November 27, 2023

इस मांसाहार से कैसे बचें

 हैल्लो फ्रेंडस दुख के साथ बताने पड़ रहा है कि आज से खुद को शाकाहारी होने की लिस्ट से बाहर निकाल रहें हैं 😔

बहुत साल पहले एक दम ताजा बढ़ियां दिख रहा टमाटर काटें तो अंदर ढोले बिलबिला रहें थें । तब का दिन है और आज का टमाटर चाहे उबालना हो पकाना भूनना बिना  चार टुकड़ा काटे, देखे गैस पर ना चढ़ातें । 

कल टमाटर काटे तो देखा बस एक काला सा बीज था अंदर । वो हिस्सा काट कर फेक दिया । फिर लगा चश्मा लगा कर एक बार देखते है सारे बीज को हटा । टमाटर के सारे बीज हटाया तो अंदर मेहीन मेहीन सफेद वाले किड़े के बच्चे । 

इतने मेहीन थें कि रेंगते नही तो चश्मे के बाद भी देखना संभव ना था । ये देखते पूरे शरीर के रोयें गिनगिना गया । लगा बीज को हटा कर तो टमाटर कभी चेक ही ना किया अब तक कितनो को खा चुके होगें। 

जन्मदिन पर बिटिया मेरी लिए कुछ खास बना रहीं थीं बकायदा मैदा डाल कर बनाया । अगले दिन वही नया खरीद कर लाया मैदा हमने थाली मे पलटा तो उसमे भी ढोले । 

ये सोच कि कल ही इस मैदो को खाया है माँ बेटी को तो उलटी आने लगी । एक बार तो सोचे जा कर बनियें का खून कर देतें है ऐसा मैदा देने के लिए।  फिर लगा दिवाली , मैच के बीच कहां कोर्ट कचहरी के चक्कर मे फसेंगें तो जाने देतें हैं । 

वैसे बचपन मे एक बार चीटी का स्वाद भी ले चुकें है । हमारे यहां तीज पर गुजिया बनता था कंडाल भर। हफ्तो उसे खाया जाता । जब कोई बच्चा लेते समय ढक्कन ठीक से बंद करना भूल जाता तो चिटियों की पार्टी हो जाती । 

चिटियां एक छोटा छेद कर गुजिया के अंदर घुस जाती और बाहर से पता ही ना चलता । हमने गुजिया निकाल कर खाया और अचानक से कुछ तेज खट्टा सा स्वाद आया । 

हमने जैसे ही ये बात सबको बतायी दोनो दादा लोग हमको चिढ़ा चिढ़ा बताने लगे वो खट्टी चीज चीटी थी । हमने गुजिया फोड़ी और उसमे से दो तीन जिन्दा चिटियां निकल कर भागी । 

गुजिया हम तुरंत ही प्लेट मे वापस रख दिये । जिसे झाड़ फूक छोटका दादा खा गये । तब का दिन है और आज का गुजिया देखते हमे खट्टी चीटी का स्वाद मुंह मे आ जाता है  और तीसरे दिन के बाद उसको ना खातें । 

अब हाल मे हुए एक के बाद एक हुए घटना से लग रहा है कि अब क्या ही अपने आपको शाकाहारी कहें  🙄

November 18, 2023

जस्ट शट अप

 

विश्व कप के अपने पहले ही मैच मे पांच विकेट लेने के बाद  जब मोहम्मद शमी प्रेस कांप्रेंस मे आयें तो एक पत्रकार ने पूछा की पिछले चार मैच मे आपको टीम मे नही लिया गया था तब आपको कैसा लग रहा था । 

शमी बोले अच्छा लग रहा था क्योंकि अपनी टीम जीत रही थी । चाहे मै टीम मे था या नही था टीम जीत रही थी और अपनी टीम को जीतते देखना अच्छा ही लगता है । 

तीन मैच खेलने और चौदह विकेट लेने के बाद एक बार फिर मैच के बाद कमेंटेटर पूछने लगे कि एक चार सौ विकेट  ( टेस्ट वनडे मिला कर ) लेने वाला बेंच पर बैठा था चार मैचो तक तो क्या सोच रहें थें । 

बोले मेरे साथ छ सौ विकेट लेने वाला ( अश्विन) भी बेंच पर बैठा था । मुझे लेने के लिए टीम से किसी छ सौ विकेट लेने वाले को निकाला जाता तब मेरा नंबर आता । इस समय भारत के पास प्रतिभान खिलाड़ियों की कमी नही है । तो किसी ना किसी बड़े खिलाड़ी को बेंच पर तो बैठना ही पड़ेगा । 

अफसोस की  बात है कि शमी के उन फर्जी फैन और खुद को फैन होने का दावा करने वालों को समझ नही आ रही हैं जो खुद शमी ने पहले ही कह दी है । 

हर मैच के बाद मुंह उठाये चले आतें हैं कि पहले चार मैच मे क्यों नही लिया । तुम लोग अपना सड़ा सा मुँह बंद क्यों नही कर लेते । 


November 17, 2023

क्रिकेट की गाॅसिप सोशल मीडिया वाली

 फिल्मी गाॅसिप बहुत सुना होगा आज क्रिकेट की गाॅसिप सुनाती हूँ । 

खिलाड़ियों के चौके छक्को या आउट करने पर स्टैंड मे बैठी उनकी पत्नियों को दिखाना लाज़मी है । शुभमन के चौके छक्के पर सारा को दिखाना भी एक बार समझ आता है । लेकिन श्रेयश अय्यर के शाॅट पर स्टैंड मे बैठी धनश्री को दिखाना , कुछ ज्यादा गाॅसिप हो गया । 

