पर निबंध लिखो । राजू , स्वच्छ पर्यावरण बहुत जरूरी है ।  हमे पर्यावरण का संरक्षण करना चाहिए  लेकिन -------

November 17, 2022

प्रेम का ये कैसा खौफनाक अंत

 दो खतरनाक खबरे दो दिन मे सुनी जो पहले प्रेम फिर हत्या मे बदल गयी। पहली घटना पाकिस्तान की है जहां एक माँ ने अपनी नाबालिग बेटी के हत्यारे पति को पन्द्रह साल बाद पकड़वाया । पन्द्रह साल की बेटी अपने ट्यूशन टीचर के साथ भाग गयी । माँ बाप इज्जत के डर से पुलिस मे खबर नही की ।

 बेटी ने कभी संपर्क नही किया लेकिन दस साल बाद माँ ने लड़के से संपर्क किया । कई बार फोन करने के बाद भी बेटी से जब बात नही हो पायी तो माँ अकेले उस शहर चली गयी जहां ट्यूशन टीचर ने अपने होने की बात की थी । शहर के हर स्कूल के चक्कर लगाती रही और  एक दिन वो मिल गया । पहले वो उन्हे टरकाता रहा फिर  जब भाग गया तब माँ ने पुलिस मे खबर की और वो पकड़ा गया । 

तब पता चला कि उसने पन्द्रह साल पहले ही लड़की की हत्या कर दी थी गला दबाकर और फिर उसके टुकड़े कर कुर्बानी के जानवरो के कुड़े मे मिला दिया । 

वो तलाकशुदा दो बच्चो का पिता था और  घर से भागते समय उसके बच्चे भी साथ थे । उसी बच्चो को लेकर झगड़ा हुआ और लड़की की हत्या कर दी गयी । अब माँ सोच रही है कि तभी इज्जत की परवाह ना करके पुलिस मे रिपोर्ट कर देती तो शायद बेटी जिन्दा मिल जाती । 

दूसरी कल दिल्ली वाली खबर । लड़के के साथ पहले से ही मारपीट हो रही थी और लड़की माँ के पास वापस मुंबई भी लौट गयी थी । माँ बाप ने वापस ना लौटने के लिए समझाया भी लेकिन लड़के के माफी मांगने पर लड़की लौट गयी और नतीज उसकी हत्या । 

पहली खबर में दक्षिण एशिया की एक खराब सच्चाई है जिसमे इज्जत के नाम पर या तो घरवाले ही लड़की को मार देते है या उनके भागने पर उनकी कोई खोजखबर नही लेते । इन लड़कियों मे से बहुतो की इस तरह हत्या भी होती है और उन्हे वैश्यावृति के लिए बेच  भी दिया जाता है । 

नेपाल बंग्लादेश से लेकर छत्तीसगढ,  झारखंड और  बिहार बंगाल के गरीब इलाको से प्रेम जाल मे फंसा कर बड़ी संख्या मे लड़कियो को घर से भगा कर लाया जाता है और बेच दिया जाता है । ज्यादातर केस मे ना तो उनके भागने पर पुलिस रिपोर्ट होती है और ना परिवार कभी खोजने या संपर्क करने की कोशिश  करता है । 

करीब आठ दस साल पहले दिल्ली मे एक बड़े सैक्स रैकेट का खुलासा हुआ था । उसमे एक लड़कि मुंबई मे रह रहे सेना के एक बड़े अधिकारी की बेटी निकली । ब्वॉयफ्रेंड के साथ परिवार की मर्ज़ी के खिलाफ भाग कर दिल्ली आ गयी और यहां आते ही उसे पता चला कि जिस घर मे रह रही है असल मे वहां वो कैद है । लड़का उसे बेच कर भाग चुका है । नशीले पदार्थ और मारपीट से धंधे मे डाल दिया गया शर्म के मारे उसने फिर कभी परिवार से संपर्क की कोशिश ही नही की । फिर दिल्ली पुलिस ने उसके पिता के घर भेजा । 

और भगायी गयी खासकर कम आयु की लड़कियो कि हत्या और आत्महत्या पुराना अपराध है । भागने के कुछ समय बाद ही प्रेम का भूत भी उतरता है तब समझ आता कि प्रेम नही उमर का असर था बस। एक दूसरे की असली सच्चाई भी सामने आती है और आटे दाल का भाव भी पता चलता । परिवार संपर्क मे रहता है तो बात संभल जाती है । कितनी ही लड़किया वापस भी आती हैं । लेकिन परिवार से परवाह ना दिखायी और  लड़का जरा सा दुष्ट प्रवृति का हुआ तो अपराध होते देर ना होती । 

 किसी भी माँ बाप को कभी भी अपने बच्चो को ऐसे नही छोड़ना चाहिए । भले कल को रिश्ता ना रखे लेकिन उनकी सही सलामती की खबर लेते रहे पुलिस की सहायता ले या किसी और की । ताकि कल को कोई अफसोस ना हो कि बेटी की सही समय पर खोज खबर क्यो ना ली ।  

दूसरा किस्सा आज की आधुनिकता के दौड़ मे शामिल लड़कियों की आधुनिकता कि कलई खोलती है । हम अब तक सवाल करते रहे है कि पत्नी मारपीट कर रहे पति के साथ क्यो रही है । समाज  के बंधन को तोड़े और विवाह से अलग हो जाये । 

लेकिन  ये तो समझ के परे है कि आप लिव-इन रिलेशन मे मारपीट की शिकार है फिर भी आप ना केवल उसके साथ रह रही है बल्कि विवाह भी उसी के साथ करना चाहती है। क्यो आखिर क्यो ऐसा करना चाहती है । 

 यहां कौन सा सामाजिक बंधन था जिसे लड़की तोड़कर निकल नही सकती थी । जिस  दिन पहला थप्पड़ पड़ा उसी दिन समझ जाना चाहिए था कि व्यक्ति सही नही है रिश्ता रखने के लिए  । जिस दिन ये सब दुबारा तीबारा हुआ  समझ जाना चाहिए वो अपराधी प्रवृति का है ।

ये किस तरह की आधुनिकता थी जिसमे उन्हे टिंडर और मैरिज डाट काॅम का फर्क समझ ना आ रहा था । जिसमे ये समझ ना आ रहा था कि जब एक बार लड़के ने शादी के लिए ना कह दिया तो वो कभी आपसे शादी नही करना चाहता । वो सिर्फ अपनी जरूरतो के लिए आपसे जुड़ा है रिश्तो के प्रति गंभीर नही है ।

समस्या ये है कि ऊपर से आधुनिक बन गये है लेकिन अंदर से भारतीयपना गया नही है । झूल रहे है बीच मे , ना इधर के है ना उधर के है  । ऐप से  डेटिंग करना शुरू कर दिया लेकिन समझदारी से ब्रेकअप करना नही आया । ये समझ नही आया डेटिंग करना , लिव-इन शादी की गारंटी नही होती । ये समझ नही आता कि सामने वाला सिर्फ आपका फायदा उठा रहा है वो आपके साथ गंभीर नही है । 

बाकि लास्ट मे दो बाते पहली ये प्रेम मे हत्या और फायदा उठाना कुछ लड़को के साथ भी हो रहा है और  दूसरी लव जेहाद की पागलपंथी से बाहर आइये और हर खबर को जरा ध्यान से देखीये । ये सब हर जाति , धर्म, वर्ग मे हो रहा है और  आये दिन हो रहा है । अपनी राजनैतिक सोच के हिसाब से बस आप लोग किसी खास खबर पर हल्ला मचाते है बाकि पर चुप रह जाते है । माॅब लिचिंग की तरह एक सामाजिक अपराध बनता जा रहा है । 

बच्चो से बात किजिए और  इस बारे मे समझाना शुरू किजिए।  लोगो को पहचानना सीखाईये और  सबसे जरूरी व्यवहारिक बनना और दिमाग प्रयोग करना सीखाईये । ना प्रेम खत्म हुआ है और  प्रेम  विवाह मे कोई  समस्या है । 

September 19, 2022

पितृपक्ष पितर और मुंबई के कौवें


                  शायद मुंबई ऐसी जगह है जहां पितृपक्ष मनाने की जरुरत नही है क्योंकि यहां सालभर लोग अपने पितृ रूपी  कौवों को खाना खिलाते है । जैसे बाकि जगहो पर  गली मे घुमते गाय , कुत्ता , कबूतर आदि कोई एक घर पकड़ लेते है और  रोज वहां आ कर खाना खाते है ऐसे ही मुंबई मे कौवे किसी घर की खिड़की पकड़ लेते है और  रोज आ कर खाना मांगते है । घर वालो को बकायदा आवाज दे कर बुलाते है और उस घर के लोग रोज उन्हे कुछ खाने को भी देते है । 

                          हमारे पड़ोसी के रसोई की खिड़की पर भी आते है । जब कोई नही रहता और  आवाज देने पर भी नही आता तो वहां रखा कोई बर्तन चोच से पकड़ कर से नीचे गिरा देते है । एक बार कांच का ग्लास उनका ऐसे ही तोड़ दिया नीचे गिरा कर । हमारे घर भी आते थे बिटिया दो चार बार खाना दे दी तो रोज का नियम बना लिया । अगर हम ड्राइंग रूम मे ना दिखे या आवाज  देने पर ना आये तो समझ जाता बेडरूम मे है और  उसकी खिड़की पर आ कर कान खाना शुरू कर देता । 

                    लेकिन  खाने के नखरे है भाई खाली रोटी दे दो तो ऐसा रिएक्शन देते की पूछो मत । एक बार उसके आने पर  रोटी दे दिया , काश की उस दिन विडियो निकालती तो आप लोग हँसते उसे देख कर । रोटी का टुकड़ा देख बिल्कुल 🙄 वाला रिएक्शन  था उसका । फिर चोच से उठा कर पटका और  कौव कौव चिल्ला जैसे मुझे चार बाते सुना रहा हो । हमने रोटी उठा कर फिर ऊपर रख दिया और  बोला खाना है तो खाओ वरना जाओ और कुछ नही है । फिर पानी मे डुबा कर एक बार  खाता फिर मुझे देख दो कौव कौव सुनाता और  फिर खाता 😄

                              मांस मछली के बाद इनको भुजिया सेव पसंद है । मांस तो हमारे यहां मिलता नही , सेव के बारे मे बाप बिटिया को जैसे ही पता चला , किलोभर आया भुजिया सेव दोनो जने पन्द्रह दिन मे इनको खिला दिये । बस उसी दिन इनको घर निकाला मिल गया । 

                             दुष्ट तो कितने थे आपलोग ही देख लिजिए । पंक्षियों के लिए  पानी रखती और  बाद मे देखती कि वो गिरा हुआ  है । लगा ग्रील के वजह से गिर जाता होगा फिर  एक दिन खुद देखा पानी पीया महराज ने और चोच से पकड़ कर डब्बा गिरा दिया पानी का जानबूझकर।  उस दिन मै फोटो ले रही थी तो सबूत के साथ रंगे चोच पकड़े गये । फिर हमने इस फोटो का प्रयोग किया पतिदेव को सुनाने के लिए  , देख रहे हो ना तुम्हारे पितर लोग क्या क्या कर रहे है । खुद  की चिंता है उन्हे  बाकियो की नही 😂😂😂

दुष्टई यहां नही रूकी चिड़िया के दानो के लिए लटकाये फिडर को चोच से हिला हिला उसका दाना नीचे गिरा देता था । बाहर पानी रखा तो अपना खाना ला कर उसमे डूबा कर उसको गंदा कर देता ।  कौवों को खाना छुपाने की आदत है । कहीं से अतिरिक्त खाना पाता तो हमारे गमले या उसके नीचे छुपा जाता कुछ दिन तो हमने कुछ  ना कहा फिर मांस मच्छी हड्डी ला कर छुपाना शुरू किया तब हमने इनका खाना वहां से फेकना शुरू किया । कौवे वैसे भी बहुत समझदार होते है दो बार  मे ही समझ गये कि जगह सुरक्षित नही तो बंद कर दिया । 


                            लेकिन कल तो हद ही हो गयी छोटे गमले मे सफेद पत्थर रखे थे पता नही शायद जुकाम था इनको सो महक ना आयी इनको और  अंडा समझ कर चोच से उठा ले गये । एक तो नीचे गिरा दिया शायद  दूसरा हमारी ही दूसरी खिड़की के नीचे पड़ा देखा । कम से कम तीस चालीस ग्राम का एक पत्थर था और  चार पांच फिट दूर दूसरी खिड़क पर हमे दिखा । कल फिर पतिदेव को सुनाया पितृपक्ष चल रहा है तुम्हारे पितरों को  लगा होगा तुमने उनके लिए  अंडे रखे है दावत के लिए  । तुम्हारी ही तरह है सबके सब , अंडे और  पत्थर का फर्क ना समझ आ रहा । देखो कही उनको कोरोना तो ना हो गया महक ना आ रही होगी । उनका किया तुम भुगतो निकालो वहां से मेरा पत्थर 😂😂😂



August 15, 2022

प्रतिकात्मक देश भक्ति से आगे

एक समय था जब हर किसी को झंडा फहराने का अधिकार नही था । ये साल का दो सरकारी कार्यक्रम और क्रिकेट मैच के समय मैदान ती सीमित था । झंडे के प्रति इतनी संवेदनशीलता होती और साथ मे इतने नियम कानून , मान अपमान की पूछिये मत । 

तब अमेरिकन को देख कर लगता ये तो अपने झंडे का पजामा बिकनी तक पहन लेते इनके झंडे का अपमान ना होता ,ये संवेदनशील नही होते उसके प्रति।  ये और इनका झंडा तो सबसे ताकतवर है फिर ऐसा क्यो है । लेकिन अच्छा लगता कि झंडे पर सबका अधिकार है ।

