बात चार साल पहले के दिवाली की हैं , दिवाली की छुट्टियों में बिटिया को कहा गया था कि हिंदी में दिवाली पर एक निबंध भी लिखना हैं | दिवाली बिताने के बाद बिटिया ने पूछा क्या लिखूं निबंध में , मैंने कहा जो जो किया हैं सब लिख दो , दिवाली खूब खरीदारी की , रंगोली बनाया , घर सजाया , लाइटें लगाईं , खूब तरह तरह के खाना खाया वही सब जो तुमने किया हैं |
दो घंटे की अथक मेहनत के बाद बिटिया ने निबंध लिख कर रख लिया | स्कूल खुलने के दो दिन पहले मैंने कहा एक बार मैं देख लेती हूँ , स्पेलिंग जरूर गलत होगी , ठीक कर दूंगी ( हा ठीक हैं मेरी स्पेलिंग भी गलत होती हैं लेकिन बच्चे की तो ठीक कर ही सकती हूँ ) | शुरू के तीनो पैरा बिलकुल वैसा ही लिखा था जैसा मैंने कहा था लेकिन समापन इतना भयानक था कि अगर टीचर के हाथ लगता तो मम्मी पापा की स्कूल तक परेड हो जानी थी |
असल में उसके एक साल पहले की दिवाली पर मैं अपने घर गई थी और दिवाली की रात खूब ताश की बाजियां हुई वो पैसों के साथ वाली , बिटिया पैसा जीती उन्हें बड़ा मजा आया | इस दिवाली वो बोली उन्हें अपने दोस्तों के साथ भी खेलना हैं वही | बिल्डिंग के मित्रो को रात में ताश , जुआ खेलने का न्यौता हमसे बिना पूछे पहले ही दे दिया गया था | रात तो तीनो मित्र पधारी तो हमें पता चला इनका कार्यक्रम | लगा पैसे की बाजी लगी तो बच्चों के परिवार वाले क्या सोचेंगे , कोई हार कर रोने लगा तो अलग मुसीबत | अब बिटिया और वो सब सादा ताश खेलने को तैयार नहीं , कोई जीत हार ना हुआ तो क्या मजा आएगा |
तो मैंने उपाय के तहत कहा चलो असली पैसे से नहीं बिजनेस वाला पैसा निकालों उससे खेलते हैं | मजा भी आएगा और किसी को कोई समस्या भी नहीं होगी | रात के बारह बजे तक जुए की बाजी चलती रही जब तक की एक के घर से उसका भाई बुलाने नहीं आ गया और यही सब बिटिया ने अपने दिवाली वाले निबंध में सविस्तार लिख मारा था |
अब उसे समझाते ना बने कि जब ये खेला जाना बुरा नहीं हैं तो निबंध में लिखा जाना क्यों बुरा हैं | फिर सविस्तार युधिष्ठिर का कथा व्यथा , मुसीबत दुष्परिणाम , छोटा जुआ बड़ा जुआ , स्वयं पर नियंत्रण आदि इत्यादि लम्बा चौड़ा प्रवचन के बाद सब ठीक ठाक हुआ | बाद में हमें डर बना हुआ था कि कहीं बिटिया को मैंने ये तो ना सीखा दिया कि किया धरा सब जाता हैं बताया सब नहीं जाता |
वैसे इस साल कुछ चालीस रूपया हार गई जुए में , पहली बार , वो भी कुल पतिदेव जीते ये भी हुआ पहली बार , फिर उलाहना भी सुने इस बार इतनी किस्मत तेज थी तो बेकार में दो दो रुपये की चाल में व्यर्थ किया किसी कैसिनो में जा कर आजमाना था | सात रु लेकर बैठे थे और अस्सी रुपये लेकर उठे , हजार की बाजी होती तो कितना जीत चुके होते |
#मम्मीगिरि
दो घंटे की अथक मेहनत के बाद बिटिया ने निबंध लिख कर रख लिया | स्कूल खुलने के दो दिन पहले मैंने कहा एक बार मैं देख लेती हूँ , स्पेलिंग जरूर गलत होगी , ठीक कर दूंगी ( हा ठीक हैं मेरी स्पेलिंग भी गलत होती हैं लेकिन बच्चे की तो ठीक कर ही सकती हूँ ) | शुरू के तीनो पैरा बिलकुल वैसा ही लिखा था जैसा मैंने कहा था लेकिन समापन इतना भयानक था कि अगर टीचर के हाथ लगता तो मम्मी पापा की स्कूल तक परेड हो जानी थी |
असल में उसके एक साल पहले की दिवाली पर मैं अपने घर गई थी और दिवाली की रात खूब ताश की बाजियां हुई वो पैसों के साथ वाली , बिटिया पैसा जीती उन्हें बड़ा मजा आया | इस दिवाली वो बोली उन्हें अपने दोस्तों के साथ भी खेलना हैं वही | बिल्डिंग के मित्रो को रात में ताश , जुआ खेलने का न्यौता हमसे बिना पूछे पहले ही दे दिया गया था | रात तो तीनो मित्र पधारी तो हमें पता चला इनका कार्यक्रम | लगा पैसे की बाजी लगी तो बच्चों के परिवार वाले क्या सोचेंगे , कोई हार कर रोने लगा तो अलग मुसीबत | अब बिटिया और वो सब सादा ताश खेलने को तैयार नहीं , कोई जीत हार ना हुआ तो क्या मजा आएगा |
तो मैंने उपाय के तहत कहा चलो असली पैसे से नहीं बिजनेस वाला पैसा निकालों उससे खेलते हैं | मजा भी आएगा और किसी को कोई समस्या भी नहीं होगी | रात के बारह बजे तक जुए की बाजी चलती रही जब तक की एक के घर से उसका भाई बुलाने नहीं आ गया और यही सब बिटिया ने अपने दिवाली वाले निबंध में सविस्तार लिख मारा था |
अब उसे समझाते ना बने कि जब ये खेला जाना बुरा नहीं हैं तो निबंध में लिखा जाना क्यों बुरा हैं | फिर सविस्तार युधिष्ठिर का कथा व्यथा , मुसीबत दुष्परिणाम , छोटा जुआ बड़ा जुआ , स्वयं पर नियंत्रण आदि इत्यादि लम्बा चौड़ा प्रवचन के बाद सब ठीक ठाक हुआ | बाद में हमें डर बना हुआ था कि कहीं बिटिया को मैंने ये तो ना सीखा दिया कि किया धरा सब जाता हैं बताया सब नहीं जाता |
वैसे इस साल कुछ चालीस रूपया हार गई जुए में , पहली बार , वो भी कुल पतिदेव जीते ये भी हुआ पहली बार , फिर उलाहना भी सुने इस बार इतनी किस्मत तेज थी तो बेकार में दो दो रुपये की चाल में व्यर्थ किया किसी कैसिनो में जा कर आजमाना था | सात रु लेकर बैठे थे और अस्सी रुपये लेकर उठे , हजार की बाजी होती तो कितना जीत चुके होते |
#मम्मीगिरि