बिटिया करीब साढ़े तीन साल की थी जब नर्सरी स्कूल का स्पोर्ट्स डे आया । उस समय सभी बच्चे को खेल मे भाग लेना अनिवार्य था । एक दिन घर आ कर बतायी कि आज रेस की प्रैक्टिस थी और वो सभी बच्चो से बहुत ही आगे थी ।
कहती है मम्मी मै तो बड़े आराम से जीत गयी देखना स्पोर्ट्स डे पर गोल्ड मैडल लाउंगी । फिर बड़े अफसोस से मुंह लटकाते बोलती है पिछली बार मै मैडल नही जीत पायी थी ना लेकिन इस बार पक्का मैडल जीतने वाली हूँ । इस बार मै सबसे तेज दौड़ने वाली हूँ ।
ये सुन हम एक बार तो शाॅक हो गये । हुआ ये कि जब ये प्ले स्कूल मे थी तो वहां भी स्पोर्ट्स डे हुआ । उस समय ये बस ढाई साल की थी । टीचर हम लोगो को बुला कर बोली ये बच्चो के बीच प्रतियोगिता नही है , कोई मैडल नही दिया जायेगा । इसलिए आपलोग इसे गम्भीरता से ना ले ये बस बच्चो के मजे के लिए है ।
हम लोग भी इससे सहमत थे कि अभी बच्चो को इन सब से बचाना चाहिए। स्पोर्ट्स डे आया सारे इवेंट होने लगे फिर हमारी बिटिया का भी नंबर आया । रेस मे वो दौड़ने की बस एक्टिंग कर रही थी दौड़ नही रही थी ।
बिटिया हमेशा से फिजिकली बाकी बच्चो से ज्यादा एक्टिव थी और दौड़त भी बहुत तेज थी । वहां उन्हे इतना धीरे दौड़त देख हम दोनो को भी आश्चर्य हुआ । बिटिया चौथे नंबर पर आयी । हम लोगो ने उस समय अफसोस नही किया बस ताली बजाया ।
लेकिन कुछ ही देर के बाद जोर का अफसोस होने लगा क्योंकि बच्चो को पोडियम पर चढ़ा कर मैडल दिया जाने लगा । ऐसा लगने लगा जैसे हमारे साथ धोखा हुआ हो । बाकि बच्चो को देख हमे पता था कि हमारी बिटिया इससे कही ज्यादा तेज दौड़ती है । अगर अपने हिसाब से दौड़ती तो पहला स्थान पा मैडल लाती ।
मैदान से बिटिया जब हम लोगो के पास आयी तो हम लोग पुछने लगे कि तुम इतना धीरे क्यो दौड़ी तो बोलती है टीचर ने कहा था कि तेज नही दौड़न है स्लो दौड़ो वरना तुम गिर जाओगी और तुम्हे चोट लग जायेगी । हमने पुछा सबस कहा तो कहती है जो बच्चे फ़र्स्ट आये है उन्हे छोड़ सबसे कहा ।
फिर हम सबने ध्यान दिया तीन हिट हुए थे और तीनो मे वो बच्चे ही जीते थे जो स्कूल संचालन करने वाली के फ्रेंड के बच्चे थे । हम सबको इस पर बड़ा गुस्सा आया की कुछ खास बच्चो को जीता कर मैडल देने के लिए इतना झूठ और फरेब किया गया ।
वो मामूली प्ले स्कूल नही था ब्राड और नामी था । उसकी स्कूल फीस बाकी स्कूल से डबल थी । वहां इतने छोटे बच्चो के साथ ये सब हो रहा था । खैर हमने बस एक बार और वो भी उस दिन ही बिटिया से कहा अरे तुम्हे तेज दौड़न चाहिए था तुम्हे मैडल मिलता ।
उस दिन के बाद घर मे और बिटिया से इस बारे मे कभी कोई बात नही हुयी । हा हम बाकि मम्मीयो ने आपस मे जरुर इस पर खूब बात की बाद मे ।
लेकिन हमारी बिटिया ये सब एक साल बाद तक याद रखी और मैडल जीतने का खुद से तय भी कर लिया । ये सब ढाई और तीन साल के उम्र की बात है ।
हम उस दिन आश्चर्य मे थे कि आजकल के बच्चे इन सब को लेकर कितने गम्भीर है । हम लोगो को तो ये बाते याद भी ना रहती और ना जीतने मैडल के लिए गम्भीर होते । ये तो अभी से खुद से अपने आप पर कितना प्रेशर ले रहे है ।
आज दसवीं मे है और कई बार हमे उन्हे प्रेशर ना लेने के लिए समझाना पड़ता है । इनकी सहेलियां क्लास , स्कूल टाॅपर है वो इनसे भी आगे है । सबकी मम्मीयां मिलती है तो इसी बात पर चिंतित होती है ये बच्चे कितना प्रेशर ले रहे है तनाव मे है जबकि हमारी तरफ से बच्चे फ्री है ।
लोग कहते है माँ बाप बच्चो पर नंबरो के लिए दबाव बनाते है लेकिन एक सच ये भी हो कि आजकल बड़ी संख्या मे बच्चे खुद भी अपने पर दबाव लेते है। उन्हे खुद को साबित करना है टीचर के सामने माँ बाप परिवार सबके सामने ।
No comments:
Post a Comment