नायिकाओं के अनेक भेद पढ़े होंगें आज जरा नायको के भेद भी पढ़िये और देखिये की आप किस श्रेणी मे आतें हैं ।
तो अलग अलग लोगों ने नायकों के अलग अलग भेद बतायें हैं । सबसे पहले भरतमुनि के नाट्यशास्त्र के अनुसार चार भेद हैं ।
धीरोद्धत - ऐसा नायक जो वीर, सज्जन, गम्भीर, सुख दुख मे विचलित ना होने वाला , क्षमावान , अहंकारहीन दृढव्रती सर्वगुणसंपन्न उच्च चरित्र वाला हो जैसे की राजा राम ।
तो आगे बढ़े आप मे से कोई ऐसा नही है ।
धीर ललित - ललित शब्द से ही स्पष्ट होगा कि नायक कला प्रेमी होगा । वीर होने के साथ साथ सोलह कलाओं मे निपुण । मृदु स्वभाव वाला गीत संगीत का वो प्रेमी जो स्वयम मे खुश रहता हो जैसे कृष्ण।
तो खुद को कृष्ण समझने की सोच से बाहर आओं । आप सब उसके हजारवें अंश के आसपास भी ना हो। चलो अब आप आम लोगों की बात करतें हैं ।
धारोदत्त - यह वीर तो होता है लेकिन साथ मे उग्र भी । बलशाली, अहंकारी, ईर्ष्यालु, आत्मप्रसंसक , चंचल प्रवृति वाला जो छल कपट करता हो ।
धीर प्रशान्त - सामान्य गुणों वाला सामान्य आदमी , जो त्यागी और शान्त चित्त वाला हो ।
इसका अलावा भी सरल तरीके के उन्होने तीन भेद बतायें हैं ।
उत्तम- सर्वगुणसंपन्न , विवेकवान गरीबो का रक्षक , गंभीर व्यवहार वाला
मध्यम- वह जो विज्ञान और संस्कृति दोनो का ज्ञानी हो और लोग, समाज को समझ व्यवहार करे ।
अधम- जिसे बात करने का ढंग आवे ना , कम दिमाग वाला जो बस शारीरिक सुख को महत्व देता हो ।
अग्निपुराण मे नायक के भेद बस श्रृंगार रस का भाव मे अर्थात स्त्री के साथ उसके संबंध के आधार पर किया गया है ।
अनुकूल- सबसे श्रेष्ठ नायक जो पत्नी के अलावा अन्य स्त्री की तरफ आँख उठा कर भी नही देखता । बाकियों से दूर ही रहता है ।
षठ- अपनी पत्नी को ठगने वाला । पत्नी को अपने प्रेम के भ्रम मे रख अन्य स्त्री से भी संबंध रखने वाला ।
दक्षिण - यह नायक एक दो नही बहुत सारी स्त्रियों से संबंध रखता है।
धृष्ट - निर्लज्ज नायक दुनिया समाज की परवाह ना करके सबके सामने ही प्रेमालाप करता है ।
अग्नीपुराण मे इसी को प्रतिनायक जेष्ठ मध्य अधम भी कहा गया है ।
राजा भोज ने अपनी अलग अलग पुस्तक मे अलग अलग आधार पर नायको के भेद बतायें हैं । सरस्वतीकंठाभरण मे नाटक के आधार पर नायकों का भेद किया है
नायक , प्रतिनायक , उपनायक , द्विय नायक । इन सबके चरित्र के आधार पर सात्विक, राजस और तमस का वर्गीकरण किया है ।
श्रृंगारप्रकाश मे धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष के आधार पर
धोरोद्वत - धर्म को महत्व देने वाला
धीर ललित- काम को महत्व देने वाला
धीरोदत्त - अर्थ ( धन) को महत्व देने वाला
धीर प्रशान्त- मोक्ष चाहने वाला ।
भानुदत्त ने रसमंजरी मे बिल्कुल अलग वर्गीकरण दिया है । ये भी स्त्रियों से संबंधों के आधार पर है ।
पति - अनुकूल, दक्षिण, षठ , धृष्ठ जो ऊपर चार हैं
उपपति - वो जो दूसरे नायक की पत्नी अर्थात विवाहित महिला से संबंध रख उप पति बने । इसके दो प्रकार है
पहला वचन चतुर - जो मीठी मीठी बोल दूसरी स्त्रियों को बर्गला ले ।
दूसरा क्रिया चतुर- जो अपने काम और "काम" से स्त्रियों को अपना बना ले , अपने प्रेम मे पड़वा ले ।
वैशिक - जो नायक वैश्यानुरक्त हो ।
उन्होने बाद मे प्रोषित नाम के नायक का भी जिक्र किया है । ज्यादातर लेखक इसी भेद को स्वीकार करते हैं । माना जाता है अग्निपुराण ने भी यहीं से नायक भेद लिया है ।
रूप गोस्वामी ने उज्जवलनीलमणि मे कहा है कि भाई नायक तो बस एक ही है और वो हैं कृष्ण।
तो कृष्ण रूपक नायक को छोड़ पुरूष रूपी गोपियों देख लो की तुम सब किस श्रेणी के नायक हो और किसी स्त्री के जीवन मे नायक हो भी । कही किसी के जीवन के खलनायक तो नही हो ।