पंचायत सीरीज एक में गांव में अफवाह हैं कि एक भुतहा पेड़ रात में लोगों को दौड़ता हैं | एक के बाद एक लोग कहते हैं सरसर , फरफर , धड़धड़ की आवाजे आयी और हम लोग भग लिए | किसी ने भी डर के मारे पीछे मुड़ कर नहीं देखा कि क्या सच में पेड़ दौड़ा रहा हैं या नहीं | पता चलता हैं चौदह साल पहले विज्ञानं के मास्टर जी को पहली बार दौड़ाया था |
मास्टर जी बोलते हैं हमने देखा था पेड़ हवा में था और हमारी ओर चला आ रहा था | लेकिन धमकी मिलने पर बोलते हैं उस रात पहली बार नशा किये थे तो ऐसा दिखा | डर के मारे गांव भागे तो जो पहले मिला उसे बता दिया | सुबह जब नशा उतरा तब तक बात पुरे गांव में फ़ैल चुकी थी | नौकरी जाने के डर से फिर किसी को सच नहीं बताया |
आज सरकार ने वैक्सीन की बूस्टर डोज सबके लिए फ्री कर दी है और बड़ी संख्या मे लोग उसे लगवाने भी जा रहे है लेकिन जब देश दुनिया मे कोरोना को रोकने के लिए वैक्सीन पहली बार आया तो उसी के साथ ढेर सारी अफवाहे भी आयी इसको लेकर। उस समय देश के किसी भी हिस्से के गांव में चले जाते तो एक कहानी सुनने को मिलेती कि हमारे गांव में वैक्सीन लगवा कर दू जने मर गए , हम नहीं लगवाएंगे | सबके पास यही किस्सा होता| आप एक बार नाम पता पूछते कि बताइये कौन वैक्सीन लगवा के मरा हैं , कब मरा , कहाँ वैक्सीन लगवाया , आधार नंबर दीजिये , कैसे पता की वैक्सीन से मरा तो शायद ही किसी के पास लोगों का नाम पता या कोई जानकारी होती |
उस समय एक खबर सुनी हमारे मामी के समधी भी वैक्सीन से मर गए इसलिए मामी और उनका परिवार वैक्सीन नहीं लगवायेगा | कैसे मरे सुनिये , उनके कहे अनुसार वैक्सीन लगवाने गए थे उसी समय अस्पताल में मंत्री जी आये | बहुत भीड़ आयी साथ में, उसी में उन्हें चक्कर आया , गिरे और मर गए | वैक्सीन की वजह से मरे हम लोग नहीं लगवायेंगे | अब बोलिये क्या बोलेंगे , ये तो हमारे ही घर का किस्सा हैं |
वैक्सीन लगते ही किसी को तुरंत सुरक्षा नहीं मिलती थी , सावधानी उसके बाद भी रखनी होती ही थी | अब दो दिन बाद कोरोना हो जाए और उससे भी मौत होगी तो ठीकरा वैक्सीन के मत्थे जाता | पहले की बीमारी , हार्ट अटैक बुढ़ापे की बीमारियां आदि से भी मौत हुयी तो रसीद वैक्सीन के नाम ही कटती |
मरना अकेले अफवाह नहीं था एक समुदाय में ये , बच्चे पैदा करने से रोकने के लिए हैं , वाली अफवाह के बारे मे भी सबको पता ही होगा | इन्ही अफवाहों के वजह से पिछली बार पोलियों अभियान को भी बहुत लंबे समय तक चलाना पड़ा था | जबकि वो बहुत पहले ही ख़त्म हो सकता था और पैसा संसाधन किसी और काम में लग सकता था |
वैक्सीन के बाद होने वाले बुखार और मामूली प्रभाव को भी बढ़ा चढ़ा कर बताया और डराया जा रहा था | गांवो की ये समस्या अकेले नहीं थी वहां लोग जाँच कराने और इलाज के लिए प्रशिक्षत डॉक्टर तक के पास नहीं जा रहें हैं | अफसोस की बात हैं कुछ लोग इन सबका बचाव कर रहें थे कि वो कम पढ़े लिखे , जल्दी अफवाहों में आने वाले हैं , बेचारे गरीब हैं , समझ नहीं हैं , सरकारी तंत्र से डरते हैं आदि इत्यादि हैं |
इस तरह का बचाव बिलकुल वैसा ही था जासे माँए अपने लाडलो की शरारत , गलतियों आदि पर पर्दा डालने के लिए करती हैं , छोटा हैं , बच्चा हैं , अभी समझ नहीं हैं जाने दो | एक लिमिट के बाद जब खुद के साथ दूसरों की जान पर भी बन आये तो बच्चो के साथ फिर सख्ती करनी पड़ती हैं | जरा सख्ती से उन्हें समझाना पड़ता हैं चाहे जिस भाषा में वो समझे | यही देख कर तब सबको संजय गाँधी और नसबंदी की खूब याद आ रही थी |
शहर वाले अफवाहबाज बड़े चालाक थे/हैं | लाइक कमेंट और खुद को बड़का विद्वान साबित करने को बोलेंते कि वैक्सीन मत लगवाओ साजिस हैं और चुपचाप खुद लगवा लिए | उनके शहरी समर्थक भी ऑफिस , ट्रेन ,प्लेन, मॉल आदि में प्रवेश के लिए वैक्सीन अनिवार्य होते ही लगवा लिए | फंसें और मरें गांव वाले |
उस समय बहुत लगा जिनका संपर्क जुड़ाव अब भी गांवों से हैं थोड़ा तो प्रयास करते तो समस्या आसानी से हल होता | प्यार से समझाइये या डरा कर या खुद वैक्सीन लगवा के फोटो भेज कर , किसी भी तरह समझाया जा सकता था और बहुत सारे लोगो ने इसका प्रयास भी किया | शायद यही वजह रही कि हम हम तीसरी लहर , लंबा लॉकडाउन , और घरों में कैद जीवन से बचे | वैसे कुछ चैनल बार बार इसे अंधविश्वास क्यों बोल रहें हथे | जबकि उन्हे इसे ये अफवाह बोलना चाहिए था अन्धविश्वास नहीं |
सटीक अभिव्यक्ति ! विपक्ष के तथाकथित नेताओं को अपनी साख बचाने के लिए की गई आलोचनाएं भी एक कारण था लोगों के भ्रम का !....... बहुत दिनों बाद पंचायत के रूप में एक अच्छी सीरीज देखने को मिली !
ReplyDelete