सुबह सुबह अखबार में दो खबरे पढने को मिली दोनों युवा पीढ़ी से जुडी थी पहली खबर थी की इम्तहान में पेपर अच्छे न होने के कारण फेल होने के डर से एक किशोर ने आत्हत्या कर ली अख़बारो में ऐसी खबरे अब आम हो गई है पढ़ और सुन कर दुख होता है लेकिन दूसरी खबर और चौकाने वाली और भयानक थी कि दोस्तों ने पैसे के लिए अपने ही दोस्त का अपहरण किया और उसके घरवालो से फिरौती मागी पर फिरौती मिलने के बाद भी उसकी हत्या कर दी, निश्चित रूप से उन्हें अपने पहचाने जाने का डर था | दोनों ही खबरे आज के युवाओं के दो रूपों को दिखा रही थी | एक ओर तो कुछ युवा इतने कमजोर निकले की जीवन में अपनी पसंद की चीज न मिलने और एक स्कुल के परीक्षा में फेल होने का डर वो बर्दास्त नहीं कर पा रहे है और आत्महत्या जैसा कड़ोर कदम उठा ले रहे है | वो मानसिक रूप से इतने कमजोर है की वह जीवन की इतनी छोटी समस्या को भी हल नहीं कर पा रहे है | दुसरे वो युवा है जो जीवन में अपनी पसंद की चीज पाने के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार है उनके लिए जीवन ऐसो आराम से जिने के लिए है और वो इसे पाने के लिए लुट और हत्या जैसे जघन्य अपराध करने से भी नहीं हिचकते है | माथे पर बल तब और बढ़ जाता है जब पता चलता है की ये सभी युवा अच्छे घरो से है | ज्यादातर लोगों का मानन है कि इनके इस व्वहार का एक कारण इनका पश्चिमी समाज का अंधाधुंन अनुसरण करना और भारतीय संस्कारो की कमी | किसी से इस पर राय मागिये तो एक ही जवाब मिलेगा की आज की युवा पीढ़ी को टीवी फिल्मो और इंटरनेट ने बिगाड़ दिया है उनमे हमारे तरह संस्कार ही नहीं है भाई हमारे जीवन में भी काफी मुश्किले आई पर हम तो उनसे परेशान हो कर आत्महत्या करने नहीं चले गये या कई बार हमारी जरूरते भी ज्यादा थी पर हम तो किसी का खून करने नहीं गये क्योकि हम मे संस्कार थे और हम जानते थी की क्या सही है और क्या गलत है | पर आज की पीढ़ी को देखिये इन्हे तो भारतीय संस्कृति और रीती रिवाज पिछड़ेपन की निशानी लगते है | आज भारत के युवाओ के बोल चाल खान पान पहनावे से लेकर विचारो (सिर्फ वो विचार जिनमे उनका फायदा हो )पसंद नापसंद को देखा कर हम अंदाजा लगा सकते है कि उन पर पश्चिमी सभ्यता (उनके अनुसार आधुनिक) का प्रभाव कितना ज्यादा है | ऐसे युवाओ कि कमी नहीं है जिनके अनुसार हर भारतीय परंपरा रुढ़िवादी है उनको मानना अन्धविश्वास है इनका कोई तर्क नहीं होता ये विज्ञानं से कोसो दूर है | अगर कुछ आधुनिक है तो पश्चिमी समाज वहां काफी खुलापन है आजादी है पर भारतीय समाज में बंधन के सीवा कुछ नहीं है यहाँ व्यक्ति की आजादी नहीं होती है और युवा पीढ़ी बध कर नहीं रहना चाहती है उसे तो खुलापन पसंद है आजादी पसंद है | अपनो से बड़े और बुजर्गो को हाय हलो कहने वाले इस नई जनरेशन के लिए बड़े बुजर्गो के पाव छूना साल में एक दो बार किसी खास मौके की बात है नहीं तो जरुरत नहीं है अपने गुरु का आदर करने की वो जरुरत नहीं समझते सयुक्त परिवार में रहना या किसी तरह के आभाव में रहना उन्हें मंजूर नहीं है यहाँ तक की वो अपने माता पिता से भी आदरपूर्वक बात भी नहीं करते बाहर के लोगों कि तो बात ही छोडिये दूसरो कि मदत करना जैसी बाते तो इनके डीसनरी में ही नहीं होते इस सो काल्ड न्यू जनरेशन का अपने पैरेंट्स से किसी बात को लेकर डिबेट या फाईट होना तो अब आम बात है | उनके अनुसार समय के साथ सभी को बदलते रहना चाहिए अगर आप ऐसा नहीं करेंगे तो आप दूसरो से पिछड़ जायेगे "माडन"नहीं कहलायेंगे |
