बद्रीनाथ हादसा के दो साल बाद हमारी माता जी हमसे इच्छा व्यक्त की कि उन्हें भी बद्रीनाथ केदारनाथ जाना हैं | हमने कहा क्यों जीवन से मन ऊब गया हैं क्या , जो वहां जाने का सोच रही हो | तो कहती हैं कुछ हो भी गया तो क्या हुआ सारी जिम्मेदारियां हमने पूरी कर दी हैं सारे बच्चे सेटेल हो गए हैं , अब करना ही क्या हैं | हमने कहा समस्या इसमें नहीं हैं | मतलब जा रही हो बस खायी में गिरी तो सबकुछ साफ हैं कोई शंका नहीं हैं , सीधा मौत क्लियर हैं | लेकिन दो साल पहले वाला हादसा हो जाए तो मिलोगी भी नहीं शायद , पता चला बह बहा कर कही दूर चली गयी | फिर दिल दिमाग मानेगा ही नहीं कि सच में कुछ हो गया | फिर मुझे और भाई को दौड़ कर वहां जाना होगा तुम लोगों को खोजने खाजने | शायद महीनो खोजना पड़े | पता नहीं किस किस शहर जगह खोजने जाना पड़े |
सरकारी के हिसाब से तो सात साल बाद मरा मान लिया जायेगा लेकिन हमें तो सारी जिंदगी इंतज़ार रहेगा शायद कहीं बच गयी हो शायद कही घायल मिल गयी हो शायद कभी घर वापस आ जाओ | सारी जिंदगी लगेगा सब खतरों को जानते जाने ही क्यों दिया | चार रिश्तेदार भी पीछे बात करेंगे कि जाने ही क्यों दिया , चिंता ही नहीं हैं बच्चो को | हमारे देश में तीरथ (तीर्थ ) की कमी हैं क्या , सोमनाथ चली जाओ , तिरुपति रामेश्वरम गंगा सागर जहाँ जाना हैं चली जाओ | मैदानी इलाके सुरक्षित और सुविधा वाले आरामदायक हैं |
हम हमेशा से जानते हैं लोगों से बात करते समय हमेशा उनकी भाषा में बात करनी चाहिए , वो भाषा जो उन्हें समझ में आये | अपनी बात अपनी भाषा में कही तो सामने वाला कभी न समझने वाला | सो हमारी माता जी भी समझ गयी और कुछ बोला नहीं | हफ्ते भर बार एक रिश्तेदार गए थे वो आ कर वहां के अव्यवस्था का कहानी बताने लगे कि हादसे के बाद सब कुछ ठीक नहीं हुआ हैं यात्रा बहुत कष्टदायक रही | तो माता जी शुक्र मनाने लगी कि चलो हमने जाने की गलती नहीं की |
हिन्दू धर्म हो या दुनियां का कोई भी धर्म हो तीर्थ यात्रा करने का समय सभी जगह एक ही बताया हैं | सारी जिम्मेदारियां निभाने के बाद बुढ़ापे में | तब यात्रायें कठिन होती थी सुविधा ना के बराबर इसलिए जीवन समाप्त होने का खतरा ज्यादा था | इसलिए कहा जाता कि जिम्मेदारियां निभा लो अपनी सारी ताकि कुछ हो भी जाए तो पीछे छूटे लोगो का और लोगों को कोई अफसोस तकलीफ ना हो | एक और भाव था वो था जब इस लोक में आने के बाद जो कर्तव्य मिले थे वो पूरा कर लिया तो भक्ति में अच्छे से लीन हुआ जा सकता हैं | दिल दिमाग में ईश्वर के अलावा जीवन की कोई चिंता , दुःख पीड़ा ना रहें | तमाम जिम्मेदारियों कामो चिंताओं से भरे दिल दिमाग में ईश्वर नहीं हो सकते |
लेकिन अब तीर्थ यात्रा पर्यटन , पिकनिक , ट्रैकिंग , मजा , सोशल मिडिया पर किया जाने वाला दिखावा , और खुद को सबसे बड़ा धार्मिक , हिन्दू दिखाने की नौटंकी आदि बन गया हैं | बाकि जगह तो ठीक हैं लेकिन पहाड़ो पर लोगों की ये आदते पहाड़ का दम घोट रही हैं उन पर बोझा बन रही हैं | पहाड़ और पानी की यात्राएं कभी भरोसे की नहीं होती और प्रकृति के क्रोध के आगे बड़ी से बड़ी व्यवस्था बेकार होती हैं | सरकारे अपनी कमाई बढ़ाने के लिए बेतहाशा लोगों को वहां आने दे रही हैं | आने वाले लोगो की संख्या पर कोई नियंत्रण नहीं हैं असल में वो लगाना ही नहीं चाहते | लोगो के दुबारा यात्रा और संख्या नियंत्रण के नियम को कड़ाई से लागु करके जान के नुकशान को कम तो किया ही जा सकता हैं |
बकियाँ हमारे बनारस में कहावत हैं कि मन चंगा तो कठौती में गंगा | ज्यादा शिव जी के दर्शन की इच्छा हैं तो काशी से रामेश्वरम तक हैं शिव जी जाओ कर लो दर्शन | सब एक ही शिव हैं कहीं भी दर्शन करो बस अपना मन चंगा रखो | सोच रही हूँ किसी माँ बाप का कोई इकलौती संतान , या छोटे नाबालिग बच्चो के माता पिता , किसी असहाय का सहारा , कोई पति या पत्नी इस हादसे का शिकार हुए होंगे तो उनकी असमय की गयी ये तीर्थ यात्रा उनकी आत्मा को मोक्ष देगी या पीछे छूट गए लोगों को पुण्य देगी |
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