August 01, 2017

माँ दूध अमृत नहीं होता ---------- mangopeople

       



                                                       हाल में ही एक लेख पढ़ा जिसमे बताया गया कि माँ का दूध उतना भी अमृत नहीं होता जितना की उसे बताया जाता है | लेख के अनुसार जब  पाउडर का दूध बाजार में आया माँ के दूध के विकल्प में ,तो विकासशील और गरीब देशो के लिए एक समस्या खड़ी हो गई थी वो थी साफ़ पीने योग्य पानी उपलब्ध कराने की , जिसमे दूध को मिला कर बच्चो को पिलाया जा सके | उन देशों में ये संभव नहीं था इसलिए उन्होंने माँ के दूध के बारे में बढ़ा चढ़ा कर प्रचारित करना आरम्भ किया ताकि माँए पाउडर के दूध से दूर रहे |  गंदे पानी में बना कर दिया दूध बच्चो के लिए और खतरनाक हो सकता था | साफ सफाई का आभाव बच्चो को और बीमार बना सकता था और पहले से ही ऊँचे बाल मृत्युदर वाले  इन देशो में ये दर और बढ़ सकता था |

                                            मै काफी हद तक इस बात से सहमत हूँ कि वास्तव में माँ का दूध उतना अमृत नहीं होता जितना की बताया जाता | मै पाउडर के दूध का समर्थन नहीं कर रही माँ के दूध के विकल्प के रूप में हमारे यहाँ पुराने समय से ही गाय , भैस और बकरी के दूधो का प्रयोग किया जाता रहा है | जानवरो के दूध को बच्चे के लायक सुपाच्य बना कर दिया जाता रहा है | ऐसे बहुत से कारण है जब माँ के दूध की जगह या उसके साथ बाहर से भी दूध बच्चो को पिलाया जाता रहा है | एक सबसे सामान्य कारण है कि बच्चे के जन्म के साथ ही माँ को तुरंत दूध आ जाये ये जरुरी नहीं है ,  बहुत सी महिलाए ऐसी है जिन्हे दूध ना के बराबर आता है या मात्रा बहुत कम होती है जिससे बच्चे का पेट नहीं भरता , कई बार महिलाए बीमार होने के कारण तो कई बार बच्चे के बीमार होने के कारण भी माँ अपना दूध बच्चो को नहीं पिलाती और उन्हें बाहर से दूध दिया जाता है | उपलब्धता के और बच्चे के पचाने की छमता के अनुसार  पाउडर, गाय , भैस और बकरी का दूध दिया जाता रहा है | जो पौष्टिकता के और बच्चे के जरुरत के हिसाब से कही से भी माँ के दूध से कम नहीं होता है |

                                           बच्चे के स्वस्थ के दृष्टि से भी देखे तो इस अतिश्योक्ति पूर्ण माँ के दूध  की महिमा से बाहर आने की भी जरुरत है | कितनी ही बार ऐसा होता है कि माँ को दूध कम आ रहा है जो उसके बच्चे का पेट भरने के लिए पर्याप्त नहीं  है किन्तु बाहर का दूध दिया तो बच्चे के लिए अच्छा नहीं होगा जैसी भ्रान्ति बच्चे के लिए खतरनाक हो जाती है |  कई बार बच्चो में पानी की कमी हो जाती है तो कई बार वो  इस कारण कुपोषित तक हो जाता है | कई बार ऐसा भी होता है कि माँ को अच्छे से दूध आ रहा है किन्तु बच्चे की जरुरत उससे ज्यादा है |  ज्याद सेहतमन्द या ज्यादा ऊर्जा खर्च करने वाले बच्चो की जरूरते अन्य सामान्य बच्चो से ज्यादा होती है | ये जरुरी  नहीं है कि माँ का दूध बस उनके लिए पर्याप्त हो उसे माँ के दूध ( माँ के दूध आने की एक सीमा होती है ) के आलावा भी और पोषण की जरुरत हो सकती है |  इन दोनों ही स्थितियों में भूख के कारण बच्चे चिड़चिड़े होते है , बार बार रोते है और एक अच्छी लम्बी नींद नहीं ले पाते है और जल्दी जाग जाते है | ये सारी ही स्थिति बच्चे के स्वस्थ के लिए और उसकी बढ़त  के लिए अच्छा नहीं होता | इसलिए ये जरुरी है कि इस भ्रान्ति को दूर किया जाये | माँ का दूध बच्चे के लिए बेहतर है ये सही है किन्तु केवल माँ का ही दूध बच्चे के लिए पर्याप्त है और उसे बाहर से किसी पोषण की जरुरत नहीं है या बाहर से दिया गया दूध उसके उसके लिए खतरनाक होगा ये सही नहीं है |