फिर वो समय भी आया जब हम सब को भी तीरंगा फहराने हाथ मे ले कर चलने का अधिकार मिला । आप सभी को भी याद होगा क्या उत्साह था उस समय आम लोगो मे । हर घर तीरंगा तब भी था और  स्वतः था । लेकिन देश  के प्रति  कोई  कर्तव्य याद हो ना हो झंडे के प्रति बहुत सारे लोगो की संवेदनशीलता बनी रही और  वो इसके मान अपमान  कोड कंडक्ट आदि को लेकर विरोध नाराजगी दिखाते रहे । 

शुरू मे मुझे भी लगता था फिर  धीरे धीरे लगा झंडे के प्रति प्रतिकात्मक संवेदनशीलता , प्रतिकात्मक देशभक्ति से आगे की सोचना चाहिए। ब्याह के बाद कोई  दस साल तक साल मे दो बार अपने घर मे झंडा जो लगाती थी वो बंद कर दिया । 

देश के नियम कानून ना मान रहे । देश को बढ़ाने मे कोई सहयोग ना कर रहे तो इन सब प्रतिकात्मक देशभक्ति का कोई मतलब नही है । झंडा लगाइये राष्ट्रीय पर्व धूमधाम से मनाइये लेकिन साथ मे खुद को और आगे आने वाली पीढ़ी को असली देशभक्ति भी सीखिये और  सिखाये । बस झंडे फहराने तक सीमित मत रहिये । तभी इन सब का कोई  अर्थ है वरना बस छुट्टी का दिन  है मौज मस्ती आराम मे निकल जाना है । 

बकिया झंडे पर सबका बराबर का अधिकार है क्या ऊंची अट्टालिका और  क्या हमारा कबूतर खाना । उनका भी झंडा ऊँचा रहे और  हमारा भी लहराता फहराता ऊँचा  रहे । 

अब बिटिया ने  अपने घर मे फिर से शुरू किया है झंडा  लगाना देखते है ये हवा बस इस साल का देखा देखी है या आगे भी याद रहता उन्हे ।  


  


August 14, 2022

मुंबई की बारिश

                        मुंबई आते ही बरसात के मौसम का असली मतलब समझ आया  और गृहस्थी की गठरी खुलते ही इस मौसम ने उसमे घुन भी लगा दिया । जब घर से चली तो अपने भारतीय रिवाज अनुसार माता जी ने खाने पीने की चीजे साथ भेजा । जिसमे मेरे ब्याह के बचे डेढ़ दो किलो मूंग के पापड़ और अच्छी किस्म का बासमती चावल भी था । 

                        बात बीस साल पुरानी है एक मिडिल क्लास वाली खास मानसिकता की भी । जिसके अनुसार खास चीजे मेहमानो ,खास लोगो या खास दिन के लिए रख देना चाहिए।  रोज रोज खुद खा कर  उसे खत्म नही करना चाहिए।  मठरी सेव नमकीन आदि तो खत्म कर दिये गये लेकिन पापड़ और चावल धर दिये गये खास के लिए  । 

                       मुंबई के मौसम से अनजान बस महिना डेढ़ महीने बाद ही पापड़ मे फंगस लग गया और चावल मे घुन । मायके से आयी एक एक चीज कैसे दिल के करीब होती है ये सब स्त्रियां ही समझ सकती है । पापड़ और चावल की हालत देख इतना दुख हुआ  कि  समझ लिजिए बस रोये भर नही । 

                        उस दिन पतिदेव ने समझाया कि मुंबई मे बारिश मे अनाज ऐसे ही खराब होते है या तो  ज्यादा खरीदो मत या फ्रिज मे रखो । वो दिन है और  आज का दिन बारिश आते ही फ्रिज अलमारी बन जाती है यहां ।  जैसे जैसे पता चलता गया , खराब होने या किड़े लगने के बाद  , कि ये भी खराब हो सकता है सब फ्रिज मे जाता गया । 

                        मूंग , राजमा , उरद, रवा , मैदा, काॅफी , मूंगफली और ना जाने क्या क्या । जब बिटिया हुयी तो घर मे नमकीन बिस्किट ज्यादा आना शुरू हुआ  । उसके लिए अलग से खास एयर टाइट डब्बे आदि खरीदे गये । यहां तो ये हालत है खाने के साथ दो मूंग के पापड़ लेकर बैठते है दूसरे वाले का नंबर आते वो मुलायम हो लटकना शुरू हो जाता है बारिश के इस मौसम मे । 

                         अब वो खास डब्बे खराब हो गये तो बिस्किट का पैकेट तभी खुलता है जब तीनो साथ घर मे हो ताकि एक ही बार मे उसे खत्म कर दिया जाये । घ॔टे भर मे ही वो मेहरा जाता है । चिप्स कुरकुरे के पैकेट लेते समय चेक किया जाता है हवा जरा भी कम ना हो उसमे , नही तो अंदर सब मेहराया मिलेगा । 

                         नमकीन का वही पैकेट लिया जाता है जिसमे बंद करने के लिए  जिपर हो भले बड़ा पैकेट लेना पड़े । क्योकि डब्बे भी उन्हे सुरक्षित नही रख पाते । बाकि बरसात मे मौसम चटर पटर खाने की इच्छा जाग्रीत कर डायटिंग की वाट लगवाता है वो अलग मुसीबत है । यहां तो चार महीने बरसात होती वो भी लगातार । खुद पर काबू कर भी लो तो बाकि दो ना मानते । 

August 13, 2022

अश्लीलता तो दिमाग मे होती है

छ साल की छोकरी,

भर लाई टोकरी

टोकरी में आम हैं,

नहीं बताती दाम है

दिखा-दिखाकर टोकरी,

हमें बुलाती छोकरी,

हमको देती आम है,

नहीं बुलाती नाम है

नाम नहीं अब पूछना

हमें आम है चूसना!”

 पहले ही चेतावनी दे दूँ कि इस पोस्ट में ढेर सारे अश्लील शब्द हैं अर्थात पोस्ट ही बड़ी अश्लील हैं , अपने रिस्क पर पढ़े | 

कुछ  समय पहले ज्ञान मिला कि  ऊपर लिखी बाल कविता अश्लील हैं | चार बार कविता हर कोण से पढ़ा कुछ भी अश्लील नजर नहीं आया | अपना अश्लीलता ज्ञान ट्यूबलाइट जैसा हैं और थोड़ा कमजोर हैं | 

हमने कविता पतिदेव को सुनाते  कहा  जरा अपना अश्लील मर्दाना दिमाग लगाते बताओ की मैं क्या सोचूं की कविता अश्लील लगे | बोले बड़ा सामान्य सा हैं आम को लड़की का अंग समझ लो | हमने तुरंत उन्हें और पूरे  मर्द जाती को मन ही मन दण्डवत प्रणाम किया ऐसे शानदार अश्लील गंदे दिमाग के लिए  | 

लोग इसे अश्लील बोलते भूल गए की कविता छः साल के छोटे बच्चे के लिए हैं, जिसका दिमाग बातों का वही अर्थ निकालता हैं जी लिखा गया हैं | कविता अश्लील दिमाग रखने वाले उनके बाप के लिए नहीं है| इतने छोटे बच्चे के लिए साहित्य नहीं रचा जाता , कम मात्राओं वाला,  कैची तुकबंदी रची जाती हैं | इतना आसान की उसे पढ़ते ही वो उसका मतलब समझ जाए |  

दुनियां में कुछ भी अश्लील हो सकता हैं दोहरे अर्थों वाला हो सकता हैं बस आपके पास एक गंदा अश्लील दिमाग होना चाहिए | आम और उसे चूसना भी अश्लील हो सकता हैं अगर उसके साथ लड़की भी हो , ये तो दिमाग में कभी आया ही नहीं |

 

बड़ी शर्मिंदगी हुयी ये सोच शायद पिछले साल हमने एक चूसने वाले देशी आम के पोस्ट पर बड़े मजे ले कमेंट किया था कि आम चूसकर  खाना आनंद दायक होता था बचपन में सब मिल कर ऐसे ही खाते थे  | अब लग रहा हैं इस कमेंट को कितने ही ख़राब दिमागों ने कुछ और मजे  ले पढ़ा होगा | 

अब अश्लीलता के अपने ज्ञान की डिक्शनरी ( इतने साल लोगो ने इंटरनेट का सबसे बढियाँ महत्वपूर्ण उपयोग नॉनवेज चुटकुले के लिए  किया हैं तो आपके पास अश्लील शब्दों की डिक्शनरी तो बन ही जाती हैं )  निकालू तो इसकी जगह बहुत सारे शब्द होते तो वो भी अश्लील घोषित हो जाते , बस आपके सोचने का तरीका खराब होना चाहिए  | 

छोकरी लायी गेंद , छोकरा लाया  बल्ला , भयंकरतम अश्लील , दो छोटे बच्चे अगर लड़का लड़की हैं तो बैट बॉल नहीं खेल सकते वो अश्लील घोषित होगा | वैसे आप लड़की के साथ कुछ भी ला दीजिये अश्लील दिमाग उसका दूसरा अर्थ निकाल ही लेंगे | 

उन्हें इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि कि कविता की पहली लाइन में छः साल की छोकरी लिखा हो और बगल में एक प्यारी सी बच्ची की फोटो लगी हो | एक अध्ययन में सामने आया कि बच्चो का यौन शोषण करने वाले बच्चो को बच्चा नहीं समझते हैं , उनके लिए वो व्यस्क की तरह मात्र शरीर होते हैं और उन्हें बस वही दिखता हैं |

 जैसे बहुतों  को स्त्री मात्र स्त्री नहीं नहीं बस उसकी योनि दिखती हैं तभी तो --तिया बोल बोल  स्त्री के अंग की माला दिनभर लोग जपते रहते हैं | पता नहीं इन गंदे दिमागों को दिनभर स्त्री योनि का नाम ले उन्हें कौन सा चरमसुख मिलता हैं | 


वैसे दिमाग गंदा हो तो लडके  भी नहीं छूटेंगे | लड़का अकेला , उसने खाया केला , अश्लील |   लड़का  छोटा उसका तोता  खोटा ,  अश्लील |   ( मराठी में लडके को मुलगा कहते हैं ) प्यारा सा मुलगा उसने पाला मुर्गा , अश्लील | जिन  महिला मित्रो को ( पुरुषों को आ रहा होगा समझ  में )   इसमें भी अश्लीलता ना दिख रहा हो तो बता दूँ पुरुष अपने अंग विशेष की तुलना या नाम इस तरह के  बहुत सारे शब्दों से करता हैं | अब अश्लीलता आपके दिमाग डाल दी अब दुबारा ऊपर की लाइने पढेंगी तो वो अश्लील लगेगा | 

वैसे ये अपने अंग को नाम देना  ब्रेस्ट कैंसर के लिए  चलाये अभियान में  महिलाओं को अपने दोनों स्तनों को कोई नाम दे उनकी देखभाल करके उनका ध्यान रख ब्रेस्ट कैंसर से बचने का सन्देश वाला  महिलाहित का मामला नहीं हैं | ये पूरी तरह से गंदा ,  घटिया, ही ही ही करते मजे  लेने के लिए किया गया काम होता हैं | 

ऐसे लोग  ये समझ ही नहीं पातें  दुनियां से बहुत सारे साफ़ मासूम दिमाग उनके  गंदे दिमाग की तरह नहीं चलते हैं | इन घटिया दिमाग वालों ने वैसे अक्षरों को भी नहीं छोड़ा हैं | हाल में फैशन कंपनी मंत्रा के लोगो  का अंग्रेजी अक्षर M भी अश्लील लग रहा था | उनके हिसाब से ये लड़की की खुली टांगो जैसा दिख रहा हैं | पॉर्न देखते देखते इनकी  नजर सब कुछ उन्हें वैसा ही दिखाने लगती हैं , बेचारे करे भी तो क्या | 

 एक महिला मित्र ने एक रोमांटिक गाना पोस्ट किया   " प्यार का दर्द हैं , मीठा मीठा प्यारा प्यारा " कोई आ कर कह जाता हैं गाना अश्लील हैं | दिमाग सोच में पड़ गया इसमें क्या अश्लील हैं ये तो बड़ी सामान्य सी बात हैं कि प्यार में दर्द भी मिलता हैं और लोग प्रेम की चाहत में उसे सहते भी हैं | फिर पुरुष  की तरह सोचना पड़ता हैं कि भी प्रेम का और क्या मतलब हो सकता हैं किसी पुरुष के लिए , जवाब तुरंत मिलता हैं "सेक्स" | समझ आ गया और हो गया गाना अश्लील | कहा था ना दिमाग गंदा होना चाहिए सब अश्लील बन जायेगा | 


एक महिला मित्र ने लिखा बिटिया विदेश जॉब के लिए गयी और पहले दिन ही ढेर सारा काम मिल गया , पेलाई शुरू हो गयी बिटिया की | समझ गयी उन्हें इसका आजकल जिन अर्थों में प्रयोग होता हैं  नहीं पता | उन्हें तुरंत इनबॉक्स में मैसेज किया कि पेराई , पेलाई आदि का मतलब भले हमारे लिए निचोड़ना , घिसना अर्थात मेहनत से होता हो लेकिन गंदे दिमागों ने इसका अर्थ भी घटिया बना दिया हैं | उन्होंने तुरंत  उस शब्द को बदला | 


