May 16, 2022

दान और कन्यादान

एक कथा सुनी हैं जब परशुराम में एक झटके में  समस्त धरा  दान कर दी तो एक समस्या खड़ी हो गयी कि अब वो रहेंगे कहाँ | क्योकि जो चीज दान कर दी जाती हैं उसका दुबारा उपयोग दान करने वाला व्यक्ति नहीं कर सकता  | उसे वो चीज सदा के लिए त्याग करनी पड़ती हैं उससे अपने संबंध ख़त्म करने पड़ते हैं | कहा जाता हैं कि तब परशुराम ने फरसे से समुन्द्र में मारा और वहां एक नयी  धरती बाहर आ गयी परशुराम वही निवास करने लगे | उस धरती को आज  हम केरल के नाम से जानते हैं | 


इसी प्रकार दान को लेकर एक और कथा की जब राजा हरिश्चंद्र ने  भी विश्वामित्र को  अपनी समस्त संपदा दान कर दी तो उसके बाद दक्षिणा देने या दान देने के बाद संकल्प छुड़ाने के पैसे भी उनके पास नहीं थे  | दान दिए हुए संपदा से वो एक कौड़ी भी नहीं ले सकते थे क्योकि उससे उनका अधिकार ख़त्म हो गया था | तो और पैसे के लिए उन्हें अपनी पत्नी बच्चे के साथ खुद को भी बेचना पड़ा |  


दान सिर्फ संपत्ति धन का नहीं होता व्यक्तिय का भी दान किया जाता हैं | कई जगह ये भी कहा गया हैं कि चाणक्य को चन्द्रगुप्त का  दान  चन्द्रगुप्त की माँ ने ही किया  था | पिता थे नहीं और उनकी माँ पुत्र को पालने में असमर्थ थी | दान किये गए चन्द्रगुप्त कभी मुड़ कर माँ के पास नहीं आये | अपने पुराने परिवार से उनका पूर्णतया संबंध विच्छेद हो गया | 


दान पाने के बाद व्यक्ति उस वस्तु , धन संपदा , मनुष्य का कैसे उपयोग दुर्पयोग करे या उसको बर्बाद कर दे ये उसकी मर्जी होती | दान देने वाले का इसमें कोई हस्तक्षेप नहीं होता हैं | क्योकि दान देने के बाद उस वस्तु व्यक्ति से आपका कोई मतलब नहीं रहा जाता हैं | 


पुराने जमाने में जब लोग कन्यादान करते थे तो लगभग यही स्थिति लड़कियों की होती थी | ससुराल वाले उसके साथ कैसा भी व्यवहार करे उसे कैसी भी स्थिति में रखे लड़की के माँ बाप का कोई हस्तक्षेप नहीं होता था | अपनी ही बेटी से उनका अधिकार ख़त्म हो जाता हैं  और बेटी का अपने माता पिता और घर पर | 


कथा तो सुनी होगी कि  जब सति बिन बुलाये अपने पिता के यज्ञ में चली जाती हैं तो वहां पिता द्वारा ही उनका अपमान होता हैं | दान की गयी बेटी अपने ही घर में मेहमान हो जाती हैं जो बिना निमत्रण आ नहीं सकती | 


जो संबंध रहते हैं तो इस कारण से बचे होते हैं कि साथ फेरे में एक वचन पति पत्नी को ये भी देता हैं कि वो वक्त जरुरत पर पत्नी को उसके सम्बन्धियों से मिलाने ले जाएगा | अर्थात ये पति और ससुराल पर निर्भर था कि वो  लड़की को मायके भेजे या ना भेजे लड़की की इच्छा का कोई मोल नहीं होता हैं  | तभी डोली में जा रही जहाँ वहां से  अर्थी में ही  लौटना वाली सीख बेटियों को दी जाती थी | मतलब अब मुड़ कर इस  घर में आने की ना सोचना भले वहां मौत हो जाए | 


ज़माने पहले हमारे घर में एक ब्राह्मण डॉक्टर किरायेदार रहते थे |  उनकी बहन ससुराल गयी तो पंद्रह साल  मायके लौटी ही नहीं | ससुराल वाले विवाह के इन्तजाम से खुश ना थे और इस पर कुछ कहा सुनी हो गयी | बस इतने पर उन्होने लड़की के बिदा होने के बाद कभी मायके नहीं भेजा और ना किसी से मिलने दिया | मायके वाले कभी कुछ नहीं कर पाए | पंद्रह साल बाद जब एक एक कर सारे बुजुर्ग ऊपर चले गए तब कही उनका आना जाना हुआ | 


तो वो लोग जो कन्यादान रस्म के बहुत पक्ष में खड़े हैं और अपने शास्त्रों धर्म की दुहाई दे रहें हैं क्या वो बताएँगे कि उनका इतना जिगरा हैं कि कन्यादान करने के बाद अपने सारे अधिकार अपनी बेटी से ख़त्म कर लेंगे | उसके साथ हुए किसी भी  ख़राब व्यवहार से , उसके दुःख तकलीफ से मुंह फेर लेंगे | उसे पूर्णतया पति और ससुराल के भरोसे छोड़ देंगे | क्योकि शास्त्रों के अनुसार दान , कन्यादान का यही अर्थ होता हैं | 


वास्तव में रस्म पूरा करने के नाम पर सभी  सिर्फ रस्म आदायगी करते है ना शास्त्रों में लिखे का पूर्णतयः पालन करते हैं ना उस पर विश्वास | लेकिन जिन रस्मो चीजों का पूरी तरह से लोग खुद पालन नहीं करते अगर कोई उस पर सवाल उठा दे उनका विरोध कर दे तो तुरंत लोगों का अपना शास्त्र और धर्म याद आने लगता हैं | 


हर विवाह में जिस धार्मिक रस्म को अदा करने का नाटक  किया जाता हैं उसका विरोध करते लोगों भावनाएं आहात हो जाती हैं | खुद रस्म का दिखावा करने वालेसवालउठाये जाने पर उसे धर्म शास्त्रों का अपमान कहने लगते हैं | 


हमारा धर्म और हमारे शास्त्र को हमारे आधुनिक सोच , बदल रहे माहौल  के आगे बहुत पीछे हम सबने खुद छोड़ दिया हैं | उनमे लिखी तमाम बातों की धज्जी सब  रोज के जीवन में उड़ाते हैं |  ना जान कितनी रूढ़ियों की बेड़ियाँ हमने कब की तोड़  दी हैं | लेकिन धर्म के नाम पर आज के माहौल में जो मूर्खता फैली हैं उसके साथ सब बिना सोचे समझे हुँआ हुँआ करने लगते हैं |  अगली बार हुँआ हुँआ करने से पहले सोचियेगा | 


1 comment:

  1. चेतना जगाता लेख । दान के महत्त्व के साथ कन्यादान को भी अच्छे से समझाया ।

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