जिन्हे नही पता है उनके लिए धनश्री अपने चहल की पत्नी है । वो एक अच्छी डांसर है और यूट्यूब आदि पर बहुत प्रसिद्ध भी । ये प्रसिद्धी चहल से मिलने से पहले से उनके पास है । वो चहल और कई दूसरे खिलाड़ियों के साथ भी डांस विडियों बनाती रहतीं हैं । 

लेकिन सोशल मीडिया वाले छपरियों की बाई आँख उस दिन फड़कने लगी जिस दिन उन्होने अय्यर के साथ अपना डांस विडियो जारी किया क्योंकि उसमे साथ मे चहल नही थे । बाकि खिलाड़ियों के साथ विडियों बनाते चहल अक्सर साथ होते थें । 

कुछ ही दिनो बाद धनश्री ने अपनी सहेलियों के साथ एक सेल्फी पोस्ट की । वो किसी के घर के अंदर की थी और उस फोटो मे पीछे किनारे पर अय्यर भी जाते हुए दिख रहें थें । अब तो छपरियों की दोनो आंख फड़कने लगी कि अय्यर वहां क्या कर रहें हैं । 

दिनेश कार्तिक और उनकी पहली पत्नी का किस्सा पहले से ही वायरल हो चुका था और वो सबके दिमाग मे था । लोग इन दोनो को लेकर चटर पटर कर कुछ कुछ पकाने लगें । 

लेकिन इसके बाद हुआ उससे बड़ी चीज । धनश्री ने अपनी खिड़की से बाहर सामने कि बिल्डिंग की एक फोटो पोस्ट की । कुछ ही देर बाद अय्यर ने भी उसी तरह की मिलती जुलती फोटो पोस्ट कर दी । 

इसके बाद तो भाई साहब भुचाल आ गया सोशल मीडिया पर । ठुकरा के मेरा प्यार अंजाम देखेगी , मुझे छोड़ कर जो तुम जाओगें , अच्छा सिला दिया तुने मेरे प्यार का टाइप मीम सीम बनने लगे तीनो को लेकर । 

अपनी बहन पत्नी बेटी को किसी और पुरूष से मुस्करा कर बात करना भी भी बर्दास्त ना करने वाले समाज से उम्मीद भी क्या कर सकते हैं । 

खैर असल बात ये थी कि धनश्री और अय्यर की बहन सहेलियां हैं और दोनो का एक दूसरे के घर आना जाना भी । तो धनश्री अय्यर को दोनो तरफ से जानती हैं ।

 घर की किसी फोटो मे अय्यर का आ जाना या साथ मे डांस विडियो बनाना एक सामान्य बात है । बाकि बिल्डिंग वाली फोटो के समय अय्यर देश मे ही नही थें । 

ये सब तो सोशल मीडिया की पागलपंथी थी उस पर क्या ही बोलना। लेकिन दो मैचों के दौरान धनश्री चहल के साथ मैच देखने आयीं थी और अय्यर के चौके छक्को पर कैमरामैन उन्हे दिखा रहा था ।जिसमे कल का भी मैच था  । मतलब कुछ भी । 

पिछले मैच के बाद एक अखबार की हेडलाइन थी कि श्रेयस के इतने लंबे छक्के से डर कर भागीं धनश्री । असल मे उसका छक्का स्टेडियम की छत से टकरा कर वहां गिरा जहां सभी खिलाडियों की पत्नियां बैठी थीं । उसमे रोहित की पत्नी भी थीं लेकिन नाम धनश्री का लिखा गया । 

अभी कल कोई कमेंटेटर या कोई पत्रकार कोई बड़ा नाम था जिसने कहां हां हमे पता है कि श्रेयश एक बहुत अच्छे डांसर है । 

बात कहां की कहां पहुचते जा रही है । उम्मीद है तीनो समझदार हैं और ये सब सम्भाल लेगें । छपरियों को कुछ नया मिल जायेगा वो ये सब भूल उस तरफ मुड़ जायेगें । 









 

October 30, 2023

सत्तर घंटे काम - कम या ज्यादा


1- ज्यादा समय नही हुआ जब आईटी कंपनियों का टाॅप मैनेजमेंट इस बात की शिकायत कर रहा था कि उसके यहां काम करने वाले ऑफिस से जाने के बाद और वीकेंड पर कहीं और भी काम कर रहें है जो नैतिक रूप से सही नही है।

तब लोग उन पर भड़क गयें कि ऑफिस के बाद हम कही और काम करे इससे आपको क्या । हमे ज्यादा पैसा कमाने का मौका मिल रहा है तो आपको क्या । 

अब वही जनता अब हफ्ते के सत्तर घंटे काम करके अपनी प्रोडक्टीविटि बढ़ाने ग्रोथ बढ़ाने की बात पर भड़का हुआ है । हमे लगा लोग पैसा बढ़ाने की बात करेगें पिछली बार की तरह पर लोग इस बार कह रहें हैं कि हम काम क्यों करे इतना देर । 



2- हम बिजनेस वाले परिवार से आते है । हमने तो बिना छुट्टी ,संडे ,होली , दिवाली अपने घर या बोले तो हर बिजनेस , दुकान वाले को इससे भी ज्यादा काम करते  हमेशा देखा है और देख रहें है ।

 इसमे तो कुछ भी अनोखा और नया नही हैं । सब मान कर चलतें हैं ज्यादा पैसे कमाने के लिए अपने मन की करने के लिए इतना काम और मेहनत तो करना ही पड़ेगा । कभी इसके लिए शिकायत करते किसी को नही देखा है । 

3-हर नौकरीपेशा महिला सालों साल से ऑफिस घर बच्चे की तीन तीन फुल टाइम जिम्मेदारियां संभालते इससे कहीं ज्यादा समय काम करते बिताती है । कभी कोई उसकी तरफ देखता तक नही कोई बवाल नही होता कोई सवाल नही करता ।

