May 18, 2022

छुटपन की शरारतें

एकदम बचपन का जीवन संयुक्त परिवार में बिता हैं | दादी बाबा बड़े  पापा मम्मी और उनके चार बचे , चाचा चाची उनकी एक बेटी , एक छोटे चाचा और दो बुआ  , मम्मी पापा और हम चार भाई बहन ,हम सब साथ रहते | जैसा कि हर संयुक्त परिवार  में होता हैं जीतने लोग उतने तरीके का सबका व्यवहार | 


बड़का दादा जहाँ शांत था वही छोटका दादा एक नंबर का शैतान , खुराफाती और खिसियानी बिल्ली | दोनों दादा  स्कूल जाते और छोटके दादा की खुराफात वहां भी शुरू रहती ,बल्कि स्कूल में कुछ और शैतानियां सीखना शुरू हो गया | जब दोनों थोड़े बड़े हुए तो कुछ स्कूली खुराफात हमारे घर तक आने लगे | उस समय मैं बहुत छोटी थी शायद पहली में रही होंगी | 


घर  आये कुछ खुराफात मजेदार होते तो कुछ  बस पूछिये मत | उस समय बच्चो के बीच एक मजेदार खेल चला जैसे एक से बीस तक गिनती गिनो साथ में कुट लगा के  |  एककुट दोकुट तीनकुट अंत में वो बीसकुट बन जाता था | ऐसे ही एक और था एक से बीस तक की गिनती बोलो तुइया लगा के | एकतुइया , दोतुइया और अंत में बीसतुइया बन जाता | 


उस समय बच्चो के  लिए कोई मोबाईल ,वीडियोगेम  या टीवी पर कार्टून चैनल तो होते नहीं  थे | बच्चो के मनोरंजन और खेलने कूदने के नाम पर बस भाई बहनो के साथ खेलना और ऐसे ही मामूली शब्द पहेलियों  , बाते ही हमारे लिए मजेदार होती थी | हम बच्चे अंत में बीसकुट और बीसतुइया बोल कर ही  बहुत खुश हो जाते थे | 


ऐसे ही एक दिन छोटके दादा स्कूल से आये और बोले आज नया सीख कर आये हैं तुम बोलो इसको मजा आयेगा |  हम ख़ुशी ख़ुशी तैयार हो गए और बोलने लगे अभी के अभी बताओ | बोले शरीर के अंगो का नाम लो साथ में सड़ी लगाओ | हम मासूम से बिना सोचे समझे शुरू हो गए पैरसड़ी , पेटसड़ी , हाथसड़ी , कन्धासड़ी ,  पीठसड़ी | 


दादा बीच में टोकते बोले अरे तुम बहुत देर करोगी ऐसा करो सिर्फ चेहरे वाले अंग लो | हम फिर शुरू हो गए कान , नाकसड़ी ,  गालसड़ी ,  आँखसड़ी , भौ ---- स्यापा ये क्या बोल दिया छी छी ,  थू थू ,  राम राम  |  यहाँ  हम वो शब्द बोल कर हैरान परेशान कि हमारे मुंह से ये क्या निकल गया वहां दोनों दादा लोग हँस हँस लोटपोट हुए जा रहें थे | साथ में मुझे चिढ़ाते जा रहें थे तुमने गाली दी  | 



हमारे बनारसी संस्कारी घर में मेरे बाप चाचा को भी गालियां देने की मनाही थी |  घर के बच्चे तो छोडो पडोसी का बच्चा भी गाली दे दे तो पापा चाचा लोग उन्हें भी डांट देते थे  | ऐसे घर की मुझ मासूम पर क्या बीत रही होगी समझ ही सकते हैं |  तभी छोटे चाचा  आ गए हमने झट दोनों दादा लोगों  शिकायत उनसे लगाते पूरा किस्सा सुनाया |   


पहली बार में तो उनकी भी हँसी निकल गयी |   छोटके दादा को उन्होंने डांट लगायी लेकिन हँसते हँसते |  और मैं छुटकी सी रुआंसी सा मुंह बनाये सोचती रही भला इसमें मजाक  और हँसी वाली बात क्या हैं   | 

4 comments:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 19.5.22 को चर्चा मंच पर चर्चा - 4435 में दिया जाएगा| चर्चा मंच पर आपकी उपस्थिति चर्चाकारों का हौसला बढ़ाएगी
    धन्यवाद
    दिलबाग

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  2. सुंदर संस्मरण।

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  3. बेहद सुखद गुजरा हमारी पीढ़ी का बचपन

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  4. वो भी क्या दिन थे।
    सुंदर संस्मरण।

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