mangopeople
मेरा देश महान सौ में से निन्यानबे बईमान
July 01, 2022
देशी खान-पान और आज का मोटापा
June 30, 2022
समय पर बीमारी की पहचान है जरूरी
हफ्ते भर पहले छोटी बहन के बॉस के पंद्रह वर्षीय बेटे की ब्लड कैंसर से मौत हो गयी | दो साल पहले ही कैंसर के बारे में पता चला बाकी तमाम इलाज के बाद इस अप्रैल उसका आखिरी इलाज के रूप में बोनमैरो ट्रांसप्लांट हुआ था | रक्षा बंधन पर घर आते ही इंफेक्शन हुआ और मौत हो गयी |
कैंसर और दूसरी तमाम जानलेवा बीमारियों में ज्यादातर मौत इस कारण होता हैं कि बिमारी का पता ही देर से चलता हैं | मेरे चाचा ससुर को भी उन्नीस साल पहले ब्लड कैंसर हुआ थे लेकिन वो पहले चरण में ही पकड़ा गया , नतीजा वो कैंसर से ठीक भी हो गए और आज भी जीवित हैं | बस निमोनिया के इलाज के लिए अस्पताल में उस समय भर्ती हुए थे और कोई ख़ास समस्या नहीं थी | लेकिन डॉक्टर ने शरीर के अंदुरुनी लक्षणों को देखते उनकी जाँच कराई और बीमारी का पता चल गया |
जानलेवा क्या कई बार सामान्य बीमारियों को समझने में भी डॉक्टर को सालों लग जाते हैं | मेरी मौसी को पैर में दर्द रहता था और बार बार बुखार आता था | साल बीत गया डॉक्टर समझ ही नहीं पा रहें थे कि क्या हुआ है | एक डॉक्टर ने कह दिया कि घुटने जाम हो रहें हैं सुबह टहलना शुरू कीजिये |
वो तो शुक्र हैं मेरी वजह से अनजाने में उनकी बिमारी का पता चल गया | अपनी एक मित्र को दिखाने एक हड्डी के डॉक्टर के पास गयी थी | वहां एक बारह साल की बच्ची आयी थी जिसका पैर के फोड़े का ऑपरेशन होना था | ऊपर से एकदम सामान्य दिख रहा था पैर , फोड़ा उसकी हड्डियों में था | उसे देख मैने मौसी को उसी डॉक्टर को दिखाने के लिए कहा , तब पता चला मौसी को बोन टीबी हैं | देरी का नतीजा ये हुआ कि तब तक उनकी आधी हड्डी गल चुकी थी | सालभर इलाज के बाद वो ठीक हो गयी |
कई बार ऐसा भी होता हैं कि समस्या कहीं और होती हैं और लक्षण कुछ और ही दिखाई देते हैं | ऐसे में अनुभवी या उस विषय का विशेषज्ञ ही बिमारी पकड़ पाता हैं | जिस मित्र को लेकर हड्डी के डॉक्टर के पास गयी थी उन्हें बाइस तेईस की उम्र में जोड़ो का दर्द हो रहा था | इलाज के बाद जोड़ो का दर्द ठीक हुआ तो फिर पता चला पीलिया हो गया हैं लिवर में समस्या आ गयी हैं |
एकदिन वो अपनी बहन को लेकर दांत के डॉक्टर के पास गयी तार लगवाने । वो खुद भी एक साल से दांतों में तार लगवाई हुयी थी लेकिन दूसरे डॉक्टर से | उस डॉक्टर ने जब इन्हे बोलते देखा तो उसे कुछ ठीक नहीं लगा बोली पहले आपके तार की जाँच करती हूँ | जाँच करते ही उसने पूछा क्या तुम्हे जोड़ो का दर्द और लिवर में समस्या हैं | मित्र के हां में जवाब देते उसने बताया ये सब तुम्हारे गलत तरीके से दांतों में तार लगाए जाने के कारण हैं | तार को इतना ज्यादा टाइट किया गया हैं कि तुम्हारे पुरे मसूड़े हिल गए हैं | अभी इसका इलाज नहीं हुआ तो इसके बाद तुम्हारे किडनी और दिल पर इसका असर होता | तीन चार घंटे का उनका ऑपरेशन करके मसूड़ों को सेट किया गया और वो ठीक हुयी |
सोचिये दांतों में गलत तरीके से लगा तार पूरे शरीर के जरूरी अंगो पर असर डाल सकता हैं कोई कभी सोच भी नहीं सकता था | जमाने पहले मेरी मम्मी के दिल की धड़कने इतनी बढ़ गयी थी कि पास खड़ा आदमी सुन ले | घर में लोग हार्ट के डॉक्टर के पास चक्कर लगाते रहें महीनो तक , अंत में एक सरकारी डॉक्टर ने पकड़ा की उन्हें थायराइड हैं |
उस जमाने में माइग्रेन आज की तरह आमबात नहीं होती थी | मेरे मम्मी की सर दर्द पर डॉक्टरों ने उन्हें प्रयोगशाला का चूहा बना दिया था | जिस डॉक्टर को जो समझ आता वही इलाज दवा शुरू कर देता | यहाँ तक की मम्मी को मनोचिकित्सक के पास भी ले गए पापा और वो गधा , तुम्हे सास से परेशानी हैं , क्या तुम्हे पति परेशान करते सवालों पर ही अटका रहा | दवा के नाम पर शरीर और दिमाग को सुस्त करने वाली गोली दे देता | उससे मम्मी और ज्यादा बीमार महसूस करती |