इस फैलती आधुनिक संस्क्रृति (बड़े बुड़ो के अनुसार अपसंस्कृति) से सबसे ज्यादा कोई परेशान है तो वो है माता पिता जिनके लिए बच्चो के पास न तो समय है और न ही सम्मान जिसकी उन्हें चाहत है | वो इस हालत के लिए कभी टीवी फिल्मो और इंटरनेट को तो कभी आज के बदलते माहौल और समाज को दोषी बताते है | पर क्या यही सच्चाई जी नहीं पूरी सच्चाई ये नहीं है इस पूरी बात में खुद को संस्कारवान होने कि दुहाई देने वाले माता पिता और पुरानी पीढ़ी बड़ी आसानी से अपनी गलती को छुपा रही है | वे कहते है कि हम बहुत संस्कारवान सबका सम्मान करने वाले है हमारे परिवार ने हमें हमेसा अच्छे संस्कार और सीख दी अब ऐसा कहने वाले आज के माता पिता और घर के बुजुर्ग भी बताये कि उन्होंने अपने घर के बच्चो का क्या सीख दी है क्या कभी उन्होंने अपने बच्चो को औपचारिक रूप से कोई संस्कार कोई भारतीय रीती रिवाज या हमारी सभ्यता के बारे में कुछ बताया है जवाब है नहीं शायद कभी नहीं | विश्व में कोई भी संस्कृति या रीती रिवाज एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तांतरित करने से ही आगे बढती है पर आज हमारे समाज में खासकर बड़े शहरो में ये होना बंद हो गया है | आप सभी अपने आप से पूछिये कि आप में से कितने लोगों ने अपने बच्चो को सिखाया है कि हमें सभी बड़ो का आदर करना चाहिए, दूसरो कि मदद करना चाहिए, सुबह जल्दी उठाना चाहिए, झूठ बोलना चोरी करना गलत बात है ( जी हम जब छोटे थे तो ये 'पाप' होता था पर आज के ज़माने में अब ये पाप नहीं रहा सिर्फ गलत बात रह गई है ताकि मौका पड़ने पर हमें ये गलती करने कि छुट मिल सके और पकडे जाने पर गलती कि माफ़ी माग ले) आप को ये सारी बाते किताबी लग रही होगी (वैसे ये बाते आप को आज के बच्चो कि किताबो में भी नहीं मिलेंगी ) सोचेंगे कि अब कौन बेवकूफ ऐसी बाते अपने बच्चो से करता है ये हम करे भी तो बच्चे या तो उसे समझेगे नहीं या हम पर हेसेंगे | यदि आप ऐसा सोच रहे है तो आप बिलकुल गलत भी नहीं है एक ही तारीख में सोने और उठने वाले आधुनिकता कि दौड़ में शामिल माता पिता कैसे अपने बच्चो को जल्दी सोने और उठने कि शिक्षा दे सकते है ऐसा कहने पर बच्चे उन पर हसेंगे ही आफिस कि स्टेशनरी से लेकर टैक्स चुराने वाले पिता कैसे अपने बच्चो को चोरी न करने का ज्ञान दे सकता है बात बात में सहेलियों से लम्बी लम्बी हाकने वाली माँ कैसे अपने बच्चो को झूठ न बोलने की सीख दे सकती है | हम सभी आज उन्हें सीख तो देते है पर कुछ अलग तरह की कि कैसे उन्हें दूसरो से अपना काम निकालना चाहिए ,जरुरत पड़ने पर झूठ बोलने से नहीं हिचकिचाना चाहिए सामने वाले की हैसियत देखा कर उसका सम्मान करना चाहिए दूसरो की सहायता तभी करना चाहिए जब उसमे हमारा फायदा हो मौके और समय कजे अनुसार बच्चो को ये सिख दी जाती है या बच्चे घर के लोगों को ऐसा करते देखा खुद ही सिख जाते है और हम सभी यह कह कर इसको सही ठहराते है की आज तो जमाना ही ऐसा है की यदि बच्चे ये सब न सीखे तो वह कभी आगे ही नहीं बढ़ पाएंगे और वो दब्बू बन जायेंगे | लेकिन जब यही बच्चे ये वव्हार अपने ही माता पिता या भाई बहन के साथ करते है तो उन्हें बुरा लगता है वो इसके लिए समाज और आज कल के माहौल को दोष देने लगते है | बात सिर्फ संस्कारो पर ख़त्म नहीं होती भारतीय रीती रिवाजो के प्रति नई पीढ़ी की अनभिज्ञता का कारण भी यही है | इस भाग दौड़ भरी जिंदगी में समय किसके पास है हम सभी को हर काम सॉर्ट कट में करने की आदत हो गई है चाहे वो पूजा पाठ तीज त्यौहार यह तक की शादी विवाह और अंतिम संस्कार में भी पुरे रीती रिवाजो से नहीं किया जाता सब कुछ सॉर्ट कट में बेचारे बच्चे भी आधे अधूरे किसी रिवाज को क्या समझेंगे अगर बच्चे ने गलती