बात कोरोना काल के समय की हैं जब बच्चो के ऑनलाइन क्लास के साथ टेस्ट और परीक्षाएं भी ऑनलाइन हो रही थी | हर बार परीक्षाओ और टेस्ट लेने तरीका बदल जाता था | बिटिया के यूनिट टेस्ट हो रहें थे | क्लास ख़त्म होने के बाद टेस्ट के लिए पेपर आ जाते थे व्हाट्सप्प पर | फिर जब बच्चो का मन करे जैसा मन करे उसका जवाब लिखे | शाम छः बजे टीचर उसके जवाब भी भेज देती हैं बच्चे उन्ही जवाबो से अपने जवाब मिला कर खुद को ही नंबर दे कर वो पेज टीचर को एप्प पर भेज देतें थे | वास्तव में ये पढाई से ज्यादा बच्चो की ईमानदारी का टेस्ट था और इसमें कौन पास हुआ और कौन फेल ये बच्चे के सिवा और कोई नहीं जानता | सोचिये ऐसे परीक्षा में कितने बच्चे ईमानदारी से जवाब लिखते होंगे |
पिछले साल टीचर एप्प पर चार सवाल भेजती और कुछ समय देती उनके जवाब लिखने के लिए फिर दूसरे सवाल भेजती | बच्चो को तुरंत की जवाबो का पेज टीचर को भेजना पड़ता फिर वो उन्हें चेक कर नंबर देती थी | हम इस पर ज्यादा कुछ कह नहीं सकते स्कूल को क्योकि पिछले दो सालो से तो ज्यादातर महाराष्ट्र बोर्ड के स्कूलों में टेस्ट परीक्षाएं कुछ भी नहीं लिए गए | सभी बच्चो को ऐसे ही आगे की कक्षा में प्रमोट कर दिया गया | ये स्कूल कहेंगे शुक्र मनाइये कि हम किसी भी तरह की परीक्षा ले तो रहें हैं |
कोई और समय होता तो बिटिया को कहती जितना आता हैं उतना लिख दो ईमानदारी से नौवीं के नंबरों की क्या परवाह करना | लेकिन 2020 में जिस तरह से दसवीं और बारहवीं के बच्चो को उनके पिछले परीक्षाओ और उसके नम्बरो के आधार पर पास किया गया हैं उसे देखते हुए ये नंबर ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाते हैं | अब तो हर यूनिट टेस्ट बोर्ड के बराबर लग रहा हैं | तब लगता था कि क्या पता 2023 तक भी स्कूल खुलेंगे या नहीं और तब भी बोर्ड होगा की नहीं |
बात केवल बोर्ड की परीक्षाओं तक होता तो भी उसे नजरअंदाज किया जा सकता था लेकिन मुंबई में दसवीं तक ही स्कूल होते हैं उसके बाद कॉलेज में एडमिशन लेना होता हैं जो की मैरिट पर होता हैं अर्थात दसवीं के रिजल्ट के आधार पर , कोई प्रवेश परीक्षा नहीं | अब अंदाजा लगाइये दसवीं का रिजल्ट और उसके नंबर कितना महत्व रखने लगते हैं | बच्चो का भविष्य आगे बेहतर कॉलेज सब इस पर निर्भर हो जाता हैं | जो अच्छे कॉलेज के सीट अभी तक 90 -85 % तक जाते हैं वो शायद 95 -96 % प्रतिशत पर ही तब भरने लगे क्योकि कोरोना मैय्या की कृपा से और थोड़ी बेईमानी से प्राप्त ढेरों नंबर पाए कम योग्य बच्चो की संख्या बहुत ज्यादा होगी | फिर हमारी बिटिया के ईमानदारी से 85 से 90 % पाए नंबर किसी काम के ना हो |
धर्म संकट हैं बड़ा खुद के लिए और डर भी कि कहीं ईमानदार बच्चे भी दबाव में ईमानदारी का रास्ता छोड़ ना दे | खुद के मेहनत पर चाहे जैसे भी नंबर आये एक बार सब बच्चे स्वीकार कर लेते हैं लेकिन खुद से कम बुद्धि वाले और कम पढ़ने वाले बच्चो को जब खुद से ज्यादा नंबर आये तो ये बर्दास्त करना मुश्किल होता हैं बच्चो के लिए शायद किसी के लिए भी |
ये तो दसवीं और बारहवीं की परीक्षाएँ हैं । जब आगे की परीक्षाओं में अधिक नंबर ला कर आरक्षण की वजह से बच्चे पीछे रह जाते हैं , कहीं प्रवेश नहीं मिलता तब कितना दवाब सहते हैं बच्चे ।
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