January 29, 2024

नायक भेदा

 नायिकाओं के अनेक भेद पढ़े होंगें आज जरा नायको के भेद भी पढ़िये और देखिये की आप किस श्रेणी मे आतें हैं । 

तो अलग अलग लोगों ने नायकों के अलग अलग भेद बतायें हैं । सबसे पहले भरतमुनि के नाट्यशास्त्र के अनुसार चार भेद हैं । 

धीरोद्धत - ऐसा नायक जो वीर, सज्जन, गम्भीर,  सुख दुख मे विचलित ना होने वाला , क्षमावान , अहंकारहीन दृढव्रती सर्वगुणसंपन्न उच्च चरित्र वाला हो जैसे की राजा राम । 

तो आगे बढ़े आप मे से कोई  ऐसा नही है । 

धीर ललित - ललित शब्द से ही स्पष्ट होगा कि नायक कला प्रेमी होगा । वीर होने के साथ साथ  सोलह कलाओं मे निपुण । मृदु स्वभाव वाला गीत संगीत का वो प्रेमी जो स्वयम मे खुश रहता हो जैसे कृष्ण।  

तो खुद को कृष्ण समझने की सोच से बाहर आओं । आप सब उसके हजारवें अंश के आसपास भी ना हो। चलो अब आप आम लोगों की बात करतें हैं । 

धारोदत्त - यह वीर तो होता है लेकिन साथ मे उग्र भी । बलशाली, अहंकारी, ईर्ष्यालु, आत्मप्रसंसक , चंचल प्रवृति वाला जो छल कपट करता हो । 

धीर प्रशान्त - सामान्य गुणों वाला सामान्य आदमी , जो त्यागी और शान्त चित्त वाला हो । 

इसका अलावा भी सरल तरीके के उन्होने तीन भेद बतायें हैं । 

उत्तम- सर्वगुणसंपन्न , विवेकवान गरीबो का रक्षक , गंभीर व्यवहार वाला 

मध्यम- वह जो विज्ञान और संस्कृति दोनो का ज्ञानी हो और लोग, समाज को समझ व्यवहार करे । 

अधम- जिसे बात करने का ढंग आवे ना , कम दिमाग वाला जो बस शारीरिक सुख को महत्व देता हो । 

अग्निपुराण मे नायक के भेद बस श्रृंगार रस का भाव मे अर्थात स्त्री के साथ उसके संबंध के आधार पर किया गया है । 

अनुकूल- सबसे श्रेष्ठ नायक जो पत्नी के अलावा अन्य स्त्री की तरफ आँख उठा कर भी नही देखता । बाकियों से दूर ही रहता है । 

षठ- अपनी पत्नी को ठगने वाला । पत्नी को अपने प्रेम के भ्रम मे रख अन्य स्त्री से भी संबंध रखने वाला ।

दक्षिण - यह नायक एक दो नही बहुत सारी स्त्रियों से संबंध रखता है। 

धृष्ट - निर्लज्ज नायक दुनिया समाज की परवाह ना करके सबके सामने ही प्रेमालाप करता है । 

अग्नीपुराण मे इसी को प्रतिनायक जेष्ठ मध्य अधम भी कहा गया है । 

राजा भोज ने अपनी अलग अलग पुस्तक मे अलग अलग आधार पर नायको के भेद बतायें हैं ।  सरस्वतीकंठाभरण मे नाटक के आधार पर नायकों का भेद किया है 

नायक , प्रतिनायक , उपनायक , द्विय नायक । इन सबके चरित्र के आधार पर सात्विक,  राजस और तमस का वर्गीकरण किया है । 

श्रृंगारप्रकाश मे धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष के आधार पर 