आज आम और उसे चूसना भी अश्लील शब्दों की   डिक्शनरी में चला गया  | अब लग रहा हैं ये सोशल मिडिया की दुनिया अश्लील दिमाग वाले गंदे लोग चला रहें हैं क्योकि जैसे ही वो किसी शब्द को अश्लील तरीके से प्रयोग करते हैं बाकी भी मूर्खों की तरह उसके हा में हां मिला उसे अश्लील घोषित कर देतें हैं  | देखियेगा ये एक दिन ये  हमारे सारे शब्दों को चुरा कर हमें शब्दहीन कर देंगे या हमें भी अश्लील घोषित कर देंगे  | 

August 12, 2022

सरकार का तुगलगी फरमान

बीच बीच मे कोरोना काल वाली यादे भी ताजा कर लेनी चाहिए , ताकि सनद रहे ।   एक व्यंग्य लिखा था कोरोना की दूसरी लहर के बाद कि कैसे सोशल मीडिया पर हम सभी डाॅक्टर बन सभी को हर तरह की सलाह दिये जा रहे थे । 


इंडिया अब आपने घबराना हैं क्योकि सरकार का एक तुगलगी फरमान आ गया हैं और वो हमारी बातें नहीं सुन रही हैं | सरकार का कहना हैं कि एमबीबीएस कोर्स  पंचा साल की पढाई के बाद ही पूरा होता हैं उसके बाद ही डॉक्टर (मेडिकल वाला ) माना जाएगा | 


सरकार का कहना हैं कि एक साल में कोरोना से जुड़े तमाम इलाज, दवा,  ट्रीटमेंट आदि की सारी सोशल मिडिया वाली जानकारी होने के बाद भी हम आम लोगों को सोशल मिडिया वाला डॉक्टर की मान्यता नहीं देगी | मतलब ऐसे कैसे चलेगा | कोरोना मतलब  कोविड 19 जब से शुरू हुआ हैं हम सभी ने बहुत गंभीरता से उसे फॉलो  किया हैं |  


अब तक हमें कोरोना कैसे होता हैं ,  क्यों होता हैं , किसको होता हैं , उससे बचने के उपाय क्या क्या हैं , उसकी तमाम दवाएं , हाइड्रोक्विन से लेकर फैबिफ्यू , रेमडेसिविर तक की जानकारी हैं | हां ठीक हैं हाइड्रोक्विन और  रेमडेसिविर जैसो का उच्चारण करने में शुरू शुरू में समस्या होती थी लेकिन अब तो सीख ही गए हैं | ठीक हैं स्पेलिंग नहीं पता हिंदी मीडियम वालों को , लेकिन हमें कौन सा अंग्रेजी में नाम लिखना हैं | सोशल  मिडिया पर तो हिंदी  में ही सबको सलाह देनी हैं वो तो हम लोग  कर ही लेंगे | लेकिन सरकार मानने को तैयार नहीं हैं | 


हमने कहा हम लोगों ने खान सर की यूटुब क्लास भी की हैं हमें RT -PCR  टेस्ट क्या हैं , कोरोना कैसे हमारे फेफड़े में प्रोटीन कवर का  धोखा  दे कर घुसता हैं कैसे अपना फोटो कॉपी बनाता हैं , सब पता हैं | ऑक्सीमीटर से ऑक्सीजन पल्स नापने से लेकर ऑक्सीजन कब कम ज्यादा समझा जाए तक पता हैं | हमे तो प्रोन पोजीशन सोने के फायदे तक पता हैं | हम किसी डॉक्टर से ज्यादा बेहतर सलाह मरीजों को दे सकते  हैं और वो भी मुफ्त  लेकिन ये फांसीवादी सरकार सुनने और हमें मान्यता देने को तैयार  ही नहीं हैं | 



हमने कहा एक साल का कोर्स किया  हैं तो 20 % डॉक्टर मान लो | दूसरा साल तो हम लोगों का शुरू हो  भी हो गया हैं और बहुत कुछ नया हम लोगों ने सीख भी लिया हैं | अफ्रीकन वेरियंट , ब्राजीलियन वेरियंट , इंडियन वेरियंट , आंध्र वेरियंट , अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी वेरियंट तक की जानकारी हो चुकी हैं हम लोगों को | पांच साल का क्या  मुंह देखते हो | 

वो देखो सामने दिवाली , छठ और दिसंबर में शादियों का सीजन साफ़ दिख रहा हैं और साथ में हमारा तीसरे साल का कोर्स भी | हमें धीरे धीरे 20- 20 परसेंट की मान्यता साथ में देते चलो | तब तक हम लोग  अपनी सोशल मिडिया वाली डॉक्टरी सलाह से ना जाने कितनो की   जान सांसत में डालने  सॉरी सॉरी बचाने में मदद कर सकते हैं | लेकिन इस निकम्मी सरकार के कानू पर जूं भी नहीं रेंग रही | 

हमने कहा चलो हमें छोड़ दो लेकिन अपने देशी , शुद्ध भारतीय , लोकल - वोकल के नाम पर आयुर्वेदिक वैद्य की मान्यता हमारे अजवाइन , कपूर , लौंग , गठरी , नाक में अणु का तेल , निम्बू करने वाले मित्रो को तो दे दो | बेचारे कहाँ कहाँ से घर के मसालों के डिब्बों से , पूजाघर से आयुर्वेदिक इलाज खोज पर ला रहें हैं | कम से कम आयुर्वेद के नाम पर उन्हें वैद्य की मान्यता दे दो लेकिन सरकार इस पर भी तैयार नहीं हैं | 


हाई स्कूल फेल हो कर भी घर बैठे डॉक्टर बनिये वाला कोर्स करके होम्योपैथ के डॉक्टर बन मीठी गोलियां की सलाह बांटने वालों को भी सरकार मान्यता नहीं  दे रही हैं  | कोई बात नहीं,  ना दे मान्यता सरकार,  एकबार हम सभी का कोरोना कोर्स पूरा होने दीजिये हम सभी कोरोना टेस्ट देंगे | अरे नहीं आरटी पीसीआर टेस्ट नहीं लिखित टेस्ट मिल कर देंगे कोरोना से जुडी जानकारियों पर | फिर हम सब खुद एक दूसरे को ५७ सत्तावन   ( सांत्वना ) पुरुष्कार ले दे लेंगे | 

तब तक सोशल मिडिया पर बैठ कर सबको अपनी मुफ्त डॉक्टरी    सलाह  देते रहिये भले  कोई लाख मना करे |  

August 11, 2022

पाकेटमनी ,बचत खर्च

तीन साल पहले जब बिटिया सातवीं में गयीं तो पॉकेट मनी की मांग रख दी , मांग तुरंत ही मान ली गयी क्योकि हम लोगो को भी सातवीं में ही मिलना शुरू हुआ था | हमने पूछा कितना चाहिए तो बोलती हैं डॉली दीदी ( उनसे बस दो साल बड़ी सहेली ) को सौ रूपये हफ्ते का मिलता  हैं , मैं उससे छोटी हूँ तो मुझे पचास रूपये हफ्ते का दे दो | इतना कम पैसा सुन मुझे हँसी आ गयी फिर हमने कहा चलो बढियाँ हैं पैसे को लेकर ज्यादा लालची नहीं हैं | अभी शुरुआत हैं पहले देखती हूँ कि क्या कैसे और किस चीज   पर पैसे खर्च कर रही हैं फिर बढ़ा दूंगी या जरुरत पर दे दूंगी | 


इस हिदायत के साथ पैसे दिया गया कि  उनके पैसे खर्च पर नजर होगी तो सोच समझ कर खर्च करें | जल्द ही पता चल गया कि वो भी बिलकुल हमारी तरह ही फिजूल खर्च नहीं करतीं , खाने पीने पर खर्च भी करतीं तो मुझसे पूछने/बताने  का भी काम करती |  

 फिर आया फ्रेंडशिप डे ,  दोस्तों ने प्लान बनाया  स्टारबग चलते हैं |  हमें बताने लगी  जगह बहुत महँगी हैं मम्मी एक कॉफी भी तीन सौ की मिलती हैं इतने पैसे कॉफी पर कौन खर्च करेगा मैंने मना  कर दिया , बोला  कहीं और चलो | हमारी तो आँखे ही भर आयी ये सुन्दर वचन उनके मुख से  सुन कर , हमने मन ही मन उनकी बल्लैया ली |  अंत में एक मॉल के मैक्डी में गयी , जेब खर्च के बस सौ रुपये बचे थे हमने अपनी तरफ से और पैसे दे दिए उन्हें | जिंदगी में पहली बार दोस्तों के साथ अकेले ( मैं उसी मॉल में ऊपर शॉपिंग कर रही थी ) मस्ती करके आयी | 

आते ही बोलती हैं अगले महीने पैसे मत देना,  तुमने अभी एक्स्ट्रा जो दिए हैं उसे काट लो | सुन कर अच्छा लगा पैसे के हिसाब किताब में बिलकुल  क्लियर हैं | फिर लगा बढियाँ मौका हैं उन्हें जीवन में आगे के लिए पैसे को मैनेज करना सिखाने का | हमने कहा ये सही तरीका नहीं हैं कि किसी एक महीने में ज्यादा पैसे खर्च कर लो और अगली बार बिलकुल खाली हाथ रहों | 

ऐसा करती हूँ हर हफ्ते सिर्फ दस रूपये कम देतीं हूँ कुछ पैसे तुम्हे मिलेंगे भी और जो एक्स्ट्रा पैसे लिए हैं वो बराबर भी हो जायेंगे | उस दिन उन्हें लोन , जरुरत , ईएमआई और आगे के लिए बचत आदि सबका ज्ञान दे दिया |  अगले हफ्ते पूरे  पैसे दे दिए ये बोल कर कि पहली बार हैं तो छोडो जाने दो आगे से ध्यान रखना | सोचा देखतीं हूँ कि ये पैसे आगे की प्लानिंग करके बचाती हैं या मम्मी  से हर जरुरत पर लोन/एडवांस  लेने  का सोचती हैं | 


लेकिन बढियाँ प्लानिंग इन्होने कि जिस महीने मित्रो का जन्मदिन होता तो तोहफ़ों के लिए पहले ही पैसे बचा लेती | हमने भी शुक्र मनाया कि चलों पैसे के मामले में मम्मी जैसी हैं खर्च और बचत दोनों का बराबर संतुलन रख रही हैं , फिजूल खर्च नहीं हैं एक दिन मैं कंजूस बना ही दूंगी  | 

फिर हमारे जीवन में भी वो महान दिन आ ही गया , जो हर माँ बाप के जीवन  में एक दिन आता ही  हैं जब बच्चे कमाने लगते हैं उनके हाथ में चार पैसे आतें हैं | एक दिन  उन्होंने कहा तुम ये चीज नहीं दिलाओगी तो मत दिलाओ मेरे पास अपने पैसे हैं मैं खुद खरीद लुंगी | समझ आया पैसा बड़ो बड़ो का नहीं छोटो छोटो का भी दिमाग ख़राब कर सकता हैं | फिर भी कहा ठीक हैं ये भी ,  अपने पैसो पर अपना अधिकार ऐसे ही जताना चाहिए लड़कियों को वरना कितने ही घरों में देखा हैं लड़कियां कमाती तो हैं लेकिन उनके ही पैसों पर उनका उस तरह अधिकार नहीं होता जैसे किसी लडके का | 

#मम्मीगिरि 

August 10, 2022

कोर्ट से बरी होना निर्दोष होना नही होता

 अक्सर लोग कहते है कि भारत मे रेप के ज्यादातर मामले झूठे होते है क्योकि ऐसे ज्यादातर मामले कोर्ट मे साबित  नही हो पाते । कितना अजीब है कि जो बात कोर्ट मे साबित ना हो पाये उसे झूठा बता दिया जाता है । कोर्ट मे रेप के मामले को पुलिस और वकील को  साबित करना होता है वो यदि इरादतन या गैर इरादतन इसे सच ना साबित कर पाये तो पीड़ित झूठा हो जाता है । जबकि हमे मालूम है कि समाज , पुलिस आदि का कैसा दबाव पीडित पर होता है । अपराधी रसूखदार हो तो समझिये पीड़ित का कुछ  भी साबित  कर पाना अपने कानून के सामने असंभव हो जाता है । 

ऐसे ही तहलका के मालिक तरुण तेजपाल जब रेप के आरोप से बरी हुए  थे तो समाज से कोई पर प्रतिक्रिया नही आयी । मुझे लगा था  कोई बड़ा नहीं तो एक छोटा सा तहलका समाज में इस बात पर तो अवश्य होगा कि जो तरुण तेजपाल अपने ही ऑफिस के अंदुरुनी जाँच में रेप ( भारत के नए कानून के हिसाब से वो रेप था ) के अपराधी साबित हुए थे और उन्हें सजा भी सुनाई गयी थी |  वो भारतीय न्याय व्यवस्था से बाइज्जत बरी हो गए , लेकिन हर बात में शोर मचाने वाला सोशल मिडिया में कोई हलचल नहीं हुयी | 


कितने आश्चर्य की बात हैं ना कि अपराधी तेजपाल के मातहत काम करने वाली महिला ने ही जाँच किया था और अपराधी ने मेल पर अपना अपराध भी स्वीकार भी  किया था | अपराध साबित होने  उसे स्वीकार करने पर सजा के तौर पर  उन्हें छः महीने अपने ही मालिकाना हक वाले  ऑफिस से दूर रहना था | उस अपराध को हमारी पुलिस कोर्ट में साबित ही नहीं कर पायी | वो सबूतों के अभाव में संदेह का लाभ पाते हुए आरोपों से मुक्त नहीं हुए  बल्कि  इज्जत के साथ बरी हुए हैं | 


