September 27, 2019

लिफ्ट , घुटनो का दर्द और मर्फी के नियम -------mangopeople


हम दूसरी मंजिल पर रहते हैं इतने सालों में भी लिफ्ट के उपयोग की आदत ना बनी | लिफ्ट का उपयोग तभी करते जब हाथो में भारी सामान हो | दो साल पहले तक जिस आदत को अच्छा मानते थे उसे फिजियोथेरेपिस्ट ने ना केवा ख़राब आदत घोषित कर दिया बल्कि उतरने चढने के लिए लिफ्ट का उपयोग करने की सलाह दे दी | अब अचानक से लिफ्ट के इंतज़ार में खड़े होने की आदत कहाँ से आती , तो सीढ़ियों का उपयोग जारी रहा लेकिन हील की सैंडिल के प्रेम ने लिफ्ट के दरवाजे दिखा दिए और शुरू हुआ हमारी ईमारत के एकमात्र लिफ्ट पर मर्फी का पता नहीं कौन से नंबर का नियम लागू होना |
१- हम अगर बाहर से आये तो लिफ्ट कभी भी ग्राउंड फ्लोर पर नहीं होती | वो सैकेंड से लेकर टॉप फ्लोर पर कहीं भी अटकी रहती हैं |
२- हम सैकेंड फ्लोर पर हैं तो लिफ्ट पक्का वहां नहीं होगी वो ग्राउंड या टॉप पर होगी या हमारे सामने से ऊपर जा रही होगी |
३- हम बाहर से आते हैं और लिफ्ट सामने खड़ी दिखती हैं जैसे ही उसकी तरफ बढ़ते हैं वो हमें लेने से पहले ही ऊपर की और चल देती हैं |
४- अगर हम इंतज़ार करे की चलो वो नीचे आयेगी फिर जायेंगे , तो वो पक्का टॉप फ्लोर तक जायेगी और कभी कभी तो हर फ्लोर पर रुकती हुई जाएगी |
५- ऊपर जाती लिफ्ट को देखकर जिस दिन हम सोचते हैं कि छोडो इंतजार क्या करे सीढ़ी से चढ़ जाते हैं तो लिफ्ट पक्का फर्स्ट फ्लोर पर ही हमारा इंतज़ार कर रही होती हैं |
६- जिस दिन हम सोचते हैं आज तो टॉप फ्लोर से बुला कर लिफ्ट से ही नीचे उतरेंगे चाहे कुछ हो जाये | उस दिन लिफ्ट जब दूसरी मंजिल पर हर मंजिल पर रुकते हुए आती हैं तो इतनी भरी रहती हैं कि उसमे समाया नहीं जा सकता हैं |
७- कई बार तो ऐसा होता हैं बिटिया को दौड़ा कर भेजते हैं जाओ लिफ्ट रोको मैं सामान ले कर आ रहीं हूँ तो उस दिन तो लिफ्ट ही बंद मिलती हैं , या तो ख़राब होगी या फिर मेन्टेन्स हो रहा होता हैं |
८- कभी कभी लिफ्ट के पास पहले से ही इतने लोग खड़े होते हैं और वो भी सबके सब सबसे ऊपरी मंजिल वाले की लगता हैं इनका जाना ज्यादा जरुरी हैं | अपना बोझा सीढ़ी से ही ढोना बेहतर हैं |
९- कभी कभी कचरे वाली अपने कचरे के गंदे डब्बे के साथ खड़ी मिलेगी लिफ्ट की इंतज़ार में | फिर लगेगा नाक बंद करके लिफ्ट से जाने से अच्छा हैं साँस फुला कर सीढ़ियों से चले जाए ज्यादा सही रहेगा |
१०- कभी उत्साहित बच्चों की भीड़ रहेगी और दो चार बुजुर्ग , तो आप को अपने नागरिक कर्तव्यों को याद करना होता हैं , पहले आप जाए , हमारा क्या हैं ईमारत में ये सीढियाँ हमारे लिए ही बनी हैं |
११ - कभी कभी लिफ्ट के बाहर इंतज़ार करती पहली मंजिल पर रहने वाली वो पड़ोसन मिलेगी जिसका वजन सवा सौ किलो से पाव भर भी कम ना होगा | उसके देखते ही वजन बढ़ने की चिंता इतने भयानक होती हैं कि मारों गोली घुटनों को , कम से कम सीढियाँ चढ़ उतर कर सौ दो सौ ग्राम वजन रोज तो बढ़ने से रोक ही सकते हैं | तो सीढियाँ जिंदाबाद |
१२ - फिर कभी सामने से लिफ्ट एकदम से हमारे सामने नीचे आती और रुकती दिखती हैं और हम पूरी तरह से ऊपरवाले को धनबाद , पटना दे ही रहे होते हैं कि उसमे से चिपकू बकबकिया पड़ोसन हमें देखते मुस्कराते निकलेंगी और अरे बड़े दिनों के बाद दिखी से शुरू होती हैं तो खड़े खड़े दस पंद्रह मिनट निकल जाते हैं | उतने के बीच लिफ्ट चार बार ऊपर नीचे कर लेती हैं और जब वो जाती हैं तो लिफ्ट भी उनके साथ ऊपर की और जाते देख मन मसोस हम फिर सीढ़ियों की शरण में होते हैं |