धोरोद्वत - धर्म को महत्व देने वाला 

धीर ललित- काम को महत्व देने वाला 

धीरोदत्त - अर्थ ( धन)  को महत्व देने वाला 

धीर प्रशान्त- मोक्ष चाहने वाला । 

भानुदत्त ने रसमंजरी मे बिल्कुल अलग वर्गीकरण दिया है । ये भी स्त्रियों से संबंधों के आधार पर है । 

पति - अनुकूल, दक्षिण,  षठ , धृष्ठ जो ऊपर चार हैं 

उपपति - वो जो दूसरे नायक की पत्नी अर्थात विवाहित महिला से संबंध रख उप पति बने । इसके दो प्रकार है 

पहला वचन चतुर - जो मीठी मीठी बोल दूसरी स्त्रियों को बर्गला ले ।

दूसरा क्रिया चतुर- जो अपने काम और "काम" से स्त्रियों को अपना बना ले , अपने प्रेम मे पड़वा ले । 

वैशिक - जो नायक वैश्यानुरक्त हो । 

उन्होने बाद मे प्रोषित नाम के नायक का भी जिक्र किया है । ज्यादातर लेखक इसी भेद को स्वीकार करते हैं । माना जाता है अग्निपुराण ने भी यहीं से नायक भेद लिया है । 

रूप गोस्वामी ने उज्जवलनीलमणि मे कहा है कि भाई नायक तो बस एक ही है और वो हैं कृष्ण। 

तो कृष्ण रूपक नायक को छोड़ पुरूष रूपी गोपियों देख लो की तुम सब किस श्रेणी के नायक हो और किसी स्त्री के जीवन मे नायक हो भी । कही किसी के जीवन के खलनायक तो नही हो ।  

January 24, 2024

स्त्री द्वेषी समाज

 अरे उस घर की बेटी से शादी की बात मत चलाइये उस घर मे वैधव्य विधवा होना लिखा है । जब एक पढ़े लिखे समझदार दिल्ली मे केन्द्रीय विभाग मे उँचे पोस्ट पर बैठे रिश्तेदार ने ये कहा तो थोड़ा अजीब लगा। 

वो ऐसे स्त्री पुरुष या किसी तरह का भेदभाव करने वाले रूढ़िवादी सोच के भी नही थें इसलिए उनकी बात और अजीब लगी । मैने पूछा ऐसा क्यों बोल रहें है । 

तो कहतें है उस घर मे चार स्त्रियां रहतीं हैं जिसमे से तीन विधवा हैं । मैने कहा कौन कौन तो बोलते है एक दादी हैं दूसरी मां तीसरी चाची । सब कम आयु मे ही विधवा हुयीं । 

मैने पूछा कोई बुआ और बेटी नही है । तो कहतीं है दो बुआ है एक की शादी यहां एक की वहां हुयी है । बड़ी बेटी की यहां हुयी है ये छोटी बेटी है । इसके एक बड़ा भाई है एक छोटा और चाची को भी एक लड़का ही हैं । 

हमने कहा विधवा लोगों मे कोई घर की बेटी है तो कहतें है नही । तब हमने कहा फिर तो वैधव्य जैसा कुछ है तो घर के बहुओ मे है बेटी मे नही । बेटियां कहा विधवा है घर मे । 

इस हिसाब से तो उस घर मे अपनी बेटी नही ब्याहनी चाहिए क्योंकि उस घर के पुरुषों की आयु छोटी है या उनका रहन सहन ऐसा है लोग मर रहें है या  खानदानी बीमारी से मरे जा रहें हैं । बेटियां तो मजे से है तो किसी के बेटे को नुकसान नही होने वाला है उनके बेटियों से । 

फिर ऐसी बात उनके घर की बेटी के बारे मे क्यों फैलाई जा रही है ये तो सही नही है । ये सुन वो भी सोच मे पड़ गयें और बाकि लोगों ने भी कहा हां ये तो ठीक ही बात  है । 

