November 27, 2013

पुरुषो का कोई चरित्र नहीं होता है ? - - - - -mangopeople

                                 


                                                            तेजपाल के बयान के बाद एक सवाल मन में उठा रहा है कि,  क्या पुरुषो का कोई चरित्र नहीं होता है । तेजपाल के ऊपर रेप के आरोप लगने के बाद उन्होंने अपने बचाव में ये घटिया दलील दी कि , हा जो लड़की कह रही है वो हुआ किन्तु जो भी हुआ वो सहमति से हुआ । सोचती हूँ की  हम किस तरह के समाज में रह रहे है जहा एक विवाहित पुरुष अपने से आधी आयु की लड़की , अपनी बेटी की मित्र और अपने मित्र की बेटी के साथ एक सार्वजनिक जगह पर इस तरह के सम्बन्ध बनाने को कितने आराम से स्वीकार कर रहा है , किस उम्मीद में की उसके इस बयान पर समाज उसके चरित्र पर कोई उंगलिया नहीं उठाएगा , उसे अपराधी नहीं माना जायेगा , नैतिकता के सवाल नहीं खड़े कियी जायेंगे और समाज में वो,  ये स्वीकार करने के बाद भी उसी तरह स्वीकारा जायेगा जैसे कुछ हुआ ही नहीं है , क्योकि वो पुरुष है । क्या पुरुषो का कोई चरित्र ही नहीं होता मतलब चरित्र जैसी चीजे क्या उनसे जुडी हुई नहीं है ये मात्र महिलाओ के एक अंग जैसा है , जो पुरुषो में नहीं पाया जाता । अब कल्पना कीजिये की  कोई स्त्री इस बात को स्वीकारे तो समाज का क्या रवैया होगा , लोगो की सोच क्या होगी , हमारे भाषायी किताबो में ऐसी महिलाओ के लिए शब्दो की कमी नहीं है और आज से नहीं हमेसा से है , जबकि पुरुषो के लिए ये एक तरह का सामाजिक मान्यता प्राप्त सम्बन्ध जैसे है , जिसके कारण हर दूसरा आरोपी पुरुष यौन शोषण , बलात्कार के आरोप लगते ही ये घटिया दलील देने लगता है की दोनों के बिच जो हुआ वो सहमति से हुआ , यदि सामाजिक रूप से ऐसे सम्बन्धो को लेकर पुरुषो को ये छूट न मिली होती तो ऐस दलील देने से पहले भी आरोपी हजार बार सोचते ।


                                  अरुंधति राय का लेख पढ़ा जिसमे वो कहती है कि मै  अभी तक चुप थी क्योकि क्योकि एक गिरते हुए मित्र पर क्या वार करना , किन्तु अब जिस तरीके से लड़की पर फांसीवादीयो से मिल कर साजिश  करने , और सब कुछ सहमति से होने की बात कर दूसरी बार उस का रेप किया जा रहा है , तो अब चुप रहना मुश्किल है , और अब समय है की सच के साथ खड़ा हुआ जाये । मै  उनकी बात से सहमत हूँ  , ऐसे मामलो में पीड़ित के लिए शिकायत करने के बाद  दर्द , परेशानी और समस्याओ का एक नया और उससे भी बड़ा दौर शुरू होता है , जो उसने पहले सहा है और जिससे लड़ना ज्यादा कठिन होता है , जब पीड़ित के ही चरित्र पर उंगलिया उठाई जाने लगती है और आरोपी के सहयोगी ज्यादा सक्रिय हो जाते है , आरोपी को बचाने के लिए , इसलिए जरुरी है की ऐसे समय में चुप रह कर मौन सहयोग की जगह हम  सभी को खुल कर पीड़ित के पक्ष में खड़ा होना चाहिए , ताकि उसे भी लगे की एक ताकतवर और अमिर आरोपी के मुकाबले में उसे जन सहयोग मिला है , समाज में भी लोग है जो उस पर विश्वास  करते है और उसके साथ खड़े है ,ताकि उसकी हिम्मत न टूटे और वो आगे अपनी लड़ाई लड़ सके । मामला कोर्ट में है जांच हो रही है इसलिए इस पर क्या कहे जैसे बेकार के बहाने बनाने की जरुरत नहीं है , खुद तेजपाल की  स्वीकृति और एक के बाद एक तहलका से अलग होते कर्मचारियो की बढती लिस्ट खुद सच को बया कर रही है ।

                                                 इस केस से एक विचार और मन में आया है कि अक्सर हम कहते है कि जीतनी ज्यादा महिलाए लडकिया काम करने के लिए बाहर आयेंगी वो उतनी ज्यादा ही सुरक्षित होती जाएँगी  , समाज की लडकियो के प्रति सोच बदलेगी , पीड़ित लडकियो  की  ताकत बनेगी और दूसरे लडकियो में भी आत्मविश्वास पैदा करेंगी ,  अब तो ये सोच गलत सी लगती है ।  पीड़ित ने न्याय के लिए जिस सोमा चौधरी से शिकायत की वो एक बार भी उसके पक्ष में खड़ा होना तो दूर उन्होंने सच को ठीक से जानने का प्रयास और कोई भी उचित कार्यवाही ही नहीं की ,  बल्कि मामले को दबाने और लीपा पोती का प्रयास किया , वो चाहती तो किसी का भी पक्ष लिए बिना तटस्थ रह कर कमिटी बना जाँच उसके हाथ में दे देती किन्तु उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया और अपने मित्र ,गॉडफादर को बचाने के प्रयास करने लगी । इस प्रकरण से क्या समझा जाये  की भले ही स्त्री कितनी भी स्वतंत्र को जाये उंचाइयो को छू ले वो पुरुष सत्ता से टकराने से डरती है , उसके प्रभाव से बाहर नहीं आ पाती है  या उसका व्यवहार भी उन्ही आम घरेलु स्त्रियो सा होता है जो अपने बेटे, भाई ,पिता ,पति के बड़े से बड़े गलतियों को छुपाने का उसे बचाने का प्रयास करती है या उसका व्यवहार भी अन्य सामान्य लोगो की तरह होता है जो हर हाल में अपने अपनो का करीबियों का ही साथ देते है चाहे वो कितने भी गलत हो , या उनका व्यवहार उस समाज की तरह ही है जो हमेसा लडकियो को ही दोष देता है जो लडकियो को ऐसे मामले में चुप रहने, ज्यादा न बोलने और जो मिला उसमे ही संतुष्ट रहने की सलाह देता है । अब सोचिये की सोमा ने जो व्यवहार किया है उससे लड़किया का आत्मविश्वास कम नहीं होगा , जब उन्हें लगेगा की एक स्त्री हो कर भी वो किसी अन्य स्त्री की परेशानी उसके आरोपो की गम्भीरता को नहीं समझा उसको सच नहीं माना , क्या अब कोई भी लड़की अपने आफिस या कही भी यदि इस तरह की परेशानी से गुजरती है तो क्या वो कभी भी अपने महिला बाँस , महिला अधिकारी या अन्य महिला से इस बात की शिकायत करने की हिम्मत कर पायेगी ।शोमा ने इस प्रकरण में बहुत ही गलत उदाहरण सामने रखा है और वो भी तब जब उनके न जाने कितने ही इंटरव्यू हम देख चुके है जिसमे वो लडकियो के यौन शोषण , बलात्कार , छेड़छाड़ के खिलाफ बोलते हुए और उनके सुरक्षा की बात करती नजर आ चुकी है , यहा तक की वो उस सम्मलेन में भी इस विषय पर विचार विमर्स कर रही थी जहा पर लड़की के साथ ये सब हुआ ।

                                                              कुल मिला कर इस प्रकरण से समाज और लोगो के खोखलेपन को और उजागर ही किया है , बताया है की नैतिकता की बड़ी बड़ी बाते करने भर से कोई चरित्रवान नहीं हो जाता है , समाज का कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं है जहा लडकिया सुरक्षित है , समाज में किसी भी वर्ग की लड़की इस तरह के अपराध से सुरक्षित नहीं  है , अब वो समय आ गया है जब लडकियो को किसी भी व्यक्ति पर भरोषा नहीं करना चाहिए और अब जरुरत ये है की लडकिया  बिना किसी शर्म , लिहाज से इतनी जोर से प्रतिरोध  करे,  ऐसे कृत्य को न कहे की किसी भी व्यक्ति की हिम्मत आगे बढ़ने की न हो , वरना आप के हलके शब्द उसकी आयु और सम्बन्धो का लिहाज और आप की शर्म आरोपी को बाद में उसे आप की सहमति का नाम देने में देर नहीं लगेगी ।


चलते चलते 
               
                 पति ने पूछा ऐसे प्रकरणो में लडकिया जोरदार तरीके से तुरंत ही विरोध क्यों नहीं करती उसे पिट दे, उसकी आँख नाक फोड़ दे  , टीवी पर महाभारत आ रहा था , मैंने कहा की पांडवो के साथ क्या क्या नहीं हुआ कितना अपमान सहना  पड़ा किन्तु उसके बाद भी युद्ध भूमि में अर्जुन कमजोर पड  गए अपनो के सामने , एक लड़की के लिए ऐसी हरकत बहुत ही डराने वाला होता है और तब तो डर और भी बढ़ जता है जब सामने कोई अपना , कोई परचित या ऐसा व्यक्ति हो जिससे आप इस चीज की उम्मीद ही न करे , फिर उनके प्रति लिहाज और उसकी और आप की इज्जत और  इस बात का डर की कोई भी आप की बात का विश्वास नहीं करेगा की आप का अपना ही कोई आप के साथ ये कर सकता है या ये व्यक्ति आप के साथ ऐसा कर सकता है , साथ ही अपराधी की बड़ी आयु , आप का उससे सम्बन्ध और समाज में उसकी हैसियत भी प्रतिरोध को प्रतिक्रिया को प्रभावित करता है , किसी अनजान के प्रति हम जल्दी आक्रमक हो सकते है जबकि जानने वाले के प्रति हम आक्रमक नहीं हो पाते है ।   आरुषि केस में एक नौकर को अपनी बेटी के कमरे में देख कर जो आक्रमकता पिता तलवार ने दिखाई वही प्रतिक्रिया वो तब नहीं दे पाते यदि उसकी जगहा उनकी भतीजा , भांजा या परचित या संबंधी जैसा कोई होता , यहाँ तक की बेटी की जगह बेटे के कमरे में नौकरानी को देखते तब भी उनकी ये प्रतिक्रिया न होती , इसमे सम्बन्धो का लिहाज भी है , समाज का डर भी और स्त्री, पुरुष बेटी , बेटी  के बिच का फर्क भी ।                                   












                                             

                                                 

80 comments:

  1. एक बलात्कार का आरोपी क्या सोचता है और क्या दलील देता है इस आधार पर आप बाकी पूरे समाज को एक कटघरे में मत रखिए।ये सामान्यीकरण खुद एक अति है।इस केस में भी कुछ अलग नहीं हुआ।पहले आरोपी यह कहता है कि कुछ हुआ ही नहीं लड़की झूठ बोल रही है।लेकिन बाद में जब देखता है कि अब शिकंजा कसता जा रहा है तो लड़की की सहमति वाली बात डाल देता है।क्योंकि उसे पता है कि कम से कम बलात्कार के आरोप से तो पीछा छूटे चाहे व्याभिचारी ही बनना पडे।तेजपाल के मामले में ये थोडा जल्दी हो गया क्योंकि वह पहले ही माफी माँग चुका ।लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि मै आपकी बात से असहमत हूँ ।पर आपने गलत उदाहरण रखकर पूरे समाज को दोष दे दिया ?क्या एन डी तिवारी अपने बच्चे को अपना नाम इसलिए नहीं देना चाहता कि पुरुषवादी समाज किसी व्याभिचारी पुरुष को बर्दाश्त नहीं करना चाहता?नहीं बल्कि दोनों तरह के पुरुष हैं समाज में अभी भी।भले ही ऐसी घटनाएँ महिलाएँ शक करने लगी हों।करना भी चाहिए।हाँ लेकिन इससे शायद तेजपाल जैसे छिछोरों को कोई मतलब नहीं कि महिलाएँ पुरुषों के बारे में क्या सोचती हैं।दिक्कत तो उन्हें होगी जो उस जैसे नहीं हैं।

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    1. सम्भवतः आप मेरे कहने का अर्थ नहीं समझे , मै ये कह रही हूँ की समाज पुरुषो के विवाहेतर सम्बन्धो को क्यों स्वीकार करता है उसमे कोई बुराई नहीं देखता है उसे सामन्य सी बात मानता है , पुरुष के चरित्र से नहीं जोड़ता है , जबकि स्त्री के ऐसे सम्बन्धो को सामाजिक अपराध की तरह देखा जाता है उन्हें रखैल आदि शब्दो से गाली दी जाती है । जैसा आप ने कहा की लोग भी ये कहने का प्रयास कर रहे है की जो हुआ लड़की की सहमति से हुआ ,और "उस" तरह की भी लडकिया होती है , आप पलट के उनसे सवाल क्यों नहीं करते है कि , क्या तब भी ये अपराध नहीं है क़ानूनी न सही सामाजिक तो है , क्या इस बात के लिए तेजपाल को कुछ न कहा जाये क्या इस दलील से वो निर्दोष हो जाते है , लोग जो उनका बचाव कर रहे है उससे ही पता चलता है की समाज का रवैया कैसा है ऐसे मामलो में , और मैंने उंगली उसी पर उठाई है । वैसे आप को बताऊ किसी विवाहित महिला से सम्बन्ध बनाना क़ानूनी रूप से भी अपराध है स्त्री के लिए भी और संबंध बनाने वाले के लिए भी , किन्तु किसी पुरुष के लिए ये कोई अपराध नहीं है न सामाजिक न क़ानूनी ।

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    2. कमाल है! आपको क्यों लगा कि मैं आपकी बात नहीं समझा ?मैंने साफ कहा कि मैं आपसे असहमत नहीं।लडकियों पर ये हमले बहुत ज्यादा है बहुत षड्यंत्रपूर्वक किए जाते हैं उनके परिवार वाले ही करते हैं लेकिन फिर भी समाज में दोनों तरह के लोग हैं।तेजपाल का समर्थन ही नहीं विरोध भी हो रहा है।लडकों को घरवाले ज्यादा कुछ नहीं कहते तो उनका खुद का स्वार्थ डर आदि भी इसके पीछे है।वर्ना ये महिला को रखैल बोलने वाले तो कई बार पुरुषों को भी जला या काट डालते हैं भले ही महिला की सहमति हो।तेजपाल जानता है कानून से बच गया तो भी उसकी प्रतिष्ठा पहले वाली नहीं रहेगी।घर हो या बाहर महिलाओं को ऐसे पुरुषों का बहिष्कार करने के लिए ताकतवर बनना पडेगा।एक दूसरे का साथ देना पडेगा ।बाकि स्त्री पुरुष स्वार्थवश ही सही इसका साथ देंगे ही ।कानून के बारे में आपकी बात सरासर गलत है।कृप्या और जानकारी इकट्ठा करें।

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    3. राजन जी

      हा मै अपनी टिप्पणी में सुधार कर लेती हूँ वो पत्नी पर कोई कार्यवाही नहीं कर सकता है , किन्तु पति सम्बन्ध बनाने वाले के खिलाफ कार्यवाही कर सकता है । रचना जी ने निचे एक लिंक दिया है आप उसे देखे ।
      वहा पर लिंग भेद की बात हो रही है , उसे पुरुषो के खिलाफ मना जा रहा है , किन्तु लेख में ये नहीं बताया जा रहा है की पत्नी को ऐसी कोई अधिकार नहीं मिला है जिसके तहत वो पति के विवाहेतर संबंध को कानून में घसीट सके , जब तक की वो दूसरी महिला से विवाह न कर ले ।

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    4. When the Husband is adulterous

      You can take action against your husband if he is in an adulterous relationship with another woman, referred to in legal parlance as the paramour. You can file police complaints against your husband and his paramour and charge him with adultery in the divorce petition. You will have to make the paramour a party to the divorce proceedings, who will then be known as the co-respondent.

      When the wife is adulterous

      You can take action against your wife if she is in an adulterous relationship with another man. The man your wife is having an affair with is referred to as the paramour. You can file police complaints against your wife and her paramour and charge her with adultery in the divorce petition. You will have to make the paramour a party to the divorce proceedings and he will be known as the co-respondent. However, the similarities end here. You have the right to take criminal action against your wife's paramour by filing criminal proceedings against him under Sections 499 and 497 of the Indian Penal Code, 1860 (IPC). A wife does not have this right.


      http://www.rediff.com/getahead/slide-show/slide-show-1-books-excerpt-breaking-up-your-step-by-step-guide-to-getting-divorced/20130221.htm

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    5. किस कानून को कौन महिला विरोधी और कौन पुरुष विरोधी बता रहा है इससे मुझे मतलब नहीं है और वैसे भी इसमें कानून का दोष नहीं हैं।यहाँ सबको बस अपना पक्ष निर्धारित करने की पडी रहती है ।पत्नी को मुकदमे का आधार नहीं है तो क्या पति को है?यहाँ तो मामला बराबरी का ही है।हाँ दोनों इस आधार पर तलाक जरूर ले सकते हैं।बदलाव होगा तो फिर पूरा होगा।पति दूसरे पुरूष पर मुकदमा कर सकता है लेकिन पत्नी उस महिला पर केस नहीं कर सकती क्योंकि कानून और तमाम महिला संगठन यह मानते हैं कि अभी भी महिला की हालत समाज में कमजोर है और मुझे भी ये ठीक ही लगता है।एक जज ने फैसले में एक पत्नी से कहा कि सीता भी तो राम के साथ गई थी आप भी जाईये तलाक नहीं हो सकता।इस फैसले और जज को महिला विरोधी बताया गया मैंने भी आलोचना की लेकिन बाद में पता चला कि यह विवाह को बचाने के लिए एक समझाइश थी।इन्ही जज ने इससे पहले एक केस में पति को भी लताड पिलाई थी वो कह रहा था पत्नी ख्याल नहीं रखती तलाक दो ।जज बोले तलाक नहीं हो सकता पत्नी शादी करती है तो कोई गुलामी का बॉण्ड नहीं भरती।सब आधा सच बताते हैं।

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    6. रचना जी
      वैसे तो दोनों के लिए ये साबित करना मुश्किल है , जब तक वो साथ ही रहने न लगे , हां तलाक का कारण तो बन सकता है किन्तु सजा जैसी कार्यवाही मुश्किल है , और फिर हम उस समाज में रहते है जहा स्त्री के लिए तलाक तो और भी बुरा माना जाता है पति चाहे जैसा भी हो , धर्म बदल कर और बिना धर्म बदले भी कितनो ने शादिया की है , सभी जानते है , कितनी पत्निया कोर्ट गई , सजा दिलाना तो दूर की बात तलाक तक नहीं लिया ।

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  2. महाभारत में सिर्फ अर्जुन ही तो भावुक हुआ था सगे संबंधियों को देखकर ।भीम और द्रोपदी बाद में कृष्ण तो सबसे ज्यादा उतावले थे युद्ध के लिए।कृष्ण ने भीम और द्रोपदी को लताडा भी था कि तुम लोग प्रतिशोध की आग में इतनेअंधे हो गए कि तुम्हें यह भी नहीं पता कि युद्ध में लाखों और लोग भी मारे जाएंगे ।उन्होने द्रोपदी का अपमान नहीं किया।लेकिन बाद में सारे रास्ते बंद हो गये तो वो भी राजी हो गये।उन्हे युद्ध में अभिमन्यु भीष्माचार्य सहित किसीके मरने का दुख नहीं था सिवाय कर्ण के ।

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    1. अर्जुन के उदहारण का अर्थ बस इतना ही था की हम अपनो का विरोध वैसे नहीं कर पाते है जैसे किसी अजनबी का करते है , मैंने विस्तार से आगे भी लिखा है ।

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    2. मैंने इसलिए यह कहा कि सभी एक तरह से नहीं सोचते हैं।द्रोपदी तो उसी समय पूरी समय पूरी सभा को शाप देने वाली थी।पर गांधारी ने रोक लिया ।यौन हमले हमेशा अचानक ही होते हैं तभी तो महिलाओं को अतिरिक्त रूप से सतर्क होने की जरूरत है।

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  3. तेजपाल ने यह भी कहा है कि ,'लड़की ने तुरंत क्यूँ नहीं मुहं खोला...वो पार्टी करती रही " कोई कभी कोई चुभती बात कह देता है तब भी तुरंत जबाब देने का मन होते हुए भी हम सोचने लगते हैं,'जबाब दें या नहीं '...और ऊपर से सामान्य बने रहते हैं. पर वो बात पीछा नहीं छोडती तो आखिर कुछ समय बाद हम अपना विरोध प्रकट कर देते हैं. यहाँ तो इतनी बड़ी बात थी और वो भी दुगुनी से भी ज्यादा उम्र के व्यक्ति द्वारा जो उसके पिता का मित्र और दोस्त का पिता था. लड़की तुरंत किस तरह रिएक्ट करती ?उसे समय लेना ही था .और यह तुरंत मुहं नोच लेने या तमाचा जड़ देने वाली बात पर भी लागू होता है. इतनी तेजी से सब घटा होगा कि वो लड़की तो हतप्रभ रह गयी होगी क्या और कैसे रिएक्ट करती.
    आपकी पिछली पोस्ट पर भी फेसबुक का जिक्र किया था...अच्छा है, आपने अपनी मित्र मण्डली नहीं बनायी है और रिश्तेदारों के साथ ही प्रोफाइल शेयर की है. आपका सर पीट लेने का मन होता जहाँ, प्रगतिशील विचारों वाले चालीस की उम्र के ब्लोगर्स की ये प्रतिक्रिया है कि 'ताली एक हाथ से नहीं बजती...दोनों पक्ष को देखना चाहिए.' लोग मेरी बात से सहमत न हों पर मैं तो कहूँगी अगर अट्ठारह साल की लड़की बिछ जाए तब भी आपसे खुद पर संयम रखने की अपेक्षा की जाती है क्यूंकि आपके पास पचास साल का अनुभव है. और उस पर से आप पढ़े-लिखे ,प्रगतिशील विचारों वाले कहलाते हैं. पर अफ़सोस से कहना पड़ रहा है कई बार कुछ पुरुष सिर्फ 'एक पुरुष ' ही रह जाते हैं. जावेद अख्तर ने भी अपनी पहली ट्वीट के विषय में सफाई दी जिसमे उन्होंने कहा था 'लड़की झूठ बोल रही है...' कि तब मुझे डिटेल्स मालूम नहीं थे ,मुझे लगा कुछ सेकेंड्स के लिए घटा होगा .अगर कुछ सेकेण्ड के लिए ही कोई पुरुष किसी स्त्री के साथ अशोभनीय हरकत करे तो वह क्षम्य है ?
    कुछ लोगों ने यह दलील भी दी कि आजकल के बीस साल के लड़के/लडकियां अपने बॉस के साथ दोस्ताना व्यवहार करते हैं. उन्हें 'जी' और 'आप' कहकर नहीं बुलाते इसलिए यह सब भुगतते हैं. तहलका के ही एक पुराने फोटोजर्नलिस्ट का लिखा सब शेयर कर रहे हैं ,जिसमे उसने लिखा है, "मैं तेजपाल जैसे सीनियर के साथ एक लिफ्ट में जाने की सोच भी नहीं सकता था .सीढ़ी पर भी एक तरफ खड़े होकर उन्हें रास्ता दे देता था " .लोग यह कह रहे हैं कि इतनी जूनियर होकर वो इतने सीनियर के साथ एक लिफ्ट में गयी क्यूँ ?? अब लोग अगर उसी ज़माने में रह रहे हैं ,'जहां अपनी से बड़ी उम्र वालों के सामने लोग सर झुका अटेंशन की मुद्रा में खड़े हो जाते थे ' तो क्या कहा जा सकता है. इस तरह की घटनाएं तब भी होती थीं बस फर्क ये आया है कि अब लडकियां मुहं खोलकर सर उठा कर ये सब बताने लगी हैं.