और आज वही नौकरी पेशा , घर के अंदर आँखे बंद किया पुरूष सिर्फ बात कहने भर से ऐसे भड़क गयें हैं कि जैसे कोई ऐसी बात कह दी  गयी हो जो इस धरा पर हो ही नही रहा था ।  

4- वो किस्सा सुना है जब आदमी भीखारी से कहता है कि भाई इसकी जगह काम करो तो ज्यादा पैसा कमा पाओगे । एक घर गाडिय़ा, इज्जत होगी , परिवार और तुम खुश होगे । तो भीखारी कहता है तो खुश होने के लिए काम करने की क्या जरुरत है मै तो ऐसे भी खुश हूँ।  

अपने गांव छोटे शहरो और आसपास के उन बहुत  सारे लोगों को याद किजिए जो आपसे बहुत पीछे छुट गयें और आप अपनी मेहनत के बल पर उनसे कितना आगे बढ़ गयें । वो लोग जिनसे आप कहतें रहें कि भाई कुछ मेहनत कर लो , पढ़ लो , दिमाग  लगा लो , ढंग का काम कर ले और वो आपकी बात अनसुना कर कहते रहें उनके लिए उतना ही बहुत है । 

किस तरह देखते हैं आप उनका और खुद को , अपने और उनके जीवन का अंतर समझ आ रहा है । जब वो कहतें है कि वो अपनी स्थिति से खुश हैं तो आपको वो सच लगता है । 

5- जितना मुझे समझ आया युवाओं को प्रोत्साहित किया गया है कि बस पहली सफलता के बाद वही रूक मत जाओ । युवा हो जोश है यही समय है और मेहनत करों और अपनी ग्रोथ को अभी ही तेजी से बढ़ा लो । 

ये प्रोत्साहन भी ऐसे व्यक्तित्व से है जिसने खुद ये करके दिखाया हैं । लेकिन अंकिल जी लोग भड़क गये हैं । भाई आप काहें अपना बीपी बढ़ा रहें हैं ऑफिस हाॅवर बढ़ाने की बात नही हुयी है । 

6- बहुत से युवा बड़े शहरों मे काम करने जातें हैं । कुछ का सपना कुछ साल की नौकरी से पैसा जुटा आगे पढ़ाई करने का , कुछ को अपने खर्च के बाद पैसा घर भी भेजना होता है । कुछ को अपना लोन भी चुकाना है ,कुछ को आईफोन जैसी विलासितापूर्ण जीवन जीना है । 

 बड़े शहरों मे ना उनका कोई अपना होता है ना ऑफिस के बाद कुछ करने को उन सबको कहूंगी कि पैसे की बात करो पैसे की । काम सत्तर कर लेगें घंटे के हिसाब से पेमेंट भी करो । 

बाकि बांतें और भी बहुत है पर अभी ही बहुत कह दिया है तो बस करतें हैं । 
















October 17, 2023

रिश्ते और उसके सम्बोधन

 मुंबई आयी तो ससुराल की एक मजेदार बात पता चली कि मेरे चाचा ससुर के बच्चे अपने पापा को चाचा कहतें हैं । शुरू मे उन लोगों से बात करते बहुत कन्फ्यूजन होता था ।  लगा गांव से चाचा आयें हैं उनकी बात हो रही है । 

बाद मे पता चला मेरे ससुर बड़े थे उनके बड़े  बच्चे चाचा कहते उन्हे  देख चाचा के बच्चे भी उन्हे चाचा ही कहने लगें । 

ऐसी ही बनारस मे मेरी एक मित्र अपनी मम्मी को बाजी कहतीं थीं । बचपन से वो नानी के घर रहतीं थीं । उनकी मम्मी सबसे बड़ी, सात छोटे भाई बहन वो सब उन्हे बाजी बुलातें मेरी दोस्त भी वही सीख गयी और उन्हे किसी ने मना भी नही किया । 

हम लोग तो दो तीन सालों तक यही समझते रहें कि वो अपनी बड़ी बहन की बात करतीं रही थीं । तब लगता वाह इसकी बड़ी बहन तो बहुत अच्छी है इसके सारे काम करती है । 

इसी तरह हमारे बचपन मे एक किरायेदार रहते थी उनके बच्चे उन्हे बहु बुलातें थे। शुरू मे लगा कि शायद इनके गांव इलाके मे ऐसा बुलाया जाता होगा । 

फिर एक दिन जब गाँव से उनके ससुर आयें वो भी बहु कहने लगे उन्हे तब पता चला कि उनकी तरफ कुछ ऐसा पुकारा नही जाता । 

वास्तव मे उनके बड़े संयुक्त परिवार मे वो सबसे छोटी बहु थीं । पूरा घर ही उन्हे बहु कहता था तो जेठ जेठानी के बच्चो से लेकर उनके अपने बच्चे भी उन्हें बहु ही पुकारने लगें । 

मेरी नानी मेरे सबसे छोटी मौसी के दोनो बेटो पर बहुत गुस्सा करतीं थीं क्योंकि दोनो अपने दादाजी को नाना बुलातें थें । 

असल मे उन दोनो से बड़ी उनकी एक बुआ की बेटी थी जो उनके साथ रहती थी । वो नाना जी बुलाती तो उन दोनो ने भी सीख लिया ।   

जब छोटी मौसी की शादी हुयी थी तो नाना गुजर चुके थे । इसलिए नानी गुस्सा करती कि अपने दादा को नाना बोल कर इस उमर मे  मेरा रिश्ता उनसे खराब कर रहे हो 😂😂

October 09, 2023

सर्वे और तथ्य

 किसी अन्तर्राष्ट्रीय संस्थान के किये सर्वे तकनीकि रूप से कितने गलत हो सकते है वो इस सर्वे को देख कर समझा जा सकता है । 