हमारे पुलिसियां जाँच और न्याय व्यवस्था का ये हाल तब हैं जब तेजपाल खुद स्वीकार कर रहें थे कि उन्हें परिस्थितियों को समझने में गलती हुयी अर्थात वो ये नहीं समझ पाए की लड़की तैयार नहीं हैं और अपने तरफ से आगे बढ़ गए | रेप,  यौन हिंसा दोनों का मामला था लेकिन पुलिस एक को भी साबित नहीं कर पायी | 


कविता कृष्णनन ने तब इस मामले पर कहा था | बिना शिकायतकर्ता की सहमति के, न्याय के नाम पर उसके ई-मेल्स छापना या होटल का सीसीटीवी फ़ुटेज दिखाना, उसकी मदद करना नहीं बल्कि उससे उसकी मर्ज़ी छीनना है.| जहाँ तक मुझे याद हैं लड़की ने कोई शिकायत पुलिस में की ही नहीं थी | ये मेल्स उसके ही साथियों ने बाहर ना लाया होता तो ये मामला कभी बाहर ही नहीं आता | इन मेल को स्वतः संज्ञान में लेकर गोवा पुलिस ने खुद मामला दर्ज किया था पहले | 


ये बयान उन घटनाओं का समर्थन करता हैं जिनमें पीड़ित को डरा धमाका कर चुप करा दिया जाता हैं या वो खुद समाज के डर से सामने नहीं आती हैं , या पंचायत में शिकायत करने पर अपराधी को बस चार जूते मारने की सजा दे दी जाती हैं  या बल्तकारी से ही पीड़ित की शादी कर दी जाती हैं | अब बोलिये इन सब मामलों में की भाई किसी की निजिता  उलंघन मत कीजिये , उसकी मर्जी नहीं हैं पुलिस में जाने की  तो आप काहे दरोगा बन रहें  | उसकी मर्जी हैं अपराधी से शादी करने की तो आप काहें रोक रहें हैं | इस मामले में भी साफ़ दिख रहा हैं लड़की न्याय तो चाहती हैं लेकिन तेजपाल के रसूख और उसके बल पर खुद के कैरियर और जीवन के ख़राब होने से बुरी तरह से डरी हुयी हैं |  


2013 में जब ये मामला सामने आया था तब कुछ लोगों ने कहा तेजपाल का कैरियर ख़त्म हो गया अब उन्हें वो इज्जत सम्मान नहीं मिलेगा | मैंने तभी कहा था ये सोचना मूर्खतापूर्ण बात हैं | जिस समाज और विचारधारा से वो आतें हैं उसमे बहुत सारे लोग फ्री सेक्स अर्थात जिसको जिससे जब मर्जी हो सेक्स करे नैतिकता का कोई मोल नहीं हैं की सोच रखते हैं   | उनके लिए वास्तव में ये सिर्फ तेजपाल का परिस्थितियों का एक गलत  आंकलन भर हैं | जैसे लडके ने लड़की को प्रपोज किया और लड़की ने  मना कर दिया , बस इतना ही | कुछ के लिए तो तेजपाल अनाड़ी होंगे जो लड़की को बाटली में उतारने से पहले ही उतावले हो गए | 


बाकी उसके नीचे वाला समाज जो उनकी ही विचारधारा का हैं वो घटना के समय ही बोल चुका हैं लड़की लिफ्ट में अकेले अपने बॉस के साथ गयी ही क्यों | सत्ता के खिलाफ लिखने पर यही होता हैं | लड़की तभी क्यों नहीं गयी पुलिस में अब क्यों बोल  रही हैं | लड़की बोल ही नहीं रही कुछ ये जबरन काजी बन रहें हैं | गोवा की बीजेपी सरकार फर्जी मामले में फंसा रही हैं क्योकि तेजपाल ने उनके खिलाफ स्टिंग किया था | 


तेजपाल  के पक्ष मे फैसला आने पर  उनके समर्थक  उनके समर्थन मे खड़े थे , ये सब कहते कि  अगर आप सत्ता के खिलाफ लिख रहें हैं तो तीन मिनट के लिए भी किसी महिला के साथ लिफ्ट  में अकेले मत जाइये | भाई बलात्कार तो नहीं था भले और कुछ भी था |  ये सब तब बोला जा रहा हैं जब  अपराधी पीड़ित और जाँच कर्ता के सारे मेल सार्वजनिक पटल पर थे | ना होता तो सोचिये पीड़ित को समाज कैसे अपराधी बना सूली पर लटका देता | 


उनके बरी होने के बाद भी हमारी फेमिनिस्ट कहाँ थी वो क्यों चुप थी | असल में वो ऐसे फालतू के मसले में कुछ बोलने की जगह  वो बहुत जरुरी काम मे लगी थी | वो कक्षा एक की किताब में छपी एक कविता में लैंगिग समानता खोज रही थी | देखिये आप समझिये , समाज हमारा चाहे जैसा भी हो , वहां पढ़ा लिखा डिग्रीधारी कैसा भी व्यवहार करे महिलाओ के साथ लेकिन जरुरी ये हैं कि हमारी किताबे आदर्शवादी हो | समाज में लैंगिग समानता हो या ना हो लेकिन किताबो में तो होना  ही चाहिए | 

August 09, 2022

कोरोना काल और मुंबई माॅडल

 कोरोना काल मे एक मुंबई मॉडल भी था जिसकी बहुत कम चर्चा हुयी । उस समय मुंबई मे आ रहे मामलो आदि पर इतनी बात भी नही हो रही थी । उस समय पर मेरी एक टिप्पणी।  

मुंबई मॉडल जानने से पहले मुंबई मतलब क्या समझ लेते हैं | मुंबई दो तरह की हैं एक वास्तविक मुंबई दूसरी सरकारी कागजो में मुंबई | वास्तविक मुंबई बहुत बड़ी हैं कोलाबा , नरीमन पॉइंट से थाना कल्याण  बोरीवली विरार तक | जबकि कागज में वास्तविक मुंबई के दो भाग हैं  जिला मुंबई और जिला थाना | 


जो आंकड़े आप कोरोना के देखते थे मुंबई के नाम पर असल में वो वास्तविक  मुंबई के नहीं कागजी मुंबई अर्थात जिला मुंबई के देखते थे| उसमे जिला थाना के आंकड़े शामिल नहीं होते थे जो वास्तविक मुंबई का ही हिस्सा हैं | ये वास्तविकता आंकड़े देने वाले भी जानते थे  इसलिए मुंबई में मामले कम होने के बाद भी लॉकडाउन  की कड़ाई पहले जैसी ही थी और आगे भी रही भले मामले कागजी मुंबई के कितने भी कम हो गये  | 


वास्तविक मुंबई प्रवासियों  की जगह हैं कोरोना को तरह के आपदा के समय बड़ी आसानी से यहाँ की जनसँख्या कम की जा सकती हैं या वो स्वयं हो जाती हैं |  जनसँख्या भी बस उनकी कम करनी होती हैं जो सरकारी संसाधनों पर हर तरह से निर्भर हैं या हों जायेंगे  और  जो आपदा को बढ़ा सकते थे इस बीमारी के रूप के  कारण | जैसे घनी झोपड़पट्टियां या पुरे शहर में फैला लोगों के रहने का चाल सिस्टम जिसमे कॉमन टॉयलेट लोग प्रयोग करते हैं | 


तीस अप्रैल 2020 तक नौ लाख लोग उत्तर भारत की तरफ की ट्रेनों से जा चुके थे | इसमें दक्षिण भारत जाने वाली ट्रेनों , फ्लाइट या नीजि वाहनों  से जाने वाले   और बसों द्वारा देश और महाराष्ट्र के ही हर हिस्सों में जाने वालों की जनसँख्या शामिल नहीं हैं | अकेले महाराष्ट्र के हर हिस्से में जाने वालों की संख्या कितनी थी इससे अंदाजा लगाइये की अप्रैल 2020 के शुरूआत  में  मुंबई में जो मामले दस हजार के ऊपर जा रहें थे वो बड़ी जल्दी से उससे नीचे तो आ गए लेकिन  महाराष्ट्र के कुल मामलों में कोई फर्क नहीं पड़ा | 


मुंबई मॉडल की दो सबसे बड़ी खासियत हैं , पहली कि ये शोर नहीं मचाती हैं जैसा की हर मामले में दिल्ली मचाने लगती हैं | यहाँ लोगों को पता होता हैं कि काम चुपचाप होता हैं जब शोर होता हैं तो असल में काम नहीं हो रहा होता हैं | दूसरी की काम किसके मार्फ़त होगा बात सीधे उससे करो यहाँ वहां भटकने का नहीं मामले को लटकाने का नहीं  | 


मुंबई में मामले शुरू होते और ऑक्सीजन के शॉर्टेज का अंदाजा लगते ही यहाँ का आईएएस ऑफिसर सीधा दिल्ली केंद्र  में बैठे अपने बैचमेट को फोन लगाता हैं कि ऑक्सीजन चाहिए , चाहिए मतलब बस तुरंत चाहिए | जवाब बिना आ उ  ई के फोन पर ही मिलता हैं तुरंत मिलेगा , जामनगर से भेजा जा रहा हैं लेकिन सिर्फ मुंबई के लिए , सप्लाई कहीं और नहीं जानी चाहिए | एक तो व्यक्ति को पता था काम करना था शोर नहीं दूसरे उसे ये भी पता था काम किससे और कैसे होगा |  मुंबई और दिल्ली दोनों देश की राजधानी हैं लेकिन मुंबई के आगे लगा "आर्थिक" उसे प्राथमिकताओं में दिल्ली से आगे कर देता हैं | 


"आर्थिक" राजधानी वाली मुंबई "अर्थ" की भाषा खूब समझता हैं और ये भी कि किसी चीज  की कीमत उसकी जरुरत पर  निर्भर होती हैं | जरुरत हैं तो एक बड़ा वर्ग कितने का हैं नहीं पूछता | बड़े नीजि अस्पतालों में शायद ही  किसी दवा इंजेक्शन की कमी  हुई  हो क्योकि कोई नहीं पूछता कि कितने की मिली और ना उसका शोर मचाता हैं (अपवाद हर जगह  होंगे )   | अस्पताल खुद लोगों को उपलब्ध करा रहें थे जरुरत की  हर दवा आदि  |  जबकि उसी महाराष्ट्र के कई हिस्सों में आपने उन्ही इंजेक्शन दवा के लिए लोगों को लंबी लाइनों में खड़ा परेशान होते  देखा होगा |  यहाँ गैरकानूनी , काला काम भी बड़े व्यवस्थित , ईमानदारी और ढंग से चुपचाप चलता हैं | 


बकिया और भी बहुत कुछ था लेकिन वो फिर कभी और अब ये सब मुंबई मॉडल की तारीफ हैं या बुराई ये आपकी सोच पर निर्भर हैं |  



























August 08, 2022

सीखना क्या है

 एक दिन पतिदेव को खान सर के दो वीडियों दिखाए | एक कोरोना कैसे फेफड़ो में घुसता हैं और दूसरा कोरोना टेस्ट को लेकर | उन्हें बड़ा पसंद आया ,  बोले तुरंत मुझे व्हाट्सप्प करो अपने जूनियर्स को दिखाना हैं | मुझे भी पता था उनके कई जूनियर्स कोरोना को लेकर लापरवाह थे | 


जैसे ही उन्हें लिंक भेजा उन्होंने तुरंत अपने टीम के जूनियर्स को ग्रुप काल किया | अभी एक लिंक भेजा हैं उसे जरा ध्यान से देखो और सीखो कैसे प्रजेंटेशन बनाते हैं , कैसे स्क्रीन को यूज करते है ,  कैसे उसे इंट्रेस्टिंग बनाते हैं |  तुम लोगों का प्रजेंटेशन देख कर मुझे शर्म आ जाती हैं |  मुंबई की नाक कटा देतें हो ,  बैंगलोर वालों को देखो कितना अच्छा करते हैं वो | अब तो सामने भी नहीं बोलना हैं फिर क्यों घबराते हो ब्ला ब्ला उनका आधे घंटे तक चलता रहा | 


हम सोचते रहें अच्छा इन्होने खान सर के वीडियों में ये देखा मैंने तो इन्हे कुछ और ही दिखाने का प्रयास किया था | व्यक्ति वही सीखता और लेता हैं जो वो लेना चाहता हैं बकिया आप कितना भी प्रयास कर लो कुछ और समझाने का फायदा नहीं हैं |  कोरोना काल से घर पर काम करते देख रही हूँ उधर भी कम मजेदार किस्से नहीं होते  

August 07, 2022

सील लोढा चकरी और स्त्री-पुरुष की सेहत

समय समय पर पुरुष याद दिलाते रहते है कि घर का काम करने से महिलाएं स्वास्थ रहती है या आजकल महिलाए इसलिए मोटी होती जा रही है क्योंकि उन्होने घर से सील लोढ़ा , चकरी आदि हटा कर मीक्सी ला दिया है । इससे वो अपनी सेहत भी खो रही है और खाने का स्वाद भी खराब हो रहा है । ऐसी ही एक टिप्पणी किसी ना की कि

'अगर आप स्वस्थ रहने के इच्छुक हैं तो योगा या रस्सा कूदने की ज़रूरत नहीं है। स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए अच्छे पाकशास्त्री बनिये। घर में सिल-बट्टा और दरतिया ज़रूर रखिए। कैथा, मेथी दाना और नारियल की चटनी सिर्फ सिल-बट्टे से ही बन सकती है।'

'औरतों ने किचेन के सुस्वादु भोजन का जायका बिगाड़ दिया है'....

