August 15, 2022

प्रतिकात्मक देश भक्ति से आगे

एक समय था जब हर किसी को झंडा फहराने का अधिकार नही था । ये साल का दो सरकारी कार्यक्रम और क्रिकेट मैच के समय मैदान ती सीमित था । झंडे के प्रति इतनी संवेदनशीलता होती और साथ मे इतने नियम कानून , मान अपमान की पूछिये मत । 

तब अमेरिकन को देख कर लगता ये तो अपने झंडे का पजामा बिकनी तक पहन लेते इनके झंडे का अपमान ना होता ,ये संवेदनशील नही होते उसके प्रति।  ये और इनका झंडा तो सबसे ताकतवर है फिर ऐसा क्यो है । लेकिन अच्छा लगता कि झंडे पर सबका अधिकार है ।

फिर वो समय भी आया जब हम सब को भी तीरंगा फहराने हाथ मे ले कर चलने का अधिकार मिला । आप सभी को भी याद होगा क्या उत्साह था उस समय आम लोगो मे । हर घर तीरंगा तब भी था और  स्वतः था । लेकिन देश  के प्रति  कोई  कर्तव्य याद हो ना हो झंडे के प्रति बहुत सारे लोगो की संवेदनशीलता बनी रही और  वो इसके मान अपमान  कोड कंडक्ट आदि को लेकर विरोध नाराजगी दिखाते रहे । 

शुरू मे मुझे भी लगता था फिर  धीरे धीरे लगा झंडे के प्रति प्रतिकात्मक संवेदनशीलता , प्रतिकात्मक देशभक्ति से आगे की सोचना चाहिए। ब्याह के बाद कोई  दस साल तक साल मे दो बार अपने घर मे झंडा जो लगाती थी वो बंद कर दिया । 

देश के नियम कानून ना मान रहे । देश को बढ़ाने मे कोई सहयोग ना कर रहे तो इन सब प्रतिकात्मक देशभक्ति का कोई मतलब नही है । झंडा लगाइये राष्ट्रीय पर्व धूमधाम से मनाइये लेकिन साथ मे खुद को और आगे आने वाली पीढ़ी को असली देशभक्ति भी सीखिये और  सिखाये । बस झंडे फहराने तक सीमित मत रहिये । तभी इन सब का कोई  अर्थ है वरना बस छुट्टी का दिन  है मौज मस्ती आराम मे निकल जाना है । 

बकिया झंडे पर सबका बराबर का अधिकार है क्या ऊंची अट्टालिका और  क्या हमारा कबूतर खाना । उनका भी झंडा ऊँचा रहे और  हमारा भी लहराता फहराता ऊँचा  रहे । 

अब बिटिया ने  अपने घर मे फिर से शुरू किया है झंडा  लगाना देखते है ये हवा बस इस साल का देखा देखी है या आगे भी याद रहता उन्हे ।  


  


3 comments:


  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (१५-०८ -२०२२ ) को 'कहाँ नहीं है प्यार'(चर्चा अंक-४५२३) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  2. बच्चों के भीतर आत्म-गौरव की भावना जागेगी तो उनका निर्मल मन अपने विचार उसी के अनुरूर बनाएगा.- भविष्य मंगलमय हो !

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  3. क्या तिरंगा फहराने से हम देशभक्त हो जाएंगे?
    आज विभिन्न दल झंडारोहण में और तिरंगे के वितरण में, एक-दूसरे पर हावी होने की कोशिश कर रहे हैं.
    झंडे पर खर्च किया गया अरबों रुपया अगर लाखों बेरोज़गारों को रोज़गार देने में खर्च किया जाता तो बेहतर होता.

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