आसपास ना जाने कितने लोगों को देखा हैं जिनकी बिमारी बड़ी हो गयी या बहुत ज्यादा दर्द , परेशानी झेला क्योकि बिमारी ही किसी डॉक्टर को समझ नहीं आ रही थी | सही समय पर सही बीमारी और उसका सही इलाज मिल जाए तो ना जाने कितने लोगों की जान बच जाए |
June 29, 2022
धूर विरोधियों का एक होना
रूस युक्रन युद्ध एक ऐसा मामला था जीसने देश के अंदर ही नही देश के बाहर के धूर विरोधियो को एक ही तरफ साथ खड़ा कर दिया । जिसकी कल्पना भी हाल के समय मे कोई नही ईर सकता था ।
जब खबर देखी की यूक्रेन और रूस मामले में भारत पाकिस्तान संयुक्त राष्ट्र में एक लाइन पर आ गए तो इस खबर ने दिमाग के डायबिटीज को इतना बढ़ाया की बस लगा अब तो सीधा भगवान से मुलाक़ात होगी | मतलब समझ रहे हो आप दोनों जानी दुश्मन एक मुद्दे पर सहमत हो गए दोनों एक ही पक्ष की तरफ खड़े हो गए | जो देश कल तक अमेरिकी सैनिक अड्डा बना हुआ था जिसके सैनिक भाड़े के लड़ाकों की तरह अमेरिका से पैसे लेकर उसका युद्ध लड़ रहें थे वो ना केवल हमारे दोस्त रसिया का दोस्त बन गया बल्कि अपने दोस्त अमेरिक के दुश्मन रूस का दोस्त बन गया |
मुझे शुरू से दिमागी डायबिटीज हैं ज्यादा मीठी मीठी बातें और प्रेम मोहब्बत ना बर्दास्त होती | दिमाग का शुगर लेवल बढ़ जाता इससे | बताइये किसने सोचा था कि दुनियां में ये दिन भी आएगा जब अपने वामपंथी और दक्षिणपंथी किसी मुद्दे पर एक जैसा राग अलापेंगे | मतलब एकाध वामपंथी साम्यवादी रूस को भले गलती से तानाशाह बोल दे लेकिन अंदर से तो यही मनाते हैं ना कि रूस चीन का इकबाल दुनियां में बुलंद हो | वो दिन भी आये जब वामपंथियों का भारत समेत दुनियां पर राज हो |
वो रूस के साथ खड़े हो तो समझ में भी आये लेकिन अपने दक्षिणपंथी उनको ढ़ेला भर की समझ नहीं हैं रूस यूक्रेन मामले की , जो कुछ महीने पहले तक चचा ट्रंप की जीत के लिए दुआ मांग रहे थे अमेरिकी बने पड़े थे वो रूस के पक्ष में खड़े हो गये | बस इसलिए की भारत सॉरी मोदी ने रूस के खिलाफ वोट नहीं किया । तो बस अंधभक्त पुतिन काका के भी भक्त बन गए | रात दिन वामपंथियों को गरियाने वाले एक वामपंथी देश के साथ खड़े हो गये |
दक्षिणपंथी वामपंथी का ये भरत मिलाप क्या कम था जो हिंदूवादी मुस्लिमवादी दोनों कट्टर भी एक हो गए | मुस्लिमत्व में डूबे मौलानाओ को भी कहाँ पता था कि दुनियां के नक़्शे में यूक्रेन रूस कहाँ हैं लेकिन वो भी रूस के साथ खड़े हो गए क्यों , क्योकि जब अमेरिका और उसके यार फलीस्तीन , इराक , सीरिया , अफगानिस्तान पर हमला किये तो किसी ने उन्हें नहीं रोका था | फिर अमेरिका का दुश्मन रूस हमारा दोस्त हुआ | हम भी उसके साथ खड़े होंगे उसके हमले को जायज बताएँगे भले यूक्रेन में रहने वाले लाखो मुस्लिम मारे जाए बेघर हो कर शरणार्थी बन उसी पश्चिमी देश में भागे जिसके खिलाफ वो रूस के साथ खड़े हैं |
बताओ इतना मीठा किसको हजम होता | अगर इस तरह सभी एकमत को लड़ाई झगड़ा नफरत छोड़ देंगे तो जिंदगी , सोशल मिडिया का स्वाद ना खराब हो जायेगा | मैं कह रहीं हूँ कुछ ना रखा इस प्रेम मोहब्बत में जीवन का असली मजा लड़ाई झगड़े और नफ़रत से जहर उगलने में हैं | वो शुरू करो तो इस सोशल मिडिया के होने का कोई मतलब हैं वरना क्या फायदा ऐसे प्लेटफार्म का जहाँ अपने अंदर का गुस्सा नाराजगी फ्रस्टेशन भी जहर के रूप में उगल ना सके |
अब जा कर लोगो ने जीवन से मिठास गायब की और फिर जहर उगला शुरू कर दंगा फसाद किया । अब सब सामान्य लग रहा है ।
June 28, 2022
कहानी घर घर की
मुंबई मे हमारी एक मारवाड़ी मित्र है । उनका संयुक्त परिवार मे रह रहे अपने देवर देवरानी से ३६ का आंकड़ा था । कारण भी बड़ा गजब है ।
बताती है अपने प्रेम विवाह के बाद ससुराल आयी तो समझ मे आया घर मे और रिश्तेदारो मे उनके पति के बजाये देवर को जरुरत से ज्यादा भाव दिया जाता है ।
वजह है वो बचपन से ज्यादा प्रतिभावान था उनके पति के मुकाबले । पति एलएलबी कर चाचा के नामी फर्म से जुड़े लेकिन देवर सीए बन उससे तीन गुना ज्यादा कमाता । पति का बहुत सामाजिक मिलनसार होना और देवर के एक नंबर के स्वार्थी होने का कोई फर्क किसी को नही था ।