फिर इन तमाम तरह की दुश्वारियों से तंग आ कर हमने तय किया कि बस अब और लिफ्ट को भाव ना दिया जायेगा और उसकी जगह अपनी प्यारी हील के सैंडिलों की ही तिलांजलि दी जायेगी | बहुत जरुरत हुआ तो सैंडिल हाथ में लेकर सीढियाँ उतर जायेंगे और क्या 😁


September 25, 2019

छिछोरा कृष्ण -------mangopeople

                                         एक बार कृष्ण की  राधा से लड़ाई हो जाती हैं | राधा कृष्ण से नाराज हो उनसे बात करना बंद कर देतीं हैं | कृष्ण परेशान हो कर बार बार उन्हें मनाने का प्रयास करतें हैं  लेकिन राधा नहीं मानती हैं | अंत में  कृष्ण कहतें हैं ठीक हैं राधा तुम्हे  इतना मना रहा हूँ लेकिन तुम नहीं मान रहीं हो मैंने अपने तरफ से सभी तरह के प्रयास कर लिए अब तो एक ही काम बचा हैं कि तुम अपने पांव उठा कर मेरे सिर पर धर  दो और ऐसा कहते हुए बदमाश कृष्ण घाघरा पहनी हुई राधा के एक पांव को ऊपर उठा कर अपने सर के ऊपर  रख लेतें हैं | कृष्ण बदमाश क्यों , सोचिये घाघरा पहनी हुई किसी महिला का एक पांव उठा कर अपने सर पर रखेंगे तो आपके नेत्र क्या देखेंगे |
                                       
                                          गोपियाँ माता यशोदा से शिकायत करतीं हैं कि ये बदमाश कृष्ण यमुना से नहा कर निकल रहीं गांयों के बहाने  हम गोपियों की गिनती करता हैं उंगलियां दिखा दिखा आँखें मटकाते इशारे करते हुए  | ये इतना बड़ा बदमाश हैं कि गांयों के हांकने के लिए जो लाठी ले कर जाता हैं उसे पर अपने हाथ ऐसे उल्टा टिका कर ( हथेलियों की वह मुद्रा  जैसे हम हाथ से इशारा कर पूछते हैं कौन है जिसमे उंगलिया फैली होती हैं , अलपद्म कहते हैं उसे ) ऐसे खड़ा हो हमें घूरता हैं जैसे वो उन हांथो से हमारे उरोजो को तौल रहा हो | इसके अलावा हम शास्त्रीय नृत्यों में  कृष्ण और गोपियों के छेड़छाड़ के ना जाने कितने प्रसंग को देखतें हैं

