May 17, 2022

राज-नीति के षड़यन्त्रकारी पासे

 

शकुनि मामा चौपड़ के खेल में बहुत बड़े महारथी नहीं थे जो भी कमाल था वो उनके दोनों  पासों में होता था | इसलिए अपनी राजनैतिक मंसा के खेल में दुसरो को उकसा कर खेलने के लिए मजबूर करने के बाद उनका दूसरा काम होता था किसी तरह खेल में अपने पासे को फिट करना | 


प्रतिद्वंदी जानते थे कि बिन अपने पासे के शकुनि मामा कुछ नहीं है इसलिए वो दूसरे पासे से खेलने की बात करते लेकिन मामा खेल शुरू होने से बहुत पहले ही इस बात की व्यवस्था कर लेते कि कैसे खेल में अपने पासे को खींच कर लाना हैं | मजेदार बात ये हैं कि जो प्रतिद्वंदी उन पासों को दूर रखना चाहते थे  वो महज मामा के खेल में उनके मोहरों की तरह व्यवहार कर वही करते थे  जो शकुनि मामा चाहते थे  | 


धर्म और राष्ट्रवाद बीजेपी के दो जादुई पासे हैं जिनके बिना उसका कोई अस्तित्व इस चुनावी राजनीति में  नहीं हैं | जब बाकी लोग चुनावों का सोच भी नहीं रहें होते हैं वो यहाँ वहां दर्जनों संभावनाएं बना कर रखती हैं कि  कैसे चुनावों के बीच  में घर्म और राष्ट्रवाद को खींच लाना हैं | 


लोग अंदाजा भी नहीं लगा सकते कि  चुनावों भले ही कही पर हो लेकिन  जीत के लिए पासे कश्मीर से कन्याकुमारी और कर्नाटक तक भी फिट किये जा सकते हैं |  अंधा क्या चाहे दो आँखे , चुनावों में अपने मतलब के मुद्दे उछालने के लिए एक घाघ राजनेता क्या चाहे एक अति प्रतिक्रियावादी प्रतिद्वंदी या मोहरे की तरह हरकत करने वाली जनता जो उसके उछाले मुद्दे को झट लपक ले और शुरू हो जाए | बाकी काम तो बिना  वेतन उसके लिए काम करने वाले समर्थक कर ही देंगे | 


 ताली एक हाथ से नहीं बजती और ना कोई राजनीतिक दल केवल अपने समर्थकों के बलबुते किसी मुद्दे को केंद्र में ला सकता है | उसे चाहिए एक विरोध करने वाला  , ऐसा विरोध करने वाला जो हर बात में बिना सोचे समझे उसका विरोध करे  | 

चुनावों में जब धर्म का मुद्दा   जातिवादी , दलितवादी , विकास के मुद्दे में कहीं दब जाए तो  अचानक से उसे बदल दिया जाता हैं  |  वोटिंग होने होने से पहले  बहस का मुद्दा बदल जाता  हैं  |   



इसके पहले अमर जवान ज्योति और बोस को लेकर राष्ट्रवाद का मुद्दा भी केंद्र में खींचा गया था | प्रतिक्रियावादियों ने कभी नहीं सोचा कि वार मेमोरियल बने कई साल हो गए तभी अमर जवान ज्योति  को वहां शिफ्ट क्यों नहीं किया गया |  अब ये सब क्यों किया जा रहा हैं | बोस की मूर्ति लगाने का निर्णय इतना पहले ही क्यों नहीं  लिया गया कि उनके जन्मदिवस  तक लगाने के लिए मूर्ति तैयार रहें होलोग्राम ना लगाना पड़े | 


कहीं पढ़ा सूना कि एक राजा को लंबे समय तक स्थापित रहने के लिए एक दुश्मन की जरुरत होती हैं | आज की राजनीति में भी बिना अंध विरोधियों के बीजेपी सत्ता पर कब्ज़ा ही नहीं कर सकती | अंध विरोधी अंध समर्थको को सक्रीय करने का काम करते रहते हैं पूरे पांच साल | 

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