हाल मे ही एक अन्तर्राष्ट्रीय संस्थान ने अपने सर्वे मे बताया कि स्कूली शिक्षा के स्तर मे भारत सबसे नीचे से दूसरे पायदान पर है । उसके अनुसार भारत के ग्रामीण इलाके के दूसरी तीसरी कक्षा के छात्र ठीक से किताब मे लिखा पढ़ नही पा रहे थे और दो और दो चार जैसे जोड़ घटाना भी नही कर पा रहे थें । 

ये खबर पढ पर ज्यादातर शहरी भारतीय भी इससे सहमत हो जायेंगें और सरकारी शिक्षा के स्तर को कोसने लगेंगे कि हमारे बच्चे तो दूसरी तीसरी तक फर्राटेदार किताबे पढ़तें है । गणित मे कहीं आगे के प्रश्न हल करने लगते हैं ये बच्चे कैसे नही कर पा रहे हैं । 

पर ज्यादातर लोग इस बात को भूल जाते हैं कि शहरी मध्यम और उच्च वर्गीय बच्चा दो से ढाई साल की आयु मे प्लेग्रूप फिर नर्सरी , एलकेजी , यूकेजी  के तीन साल के बाद पहली फिर दूसरी तीसरी कक्षा मे जाता है । 

दूसरी से तीसरी कक्षा तक उसकी स्कूलिंग के पांच से छः साल हो चुके होते हैं । प्लेग्रूप मे वो अक्षरो को बोलना , नर्सरी मे पढ़ना लिखना उसके बाद शब्दो को जोड़ कर पढ़ना आदि सीख लेता है । तब पांच छः साल बाद फर्राटेदार रिडिंग करता है । 

जबकि सरकारी स्कूल जाने वाले बच्चे खासकर ग्रामीण इलाके के बच्चे छः से सात साल की आयु मे पहली बार स्कूल जाते है पहली क्लास मे जहां उन्हे अक्षर ज्ञान दिया जाता है । 

अब आप सोचिये पहली क्लास मे अक्षर और अंक बोलना सिखने वाला बच्चा दूसरी क्लास या तीसरी मे भी धाराप्रवाह पढ़ कैसे सकता है । 

पांच से छः साल स्कूलिंग किये बच्चो का मुकाबला क्या दो या तीन साल स्कूल गये बच्चो से किया जा सकता है । उसकी भी पांच या छः साल की स्कूलिंग हो जाये फिर उसके स्तर को देखा जाना चाहिए। 


ये ठीक है कि आज भी सरकारी खासकर ग्रामीण क्षेत्र के स्कूलों मे पढाई का स्तर ठीक नही है । अध्यापक छात्र की संख्या कम , वो अनियमित है ,अध्यापको का ठीक से प्रशिक्षित ना होना , बीच मे स्कूल छोड़ देना जैसी हजारो समस्याएं है । लेकिन वो दूसरा विषय और समस्या है । 

शहरों के सरकारी स्कूल की स्थिति इतनी भी खराब नही है । हमारे समय के ना जाने कितने लोग सरकारी स्कूलों से पढ़ कर ही आये हैं । बनारस जैसे शहर मे स्कूल,  अध्यापक,  पढाई सब अच्छे थे उस जमाने मे भी । आज मुंबई जैसे बड़े शहर मे तो सरकारी स्कूलों मे कहीं कहीं क्लास मे प्रोजेक्टर आदि भी लगे हैं। दिल्ली मे भी स्कूल अच्छी हालत मे हैं ।

ऐसे सर्वे आदि मे यदि गलत जगह या इरादे के साथ से सैंपल लिया जायेगा तो ऐसे सर्वे कभी सही नही हो सकते हैं । 

ज्यादा समय की बात नही है जब अपना पड़ोसी पाकिस्तान एक सर्वे के अनुसार हैप्पीनेस इंडेक्स मे हमसे ऊपर था और पेट्रोल के दाम हमसे कम । पर आज उसकी स्थिति ये है कि वहां के नागरिक हर हाल मे वहां से भागने की सोच रहे हैं । 

October 06, 2023

नकरातमकता से बचें

दुनियां के कुछ क्रिकेट स्टेडियम मे दर्शको के बैठने की क्षमता । गुगल के अनुसार 

मेलबर्न आस्ट्रेलिया 100000

लार्ड इंग्लैंड 31180 

पर्थ आस्ट्रेलिया 61266

एडिलेड ओवल आस्ट्रेलिया 53583

सिडनी 80000

ईडन पार्क न्यूजीलैंड 42000

प्रेमादासा और महेन्द्रा राजपक्षे  श्रीलंका 42000  और 40000

बाकि पचास हजार से ऊपर वाले सब भारत मे है और दुनियां के बाकी क्रिकेट मैदान की क्षमता पचास हजार से कम दर्शकों की है । 

कल अहमदाबाद मे खेले गये विश्व कप के पहले मैच मे साढ़े सैतालिस हजार लोग आये थे । वो भी सप्ताह के बीच यानी कामकाजी समय मे इसलिए शायद दर्शक धीरे धीरे मैदान मे आये , अपना काम जल्दी खत्म कर । दुनियां के ज्यादातर मैदान इतने दर्शकों के साथ पूरा या लगभग भरा होता । 

फिर  समझ ना आ रहा है लोग ये सवाल क्यों कर रहें है कि पहले मैच मे दर्शक कहां हैं । भाई अहमदाबाद स्टेडियम की क्षमता एक लाख बत्तीस हजार की है । उसे पूरा भरने के लिए भारत का मैच होना चाहिए। 

कल की दो टीमो मे से एक भी भारत क्या एशियाई टीम भी नही थी उसके बाद भी इतनी बड़ी संख्या मे दर्शक ना केवल मौजूद थे बल्कि ज्यादातर न्यूजीलैंड को सपोर्ट भी कर रहे थे । शायद मेरी ही तरह पिछले विश्व कप के फाइनल मे जिस तरह न्यूजीलैंड को हारा घोषित किया गया उसके कारण । 