                                          जब हम कृष्ण को प्रेम , ममता आध्यात्म , ज्ञान जैसी चीजों से जोड़ कर ही मात्र देखतें हैं तो इस तरह के गीत और प्रसंग कानों में शीशा घोल कर डाले जाने के समान लगते हैं | भरतनाट्यम के क्लास में जब इस तरह के प्रसंगो और गीतों को सुना तो हमने कहा मैम ये सब कृष्ण नहीं हैं | असल में ये लिखने वाले का अपना छिछोरा , गंदा दिमाग हैं जिसने कृष्ण के नाम पर  उलट कर उसे गीत काव्य भक्ति श्रृंगार कह दिया हैं | ये सब भक्ति के बाद रति काल में जन्मे कवियों की ये अपनी रति सोच हैं जिससे कृष्ण को रंग पर खुद की छिछोरी सोच को स्वीकारे जाने योग्य  बनाये जाने की चेष्टा की हैं |
#हेकृष्णा!    

September 23, 2019

स्कूलों में मिलती ये कैसी सीख -------mangopeople

                                       हम अपने बच्चों को अच्छे से अच्छे महंगे नीजि स्कूलों में भेजते हैं इस उम्मीद में कि वो वहां अच्छी पढाई के साथ कुछ अच्छे संस्कार , अच्छी बातें और पढाई से इतर एक अच्छे मनुष्य बनने की शिक्षा लेंगे | लेकिन वही महंगे पब्लिक स्कूल उन बच्चों को क्या सीखा सकता , उन्हें कितनी गलत बातें और झूठ सीखा सकता हैं हम अंदाजा भी नहीं लगा सकतें हैं |
                                       बहन के घर के बगल में एक पार्क हैं उजड़ा हुआ , अभी तक हरियाणा सरकार के विकास के मैप में वो पार्क  नहीं आया हैं , इसलिए खाली मैदान के रूप में पड़ा हुआ हैं |
पिछले शनिवार कुछ सरकारी स्कूल के बच्चे और टीचर वहां आ कर ढेर सारे पेड़ लगा गए | संभव हैं कि किसी सरकारी आदेश पर्यावरण संरक्षण आदि के तहत ऐसा किया गया हो |छठी या सातवीं के छोटे बच्चे अपने साथ ढेरो पेड़ लायें थे और तेज बारिश होने के बाद भी गीली मिटटी में गंदे होते हुए भी गड्ढे खोद कर अच्छे से पेड़ लगा दिया | दो दिन बाद और भी बच्चे आये और किसी दूसरे पार्क में भी पेड़ लगा गयें | साथ में पेड़ों को लगाते और उनके साथ फोटो भी खिंचवायें गयें बच्चों और टीचर के |
                                       दो तीन दिन बाद  अचानक से वहां दो बसों में भर कर  किसी दूसरे  सेक्टर के एक नामी और बड़े नीजि स्कूल के बच्चे फिर उसी पार्क में अपनी टीचर के साथ आयें और सरकारी स्कूल के बच्चों द्वारा लगाएं गयें पेड़ों के साथ फोटो खिंचवाने लगे | जब बहन ने पूछा ये क्या हो रहा हैं तो बताया गया हम सब पेड़ लगाने आयें हैं | बहन ने सवाल किया कि  पेड़  कहाँ लगाया तो उसने वहां पहले से ही लगे पेड़ की और इशारा कर दिया जिसके साथ उसकी फोटो उसकी टीचर ले रही थी | फिर बहन ने  टोका ये तो पेड़ पहले से ही लगा था जो सरकारी स्कूल के बच्चों ने लगाया था तो उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया और अपना फोटो लेना जारी रखा |
                                     घंटे भर तक बच्चे सरकारी स्कूल के बच्चों की मेहनत को अपनी मेहनत बताने के लिए सभी पेड़ों के साथ फोटो लेते रहें | हद तो तब हो गई जब उन टीचरों ने लोगों के घरों के आगे लगे पेड़ , पौधों के साथ भी फोटो लेना शुरू कर दिया | उसके लिए बाकायदा बच्चों को निर्देश दिए जा रहें थे कि जिनके आगे लोहे के जंगले लगे हैं उनके साथ फोटो ना ली जाए | इस तरह उन्हें अपने पकड़े जाने का डर रहा होगा |
                                    सोचिये स्कूल के टीचर , प्रिंसपल बच्चों का कितना कुछ  गलत सीखा रहें थे | झूठ बोलना , बेईमानी करना , दूसरों की मेहनत को अपना बताना , एक तरह से अपराध करना ना केवल सीखा रहें थे उनसे वो करवा भी रहें थे | संभव हैं इसके पीछे सरकारी पैसे की लूट भी हो | बहन ने बस फोटो नहीं लिया हैं उन लोगों का , लिया होता तो फोटो के साथ  शिक्षा विभाग और स्कूल की  को भी टैग करती इस अपराध के लिए | एक पेड़ लगाना किसी नीजि स्कूल के लिए क्या इतना मुश्किल था कि वो इतना निचे गिर कर बच्चों से ऐसे अपराध करवा रहें थे | ये तो हद के बहुत आगे का अपराध हैं |