    अब सचमुच समय आ गया है कि लडकियां जब अकेले किसी पुरुष के साथ हों तो उसे पिता तुल्य, भाई तुल्य, गुरु तुल्य न समझें बल्कि सिर्फ 'एक पुरुष समझें' (या जंगली जानवर ) और अपने नाखून और दांत पैने कर के रखें , कि हमले का सामना पूरी शक्ति से कर सकें.

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    1. रश्मि जी,तेजपाल का बचाव केवल पुरुष नहीं कर रहे हैं महिलाएँ भी कर रही हैं और वो तो उनसे भी घटिया तर्क दे रही हैं।आपने शायद देखा नहीं होगा।नारी ब्लॉग पर रचना जी की पोस्ट पर मैंने कुछ उदाहरण भी दिए हैं।

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    2. बिलकुल सहमत हूँ आप से रश्मि जी । तेजपाल ये कहते हुई भूल जाते है की उसने ये बात तुरंत ही अपने साथियो से कही थी और अपने माँ तक को बताया था , यहाँ तक की दूसरी बार उनकी इस हरकत पर उनकी बेटी तक से कह दिया था , और ऐसा करने पर वो लड़की से नाराज भी थे और अपने कृत्य की माफ़ी मांगने के बजाये उससे पूछ रहे थे कि उसने उनकी बेटी से वो सब क्यों कहा , ये सब एस एम एस से हुआ जिसका सबुत उस लड़की के पास होगा पुलिस को देने के लिए । फिर जैसा उसने भी बताया की उसकी माँ तुरंत ही उसे वहा से निकल जाने को बोली क्योकि सभी को उसकी सुरक्षा की चिंता थी, जब आज लड़की इतनी दूर है तो उस पर किस तरह के दबाव पड़ रहे है , वही पर कुछ कहा होता तो शोमा और तेजपाल न जाने क्या करते उसके साथ । पहले मुझे भी लगा की लड़की को तहलका में शिकायत करने के बजाये सीधे पुलिस में जाना चाहिए था , किन्तु बाद में लगा की उसने सही किया यदि वो ऐसा नहीं करती तो तेजपाल सम्बन्ध बनाने के प्रयास से ही इंकार कर देते और कह रहे होते की वो तो मेरी बेटी जैसी है मैंने उसे हाथ तक नहीं लगाया , उनकी माफ़ी वाला मेल ने ही उन्हें ज्यादा फंसा दिया और फोटो पत्रकार ये कहते हुए भूल जाते है की एक तो लड़की की जानपहचान तेजपाल से बचपन की थी और खुद तेजपाल ने उसे नौकरी का आफर दिया था ( मेरी मित्र ने कहा की क्या पता उसकी गन्दी नजर उस पर हमेसा से थी , अब क्या घर में आने वाले पति के मित्रो से भी बेटियो को दूर रखना होगा ) उनकी बेटी तक से उसकी दोस्ती थी तो उनका रिस्ता सिर्फ बाँस और जूनियर वाला नहीं रहा होगा , और आज के ज़माने में सीनियर से इतने दूर रहने का व्यवहार कौन करता है , और सबसे बड़ी बात की तेजपाल उसका हाथ पकड़ कर उसे दुबारा लिफ्ट में ले गए थे ये कह कर की बॉब को जागते है ।

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    3. राजन जी
      तभी मैंने समाज की बात कही थी , जहा स्त्री और पुरुष दोनों होते है , और तभी मैंने शोमा को लेकर भी सवाल उठाये है ।

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    4. राजन,
      अभी देखे नारी पर आपके कमेन्ट ...मैंने फेसबुक पर उनलोगों के स्टेटस नहीं देखे थे ,जबकि एक मेरी फ्रेंड्स लिस्ट में भी हैं ...दुखद है यह सब .

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  4. मैं रश्मि से पूरी तरह सहमत हूँ।जो हो रहा है उससे तो ऐसा ही लगता है कि हम लड़की को किसी पर विश्वास नहीं करना चाहिए। मैं तो कहूँगी कि हंड्रेड में nintinine पर तो विश्वास नहीं ही करा जा सकता है ......

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    1. मै तो बस ये सोचती हूँ की जब हमारी बेटिया बड़ी होंगी तो वो किस तरह के समाज में रहेंगी , उनकी सुरक्षा के लिए हमें क्या क्या नहीं करना पडेगा ।

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  5. @ "समाज का कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं है जहा लडकिया सुरक्षित है , समाज में किसी भी वर्ग की लड़की इस तरह के अपराध से सुरक्षित नहीं है , अब वो समय आ गया है जब लडकियो को किसी भी व्यक्ति पर भरोषा नहीं करना चाहिए और अब जरुरत ये है की लडकिया बिना किसी शर्म , लिहाज से इतनी जोर से प्रतिरोध करे, ऐसे कृत्य को न कहे की किसी भी व्यक्ति की हिम्मत आगे बढ़ने की न हो , वरना आप के हलके शब्द उसकी आयु और सम्बन्धो का लिहाज और आप की शर्म आरोपी को बाद में उसे आप की सहमति का नाम देने में देर नहीं लगेगी।"
    आपसे सहमत हूँ और आपके गुस्से को भी समझ सकता हूँ. कई बार तो मुझे भी अपने पुरुष होने पर शर्म आती है. अमूमन हर पुरुष के अन्दर एक जानवर छिपा होता है, यदि मौका मिल जाए तो वह बाहर आने में जरा भी देर नहीं करता.

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    1. ये जानवर वाली बात कई लोगो ने कैई जगह कही है जिसके जवाब में हम सब ने कहा है की ये समाज इंसानो के लिए बना है न की जानवरो के लिए , दूसरे क्या अब लडकियो को हर पुरुष को जानवर ही समझ वैसा ही व्यवहार करने के लिए कहा जाये ।

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  6. जो कुछ घटना क्रम चल रहा है उसमे आपकी बात से सौ प्रतिशत सहमति है. हम आखिर किधर जा रहे हैं और कहां पहुंचेंगे? कब तक यह सब चलेगा. तेजपाल का नाम शर्मपाल भी रख दिया जाये तो शर्म को शर्म आयेगी. बेटी की दोस्त के साथ.....छि..छि...छि....

    रामराम.

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    1. समाज काफी समय से गर्त में है बस लडकियो की हिम्मत ने उसे सामने रखना शुरू कर दिया है , लडकिया तो घरो में भी सुरक्षित नहीं थी और न है ।

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  7. अंशु
    समस्या अब ये हैं कि नारी बहुत एवॉल्व हो चुकी हैं , हमारे संविधान और कानून में उसके जो अधिकार हैं वो समान हैं और इस बात का नारी को पता हैं और वो इस बात को अब अमल कर रही हैं।

    पुरुष आज भी वहीँ हैं "मनु स्मृति " में अटका हुआ , जेंडर बायस उसकी समझ में आता ही नहीं हैं और नारी का शरीर उसके लिये महज काम निपटाने का एक जरिया मात्र हैं और इसमें उसके आस पास कि बहुत सी महिला उसका "मनोबल" बढ़ाने का काम करती हैं

    अभी तो एक एक करके हर जगह महिला खड़ी होकर जेंडर बायस , सेक्सुअल हरासमेंट के खिलाफ आवाज उठा कर अपनी अपनी जगह से अपनी बात केह रही हैं और कानून अब उनके साथ हैं

    इसी ब्लॉग जगत में कितनी बार हम सब को इन सब बातो को सुनना पड़ा हैं , नारी ब्लॉग कि तमाम पोस्ट इस बात को बताती हैं।

    चरित्र स्त्री और पुरुष दोनों का होता हैं पर इंसान हो तब

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    1. आवाज उठाना और डट कर बिना डरे विरोध करना ही इस समस्या का समाधान है ।

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  8. हमारे समाज में चरित्र, नैतिकता, मर्यादा, संस्कार आदि आदि शब्द सिर्फ महिलाओं के लिए ही बनाये गए हैं. सारा ठेका महिलाओं को ही दिए गया है. सच कहा है तुमने पुरुषों का कोई चरित्र ही नहीं होता शायद।

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    1. उन पर नियंत्रण बनाने के लिए ये जरुरी है की सारी चीजे उन्ही पर थोपी जाये ।

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  9. सोचा कुछ कहूँ, फिर समझ नहीं आया क्या कहूँ... इस तरह के मुद्दों पर समाज आज भी प्रताड़ित वर्ग को ही प्रताड़ित करता है... मुझे खेद है मैं पुरुष हूँ...
    लेकिन हाँ एक ज़रूरी बात ज़रूर कहूँगा, अगर मैं स्त्री होता तो भी ये बात ज़रूर दिमाग में आती, ज़रूरी ये नहीं कि सेक्स किया गया इसलिए तेजपाल दोषी है, मुद्दा ये है कि क्या वाकई में अगर सहमति से किया गया ये सब कुछ कोई कानून रोक सकता है ??? सामाजिक व्यवहार एक अलग बात है लेकिन कानूनी और न्यायिक तौर पर इस तरह का कोई भी संबंध बनाने के लिए स्त्री-पुरुष स्वतंत्र हैं.... बाद में अगर स्त्री/पुरुष कोई भी इस तरह के करनी से मुकर जाये और दूसरे पक्ष पर शोषण का आरोप लगाए तो ??? विवाहित, आधी उम्र फलाना धिकाना कोई माने नहीं रखता अगर सब स्वेच्छा से हो रहा है.... आप नैतिकता के आधार पर तेजपाल को कितना भी दोषी करार दे दें लेकिन कानून कमजोर है और कमजोर पड़ ही जाएगा.....