कम से कम क्रिकेट के विश्व कप मे भी मेजबान और भारत तथा  पाकिस्तान के मैचों के अलावा ज्यादातर मैदान खाली ही रहता है । फुटबॉल की तरह लाखो दर्शक टीम के साथ आयोजित देश नही जाते । 

कौन है ये लोग कहां से आते हैं । इतनी निगेटिवीटि के साथ  कैसे जीते है । हर बात मे बुराई खोज लेना हर बात मे राजनीति डाल देना कैसे कर लेते हो आप लोग । चैन से सो और खा भी नही पाते होंगे ये लोग । 

जो पत्रकार क्रिकेट का क भी नही जानते जिनको ये भी नही पता की एक टीम मे खिलाड़ी कितने होते है वो भी दर्शकों को संख्या पर सवाल बस इसलिए कर रहे है ताकि अमित शाह के बेटे जय शाह को गरिया सकें । 

माने हद है भाई तुम लोगों क्रिकेट को बख्श दो अपनी गंदी राजनीति और नकारात्मक सोच से । 

October 04, 2023

दवाओं के सहारे जीवन

 

कल रात इमारत मे  किसी की हार्ट अटैक से मृत्यु हो गयी । 65  के करीब थें ।  कुछ साल पहले मुंह के कैंसर से पीड़ित थें पर अब उससे छुटकारा पा चुकें थे । 

बस दो दिन से अपने हाई बीपी की दवा नही खा रहें थें और बीपी बढ़ गया था । कल शाम ही बीपी नापा तो वो बहुत हाई निकला । 

घर आये पड़ोसी से इस बात का अफसोस भी जाहिर किया कि दवा नही खाया तो देखो कितना बीपी बढ़ गया है । कुछ समय बाद ही जब घर मे अकेले थे तो शायद हार्ट अटैक आया और बच नही पायें । 

इन्होनें तो दो दिन दवा नही खाया था । दो साल पहले हमारे फ्लोर के एक बुजुर्ग तो बस रात मे दवा नही खाया और अगली सुबह गुजर गयें। 

 उन्हे बहुत सारी समस्याएं थी , दवा खा खा कर तंग आ गये थे । उस रात जिद्द पकड़ ली कि अब से दवा नही खायेंगे जब मौत आनी है आ जाये । पत्नी बेटे से इस बात को लेकर झगड़ा भी हो गया । 

अगली सुबह ही तबियत बिगड़ गयी अस्पताल ले जाने के लिए बिल्डिंग के बाहर निकलते ही मौत हो गयी । 

हमारी अपनी छोटी चाची पचास से भी कम आयु मे पैरालाइसिस के अटैक का शिकार हो गयी बस दो तीन दिन दवा छोड़ने पर । हाई ब्लडप्रेशर और और पैरालाइसिस उनका फैमली इतिहास था । 

यही कारण था कि चाचा उनकी दवा का हमेशा ध्यान रखते थे । भाई दूज पर मायके गयी और दवा को लेकर लापरवाही बरत दी । तीन दिन बाद घर आयी तो दवा फिर से ले लिया था लेकिन शरीर के लिए देर हो चुका था । 

मंदिर मे सुबह पूजा करते गिर गयी । वो तो चाचा को फैमली हिस्ट्री उनकी पता थी तो तुरंत समझ गये । सीधा स्पेशलिस्ट हास्पिटल गये और डाॅक्टर को खुद बता दिया कि पैरालाइसिस का अटैक है । 

समय से इलाज मिल गया और लंबी फिजियो थेरपी से  धीरे धीरे इतना रिकवर कर लिया कि आराम से चल फिर सकती है घर और अपना काम कर लेती है । लेकिन उलटे हाथ से कुछ पकड़ नही सकतीं और कहीं भी अकेले नही जाने दिया जाता है । 

अब आधा दर्जन दवा चार पांच सालों से रोज खा रहीं । कुछ कुछ महीनों मे हाथ पैर मे अकड़न और दर्द की समस्या अलग से । 

एक महीने पहले मेरी कामवाली अचानक स्टेशन पर चलते हुए एकदम से बेहोश हो कर पटरियों पर गिर गयी । बहुत ज्यादा चोट आ गयी थी एक महीना लगा उसे ठीक होने मे । 

डाॅक्टर ने बताया सुगर बहुत ज्यादा हाई हो गया था । उसे अपनी बीमारी के बारे मे पता ही नही था । वो तो शुक्र था कोई ट्रेन नही आ रही थी और लोगो ने उसे तुरंत पटरी से हटाया । 

दो दिन से काम पर आ रही है मैने उसे ढेर सारी हिदायते दी । परहेज को लेकर और दवा के प्रति लापरवाही ना करने को लेकर।  

तो भाई दवाओं और स्वास्थ्य को लेकर लापरवाही जरा भी ना बरते । अपने लिए नही तो अपने अपनों का सोचें । ठीक है मौत तो जब आनी  है तब आयेगी ही लेकिन ये सोच कर कोई बीच सड़क से चलना या नदी मे छलांग तो नही लगाता ना । 

तो ख्याल रखिये अपना भी और अपने अपनो का भी । 

October 01, 2023

इस अधर्म को कौन रोके




अपने देवता के साथ ऐसा  व्यवहार करने का महान कार्य अपना हिन्दू उर्फ सनातन धर्म ही कर सकता है । तस्वीरे देखिये,  जिस गणपति को दस दिन भक्तिभाव से पूजा और रोते खुश होते नाचते गाते विदा किया । उसे किस दुर्दशा मे समुद्र किनारे छोड़ आये हैं । 