                                     माँ का दूध बच्चे के लिए अमृत होता है जैसी अतिश्योक्तिपूर्ण बाते एक माँ के लिए कितना मानसिक दबाव और ग्लानि ला देता है कई बार इसका अंदाजा भी आम लोगो को नहीं है | बच्चे के जन्म के साथ ही यदि उसे दूध न आये , दूध कम मात्रा में आये , किसी बीमारी या काम की वजह से वो बच्चे को स्तनपान न करा सके तो ये बाते उसे ग्लानि और अपराधबोध से भर देती है जो उसे न केवल तनाव देता है बल्कि कई बार उन्हें डिप्रेशन  में भी ले जाता है | उन्हें लगता है कि केवल स्तनपान न करा पाने के कारण वो एक माँ की जिम्मेदारियां और कर्तव्यों को ठीक से नहीं निभा रही है | कई बार वो ये मानने के लिए भी इसी कारण तैयार नहीं होती की उनका दूध बच्चे के लिए पर्याप्त नहीं है या उनके बच्चे की  जरूरते और ज्यादा पोषण की है तो उन्हें बाहर से भी बच्चे को दूध देना चाहिए | इस तरह का मानसिक दबाव माँ के साथ बच्चे  के लिए भी ठीक नहीं है | एक स्वस्थ और खुश माँ ही किसी बच्चे की बेहतर देखभाल कर सकती है | केवल स्तनपान ही किसी माँ को वर्णित  नहीं करता , स्तनपान माँ के कई कर्तव्यों का एक हिस्सा भर है , ये बात सभी को समझने की आवश्यकता है |

