October 26, 2010

आइये थोड़ा अपनी ज़ुबान ट्विस्ट करे - - - - - - - - -mangopeople

पता नहीं लोग हमेशा गंभीर बाते कैसे कर लेते है दो चार गंभीर भयानक पोस्टो के बाद एक दिमाग को आराम और चेहरे पर मुस्कराहट लाने वाले पोस्ट का तो हक़ बनता है | तो ये पोस्ट सिर्फ हँसने मुस्कराने मनोरंजन और आनंद के लिए |
याद है हम बचपन में जब किसी बच्चे को तुतलाते हुए देखते थे तो कहते थे कि बोलो
 घोड़ा सड़क पर सरपट सरपट दौड़ रहा है |           
तो वो बेचारा तुतलाते हुए कहता था की
तोरा  तरक पर तरपत तरपत दौर रहा है 
और हम सब तरपत तरपत बोल कर उस पर हँसने लगते थे और उसे चिढाते कि हमारा घोड़ा तो सरपट दौड़ रहा है तुम्हारा घोडा तड़प क्यों रहा है |
हिंदी में इसी तरह और भी कई टंग ट्विस्टर है सबसे प्रसिद्ध है
चंदू के चाचा ने चंदू की चाची को चांदनी चौक पर चाँदी के चम्मच से चटनी चटाई |
इसी तरह एक और है
खड़क सिंह के खड़कने से खड़कती है खिड़किया खिड़कियो के खड़कने से खड़कता है खड़क सिंह |
टंग ट्विस्टर का यह एक रूप है एक और रूप है जिसमे एक ही शब्द को कई बार कहा जाता है पर सभी का मतलब अलग अलग होता है  जैसे
गया गया गया तो गया ही रह गया 
अब यहाँ तीन बार गया शब्द का प्रयोग किया गया है पहला व्यक्ति का नाम है दूसरा का अर्थ जाना और तीसरा जगह का नाम है | हिंदी में इसे अलंकार कहते है और दोनों दो अलंकारो के रूप है दूसरा तो यमक है और पहले वाले शायद श्लेस अलंकार है ( आम आदमी के व्याकरण का ज्ञान ऐसा ही होता है  का करे ) 
ये तो हो गये हिंदी वाले अब मेरे पास कुछ अंग्रेजी के भी टंग ट्विस्टर है जो मेरे भाई बंधुओं ने मुझे ई-मेल किया है वो भी काफी मजेदार है | उनको भी पढ़िये और और जरा अपनी सीधी सी ज़ुबान इस तरह ट्विस्ट कीजिये की बस आप को हंसी आये पर किसी को हमारी घूमी ज़ुबान से दुख ना हो |
1. If you understand, say "understand" . If you don't understand, say "don't understand". But if you understand and say "don't understand". How do I understand that you understand? Understand!

2. I wish to wish the wish you wish to wish, but if you wish the wish the witch wishes, I won't wish the wish you wish to wish.

3. Sounding by sound is a sound method of sounding sounds.

4. A sailor went to sea to see, what he could see. And all he could see was sea, sea, sea.

6. If two witches were watching two watches, which witch would watch which watch?

7. I thought a thought.But the thought I thought wasn't the thought I thought I thought. If the thought I thought I thought had been the thought I thought, I wouldn't have thought so much.

8. Once a fellow met a fellow In a field of beans. Said a fellow to a fellow, "If a fellow asks a fellow, Can a fellow tell a fellow What a fellow means?"

9. Mr Inside went over to see Mr Outside. Mr Inside stood outside and called to MrOutside inside. Mr Outside answered Mr Inside from inside and Told Mr Inside to come inside. Mr Inside said "NO", and told Mr Outside to come outside. MrOutside and Mr Inside argued from inside and outside about going outside or coming inside. Finally, Mr Outside coaxed Mr Inside to come inside, then both Mr Outside and Mr Inside went outside to the riverside.

10. SHE SELLS SEA SHELLS ON THE SEA SHORE , BUT THE SEA SHELLS THAT SHE SELLS, ON THE SEA SHORE ARE NOT THE REAL ONES

11. The owner of the inside inn was inside his inside inn with his inside outside his inside inn.

12. If one doctor doctors another doctor does the doctor who doctors the doctor doctor the doctor the way the doctor he is doctoring doctors? Or does the doctor doctor the way the doctor who doctors doctors?

"When a doctor falls ill another doctor doctor's the doctor. Does the doctor doctoring the doctor doctor the doctor in his own way or does the doctor doctoring the doctor doctors the doctor in the doctor's way"

13. We surely shall see the sun shine shortly. Whether the weather be fine, Or whether the weather be not, Whether the weather be cold Or whether the weather be hot, We'll weather the weather Whatever the weather, Whether we like it or not. Watch? Whether the weather is hot. Whether the weather is cold. Whether the weather is either or not. It is whether we like it or not.
  
14. Nine nice night nurses nursing nicely.

15. A flea and a fly in a flue Said the fly "Oh what should we do" Said the flea" Let us fly Said the fly"Let us flee" So they flew through a flaw in the flue

16. If you tell Tom to tell a tongue-twister his tongue will be twisted as tongue-twister twists tongues.

17. Mr. See owned a saw.And Mr. Soar owned a seesaw. Now See's saw sawed Soar's seesaw Before Soar saw See, Which made Soar sore.Had Soar seen See's saw Before See sawed Soar's seesaw, See's saw would not have sawed Soar's seesaw. So See's saw sawed Soar's seesaw.But it was sad to see Soar so sore Just because See's saw sawed Soar's seesaw.
                                                                      






यदि आप के पास भी कुछ ऐसे ही टंग ट्विस्टर है तो वो भी बताइये |

October 25, 2010

मौसम जी लीजिये एक और बेमौसम गोल गोल बातों की बरसात झेलिये - - - - - - mangopeople