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    1. शेखर ,
      वैसे तो अंशुमाला की पोस्ट है...वे जबाब देंगी ही पर आपकी इस बात पर कुछ कहने का मन हो आया @ विवाहित, आधी उम्र फलाना धिकाना कोई माने नहीं रखता अगर सब स्वेच्छा से हो रहा है....यहाँ तो लड़की और तेजपाल के बीच एक्सचेंज हुए मेल ये बता रहे हैं कि स्वेच्छा से नहीं हुआ था .और अगर स्वेच्छा से होता है और एक पक्ष मुकर जाता है तो भुगते दूसरा पक्ष और ज्यादा भुगते अगर एक पक्ष दुगुनी उम्र का और विवाहित है . अक्कल क्यूँ ताक पर रख दी या फिर ये सोचा कि कुछ भी हरकत कर जाएँ ,बच जायेंगे ..तो गलत सोचा .क़ानून की तो बहुत सारी पेचीदगियां होती हैं .पर जो बदनामी हुई...हो रही है ,वो क्या किसी सजा से कम है? .सजा पाकर तो फिर भी जेल चला जाएगा ,जहाँ अपने जैसे लोगों के बीच ही रहेगा शर्मिंदगी नहीं होगी...पर समाज /परिवार के बीच रहते हुए जो मुहं छुपाना पड़ रहा है...वो भी एक सजा ही है....प् र्नाकाफी है, कानूनन भी सजा मिलनी ही चाहिए .

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    2. बिलकुल , सहमति से बना सम्बन्ध क़ानूनी रूप से गलत नहीं है , तभी तो हर शोषण को सहमति का नाम दिया जाता है , समाज से हम उम्मीद करते है की जब किसी स्त्री के लिए ये गलत आचरण है तो किसी पुरुष के लिए भी उसे गलत क्यों न माना जाये , दोनों के लिए दो पैमाने क्यों है , चरित्र की बात सिर्फ स्त्री के लिए ही क्यों । दूसरे सहमति आप किसे कहते है , विवाह का वादा कर , नौकरी गवाने का डर दिखा कर , डरा कर धमाका कर , धोखा दे कर , कास्टिंग काउच के लिए मजबूर कर , उसकी नादानी का फायदा उठा कर , क्या ये सब भी सहमति में ही माना जाये । रश्मि जी कि एक पोस्ट पर मैंने कहा था की समाज ने बहुत डरा कर लडकियो को रखा दोनों की गलतियों की सजा केवल लडकियो को दिया , सारी हिदायते लडकियो को दिया गया अब समय आ गया है की पुरुष भी कानून से डरे और कुछ भी करने से पहले बुरे समय में उसके परिणामो को सोच कर संभल जाये ।

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    3. दोनों तरह के मामले होते हैं।पर सजा तो पुरुष को मिलनी ही चाहिए।विवाहित हो तो जरूर क्योंकि वह अपनी पत्नी को भी धोखा दे रहा है।लेकिन यदि महिलाएँ इस तरह के कानूनों का दुरुपयोग करने लगी तो इनको देर सबेर बदल ही दिया जाएगा।व्यक्तिगत रूप से मुझे नहीं लगता यह सब कोई कानूनी समस्या है और इसके जरिए इसे खत्म किया जा सकता है।आमतौर पर ऐसे अपराधी को कानून का डर अपराध कर चुकने के बाद ही लगता है।लेकिन एक बंद समाज के लिए ऐसे सतही उपचार से बढ़कर और कुछ किया भी नहीं जा सकता।दूसरों के लिए प्रतिटिप्पणी वाले कमेंट अंशुमाला जी हटा ही सकती हैं हालाँकि व्यक्तिगत रूप से मैं ऐसे किसी नियम को सही नहीं मानता जब तक बात विषय पर हो रही हो और स्तरीय हो ।बाकि सब तो ब्लॉग ऑनर के अधिकार में है ही।

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  10. http://tsdaral.blogspot.in/2011/12/blog-post_19.html

    One link and comments that would benefit readers

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  11. बस इन्ही की ही कसर थी ।अब मेधा पाटकर जी भी तरुण तेजपाल के पक्ष में बैटिंग करने आ गई हैं।उन्होंने कहा कि तेजपाल का केस गोवा से बाहर ले जाने की अनुमति मिलनी चाहिए क्योंकि वहाँ बीजेपी की सरकार है।इसका तो यही मतलब हुआ न कि तेजपाल को फँसाया जा रहा है?मेधा जी को इस पर सफाई देनी चाहिए।वामपंथियों में कम ही लोग है जिन पर भरोसा किया जा सकता है।मैं तो दो लोगों के बयान ढूँढ रहा हूँ।एक तो शबाना आजमी जी और दूसरे अमर्त्य सेन ।

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    1. पीड़ित को भी कहना चाहिए की तेजपाल के कांग्रेस से अच्छे रिश्ते है वहा उसे न्याय नहीं मिलेगा । वैसे सोचने की ये बात है कि ये अविश्वास किस पर किया जा रहा है न्याय तो न्याय पालिका को करना है न आखिर में सबूत उसे ही देखना है , पुलिस सबूत ही नहीं जुटाएगी जैसा तो कुछ यहाँ है नहीं ।

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  12. hi , I haven't read your post fully ..... but posting this comment only based on its title that made me recall an incident occurred around 1 year back when Damini's case was on its full rage in news.

    I was standing in my pet Tea shop whose owner ( a 45 year old man ) became acquainted to me over regular visits.
    We were discussing over increase in non safe environment, violence for women in society . I showed my concern towards people's increasing aggressiveness ...
    He asked me "Do you know why women are moving freely around ?" I said "why ?"
    He replied " Because of Law and Order ..... fear of police ..being caught and jailed ... else each and every woman looking around on roads would have been caught and raped ..
    For us (men) its not the fear of society ...what people will say ( he meant defamation of culprit ) .. its the fear of police "

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    1. summary gi

      सही है की आज बहुत सी महिलाए समाज की परवाह नहीं करती है किन्तु उस समाज की जो उनसे जुड़ा नहीं है , कई बार अपने आस पास के लोगो का दबाव तो उन्हें सहना ही पड़ता है , साथ ही परवाह न करने का अर्थ ये नहीं है की उनकी बाते बुरी नहीं लगती है या चुभती नहीं है । जब आफिस में आप के प्रमोशन को आप की काबलियत से नहीं बल्कि बॉस से साथ आप के गलत रिश्तो का परिणाम बताया जाता है , जब कसी पुरुष मित्र के साथ बात करेने भर से आप का चरित्र हलका बता दिया जाता है , जाती के बाहर प्रेम विवाह करने पर आप की छोटी बहनो के विवाह में असर पड़ने लगता है , जब किसी और के छेड़ने पर आप का घर से बाहर निकलना बंद करा दिया जता है तो फर्क पड़ता है । इस तरह का एक किस्सा सिर्फ पीड़ित के जीवन पर ही प्रभाव नहीं डालता वो हजार और लडकियो के जीवन को भी बदल देता है , दिल्ली केस में अब उस लड़की से जुडी हर लड़की का जीवन बदल चूका होगा अब उनमे से शायद ही कोई घर से दूर जा कर पढ़ सके या नौकरी कर सके , बहुतो की किस्मत में जल्द विवाह लिखा दिया गया होगा , और तेजपाल का जीवन ज्यादा नहीं बदलेगा अपने आस पास के लोगो के साथ किन्तु उनकी हरकत ने कई बहुत सी लडकियो का उनके घरवालो का आत्मविश्वास जरुर तोड़ दिया ।

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    2. I agree with what you replied to my comment ... but i am not getting whether was i able to put my point correctly .... The person said to me .." ...For us (men) its not the fear of society ...what people will say ( he meant defamation of culprit ) .. its the fear of police .." ...

      All I wanted to highlight that men don't have fear of being defamation in society ........ a person who is characterless doesn't care how is he being recognized in society ... whether people treat him graceless ( बेहया, निर्लज्ज, छिछोरा) type or not ..... the only fear is of police panga ... that prevent them from making attack on women ...that is what that person was trying to tell me ...... ...Also i too have observed practically ....that men don't care of their image ...

      A very good example i can give of a teacher who was appointed in a girls Inter college on adhoc basis ...used to do mischievous activities with girl ... and was even scolded by relatives of girls who were his victim ..but he didn't leave his habits .....and was notorious in whole town for his characterless. I hope this time i kept my point neatly.

      Thanks

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    3. मै बिलकुल सहमत हूँ कि हम आज सुरक्षित है कुछ हद तक तो उसका कारण पुलिस है न की समाज का डर , लेकिन यही बात हम उन गांवो के लिए नहीं कह सकते है , जहा पंचायत बलत्कार के दोषी को पञ्च जूते लगाने की सजा देती हो , हम उस समाज में रहते है जहा रेप के केस तो ज्यादातर पुलिस में आते ही नहीं है क्योकि ये महिला के लिए शर्म की बात है उलटा उसकी ही बेइज्जती होगी , क्या यहाँ समाज एक कारक नहीं है । समाज का फर्क दिल्ली या मुम्बई रेप के आरोपी को नहीं होगा , किन्तु आशाराम, तेजपाल , राम रहीम , शाहिनी आहूजा जैसे को होगा , क्योकि उनकी वो सत्ता रुतबा ही समाज के विस्वास के कारण है जिसका फायदा उठा कर वो लडकियो के साथ ये करते है । रामरहीम रेप के आरोप में जेल गए और जमानत से छूट कर अपने बाबा गिरी में लगे है , समाज उन्हें लताड़ नहीं रहा है उनका बहिष्कार नहीं कर रहा है ,इससे आशाराम जैसो को ये बल मिलता है की कुछ भी करो धंधे पर रुतबे पर कोई असर नहीं होगा बल्कि बच के निकल गए तो आगे से किसी भी लड़की की हिम्मत नहीं होगी पुलिस में उनके खिलाफ जाने की , उलटा वो और शोषण करेंगे , यही उनका सामाजिक बहिष्कार भी होता तो बाकियो के भी सुधरने या सँभलने की उम्मीद तो करते ।

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  13. मुझे लगता है कि ऐसे मामले कभी खत्म नहीं होने वाले। दुष्कर्मियों के चेहरे बदलते रहते हैं और उसी के हिसाब से तर्क-कुतर्क करने वालों के चेहरे, स्थिति कमोबेश एक जैसी ही रहती है।
    पोस्ट में जैसा कि इंगित किया गया है कि पुरुष के विवाहेतर संबंधों को सामाजिक मान्यता(लगभग) मिली रहती है, एकदम से ऐसा तो नहीं है। ऐसे पुरुषों को भी अच्छी नजर से नहीं देखा जाता, हाँ क्योंकि समाज पुरुषप्रधान रहा है और प्राय: अर्थ के मामले में परिवार पुरुष पर निर्भर रहता था\है तो इस बात का कुछ लाभ अवश्य पुरुष उठाता रहा है।
    इस विषय पर कहा तो बहुत कुछ जा सकता है लेकिन एक तो खुद के पास समय की कमी है और दूसरे इस बात का आभास भी है कि ऐसे अवसरों पर शेम-शेम, हाय-हाय टाईप की बातें ही ज्यादा माफ़िक आती हैं(आभास वाली बात किसी व्यक्ति विशेष के बारे में नहीं कही, इसे एक सामान्य स्टेटमेंट ही समझें)।