कल बिटिया बीच की सफाई के लिए गयी थीं जो दृश्य देखा वो उनसे भी बर्दास्त नही हो रहा था । गन्दगी की पराकाष्ठा देख बहुत दुखी हुयी और  देवता की मूर्तियों की ऐसी हालत कि ईश्वर मे विश्वास ना होने के बाद भी उन्हे आश्चर्य रूपी दुख हो रहा था ।

समुद्र अपने पास कुछ ना रखता सब लौटा देता है नतिजा विसर्जन के दूसरे दिन मुर्तियां रेत पर टुटी फूटी खराब हालत मे पड़ी थी । बड़ी मूर्तियों को जेसीबी मशीन से तोड़ा जा रहा था ताकि उन्हे आसानी से निस्तारण किया जा सके। 

ये देख उनकी एक मित्र तो रोने लगी क्योंकि उसके घर गणपति आये थे और एक दिन पहले वो विसर्जन के लिए आयी थी । गणपति से उसकी श्रद्धा प्रेम के कारण ये सब उसके लिए असहनीय हो रहा था । 

सालों से पर्यावरण प्रेमी से लेकर समझदार वर्ग कहता आ रहा है कि मूर्तियों का आकार छोटा किया जाये और उन्हे मिट्टी से बनाया जाये । लेकिन श्रृद्धा कम बाजारवाद मे डूबे पूजा पंडाल इसको मानने को तैयार नही होते है । बीस से चालीस फिट ऊंची मूर्तियां बनायी जाती हैं । 

यही सारे मंडल तब चुपचाप सरकारी फरमान को मान रहे थें जब कोविड के कारण मूर्ति का आकार सिर्फ पांच फिट निर्धारित था । लेकिन उसके बाद सब अपने ढर्रे पर वापस आ गया । 

जिस धर्म के मानने वाले ही जब ऐसा व्यवहार अपने ही देवता की मूर्ति से करे तो उस धर्म को क्या किसी और से खतरा हो सकता है । 

खैर हम अ-धार्मिक लोगों का क्या बिटिया सब पूजनियों को कचरे की तरह साफ करने का सहयोग कर घर आ गयीं । 




September 29, 2023

तीसरी कसम


 जब सी फेस पर टहलने जाती थी तो इनसे मिलती थी । चारो पैरो मे इनके जूतें से हर किसी की नजर इन पर उठ ही जाती । अपनी नौकरानी के साथ आते बस एक दिन ही अपने मालिक के साथ इन्हे देखा ।

 नौकरानी भी टहलाने के बजाये एक बेंच पर बैठ कर मोबाइल चलाती और ये उसके बगल मे बैठे आते जाते अपनी नस्ल वालों को देख बीच बीच मे भौंक लेतें । 

एक दिन देखा अपने से चार पांच गुना बड़े पर भौके जा रहें है । बदले मे उसने भी भौकना शुरू किया । इन्हे गुस्सा आ गया ये बेंच से कुद पड़ें और तेज से भौकने लगे । शुक्र है कि बेल्ट मे थे तो उसके पास तक नही जा सके , थोड़े दूर से ही चिल्लाते रहें । 

बड़े वाले के साथ उसके मालिक थे दो यंग लड़का लड़की । दोनो आगे जाने के बजाये एक सुरक्षित दूरी पर अपने कुत्ते का बेल्ट पकड़ खड़े हो इस दृश्य का मजा लिये जा रहें है ।

अब छुटकु के नौकरानी को गुस्सा आ गया । उसके शान्ती से मोबाइल देखने में खलल पड़ रहा था । वो भी गुस्से से उठी अपने  छुटकु को गोद मे उठाया और आगे चली गयी । 


हम पीछे से आते हुए ये सब देख रहे थें । इतने मे देखा कि अच्छे खासे भरे बदन की नौकरानी का कुर्ता उनके पृष्ठ भाग मे फंस गया है । सोचा जल्दी से आगे बढ़ कर उसे बता देतीं हूं । छुटकु के चक्कर मे मेरी कई बार उससे बात हुयी थी । 

फिर सोचा कि बतायें की ना बतायें क्योकि एक विडियो मे देखा था कि किसी लड़की के ब्रा की पट्टी दिखे तो आंटी बन कर उसे टोकना नही है । दिख रहा है तो दिखने देना चाहिए उसे बताना रूढ़ीवादी सोच और आंटीगीरी है । 

समझ ना आ रहा था कि यही नियम कुर्ते के पृष्ठ भाग मे फंसने पर लागू होगा की नही । फिर लगा आगे जा रही महिला लड़की नही मेरी उमर की आंटी ही है तो हमारे जमाने वाली है । निश्चित रूप से ये चाहेगी  मेरी ही तरह कि इसे कपड़े को ठीक करने के लिए बता दिया जाये । 

इतना सोचते विचारते हम उसके पास तक आ गये थें । तो हमने कहा रिस्क ले लेते है अब आंटी की ऊमर मे आ कर आंटीगीरी तो की ही जा सकती है । 

तो उसे बताने के लिए उसके पास तक गयें कि धीरे से बोल दूंगी ताकि कोई और ना सुने । अपने कान से इयरफोन भी निकाल दिया ताकि बातचीत कान बंद होने के कारण तेज से ना हो और वो धन्यवाद कहे तो मै मुस्कराहट के साथ जवाब भी दे दूं । उसे ना लगे कि नौकरानी है तो मैने भाव ना दिया । 

उसके पास गयी और धीरे से कहा अपना कुर्ता ठीक कर लो । उसने मेरी तरफ देखा नाक सिकोड़े , भौवे ऊपर कर बुरा सा मुँह बनाते बोली  " मै क्यों अपना कुत्ता ठीक करूं वो अपना कुत्ता ठीक करे । उनका कुत्ता ज्यादा भौक रहा था । वो टहल रहे थें आगे क्यों नही गये ----