 बे मौसम कुछ गोल गोल बातों की बरसात यहाँ भी होंगी मौसम जी ( १- मो सम कौन २- संजय ३- कुटिल अब ये आप का चौथा नाम ) दो घटनाएँ है यहाँ पर एक जो आप को पता है और दूसरी वो जो शायद आप को ना पता हो उसकी ही बात यहाँ करुँगी और आप उसमे अपनी जानकारी वाली बात जोड़ लीजियेगा | मैं ब्लॉग जगत में जब आई तो काफी डरी थी मैं एक आम महिला थी और ब्लॉग जगत को बुद्धिजीवियों का जगत समझती थी | यहाँ आते ही नारी समुदाय के लिए काफी अच्छी अच्छी बाते सुनने को मिली और नारी समुदाय  के लिए दिये एक कमेन्ट पर मेरे नाम को ही तोड़ मरोड़ दिया गया मुझे काफी गुस्सा आया कि मैं तो समझती थी की नारियो के लिए ऐसे घटिया विचार केवल आम, कम पढा लिखा पुरुष समुदाय ही रखता है पर पढ़ा लिखा पुरुष समुदाय भी ऐसी ही घटिया सोच रखता है कि नारी समुदाय किसी काम की नहीं है उनमें अक्ल नहीं है उनके पास बुद्धि नहीं है ये हिंदुस्तान है और यहाँ पर इस समुदाय को हम से दब कर ही रहना चाहिए ये हमारा घर है ये बाहर से आई है  आदि आदि  मुझे ये देख कर झटका लगा | मुझ पर निकली गई भड़ास को पढ़ने के बाद मेरी राय ऐसी बन जानी चाहिए थी कि पूरा पुरुष समुदाय हमारे बारे में गलत सोचता है ख़राब सोचता है हमें सम्मान नहीं देता है हम भी उस समुदाय के लिए ऐसा ही विचार रखेंगे | पर ऐसा होते होते रुक गया क्योंकि जहा मेरे नाम को तोडा मरोड़ा गया था वहा मुझसे पहले ही कोई और पुरुष उसका विरोध कर चुका था और वो भी जोर दार मैंने वहा कोई विरोध दर्ज नहीं कराया बस साथ देने वाले का धन्यवाद दे दिया | पूरे पुरुष समुदाय में से एक  पुरुष के विरोध ने पूरे नारी समुदाय में से एक नारी के मन में अपने समुदाय के लिए एक गलत भ्रान्ति बनने से रोक दिया | कोई नारी समुदाय से आ कर यदि उसका विरोध करता तो विरोध तो हो जाता पर मेरे दिल में बनने वाली भ्रान्ति बनने से नहीं रुकती | मैंने अपने अनुभव से हमेशा के लिए सिख ले ली पर कुछ लोग नहीं ले पाते है |
        आप जानते है की एक अकेले का विरोध कही ना कही असर करता है | आप ने भी एक बार किसी चीज का विरोध किया  था आप का साथ एक दो लोगों ने दिया पर सामने वाले पर कोई असर नहीं हुआ आप को भी लगा होगा की देखो विरोध का कोई असर ही नहीं हुआ पर असल में उसका असर उस समय भले सामने वाले पर नहीं हुआ हो पर कुछ दूसरों पर ज़रुर हुआ कि हा कुछ चीजों का विरोध तो होना ही चाहिए और सब को ये समझ भी आया की यदि यही पर इस का विरोध करके इसे बंद नहीं कराया तो ये और बढ़ता जायेगा  और अगली बार उनका ऐसा विरोध सबने किया की उन्हें पीछे हटाना ही पड़ा | अब आप समझ गये ना की कोई भी विरोध जो सम्मानित और जायज़ तरीके से करे तो वो बेकार नहीं जाता है | भले जिसका विरोध किया जाये उस पर कोई असर नहीं हो पर कही और ज्यादा असर कर जाता है |
         हम सभी नेताओं को गाली देते है की वो पवार का गलत  इस्तेमाल करते है लोगों को भड़काते है ज़िम्मेदारी से काम नहीं करते है अनुशासित नहीं रहते है अपने फायदे के लिए किसी को कुछ भी कह देते कर देते है  है | पर जब हमारे पास पवार आता है तो हम भी उसका गलत प्रयोग करने लगते है | कलम और आज के ज़माने में किबोर्ड का पावर कम नहीं है पर हम इस पावर का क्या प्रयोग कर रहे है क्या हम सभी अनुशासित है क्या हम देख रहे है की जिस कलम रूपी तलवार को हम अपनी भावनाओं के वेग में चला रहे है उससे कितना नुकसान हो रहा है | केवल दूसरों का नहीं खुद का भी नुकसान कर रहे है जो शायद अभी ना दिखाई दे पर एक दिन दिखेगा और तब तक उससे लगी चोट इतनी गहरी होगी की हम उसे ठीक नहीं कर सकेंगे |
              चिटठा जगत के जिस गंदे रूप को आप ने कल देखा वो हम में से कइयों ने काफी पहले ही देखा लिया है ( मेरी मिसेज टाइमिंग आप से भी काफी अच्छी है हर उस विवादित जगह पर पहुँच कर सब जान लेती हुं जहा नहीं जाती तो ज्यादा अच्छा होता ) पर एकता की शक्ति एक ऐसी चीज है जो इस तरह के लोगों का मुँह बंद रखने पर मजबूर कर देती है | पर जैसे ही एकता ख़त्म होती है हम सारा ध्यान एक दूसरे से लड़ने में लगा देते है  कोई तीसरा अपनी भड़ास अपनी पुरानी दुश्मनी निकालने चला आता है | हम तो लड़ते रहते है और तीसरा उसका फायदा उठा ले जाता है | इसलिए कहा गया है की जुड़ने में बरक्कत है लड़ने में नहीं | अच्छा होता की हम सभी एक दूसरे से लड़ने के बजाये अपना ध्यान इस तीसरे पर लगाये जो हमें ज्यादा नुकसान पंहुचा सकता है |  
                                                उम्मीद है इस बार आप के साथ ही सबको ये गोल गोल बात समझ आई होगी | बस पढ़ते समय ध्यान रखिये की जो शब्द लिखा है उसके शाब्दिक अर्थों के साथ उसके पीछे की भावना क्या है | भावना ही मुख्य चीज होती है किसी व्यक्ति विशेष के साथ क्या हुआ इस बात से अनभिज्ञ भी रहिये तो कोई बात नहीं | मुद्दा समझ लीजिये |

October 21, 2010

एक भारतीय मुस्लिम का करारा जवाब - - - - - - - mangopeople

मैं कुछ कहु उसके पहले ये वीडियो देखिये और मजे ले लीजिये मुशर्रफ की बेईज्जती, का फिर बाते होंगी | एक चीज  पर ध्यान दीजियेगा  मुशर्रफ का चेहरे की उड़ती रंगत और उनकी प्रतिक्रिया ना दे पाने की कसक |

http://www.youtube.com/watch?v=DYdUPV0OOJw





कुछ और कहने से पहले अब ये साफ कर दू की इससे बाद लिखा गया लेख इस आम महिला के आम से विचार है कोई विचारधारा नहीं जो उसने अपने अनुभव और अपने आस पास घट रहे घटनाओं को देख कर बनाया है | ये कही से भी कोई बौद्धिक बहस या विचार नहीं है बस हल्की- फुल्की सी बाते है | अत: ज्यादा की उम्मीद रखने वाले यही से लौट जाये |
  
कुछ लोग भारतीय मुसलमानों पर कुछ सवाल उठाते है कुछ जानबूझ कर और कुछ अनजाने में उनमें से कुछ सवाल और मेरे निजी विचार |
 
१- क्या भारत के सारे मुसलमान आतंकवादी है ?
    नहीं जी ऐसा तो बिल्कुल नहीं है |
दुनिया में ऐसे लोगों की कोई कमी नहीं है जो अपने स्वार्थ पूर्ति के लिए लोगो को धर्म ,जाती ,समुदाय ,भाषा ,विचार धारा और क्षेत्र  के आधार पर उलटी सीधी बाते कह कर उन्हें भड़काते है और इन सब का असर सिर्फ मुस्लिमों पर नहीं होता है सभी पर होता है तभी तो हमारा पूरा देश बटा हुआ है | 

२-क्या भारत के सारे मुसलमान पाकिस्तानपरस्त है ?
    नहीं जी ऐसा नहीं है  |
शायद कुछ लोगों का जुड़ाव है उससे धर्म के आधार पर है लेकिन ये जुड़ाव बिल्कुल वैसे ही जैसे हमारे देश  में कुछ लोगों का जुड़ाव हिन्दू राष्ट्र नेपाल के प्रति था और उसके धर्म निरपेक्ष बनने पर लोगों को दुख हुआ |

३-मुस्लिम गद्दार होते है उनमें भारत से प्रेम की कोई भावना नहीं होती है |
    देश प्रेमी और देश के लिए कुछ करने वाले मुसलमानों का नाम लिखना शुरू करुँगी तो लिस्ट तो बड़ी लंबी बन जाएगी सबका नाम क्या लू पाठक तो जानते ही है |
रही बात गद्दारी करने की भावना की तो इस पर किसी एक धर्म का एकाधिकार नहीं है कोई माधुरी डबल एजेंट बन जाती है तो कोई अमेरिका को सारी ख़ुफ़िया सूचना दे कर वहा का नागरिक बन जाता है क्या कर सकते है ये तो व्यक्ति का अपना चरित्र है |