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    1. संजय जी

      हा कुछ लोग उनकी हरकत को जरुर बुरा कहते है किन्तु उसके सामाजिक रुतबे पर एक भी पैसे का असर नहीं होता है , जबकि उसी जगह पर लड़कीयो से ऐसे संबंधो पर रिस्ता ही ख़त्म कर लिया जाता है । जैसे की मैंने लिखा है और जैसा की आप ने लिखा था कि तटस्थता हर बार भली नहीं होती है , किसी किसी मौके पर आगे आ कर शेम शेम तो कहना ही चाहिए , अपराधी को कुछ तो शर्म आये और अपनी आत्मा भी शुकून में रहे ।

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    2. बिल्कुल सही कहा आपने, शेम-शेम के लायक ही प्रकरण था ये। सिर्फ़ शेम-शेम कहना नहीं बल्कि ये भी कहना चाहता हूँ कि ऐसे मामलों में दोषी को कड़ी से कड़ी सजा होनी चाहिये फ़िर वो चाहे कोई भी क्यूँ न हो।

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    3. लीजिये, फ़िर आ गया मैं। कल ही कहा था कि ये मौके सिर्फ़ हाय-हाय, शेम-शेम टाईप कमेंट्स के लिये उचित होते हैं और आज ही के अखबार में बीच के पन्नों में एक छोटी सी खबर थी कि टीवी और अखबारों में पूर्वोत्तर के एक राज्य में एक महिला के साथ ऑटो में गैंगरेप और आँखें निकाल लेने की जिस घटना का शोर मच रहा था, हत्या जरूर हुई और वो स्वयं में एक अक्षम्य अपराध है लेकिन वहाँ रेप हुआ ही नहीं था और न ही मृतका की आँखें निकाली गई थीं। जिस समय इस बात को लेकर धरने प्रदर्शन चल रहे थे, उस समय अगर कोई ऐसी घटना की संभाव्यता(एक व्यस्क महिला के साथ ऑटो के अंदर चार लोगों के द्वारा गैंगरेप) पर सवाल करता तो उसे कई उपाधियाँ मिल चुकी होतीं। यह भी तो सामान्यीकरण ही है कि महिला की हत्या हुई तो साथ में गैंगरेप भी हुआ ही होगा ।
      इस पोस्ट पर आये दीप पाण्डेय के विचार अनदेखे नहीं किये जा सकते। विचार कितने भी पुरातनपंथी क्यूँ न लगें, गौर इस बात पर होना चाहिए कि उसके पीछे उद्देश्य या भावना क्या है।
      फ़िर कहता हूँ कि इस मुद्दे पर कहने को बहुत कुछ है लेकिन हम लोग शायद अभी उतने परिपक्व हुये नहीं कि स्वस्थ विमर्श कर सकें। कुछ दिन पहले एक धर्मगुरू पर ऐसे आरोप लगे तो कई जगह देखा कि एक\चंद लोगों पर आरोपों के कारण एक धर्मविशेष को टार्गेट किया जाने लगा था लेकिन तहलका प्रकरण के बाद ऐसा किसी ने नहीं कहा कि लड़कियों को मीडिया लाईन में नहीं जाना चाहिये।

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    4. संजय जी,आपको गलतफहमी हुई है।दीप जी की इस बात पर विवाद नहीं हो रहा कि महिलाओं को सावधान रहना चाहिए(हालाँकि सावधान करने और डराने में फर्क तो होता है)।मैंने कहा कि यह तो शुरू से ही था।अंशुमाला जी ने भी कहा कि हर महिला सावधान तो रहती ही है।लेकिन वो हर पुरुष और हर स्त्री के चरित्र पर ही सवाल उठा रहे हैं।क्या इस बात को हँसते हुए स्वीकार कर लेना चाहिए?थोडा लडकों की शिक्षा और परवरिश में अंतर लाया जाए थोड़ा लड़कियों को आत्मविश्वासी बनाया जाए तो ऐसी घटनाएँ बहुत कम हो जाएँगी।यहाँ तो ऐसे समझाईश दी जा रही है जैसे पुरुष का तो जन्म ही सिर्फ सेक्स करने के लिए हुआ है।वैसे तो ये सब बातें एक पोस्ट की ही माँग करती हैं पर शायद ऐसी पोस्ट पहले भी लिखी गई हैं।मैं खोजकर लिंक देने की कोशिश करुँगा ।

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    5. राजन जी, बहुत संभव है कि मुझे गलतफ़हमी ही हुई हो। दीप के कमेंट से यदि हर स्त्री और पुरुष के चरित्र पर सवाल उठते दिख रहे हैं तो किसी एक नराधम पिशाच बाप या भाई के किये दुष्कृत्य को आधार बनाकर हर लड़की को अपने पिता\भाई से असुरक्षित सिद्ध करती पोस्ट या टिप्पणियां भी गलतफ़हमियाँ ही पैदा करती हैं।
      पोस्ट लिखियेगा या लिंक दीजियेगा, अपनी राय से अलग दूसरों की राय जानने की मेरी उत्सुकता हमेशा रहती है, सक्रियता भले न दिखे :)

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    6. @किसी एक नराधम पिशाच बाप या भाई के किये दुष्कृत्य को

      संजय जी
      तीन लिंक मैने उपलब्ध इस लिये कराये हैं ताकि जो भी " better safe then sorry " को महिला के लिये बार बार उपयुक्त कहता हैं वो ये समझ सके कि विपरीत लिंग का आकर्षण अगर हर बार कारण बनाया जायेगा तो पिता / भाई / गुरु सब को एक स्त्री केवल पुरुष ही समझा करेगी।
      दीप ने इन सम्बन्धो में भी दूरी कि सलाह दी हैं अपनी टिपण्णी में

      किसी एक नराधम पिशाच बाप या भाई के किये दुष्कृत्य को आधार बनाकर हर लड़की को अपने पिता\भाई से असुरक्षित सिद्ध करती पोस्ट या टिप्पणियां इस लिये दी जाती हैं ताकि लोग समझ सके कि बात विपरीत लिंग के आकर्षण कि हैं ही नहीं , बात हैं केवल और केवल स्त्री के शरीर से बलात्कार के जरिये उसको अपने "नीचे " और अपने को "उसका मालिक " सिद्ध करने कि


      http://vichaarshoonya.blogspot.com/2013/04/blog-post_5969.html?showComment=1366478802335#c3005207722800396613

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    7. संजय जी

      वहा की घटना सामाजिक कम राजनीतिक ज्यादा है विरोध करने वाले के झंडे का रंग देख कर आप समझ जायेंगे और वो अफवाह का ही परिणाम ज्यादा है ,( ये बात भी गारंटी से नहीं कह सकती क्या पता रेप की बात सत्ता पक्ष की तरफ से छुपाया जा रहा हो बवाल को देख कर ) जैसे बंगलोर से पूर्वोत्तर के लोगो का एकाएक पलायन हुआ । स्त्री कभी भी असावधान नहीं होती है , वो चाहे घर में हो या घर के बाहर ये गुण उसमे स्वाभाविक और प्राकृतिक होता है , किन्तु जैसा आप ने कहा की एक भाई और पिता की गलती पर सभी को वैसा क्यों समझा जाये , वैसे ही मानवीय स्वभाव है की एक समय बात आप लोगो पर विश्वास करने ही लगते है , या उनके बाहरी चरित्र को ही सही समझते है , ऐसा सिर्फ स्त्री नहीं करती है पुरुष भी करते है , लोगो से धोखा वो भी खाते है , क्या वो असावधान होते है , क्या आप और मै सोच सकते है की हम कही लिफ्ट जैसी सार्वजनिक जगह पर किसी परचित के साथ हो और वो ऐसा कर देगा । ये कहना की स्त्री पुरुष में परम्परा के हिसाब से दुरी होना चाहिए बिलकुल यही कहना होगा की जी हां पुरुष एक शिकारी होता है और वो सदा ही शिकार की तलाश में रहता है और स्त्री रूपी शिकार को उससे दूर भागते रहना चाहिए , सामने आई तो ये उसकी गलती , जब हम ऐसे मामलो में स्त्री को कुछ ऐसा कहे जिसका अर्थ है की उसने नौकरी करके ही गलती की, तो इससे शोषण करने वालो को ही बढ़ावा मिलता है , उनको लगता है की समाज की ये सोच लडकियो को चुप रहने के लिए विवश करेगी और वो आसानी से उसका शोषण कर सकते है । हा ये सही है कि हर बुरी घटना के बाद पीड़ित को भी सलाह दी जाती है और उसे आगे से बचने की सलाह देनी भी चाहिए किन्तु ऐसे जिससे अपराधी का मन न बढे पीड़ित का हौसला न टूटे और बाकियो को भी सबक मिले , जब हम ये कहते है की आज का जमाना तो बाप भाई पर ही विश्वास का नहीं है तो असम में हम यही कहना चाह रहे है की एक स्त्री को इन मामलो में किसी पर भी विश्वास नहीं करना चाहिए , लोगो की नियत पहचानने की कोशिश करनी चाहिए और कोई सुरक्षात्मक उपाय करने चाहिए , किन्तु सच बताऊ तो जब हम डरे होते है तो हमारी बुद्धि और काम नहीं करती , हमें उपाय नहीं समझ आते है , इस केस में दूसरी बार लड़की को आशंका थी किन्तु फ़ौरन वो उससे बचने का कोई उपाय नहीं कर सकी , किन्तु शांत दिमाग होते है तेजपाल की बेटी से कहा कर उसने उन्हें आगे बढ़ने से रोक दिया और बात सिर्फ नौकरी करने की नहीं है , क्या स्त्रिया घर से बाहर ही निकलना बंद कर दे क्योकि ये सब जगह होता है ।

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    8. संजय जी

      ये समाज का बहुत ही गन्दा और कड़वा सच है की लडकिया अपने घरो में सुरक्षित नहीं है और ये सब आज नहीं हुआ है ये हमेसा से ही होता रहा है , फर्क इतना है की पहले इसके बारे में घर के पुरुषो को जानकारी कभी नहीं दी जाती थी लेकिन स्त्रियो को पता होता थी , किन्तु अब लडकिया चुप नहीं रहती है और बता देती है और मिडिया के कारण ये सबके सामने है । चचेरे ममरे फुफेरे मौसरे भाई हो या चाचा मामा फूफा और पिता के मित्र जैसे रिश्तो ने इन रिश्तो का सम्मान नहीं किया है , आप के कानो तक ये खबरे नहीं पहुंचती है इसलिए आप को बुरा लगता है एक बार विश्वास में लेकर अपने आस पास कि स्त्रियो से इस बारे में पूछियेगा , कुछ भुक्त भोगी होंगी , कुछ ने अपने आस पास ये होते देखा होगा , लेकिन वो किसी से नहीं कहती है , क्योकि उन्हें पता है की लोग उनसे ही सवाल करेंगे उनकी ही बदनामी होगी ।