फिर हमने पुछा पुरूषो की मौत हुयी कैसे तो बोलतें हैं इस बारे मे जानकारी नही है । हमने कहा अचानक से कैंसर जैसी कोई बिमारी हो गयी , किसी का एक्सीडेंट हो गया जैसा कुछ हुआ तो उसे अकाल मृत्यु कह सकते है । फिर उस घर के लड़को से ब्याह से बचने का भी सोचा जा सकता है ( ऐसा अंधविश्वास पालना )

लेकिन खानदानी बिमारी है , रहन सहन सही नही है तो इसका तो इलाज हो सकता है और लाइफ स्टाइल मेंटेन कर जल्दी मौत से बचा जा सकता है । तो लड़के भी कोई खराब नही हुए उस घर के। 

लेकिन ये सब सुन लगा कि वाकई दुनिया क्या इतनी ज्यादा स्त्री द्वेषी विचार रखती है कि बेटों की गलती ,मौत को बेटियों  पर अपसगुन के रूप मे थोप दिया जाये उन्हे बदनाम कर दिया जाये । 

या ये सब कुछ दुष्ट रिश्तेदारों , जानने वालों की जलन , कुंठा , दुश्मनी का नतीज है जो जानबूझ कर किसी परिवार , स्त्री के प्रति ये सब समाज मे फैलाया जाता है । 

और लोग जैसे आज सोशल मीडिया पर सब कुछ बिना सोचे समझे फारवर्ड करते जातें हैं वैसे ही सदियों से ऐसी बातें किसी से सुनतें हैं खासकर स्त्रियों को लेकर तो उस पर ज्यादा विचार नही करते और उसे सच मान आगे बढ़ा देतें हैं , कह देतें हैं । 

अगली बार कोई किसी स्त्री के बारे मे कुछ कहे तो कही बात ध्यान से सुन एक बार खुद सोचियेगा कि ये सच भी है या नही। फिर कोई राय बनायेगा या किसी को आगे कहियेगा ।  

January 19, 2024

सही वक्त

 सही समय पर सही जगह होना कई बार ना केवल आपका जीवन बदल सकता है बल्कि आने वाली पीढ़ी को भी बेहतर जीवन दे सकता है । तमाम संजोग मिल कर जीवन को कुछ का कुछ बना सकतें हैं ।  

इतने साल से अपने पचहत्तर साल से ज्यादा के पड़ोसी के घर की दिवार पर टंगें सेना के मैडल और पूर्व  प्रधानमंत्री इन्दिरा गाँधी से मैडल लेते फोटो देख रही थी । लेकिन उसके पीछे की पूरी कहानी को सुनने का मौका अब जा कर मिला । 

हमारे पड़ोसी महाराष्ट्र के ही एक बहुत ही गरीब गांव और परिवार से थें । नौवी या दसवीं देने के बाद वो छुट्टियों मे पहली बार मुंबई एक रिश्तेदार के पास आयें । साथ मे गांव के दो और गरीब साथी थें । 

रिश्तेदार के बड़े बेटे के साथ घुमने गेटवे गयें तो देखा वहां सेना भर्ती का कैंप लगा है । वो सन था 1962,  चीन से युद्ध छिड़ चुका था । उसके कारण ऐसे सीधी भर्ती सैनिको की हो रही थी । 

रिश्तेदार के बेटे ने कहा चलो हम सब भी ट्राई करते हैं । गांव से आये दो लड़को मे से एक जो बड़ी आयु का था उसने जाने से इंकार कर दिया । बाकि बचे तीन लड़के शारीरिक नाप जोक के लिए चले गयें । नाप जोक मे गांव से आया दूसरा लड़के का भी चयन नही हो पाया । 

इनका और रिश्तेदार के बेटे का हो गया । आगे बढ़ कर जब नाम पता आयु पूछा गया तो रिश्तेदार तो अट्ठारह का था लेकिन ये तो बस सोलह के थें । 