४-राजनीतिक दलों के तुष्टिकरण की नीति  |
मुझे भी इससे बड़ी नफरत है  गुस्सा आता है राजनीतिक दलों पर  
लेकिन इसमे मुस्लिमों का क्या दोष वो हमेशा से राजनीतिक दलों के लिए एक वोट बैंक की राजनीति से ज्यादा कुछ समझे ही नहीं गये जैसे दलितों को समझा जाता है | दोनों के लिए हर सरकारों ने काफी कुछ किया पर उनकी स्थिति वही की वही रही जितने जतन उतने पतन | काश की सभी पार्टियाँ उन्हें सिर्फ भारत का एक आम आदमी समझती तो शायद उनकी स्थिति इतनी बुरी नहीं होती |
 
५-ये बहुत ही कट्टर और धर्म के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होते है इनके मुकाबले हिन्दू धर्म काफी उदार है | 
    कभी कभी और कही कही ये सच दिखता है पर 
मुझे लगता है कि अपने प्रारंभिक समय में एक हिन्दू भी शायद उतना ही कट्टर और धर्म भीरु होता रहा होगा जितना की आज कोई मुस्लिम है पर समय के साथ हमने धर्म को अपने रोज मर्रा के जीवन से जोड़ना कम कर दिया और एक सुविधाजनक आधुनिक जीवन अपना लिया फिर भी आज भी कुछ कट्टरवादी हिन्दू मिल जायेंगे | तो उन्हें अभी सब कुछ समझने और थोड़ा और आधुनिक सोच बनने के लिए और समय दिया जाना चाहिए |
दोनों धर्मों की तुलना करना तो वैसे ही लगता है जैसे ये कहना कि अमेरिका के मुकाबले भारत ने कितनी कम तरक्की की है भाई ये तुलना करते समय ये बताओ की अमेरिका को आज़ाद हुए कितना समय हुआ है और भारत को आज़ाद हुए कितना समय हुआ है | आज ६३ सालों में हमने जितनी तरक्की की है मुझे नहीं लगता है की अमेरिका भी अपने आज़ादी के ६३ सालों के बाद इतनी तरक्की की होगी | इसलिए ये तुलना व्यर्थ है थोड़ा समय दीजिये |  अब इस उदाहरण का शाब्दिक अर्थ ना निकालिएगा मूल बात को समझिये दोनों धर्मों को आयु में काफी फर्क है |( सिर्फ आयु की बात हो रही है परिपक्वता की नहीं ) 

६-मुस्लिम अनपढ़ गवार गरीब सिर्फ धर्म की बात करने वाला मासाहारी हिंसक होता है, मुस्लिमों की ये छवि |
   मुस्लिमों की एक छवि ज़बरदस्ती बना दी गई है जैसे दुनिया में भारत की छवि एक सपेरो के देश के रूप में बना दी गई थी या है | बचपन से अब तक कई सहेलियाँ मुस्लिम रही है और कई जान पहचान वाले भी उनमें से कुछ के घर के पुराने लोग तो परंपरा वादी मुस्लिम थे पर वो और उनके जेनरेशन के लोग नहीं थे ना तो वो बुर्क़ा पहनती थी और ना हर बात में धर्म को सामने लाती थी उनकी सोच हमारी तरह ही सामान्य थी |  दो मुस्लिम दोस्त तो शुद्ध शाकाहारी थी जब मैं घर पर ये बताती थी तो लोग विश्वास नहीं करते थे और यहाँ मुंबई में कई मुस्लिम परिवारों के करीब से जानती हुं वो तो किसी भी आम भारतीय परिवार से ज्यादा आधुनिक सोच और रहन सहन वाले है | जैसे जैसे दूसरे धर्म के लोगों की तरह उनमें भी शिक्षा का प्रसार पढ़ रहा है उनकी भी सोच बदल रही है | भारत ने अपनी सपेरो वाली छवि कुछ हद तक तोड़ दी है वो भी अपनी ये छवि धीरे धीरे तोड़ देंगे |

७- मुस्लिमों से जुड़ीं नकारात्मक ख़बरे ही क्यों आती है |
  इस छवि और नकारात्मक खबरों के लिए मीडिया भी कम दोषी नहीं है किसी मुल्ला मौलवी ने दिया कोई फ़िजूल का फतवा और आने लगी ब्रेकिंग न्यूज़ हो सकता है की एक आम मुस्लिम इन फतवों को कोई भाव ना देता हो पर न्यूज़ चैनलों में इसे पूरा भाव मिलता है | मुझे याद है की एक बार देव बंद ने एक बड़ी रैली की थी और युवाओं को आतंकवाद से नही जुड़ने को कहा था साथ ही बताया था की ये कैसे इस्लाम के खिलाफ है और युवा इनके झासे में ना आये | ये खबर एक बार सिर्फ एक टीवी चैनल  पर देखी थी किसी और पर नहीं देखी और ना अखबार में पढ़ी | शायद ये खबर और वो रैली चैनल वालो को टी आर पी बढ़ाने वाली नहीं लगी होगी इसलिए किसी ने भी उसे ठीक से कवर करने की जरुरत नहीं समझी | अभी हाल ही में देव बंद ने कश्मीर और कश्मीरी मुस्लिमों पर भी एक बयान भारत के पक्ष में दिया था उसकी खबर भी कही नहीं दिखी मुझे भी ये खबर तब पता चली जब अख़बार ने इस पर सम्पादकीय लिखा गया |

८- सरकार तो इतनी सुविधाएँ दे रही है पर इनका कुछ होता ही नहीं | 
इस मामले में ज्यादा गुस्सा मुस्लिम बुद्धिजीवियों और पढ़े लिखे लोगों पर आता है | क्यों नहीं वो आगे आ कर अपने समुदाय की तरक्की के लिए कुछ करते है | मुस्लिम गरीब है अन पढ़ है उन्हें नौकरी नहीं मिल रही है उन पर अत्याचार हो रहा है जैसी बातों पर वो चीखना चिल्लाना तो खूब जानते है पर आगे बढ़ कर इनके विकास के लिए कुछ करते नहीं है | मैंने देखा है मुस्लिम और दलितों दोनों ही वर्गों के  कुछ लोग सरकार द्वारा दिये जा रहे आरक्षण, सुविधाओं और पैसे का उपयोग खुद की तरक्की के लिए करते है और अपने समुदाय को भूल जाते है असल में जिसके विकास के लिए उन्हें ये सारी चीज़े दी जाती है | बस खाना पूर्ति के लिए उनकी बदहाली पर धडियाली आसु बहा कर अपना काम ख़त्म कर लेते है |

९- मुस्लिम महिलाओ की बड़ी बुरी स्थिति है | 
    बस बस अब इस मामले में मैं अपना मुँह बंद ही रखु तो अच्छा है वरना मुस्लिमों पर लिखा ये लेख अभी नारीवादी बन जायेगा | इतना ही कहूँगी की उन पर अपनी एक उँगली उठाने वाले जरा ध्यान से देखे की आपकी ही तीन उंगलिया आप की ही ओर इशारा कर रही है जरा अपने घर की महिलाओ  की स्थिति देख लीजिये फिर किसी और की बात कीजियेगा | उन्हें किसी की सहानुभूति की जरुरत नहीं है कम से कम उनसे तो बिल्कुल ही नहीं जो खुद ये गलत काम करते है | वो अपनी लड़ाई खुद लड़ भी लेंगी और उसमे जीत भी सकती है  | 


इन सब बातों के बाद भी ये कहूँगी की ऐसा नहीं है की कुछ समस्याएँ है ही नहीं , हा है ओर बहुत सारी है पर जरुरत इस बात की है की उनके धर्म की तरफ उँगली उठा कर ओर हर जगह मीन मेख निकाल कर बार बार उन पर आरोप प्रत्यारोप लगा कर उन को हतोत्साहित   करने के बजाये उन समस्याओं को सुलझाने के लिए उन्हें प्रोत्साहित करना चाहिए और उन्हें सिर्फ मुस्लिम समझने के बजाये एक आम आदमी समझना चाहिए |