इनका विवाह के छ महीने बाद ही देवर की भी लव मैरिज हुयी । वो बस छ महीने मे पुरानी हो गयी और देवरानी नयी नवेली का भाव पाने लगी । उस पर से एक नामी स्कूल मे टीचर थी तो उसकी भी कमायी अच्छी । जबकि हमारी मित्र शादी के बाद काम छोड़ दी ।
शादी के बाद वो दोनो हनीमून पर बीस दिन के लंबे टूर पर यूरोप गये जबकि हमारी मित्र हनीमून पर मालद्वीप ( उनके हिसाब से छोटी बेकार जगह ) गयी थी वो भी सिर्फ हफ्तेभर के लिए । बीस दिन बाद लौटी तो गुजरात अपने गांव गये रस्मो के लिए तो नयी नवेली का आवभगत तब तक चलता रहा ।
उसके बाद घर आयी और शादी के बस डेढ़ महीने बाद ही देवरानी खुशखबरी सुना दी । हमारी मित्र ये सुन शाॅक उसके बाद दुःख , चिंता फिर डिप्रेशन की स्टेज तक की यात्रा कर आयी । उनके हिसाब से हम दोनो घर के बड़े थे शादी भी हमारी पहले हुयी थी । बहु भी पहले हम थे , हिसाब से बच्चा भी हमे पहले देना था । वो पति पत्नी ने तय भी किया था कि एक साल से ज्यादा देर नही करेंगे । लेकिन बाजी देवर देवरानी मार ले गये । अभी तक उन दोनो का पहले वाला ही आवभगत खत्म ना हुआ था उस दिन से दूसरा वाला भी उनका शुरू हो गया ।
बताती है मैने पुरी प्लानिंग की थी कि अपनी पहली शादी की सालगिरह पर सेकेंड हनीमून पर किसी अच्छी जगह जायेंगे फिर घरवालों को खुशखबरी देगे । जिन्हे नही पता है उन्हे बता दू कि ब्याह हुआ और कोई परिवार की प्लानिंग नही की बस ऐवे ही प्रेगनेंट हो गये अब आधुनिक कपल ऐसा ना करता ।
बकायदा सेकेंड हनीमून प्लान किया जाता है बच्चे के जनम का समय तय किया जाता है फिर खुशखबरी दी जाती है । बोलती है उन्हे तो विश्वास ना हुआ इतने पढ़े लिखे दोनो इतनी जल्दी बच्चे की प्लानिंग कर लेगे ।
फिर भी उन्होंने हार नही मानी और पति को मनाने प्लान करते और उसका रिजल्ट आते चार महीने का अंतर आ गया । जब घर मे ये खबर सुनाया तो उतना खुश कोई नही हुआ । पहले पोता पोती होने की खबर अलग ही बात होती है । दूसरे मे वो बात नही रह जाती है । बल्कि सास को एक बार ये लगा की दो दो प्रेगनेंट बहु कैसे संभालेगी , दूसरी वाली को थोड़ा रूक जाना चाहिए था ।
खैर देवरानी को बेटी हुयी सभी लोग खुब खुश हुए । खुब धूमधाम से पार्टी हुयी । पहली पोती के नाम पर खुब उसका लाड होने लगा । लेकिन मित्र के ऊपर दबाव बढ़ गया कि भाई सबको एक ही बच्चा करना है तो अब घर मे एक भाई से बेटी तो आ गयी अब तुम बेटा कर दो तो परिवार पूरा हो ।
मित्र को अपनी जगह वापस पाने का उपाय भी यही लगा कि बेटा हो जाये तो वो अपना ऊंचा स्थान फिर पा जायेगी । घर मे उनको कुछ तो भाव मिलेगा । चार महीने बाद उनको भी बेटी ही हो गयी ।
अब जैसा की अपना भारतीय समाज है पहली बेटी खुशी खुशी स्वीकार होती है लेकिन परिवार मे दूसरी बेटी .... हा ठीक है कोई बात नही बेटी है लेकिन बेटा होता तो अच्छा होता वाला भाव सबके मन मे था । उनके बेटी होने की पार्टी भी बड़ी नही रखी गयी कि अभी चार महीने पहले ही तो सब हुआ है अब दुबारा की क्या जरुरत है । पहले जन्मदिन पर कर लेगे ।
ये सब यही नही रूका , पहला बैठना पहला चलना , दौड़ना , बोलना बतियाना सब देवरानी की बेटी के साथ ही होता रहा । अब उनके पास एक माँ का दिल आ चुका था । उनका दर्द बढ़ता गया की उनकी बेटी से कम लाड हो रहा है और देवर देवरानी से दुश्मनी बढ़ती गयी ।
दोनो लोग दस बारह साल दुश्मनो की तरह साथ रहे फिर पिता के गुजरते देवर अपना हिस्सा ले माँ को इन लोगो के पास छोड़ अलग हो गया ।
आलिया की प्रेग्नेंसी पर दीपिका कैटरीना पर मीम देख ये सब याद आ गया 😂😂
फूड डिटेक्टिव
एक सेठ जी सुस्ती ,कमजोरी ,थकान , भूख ना लगने आदि तमाम समस्या के साथ वैद्य जी के पास पहुंचे | वैद्य जी बोले दवा तो दूंगा लेकिन बड़े नियम और परहेज के साथ दो महीना खाना होगा | तमाम समस्या से परेशान सेठ जी मान गए |