मुझे किस्सा बताते वो बड़े आदर से उस ऑफिसर का नाम ले कहतें है कि उसने कहा शरीर मे दमखम है तुम्हारे उमर अट्ठारह लिख दूं । तो मैने तुरंत ही खुशी खुशी हां कर दिया । 

साथ मे उस ऑफिसर का बहुत धन्यवाद करते दुआ देतें कहतें है कि उसने ये राय दे कर मेरा जीवन बदल दिया । वरना अपने उजाड़ से गांव मे खेती किसानी करता गरीबी का जीवन जी रहा होता आज ।

फिर आगे परिवार भी उसी अभाव मे जीता जैसे आज भी उनके साथ वाले वो दो लड़के गांव मे अभी भी जी रहें हैं । फक्र से बतातें हैं कि अपने गांव का पहला लड़का था जिसने किसी भी सरकारी नौकरी मे जगह पायी थी । पूरे गांव ने उन्हे कंधे पर उठा लिया था जब सबको उनके चयन का पता चला था । 

उसके बीस साल बाद तक भी कोई गांव से किसी अच्छे काम पर नही लग पाया था । नब्बे के दशक मे आ कर एक दो लड़कों का सरकारी नौकरी लगना शुरू हुआ। आज भी गांव मे बहुत गरीबी है और खेती एकमात्र आजीविका । 

62 और 65 के युद्ध मे तो जाने का मौका उन्हे नही मिला लेकिन 71 के युद्ध मे उनको फ्रंट पर जाने का तार जब मिला तो वो छुट्टी पर गांव मे थे और अगले दिन उनकी शादी थी । 

उन्होनें बिना शादी किये जाने का मन बना लिया था लेकिन रिश्तेदार घर वाले बोले कल सुबह शादी करके फिर जाओ । सुबह शादी किया और पत्नी के चेहरे की बस एक झलक देखी और ड्यूटी के लिए निकल गये । 

मुस्कराते हुए बताने लगे आज जीवित हूँ तो पत्नी के भाग्य से । शायद शादी किये बिना जाता तो मर जाता लेकिन पत्नी के भाग्य मे अच्छा जीवन लिखा था तो मै बच गया । मुझे कुछ हो जाता तो गांव वाले पत्नी को नाम देतें ( दुर्भावना से उसे कोसते , उसे अशुभ मानते)

दो गोलियां लगी मुझे उस युद्ध मे एक यहां सीने के ऊपर कंधे पर । ये कहते वो साथ ही अपने शर्ट का बटन खोल हम दोनो को कंधे का निशान दिखाने लगें । शायद किसी सैनिक के लिए ऐसे निशान किसी मैडल से बड़े होतें हैं । 

साथ मे गर्व से बताते हैं कि सामने से लगी पर पीठ मे अटक गयी । जैसे कहना चाह रहें हो कि सीने पर गोली खायी थी भागते बचने के प्रयास मे पीठ पर नही । 

दूसरी पैर मे टखने के पास वो  निशान भी पैंट को ऊपर कर दिखातें हैं । बोला पूरे टाइम होश मे था अस्पताल आने तक । फिर उधर जा कर बेहोश हुआ तो पता नही कब उठा । जब उठा तब तक गोली निकाल दी थी । 

उसके बाद रिटायर कर दिया गया । पर तब आज के जैसा इतना कुछ सेना से मिलता नही था । बस थोड़ा बहुत ही मिला नाम का । ये कहते वो अफसोस सा करतें हैं पर तुरंत ही खुश हो बोलतें हैं अब तो अच्छा है बहुत कुछ मिलता है । 

बहुत बाद मे कई सालों बाद उन्हे राज्य सरकार की तरफ से किसी स्किम मे कुर्ला बाजार मे एक दुकान दी गयी । लेकिन बुरा समय ऐसा कि कुछ महीन बाद ही मुंबई मे दंगे हो गयें । दिसंबर 1992 के बाद वाले दंगें । 