इस लेख को लिखने की प्रेरणा देने के लिए खास तौर पर मैं एन डी टीवी के बिहार के उस संवाददाता को धन्यवाद दुँगी जिसे आज सुबह बिहार में हो रहे मतदान पर रिपोर्टिंग करते हुए देखा | वोट दे कर आये तीन चार लोगों से बात करते हुए उसने एक से पूछा कि आप ने किस मुद्दे पर वोट दिया उसने कहा विकास दूसरे ने कहा विकास, उसे जो जवाब चाहिए था नहीं मिल रहा था उसने सवाल बदल और तीसरे से पूछा की आप किस मुद्दे पर वोट दे रहे है जाती या धर्म तीसरे ने भी कहा ये दोनों नहीं विकास पर दिया है अब चौथे से सीधे पूछा की आप ने किसको वोट दिया है उसने कहा ये नहीं बताऊंगा, तो रिपोर्टर ने तीसरे से पूछे सवाल को दोहरा दिया तो उन्होंने कहा की मैं तो जिसको मान लिया तो मान लिया उसी को वोट देता हुं | तो रिपोर्टर कहता है की आप मुस्लिम वोटर है आपने किस आधार पर कांग्रेस को वोट किया अब बताइये उसने कब कहा की वो मुस्लिम है और उसने कांग्रेस को वोट दिया है | | मतलब की बाकी लोग सिर्फ वोटर थे और वो मुस्लिम वोटर उनके हिसाब से वो अलग है और उसके सोचने का तरीका अलग है वो केवल धर्म के आधार पर वोट करता है और जब उसने उनके मन का नहीं बोला तो वो उसके मुँह में ज़बरदस्ती अपने शब्द भरने की कोशिश कर रहे थे | बोलिये ये हमारे पढ़े लिखे तबके की सोच है बाकियों को क्या कहु | 

हो सकता है आप के विचार मुझसे काफी अलग हो आप के हर आलोचनात्मक टिप्पणी और सवाल का स्वागत है | 









 
       



October 19, 2010

आत्मा, पुनर्जन्म और भगवान क्या आप वास्तव में इन पर विश्वास करते है एक बार क्रास चेक कीजिये - - - - mangopeople

पहला सवाल सभी पाठकों से यही है की क्या आप आत्मा, पुनर्जन्म और भगवान  पर विश्वास करते है | इस सवाल पर  ९९% का जवाब हा में होगा | अब एक कहानी सुनिये बचपन में सुना होगा एक बार फिर सुनिये और फिर इसका जवाब दीजिये |

एक चोर था एक दिन जब वो चोरी के लिए गया तो साथ में अपने १२ साल के बेटे को भी ले गया बोला की बेटा मैं अंदर चोरी के लिए जा रहा हुं तुम बाहर खड़े हो कर देखते रहो की कोई हमें ऐसा करते देखे नहीं यदि हमें कोई देखे तो मुझे इशारा कर देना | बाप जैसे ही अंदर गया बेटे ने कहा की पिता जी कोई देख रहा है वो तुरंत बाहर आ गया और फिर दूसरे घर में गया बेटे ने फिर कहा की कोई देख रहा है इसी तरह जब कई घर में ऐसा हुआ तो पिता ने पूछ ही लिया की ऐसा कैसे हो रहा है कि आज  कोई ना कोई देख ले रहा है कौन है ये जो हमें देख रहा है | तो बेटे ने कहा की भगवान हमें देख रहा है आप ने ही तो कहा है की वो हर जगह व्याप्त है और वो हमें हमेशा देखता है | क्या वो हमें चोरी करते हुए नहीं देख रहा है |

कहानी में क्या कहा जा रहा है मुझे बताने की जरुरत नहीं है सब समझ गये है  अब बताइये की क्या आप वास्तव में भगवान में विश्वास करते है |

आत्मा कभी नहीं मरती है   किस आधार पर लोग ये बात कह देते है मुझे समझ नहीं आता है यदि आत्मा नाम की कोई चीज है तो मैं तो रोज उसे मरता हुआ देखती हुं | लोग भूखे मर रहे है और सरकार में बैठे लोग  अनाज को सडा कर बर्बाद कर रहे है, हमारे दिये जिस टैक्स के पैसों से देश का विकास होना चाहिए था वो खेलो के नाम पर चंद लोगों द्वारा  डकार लिए गये , सैनिकों के खाने के पैसे भी लोग खुद खा जाते है , पहले देवी मान कन्या को भोजन कराते है फिर एक कन्या को पैदा होने से पहले ही मार देते है , पिता ने ही पैसे के लिए अपने ही १० साल के बेटे का अपहरण किया और फिर हत्या कर दी ,  अमीर होने के लिए एक परिवार ने अपने ही दो बच्चों की बलि चढ़ा दी , अपने स्वार्थ के लिए हम रोज कोई ना कोई गलत काम करते है  | क्या आप को नहीं लगता की ये सब करने के बाद आत्मा नाम की चीज मर जाती होगी | 

पुनर्जन्म लेने के बाद आप क्या बनेगे जो लोगों के गलत काम करने की रफ़्तार है उसे देखते हुए तो लगता है की आगे के बीस तीस साल बाद धरती पर रीड विहीन जीवो की संख्या सबसे ज्यादा होगी |

आज तक मैंने तो किसी को भी भगवान के डर से कुछ गलत करने से डरते हुए नहीं देखा है | ना ही कभी देखा है की कोई गलत काम करते हुए ये सोचता है की हमें इसका फल अगले जन्म में क्या मिलने वाला है | पर कहते सब है की हम सब में विश्वास  करते है |  पता नहीं किस तरह का ये विश्वास है | आखिर लोग अपने आप से ये झूठ क्यों बोलते है कि वो इन सब पर विश्वास करते है शायद अपने नाकामयाबी और अपनी गलती का ठीकरा भगवान के ऊपर फोड़ने के लिए कि भगवान की यही मर्जी थी | अब अपने आप से ईमानदारी से फिर से पूछिये की क्या आप वास्तव में इन सभी चीजो पर विश्वास करते है और अब जवाब दीजिये |