बोले पहली पुड़िया रोज सुबह दो किलोमीटर दूर स्थिति नदी पर पैदल जा कर सूरज उगते देखते खाना होगा | दूसरी पुड़िया नाश्ते में फलों के साथ खाना होगा | तीसरी पुड़िया दोपहर ठीक एक बजे सादा खाना खाने के बाद खाना होगा | तीसरी शाम सात बजे हल्के खाने के साथ घंटे भर बाद एक पुड़िया गर्म दूध मेवे के साथ और उसके एक घंटे बाद सोना | दो महीने में सेठ जी भले चंगे हो गए और वैद्य जी की दवा के गुणगान लगे | सेठ की ठीक कैसे हुए आप समझ ही गए होंगे |
एक कार्यक्रम देखा था फ़ूड डिडेक्टिव | उसमे बता रहें थे कॉर्न फ्लैक्स बनाने वाली कम्पनियाँ कॉर्न अर्थात भुट्टों के दानो का छिलका निकाल देते हैं अर्थात उसका फाइबर | फिर वो उसमे से उसका वो ऊपरी हिस्सा निकाल देते हैं जिसमे की आयरन होता हैं | अंगूर को गुच्छे से तोड़ते हैं तो देखते होंगे हरे रंग का एक रेशा डाली में लगा रह जाता हैं बिलकुल वैसे ही भुट्टे में भी होता हैं जिसमे सारी कृपा अर्थात आयरन होता हैं | उसे निकाल देते हैं क्योंकि वो कॉर्न फ्लैक्स को खट्टा और ख़राब कर देता है | बचा गया गुदा रूपी बस कार्बोहाइटेड जो हम कॉर्न फ्लैक्स में खाते हैं |
फिर आयरन कहाँ से आता हैं उसमे | आपने यूट्यूब पर बहुत से वीडियों देखें होंगे जिसमे लोग दिखाते हैं कि कॉर्न फ्लैक्स में इतना आयरन हैं कि चुम्बक से खींचा चला आ रहा हैं | कभी सोचा हैं पालक ,सेब आदि में भी आयरन होता हैं वो तो चुम्बक से नहीं चिपकता फिर कॉर्न फ्लैक्स के आयरन में इतना क्या ख़ास हैं | जी हां सही अंदाजा लगा रहें हैं उसमे खाने योग्य लोहे का चुरा मिलाया जाता हैं |
ये कार्यक्रम देखते हमने कॉर्न फ्लैक्स मंगाना छोड़ दिया था लेकिन लॉकडाउन ने रसोई से इतना जी उबीया दिया कि वापस से इसे मंगाना शुरू किया | कम से कम कोई सुबह तो ऐसी हो जब आँख खुलते नाश्ते में क्या बनेगा की टेंशन ना हो | बाकि उसे सेहतमंद बनाने के लिए वैद्य जी का तरीका तो हैं ही दूध , फल , मेवा |
June 27, 2022
फ्यूजन या कंफ्यूजन
दो अलग तरह के खानो को मिला कर कुछ नया बनाना या पारंपरिक खानो को अलग रूप देने में कभी कभी वो फ्यूजन नहीं कंफ्यूजन ज्यादा लगता हैं | अपनी कहूं तो मैं इडली को सांभर की कटोरी में डाल कर खाती हूँ , चम्मच में सांभर से तर इडली सांभर के साथ मुंह में जाती हैं | | अब आसक्रीम स्टिक वाली इडली आ गयी है अब इसे सांभर की कटोरी में डूबा कर खायेंगे तो वो स्वाद आने से रहा |
वही चाइनीज खाने को ले लीजिये तो यहाँ उसको इतना चटपटा बना कर भारतीयकरण कर दिया गया हैं कि हम लोगों को वही भाता हैं | असली चाइनीज खाना तो हमें अच्छा ही ना लगे और चीनियों का भारत में बना चाइनीज खाना ना बर्दास्त हो |
शुरू में मुंबई आयी तो मुझे यहाँ की सांभर और डोसा के अंदर का मसाला पसंद ही नहीं आता | बनारस का अपना चटपटा स्वाद होता हैं । यहाँ तो लगता सांभर में चीनी मिला दी हैं और डोसे में मसाला आलू की जगह आलू का सादा चोखा भर दिया हैं | धीरे धीरे यहाँ के स्वाद की आदत लगी जिसमे मराठी तीखापन और गुजराती मीठापन आपस में घुला मिला हैं | लेकिन स्प्रिंग डोसा , मैसूर डोसा , पावभाजी डोसा , चिप्स डोसा , चॉकलेट डोसा आदि कभी नहीं भाया | डोसा तो अपने पारंपरिक रूप में ही सही लगा |
मैं अपने घर में बनाये पिज्जा में पिज्जा सॉस के साथ कभी कभी सेजवान चटनी भी डाल देतीं थी शुरू में | लगता कितना सादा बेस्वाद हैं चटनी से तो मजा आया उसमे | बाद में चीज आदि दो तीन तरह का मिक्स करना शरू किया बाजार में मिलने वाले दो तीन तरह के हर्ब डालना शुरू किया तब जा कर कुछ स्वाद आना शुरू हुआ | लेकिन सेजवान चटनी वाला फ्यूजन भी मजेदार था |
समोसे में आलू के अलावा किसी चीज की कल्पना भी नहीं कर सकते थे लेकिन मुंबई में चाइनीज समोसा पहली बार में ही भा गया | उसमे मैदे को पतला बेलते हैं भरने के लिए चाइनीज में पड़ने वाली सब्जियां होती हैं और उन्हें तलने से पहले मैदे के पतले से घोल में डूबा का फिर तलते हैं | नतीजा वो बहुत कुरकुरा क्रंची बनता हैं खस्ता होने की जगह | वैसे भूलना नहीं चाहिए कि भारत में जब समोसा आया था तो उसमे कीमा भरा जाता था , उसमे आलू तो हमने भरना शुरू किया था |