September 22, 2019

अनर्थशास्त्री -------mangopeople

                                            बात कुछ साल पहले की हैं पतंजलि के उत्पाद बाजरा में जगह बनाना शुरू कर चुके थे | अखबारों में खबर आना शुरू हुए कि टूथ पेस्ट के मामले में उस समय के सबसे ज्यादा बाजार पर कब्ज़ा करने वाले कोलगेट की बिक्री बहुत ज्यादा गिर गई थी | उनकी बिक्री इतनी ज्यादा गिर गई थी कि बड़े बड़े अधिकारीयों को भी मार्केट के चक्कर लगा कर उपभोक्ता से बात तक करनी पड़ी थी | सबको पता था उसका ये हाल बाबा के दंतकांति ने किया था | बाबा का ग्राफ जैसे जैसे बढ़ रहा था कोलगेट का गिर रहा था | साफ था कि उपभोक्ता दांत साफ  करना नहीं बंद कर रहें थे वो एक बाजार पर कब्जे वाली कंपनी के उत्पाद को छोड़ कर किसी नए उत्पाद को खरीद रहें थे |
                                             सोचती हूँ तो अगर ये आज के समय में होता तो शायद ये खबर ऐसे आती कि  बाजार में इतनी ज्यादा मंदी  हैं की लोगों ने टूथपेस्ट तक खरीदना बंद कर दिया हैं कोलगेट की बिक्री में भारी गिरावट | कई जगह पढ़ा गाड़ियां नहीं बिक रही हैं उत्पादन बंद हो रहें हैं , शो रूम बंद हो रहें हैं जबकि बंद या कम होने वालों में एक दो कंपनियों के ही नाम आ रहें हैं सभी के नहीं ,  ऐसा क्यों हैं |
उत्पाद ना बिकने के बाद भी कंपनियों ने उसकी बिक्री बढ़ाने के लिए कोई भी नया ऑफर नहीं लाया बाजार में , कम्पनियाँ लगभग कुछ ना करती हुई दिख रही हैं , जीएसटी कम करों की मांग के अलावा ,ऐसा क्यों हैं |
                                          एक तरफ गाड़ियां ना बिकने की खबर आ रही हैं , दूसरी तरफ  टीवी अख़बारों में लगभग हर दूसरे तीसरे दिन किसी नई कार के बाजार में आने की खबर पढ़ रही हूँ ,  टीवी पर प्री बुकिंग के विज्ञापन आ रहें हैं | तो बस ये सवाल था कि बाजरा में जो कार बिक्री का में गिरावट बताई जा रही हैं वो सभी कारों की बिक्री में हैं या कुछ पुराने कारों में ही गिरावट देखी जा रही हैं | इस गिरावट में जो नई आ रहे गाड़ियों को आज ही बुक कर दिया गया हैं उनको जोड़ा गया हैं की नहीं या उन करों को  जो सीधे विदेश से यहां आ रहीं हैं | क्योकि कार भले ना बिक रहें हो लेकिन दो पहिया की बिक्री में कोई मंदी नहीं हैं | मतलब ये मंदी ज्यादा पैसे वालों के लिए हैं लेकिन माध्यम वर्ग के लिए उतनी नहीं हैं |
#अनर्थशास्त्री 