October 15, 2010

नोबेल शांति पुरस्कार और एक भयानक विचार - - - - - mangopeople

ये तो सभी जानते है की इस बार का नोबेल शांति पुरस्कार चीन के ल्यु श्याओपो या लिउ शाओबो ( उनके ये दो नाम सामने आ रहे है जो सही हो वही वाला पढ़ा ले ) को दिया गया है वो चीन में लोकतंत्र के लिए आवाज़ उठा रहे थे ( ऐसा हिंदी अखबारों में लिखा है) इसीलिए उनको जेल में डाल दिया गया है और उनकी पत्नी लिउ शिया को भी घर में नजर बंद कर दिया गया है | निश्चित रूप से ये चीन के लिए ये पश्चिम का षडयंत्र है उसे अस्थिर करने के लिए उसके विचार धारा को ख़राब साबित करने के लिए लेकिन चीन ने कहा है की इस काम से उसकी विचार धारा पर कोई असर नहीं होगा ( फिर नार्वे को धमकी देने की क्या जरुरत थी या उसके राजनयिक से बात निरस्त करने की क्या जरुरत थी ) अब इन सब के बीच दुनिया में लोकतंत्र फ़ैलाने का ठेका लिया अमेरिका कैसे चुप रहता उसने भी अपना मुँह खोला और बोला की नोबेल पुरस्कार विजेता की पत्नी को आज़ादी दी जाये और उसे मानवाधिकार की याद दिलाई ( उसके सैनिक युद्ध बंदियों और युद्ध क्षेत्र से पकडे गए लोगो के साथ जो कर रहे है वो भी मानवाधिकार के अंतर्गत ही हो रहा है ) | नोबेल शांति पुरस्कार कितने निष्पक्ष होते है ये हम सभी को पता है तभी तो पिछले साल वो दो देशों को युद्ध  में झोकने वाले अपने पूर्व के राष्ट्रपतियों की नीतियों को ही आगे बढ़ने वाले उनके नए नवेले राष्ट्रपति को दे दिया गया हमारी भाषा में कहे तो उनके हाथों की मेंहदी भी नहीं छूटी थी बस एक महीने बाद ही दे दिया गया | जी हा पुरस्कार उनके हाथों में भले कुछ महीनों बाद आया था पर उनका नोमिनेशन तो तभी कर दिया गया था जब उनको अपना पद संभाले एक महिना ही हुआ था | और आज की तारीख में अमेरिका का सबसे बड़ा प्रतियोगी दादागिरी करने में चीन ही है अब उसके इस काम से चिढ़े अमेरिका द्वारा उसे इस तरह से चिढाने के कई काम होते है |
                             संभवतः भूमिका अच्छे से बन गई है अब मेरे भयानक विचार पर आते है सोचिये की कल को हमने अमेरिका से परमाणु समझौता कर लिया बिजली बनाया अपना विकास किया मजे लिए और वो नहीं किया जो वो हमसे चाहता है और जो हमारा दूसरा पड़ोसी उसके आगे करता है, दुम हिलाना, भाई हम अपने पड़ोसी के तरह बिना सिंग वाले बुद्धिहीन जीव तो है नहीं जो अमेरिका की हर इच्छा पूरी करते चले चलो हमने इंकार कर दिया और बन बैठे चीन की तरह उसके दुश्मन तो सोचिये की हमारे यहाँ वो किसको नोबेल पुरस्कार दिला सकता है | दावेदार तो कई है  जिसको नोबेल मिलने पर हमें भी वैसे ही हजम नहीं होगा जैसे की आज चीन को नहीं हजम हो रहा है | सबसे पहला नंबर आता है कश्मीर में बैठे कई अलगाववादी नेताओ का जो दावा करते है कि वो तो शांतिपूर्ण तरीके से भारत का विरोध कर रहे है और फिर समय बदलते और नेताओ को बदलते देर थोड़े ही लगती है जब बात नोबेल की हो और साथ में १४ लाख डालर भी मिलते है तो मुहम्द अज़हर से ले कर बड़े से बड़ा हिंसक आतंकवादी दावा कर सकता है की उसने तो सारा विरोध अहिंसक ही किया है उससे बड़ा शांति का दूत कोई और है ही नहीं | अब छविया बदलते देर थोड़े लगती है आखिर इंदिरा जी ने यासिर अराफ़ात को भी गले लगाया था ( ऐसा हमने पढ़ा और सुना है ) उनका इतिहास सभी जानते होंगे की वो अपने शुरूआती जीवन में क्या थे और इजराइल उनसे क्यों इतना चिढ़ता था | चलिए वापस अपने देश आ जाते है तो मतलब ये की तब तक कश्मीर में इस पुरस्कार के लिए कई दावेदार हो सकते है और सभी को नोबेल के लिए शार्ट लिस्ट किया जा सकता है जैसे इस बार चीन से तीन और ऐसे ही लोग शार्ट लिस्ट किये गये थे यानी कुल चार दावेदार चीन की तरफ से थे पर हम उनको पछाड़ देंगे क्योंकि हमारे पास कश्मीर के अलावा बब्बर खालसा , उल्फा, नक्सली नागा विद्रोही बहुत सारे दावेदार हमारे प्यारे पड़ोसियों की कृपा से मौजूद  है | सबसे तगड़ी दावेदारी किसकी होगी ये इस बात पर निर्भर होगा कि अमेरिका से उस समय हमारे दोनों पड़ोसियों के रिश्ते कैसे है |
             एक और ख्याल है सोचिये की नोबेल कोई छोटा मोटा पुरस्कार तो है नहीं अन्तराष्ट्रीय स्तर का है और काफी सम्मानित भी है उसकी तो बात ही दूसरी है लोग तो छोटे मोटे पुरस्कारों के लिए ना जाने क्या क्या कर जाते है सरकारों के तलवे चाटने से लेकर उनके दिये पदों पर जी हजुरी करने लगते है तो फिर अपनी छवि बदलना कौन सा मुश्किल काम है | अब सोचिये की अचानक से ये ख्याल दाउद को आ जाये की मेरे लिए दो देश आपस में लड़ रहे है चलो मैं ही आत्मसमर्पण कर देता हुं इससे दो देशों की दुश्मनी कम हो जाएगी और बदले में ये शांति स्थापित करने के लिए नोबेल पर अपना दावा ठोक दूँगा हो सकता है अमेरिका भी मेरा साथ दे और भारत से कहे की आप इस शांति के मसीहा को जेल में नहीं डाल सकते है इसने तो दो देशों के बीच शांति फैलाई है ये आत्मसमर्पण करके अपना प्रायश्चित करना चाहता है इसे शांति से करने दे |  और मान लो की जेल से छुटकारा नहीं भी मिला तो भारत के जेलों से हम जैसो को डरने की क्या जरुरत है खुद वहा के मंत्री कहते है की अबू सलेम को फाईफरह कर भी वो चकाचक रहते है अरे थोड़ी बहुत परेशानी हुई तो भाई नोबेल के लिए वो भी सह लेंगे | कौन सा मेरे जीते जी मेरे मुकदमो का फैसला आने वाला है और हो भी गया तो क्या गारंटी है की मुझे मिली फाँसी की सजा मुझे दे दी जाये अफजल गुरु  का नंबर २७ था मेरा जब तक आयेगा तब तक तो शायद मैं जिंदगी के सारे मजे लेकर अपनी प्राकृतिक मौत मार चूका होंगा |
                ख्याल भयानक है पर क्या पता हमें कब सच हो जाये बुरे के लिए हमेशा पहले ही तैयारी कर लेना चाहिए एक एंटी ख्याल भी साथ में अभी अभी आ गया है | जी मेरा नहीं है एक फिल्म से डाका डाल रही हुं फिल्म का नाम है " तेरे बिन लादेन " जी हा बिल्कुल सही सोच रहे है आप हमें भी एक अदद नीरू की जरुरत होगी जिसे लादेन बनाया जा सके बस उससे अमेरिका के खिलाफ सारे युद्ध बंद करने अमेरिका के साथ दूनिया से माफ़ी मागने और आगे शांति के लिए ही कार्य करने वाले डायलॉग बुलावा कर रिकार्ड करना है और जारी कर देना है दुनिया में और फिर मांग करनी है की नारे लगने है |
नोबेल दो नोबेल दो लादेन को नोबेल दो    
शांति के मसीहा को जल्दी से नोबेल दो
हम शुरुआत तो अकेले करेंगे पर हमारे साथ सारे इस्लामिक देशों का कारवाँ मिलता जायेगा और आवाज़ तेज होती जाएगी फिर चाहे तो हम खाड़ी देशों के साथ कूटनीति भी कर सकते है कि भाई साफ है कि लादेन को नोबेल दो नहीं तो तेल नहीं |
बोलिये विचार कैसा है
इस विचार से इतर एक बात - - - - मेरा मानना है कि दुश्मन की हर बात में बुराई नहीं देखनी चाहिए और उसकी हर गलती पर "उसने गलत किया" ये भी नहीं चिल्लाना चाहिए उसे अपने नफे नुकसान पर तौल कर बोलना चाहिए ( यहाँ दो देशों की बात हो रही है ) | भारत से ऐसी कूटनीति की उम्मीद तो नहीं थी ( क्योकि अन्तराष्ट्रीय कूटनीति में अक्सर वो कच्चा ही साबित होता है )  पर नोबेल पुरस्कार पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रया ना दे कर भारत ने मेरे हिसाब से तो अच्छा किया |