अभी गणपति पर ठोकवा बनाया था हमारे यहाँ तो उस पर कोई डिजाइन नहीं बनाते हैं लेकिन बिहारी ठोकवे में डिजायन देखती थी तो इसबार मैंने भी कुछ ट्राई किया | फिर लगा क्या वही पारंपरिक डिजाइन बनाये कुछ और गणित के रेखाचित्र बनाते हैं | अगली बार पहले से तैयारी रखूंगी तो कुछ फूलपत्ती बनाउंगी | बिटिया गणेश जी बनाकर डाल दी | एक पर पहाड़ नदी वाला सीनरी भी बनायीं थी |
मतलब कभी कदार खाने के साथ कुछ नये प्रयोग करते रहना चाहिए क्या पता कब कुछ नया स्वाद हाथ लग जाये ।
June 26, 2022
कुछ नया सीखना और हमारा पूर्वाग्रह
जब भरतनाट्यम कॉलेज जाना शुरू किया तो कुछ महीने बाद ही एक पारसी महिला भी वहां सीखने आई , मुझे सुन कर आश्चर्य हुआ ये क्या और कैसे सीखेंगी | क्योकि किसी कॉलेज में सिर्फ डांस करना नहीं सिखाया जाता बल्कि ढेर सारा ग्रंथीय ज्ञान भी दिया जाता हैं | बच्चो की बात और होती है पहले से कोई भावना नही होती है तो वो सभी चीजे आसानी से सीख लेते है ।
लेकिन बड़े होने पर पहले से भरा ज्ञान और सोच हमारे कुछ नया सीखने के आड़े आता है । तो पता था कि मुंबई जैसे जगह में पले बढे के लिए यह एक मुश्किल काम होगा | थोड़ा बहुत संस्कृत पढ़े हम लोग के लिए संस्कृत के सैकड़ों श्लोकों को याद करना और समझना ही मुश्किल हो रहा हैं इनके लिए तो और भी मुश्किल होगा |
एक सवाल अपने कॉलेज में अपने मैम से भी किया , ये तो धार्मिक कहानियों को भी नहीं जानती ये कैसे कृष्ण, राधा , शिव आदि भगवानों के भावों को कैसे पकड़ेंगी उनकी कहानियों पर कैसे नृत्य करेंगी |मेरी चिंता सही साबित हुए और उनके लिए उन श्लोको को पढ़ना तक मुश्किल था |June 25, 2022
विदेशी विद्यार्थी या कुछ और
मुंबई आने के बाद करीब 2003- 4 में कलीना यूनिवर्सिटी में राजनीतिशास्त्र से एम ए में प्रवेश ले लिया ताकि मुंबई में अकेले आने जाने और शहर को देख समझ सकूँ | पहला दिन कॉलेज का सबके परिचय का दिन था | एक व्यक्ति उसका नाम और उसका परिचय ने क्लास में सभी को चौका दिया | वैसे उसके देखते ही सब पहले ही चौक गए थे |
उसका कहना था वो अमेरिकी सेना में कमांडर हैं और भारत में अध्ययन के लिए दो साल के लिए यहाँ आया हैं | आपको इतने पर ही हँसी आ रही होगी | फिर पता चला उसके साथ उसकी पत्नी और दो बेटे भी साथ आये थे भारत और सोचिये रहते कहाँ थे वो, होटल ताज वो भी कोलाबा गेटवे वाले ताज में |
उसे छोड़ कर क्लास में सभी का मोबाईल साइलेंट पर रहता था | उसी का नतीजा था कि जब एक बार गेटवे और झावेरी बाजार में बम ब्लास्ट हुआ तो क्लास में बैठे बैठे हमें इसकी जानकारी मिली क्योकि उसकी पत्नी का फोन आया और वो सबसे पहले घबराया हुआ भागा | वैसे उसे दिन सभी को तुरंत छुट्टी दे दी गयी थी |
वो केवल भारतीय संविधान के क्लास में आता जो सबके लिए अनिवार्य था बाकी क्लास मेरे उससे मैच नहीं करते थे | संविधान वाले प्रोफ़ेसर भी बहुत अच्छे थे, लेक्चर के समय वो जितना हो सके विद्यार्थियों को उसमे शामिल करते उन्हें बोलने का मौका देते | उस क्लास में वो क्लास टॉपरों के निशाने पर रहता था , जिसमे ज्यादातर लड़कियां थी | उसकी आदत थी वो जब मौका मिलता अमेरिका की बढ़ाई करने लगता और भारत को नीचा दिखाने का प्रयास करता | लडकिया तार्किक और तथ्यों के साथ उसका जवाब देतीं तो ज्यादातर उसकी बोलती बंद हो जाती |
दो चार मुद्दे तो मुझे आज भी याद हैं | जब उसने भारत में वर्गभेद और दलितों के मुद्दों को उठाया तो जवाब में काले अमरीकन से भेदभाव , गुलाम प्रथा की याद दिलायी गयी | बताया गया वर्गभेद हर समाज में होता हैं और हर देश उस ख़त्म करने ले लिए काम करता हैं | हमने तो उन्हें बराबरी पर लाने के लिए आरक्षण भी दिया हैं तुम्हारे संविधान में कालों को बराबरी पर लाने के लिए क्या हैं | उनके हमारे आजाद हुए समय का अंतर और गुलामी ख़त्म होने कालों को मतदान का अधिकार का अंतर और ना जाने क्या क्या | बहुत कुछ याद दिलाया गया उसे |