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    9. अंशुमाला जी,
      मैं भी इसी दुनिया में रहता हूँ और ऐसी बातें न सुनी हों या इनकी सत्यता पर बिल्कुल संदेह हो, ऐसा नहीं है। आप सब कहती हैं तो मान लेता हूँ कि प्रतिशत मेरी अपेक्षा से ज्यादा होगा। रही बात बुरा मानने की, उसका कोई चांस नहीं। फ़िलहाल मेरा स्ट्रेस 0 से 100 के बीच की किसी संख्या पर सहमत होने पर नहीं है, मैं तो आप लोगों का ध्यान इस ओर दिलाना चाहता हूँ कि जब कोई preventive measures लेने की बात करता हो तो उसे यौन अपराधियों की पैरवी करने वाला समझ लिया जाता है जबकि हर बार ऐसा होता नहीं। हाँ, आज भी मैं और शायद मेरे जैसे कई लोग " better safe then sorry " को ज्यादा उपयुक्त कहते\मानते हैं और उसके पीछे अपनी समझ में हम स्त्री का सम्मान ही कर रहे होते हैं।
      मीडिया वाली बात आप सही कह रही हैं, मीडिया के आने से ऐसे मामले ज्यादा प्रकाश में आने लगे हैं लेकिन बात फ़िर वहीं आ जायेगी कि मीडिया में आ गया और चर्चा हो गई, तीन दिन के बाद अंदर के किसी पेज पर उसी खबर का contradictory वर्ज़न आ जाता है। चर्चा की चर्चा हुई और प्रायश्चित का प्रायश्चित, परनाला फ़िर वहीं बहता रहता है।

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    10. संजय जी,हम तो दोनों मोर्चों पर फैल होकर लौटे न तो सुजाता जी की वह पोस्ट खोज पाए और न खुद लिख पाए।पर कोई बात नहीं।अपनी बात वैसे ही कहते है।संजय जी आप एक ही तर्क को अपने पक्ष और विपक्ष में प्रयोग नहीं कर सकते।महिलाएँ जब कहे तो उसका विरोध लेकिन दीप जी कहे तो समर्थन ।जे का बात? मैं दोनों का विरोध करता हूँ बल्कि यह बात तो देवी दुर्गा भी आकर मुझसे कहे तो कसम आम अदमी पार्टी अपन उनसे भी भिड जाएंगे क्योंकि यह झूठ है कि सब पुरुष बलात्कार करना चाहते हैं।संजय जी बलात्कारी रिश्तों की मर्यादा का भी ख्याल नहीं रखता।यहाँ महिलाएँ कह रही हैं कि महिलाएँ पुलिस की वजह से सुरक्षित है लेकिन जरा सोचिए पुरुष तो हर जगह है यदि सभी बलात्कारी है तब तो वो आपस में मिल ही जाएँगे तब तो महिलाएँ भी कुछ नहीं कर पाएँगी लेकिन बलात्कारियों को भी पता है कि सभी उनकी तरह नहीं है तभी उन्हें छुपना पड़ता है।पर संजय जी फिर भी कहूँगा कि आपकी बातों में एक ठहराव है आप जल्दी अधीर नहीं हो उठते पता नहीं मेरे अंदर ऐसा धैर्य क्यों नहीं है जबकि मुझे पता है मैं कुछ बदल नहीं सकता।खैर ये सब चलता रहेगा ।

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    11. राजन, प्रयोग तो कर ही सकता हूँ लेकिन उसे मानने के लिये औरों को मजबूर नहीं कर सकता :)

      ’जल्दी अधीर न होना’ तारीफ़ की बात नहीं है। सीरियसली कहता हूँ अगर सब मेरे जैसे अधीर न होने वाले होते तो हम बहुत पिछड़े होते, कभी आजाद ही न हुये होते। इसी वजह से बदल सकें या न, लेकिन बदलाव लाने की कोशिश करने वाले और यहाँ तक कि बदलाव की बात करने वालों को खुदसे बेहतर मानता हूँ।

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    12. kament ko like karnae kaa option nahin haen par sanjay ji kaa kament 100 likes

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    13. बदलाव की बात करने वाले को सुनने वाला , बदलाव को स्वीकार करने वाला और बदलने के लिए तैयार रहने वाला उन तथा कथित विद्वान् , हठी से बेहतर है जो जड़ बने रहते है :)

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    14. जिन खोजा तीन पाइयां ...
      http://sandoftheeye.blogspot.in/2008/09/blog-post_08.html?m=1

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  14. सारे पुरुष एक जैसे तो नहीं हो सकते , यह बहस का एक एकांगी पक्ष ही है ..

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    1. बहस इस बात पर है ही नहीं की सारे पुरुष एक जैसे होते है ।

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  15. अंशुमाला जी सभी पुरुषों के चरित्र पर सवालिया निशान लगाने कि जगह अगर आप उनके यौन व्यव्हार का अध्ययन करें तो आपको पता चलेगा कि तेजपाल ने कोई अनोखा काम नहीं किया है। मैं मनाता हूँ कि मौका मिलाने पर ९९ प्रतिशत पुरुष वही करेंगे जो तेजपाल, एन डी तिवारी, आशा राम या जज गांगुली ने किया। ये लोग तब पकड़े गए जब इनका जजमेंट गलत हो गया। जरा सोचिये कि ये लोग अपने बुढ़पे में पकड़ में आये तो जवानी भर इन लोगों ने कितनी स्त्रियों के साथ ऐसा किया होगा। पर तब इनका जजमेंट ठीक रहता होगा और ये सही जगाह हाथ डालते होंगे। अब उनके चरित्र पर भी उंगली उठाइये जिन्होंने इन्हे बढ़वा दिया। शोमा चौधरी और तेजपाल कि पत्नी और बेटी के चरित्र पर भी प्रश्न चिन्ह लगाइये कि वो इस पुरुष का पक्ष ले रही हैं।
    अंशुमाला जी पुरे मामले में पुरुषों को ही को दोषी ना ठहराए। तेजपाल को इस तरह के कार्यों में शुरू से सहयोग मिलता रहा होगा तभी तो वो आगे बढ़ता गया।
    इस विषय पर मेरा मानना है कि भारतीय समाज में स्त्री व पुरुष के मेल जोल को लेकर जो सामाजिक मर्यादाये स्थापित हैं उनका कड़ाई से पालन किया जाय और आधुनिकता के नाम पर स्त्री व पुरुष के शारीरिक फर्क को भुलाया ना जाय तो मैं समझता हूँ कि इस प्रकार कि घटनाओं में बेहद कमी आएगी।

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    2. अंशुमाला जी द्वारा सभी पुरुषों पर सवालिया निशान लगाने को रह क्या गया है जब आप खुद इस काम में उनसे चार कदम आगे निकल गये हैं।हालाँकि आप भी जो कर रहे हैं उसमें कुछ नया नहीं कर रहे हैं।99 फिसदी पुरुष ऐसे ही होते हैं उनमें जानवर बैठा होता है महिलाओं को उनसे बचकर रहना चाहिए आदि आदि बातें खुद समाज शुरू से लड़कियों के दिमाग में भरता रहा है और क्यों भरता रहा है हमें यह भी अच्छी तरह पता है।आप लोग यदि यही जताने के लिए मेहनत कर रहे हैं तो बेकार ही है।कोई नया विचार हो तो बताइए ।

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    3. राजन जी आपकी ये बात सही नहीं है कि मैं अंशुमाला जी से चार कदम आगे निकल गया हूँ। यौन अपराधों में पुरुषों को दोष देने के मामले में मैं उनसे एक प्रतिशत पीछे हूँ। अंशुमाला जी ने सभी पुरुषों के चरित्र पर सवालिया निशान लगाया है जबकि मैंने एक प्रतिशत (निर्बल पुरुषों को छोड़ दिया है।
      राजन जी नयी बात या नया विचार हर जगह नहीं दिया जा सकता है। कुछ शाश्वत सत्य होते हैं उन्हें स्वीकारना चाहिए। पुरुष नैसगिक रूप से स्त्री कि और आकर्षित होता है। अब कुछ नया करने के लिए क्या स्त्री पुरुष के बीच का यह आकर्षण भुला दिया जाय।
      राजन जी मनुष्य सैकड़ों वर्षों से अग्नि का प्रयोग अपनी भलाई के लिए करता आया है फिर भी असावधानी वश सैकड़ों लोग,घर बार इस अग्नि से जल जाते है। तो कुछ नया विचार प्रस्तुत करने के लिए लोगों को अग्नि से सावधान ना किया जाय और मांग कि जाय कि ऐसी आग बनाओं जो सिर्फ चूल्हे में जले लोगों के घर बार ना फूंके। क्या कोई ऐसा कर सकता है। क्या ये हो सकता है कि हम अग्नि से कहें कि वो अपना चरित्र सुधारे और लोगों को जलना बंद करे। आखिर वो हजारों वर्षों से मानव के संसर्ग में है, कुछ तो सभ्यता या मानवता उसमे भी आनी चाहिए। मुझे तो नहीं लगता इसलिए मैंने अपने बच्चो को सिखाया है कि अग्नि का इस्तेमाल सतर्कता से करें। ये कभी भी घर फूंक सकती है। अतः हम जब तक अग्नि का चरित्र नहीं बदल सकते तब तक हमें अग्नि का इस्तेमाल करने वाले को समझाना ही होगा कि इसके इस्तेमाल में सतर्कता बरते।
      कामाग्नि भी ऐसी ही है। राजन जी ऐसा प्रत्येक पुरुष जिसमे लेशमात्र भी कामाग्नि मौजूद है असावधान स्त्री के लिए खतरनाक है। अब या तो ऐसे पुरुषों को विकसित करो जिनकी कामाग्नि सिर्फ अपनी पत्नी को देखकर ही भड़कती हो और दूसरी स्त्रियों के लिए शीतल जल धार हो या सभी स्त्रियों को पर पुरुषों के साथ सतर्कता से व्यव्हार करना सिखाओ।

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    4. राजन जी ऐसा प्रत्येक पुरुष जिसमे लेशमात्र भी कामाग्नि मौजूद है असावधान स्त्री के लिए खतरनाक है।



      आइये सावधान रहे अपने पिता से http://articles.timesofindia.indiatimes.com/2013-11-28/mumbai/44546220_1_malwani-eight-year-old-daughter-survivor
      आइये सावधान रहे अपने भाई से http://kayceeweezy.wordpress.com/2012/02/15/sisters-kill-own-brother-for-sexual-harassment/
      आइये सावधान रहे अपने पति से http://articles.timesofindia.indiatimes.com/2013-09-07/bhopal/41854188_1_husband-habibganj-khargone