एक बात ध्यान रखिये कि स्त्री का धर्म ही त्याग तपस्या हैं  | जिस घर में स्त्री इन गुणों का त्याग करती हैं घर बिखरते हैं | तो अब समय आ गया हैं कि स्त्री एक बार फिर त्याग के लिए तैयार हो जाए और   अपने शरीर को कष्ट दे | लोग कहते है कि   सील लोढ़ा की चटनी और घर की चकरी  के आटे में ज्यादा स्वाद होता हैं साथ में शरीर का व्यायाम अलग से | मेरी खुद की सौ  प्रतिशत की सहमति हैं इन दोनों बातों से | 


आप आस  पास किसी भी  जिम या अखाड़े को देखिये व्यायाम करते और शरीर बनाते पुरुष ही पुरुष दिखेंगे महिलाऐं बस नाम मात्र की | ये जरुरी भी हैं कि पुरुष शरीर से तगड़े हो महिलाओं के मुकाबले ,  क्योकि उन्हें घरों  कर बाहर दुनियां का सामना करना हैं | तो अब समय आ गया हैं कि स्त्रियां घरों के कुछ कामों का त्याग करे मिक्सी आदि  का त्याग करे सील लोढ़ा और चकरी लाये और पुरुषो को काम पर लगाये | पुरुषो द्वारा भांग की घोटाई से हम सब समझ सकते हैं कि सील लोढ़ा के प्रयोग की  प्राकृतिक  क्षमता उनमे होती हैं |   स्वाद का स्वाद और उनका घर में व्यायाम कसरत आदि भी हो जायेगा | जिम आखाड़े में व्यर्थ जाने वाले  पैसे  और समय भी बचेगा | 


हम स्त्रियों का क्या हैं सह लेंगे ,  थोड़ा आराम कर लेंगे | उससे कुछ वजन बढ़ेगा तो वो बोझा भी परिवार की ख़ुशी के  लिए उठा लेंगे | सामने सील लोढ़ा और चकरी का नतीजे में जो घर में ऋतिक रौशन , टाइगर श्राफ जैसे शरीर बनाये पुरुष  घुमेगे तो अपना त्याग व्यर्थ ना लगेगा 😂😂😂

August 06, 2022

योग की असली शक्ति

                          हमारे भरतनाट्यम के गुरु हमें बताने लगे कि योग में बहुत शक्ति हैं | पुराने समय में संत लोग ध्यान करते अपने शरीर को इतना हल्का कर लेते कि हवा में उठ जाते थे |  दो योग टीचर ने हमें योग सिखाया कुछ समय के लेकिन किसी ने भी ऐसे चमत्कार वाले दावे नहीं किये योग को लेकर  | योग को लेकर भ्रामक  दावे और उसके फर्जी  चमत्कारी गुणों का महिमा मंडन दो लोग करते हैं , एक वो जिन्हे उसका ज्ञान ना हो जो उसे बस सुनी सुनाई बातों से जानते हैं | दूसरे वो जो योग को बस बेचना चाहतें हैं अपने फायदे के लिए | 


                            बेचना और प्रचारित प्रोत्साहित करने में फर्क होता हैं | प्रचारित प्रोत्साहित करने वाला कभी उस विषय को लेकर भ्रामक बातें या गलत दावे नहीं करता बल्कि उसके सही गुणों को सामने रख दूसरों को उसका लाभ मिलता देखना चाहता हैं | भले उससे कम लोग जुड़े लेकिन लाभ उन सब को मिले और वो हमेशा उससे जुड़े रहें | जबकि बेचने वाले को आपको मिलने वाले फायदों से कोई मतलब नहीं होता | उसका एक मात्र ध्येय आपको सामान बेच अपना फायदा करना हैं | सैकड़ों के झुंड में , बिना किसी प्रशिक्षित व्यक्ति के निगरानी  में या टीवी , यूट्यूब पर देख कर योग करने से ज्यादातर को फायदा नहीं मिलने वाला हैं | नतीजा बड़ी संख्या में लोग बहुत जल्दी ही इसे छोड़ देतें हैं या उन्हें ये सब बेकार लगता हैं | 


                                 लेकिन बेचने वाला इन्ही माध्यमों से आपको योग बेच रहा हैं और उसे कोई फर्क नहीं पड़ता कि उनके फर्जी दावे और योग को गलत तरीके से सिखाने से हजारो लोग  हर साल इससे दूर हो रहें हैं और योग का  बढ़ा चढ़ा कर किये गए दावों से नुकशान हो रहा हैं | इसलिए एक प्रशिक्षित योग्य गुरु से धैर्य रख कर योग कीजिये फायदे मिलेंगे |

August 05, 2022

टूटते तारों से दोस्ती की विश

13 -14 साल के दो लडके और एक लड़की हैं ,   तीनो पक्के दोस्त हैं बचपन से |  अचानक से  सुपर इंटेलिजेंट लड़की की माँ की  एक एक्सीडेंट में मौत हो  जाती हैं | वो परिस्थितियों  को ठीक से संभाल नहीं पाती | तीनो दोस्तों का मिलना जुलना कम हो जाता हैं | फिर उनमे से एक सबसे खुशमिजाज लड़का टूटते तारों को अपने फार्म हॉउस से देखने का प्लान बना,  चालाँकि से दोनों दोस्तों  को बुला लेता हैं | 


तीनो वहां अच्छा समय बीताते हैं और टूटते तारो को देखते   तीनो के दिल से एक साथ निकलता हैं कि काश ये समय यही रुक जाए | टूटते तारे उनकी इच्छा पूरी कर देतें हैं और समय वही रूक जाता हैं | वो वापस उस सामान्य  समय में नहीं  जाना चाहते क्योकि वहां दुःख  , यादे , मौत , तनाव , बिछड़ना और बहुत कुछ हैं | 


हमारी बिटिया के स्कूल में हर साल नए क्लास में जाने पर सभी सेक्शन के बच्चो को मिक्स कर उन्हें फिर से अलग अलग डिवीजन में भेज दिया जाता हैं | नतीजा हर साल क्लास में हर किसी के बहुत से  दोस्त उनसे अलग हो जाते हैं | मुझे स्कूल का ये तरीका बहुत क्रूर लगता हैं ज़रा भी पसंद नहीं हैं  |  हमें लगता इस तरह तो मेरी बिटिया का कोई बेस्ट फ्रेंड ही नहीं बनेगा | किसी का कोई बेस्ट फ्रेंड ना होना समझिये जीवन की बहुत बड़ी कमी हैं | वो खुशियों के एक बहुत बड़े खजाने  से अनजान  हैं | 

इस चक्कर में बहुत सारे बच्चे ऐसे हैं जिनका कोई बेस्ट फ्रेंड ही नहीं हैं क्योकि हर साल कुछ दोस्त साथ आते हैं तो कुछ छूट जाते हैं | फिर नए क्लास के   बच्चो से नयी दोस्तियां हो जाती हैं , अगले साल उसमे से भी कुछ छूट जाते हैं | 


मैंने हर साल देखा   हैं की दो तीन  दोस्तों को छोड़ बिटिया के हर जन्मदिन पर  नए बच्चे आते | | बिटिया जब सातवीं में आयी तो कुछ बड़ी हो गयी थी और दोस्तियों का मतलब अच्छे   समझने लगी थी | वहां उनके छः और अच्छे दोस्त बने जिनमे से ज्यादतर को वो बहुत पहले  से जानती थी पर फ्रेंड जैसे नहीं थे | 


फिर दोस्तों के साथ सिर्फ  खेलने से कहीं ज्यादा नजदियाँ बढ़ी | एक दूसरे से अपनी पसंद ना  पसंद बाटी , विचारो का ज्यादा आदान प्रदान हुआ ,  साथ में  स्कूल से बाहर भी मिलना , एक दूसरे के घर जाना बहुत कुछ हुआ और वो बेस्ट फ्रेंड बन गए  | 

फिर आया आठवीं में जाने का समय | सब बहुत दुखी हुयी कि अब हम फिर अलग हो जायेंगे | एक दूसरे को गिफ्ट दिया ,  रोये गाये भी , परीक्षा के आखिरी दिन उन्होंने ने एक साथ एक मित्र के घर नाइट स्टे भी किया |  वो बिलकुल अलग नहीं होना चाहते थे | 


दस दिन की छुट्टियों के बाद  वो आठवीं में गए और पांच दिन बाद ही स्कूल फिर से बंद हो गया | न नए क्लास में गए ना नए लोगों से मिले और ना नए फ्रेंड बने | परिणाम ये हुआ कि वो सातवीं वाले पुराने दोस्तों के ही संपर्क में रहें | इंटरनेट ने फिजिकली साथ ना होने की कमी ही महसूस नहीं होने दी | फिर इन ख़राब हालातों में सभी के मम्मी पापा ने बच्चो को  मोबाईल दिया बल्कि उनसे दोस्तों से लगातार जुड़े रहने की छूट दी | 


आठवीं में उन सबका फेवरेट बैंड , किताबे , फिल्मो , गेम आदि इत्यादि की लिस्ट थी | बर्थडे पर रात के बारह बजे विश करना हो या दोस्तों के ले  वीडियों और गाना बनाना | छूट मिलने पर एक दूसरे के घर भी गए और बाहर घूमने भी | नौवीं में उनके सब्जेक्ट भी अलग हो गए किसी ने साइंस लिया तो किसी ने कॉमर्स लेकिन दोस्तियां वही बनी हुयी हैं | अब वो इतनी मजबूत तो हो गयी  हैं कि स्कूल खुलने के बाद भी उनके नए दोस्त शायद ही बने |  ये दोस्ती तब भी ऐसे ही बनी रहेगी  | 


दो दिन पहले "गोर्टिमर" सीरीज में टूटते तारो और उससे विश मांगते दोस्तों वाला एपिसोड देखते मैं भी मन में सोचने लगी क्या सातवीं में नाइट स्टे वाले दिन इन सबने भी कोई ऐसी विश मांग ली थी क्या |  

August 04, 2022

युनिकता , खासनेस

बीते दिवाली जब इंटरनेट से नक़ल मार ये रंगोली बनायीं तो मारे ख़ुशी के खुद ही पे इतराये जा रही थी | जीवन में पहली बार बिना किसी के मदद के अकेले रंगोली बनायीं थी | रंगोली ठीक ठाक बन गयी थी लेकिन उससे बड़ी बात थी कि  अड़ोस पड़ोस से बिलकुल अलग स्टाइल और डिजाइन का था  | 

लेकिन ख़ुशी बस दो घंटे बाद ही काफूर हो गयी जब व्हाट्सप्प स्टेटस में बनारस से मुंबई और कोलकत्ता से जयपुर तक  के लोगों का रंगोली देखा | बिलकुल वैसा ही लगा जैसा नकलचियों की परीक्षा की कॉपी चेक करते मास्टर साहब को लगता हैं , कम्बख्तों एक ही चिठ्ठ से सबने नक़ल मारी हैं , सबके जवाब इतने एक जैसे | 

सबने यही कुप्पी चम्मच वाली स्टाइल की रंगोली बनायीं थी | उस पर से दो चार की मुझसे कहीं ज्यादा अच्छी थी | हमने बिटिया से कहा देखा कहा था ना इटरनेट से नक़ल मत मारो सबका एक जैसा हैं | इससे अच्छा तो मैं दो सालों से अपराजिता वाली स्टाइल की नक़ल मार रही थी | मेरी रंगोली सबसे ( मेरे जानने वालों में ) अलग तो होती थी | उसी के चक्कर में तारीफ तो मिल जाती थी और खुद को भी अच्छा लगता | 


अगर इंटरनेट से कुछ कॉपी भी करना हैं तो सर्च के कम से कम दूसरे तीसरे पन्ने से कॉपी करों क्योकि ज्यादातर  नकलची इतनी मेहनत भी कहने की जरुरत नहीं समझतें  |  वो  तो जो सबसे पहले सामने दिखता हैं उसी को कॉपी मार लेता हैं और पकड़ा जाता हैं | हमने तो कितनी ही बार बिटिया की स्कूल टीचर की दी वर्कशीट को पकड़ा हैं पूरा का पूरा इंटरनेट का कॉपी पेस्ट होता हैं | 


बिटिया निबंध आदि लिखने के लिए प्रेरणा 😄   लेने इंटरनेट की सैर पर निकलती हैं तो उन्हें भी यही कहती | बेटा पूरा पढ़ो और  उसमे से यूनिक चीज , तथ्य कॉपी करो , जो बात हर निबंध में लिखी हैं वो मत लिखो | सारे बच्चे इंटरनेट ही  खंगाल रहे होंगे सबकी लाइने एक जैसी ही लगेगी  |  टीचर पढ़ते समझ जाएगी कि कहाँ से उतारा गया हैं | 


लोग एक फारवर्ड मैसेज में ढेर सारी शानदार खूबसूरत नक्काशी वाली मंदिरों की फोटो दिखा पूछते हैं कि इतनी शानदार इमारतों के होते हुए ताजमहल को ही केवल क्यों प्रमोट किया जाता हैं | तो भाई जवाब ये हैं कि जब कोई चीज खूबसूरत होने के साथ ही अकेले होती हैं तो ज्यादा कीमती होती हैं | ऐसे नक्काशीदार मंदिर, भवन , महल आदि  तो हमारे यहाँ भर भर के हैं | मतलब उनको बनाने वाले कलाकार भी भर भर के हैं तो फिर उन सब को क्या देखे एक को देख लिया बहुत हैं | युनिकता खासनेस ही चीजों के महत्वपूर्ण बनाती हैं | 

कहने का मतलब वही पुरानी बात कि प्रेरणा अर्थात नक़ल  में भी अकल लगाये ,  यूनिक बने रहें ,  भेड़चाल  से बचे , अपने दिमाग से सोचे | 