September 21, 2019

समय के साथ परंपराओं में बदलाव जरुरी हैं ----mangopeople

                                          बात कुछ   सालों पुरानी हैं एक दिन अचानक से सपने में अपने ससुर जी को देखा | सुबह मम्मी का फोन आया तो बातों बातों में मम्मी से इसका जिक्र कर दिया | बस  मम्मी अपने विश्वास के साथ शुरू हो गई  पितृपक्ष चल रहा हैं  ,( जबकि मुझे इसका पता नहीं था )  कोई तुम्हारे ससुराल में कुछ करता हैं कि नहीं , तुम्हारे ससुर तुम लोगों से भोजन मांग रहें हैं तुम उनके नाम का खाना निकाल दो , दिन याद हैं क्या , खीर पूड़ी ही निकाल दो | उन्हें पता था मैं ना इन चीजों पर विश्वास करती थी ना करने वाली थी |
                                         
                                         शाम को सारा किस्सा पतिदेव को सुनाया युही लेकिन ये सुनते ही  पतिदेव जी  का मन अटकने लगा इस बात पर और पूछने लगे क्या क्या करतें हैं | पतिदेव के माँ का देहांत उनके बचपन में ही हो गया था और पिता का साथ भी उनका जीवन में ना होने के बराबर ही था , जो कुछ साल पहले ही गुजरे थे | भाई बहन गांव में ही छूट गए बचपन में ही सो उन्हें कभी अपने माता पिता परिवार को याद करते ज्यादा देखा नहीं था | इसलिए उस दिन ऐसा कुछ करने की उन्ही इच्छा देख थोड़ा आश्चर्य भी हुआ |
                                       
                                       मेरा विश्वास इन सब पर नहीं था लेकिन लगा अगर कुछ कहा तो उन्हें बुरा ना लगे कि वो अपने माता पिता के लिए कुछ करना चाह रहें हैं और मैं अड़ंगा लगा रही | मैंने भी बता दिया खीर तो इतनी सुबह बनने से रही बिटिया के काम के आगे , मम्मी ने कहा हैं दही पूड़ी से भी काम चल जायेगा | सो सुबह चार पूड़ी दही दे कर कहा गया नीचे मंदिर पर गाय वाली आई होगी , गाय को खिला आओ | आ कर बताते हैं कि गाय नहीं थी कुत्ता भी नहीं मिला सब वही रख कर आ रहें थे मैंने भी रख दिया |
दोपहर में बिटिया को प्ले स्कूल से लाने जा रही थी तो देखा लगभग सभी पेड़ों के नीचे खाने के ढेर लगे थे और मक्खियां उन पर भिनभिना रहीं थी | कई दिनों से हो रहा होगा लेकिन उसके पहले मेरा ध्यान ही ना गया था शायद | कोई कुत्ता गाय कौवा उन्हें नहीं खा रहा था ऑफिस जाने की जल्दी किसी के पास रस्म आदायगी से ज्यादा का समय नहीं था | फिर वही देखा जो अपने लघुकथा में मैंने  जिक्र किया था कि उस खाने के ढेर से दो लड्डुओं का पेड़ की ढलान से लुढकना और किसी दिन हिना बेचारे का उसे उठा कर खा जाना |

                                              शाम को जब वो बात पतिदेव को बताई तो उन्हें भी अपने किये का  अफसोस हुआ | मैंने कहा अच्छा होता उसे अपने पास रख लेते ऑफिस जाते ना जाने कितने भिखारी तुम्हे रोज दिखते होंगे , उनमे से किसी को दे देते तो तो ज्यादा बेहतर ना होता | अगले दिन माँ के नाम का पूड़ी खीर मुझसे बनवा कर ले गए भिखारी को खिलने के लिए प्रायश्चित के रूप में | उसके बाद हमने कुछ नहीं किया |