पहले तो हम हक्का बक्का हुए फिर बात समझ आ गयी कि उसने कुछ का कुछ सुना है । उसे बीच मे टोकते हमने कहा कि मै कुत्ते नही कुर्ते की बात कर रही थी । 

लोग अपनी दुनियां , सोच , विचारों और समस्याओं मे उलझे रहते हैं । इतने मे आप उन्हे जा कर कुछ कहें तो वो सुनते वो है जिसमे वो उलझे हैं या जो वो सुनना चाहते है  । नतिजा सही बात समझे बिना आप पर भौकना शुरू कर देते है । 

उसी दिन हमने अपनी तीसरी कसम खायी कि आज के बाद किसी के ब्रा की पट्टी दिखे , किसी का चेन खुला हो या किसी का कुर्ता गलत जगह फंस गया हो हम अब किसी को ना बतायेंगे ।

 पहली और दूसरी कसम फिर कभी बताते हैं । 

#तीसरीकसम 

December 07, 2022

लैंगिक भेदभाव


 हाल ही मे न्यूजीलैंड की पीएम जैसिंडा अर्डर्न और फिनलैंड की पीएम सना मरीन से एक संयुक्त प्रेस कांप्रेंस मे एक पत्रकार पूछ बैठा कि लोग कह रहे है कि आप दोनो इसलिए मिली क्योकि आप दोनो हमउम्र है और दोनो एक जैसा सोचती है । इस तरह के सवाल पर दोनो महिला पीएम हैरान हो गयी ।

अर्डर्न ने उलटा पत्रकार से सवाल किया कि क्या ओबामा और  जाॅन , न्यूजीलैंड के पूर्व प्रधानमंत्री , जब मिले थे तब भी ये सवाल हुआ  था कि वो हमउम्र है इसलिए मिल रहे है । हम इसलिए मिले है क्योंकि  हम दो देशो के प्रधानमंत्री है । 

ये नया नही है जब महिलाओ के साथ चाहे वो किसी भी पद पर हो उनके साथ लैंगिक भेदभाव किया जाता है उनकी बातो को गम्भीरता से नही लिया जाता और उनके स्त्री होने को उनके पद और कार्य से अलग नही किया जाता और ये सब लगभग दुनियां के हर कोने मे हो रहा है । 

सालो पहले जब पाकिस्तान की विदेश मंत्री हिना रब्बानी भारत आयी थी तो यहां कि मिडिया उनके पर्स, कपड़ो , सुंदरता पर बात ज्यादा कर रहा था बजाये विदेश नीति के । जबकि शायद ही  कभी ऐसा हुआ हो कि किसी दूसरे देश से पुरुष मंत्री के सूट शर्ट जूतो पर उनके ब्रांड पर चर्चा हुयी हो । काम दोनो एक ही कर रहें है । 


सिर्फ राजनीति ही नही लगभग हर क्षेत्र की यही हालत है । याद होगा पत्रकार राजदीप सरदेसाई सानिया मिर्जा से पूछ बैठे थे कि आप सेटेल कब होंगी । सानिया ने पलट कर जवाब दिया ग्रैंड स्लैम जीत लिया , डबल मे रैकिंग नंबर वन हो गयी , दस साल से ज्यादा से खेल रही हूँ,  शादी हो गयी अब और कितना सेटेल होना है । वास्तव मे पत्रकार महोदय पुछना चाह रहें थे कि वो बच्चे कब पैदा करेंगी । 

आप ही सोचिए कोई  महिला शादी के बाद बिना बच्च पैदा किये कैसे सेटेल कहला सकती है । जबकि  आपने कभी नही सुना होगा कि किसी पुरुष खिलाड़ी से ये पूछा गया हो कि आप बच्चे कब पैदा करेगे या सेटेल कब होंगे । 

महिलाओ के साथ लैंगिक भेदभाव मे उनकी बातो को गम्भीरता से ना लेना , उनकी शादी-ब्याह, बच्चे की हर समय चर्चा के बाद नंबर आता है उनका चरित्र हरण करना । 

किसी महिला पत्रकार की पत्रकारिता पसंद नही आयी तो कार्टूनिस्ट ने उनकी वर्जीनिटी पर सवाल वाला कार्टून बना दिया । पुरुष पत्रकार को रीढविहिन कहा जाता है उसके वर्जीनिटी,  चरित्र पर सवाल नही किये जाते । रीढविहिन कहना उसके कार्य पर प्रहार है लेकिन स्त्री की बात आते ही हमला कार्य पर नही उसके चरित्र उसके स्त्री होने पर किया जाता है । 

आम जीवन मे हर आम आदमी ये भेदभाव रोज करता है । हम सड़क पर रोज सैकड़ो लोगो को खराब ड्राइविंग करते दुर्घटना होते देखते है लेकिन दो चार महिने मे एक बार भी किसी महिला को खराब ड्राइविंग करते किसी पुरुष ने देखा । फटाफट उसका विडियों फोटो लेकर वायरल  किया जाता है या पोस्ट लिख कर उपहास उड़ाया जाता है । रोज सैकड़ो पुरूषो को खराब ड्राइविंग करते देखने की बात भूल जाते सब । 

सड़क दुर्घटनाओ के आकड़े निकाल कर देख लिजिए दुर्घटना करने वाले  सब पुरुष ही होगें महिलाए नाम मात्र की होगीं । लेकिन कहा ये जायेगा कि महिलाएं खराब ड्राइविंग करती है । मजेदार बात ये है कि ये कहने वाले पुरूष उस मौलाना पर हँसेगें जिसने महिला पायलट होने के कारण विमान मे सफर करने से इंकार कर दिया था । जबकि दोनो ही जगह एक ही स्तर की बात हो रही है । 