एक बार उसने कहा अमेरिका ने दुनिया को रिपब्लिक अर्थात गणतंत्र होना दिया हैं | लड़कियों ने फाटक से जवाब दिया भारत उस जमाने में गणतंत्र था जब अमेरिका का नामो निशान नहीं था और ये भारत के लिखित और प्रमाणित इतिहास में हैं | जिन्हे नहीं पता उनके लिए भारत का लिखित और प्रमाणित इतिहास सिकंदर के भारत आने से शुरू होता हैं | उसके पहले का इतिहास लिखित नहीं हैं , अब लिखा नहीं गया या नष्ट हो गया या कर दिया गया ब्ला ब्ला पर आप खुद अपने में बहस कर लीजिये मेरा आज का विषय नहीं हैं | भारत के प्रमाणित इतिहास में गणतंत्र राज्य पांचाल मल्ल विदेह आदि थे | वैसे उन्होंने भी चाणक्य की कोई ख़ास मदद नहीं की सिकंदर के आक्रमण के समय |
खैर वो इस बहस में इसलिए हार जाता था क्योकि ना तो वो ज्यादा जानकार था और ना वो यहां पढ़ने आया था | सबको पता था वो यहाँ जासूसी करने आया था | बाकि प्रोफेसर जिस क्लास में वो नहीं होता उस पर खुल कर बोलते थे | मुंबई यूनिवर्सिटी में और मुंबई में विज्ञानं और उससे जुड़े बहुत सारे विषय में गोपनीय रिसर्च होते हैं | ज्यादातर को शक था वो उनकी ही जानकारी के लिए आया था | मतलब वो डायरेक्ट उसमे खुद नहीं घुसने वाला था उसका काम वहां पहुँच सकने वालों से जानपहचान और दोस्ती करना और उस माध्यम से काम करना रहा होगा , ऐसा सब अंदाजा लगाते थे | वैसे ऐसी राय देने वालों में मैं भी थी |
June 24, 2022
खबर या प्रचार
एक संपादक जी के पास एक आदमी आ कर बताता हैं कि उसके मोहल्ले में एक डांस बार खुला हैं जो निहायत ही अश्लील हैं , आप उसके खिलाफ कुछ अपने अख़बार में लिखिए | संपादक जी अगले दिन खुद उस बार को देखने ( इसे मजे लेने पढ़िए ) जाते हैं और खूब विस्तार से अखबार में प्रकाशित करतें हैं कि वह बार कहाँ हैं और कितना अश्लील हैं |
दो दिन बाद वही आदमी मिठाई ला कर संपादक जी को खिलाता हैं | संपादक जी पूछते हैं बार बंद हो गया ,तो वो जवाब देता हैं क्यों बंद होगा आपने उसकी अश्लीलता का वर्णन इतने विस्तार से लिखा था कि वहां जबरजस्त भीड़ बढ़ गई और मैं तो उसी बार का मालिक हूँ |पच्चीस साल से भी ज्यादा पुराना ये किस्सा हैं लेकिन आज भी प्रासंगिग हैं | खबर ऐसी बनी की अखबार और बार दोनों का काम हो गया |
ये संपादकों को सोचना हैं की वो खबर देने के नाम पर इसमें कितना और कैसे सहयोग कर रहें हैं इसको प्रचारित करने में |
June 23, 2022
जयपुरी चुनरी और लहरिया साड़ी
जब ब्याह हो रहा था तो फूफा जी की पोस्टिंग राजस्थान में थी | बुआ वहां से कॉटन सिल्क का चुनरी प्रिंट का पीच कलर का एक सूट लायी थी मेरे लिए | उसका रंग डिजाइन और कपडे की सॉफ्टनेस इतनी अच्छी थी कि वो मेरी फेवरेट बनी |
उसके ख़राब होने के बाद सोचा कभी राजस्थान गयी तो दो तीन ऐसे सूट ले आऊँगी | लेकिन जब सालों बाद जयपुर गयी तो छोटी सी बिटिया की तबियत ख़राब हो गयी , बाजार जाने का समय और हिम्मत ना हुआ | उसके बाद जयपुर की लहरिया वाली चुन्नी भी बड़ी पसंद आयी |
चुनरी डिजाइन पहले से पसंद था तो सिल्क की दो दो साड़ियां थी शादी के समय की | एक लाल चुनरी बनारस वाली जिसको पहनते बाप बेटी जय माता दी बोलने लगते उस चक्कर में उसे छोड़ दिया | दूसरी ससुराल से चढ़ी हरे आंचल वाली लाल चुनरी । जो ससुराल वाली थी वो ज्यादा पहना भी नही और फट गयी |
बीस साल की शादी में ब्याह के बाद आजतक सिर्फ एक साड़ी खरीदी थी भाई की शादी में | अब शादी वाली कई साड़ियां कटवा के सूट , लहंगा और गाउन बनवा लिया तो बहुत दिनों से एक साड़ी और चुनरी वाला एक जयपुरी सूट सलवार खरीदने का सोच रही हूँ लेकिन खरीद ही नहीं पा रही हूँ | तो मन की इच्छा वही कही दबी पड़ी है । इसका कारण ये भी है कि साड़ी और सूट बहुत कम ही पहन रही हूँ तो लगता है शौक मा खरीद तो लू और एक दो बार पहन भी लू लेकिन उसके बाद वो बस आलमारी मे बस ऐसे ही टंगी रहेगी ।
June 22, 2022
चूहे को जुकाम है