                                                         समय के साथ इन रस्मों में कुछ बदलाव करना चाहिए , सड़क पर इन्हें ऐसे ही छोड़ कर चले आने से अच्छा हैं किसी को भी खाने के लिए दे दिया जाये | अपने माता पिता या इतने करीबी लोगों को कौन भूलता हैं चाहे वो हमारे साथ हो या ना हो | उन्हें याद करने के लिए किसी दिन विशेष की शायद ही हम में से किसी को जरुरत होती होगी | मैं किसी के विश्वास का विरोध नहीं करती बस चाहतीं हूँ समय के साथ बहुत सारी रस्मों परम्पराओं का रूप और उसके पीछे की सोच को बदल देना चाहिए | उन्हें और ज्यादा मानवीय और सामाजिक बना देना चाहिए |



September 19, 2019

बेरोजगारी का एक रूप ये भी ------mangopeople

बात कुछ साल पहले की हैं  जब अख़बारों में खबर आती थी कि बड़ी बड़ी डिग्री वाले  लोग सफाईकर्मचारी के नौकरी के लिए आवेदन कर रहें  हैं | साथ ही ये खबर भी थी कि स्वर्ण जाति के लोग भी अब सफाई कर्मचारी की पोस्ट के लिए आवेदन कर रहें हैं |
इसके लिए सरकारों को बेरोजगारी आदि को खूब कोसा गया और अफसोस जाहिर किया गया योग्य लोगों को इस तरह मजबूरी में इतने नीचे के स्तर का काम करना पड़ रहा हैं |
अब जरा इसके पीछे की एक सच्चाई को सुनिए | जब हम छोटे थे तो बनारस में हमारे घर की गली में रोज झाड़ू लगता और सफाई रहती थी | लेकिन इन खबरों  बीच अचानक हमारी  गली में एक दिन छोड़ कर झाड़ू लगना शुरू हो  गया | कभी कभी दो दिन तक झाड़ू नहीं लगता , अच्छा खासा साफ़ गली गंदी रहने लगा  |
 फिर जब पता किया गया ऐसा क्यों हो रहा हैं तो पता  चला कि हमारी गली का सफाईकर्मचारी तो कभी झाड़ू ही लगाने हमारी गली में आता ही नहीं था  | एक दिन बाद जो झाड़ू लगाने आता हैं वो तो  दूसरी गली का कर्मचारी हैं |
वो भला ऐसा क्यों कर रहा था , इसके पीछे थी उन दोनों की साठगांठ  |  हमारी  गली का  सफाईकर्मचारी ऐसे ही डिग्रीधारी कोई था , जो बस सरकारी नौकरी के नाम पर नौकरी में लग गया था , लेकिन कभी काम पर नहीं आता था | अपनी जगह वो दूसरे सफाईकर्मचारी को अपने वेतन से कुछ  पैसा दे देता था और वो अपना काम ख़त्म करके फिर हमारी तरफ सफाई करता | निश्चित रूप से उसे पुरे पैसे तो नहीं मिल रहें थे इसलिए वो रोज नहीं आता था |
बनारस जैसी जगह पर कौन देखने जा रहा हैं कि हर गली में सफाई रोज हुई या नहीं या कौन  शिकायत करने नगर निगम जा रहा हैं कि रोज सफाई नहीं हो रही हैं | बस इसी बात का फायदा उठाया जा रहा था कुछ सरकारी नौकरी के नाम पर अपना जेबखर्च निकालने वालों लोगों द्वारा |
इसलिए अगली बार इस तरह की कोई खबर पढ़े तो सोचियेगा कि  वास्तव में हमारे चारो तरफ काम की इतनी कमी हैं कि लोग इतने योग्य होने के बाद ऐसे काम  करें ,  या तो नौकरी सरकारी होगी या डिग्री फर्जी | 

September 17, 2019

वापसी की टिकट --------mangopeople

"क्या लाए हो थैले में " 

"जलेबियां है " 

" जलेबियां ? किसके लिए । " 