से पूछ लिया की ये रस्म क्यों की जाती है या इस रिवाज का क्या मतलब है तो तो उसे १ ही जवाब मिलता है की बस ऐसे ही किया जाता है | अब ऐसे में युवा एक तो न हो रहे रिवाजो को जान ही नहीं पते और जो आधे अधूरे हो रहे है उनका मतलब उनको नहीं पता होता है ऐसे में उन्हें भारतीय परम्पराए अर्थहिन और बेमतलब लगे तो उसमे उनका क्या दोष है | इसी तरह धीरे धीरे एक एक करके अपनी परम्पराए और रीती रिवाजो को हम भूलते जाते है | कोई भी सभ्यता संस्कृति तभी तक बची रहती है जब तक उसका हस्तांतरण होता रहता है |
ये आप के ऊपर है की आप अपनी परम्पराव और रीतिरिवाजो को किस तरह युवा पीढ़ी को देते है जैसे हम बड़े समझदारी से बता सकते है की भारतीय रिवाज भी विज्ञानं से दूर नहीं है हमारे पूर्वजो को भी मालूम था की किसी चीज से क्या फायदा है और किससे क्या नुकसान बस उन्हें शायद उसका कारण ठीक से नहीं पता था इस लिए वो उन बातो को दूसरो से करवाने और उन्हें करने से रोकने के लिए उस समय के हिसाब से लोगों को उसी तरह बताते थे जैसे उन्हें ये नहीं पता था की उगते सूरज से हमें विटामिन डी मिलाता है पर उगते सूरज का सेक लेने से हम सभी को फायदा होता है वो जानते थे इसलिए ही यहाँ सूर्य नमस्कार और उगते सूरज को जल देने की परम्परा बनी उसी तरह सूर्य ग्रहण के समय सूर्य को नंगी आखो से देखने से नुकसान से भी वह परिचित थे और दुसरो को ऐसा करने से रोकने के लिए शुभ अशुभ का हवाला देते थे | उन्हें बताये हा समय के साथ इनमे कुछ दकियानुसी बाते जुड़ती चले गई उन सभी चीजो को हमें मानाने की आवश्यकता नहीं है | यदि आप ये कहते है की खुद हमें ही नहीं मालूम की इन परम्पराव का क्या मतलब है या कहे की जी भारत की सारी परम्पराए है ही बेकार उनका कोई तर्क है ही नहीं उन्हें बस यु ही बना दिया गया है | तो निशचित रूप से आज की जनरेशन उसे अंधविश्वास से ज्यादा कुछ नहीं समझेगी |
एक समय था जब बच्चो को ये बाते घर के बुजुर्ग औपचारिक रूपों से दे देते थे या बच्चे संयुक्त परिवार में रहते थे और अपने से बड़ो को देख कर संस्कारो को अपना लेते थे पर अब न तो संयुक्त परिवार रहा और शहरों के ज्यादातर घरो में या तो बुजुर्ग होते नहीं या होते भी है तो अब परिवार में उनका न तो पहले जैसा स्थान रहा और न भूमिका | तो आखिर आज की ये पीढ़ी संस्कार सीखेगी कहा से उसे कैसे पता चलेगा की कैसे उसे परिस्थितियों से लड़ना है उसके लिए क्या सही है और क्या गलत नैतिकता का क्या मतलब है और किसी त्यौहार पर हमें कौन से रीती रिवाज करने है और हमारी परम्परा क्या है | इसके बाद आप के पास दो ही रास्ते है या तो आज और अभी से अपने बच्चो को अपनी सभ्यता संस्कारो रीती रिवाजो से औपचारिक रूप से परिचय करना शुरू कर दे या फिर अपने बिगड़ते बच्चो और युवाओ को या किसी अन्य को इसके लिए दोष देना बंद कर दे |
कुछ भी कहे समाज का असर तो पड़ता ही है हम कितना भी बच्चो को सिखाये पर फिल्म टीवी इंटरनेट और दोस्तों की बाते उन्हें ज्यादा अनुसरणीय लगती है
ReplyDeleteमाँ बाप क्या संस्कार देंगे वो खुद आधुनिकता की दौड़ में शामिल है जो अपने बच्चो के हिंदी बोलने पर शर्म करते है वो हिन्दुस्तानी संसकृति के बारे में क्या बताएँगे
ReplyDeleteSach to yahi hai ki bhautikbadita ke naam par aaj ham apni sanskriti ko bhulte jaa rahe hai aur Pashchatya sabhyata ka andhnukarn karte nazar aa rahe hai, jo hamari susanskriti ke liye ghatak hai,,.. Ham sabhi ko eske liye mil-julkar prayas karne ki aawasykata hai...
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