      इन रिश्तो के बाद सावधान रहे अपने गुरु से , अपने बॉस से।


      आप सीधा सीधा ये रहे हैं कि पुरुष के बायोलॉजिकल डिसऑर्डर के लिये सावधान स्त्री रहे क्यूँ सारे समाज में स्त्री ही सावधान क्यूँ रहे पुरुष क्यूँ ना कम से अब सावधान हो जाए कि अब आज कि नारी अपनी चिंता ना करके उस पुरुष को बेनाकाब करेगी और इतना बेनकाब करेगी वो समाज में मुह नहीं दिखा सकेगा।
      जिस दिन स्त्री ये सोच लिया कि "उसको अब फर्क नहीं पड़ता " जो करेगा वो ही दोषी हैं और उसको निर्वस्त्र करके समाज का हित स्त्री कर रही हैं उस दिन समाज बदेलगा। बहुत सदियाँ स्त्री को निर्वस्त्र किया जाता रहा हैं और शर्म भी उसी को आनी चाहिए थी क्युकी वो सावधान नहीं थी ऐसा माना जाता हैं
      बस जिस दिन उस पुरुष कि सबसे निकट महिला सम्बन्धी जिस दिन उसका बहिष्कार कर देगी और उस पर डिफेमेशन करके अपनी बदनामी का हिसाब उस से मंगाएगी उस दिन सब बदल जाएगा अभी ये जो बीवी और माँ और अन्य के पीछै दुष्कर्म करके पुरुष अपने को देवता सिद्ध करता हैं वो ख़तम हो गा और वो दिन अब ज्यादा दूर नहीं हैं

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    5. दीप जी

      मुझे तो अपना ही लेख एक बार फिर पढना पड़ गया कि मैंने ये बात कहा लिखी है की सभी पुरुष चरित्रहीन होते है , मैंने चरित्रहीन शब्द ही इसलिए नहीं लिखा की कही किसी को ये न लगे की मै ये कह रही हूँ की सभी पुरुष ख़राब होते है , मैंने सवाल किया है की क्या चरित्र जैसे शब्द केवल लड़की के अंग है , पुरुष के नहीं , मै तो खुद भी यही कहना चाह रही हूँ की पुरुष का भी चरित्र होता है और गलत करने वालो के साथ समाज को वैसा ही व्यवहार करना चाहिए जैसे किसी गलत काम को करने वाली महिला के साथ किया जाता है । मुझे आप इस बात के लिए टोक रहे है जबकि आप खुद ९९% का आकंड़ा दे रहे है , और सच भी यही है जब बात काम वासना की हो तो लगभग सभी स्त्री यही मानती है की पुरुषो का भरोसा नहीं करना चाहिए , क्योकि वो कब खुद के नियंत्रण से बाहर हो जाये कहा नहीं जा सकता है , जैसा की आप ने कहा , फिर भी सभी ये उम्मीद करते है की वो नियंत्रण में ही रहे । शोमा के बारे में पूरा एक पैर लिखा है , आप ने शायद पूरा लेख नहीं पढ़ा , रही बेटी और पत्नी की बात दोस्तों और भाइयो और उनका समर्थन करने वाले सभी की भी , तो उस बारे में भी मैंने लिखा है कि अपनो की बात होते ही सभी की प्रतिक्रिया बदल जाती है और दूसरे हम अपनो पर ज्यादा विश्वास करते है , बाहर वालो के बजाये , उनके हिसाब से जो हुआ वो सहमति से हुआ , तो फिर तेजपाल को रेप की सजा क्यों मिले और मै यही सवाल उन सभी से कर रही हूँ कि चलो मान लिया कि जो हुआ वो सहमति से हुआ तो क्या ये सामाजिक अपराध जैसा नहीं है , क्या इसके लिए उनके आप पास के लोगो को जो असल में तेजपाल के लिए समाज है , न की हम और आप , वो उन्हें लताड़ लगाये और उसके लिए उनका विरोध करे ।

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    6. मुझे पूरी उम्मीद है की आप खुद पुरानी परंपरा का पालन नहीं कर रहे होंगे स्त्री पुरुष के दुरी के मामले में , आप अपनी बेटी को स्कुल भेज रहे होंगे , १८ वर्ष से पहले उसका विवाह नहीं करेंगे , और बेटी को दबा कर उसके बाप बानने की जगह उसे खूब प्यार और लाड करने वाले पिता होंगे , आप ने परम्पराए तोड़ी है क्योकि वो आप चाहते थे , किन्तु जिन परम्पराओ से आप को फर्क नहीं पड़ता आप उसे बनाये रखना चाहते है भले उससे दुसरो को तकलीफ हो , ऐसा क्यों , इस पर तो पूरी एक पोस्ट बनती है अगली पोस्ट मै इसी विषय पर देती हूँ कि हम केवल अपनी सहूलियत के हिसाब से ही चीजो को बदलना चाहते है , समय मिलेगा तो पढियेगा और अपने विचार भी रखियेगा :)

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    7. राजन जी
      ब्लॉग लेखन की यही समस्या है की कई बार आप व्यक्ति के टोन , इरादा और हाव भाव और शब्दो को नहीं समझ पाते यदि लेखक मुझ जैसा साधारण हो :(

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    8. दीप जी
      दीवाली पर पडोसी पटाखे चलाये और उनका एक रॉकेट आप के घर में आग लगा दे , आप के बच्चो को नुकशान पहुंचा दे और वो आप पर ही चिल्लाये की आग पटाखे तो खतरनाक होते ही है आप को अपने घरो के खिड़की दरवाजे मुक्के बंद रखना चाहिए था , घर से बाहर नहीं निकलना चाहिए था ,इस में मेरी कोई गलती नहीं है , तो आप को कैसा लगेगा । जो पटाखे जला रहा है जो अग्नि का प्रयोग कर रहा है उसकी जिम्मेदारी है की वो उसे सावधानी से प्रयोग करे न कि दुसरो को सलाह दी जाये की आप सावधान रहिये क्योकि मै आग जला रहा हूँ , अग्नि अपने आप घर नहीं जलाती है , उसे जलाने वाले की असावधानी उसे बड़ा बनाती है , उसके लिए आप प्रयोग करने वाले को सावधान रहने के लिए कहेंगे न की पुरे समाज को । कामाग्नि हर व्यक्ति की अपनी होती है ये उसकी जिम्मेदारी है की वो उसे सम्भाले नियंत्रण में रखे न की सभी स्त्रियो से कहे की तुम सब घरो में बंद रहो वरना तुम्हे देखते ही वो नियंत्रण से बाहर हो जायेगी । ये मूर्खता पूर्ण है कि आप उस लड़की से कहे की वो नौकरी करने गई ही क्यों , स्कुल में किसी बच्ची के साथ ये हो तो आप उसे दोष दे की वो स्कुल क्यों गई , घर से बाहर निकली किसी लड़की के साथ ये हो तो आप कहे की वो बाहर ही क्यों निकली , और घरो में पिता भाई ये करे तो कहिये की वो पैदा ही क्यों हो गई । बहुत ही बेकार का उदाहरण दिया है और आप खुद पुरे पुरुष समाज को बदनाम कर रहे है ।

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    9. एक प्रतिशत पुरुष बलात्कार नहीं करता या नहीं करना चाहता ऐसा आपको लगा ये तो बहुत बड़ा उपकार किया आपने ।खैर मैं राजन सिँह तँवर निवासी जयपुर (राज .) यह घोषणा करता हूँ कि दीप जी ने मेरे ज्ञान चक्षु आज खोल दिए हैं मुझे पता ही नहीं था कि मेरे आस पास हर पुरुष एक शिकार की खोज में ही है और यह भी अनोखी ही बात पता चली कि पुरुष कामुक कल्पनाएँ भी करते हैं और इसी कारण बलात्कारी बन सकते हैं बस बेचारों को मौका ही नहीं मिला।खैर फिर मुझे यह भी कह लेने दीजिए कि जो जो लडकी या महिला कभी भी अपने जीवन में पुरुष शरीर की कल्पना करती है ।अपने ब्वायफ्रेंड या पति के अलावा परपुरुष के शारीरिक सौवष्ठ के प्रति आकर्षित होती है या कभी भी सैक्स फैंटेसी कल्पना कर चरम का अनुभव करती हैं वो सभी चाहती हैं कि कोई पुरुष ...खुद समझ जाइए ।चलिए उनके मामले में कोटा थोडा कम यानी पचास प्रतिशत कर लेते हैं।पर क्या यह सही है? तभी मैं आपकी थ्योरी को सही मानूँगा वर्ना नहीं ।माफ कीजिएगा इस की बहस में उतरना पड़ रहा है पर मुझे और कोई तरीका नहीं पता कैसे क्लियर किया जाए ।

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    11. ये कामावेग कामग्नि वगैरह स्त्रियों में भी होती है।सुना तो ये भी है कि उनमें ज्यादा ही होती है।यदि दीप जी की मानें तो 99 प्रश पुरुष इसी कारण बलात्कार की ताक में रहते हैं तो क्या ये पचास फीसदी महिलाएँ और लड़कियाँ भी किसी शिकार या शिकारी की तलाश में रहती हैं? लेकिन व्यवहार में ऐसा कर नहीं पाती तो किस कारण से?समाज?पुलिस?शारीरिक रुप से पुरुष का अधिक ताकतवर होना ?या इसे अनैतिक मानना?आखिर किस कारण से?वो सारे कारण मैं ऐसे पुरुषों पर भी लागू करूँगा।यदि हलवाई की दुकान पर लड्डू देखकर ललचा जाते हैं ।भले ही पैसे न हो उठाकर खाते क्यों नहीं है?क्या सिर्फ हलवाई के डर से ?या भीड़ द्वारा पिटने के डर से?या पुलिस के डर से?आखिर हम लड्डू उठाकर क्यों नहीं खा लेते?क्या हम ऐसा करना ही गलत मानते हैं या सभी कारण हैं?

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    12. राजन जी आप सही जा रहे हैं। जो कुछ आप खुल कर कहने कि कोशिश कर रहे हैं मैंने ये सब ऊपर दबे स्वर में कहने कि कोशिश कि है। निश्चित रूप से मौका मिलने पर स्त्रियां भी पुरुषों कि तलाश करती हैं। आपको अनुभव हो या ना हो मैंने एक अस्पताल में अपने पञ्च वर्षीया कार्यकाल के दौरान ऐसा होते प्रत्यक्ष देखा है। परन्तु प्रणय के लिए स्त्री पहल करे या फिर पुरुष होता वही है जो प्राकृतिक है यानि कि खरभुजे पर छुरी ही चलती है, छुरी पर खरभुजा नहीं चलता और हर स्थिति में कटता भी खरभुजा ही है हाँ बाद में आप कभी भी छुरी को दोषी ठहरा सकते हैं जैसा कि असोक गांगुली के मामले में हो रहा है। उस प्रशिक्षु महिला ने साफ़ कहा कि वो खुद स्वेच्छा से जज के कमरे में गयी थी पर आज जज साहब कि जान आफत में है। अब कोई ये नहीं पूछेगा कि महोदया आपने किस लालच में जज के सामने समर्पण किया। जाहिर है कोई न कोई लालच रहा होगा और जब वो सपना जिसके लिए समर्पण किया था पूरा न हो पाया तो गांगुली मियां का रिटायरमेंट ख़राब कर दिया। अब यहाँ पर किसके चरित्र पर सवालिया निशान लगाया जाय ?