चलते चलते
                     मेरी बेटी करीब नौ महीने की थी तब मै अपने गांव ससुराल गई थी | जिठानी को दो पुत्रियों के बाद मन्नतो से पुत्र हुआ था जो महीने भर का था | एक सुबह वो उठ कर रोने लगा उसकी माँ मंदिर गई थी उन्हें आने में देर था तो मैंने ससुराल की अन्य महिला से कहा मुझे दे दीजिये ही मै उसे तब तक दूध पीला देती हूँ ,  बचपन में मेरे अपने संयुक्त परिवार में अक्सर दो लोगो को एक साथ बच्चे होते थे और वे एक दूसरे  के बच्चो को आराम से स्तनपान करा देती थी ,तो मेरे लिए ये सामान्य बात थी ,किन्तु ससुराल में  रिश्तेदार महिला ने मुझे प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा ( संभवतः ये उसके पुत्र होने के कारण  था ) उन्हें अनदेखा कर मै बच्चे को दूध पिलाने लगी | कुछ ही देर में जिठानी आ गई मुझे ऐसा करते देख मुस्कराई बोली ठीक किया | अगले दिन जिठानी रसोई में खाना बना रही थी बच्चा फिर रोया मैंने कहा मै काम करती हूँ आप दूध पीला दीजिये | बोली गर्मी में क्या रसोई में आओगी अच्छा है तुम ही दूध पीला दो | तुरंत मेरे शातिर दिमाग की घंटी बज गई ये सामान्य बात नहीं है कुछ तो पक रहा है उनके दिमाग में , उस समय बात को दिमाग की खुटी पर टांग कर दूध पीला दिया | तीसरे दिन जैसे ही उन्होंने फिर से मुझसे कहा मै शुरू हो गई , पता था की बात कैसे निकलवानी है | मैंने पूछा क्या हुआ आप को दूध नहीं आ रहा तो उनका जवाब था नहीं ऐसी बात नहीं है | तो क्या अपने दूध का दही जमा के दही बड़े बनाने है | तब जा कर पोल खुली नहीं जी तुम वहा फल मेवा दूध मलाई खाती हो तुम्हारा दूध अच्छा होगा हम लोग कहा यहाँ पर ये सब खाते है | माथा ठोक लिया अपना अब ससुरालियों की टांग खिचाई करुँगी का कार्यक्रम बाद के लिए रख उन्हें समझाया , अच्छा खाने से माँ के दूध की क्वांटिटी मात्रा बढती है क्वॉलिटी नहीं ,सभी माँ के दूध एक जैसे होते है चाहे आप कुछ भी खाये |  उन्हें न मानना था और ना वो मानी लेकिन शाम की बैठकी में मैंने टांग खिचाई का कार्यक्रम शुरू किया पतिदेव से कहा भाभी ने सुबह मुझे भैंस कहा और खुद को गाय | सबके सामने ये सुन सकपका गये सारा किस्सा सुनते हुए कहा घुमा कर ही सही लेकिन उनके कहने का मतलब यही था कि मेरा दूध  भैंस की क्वॉलिटी है और उनका गाय का , मै भैंस हु और वो गाय |




#हिन्दी_ब्लॉगिंग 
                                     















21 comments:

  1. ये तो आपने एक अनजानी सी बात बताई जबकि अभी तक यही सुनते आये हैं कि मां का दूध शिशु के लिये अमृत तुल्य होता है पर आपने तथ्यात्मक लिखा है इसलिये कोई कारण नही बनता की आपकी बात ना मानी जाये. जानकारी के लिये आभार आपका.
    रामराम
    #हिन्दी_ब्लॉगिंग

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    1. निश्चित रूप से अपने देश में जीतनी अज्ञानता है उसमे माँ का दूध ही बच्चे के लिए सुरक्षित है , लेकिन उसे माँ का दूध ही समझा जाए तो बेहतर , बढ़ा चढ़ा कर कही बाते एक अलग रूप में बैक फायर कर देती है कई बार |

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  2. चलते चलते :-
    पतिदेव से कहा भाभी ने सुबह मुझे भैंस कहा और खुद को गाय.......यहां भी आपने हंसी मजाक में एक उपयोगी बात कहदी. वाकई यह पोस्ट सहेजने लायक है, आभार.
    रामराम
    #हिन्दी_ब्लॉगिंग

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  3. एक नए परिप्रेक्ष्य में विषय को रखा आपने।

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  4. बच्चे को जो दूध जीवनदान दे, वही अमृत है....
    कई परीस्थितियाँ हैं जब माँ बच्चे को दूध नहीं पिला पाती तब गाय, बकरी का दूध बच्चे को जीवन देता है...वरना तो पाउडर के दूध पर पले बच्चे भी खासे ह्रष्टपुष्ट दिखे हैं 😊
    एक अलग विषय पर अच्छा लेख!