October 12, 2010

ऊफ ये नारीवादिया कभी सुधरेंगी ? - - - - - - - - - -mangopeople

कितना बुरा लगता है जब आप कोई गंभीर लेखन करे और लोग उसे व्यंग्य कहे दिल से आत्मा से किसी की बुराई करे और लोग उसे समझे ही नहीं उसका मतलब ही उलटा निकालने लगे | लगता है जैसे सारी मेहनत बेकार गई इतने हिम्मत से ये जहर उगला था और सभी इसको अमृत समझने की भूल कर गये | इसलिए अपना ये लेख नारी ब्लॉग के बाद एक बार फिर यहाँ दे रही हु इस उम्मीद में की शायद कोई मेरे इस गंभीर शिकायत को गंभीरता से लेगा | लेख थोड़ा लंबा है कोई बात नहीं कोई ब्याज नहीं लगेगा किस्तों में पढ़ लीजिये |

एक बात समझ में नहीं आती है की कुछ महिलाओ को दूसरे के जीवन में टाँग अड़ाने या दूसरों के घरों में ताका झाकी करने की आदत क्यों होती है | मैं तो बड़ी परेशान हुं एक ऐसी ही महिला से कुछ लोग उनको नारीवादी कहते है तो कुछ लोग उनको वो क्या कहते है हा याद आया घर तोडू औरत | कहते है उनको दूसरों के घर तोड़ने की आदत है | तलवार जी की बहु का  एक साल में दूसरी बार मिस कैरेज हो गया बेचारी को पहले से ही दो लड़कियाँ है | हमारी नारीवादी वहा चली गई कहने लगी क्या बात है मिसेज तलवार आपकी बहु के साथ दूसरी बार ये घटना हो गई किसी अच्छे डाक्टर को दिखाइये मिसेज तलवार ने कहा की नहीं भाई ऐसी कोई बात नहीं है हम तो खुद काफी अच्छे डाक्टर को दिखाते है | बेचारी बहु का उतरा सा मुँह देख कर उसे कह दिया की जब अगली बार फिर से प्रेग्नेंट होना तो अपने मायके चली लाना यदि बच्चा सुरक्षित चाहती हो | लो जी उनकी बहु ने तो सच में यही कर दिया अब तलवार परिवार का तो गुस्सा होना लाज़मी था | जिस बात का डर था उन बेचारो को वही हो गया तीसरी बार भी बेटी | उन्होंने भी साफ मना कर दिया की बहु हमारे इजाज़त के बिना मायके गई कैसे, अब हम उसे नहीं लायेंगे | तलवार साहब ने खुद कहा कि  उन्हें बेटी होने का गम नहीं है पर बहु की आदते ख़राब हो गई थी देखिये अपनी मर्ज़ी से मायके चली गई अब पड़ी रहे वही पर हमें उसकी जरुरत नहीं है | बोलो तोड़ दिया उसका घर अरे अपने ससुराल में होती तो क्या होता ज्यादा से ज्यादा एक दो बार और उस का मिसकैरेज हो जाता जहा दो जन्म से पहले मार दी गई वहा एक और मार दी जाती क्या फर्क पड़ता पर कम से कम उसका घर तो बना रहता बाकी दो बेटियों को तो उनके पिता का प्यार मिलता आप जानते नहीं कितना प्यार है उसको बेटियों से अब बताओ वो भी पिता के प्यार से महरूम हो गई | उन नारीवादी की अपनी दो बेटिया है उनको बेटे की चाह नहीं है पर इसका मतलब ये तो नहीं की दूसरों को भी इसकी चाह नहीं हो अरे बेटा कुल का चिराग होता है माँ बाप का सहारा होता है पर इनको कौन समझाये | अरे मुझे तो लग रहा है की तलवार परिवार अच्छा कर रहा था देश की जनसंख्या बढ़ने से रोक रहा था नहीं तो आदमी बेटे के चक्कर में कितनी बेटियों को जन्म देते चले | कुछ बेवकूफ़ लोग इसे भ्रूण हत्या कहते है और इसको लड़के लड़कियों के अनुपात ख़राब होने का कारण मानते है | पर मुझे नहीं लगता है कि कुछ ऐसा होता है ,ब्लॉग जगत के एक ज्ञानी ने हमें बताया की ऐसा कुछ होता ही नहीं है ये तो प्राकृतिक कारण है जो आज लड़कियाँ कम जन्म ले रही है और लड़के ज्यादा | जय हो उस ज्ञानी बाबा की और उफ़ ये घर तोडू औरते |
जी उनकी हिमाकत यही नहीं रुकी मिस्टर नारायण ने पार्टी दी उनका बेटा आस्ट्रेलिया जा रहा था पढ़ने के लिए सभी वहा गये वो भी गई और कहने लगी वहा नारायण जी आप के बच्चे तो बड़े होसियार है भाई इस साल बेटे को आस्ट्रेलिया भेज रहे है अगले साल लड़की भी ग्रेजुएशन कर लेगी उसे कहा भेज रहे है पढ़ने के लिए | नारायण जी ने कहा नहीं भाई बेटी को नहीं भेज रहा हुं लड़की है आप समझ सकती है थोड़ा सुरक्षा का मामला है तो कहने लगी की नारायण जी आप बेटा बेटी में इतना फर्क करते है बेटी कि इतनी चिंता आप को बेटे की जरा भी फ़िक्र नहीं है रोज टीवी पर आस्ट्रेलिया से भारतीय छात्रों के पीटने की खबर आ रही है आप को उससे डर नहीं लगता है | लो जी लगा दी आग नारायण जी के घर में वो दिन है और आज का दिन उनकी बेटी ने जब से ये बात सुनी है तब से ज़िद पर अड़ी है की पाप मैं तो भईया से ज्यादा पढ़ने में तेज हुं मुझे भी आगे पढ़ाई के लिए बाहर जाना है और नारायण जी उसे जाने नहीं दे रहे है भंग हो गई घर की शांति | अब आप ही बोलो की लड़कियों की पढ़ाई में कोई इतने पैसे खर्च करता है क्या अरे उनको तो फिर ससुराल चले जाना है उनकी पढ़ाई माँ बाप के क्या काम आयेगा बेटा पढ़ेगा कुछ अच्छा बनेगा उनके बुढ़ापे का सहारा बनेगा आज इन्वेस्ट किया है कल वही कमाई बनेगा | फिर ये भी तो डर रहता है कि लड़कियों को बाहर भेजो तो उनको कुछ ज्यादा ही पर निकल आते है बाहर पढ़ने को भेजा तो क्या पता वहा से किसी थॉमस पीटर को लेकर चली आवे का इज़्ज़त रह जाएगी नारायण जी की | पर उन नारीवादी को ये बात समझ आये तब ना उफ़ ये घर तोडू औरते |
 हद करती है राय साहब के बेटी की तो शादी ही तोड़ दी हुआ ये की लड़के वालो ने कुछ भी नहीं मागा था बड़े भले लोग थे राय साहब तारीफ करते नहीं थक रहे थे  राय साहब काफी पैसे वाले थे सब जानते थे सो लड़के वालो ने कह दिया की बेटी की ख़ुशी के लिए जो देना है आप खुद ही दे दे  | लड़का बैंगलोर  (बैंगलुरू)  में साफ्टवेयर इंजीनियर था उन्हें जा कर बोल आई की भाई पैसे दे रहे हो अच्छा कर रहे हो बेटी का भी पिता के धन पर हक़ बनता है आप के पास है तो अवश्य उसकी खुशी के लिए दे ऐसा करे की अपनी बेटी के नाम पैसे डाल दे बैंगलोर जाएगी तो वही पर अपने घर गृहस्थी का समान ले लेगी फैशन डिज़ाइनिंग का कोर्स किया है अपना बुटिक खोल लेगी एक अनजान शहर में वो कहा पैसों के लिए भाग दौड़ करेगी | राय साहब की मति मारी गई थी और उनकी बात मान ली शादी के चार दिन पहले जब लड़कों वालो के हाथ कुछ नहीं आया और उन्हें पता चला की सारा पैसा लड़की के नाम है तो उन्होंने शादी ही तोड़ दी | अब बोलो तो "आप को जो देना है खुद ही दे दो हमारे पास तो भगवान का दिया सब कुछ है" अरे ये सब बाते तो कहने के लिए होती है मानने के लिए नहीं | बिना लड़के वालो को कुछ मिले शादी संभव है क्या लड़के को पढ़ाने लिखाने में इतना खर्च किया है माँ बाप ने क्या उसको नहीं वसूलेंगे | अग्रवाल जी की लड़की को तो थाने तक ले कर चली गई हुआ ये की बेचारे के दामाद को बिज़नेस के लिए पैसे चाहिए था सो पत्नी को भेज दिया मायके की जाओ पापा से पैसे ले कर आना उसे ससुराल नहीं आने दे रहे थे | अग्रवाल जी को लेकर थाने चली गई और दामाद के खिलाफ रपट लिखा दी कि पैसे के लिए पत्नी को पिटता है और अब उसे साथ नहीं रख रहा है | तोड़ दिया एक और घर अग्रवाल जी को दे देने थे पैसे बेटी का घर बसा रहे ये ज़रुरी नहीं था और बेटी भी मार खा के चली आई ये नहीं कि मार सह कर भी अपना घर बचाती | कौन समझाये इनको उफ़ ये घर तोडू औरते |