August 03, 2022

नकल के लिए भी अकल चाहिए

बिटिया की करोना काल वाली दिवाली की छुट्टियों  के समय  स्कूल टीचर ने बच्चो से कहा  कि दिवाली में आप लोग कुछ पकाइये ( अकेले या किसी की मदद से )  और उसकी फोटो क्लास ग्रुप पर डालिये |ये करना जरुरी नहीं था ,बस बच्चे कुछ एक्टिविटी करते रहें उसके लिए ही था |  बहुत सारे  बच्चे फोटो डालने लगे , किसी ने खुद से बनाया किसी ने मम्मी की मदद ली तो किसी ने मम्मी का बनाया ही दिखा दिया | 


कुछ सयाने  बच्चों ने गूगल से फोटो उठायी और ग्रुप पर भेज दिया | लेकिन कुछ उनसे भी ढेर सयाने बच्चो ने उसे तुरंत पकड़ लिया और उन बच्चो की खिचाई कर दी | लेकिन गलती  करने वाले बच्चे मानने को तैयार नहीं ,  बोलते हैं हमने ही बनाया हैं | अब बाकि बच्चे जिद्द पर आ गए , कुछ ने गूगल का लिंक लगा दिया , कुछ ने पूरी फोटो लगा दी | एक ने तो ये भी पकड़ लिया ट्रे पकड़े हाथ तो किसी अंग्रेज टाइप गोर व्यक्ति की हैं तुम्हारे हाथ तो ऐसे है ही नहीं | 


इन बच्चो को क्या कहूं मैंने तो यही फेसबुक पर ऐसा करते  कुछ महिलाएँ को पकड़ा हैं |  गूगल से फोटो उठा कर खूब उसे क्रॉप कर देतीं हैं , कभी कभी वही से रेसपी भी कॉपी कर पेस्ट कर देतीं हैं और बताती हैं मैंने बनाया | खाने की सजावट , फैंसी बर्तन , शानदार  प्रोफेशनल फोटोग्राफी बता देती हैं कि फोटो गूगल से उड़ाया गया हैं | एक बार शिखा जी से बात हुयी थी तो बता रहीं थी खाने की अच्छी फोटो खींचना आसान नहीं हैं उसके लिए भी बड़ा टीमटाम लगता हैं |  सोचिये रोज घर में खुद खाने के लिए खाना बनाने वाला ये सब कैसे करेगा | 


एक बार तो मेरी इच्छा हुई पूछ लूँ आपके पास कितने तरह की क्रॉकरी हैं कि सैकड़ो पकवानो की फोटो में शायद ही कभी बर्तन रिपीट हुआ हो | यहाँ तक की जिस टेबल मेज  पर उन्हें रखा जाता हैं वो भी हर बार अलग होती हैं |  जब बड़े बस लाइक कमेंट के लिए ऐसा कर रहें हैं तो बच्चो को क्या ही कहें | 

August 02, 2022

पुरुष अपनी समानता के लिए विरोध क्यों नहीं करता |

कार 24 का एक विज्ञापन आता था जिसमे एक लड़की दूसरी लड़की से कहती हैं कि हम दूल्हे खोजने की एक एप्प कार 24 की तरह बनायेंगे | दस दिन में दूल्हा पसंद नहीं आया तो वापस , यही होगा असली स्वयंवर | ये कह लड़कियां जोर से हँसने लगती हैं | 


अब सिर्फ कल्पना कीजिये कि इस विज्ञापन में पात्रों का लिंग परिवर्तन कर देतें तो कितना बवाल हो जाता | दो लडके बात करते की पसंद ना आये तो दस दिन में दुल्हन वापस फिर ठहाका लगाते  | बाप रे , नारीवादियों से लेकर महिला आयोग और पूरा सोशल मिडिया जंग का मैदान बना देता | महिलाओं का अपमान बता कहता पहली नजर में ही विज्ञापन पसंद नहीं आया इसे तो तुरंत ही वापस लो | 


लेकिन अब कहीं से कोई भी आवाज विरोध में नहीं उठ रही हैं  | किसी को विज्ञापन में पुरुषो का अपमान नहीं दिख रहा | नारीवादी , फेमनिष्ठ  तो आपकी समानता के लिए विरोध तो करने से रही | उनके लिए समानता क्या हैं हाल में छोकरी और आम की टोकरी में ही सामने आ गया | कुछ ने कहा छोकरी क्यों हैं छोकरा क्यों नहीं डाला, कवि की नियत ख़राब हैं | मतलब छः साल एक लड़का आते ही बाल मजदूरी और यौन शोषण का मामला ख़त्म हो जाता |ये दोनों बातें लडको से नहीं जुड़ती , उनके हिसाब से | 


वामपंथी भी आप के  लिए आवाज नहीं उठाएंगे जब तक आप मुस्लिम , दलित , गरीब, सत्ताविरोधी  या वामपंथी ना हो | अगर आप ये योग्यता रखते हैं तो वो आपके गलत करने में भी आपके पक्ष में खड़े रहेंगे | लेकिन स्वर्ण , हिन्दू , अमीर आदि का अपमान अपमान नहीं कहलाता , उनके अनुसार | दलितवादी कहेंगे इतने सालों स्त्री का अपमान किया हैं तो अब उसका हक़ बनता हैं कि वो हर पल आपका अपमान करे| बल्कि अपना सारा जीवन उसे खुद की उन्नति में लगाने की जगह आपके अपमान में समय व्यर्थ करना चाहिए | 

मतलब कोई भी पंथ या वाद आपके लिए आवाज नहीं उठाने वाला हैं |लेकिन सवाल से हैं कि आम पुरुष इसके खिलाफ क्यों नहीं बोल रहा हैं | इसके दो तीन कारण मुझे लग रहें हैं आप बताइये कौन सा सही हैं --


1 - पुरुषों का सेंस ऑफ ह्यूमर बहुत अच्छा हैं | 

2 - असल में ये  अवसर , सुनहरा मौका  हैं | इससे बढियाँ क्या होगा कि दस दिन एक लड़की से साथ गुजारने के बाद आपको आजाद कर दिया जायेगा किसी और लड़की के आजमाने के लिए | मतलब  हर दस दिन बाद नयी गर्लफ्रेंड |  वल्लाह अच्छे दिन कहते हैं इसको तो | 

3 - आपदा में अवसर | भाई दूल्हे को दस दिन आजमाया जायेगा तो दूल्हे को भी तो मौका मिलेगा दस दिन दुल्हन को आजमाने का | खुद को पसंद आयी तो उसके सामने अच्छे बने रहों ताकि वो भी पसंद कर ले | दुल्हन पसंद नही आयी तो अपना रावणी  रूप दिखा दो वो खुद ही छोड़ देगी | अरेंज और लव मैरिज में ये फायदे कहाँ मिलने वाले | 

4 -समाज की वास्तविकता और अपनी ताकत की पहचान | हँस लो लड़कियों जितना इस तरह का मजाक बना कर हँसना हैं | समाज की वास्तविकता तो ये हैं कि तुम्हे वर के चुनाव का अधिकार ही नहीं हैं , अपवाद छोड़ दे तो | किसे चुनना हैं और किसे रिजेक्ट करना हैं ये हम तय करते हैं तुम नहीं | इसलिए तुम्हारे ख्याली पुलाव से हमें कोई आपत्ति नहीं हैं | 

इसमें से आपको कौन से कारण लगते हैं बताइये | इसके आलावा भी कोई और कारण हैं तो अपनी तरफ से  जोड़ते जाइये । 

August 01, 2022

नए तरीके के क्लास तो नए तरीके की शैतानियां

कोरोना काल मे जब बच्चो के क्लास ऑनलाइन चल रहे थे तब बच्चो की शरारत भी उसी हिसाब की होती थी । एक दिन बिटिया से पूछा कि ऑनलाइन क्लास के बीच में उसने बाथरूम ब्रेक कैसे ले लिया  अगर इस बीच टीचर तुम्हारा नाम ले कर कुछ  पूछ लेती तो क्या करती | तो कहती हैं मैं डाटा बंद करके गयी थी , उससे मैं क्लास में तो थी लेकिन मेरा वीडियों बफर कर रहा था | टीचर समझ जाती नेट में प्रॉब्लम हैं | हमने कहा ये कहाँ से सीखा तो बोलती हैं सारे बदमाश बच्चे यही  करते हैं |  जब किसी दिन क्लास में मैम सबसे कुछ पूछना शुरू करती हैं तो उनका नंबर आने से जस्ट पहले सब नेट बंद कर देते हैं और बाद में कहते हैं कि मैम नेट कनेक्शन में कुछ देर के लिए प्रॉब्लम आ गयी थी, सॉरी | हमें पता होता है वो झूठ बोल रहें हैं लेकिन हम किसी टीचर को बताते नहीं | 

#क्लास_चालू_आहे 


July 31, 2022

जरुरतमंद अलग मदद का तरीका अलग

कई बार सिर्फ पैसो की मदद जरूरतमंद के कोई काम नहीं आती |उन्हे पैसो के साथ उसे कैसे सही तरिके से प्रयोग  करे ये बताने वाले की भी जरूरत होती है । जैसे हम सभी को बबा का ढाबा वाले बाबा  की घटना याद होगी । उन्हे क्राउड फंडिंग से करीब पैतालीस लाख से ऊपर की मदद मिली थी | दो ढेर चालक लोगों ने खुद को उनका वकील और मैनेजर बता पहले तो उन्हें मदद करने वालों के खिलाफ भड़काया | उस समय वो करना उनके लिए आसान भी रहा होगा क्योकि बहुत ज्यादा पैसा आने के कारण बाबा का बैंक अकाउंट  सील हो गया था और वो पैसे निकल नहीं पा रहे थे  |  


दिसंबर में उन्हें रेस्टुरेंट खुलवा दिया जो लाख रुपये महीने के खर्च के कारण फ़रवरी में ही बंद हो गया | इस बीच उन दोनों ने कितने पैसे खुद खाये कोई नहीं जानता | बाबा अपने ढाबे पर वापस हैं लेकिन गालीमत हैं कि अभी भी उनके पास उन्नीस लाख रूपये बचे हैं | 


 जो आयु बाबा की थी उसको देखते तो उनके लिए नया बिजनेस खोलना मूर्खता से ज्यादा कुछ नहीं था और  वो भी रेस्टुरेंट जैसा बिजनेस इस कोरोना और लॉकडाउन में | उसकी जगह उनके ढाबे पर और सुविधा उन्हें दे दी जाती या बैठ कर उसी दुकान पर  बेचने के लिए सामान भर दिए जाते तो उनकी आयु देखते बेहतर था | 


पैसे की जगह लोग उनकी कमाई फिक्स करने के लिए  कहीं किसी ऑफिस , हॉस्टल में टिफिन सर्विस शुरू करवा देने जैसी मदद करते तो इतने ज्यादा  पैसे के बिना भी उनकी मदद हो जाती | कई बार लगता हैं इतने पैसे में तो कई गरीबो की मदद हो सकती थी | कई परिवारों का जीवन इस पैसे से सुधर सकता था लेकिन मदद के लगभग 20 लाख रूपये बर्बाद कर दिया गया या लूट लिया गया | 

मैंने सुना हैं कौन बनेगा करोड़पति में भी पैसे जीतने के बाद लोगों को आर्थिक सलाह दिया जाता हैं | मुझे याद हैं अक्षय कुमार ने भी सैनिको के लिए एक एप्प बनाया था जिसमे लोग सीधे सैनिको के अकाउंट  में पैसे डाल सकते थे लेकिन उसमे एक सैनिक को पांच लाख रुपये मिलते ही वो अपने आप उस एप्प से हट जाता और लोग किसी दूसरे सैनिक की भी मदद कर पाते | 


इस तरह किसी एक को ढेर सारी मदद और किसी को कुछ भी नहीं जैसी समस्या से बचा जा सकता हैं | कोई विश्वसनीय संस्था ऐसे एप्प बना असली जरुरतमंदो को उससे जोड़ क्राउड फंडिंग का सही इस्तेमाल कर सकती हैं | साथ में उन जरूरतमंदों को पैसे का सही प्रयोग कर असल मदद कर सकती हैं | 


वैसे इस पुरे प्रकरण में बहुत से घटिया लोग ऐसे भी थे जिन्होंने भले चवन्नी की भी मदद बाबा क्या जीवन में किसी गरीब की ना की होगी लेकिन बाबा और उनके जैसे को गरियाने में सबसे आगे होते हैं , बिना सारी वास्तविकता को समझे जाने |  

July 30, 2022

ऑनलाइन वर्क के अपने मजे थे

जब कोरोना की वजह से दुनियाभर  मे लाॅकडाउन  लगा था तो ये कंपनियों के लिए  भी कम मुसीबत  नही था । बहुत सारी कंपनियों के कुछ काम लॉकडाउन में  सिर्फ घर बैठे  नहीं हो सकता था  या बहुत कम काम होता था  | तो ऐसे समय में कंपनियां बैठे कर्मचारियों के लिए ऑन लाइन  ट्रेनिंग सेशन , वेबिनार आदि इत्यादि करवा रही थी  |

इसमें विशेषज्ञों को भी बुलाया जाता है |  कंपनी समय , पैसा आदि खर्च करती हैं कि जब काम शुरू हो तो कर्मचारी ऊर्जा से भरे   और अच्छे से ट्रेंड रहें अपने काम को समझे | लेकिन वास्तव में  होता कुछ  और था | 