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    13. दीप जी,शेखर सुमन जी की टिप्पणी के नीचे अपने कमेंट में मैंने साफ कहा है कि दोनों तरह के मामले होते हैं(मैं महज भावनाओं में बहकर कुछ नहीं कहता) हालाँकि ज्यादातर कानून तक पहुँचने वाले केस सच्चे ही होते हैं ।लेकिन जो हो दोनों ही मामलों में पुरुष सहानुभूति का हकदार तो नहीं है बल्कि सजा मिलनी चाहिए उसे।थोडी गलती मुझसे भी हुई प्रतिटिप्पणी करते हुए क्योंकि आप चार कदम नहीं चार सौ कदम आगे निकल गए।अंशुमाला जी ने पुरुष के विवाहेतर संबंधो पर समाज द्वारा आपत्ति न करने की बात की थी जिससे एक हद तक मैं भी सहमत हूँ मैंने केवल उनके द्वारा सामान्यीकरण पर सवाल उठाया था।पर आपने सारे पुरुष समुदाय को ही बलात्कारी बता दिया।दोनों बातों में बहुत फर्क है।और अंशुमाला जी,ये साधारण या असाधारण लेखक जैसे फर्क नहीं मानता।मेरे लिए व्यक्ति के विचार महत्तवपूर्ण हैं।

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    14. और हाँ दीप जी,मैं आपकी तरह यह बिल्कुल नहीं मानता कि हर एक स्त्री और हर एक पुरुष बस एक "मौके" की तलाश में रहते हैं।विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण होना एक बात है और उसकी कल्पना दूसरी बात है और उस पर एक्ट करना तीसरी ।आप तीनों को मिला दे रहे हैं।

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    15. http://mosamkaun.blogspot.in/2013/02/blog-post_14.html

      http://mosamkaun.blogspot.in/2012/10/blog-post.html

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    1. टिप्पणियों पर नज़र बनी हुई है......तेजपाल प्रकरण में उस साहसी पीडिता ने जो स्टेटमेंट दिए हैं...उनमे लिखी ये पंक्तियाँ बहुत महत्वपूर्ण है .

      "Now that we have a new law that broadens the definition of rape, we should stand by what we fought for. We have spoken, time and again, about how rape is not about lust or sex, but about power, privilege and entitlement. Thus this new law should be applicable to everybody – the wealthy, the powerful, and the well connected – and not just to faceless strangers."

      रेप सिर्फ कामाग्नि दीप्त होने से नहीं होता ,जो किसी भी असावधान महिला को देखते ही ९९% पुरुषों में प्रज्वलित हो जाती है. विक्टिम को कमजोर होना चाहिए...जिसपर आप अपना बल दिखा सकें. कोई पुरुष किसी कार्यवश अपने बॉस के घर जाता है. घर में बॉस नहीं पर उनकी ख़ूबसूरत पत्नी अकेली है. उन पर क्या वह पुरुष अपना पुरुषार्थ दिखा सकता है??

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  17. अंशुमाला जी मेरे ऊपर दिए उदहारण एकदम लचर और गलत हो सकते हैं पर मेरी मंशा एकदम साफ़ है कि मैं किसी अपराधी को ये मौका नहीं देना चाहता कि वो मेरा कुछ लूट ले इसलिए मै खुद सतर्क रहता हूँ और दूसरों को भी सतर्क रहने को कहता हूँ। जैसे हम किसी चोर को अपना चरित्र सुधारने कि सलाह देने कि बजाय अपने कीमती सामान कि सुरक्षा के लिए चिंतित होते और और उपाय करते हैं उसी तरह से मैं समझता हूँ कि स्त्रियों को भी अपनी शारीरिक व हर तरह कि सुरक्षा के लिए सतर्क सावधान रहना चाहिए। सतर्कता से मेरा आशय घर में छुप कर बैठने का कतई नहीं था। पुरातनपंथी नियमों का पालन करने से मेरा आशय भी यही था कि स्त्रियां जहाँ तक सम्भव हो खुद से शक्तिशाली पुरुष चाहे वो पिता भाई या गुरु तुल्य ही क्यों न हो एकांत और असुरक्षित माहोल में ना मिलें। अपनी छटी इंद्री को हमेशा जाग्रत रखें। ये सब सुरक्षात्मक बातें हैं लेकिन इन सब बैटन को कहने का मेरा ये मतलब नहीं है कि मैं बलात्कारी पुरुषों के बचाव में ये बातें कह रहा हूँ। आरोप सिद्ध बलात्कारी पुरुषों के लिए तो मैं उनके बंधियाकारन को ही उत्तम सजा मनाता हूँ।

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  18. दीप जी
    स्त्री की इच्छा, मन और उसके सेक्स को लेकर आप का ज्ञान काफी कम है , उस पर पोस्ट लिखिए जवाब तब देते है , यहाँ विषय कुछ और है , वैसे पुरुषो के लेकर भी आप का ज्ञान भी कुछ ज्यादा अच्छा नहीं दिख रहा है । हर स्त्री अपनी तरफ से सुरक्षा के सभी उपाय ले कर ही चलती है और सतर्क होती है , किन्तु परिवार और जानपहचान के लोगो के बिच भी उसे साँस रोक कर रहना होगा उसे अभी तक नहीं पता था । चोर चोरी तो करते ही है तो क्या महिलाए गहने पहनना छोड़ दे या लोग पर्स ले कर बाहर जाना छोड़ दे , चोरी तो घर में भी हो जाती है फिर किसे और कैसी सलाह देंगे , फिर तो यही कहेंगे की पुलिस का डर इतना होना चाहिए कि चोरो को चोरी कि हिम्मत ही नहीं हो , कानून और समाज का डर बहुतो को नियंत्रण में ला देता है । किन्तु समस्या ये है कि जब लडको से बचपन से ये कहा जाये की भाई तुम तो खुले सांड हो जो चाहे करो , बचने का काम तो दुसरो का है तो ऐसे संस्कारी बालक बड़े हो कर बलात्कारी और मवाली ही बनेगे , संस्कारी लडके आकर्षण में पड कर लड़की की सहमति से उससे भावनात्मक सम्बन्ध बनाते है , जबरजस्ती उसके साथ रेप नहीं करते है ।

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  19. मैंने यह पोस्ट पहले ही दिन पढ़ी थी लेकिन विवश था कि मोबाइल पर रोमन में लिखना और वो भी इस पोस्ट के जवाब में असंभव सा काम था.. लिहाजा आज घर लौटा हूँ और लिख रहा हूँ.. बहुत कुछ कहा सुना गया.. मैंने एक बार पहले भी कहीं कहा था कि लडकी के लिये शोर मचाना, विरोध करना बहुत आसान है.. लेकिन बाद की परिस्थितियों को संभालना बहुत ही मुश्किल.. बलात्कार के विरुद्ध मुकदमे करना बहुत आसान है, लेकिन उस मुकदमे में वकीलों की जिरह उस बलात्कार से कहीं अधिक भयावह होती है.. समाज ही सड़ गया है.. मान्यताएं बदबू दे रही हैं और वे आदर्श जिनकी हम दुहाई देते हैं, जर्जर हो चुके हैं.
    अब देखिये न, दिल्ली गैंग रेप पीड़ित बच्ची के नाम तक को छिपाना पड़ा, ताकि उसकी बदनामी न हो.. तेजपाल के केस में भी लडकी का नाम गुप्त रखा, मोदी का जो किस्सा चल रहा है उसमें भी नाम गुप्त.. अब आप ही बताइये कि ऐसे में विरोध की बात सोचना भी असंभव सा लगता है.. मेरा मतलब यह नहीं कि उन्हें विरोध करना ही नहीं चाहिए. अपने पर्स में परफ्यूम या चिली पावडर रखना चाहिए और ऐसे किसी भी प्रयास करने वाले को ऑन द स्पॉट सज़ा दें या अपना बचाव करें.
    जहाँ तक मर्दों का सवाल है उनका हौसला इसलिए बढ़ा है कि उन्हें ऐसी भी महिलायें/युवती मिली हैं जिन्होंने तरक्की का यह रास्ता अपनाया है.. नतीजा बाकी को भी वैसा ही मान लिया गया.. बेदी साहब के उपन्यास "दस्तक" की तरह!!
    महाभारात का उदाहरण और आरुशी की बात से सहमत नहीं हूँ. एक अलग विषय है जिसपर बहुत कुछ अलग से कहना पडेगा मुझे!!
    आपकी बातें हमेशा की तरह सोचने पर विवश करती हैं!! धन्यवाद!!

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    1. सलिल जी

      धन्यवाद । घटना के इतने दिन बाद पोस्ट लिखने का यही मकसद था की मिडिया का शोर थमने के बाद उस लड़की को पता चले की हम जैसे आम लोग उसके दूसरे दौर के तकलीफ में उसके साथ है । रश्मि जी ने अपने टिप्पणी में कहा है कि यदि लड़की आप से किसी तरह का फेवर चाहती है अपने शरीरी के बल पर तो क्या ये पुरुषो के चरित्र को दिखने का समय नहीं है की साफ मना करे , जैसे पैसो को मना किया जाता है । लड़की तो ख़राब है ही ऐसा करके किन्तु उसके साथ आप को अपना चरित्र गिराने कि जरुरत क्या है , उसका फायदा उठाने वाला चरित्रवान नहीं हो सकता है । महाभारत और आरुषि का केस तो महज एक छोटे से बिंदु को समझने के लिए था उसका कोई अन्य या बड़ा मतलब नहीं था ।

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  20. मैं तो यहां बहुत देर से आई हूं जब तक तो सारी बाते हो गयी है। आप पुन: ब्‍लाग पर सक्रिय हुई यह ही सुखद है।

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    1. अजित जी धन्यवाद ।

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    2. यहाँ...कई बार लड़कियों को ही सावधान रहने की बात कही गयी है. पर आज लडकियां मल्टीनेशनल कम्पनीज, कॉल सेंटर्स में काम कर रही हैं. उनकी शिफ्ट वाली ड्यूटी होती है. कभी रात के एक बजे कभी तीन बजे घर लौटती हैं. कम्पनी टैक्सी मुहैया करवाती है .साथ में सहकर्मी होते हैं और अगर लड़की का स्टॉप अंतिम है तो कंपनी की तरफ से एक गार्ड भी साथ में होता है. अब रात के दो बजे सुनसान रास्ता, टैक्सी में सिर्फ ड्राइवर और एक गार्ड...उनकी नियत बिगड़ गयी तो लड़की क्या करे? कौन से सुरक्षा के उपाय करे ? लडकियां शिफ्ट ड्यूटी से मना नहीं कर सकतीं, करती भी नहीं...तो क्या ऐसे में लड़कियों को इस तरह के प्रोफेशन नहीं चुनने चाहिए ? सोफ्टवेयर इंजीनियर नहीं बनना चहिये? एम.बी.ए . नहीं करना चाहिए ? सिर्फ टीचर या डॉक्टर ही बनना चाहिए (डॉक्टर भी तो रात में ड्यूटी करती ही हैं ) .अब लडकियां हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं और बढती रहेंगी....संभलना अब पुरुषों को है कि वे उनका सम्मान करना सीखें.

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  21. http://indianwomanhasarrived.blogspot.in/2009/04/blog-post_23.html

    2009 i wrote this

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  22. बहुत कुछ सोंचने पर विवश करती सटीक सामयिक अभिव्यक्ति...

    नयी पोस्ट@ग़ज़ल-जा रहा है जिधर बेखबर आदमी

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