आप बताइये की एक नारी के जीवन में उसके घर गृहस्थी पति परिवार से भी बड़ा कोई होता है अरे भगवान ने उसे बनाया ही इसीलिए है की वो सारा जीवन दूसरों की देखभाल करे उनकी सेवा करे क्या और कोई जीवन है उनका | पति उनका परमेश्वर होता है सारा जीवन उनके चरणों में गुजार देना चाहिए कभी कदार यदि उसको गुस्सा आये और पत्नी को पिट दे तो उसका प्यार समझ कर ग्रहण कर लेना चाहिए और कुछ नहीं कहना चाहिए पर इनको देखो वर्मा जी अपनी पत्नी को पिटते थे उनके बीच में कूद पड़ी अरे भाई ये उनके परिवार का आपस का मसला है जब वर्मा जी के बड़े भाई भाभी और पिता जी माता जी कुछ नहीं कर रहे है तो आप को पति पत्नी के बीच जाने की क्या जरुरत है कभी कदार पति ने पिट दिया तो क्या हुआ आखिर प्यार भी तो करता है एक दो झापड़ खा लेने में क्या बुराई है मुझे तो सारी गलती औरतों की ही लगाती है क्या जरुरत है पति से झगड़ा करने की चुप चाप वो जो कहे गाली दे सुन लेना चाहिए ज्यादा बोलेंगी तो मार तो खायेंगी ही ना | चुप रहेंगी तो दो झापड़ में पति शांत हो जायेगा और कुछ देर में भूल जायेगा आप भी भूल जाइये | पर ये समझती नहीं है उफ़ ये घर तोडू औरते |
एक नारी तो अपना अस्तित्व खो कर ही सही जीवन पाती है उसका काम तो बस बच्चे पैदा करना उसे अच्छे संस्कार देना और उनका पालन पोसन करना है | जब तक कोई स्त्री प्रसव आनंद सह कर किसी पुत्र को नया जीवन नहीं देती है वो संपूर्ण  नहीं होती है | पर ये निकल पड़ी है कि बेटियों की भी पहचान होनी चाहिए उनका भी नाम होना चाहिए उनका अपना अस्तित्व होना चाहिए उनको भी घर से बाहर निकल कर काम करना चाहिए का नारा लेकर | एक ज्ञानी ने हमें बताया है देश में महिलाओ के खिलाफ अपराध इसी के कारण बढ़ गये है क्योंकि वो घर से बाहर निकल रही है | सीधा हिसाब है की जब वो घर के बाहर निकलेंगी ही नहीं तो उनके खिलाफ कोई अपराध होगा ही नहीं ना | चुपचाप घर में बैठिये ना, किसने कहा है घर से बाहर जाने के लिए |  पहले घर से बाहर निकल कर पुरुषों को उकसायेंगी  फिर जब वो कुछ कर देगा तो तमाशा खड़ा कर देंगी |   दोष तो महिलाओ का है आप गई ही क्यों उसके सामने ना आप उसके सामने जा कर उसे उकसाती ना वो  कुछ करता उसमे उस बेचारे का क्या दोष है | पर ये मानती कहा है उफ़ ये घर तोडू औरते |
अरे इन्होंने तो कामवालियों तक के घर नहीं छोड़े उसे भी तोड़ डाला वो कामवाली भी बेवकूफ़ एक दिन रोते हुए इनके पास चली आई कहने लगी की जो कमाती है वो सब पति छीन लेता है और अपनी मर्ज़ी से उसे खर्च करता है शराब जुए में उड़ा देता है बच्चों के फ़ीस के पैसे नहीं है | लो जी चली गई उसके घर और उसके पति को धमका आई की आज के बाद यदि उसने पैसे छीने तो उसकी शिकायत पुलिस से कर देंगी और उसे छोड़ आया वहा जी वही जहा शराब वराब छुड़ाने है | क्या किया क्या जाये इनका इनको इतनी भी समझ नहीं है की जब अपना सब कुछ पति का है तो क्या पैसा उसका नहीं है आखिर कोई महिला कमाती ही क्यों है इसीलिए ना की पति के साथ खर्च में हाथ बटा सके जब बेचारे पति के शराब जुए का खर्च कम पड़ेगा तो पत्नी से नहीं लेगा तो किससे लेगा | आखिर एक नारी का धर्म ही क्या है अब जा कर जाना है की पुरुषों को खुश रखना तभी तो वो अपने पत्नी माँ या बेटी बहन को खुश कर सकते है वो दुखी रहेंगे तो सभी को दुखी करेंगे | पर उफ़ इन घर तोडू औरतों को क्या पता |
 याद करीये हमारी सभ्यता हमारी संस्कृति को कैसे नारिया अपना सर्वस्त्र निक्षावर करके भी अपना घर बचाती थी |  भले पति पिट पिट कर मार डाले ससुराल वाले दहेज़ के लिए जला दे पर कभी मायके वापस नहीं आती थी अपना घर नहीं तोड़ती थी | माँ की वो सिख नहीं भूलती थी की बेटी जिस ससुराल में तेरी डोली जा रही है वही से तेरी अर्थी निकलनी चाहिए | पर आज इन नारी वादियों के कारण लोगो के घर टूट रहे है ये नारियो को बिगाड़ रही है हमारी संस्कृति का ख़राब करके रख दिया है | इनकी इन हरकतों से तो सीता माता भी दुखी है |
खुद इनको तो सब कुछ  मिल गया है एक समझदार पति दो प्यारी बेटिया सम्मान और प्यार करने वाले सास ससुर समाज में नाम और पहचान खुद का घर तो ये खूब संभालती है पर दूसरों का घर तोड़ती है | उफ़ ये घर तोडू औरते |
कल आई थी मैडम जी मेरे पास सबकी खबर सुनाने कहने लगी " आज कल दिन ठीक नहीं चल रहे है तलवार जी के कुल के चिराग उनके बेटे ने उन्हें घर अपने नाम करके घर से निकल दिया है बेचारे बेटी के पास रह रहे है | नारायण जी का बेटा वही आस्ट्रेलिया में ही बस गया है पर वो किसी को बताते नहीं क्या बताये किसी के साथ रहता है किसी थॉमस के साथ हा बेटी बड़ी अच्छी पोस्ट पर पहुँच गई है सीना फूला कर सबको बताते है | राय साहब की बेटी की शादी उसी लड़के के साथ हो गई है | लड़के ने अपने घर वालो की मर्ज़ी के खिलाफ शादी कर ली | अग्रवाल जी की बेटी का तलाक हो गया है उसकी भी दूसरी शादी तय हो गई है | वर्मा जी तो पुलिस की एक झाड़ के बाद ही सुधर गए | कामवाली के पति की भी शराब जुए की लत छूट गई है अब ढंग से काम करता है कही | " अपनी झूठी वाह वही करके मैडम जी चलती बनी | पर जो भी हो वो है तो घर तोडू औरत ही |  
    