एई दिन पतिदेव के ऑफिस में भी  जूनियर के लिए ट्रेनिंग सेशन था ऑनलाइन | ट्रेनिंग देने वाली लड़की बंगलौर की कन्नड़ उसकी हिंदी अच्छी नहीं और इधर जूनियर की अंग्रेजी अच्छी नहीं | तो पतिदेव भी अपनी इच्छा से अक्सर उस ट्रेनिंग से जुड़े रहते हैं ताकि कुछ समझ ना आये तो उन्हें बाद में  बता सके अपनी टीम को  | 


एकदिन ऐसे ही मीटिंग में पतिदेव जुड़े थे , कैमरा उनका बंद ही रहता हैं | मुझे पहले ही कह दिया की   ढाई तीन घंटे डिस्टर्ब नहीं करना मुझे  | हम भी सामने  सोफे पर अपने लैपटॉप लिए धंसे थे | घंटे भर बाद जब पतिदेव पर नजर गयी तो वो बड़े आराम से पीछे दिवार पे सर  टिकाये   कान में कनखजूरा ठुसे  आँख बंद कर कुर्सी पर पड़े हैं   | 


पहले लगा आँख बंद करके सुन रहें होंगे लेकिन जब मेरे उठने पर भी कोई प्रतिक्रिया नहीं हुयी तो समझ आया ये तो सो गए हैं | हमने चुपके से बिटिया को बुलाया और उनके इस हालत में फोटो खिचवाई ,  वीडियों भी बनवाया  वरना  तो  आँख खोलते कहेंगे कि सो नहीं रहा था आँख बंद करके सुन रहा था | 


इतनी गहरी नींद में  थे कि बिटिया ने आवाज दी फिर भी नींद नहीं खुला फिर उन्हें हिलाडुला कर जगाया गया | तब से   जैसे ही वो ऐसे किसी मीटिंग  में  आँख बंद कर सुनते हम तकिया थमा देतें  कि डिस्टर्ब नहीं करेंगे आराम से सो लो काहें मीटिंग का बहाना मार रहे हो | साथ में ये वाला गाना भी गाते " मैं गाऊं तुम सो जाओ सुख सपने में खो जाओ ------

#फ्रॉम_होमवर्क 

July 29, 2022

दुःख पीड़ा और बुद्ध

बचपन में बुद्ध को पढ़ते लगा , ये क्या तुक हुआ कि बच्चे को दुःख और पीड़ा से दूर रखो  ताकि भविष्य में वो संत ना बन जाए | अंत में वो बड़े होने पर सब  देख ही लिए और बड़े होने और ज्यादा  विचारणीय बुद्धि होने के कारण उस पर इतना विचार किये कि सब त्याग ही दिया | बचपन  से देखते रहते तो हमारी तरह सहज रहते इन सबसे | उनके परिवार ने गलत डिसीजन लिया  था | 


सालों बाद ये विचार बदल गया जब अपनी तीन साल की बिटिया का जन्मदिन एक अनाथाश्रम में मानने गए | आगे की पंक्ति में वहां सारे मेंटली चैलेन्ज बच्चे बैठे थे जिनमे से सभी के चेहरे और उनकी भाव भंगिमा बाकी बच्चो से अलग थी | एक बच्ची को तो   जन्म से सिर्फ एक आँख थी | बिटिया उन्हें ही ध्यान से देखती रहीं और घर आते पूछने लगी वो बच्चे ऐसे क्यों थे | 


उस दिन लगा बुद्ध का परिवार सही था हम अपने बच्चो को दुनिया का दुःख -दर्द , बीमारी , पीड़ा , समस्या बता कर दुखी नहीं करना चाहते | वो अभी उन सबसे दूर रहें तो बेहतर |  बस उस दिन तय हुआ अब हर जन्मदिन पर उनके पापा वहां जा कर फल बिस्किट पैसे दे कर आ जायेंगे  बिटिया नहीं जाएँगी |  


समय फिर बदला एक दिन बिटिया की एक पुरानी छोटी हो चुकी और उनकी फेवरेट फ्रॉक कामवाली को उनके सामने देने लगी | चार साल की बिटिया वो समझ नहीं पायी और उसके सामने ही अपनी फ्रॉक पकड़ रोने लगी कि मेरी हैं उन्हें क्यों दे रही  हो | उस समय किसी तरह उसे चुप करा दिया बाद में उन्हें समझाया कि जो हमारे प्रयोग की चीज नहीं हैं उन्हें उन लोगों  दे देना चाहिए जिनको उसकी जरुरत हैं लेकिन उनके पास नहीं हैं  | ना चाहते हुए भी गरीबी आभाव के बारे में बताना पड़ा |   हमारी  बात इतना ज्यादा समझ गयी कि एक दिन बोल पड़ी मेरा टूथब्रश फेको  मत उसे किसी को दे दो | फिर  एक और लेक्चर उस दिन देना पड़ा उन्हें  | 


छः साल की हुयी तो एक दिन स्कूल से आ कर बोली मेरी पुरानी कहानियों की किताब दे दो हमें डोनेट करना हैं | स्कूल में बड़े अच्छे से केयरिंग और शेयरिंग को समझाया गया था उन्हें , वो आ कर हमें समझाने लगी |  उसके बाद कैंसर पेशेंट के लिए कार्ड बनाना , चिल्ड्रन डे और दिवाली पर बनाये गए क्राफ्ट , सजावटी कंदील आदि भी कही जरुरतमंदो को स्कूल से भेजा गया और बच्चो को प्रोत्साहित किया गया | 

 छठी और सातवीं की उम्र तक बहुत कुछ समझ और सीख गयी थी | इस बीच वो किस्सा भी हुआ जो लिख चुकीं हूँ  जिसमे वो भूखे बच्चे को देख अपने खाना छोड़ने की आदत छोड़ी | 


आठवे जन्मदिन पर तय हुआ वो फिर से अपने जन्मदिन पर आश्रम जायेगी | इस बार हम एक बालिका आश्रम गए जहाँ बस लड़कियां रहती थी | जन्मदिन मना कर बाहर आये तो बोली ये लड़कियां हॉस्टल ( ये अंदाजा उन्होंने खुद लगा लिया ) में क्यों हैं अब तो गर्मी की छुट्टियां हैं अपने घर क्यों नहीं गयी | हमने सहज ही कह दिया इनके माँ बाप नहीं हैं ये यही रहती हैं इनका कोई दूसरा घर नहीं हैं | 

पूरी बात कहते कहते अपनी गलती समझ आ गयी थी वो अभी तक गरीबी समझती थी लेकिन अनाथ होना नहीं | ये बात उनका दिल तोड़ने वाली थी कि दुनियां में कुछ बच्चे ऐसे भी हैं जिनके माँ बाप और घर नहीं होते | वो आँखों में ढेर सारे आसूँ लिए हमारे सामने खड़ी थी | उस समय तो मैंने उन्हें बहला दिया कि लोग इन्हे गोद ले लेते हैं एक दिन इन्हे माँ बाप और घर मिल जाता हैं |  

घर आ कर इस बार विस्तार से एक दिन  बात किया  कि हम दुनियां में हो रही बहुत सारी चीजे को नहीं रोक सकते ये वो होती ही रहेंगी  | हम जो कर सकते हैं वो ये कि अपनी तरफ से जो हो सके उनकी मदद करें | लेकिन हम मदद भी सबकी नहीं कर सकते | इसलिए ये सब बहुत ख़राब हैं का अफसोस करने की जगह अपने हिस्से   का सहयोग करते रहन चाहिए | 


 जल्द ही बिटिया सबसे सहज हो गयी | उसके बाद भी बहुत सारी सच्चाइयां सामने आयी और उनके सवाल भी हुए लेकिन वो दुःख जताने की जगह इन्हे दूर कैसे करे हम क्या कर सकते हैं जैसा था | उस दिन बिटिया को नहीं सीख हमें मिली कि दुनियां की सच्चाइयों से हम कब तक बच्चो को बचायेंगे हमें उन सच्चाइयों को दिखाने समझाने का नजरियां बदलना चाहिए | 

उस दिन तय हुआ कि बुद्ध का परिवार गलत था | उन्हें दुःख पीड़ा बीमारी से दूर रखने जगह अगर उन्हें दूर करने में  अपने हिस्से का सहयोग कैसे करे का सीख देता तो वो अपनी शक्ति और  धन का त्याग करने की जगह उसका उपयोग लोगों की मदद में करते |  हां बस हम सब तब बुद्ध को वैसे याद नहीं करते जैसे आज करते हैं , शायद उन्हें जानते भी नहीं | 

July 28, 2022

योग भगाये रोग

                  बीबीसी अर्थ पर कार्यक्रम आता था " बिलीव मी आई एम ए डॉक्टर " | इसमें डॉक्टरों की एक टीम थी जो चिकित्सा के लिए आम लोगो  में और इंटरनेट पर जो प्रचलित मान्यताएं थी उन्हें विज्ञानं की कसौटी पर परख कर बताता था कि वो सही हैं या गलत | 

                 एक एपिसोड में वो मोनोपॉज से जुडी समस्या को दिखा रहें थे | एक घरेलु महिला थी जो बता रहीं थी कि उन्हें दिन में कई कई बार शरीर के अचानक बहुत गर्म हो जाने के दौरे जैसे आते थे  | इसमें उनको अचानक से बहुत गर्मी महसूस होती थी उनका चेहरा एकदम लाल हो जाता हैं । भयानक बेचैनी घबराहट  महसूस करती हैं और किसी काम में उस समय मन नहीं लगता | ये एक दिन में छः से सात बार तक आता था | 


                 एक दूसरा महिलाओं का समूह भी था , उन्हें भी वही समस्या थी | वो बताने लगी कभी मीटिंग के समय तो कभी बॉस या कलीग से बात करते या किसी के साथ काम करते जब ऐसा होता हैं तो उन्हें बड़ी शर्मिंदगी महसूस होता हैं | उन्हें लगता हैं अब हमारा चेहरा लाल हो रहा होगा , सभी लोग हमें ही देख रहें होंगे , पता नहीं लोग क्या सोच रहें होंगे | इससे बेचैनी घबराहट बढ़ जाती हैं फिर ना काम ढंग से हो पाता हैं ना प्रजेंटेशन दे पाते हैं | 


              महिलाओ का ये समूह इलाज के लिए एक संस्था से जुड़ा था | जब कार्यक्रम से जुड़ी डॉक्टर वहां गयी तो एक ब्रिटिश महिला उन्हें लम्बी साँस लेने , ध्यान लगाने जैसी बाते बता रही थी | डॉक्टर तुरंत कमरे से बाहर आ गयी | बोली एक बड़ी शारीरिक समस्या के लिए ये किस तरह का इलाज बताया जा रहा हैं ये मुझे सही नहीं लग रहा हैं | ये इलाज एक मानसिक बीमारी का हो सकता हैं लेकिन  किसी शारीरिक बीमारी का नहीं | 


              दूसरी अकेली महिला एक स्पेशलिस्ट के पास जाती हैं जो कई सालो से इस समस्या पर रिसर्च कर रही हैं | वो बताती हैं कि हमने वो जींस खोज लिया हैं जो शरीर में इस तरह के बदलाव करता हैं | अब उस जींस का प्रभाव काम करने के लिए हमने एक दवा भी बना ली हैं जो इन्हे दे कर देखा जायेगा | उसने सारे तकनीकी जानकारी उन डॉक्टर को दी | 


            महिला दो या तीन सप्ताह तक दवा लेती हैं | टीवी कार्यक्रम की डॉक्टर फिर उनके पास जाती हैं , दवा का असर और उनका हालचाल जानने | वो बताती हैं दवा ने काम किया हैं और जो दौरे उन्हें पहले दिन में बहुत बार आते थे वो अब बस दो या तीन बार ही आते हैं जिन्हे वो बर्दास्त कर लेती हैं | पहली बार वो अपना हाल बताते रो दी थी , दूसरी बार वो मुस्कुरा रही थी | 


             अब डॉक्टर दूसरी महिला समूह के पास जाती हैं | वो महिलाऐं मुस्कुरा नहीं खिलखिला रही थी | वो बोली हमारी तो सारी  समस्या ही ख़त्म हो गयी हम कितने समय से इससे जूझ रहें थे | अब जीवन में कितना शांति और सुकून हैं | डॉक्टर ने पूछा क्या आपको वो दौरे अब नहीं आतें | बोली  जैसे ही हमें लगता हैं कि गर्मी लगना शुरू हो रहा हैं | हम शांत होते हैं कुछ सेकेण्ड आँखे बंद कर लंबी साँस खींचते और छोड़ते हैं और सब कुछ ठीक हो जाता हैं | अब तो हम ये ध्यान भी नहीं देते कि कौन हमें देख रहा हैं और कौन नहीं | हम अपने कर रहें काम पर फोकस करते हैं | जिसे जो समझना देखना हैं समझे हमें किसी की परवाह नहीं | अब तो धीरे धीरे हमें पता भी नहीं चलता की कब शरीर गर्म हो रहा हैं दौरा आया हैं | डॉक्टर मुंह बाए उन्हें आश्चर्य से सिर्फ देखती रहती हैं , उसे समझ ही नही आता की इलाज हुआ कैसे | डॉक्टर की कोई टिप्पणी इस इलाज पर नहीं होती | 


             जो मुझे लगता हैं - पहली महिला घरलू थी जबकि महिलाओं का समूह कामकाजी था | जीतनी समस्या उन्हें शारीरिक थी उससे ज्यादा समस्या उन्हें मानसिक थी , लोग देख रहें हैं , काम प्रभावित हो रहा हैं | तनाव बहुत बार समस्याओं को और बढ़ाता चलता हैं | कुछ शारीरिक समस्याएं जो हॉर्मोन्स के परिवर्तन के साथ होते हैं उनमे से कुछ को मानसिक नियंत्रण से ठीक किया जा सकता हैं  या सहने लायक बनाया जा सकता हैं , जो भी  |