पूरा बाजार जला दिया गया साथ उनकी दुकान भी जला दी गयी । जलाने वाले हिन्दू ही थें लेकिन इलाका मुस्लमानों का था और जिसे दुकान किराये पर दी थी वो मुसलमान था । 

फिर उसके बाद ना कभी वो बाजार बना दूबारा ना कभी दुकान मिली। आज भी वैसे ही खंडहर बना पड़ा है । कहतें हैं अब मुंबई में सब जगह सब बन रहा है मेरे जीते जी वो भी बन जाये तो छोटी बेटी के नाम कर दूं वो । मर गया तो फिर नही मिलेगा । 

दो बेटियों  एक बेटे कि शादी हो गयी है बेटा भी साफ्टवेयर इंजीनियर है । बेटियां भी बैंक मे काम करतीं है लेकिन छोटी बेटी ने अभी तक शादी नही की है । बेटे के अलग होने के बाद वही साथ रहती है । 

बेटे को एक फ्लैट रहने के लिए दे दिया है या ये कहें उसने ले लिया है । इस फ्लैट मे बेटी के साथ रहतें है । एक और फ्लैट किराये पर दिया है । उसका किराया और पेंशन पर उनका गुजारा आराम से होता है । बेटी एक हास्पिटल मे काम करती है वो अपने खर्चे खुद उठा लेती है।

January 09, 2024

असल पहचान का संघर्ष

 बहुत पहले बंगाल मे रहने वाले वो सब बंगाली थें । उनमे से कुछ ही हिन्दू थे तो कुछ ही मुसलमान थे । बकिया सब तो बंगाली ही थें । 

फिर अंग्रजों ने उन्हें दो भागो मे बाट बंगाली हिन्दू और बंगाली मुसलमान बना दिया । वो गलिमत माने कि बंगाली होने की पहचान नही छीनी गयी । 

लेकिन जब देश आजाद हुआ तो बंगाली के साथ मुसलमान होने के कारण उन्हे पूर्वी पाकिस्तान बना दिया गया । धीरे धीरे उनसे उनकी बंगाली पहचान छीनी जाने लगी । उनकी बोली भाषा , खानपान,  रहन सहन , परंपरायें , रीतिरिवाज आदि सब अलग थीं पश्चिम पाकिस्तान से । 

उन पर पाकिस्तानी मुसलमान होना थोपा जाने लगा । तब उन्हे समझ आया की वो बंगाली पहले है और मुसलमान बाद मे । वो अपने बंगाली पहचान के लिए लड़े और जीते । बंगाली पहचान के साथ देश बना और फिर वो बरसो बरस बंगाली ही रहे । 

फिर दुनियां मे कट्टरवाद पनपा , इस्लाम के नाम पर बहुत कुछ दुनिया मे होने लगा । बंगाली के साथ मुसलमान होने पर असर उन तक आने लगा । वो जो सदा ही सिर्फ मुसलमान थें उनके बीच उन्होनें अपना सर उठाना शुरू किया और लोगो को कट्टरता के साथ सिर्फ मुसलमान बनाना शुरू किया । 

और एक बार फिर संघर्ष शुरू हुआ बंगाली और मुस्लिम पहचान को लेकर। उनका समाज देश आज भी कट्टरवादियों कि बढ़ती संख्या से लड़ रहा है । अपनी बंगाली पहचान को बचाने का प्रयास कर रहा है।

 इसी संघर्ष के साथ बंग्लादेश मे चुनाव हुए । वहां पाकिस्तान परस्त बढ़ रही इस्लामिक कट्टरता के साथ  साथ चीन की घुसपैठ हमारे लिए एक बढ़ा सरदर्द है और चिन्ता का विषय है और ढकोसलेबाज पश्चिम और अमेरिकन को लोकतंत्र की । 

अब देखेंगें कि भविष्य मे इस त्रिकोणीय मुकाबले मे कौन जीतता है और कौन किसके साथ जाता है ।