चूहे को जुकाम हैं , नहीं कोई बाल कविता नहीं हैं सच में चूहे को जुकाम हुआ था तभी मेरी तुलसी दो दिन में सफाचट कर गया | पहले भी नयी लगी तुलसी खा जाता था तो कुछ दिन तक तुलसी रात में कमरे में रख लेती थी | ठीक ठाक बड़ी हो गयी थी तो उन्हें बाहर ही ग्रिल में छोड़ दिया | फिर एक दिन अचानक देखा ऊपरी भाग गायब हैं | उस दिन से फिर रात में कमरे में रखना शुरू किया | पर एक दिन फिर भूल गयी और पूरी तुलसी जी चूहे के पेट में समा गयी |
तुलसी जी का जाना तो उतना दुखदायी नहीं था उससे ज्यादा कष्टकारी था मेरा मनीप्लांट को गमले से काट देना | दस पंद्रह फिट तक हो चूका घना मनीप्लांट एकदम गमले से पूरा का पूरा काट गया | जड़ से ही काट जाता तो कुछ बचता ही नहीं था | पहली बार जब काटा तो एकदम रोना ही आ गया था | उसके बाद चार गमलो में धीरे धीरे लगा दिया कि एक तरफ से काटे कुछ तो बचा रहे |
छः महीने पहले भी काट गया था तो सारे लंबी डालियों को पानी में छोटा छोटा करके लगा दिया | चार महीने में उन सब में अच्छा जड़ आ गया तो वापस गमले में लगा दिया | अब उसने फिर तुलसी जी के साथ मनी प्लांट काट दिया | बस ऐसी ही हरकते मेरा पशुप्रेम समाप्त कर देती और फिर केक रख कर दो चार चूहों का हैप्पी बर्थडे करवा देतीं हूँ | कायदे में रहो तो किसी को कोई हानि ना हो लेकिन बेकायदा हरकत पर अहिंसक व्यक्ति भी अहिंसा त्याग देता ।
एक चूहे महाराज किसी और के हिंसा के शिकार हुए थे और मेरे गमले में सुस्त से पड़े थे इनकी ये हालत देखते बाहर से कौवो ने इन पर आक्रमण कर दिया | हमलों के जवाब में भागा भी नहीं जा रहा था उनसे | जीवे जीव आहार प्रकृति का नियम हैं लेकिन फिर भी देखा ना गया तो कौवो को भगा दिया लेकिन सुबह तक इनका भी काम तमाम ही हुआ |
June 21, 2022
सारी नसीहत रोक बस स्त्री पर
जमाना बड़ा ख़राब हैं , लड़कियों के लिए बाहर निकलना सुरक्षित नहीं हैं बेहतर हैं रात में लड़कियां , महिलाएँ घरो में रहें बाहर ना निकले | पुरुष उन्हें बाहर परेशान करते हैं तो लड़कियां स्कूल कॉलेज भी ना जाये | लडकिया खजाने की तरह हैं उन्हें तिजोरी में बंद करके रखे | लड़कियां पर्दा करे , घुघंट करे , बुर्का पहने तभी वो लोगों की बुरी नज़रों से सुरक्षित हैं |
ये सब कितना अलग हैं , उससे जो कुछ समय पहले पढ़े लिखे , समझदार , उदारवादी , स्त्री विमर्श करने वाले , नारीवादियों द्वारा सुल्ली , बुल्ली बाई कांड के बाद कहा जा रहा हैं कि सोशल मिडिया पर लड़कियां महिलाऐं अपनी तस्वीरें ना लगाए , अपनी फोटो यहाँ लगाना खतरनाक हैं | लोग महिलाओं की तस्वीरों का गलत उपयोग कर सकते हैं | महिलाऐं लड़कियां खुद को सोशल मिडिया पर सिमित रखे , अपनी तस्वीरें पोस्ट पब्लिक ना करे |
ये सब नसीहत महिलाओं को ही देना , उन्ही को सिमित और छुपने के लिए कहना उन्हें दंड देने जैसा नहीं हैं क्या | अपराध पुरुष करे और सजा नसीहतें महिलाओं को दिया जाए ये कौन सा आधुनिक सोच हैं भाई | वास्तव में ये उसी पुरातनपंथी सोच का एक हिस्सा हैं तो बलात्कार जैसे पुरुष के अपराध को , स्त्री की इज्जत मान सम्मान के लूट जाने से जोड़ देता हैं |
आप एक बार सोच कर देखिये की अगर पुरुषो की फोटो लगा कर कहा जाता की गधे हैं , जागोला हैं , कुत्ते हैं आओ इनकी बोली लगाओ तो क्या इसे पुरुषो की इज्जत से जोड़ कर देख फोटो ना लगाने की नसीहत दी जाती | क्या ये कहा जाता कि पुरुषो का चीरहरण किया गया | एक मशहूर कार्टूनिस्ट ने इसे महिलाओं के ऑनलाइन चीरहरण से जोड़ दिया |
कोई घटिया बद दिमाग पुरुष , समूह , किसी विचारधारा के लोग किसी महिला के लिए कुछ सोच ले , सार्वजनिक रूप से कुछ कह दे तो क्या इतने भर से किसी महिला का सम्मान चला जाता हैं वो भरे बाजार नग्न होने जैसा हैं | किसी का सम्मान उसके अपने ख़राब बुरे कृत्य से जाता हैं किसी और के उस पर कीचड़ उछालने या घटिया सोच से नहीं |
कोई भी समाज हो , वर्ग हो स्त्री के खिलाफ होने वाले अपराध पर उसे पीड़ित की जगह अपराधी बनाने की ही सोच रखता हैं | पहले ये जानकर किया जाता था अब जाने अनजाने में पढ़े लिखे भी करते हैं और रूढ़िवादियों को मौका मिल जाता हैं |