                सभी को  पता हैं दुःख और तनाव में भी शरीर में बहुत से एंजाइम्स निकलते हैं जो शरीर को और नुकशान पहुंचाते हैं | वो महिला ध्यान और और प्राणायाम द्वारा यही करना सीखा रही थी | कार्यक्रम ब्रिटेन में बना था उसमे सभी स्वेत महिलाऐं ही थी | एक भी भारतीय नहीं यहाँ तक की प्राणायाम सिखाने वाली महिला भी नहीं | 

वैसे योग दिवस के बाद योग पर बात करने से पाप तो नहीं लगता ना | 


#योग_निरोग 

July 27, 2022

हम छोटी लकीरो वाले अब बड़े लकीर है

कई बार आप को बच्चो की नजर में अच्छे माता पिता बनने के लिए कुछ नहीं करना पड़ता , बस आप के आस पास की छोटी लकीरे अपने आप ही आप की छोटी लकीर को भी बड़ा बना देती हैं | बिटिया ने बताया उसकी एक सहेली व्रत नहीं रखना चाहती लेकिन उसके घर वाले जबरजस्ती उससे व्रत करवाते हैं | नतीजा उसे जब बहुत भूख लगती हैं तो वो छूप कर कुछ खा लेती हैं | वो जैन हैं और उनके व्रत में कुछ नहीं खाया जाता गर्म पानी के सिवा |



कुछ साल पहले मेरे भी होश उड़ गए थे जब मैंने सुना उनकी एक दूसरी आठ साल की सहेली लगातार आठ दिन का व्रत किया | मतलब एक बूंद खाना नहीं बस गर्म पानी और उस व्रत में भी वो शुरू के दो दिन स्कूल आयी थी | वो वाली मित्र पूजा पाठ करती हैं तो वो अब भी अपनी इच्छा से व्रत करती हैं तो उसमे बिटिया को समस्या नहीं हैं |


एक दिन बिटिया की ये बताते आँखे भर आयी थी कि पीरियड में उनकी कई सहेलियों के साथ अछूतो जैसा व्यवहार उनके घरवाले करते हैं | ये विश्वास करना मुश्किल था लेकिन मुंबई जैसी जगहों में पढे लिखे घरवाले पीरियड में बच्ची को एक गद्दा चादर और एक थाली कटोरी दे कर कमरे के एक कोने की जमीन पर सिमित कर देतें हैं | घर का कोई भी सदस्य उन्हें छूता नहीं हैं और उनकी थाली में खाना भी दूर से गिराया जाता हैं भिखारियों की तरह |


एक बार उनकी एक सहेली जिसे क्लोरीन से एलर्जी हैं उसे टॉयलेट क्लीनर से इंफेक्शन हो गया उसके जांघों में छाले पड़ गए और चुकी उसे उस समय पीरियड था इसलिए किसी ने उसकी देखभाल नहीं की । वो दो दिन तक दर्द से रोती रही | तब उसके संयुक्त परिवार में उसकी मम्मी नहीं थी वो गांव गयी थी | एक दूसरी सहेली तो परिवार और दोस्तों साथ शहर से बाहर घूमने गयी थी | वहां जब उसे अचानक पीरियड़ आ गए तो सब उसे उस अनजान बंगलो में अकेले छोड़ कर घूमने चले गए और ऐसा दो दिन हुआ |


बिटिया बता रही थी कि उनकी एक और सहेली के चचेरे भाई बहन को खाना बनाना सिखाया जा रहा हैं | बहन को इसलिए ताकि शादी के बाद काम आये और भाई को इस लिए क्योकि वो विदेश पढने जा रहा हैं तो उसे वहां काम आये | बहन की भी इच्छा बाहर पढने की हैं लेकिन ग्रेजुएशन के बाद उसके लिए लड़का देखा जा रहा हैं | बिटिया की सहेली अभी से दुखी हैं कि भविष्य में उसके साथ भी ये होगा |


उनकी एक सहेली मैक्डी में खाना नहीं खा सकती क्योकि मैक्डी में चर्बी से खाना तला जाता हैं वाली खबर पर अब भी उसकी मम्मी भरोसा करती हैं | जबकि दूसरे फास्टफूड ब्रांड में खाना खा सकती हैं क्योकि उसकी ऐसी कोई खबर बाहर नहीं आयी हैं | किसी को आलू चिप्स की मनाही हैं तो किसी को कुरकुरे की, बच्चे सब चोरी छुए खाते हैं | और ना जाने कितनी ही छोटी लकीरे और उनके किस्से हैं हमारे आस पास जिन्हे सुना सुना हमारी बिटिया कहती हैं थैंक गॉड कि तुम लोग मेरे मम्मी पापा हो | ये हाल मुंबई की बच्चियों के हैं कुछ ख़ास विषयों पर ,किसी छोटे शहर गांव में क्या कहूं |

July 26, 2022

ये हैं असली खतरों के खिलाडी

                   सरकारी काम की रफ़्तार कैसी होती हैं और कैसे संसाधनों की बर्बादी होती हैं ये हम सब जानते है |हमारे यहां जून जुलाई  तक गटर की सफाई मरम्मत आदि का काम चलता रहता है । हमरी ही बिल्डिंग के आगे  नये गटर बनाने का काम शुरू हुआ और  उसके लिए एक बहुत बड़ा गढ्ढा खोदा गया । बरसात  आने तक काम पूरा नही हुआ और वो  गड्ढा बरसाती पानी से लबालब भर गया । 


                      हिसाब से गटर बनाने का काम तो  बहुत पहले शुरू हो कर मई में ही बंद हो जाना चाहिए था | देर से शुरू हुआ तो उसके बाद भी जून के पहले हफ्ते में तेज बारिश की चेतावनी मौसम विभाग पहले ही दे चुका था और बरसात जोर शोर से हुयी भी | गड्डे को भरने का काम भी जून के पहले हफ्ते में ही कर देना चाहिए था लेकिन वो भी नहीं हुआ | गड्ढे को भरने की शुरुआत रात के साढ़े बारह बजे  हुआ जब एक मजदूर ने किनारे पर रखे  मलबे को पानी भरे गड्ढे में गिराया | इतने जोर की आवाज से सब जग गए किसी अनहोनी की आशंका में | बाहर देखा तो एक मात्र मजदूर तब छोटे बोर में भर के रखे मलबे को उठा कर पानी में फेक रहा था एक एक करके |

             इस गड्ढा भराई  के काम में  छपाक गुडुप छपाक गुडुप की आवाज एक तो सोने नहीं दे रही थी उस पर से ये लग रहा था कहीं वो शराब पी कर तो इतने रात में काम करने नहीं आया हैं | इतने गहरे पानी से भरे गड्ढे के मुहाने फिसलन कीचड़ में जैसे वो खड़ा था मुझे तो आँख बंद करते उसके गिर कर उसमे डूब जाने के ख्याल  ही बार बार डरा रहें थे | इतने से मलबे से होना कुछ था नहीं और हुआ भी नहीं | 


           अगले दिन एक नए डर का सामना हुआ | एक ट्रक भरा मलबा सीधे उस गढ्ढे में उलटा जा रहा था बिना ये सोचे कि पानी की पाइप और बिजली की तारे पानी के अंदर बिलकुल  बीच में हवा में लटक रही हैं | उन पर मलबा सीधा गिरा और वो टूटी तो नयी मुसीबत  आएगी | लेकिन असली खतरों के खिलाड़ी इन बातों की परवाह नहीं करते कि बिजली की तारे टूटी तो गड्ढे के पानी में करेंट आ सकता हैं | हमें तो लगा रहा था जैसे फ़ाइनल डेसटीनेसन फिल्म की शूटिंग देख रहें हो | हम और बिटिया ऊपर से आगे की कहानी के अंदाजे लगाते रहें | 


                अगले तीन दिन एक दो ट्रक आते और फिल्म की शूटिंग चलती रही जबकि एक ही दिन में ये सारा काम हो सकता था  | हम लोग घर पर सभी चीजे सुबह की चार्ज करके रख लेते और पानी भी स्टोर कर लेते | अंततः भगवान भरोसे वाला काम बिना किसी अनहोनी के समाप्त हुआ | गिट्टी डाल फुटपाथ वाली टाइल्स डाल दी गयी | बचे हुए काम के लिए गटर की बड़ी बड़ी पाइप किनारे रखी हुयी हैं | बरसात जाने के बाद इसे फिर से खोदा जायेगा फिर से इस काम को पूरा करने  में महीनो लगेंगे और लागत कितनी बढ़ेगी आप खुद ही अंदाजा लगा लीजिये | 

               वैसे आम लोग भी कम खतरों के खिलाड़ी नहीं हैं | वो गड्ढा बस मलबे से भरा ही था और पानी अभी भी उसके ऊपर थोड़ा था रात में कोई आ कर वही पर अपनी कार खड़ी कर गया और दो तीन बाइक भी | ये सब तब हुआ जब घाटकोपर  में उस कार के पानी वाले गढ्ढे में कूद कर आत्महत्या करने का वीडियों हर जगह फ़ैल चुका था |  हमारा देश सच में राम भरोसे ही चल रहा हैं |

July 25, 2022

इस ईमानदारी का क्या करू अचार डालू

                                          बात कोरोना काल के समय की हैं जब बच्चो के ऑनलाइन क्लास के साथ टेस्ट और परीक्षाएं भी ऑनलाइन हो रही थी | हर बार परीक्षाओ और टेस्ट लेने तरीका बदल जाता था | बिटिया के यूनिट टेस्ट हो रहें थे  | क्लास ख़त्म होने के बाद टेस्ट के लिए  पेपर आ जाते थे  व्हाट्सप्प पर |  फिर जब बच्चो का मन करे जैसा मन करे उसका जवाब लिखे | शाम छः बजे टीचर उसके जवाब भी  भेज देती हैं बच्चे उन्ही जवाबो से अपने जवाब मिला कर खुद को ही नंबर दे कर वो पेज टीचर को एप्प पर भेज देतें थे  | वास्तव में ये पढाई से ज्यादा बच्चो  की ईमानदारी का टेस्ट था  और इसमें कौन पास हुआ और कौन फेल ये बच्चे के सिवा और कोई नहीं जानता | सोचिये ऐसे परीक्षा में कितने बच्चे ईमानदारी से जवाब लिखते होंगे | 

                                           पिछले साल टीचर एप्प पर चार सवाल भेजती और कुछ समय देती उनके जवाब लिखने के लिए  फिर दूसरे सवाल भेजती | बच्चो को तुरंत की जवाबो का पेज टीचर को भेजना पड़ता फिर वो उन्हें चेक कर नंबर देती थी | हम  इस पर ज्यादा कुछ कह नहीं सकते स्कूल को क्योकि पिछले दो सालो से तो ज्यादातर महाराष्ट्र बोर्ड के स्कूलों में टेस्ट परीक्षाएं कुछ भी नहीं लिए गए | सभी बच्चो को ऐसे ही आगे की कक्षा में प्रमोट कर दिया गया | ये स्कूल कहेंगे शुक्र मनाइये कि हम किसी भी तरह की परीक्षा ले तो रहें हैं | 


                                         कोई और समय होता तो बिटिया को कहती जितना आता हैं उतना लिख दो ईमानदारी से नौवीं के नंबरों की क्या परवाह करना | लेकिन 2020 में जिस तरह से दसवीं और बारहवीं के बच्चो को उनके पिछले परीक्षाओ और उसके नम्बरो के आधार पर पास किया गया हैं उसे देखते हुए ये नंबर ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाते हैं | अब तो हर यूनिट टेस्ट बोर्ड के बराबर लग रहा हैं |  तब लगता था कि  क्या पता 2023 तक भी स्कूल खुलेंगे या नहीं और तब भी बोर्ड होगा की नहीं | 


                                         बात केवल बोर्ड की परीक्षाओं तक होता तो भी उसे नजरअंदाज किया जा सकता था लेकिन मुंबई में दसवीं तक ही स्कूल होते हैं उसके बाद कॉलेज में एडमिशन लेना होता हैं  जो की मैरिट पर होता हैं अर्थात दसवीं के रिजल्ट के आधार पर , कोई प्रवेश परीक्षा नहीं | अब अंदाजा लगाइये दसवीं का रिजल्ट और उसके नंबर कितना महत्व रखने लगते हैं |  बच्चो का भविष्य आगे बेहतर कॉलेज सब इस पर निर्भर हो जाता हैं | जो  अच्छे कॉलेज के सीट अभी तक 90 -85 % तक जाते हैं वो शायद 95 -96 % प्रतिशत पर ही तब भरने लगे क्योकि कोरोना मैय्या की कृपा से और थोड़ी बेईमानी से प्राप्त ढेरों नंबर पाए कम योग्य बच्चो  की संख्या बहुत ज्यादा होगी | फिर हमारी बिटिया के ईमानदारी से  85 से 90 % पाए नंबर किसी काम के ना हो |  


                                     धर्म संकट हैं बड़ा खुद के लिए  और डर भी कि कहीं ईमानदार बच्चे भी दबाव में ईमानदारी का रास्ता छोड़ ना दे |  खुद के मेहनत पर चाहे जैसे भी नंबर आये एक बार सब बच्चे  स्वीकार कर लेते हैं लेकिन खुद से कम बुद्धि वाले और कम पढ़ने वाले बच्चो को जब खुद से ज्यादा  नंबर आये तो ये बर्दास्त करना मुश्किल होता हैं बच्चो के लिए  शायद किसी के  लिए भी |