" प प प पापा के लिए " । 

" जुबान क्यों लड़खड़ा रही है "

" नहीं तो "

"वाह बड़ा प्यार आ रहा है पापा पर , कल रसगुल्ले लाये थे परसो आसक्रीम खिलाई , उसके पहले बाहर बिरियानी "

" मतलब हा, पापा कभी कभी तो आते है हमारे पास, इतना तो कर ही सकता हूँ "

" अरे वाह कभी कभी आते है तो सारा प्यार यू उड़ेल दो , जैसे ये सब न खाया तो भूखे रह जायेंगे क्यों "

" नहीं "

" नहीं ना ! तो फिर क्यों लाये ये सब , इधर दो "

" सुनो देखो , धीरे बोलो , पापा सुन रहे है "

" सुन रहे है तो सुने मैं क्या डरती हूँ पापा से , मैं उन्हें और तुम्हे , दोनों को नहीं छोडूंगी "

" देखो --------"

" चुप रहो ख़बरदार जो एक वर्ड और कहा , मुझे पता है इन सब के लालच में ही पापा यहाँ आते है । दिमाग खराब हो गया है तुम्हारा "

" देखो ऐसा नहीं है "

" मैं सब समझती हूँ मुझे कुछ कहने की जरुरत नहीं है "

" कल से कुछ नहीं लाऊंगा , आज इसे दे दो "

" कल ? कल तो वो यहाँ रहेंगे ही नहीं उनकी टिकट वापसी की कटा चुकी हूँ "

" देखो ऐसा मत करो , पापा क्या सोचेंगे "

" ओह वो क्या सोचेंगे , बड़ी चिंता है उनकी सोचने की , पहले सोचा होता तो ये दिन नहीं देखने पड़ते "

" मैं माफ़ी मांगता हूँ मेरी गलती है , अब कुछ नहीं करूँगा तुमसे पूछे बिना , प्लीज़ प्लीज "

" प्लीज़ के बच्चे शर्म नहीं आती तुमको उनका शुगर लेवल देखा है कितना हाई है , ये सब खिला खिला कर उन्हें मारना है क्या और पापा वो तो गये मैंने मम्मी को सब बता दिया उन्होंने कल शाम की उनकी वापसी की टिकट कटवा दी है "