बचपन से सिखाया पढ़ाया गया है कि महिलाए अक्षम है कमतर है ।  घरो मे लोगों के जुबान पर रहता है हर छोटी बात पर , अरे तुम औरतों से हो क्या सकता है , तुम लेडिज को कुछ आता भी है । वही बाहर भी आ जाता है किसी महिला को कुछ करते देखते । वो उसके काम पर कमेंट करने की जगह उसके महिला होने पर   कमेंट  करने लगते है । 

और ये सब सिर्फ कम पढे लिखे लोग , छोटे शहरो के लोग , पुरुषवादी सोच रखने वाले ही नही सब करते है । पढे लिखे समझदार भी , फेमिनिस्ट सोच रखने वाले भी । कभी कोई जानबूझकर कर करता है तो कभी आदत है , तो कभी अनजाने मे कर देते है । कुछ टोकने पर इस लैंगिक भेदभाव को समझ जाते है और कुछ समझाने पर भी नही समझते । आप किस वर्ग मे है खुद सोच लिजिए।  

वैसे  एक खास प्रकार  का लैंगिक भेदभाव पुरूषो के साथ भी होता है इस पर भी कभी बात करेंगे । 

November 29, 2022

दृश्यम 2- फिल्म समीक्षा



जिन लोगो को गांधी और उनकी जयंती से समस्या है उनके लिए सलाह है कि दृश्यम थ्री फोर के प्रड्यूसर बन जाये ।  कुछ सालो बाद दो और तीन अक्टूबर का जिक्र आते लोगो को ये फिल्म पहले याद आयेगी ना की गाँधी जयंती । 

इस फिल्म की टिकट रविवार के लिए मिलना आसान नही है पता था लेकिन लोग सोशल मीडिया पर फिल्म के रहस्य खोले जा रहे थे तो मजबूरी मे टिकट खरीदना पड़ा । हमने कहा ज्यादा से ज्यादा क्या ही होगा गर्दन दुखेगी  इतने आगे की सीट पर , इस फिल्म के लिए सह लेगें थोड़ा । 

घर बैठ कर न्यूजीलैंड का मौसम का हाल देखते हुए समय बिताने से तो अच्छा ही है । एकदम कार्नर की सीट मिली लेकिन ऐसी फिल्म जो  स्क्रिन से नजर हटाने ना दे उसमे कार्नर सीट पर बैठ कर रोमांस की कौन सोचेगा । तब तो और भी नही जब फिल्म का सुबह का शो भी हाउसफुल हो । 

भाई साहब फिल्म की तो बात ही क्या करे । अब आप ये सोचिये कि एक सस्पेंस वाली फिल्म की मूल कहानी दर्शक को पहले से पता है । एक हत्यारा है और  पुलिस को उसे पकड़ना है । वो बस ये देखने आया है कि फिल्मकार ने उसे बनाया कैसा है । उसके बाद भी अंत मे फिल्म की पूरी टीम दर्शक को चकित करके वाह , गजब , तालियाँ वाला रिएक्शन निकलवा लेती है । 

  कहानी फिर से शुरू कैसे होगी ,  ऐसी फिल्म के दूसरे पार्ट मे दिखायेगें क्या का जवाब पहले ही दृश्य मे उस  मिल जाता है  । फिल्म एकदम वही से शुरू होती जंहा खत्म हुयी थी । 

सबसे मजेदार ये है कि पहले ही दृश्य मे फिल्म दर्शकों को एक सुबूत दे देती है और उन्हे जासूस बनने के लिए मजबूर कर देती है । दर्शक सोचता है कि पुलिस से ज्यादा सुबूत उसके पास है पहले वो केस हल कर लेगी  । 
आखिर सालो साल सीआईडी और एकता के डेलीसोप मे बहुओ को जासूसी करते  देखने के बाद  इतना असर तो आता ही है ।  लेकिन दर्शक जो सोचता है बाद मे पता चलता है कहानी उससे अलग है । इससे दर्शक का रोमांच और बढ़ जाता है । 

पता नही क्यो लोग फिल्म के पहले हिस्से को धीमा बोल रहे है  मुझे तो बिल्कुल नही लगा । बल्कि इंटरवल होने पर लगा कि अरे फिल्म आधी हो भी गयी । क्योकि अंत मे पता चलता है उन एक एक दृश्य का क्या मतलब था । पहला हिस्सा ध्यान से देखा हो तब अंत मे रहस्य खुलने पर आप कहते है अच्छा तो वो ये था , तो उसका मतलब ये था । 

फिल्म अच्छी बनी उसके लिए पूरी टीम प्रयास दिखता है।  कहानी अच्छी  , उस पर लिखा स्क्रीनप्ले अच्छा ,  निर्दशन अच्छा , फिर अभिनय अच्छा अंत मे एडिटिंग अच्छी। कहानी के लिए श्रेय हिन्दी मलयालम दोनो वर्जन को जाता है । दक्षिण का रीमेक बनाना हो तो ऐसा बनाना चाहिए।  

"परिवार के लिए सबकुछ करूंगा" वाली फिल्म मे "अपने तो अपने होते है" वाला मेलोड्रामा इमोशन की भरमार नही है , जबरदस्ती का रोमांस और  गाना बजाना नही है और ना ही डर जाने और बहुत स्मार्ट होने की ओवर एक्टिंग।  

अक्सर किसी फिल्म का दूसरा भाग पहले भाग से कमतर होता है लेकिन मुझे ये फिल्म पहले भाग से बीस ही लगती है । मै अपराधियों के हिरोकरण वाली फिल्मे नही देखती , वो पसंद नही । लेकिन विजय सालगांवकर अपराधी नही है भाई , ऐसे के साथ तो मै भी ऐसा ही करती , ऐसा मैने बिटिया को समझाया जब वो कहने लगी विजय गलत है ।