October 10, 2010

आइये तनाव मुक्त हो कर मज़ाक उडाये इनका - - - - - - - - mangopeople


                                    राजनिती  का  ड्रामा 
                           मेल ऑफ़ दी विक ...............नाटक 
                 राहुल गाँधी ने ये सारा काम किया बस एक घंटे  
                वो भी मीडिया के सामने ये करके उन्हें क्या मिला 
               यदि आप वास्तव में हमारे भारत को बदलना चाहते है 
               तो हमें कुछ भी दिखाने की जरुरत नहीं है आप    
                वास्तव में कुछ कार्य हम खुद आप के पीछे चलेंगे 
                         
                                  करूणानिधि की भूख हड़ताल 
                    दुनिया के इतिहास में यह पहली बार हुआ जब 
                    कोई भूख हड़ताल सिर्फ चार घंटे चली वो भी सारी 
                     सुख सुविधाओं के साथ ये भूख हड़ताल ब्रेकफास्ट 
                    के बाद शुरू हुआ और लंच के पहले ख़त्म हो गया
                                          बोलिये है ना मजेदार 

बंद कीजिये ये सब और एक परिपक्त भारतीय बनिये

    आज कल ब्लॉग जगत में काफी गंभीर बहस चल रही है अब तो मज़ाक पर भी बहस हो रही है की मज़ाक किस पर किया जाये लोग तय नहीं कर पा रहे है मेरी गारंटी है देश के वर्तमान नेता ही एक मात्र ऐसे लोग है जिन पर किया गया मज़ाक और उनकी टाँग खिचाई से  किसी को भी आपत्ति नहीं होगी सब इसका बिना किसी तनाव के मजे ले सकते है और एक सुर में सभी उनका मज़ाक उड़ा सकते है | शुरुआत मैंने की है आइये हाथ बढाइये जितना चाहे दिल खोल कर इनका मज़ाक उड़ाइए और और तनाव मुक्त हो जाइये |

फोटो  ऊपर की सूचना ई -मेल से प्राप्त है | 













October 05, 2010

क्या हमारे सिस्टम की ये लापरवाही माफ़ी के लायक है - - - - - -mangopeople

आज सुबह नव भारत टाइम्स में एक खबर बढ़ी पढ़ कर जितना दुख हुआ उतना ही गुस्सा आया देश की व्यवस्था पर | मुंबई में एक व्यक्ति एक्सीडेंट के बाद ब्रेन डेड हो गया उसकी पत्नी ने इस दुख की घड़ी में भी अपने दुःख को एक तरफ रख अपने पति के अंग दान करने की सोची तो उसे पुलिस से एन ओ सी लाने को कहा गया पहले तो उन्हें दो पुलिस स्टेशन के बीच दौड़ाया गया फिर उससे कहा गया की अभी तो उसके पति की सांसे चल रही है वो क्यों उसको मार रही है बेचारी घबरा कर अस्पताल आ गई वहा पर फिर से उनकी काउंसलिंग करके मनाया गया तो इस बार पुलिस ने कहा दिया की उसे अंग दान के कानून के बारे में जानकारी नहीं है | इस पर उस अस्पताल ने दूसरे अस्पताल से कमिश्नर के आदेश की वो कापी मगाई जिसमे कहा गया है ऐसे मामलों में पुलिस खुद अस्पताल में आ कर कार्यवाही करे तब तक रात हो चुकी थी फिर भी वो महिला तीन चक्कर लगने के बाद भी आदेश की कॉपी ले कर वापस पुलिस स्टेशन गई जहा पर उससे कहा दिया गया की पुलिस  गणपति के ड्यूटी में व्यस्त है और तब तक उसके पति के अंग ख़राब हो चुके थे और उसने भी हार मान लिया कुछ घंटो बाद उसके पति की मौत हो गई  | अब आप बताइये की इस तरह की लापरवाही माफ़ करने लायक है सोचिये उन तीन लोगों के बारे में जो जीवन और मृत्यु के बीच झूल रहे थे जिन्हें अंग प्रत्यार्पित करने के लिए तैयार कर लिया गया लेकिन रात होते होते उनको फिर से एक नया जीवन मिलने का मौका हाथ से चला गया | उन तीनों लोगों और उनके परिवार पर क्या गुज़री होगी | क्या पुलिस और हमारी ये व्यवस्था इतनी असंवेदनशील हो गई है क्या उन पुलिस वालो को मामले की गंभीरता और जरुरत की जरा भी समझ नहीं थी | इस मामले में अस्पताल भी कम दोषी नहीं है कहने को तो वो अस्पताल मुंबई का काफी नामी प्राइवेट अस्पताल है क्या उसकी ज़िम्मेदारी नहीं थी की सारी कागजी कार्यवाही वो खुद करे ना की उस महिला को भाग दौड़ करने के लिए भेजे जो महज ३५ साल की आयु में अपने पति को मरते हुए देख रही थी | मैं तो उस महिला के हिम्मत की दाग दूंगी जो खुद पर आये इतने बड़े दुःख को भुला कर इतना नेक काम करने का प्रयास कर रही थी पर उसके सारे प्रयास सिस्टम की लापरवाही के कारण बेकार हो गये और बेकार हो गई तीन लोगों को फिर से जीवन मिलने की आस जो उसके पति के अंगों से फिर से जीवन पाने वाले थे | 
   अखबार के मुताबिक अकेले मुंबई में १५०० लोग किडनी और ६५ लोग लीवर के इंतजार में है | पूरे देश में कितने होंगे हम अंदाजा लगा सकते है | हमारे देश में अंग दान को ले कर वैसे ही कई भ्रान्तिया है अंग दान करने वालो की संख्या बहुत ही कम है उस पर से यदि जो देने के बारे में सोचे  उसके साथ इस तरह का व्यवहार हो तो वो इन्सान निराश होगा ही  दूसरों पर भी  इसका बुरा असर होगा | इस तरह की घटना को सुन कर तो कोई भी यही कहेगा की कौन इस झंझट में फसेगा | इस तरह के नेक कामों को तो और सहूलियत भरा बनना चाहिए ताकि और भी लोग प्रोत्साहित हो पर क्या कहा जाये हमारे देश की व्यवस्था को जहा पुलिस को कानून की जानकारी नहीं होती है उसे किसी काम की प्राथमिकता की समझ नहीं होती है या ये कहु की पुलिस है ही इतना असंवेदनशील की उसे किसी के जीवन और मौत से फर्क ही नहीं पड़ता है | अब इस केस के सामने आने के बाद तो लगता है की ना जाने ऐसा कितने लोगों के साथ ऐसा हुआ होगा और लोग चाह कर भी ये नेक काम नहीं कर पाये होंगे |  क्या हम कभी भी सरकारी काम में कागजी कार्यवाही के जंजाल से बाहर आ पाएंगे | क्या कभी भी और किसी भी मामले पर हमारी ये देशी व्यवस्था सुधरेगी या थोड़ी भी गंभीरता दिखायेगी |