September 11, 2019

सलेक्टिव आक्रोश और चुप्पी ------mangopeople

                                        तबरेज अंसारी की चोरी के इल्जाम में भीड़ द्वारा पीट कर हत्या कर देने के बाद से अब तक कितने लोग मॉब लीचिंग में मारे गए हैं , क्या इसकी कोई जानकारी हैं | उन सभी केस में कितने लोगों के खिलाफ  मामले दर्ज हुए हैं और कितने लोगों पर हत्या की धारा लगाई गई हैं क्या इसकी कोई जानकारी हैं | शायद ही ऐसी कोई जानकारी किसी के पास होगी , क्योकि तबरेज की मौत के बाद ना समाज में कोई हलचल इन ढेर सारी मौतों पर दिखी ना मिडिया ने इसे जोरशोर से उठाया ना मरने वालों को इन्साफ दिलाने में किसी की कोई रूचि जगी |
                                      अब अचानक से मिडिया और सोशल मिडिया का एक तबका फिर से मॉब लीचिंग पर जागृत हो गया क्यों की तबरेज की हत्या के आरोपियों से हत्या की धारा ही हटा ली गई हैं | क्या ये जागृत हुए लोग जवाब देंगे जब समाज में बच्चा चोरी , जादूटोना आदि  की अफवाहों में ना जाने कितने  लोग इस बीच मार दिए गयें उसी भीड़ द्वारा , तब उनकी नींद क्यों नहीं खुली जुबान क्यों बंद थे |
                                       जब तक हम समस्या की जड़ को समझ उस पर रोक  नहीं लगायेंगे  और हिन्दू मुस्लिम करके उसका रुख किसी और तरफ   मोड़ते रहेंगे ,  तब तक ये सब ऐसे  ही चलता रहेगा | चाहे पहलू खान का मामला हो या तबरेज का ये बच्चा चोरी और जादूटोना के शक में  मारे गए लोगों का |  समस्या हैं आम लोगों द्वारा कानून को अपने हाथ में लेना और खुद ही इंसाफ करने की सोच | खतरनाक हैं हर कही गई बातों को अफवाहों को तुरंत सच मान लेना और उस पर हिंसक प्रतिक्रिया देना | समस्या भीड़ की हिंसक सोच हैं |
                                     यहाँ पर जरुरत हैं  समाज की सोच को बदलने की , अफवाहों पर लगाम लगाने की , लोगों में कानून के प्रति भरोषा जगाने की और हिंसा करने पर कड़ी सजा मिलेगी का डर बैठने की | लेकिन देश की हालत ये हैं कि बच्चा बच्चा किसी विचारधारा और राजनैतिक सोच की जंजीर में ऐसा जकड़ा हुआ हैं कि उसे हर मामले में धर्म ,  जाति और राजनैतिक दल से सिवा कुछ दिखता ही नहीं हैं | बहुत सोची समझी रणनीति के तहत मामलों को उठाया जाता हैं ( हर तरफ से ) और कुछ मामलों पर चुप्पी साध ली जाती हैं |
                                   किसी को इंसाफ दिलाना , समाज में व्यवस्था ठीक रखना कानून का पालन जैसा किसी की कोई सोच नहीं हैं | ऐसे मामलों में जिसका भी मुंह खुलता हैं एक तय सोच , एक पूर्वाग्रह  के साथ खुलता हैं | मॉब लीचिंग की सभी घटनाओं को एक बड़ी समस्या की तरह देखा जाता और सभी पर रोक के लिए मांग होती | समाज खुल कर सामने आता तो सरकार पर भी दबाव होता और शायद न्यायपालिका भी खुद आगे आती इसके लिए , लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ |
                                  फिर अब  आप पहलू और तबरेज पर रोते रहिये चीखते रहिये , मार्च निकालते रहिये , कुछ नहीं होने वाला हैं | क्योकि उनके आलावा इस हिंसा की भीड़ के शिकार हुए उन  लोगों की आत्माएं आपको धिक्कार रही होंगी , जिनके लिए आपने एक लाइन भी बोलने लिखने की जरुरत नहीं समझी ,  जिनके जीवन की आपने कोई कीमत नहीं समझी | असल में आज ज्यादातर लोग कुछ लोगों की मौत का प्रयोग अपनी सोच और विचारधारा को आगे रखने वाले मौका परास्त लोग हैं  | 



September 09, 2019

दिल के टुकड़े टुकड़े करके मुस्करा कर ------mangopeople



" हो गया मेडिकल चेकअप 😊 "
" हा हो गया 🙂"
" क्या क्या हुआ 🤔"
" वही सब जो मेडिकल चेकअप में होता हैं 🙄"
" वही तो पूछ रहीं हूँ क्या क्या हुआ ,एक बार में जवाब नहीं दे सकते हो 😒😏 "
" अरे यार ! वही हार्ट  , ब्लड , ब्लडप्रेशर , आँख कान मुंह सबका 🤷‍♂️"
" हार्ट  का क्या निकला सब ठीक हैं 😌"
" नहीं बोली दिल तो चकनाचूर हैं आपका 😄 "
" ठीक से चेक नहीं की होगी , करती तो चकनाचूर नहीं कहती , कहती आपको तो दिल ही नहीं हैं 🤨😏"
😅 "
" कान कैसे चेक किया 🧐"
" घंटी बजा के कान के पास ले गई और बोली जब तक सुनाई दे बताइयेगा 🤗 "
" सब ठीक निकला क्या 🤔"
" हा भाई बोली सही हैं कान 🤷‍♂️ "
" तो उससे पूछना था ना जब कान सही हैं तो बीवी जो कहती हैं वो एक बार में सुनाई क्यों नहीं देता 😛😋 "

#छेड़ोनामेरीजुल्फे