वास्तव में ये बुल्ली सुल्ली बाई कांड एक गंभीर अपराध था जिसके खिलाफ पहली बार में ही सख्त कार्यवाही किये जाने की जरुरत थी | पहली बार में ही सायबर सेल और कोर्ट में इसके खिलाफ शिकायत की जाती तो ऐसे अपराध दुबारा नही होते उन्हे होने से रोका जा सकता था ।
June 20, 2022
आस्था की परख
शेल्डन सिर्फ नौ साल में ही हाई स्कूल में पढ़ने वाला तेज बुद्धि का विशेष बच्चा हैं | विज्ञानं पढ़ने वाला शेल्डन ईश्वर में विश्वास नहीं रखता लेकिन उसकी माँ एक बहुत ही धार्मिक महिला हैं | जब उनके करीबी की सोलह साल की बेटी की दुर्घटना में मृत्यु हो जाती हैं तो उनका विश्वास ईश्वर से कुछ हिल जाता हैं |
पहले वो घर में ही प्रार्थन की जगह बना और ज्यादा ईश्वर की आराधना में लग जाती हैं ताकि ईश्वर के प्रति उनक आस्था और मजबूत हो लेकिन कुछ काम नहीं बनता | वो इस मौत को गॉड प्लान अर्थात ईश्वर की मर्जी और लीला कहती हैं लेकिन खुद उन्हें उस बात पर यकीन नहीं होता हैं | उसके बाद जब उस दुःखी माँ को सांत्वना का कार्ड भेजते रिवाज के अनुसार ये लिखना चाहती हैं कि चिंता न करो कि मृत आत्मा यहाँ से बेहतर जगह अर्थात ईश्वर के पास हैं तो उनके हाथ कांप जाते हैं और वो ये नहीं लिख पाती | कहतीं हैं भला एक बच्चे के लिए अपने माँ बाप के साथ पास से बेहतर जगह और कौन सी हो सकती हैं , ईश्वर की जगह भी नहीं |
ये टूटती आस्था उन्हें तोड़ने लगती हैं और वो बहुत दुःखी हो जाती हैं और हर तरह की प्रार्थना छोड़ देतीं हैं | शेल्डन के लिए उसकी माँ ही दुनियां में सब कुछ हैं क्योकि उसके तेज बुद्धि उसे बाकियों का दुश्मन बना चुकी हैं | उसे माँ का दुःख देखा नहीं जाता और उन्हें सांत्वना देने के लिए उनके ईश्वर में विश्वास को फिर से बनाने का प्रयास करता हैं |
कहता हैं आपने कभी सोचा हैं अगर इस यूनिवर्स में ग्रेविटी अगर एक प्रतिशत भी कम होती तो हम अंतरिक्ष में बिखरे कण से ज्यादा कुछ नहीं होते | यदि ग्रेवेटी एक प्रतिशत ज्यादा होती तो दुनिया एक ठोस पत्थर होती जीवन नहीं | सब कुछ इतना सही और परफेक्ट हैं कि लगता हैं जैसे किसी रचनाकार ने ही इसको बनाया हैं | ईश्वर में आस्थाहीन अपने बच्चे के इस प्रयास से माँ अपने प्रति उसके प्यार की गहराई को महसूस कर आराम पाती हैं |
ईश्वर में आस्थावान कई बार जीवन में घट रही घटनाओ के कारण ईश्वर के प्रति अपने विश्वास को टटोलता हैं या उससे दूर होता हैं लेकिन अंत में उसे नशे की तरह वापस अपना लेता हैं क्योकि उसके बाहर उसे राहत नहीं मिलती | ईश्वर में आस्था सुविधानुसार होती हैं | खुद झूठ बोल रहें , पाप कर रहें , लोगों को धोखा दे रहें , लोगों के साथ गलत कर रहें हैं तो कण कण में रहने वाला सबके कर्मो का हिसाब रखने वाला , सबको हर समय देखने वाला ईश्वर गायब हो जाता हैं | नरक ,जहन्नुम का द्वारा , ईश्वर या क़यामत के दिन की सजा ,अगला जनम ख़राब होना सब भूल जाता हैं |
क्योकि ईश्वर आस्थावानों के दिमाग में होता हैं जब अपना लाभ , फायदा , धन लालच हो तो दिमाग तुरंत ईश्वर वाला कमरा बंद कर देता हैं और बिना डर लोग हर तरह का पाप करते हैं | बाकि सामान्य दिनों में ईश्वर फिर सबको सब जगह दिखने लगते हैं | सोचिये कि सभी आस्थावान वास्तव में अपने अपने ईश्वर में पूरा विश्वास रखते तो ये दुनिया स्वर्ग से कम ना होती पाप , गलत , अपराध से मुक्त होती | इस दुनियां में इतना दुःख , दर्द , अभाव , अपराध इसलिए ही हैं क्योकि लोगों को ईश्वर में ठीक से पक्का विश्वास नहीं हैं |
वैसे जाते जाते शेल्डन के उस तर्क का भी जवाब दे दूँ की दुनियां को जीवन जीने लायक सही परफेक्ट बनने में लाखो साल लगे हैं ये कुछ दिनों का काम नहीं हैं | बिंग बैंग से जल और वनस्पति आने तक , पहले अमीबा से डायनासोर आने तक और जानवर से इंसान बनने का सफर लाखो करोड़ो सालों का हैं | यदि कोई रचनाकार होता तो ये दुनिया छः , आठ , दस दिन में वैसे ही बनती जैसा कि विभिन्न धार्मिक पुरस्तकों में वर्णित हैं |