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    1. जी बिलकुल सही कहा | लेकिन लोगो को लगता है बाहर का दूध बच्चो को कमजोर बना देगा या वो बच्चो के लिए ठीक नहीं है |

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  5. बहुत अच्छी तरह से लिखी है बातें,हालाँकि दूध पिलाते कभी किसी दूसरी माँ को देखा तो नहीं पर सुना जरूर है कि किसी बच्चे को जन्मते समय माँ चल बसी तो किसी और जच्चा का दूध पीकर बड़ा हुआ बच्चा,और बहुत सी भ्रांतियां पाले लोगों को देखा भी है जो 4-5 साल तक बच्चे को स्तन मुँह में देकर सुलाती रही,हालांकि सब जानते हैं दूध तो तब न आता होगा....और किसी के टोकने पर ये जबाब कि- वो छोड़ता नहीं ...😊

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    1. हमारे घर के लिए बहुत ही आम बात है | अभी हफ्ते भर पहले छोटी बहन को बेटा हुआ लेकिन वो अपनी माँ का दूध नहीं पी पा रहा तब सबसे छोटी बहन ने उसे स्तनपान कराया जिसकी अभी १० महीने की बेटी है | अपने घर में माँ और बुआ को भी जरुरत पड़ने पर एक दूसरे के बच्चो ऐसा करते देखा है |

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  6. माँ का दूध अमृत है या नहीं - इससे अधिक महत्वपूर्ण बात है कि यदि माँ को पूरा दूध आ रहा तो उसे पिलाने से भागना नहीं चाहिए

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    1. अधिकतर माँए इससे भागती नहीं है बहुत ही कम स्त्रियाँ स्तनपान से बचती है जिसमे बहुतो की मजबूरी भी होती है |

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  7. तुमने आज एकदम मेरे मन की बात की. कितना लोजिकल है यह सब, पता नहीं क्यों नहीं समझते लोग. नई माँ को कितनी ही बार इस दवाब में अपने स्वास्थय की बलि देकर यह काम करना पड़ता है. वरना उसे ताने मार मार कर अधमरा कर दिया जाता है.

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    1. खुद माँ अपने ऊपर दबाव ले लेती है | कई बार ये बाते उन्हें भावनात्मक रूप से तोड़ देता है | लोग माँ के साथ जुडी ज्यादातर बातो में अतिश्योक्ति करते है |

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  8. गाय भैंस वाली बात ने पुरे पोस्ट को नया मोड़ दे दिया :)

    वैसे जानकारी बेहतरीन !

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  9. माँ के दूध का विकल्प है बकरी का दूध। बच्चे के लिये सर्वाधिक सुपाच्य है।

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  10. इस आलेख ने कई भ्रांतियां, अगर वो हैं तो दूर की हैं ... पर फिर भी माँ का दूध आत्मीय रूप से, संवेदनाओं से जुड़ा है ... इसका एक व्यापक दृष्टिकोण तो जरूर है ...

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  11. प्रसव के बाद जननी का ज्यादा चलना-फिरना मुनासिब नहीं होता इसलिए प्रकृति ने हर स्तनपायी प्राणी के शरीर में ही ऐसी व्यवस्था कर दी है जिससे उसके नवजात शिशु को तुरंत खाद्य की उपलब्धि हो सके। माँ के दूध को इसीलिए अमृत कहा गया है क्योंकि वह तुरंत उपलब्ध है, सुपाच्य है, प्राकृतिक है। पता नहीं आपके द्वारा पढ़े गए लेख में जो "उतना भी अमृत नहीं है" उसमें लेखक की अमृत की परिभाषा क्या है ? वैसे भी गाय, भैंस, बकरी इत्यादि का दूध उनके बच्चों के लिए प्रकृति ने प्रदान किया है मानव के लिए नहीं, यह और बात है कि हम वर्षों से उनका दोहन करते आ रहे हैं !!

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  12. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ’राष्ट्रकवि का जन्मदिन और ब्लॉग बुलेटिन’ में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

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  13. माँ का दूध बच्चे की प्राथमिकता है लेकिन पर्याप्त न होने की दशा में बाहर का देना भी उचित है। माँ का दूध बच्चे को बाहरी संक्रमण से बचा कर रखता है इसी लिए अमृत कहा जाता है और माँ के दूध पर निर्भर बच्चे का स्वास्थ्य भी ठीक रहता है।

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