September 22, 2010

क्या संस्कारो के नाम पर बच्चो के साथ ये दूरी ठीक है - - - - - - mangopeople

टीवी पर ये खबर देख कर काफी दुख हुआ की बच्चों को स्कूल ले कर जाने वाला कैब ड्राइवर लम्बे समय से बच्चों का रेप कर  रहा था और माँ बाप को इस बात की जानकारी ही नहीं हुई की उनके तीन बच्चों के साथ ये सब हो रहा है | माँ को तब पता चला जब उन्होंने बच्चों के शरीर पर इंजेक्शन का निशान देखा | इस बात पर आश्चर्य होता है की तीनों बच्चों में से किसी ने भी इस बात की जानकारी कभी भी अपने घर पर नहीं दी | सोचिये की अक्सर बच्चे अपने साथ होने वाली ज्यादातर घटना अपने घर आ कर बताते है की आज मैं गिर गया मुझे चोट आई मुझे उसने मारा मुझे उसने गाली दी आदि आदि फिर क्या वजह थी की बच्चों ने इतनी बड़ी घटना अपने घर पर नहीं बताई | सिर्फ इस मामले में नहीं कई और मामले में भी छोटे बच्चों के साथ ही कई बार बड़े बच्चे भी अपने साथ होने वाली इस तरह की घटना के बारे में या किसी तरह के शारीरिक शोषण के बारे में अपने घर में बताने से बचते है या तब बताते है जब काफी देर हो चुकी होती है | आखिर इसकी वजह क्या है एक कारण तो ये है की ऐसा करने वाला उनको डरता धमकता है और किसी को ना बताने के लिए कहता है पर इससे बड़ा कारण मुझे लगता है ये है कि भारत में संस्कार के नाम पर खास कर माध्यम और निम्न वर्ग अपने और अपने बच्चों के बीच इस मामले में इतनी मोटी दीवार खड़ा कर लेता है जिसे बच्चे पार नहीं कर पाते है | जैसे ही बच्चों के सेक्स एजुकेशन की बात आती है लोग अपना मुँह बनाने लगते है संस्कारो की दुहाई देने लगते है जिसके अनुसार बच्चों को अपने परिवार से, बड़ों या ये कहे की किसी से भी सेक्स जैसे मुद्दों पर बात नहीं करनी चाहिए और इसे पश्चिमी गन्दगी करार दे देते है | मुझे लगता है की शायद वो ना तो इसका मतलब समझते है और ना इसकी ज़रूरतों को | कई बार तो जब बच्चे इस बारे में बड़ों को बताते है तो उनकी बातो को गंभीरता से लिया ही नहीं जाता है ये सोच लिया जाता है की किसी ने बच्चे से मज़ाक किया होगा और बच्चे ने कुछ गलत ही सोच लिया और कई बार तो उनकी ही गलती निकल दी जाती है खास कर लड़कियों के मामले में जैसे की लड़की ने घर पर आ कर कहा की किसी ने उसी परेशान किया छेड़ा या कमेन्ट पास किया तो सबसे पहले का दिया जाता है की उस तरफ गई ही क्यों ,या कितनी बार कहा है की बे वजह घर से मत निकला करो ,या तुने ही कुछ किया होगा किसी और के साथ तो ये नहीं होता है आदि | इससे होता ये है की अगली बार बच्चे के साथ कुछ होता है तो वो घर पर बताने से डरने लगता है की उसे ही डाट पड़ेगी या सब उसका मज़ाक उड़ायेंगे या उसका घर से निकलना बंद हो जायेगा |
ऐसा नहीं है की हमारी परंपरा में इस तरह के किसी शिक्षा की बात है ही नहीं बच्चों के बड़े होते ही खास कर लड़कियों के मासिक धर्म शुरू होते ही घर की बूढ़ी महिलाएँ बच्ची की माँ से कह देती थी की बच्ची बड़ी हो गई है उसे गलत सही की जानकरी दे दो | ये गलत सही की जानकारी सेक्स एजुकेशन ही होती है पर शायद उतने खुले और बड़े रूप में नहीं पर कुछ जानकरी अपने शरीर में हो रहे परिवर्तन के बारे और इस बारे में की उनको कैसे अपने आप को सुरक्षित रखना है जो काफी सतही होता था | पर आज सिर्फ इतनी जानकारी से काम नहीं बनेगा और ना ही बच्चों के बड़े होने तक रुकने का समय है | अब आप को लगेगा की एक चार पांच साल के बच्चे को इस बारे में कैसे बता सकते है या उसको हम क्या ज्ञान दे सकते है इस बारे में तो मुझे लगता है की सबसे पहले तो अपने बच्चों को बताये उन स्पर्श का अंतर जो आप उसको करते है और जो कोई दूसरा किसी गलत नियत से करता है | वैसे ही जैसे हम उनको बताते है की उसे किसी अजनबी से बात नहीं करनी चाहिए उसके साथ कही नहीं जाना चाहिए और उनकी दी चीजें कभी नहीं खानी चाहिए उसी तरह उन्हें ये बताये  की उन्हें भी कभी किसी और को अपना शरीर को हाथ  नहीं लगाने देना चाहिए खासकर उनके निजी अंगों को या कोई भी ऐसा करता है तो तुरंत ही आ कर घर पर बताये | इससे कम से कम वो अपने साथ होने वाले किसी दुर्व्यवहार को तुरंत आ कर घर पर बताएगा डरेगा या हिचकेगा नहीं और हम उसे वही रोक सकते है | भारतीय सभ्यता और संस्कार के नाम पर जो बच्चों से इस बारे में दूरी बनाई जा रही है उसे कम से कम इतना तो कम कर देना चाहिए की हमारे बच्चे हमसे कुछ भी कहने या पूछने से डरे नहीं |
  मुझे तो लगता है की इस बारे में बच्चों के छोटे छोटे सवालों के जवाब परिवार को ज़रुर देना चाहिए जो अक्सर वो फ़िल्मे टीवी देख कर पूछते है वो भी बिना किसी हिचक के इससे होगा ये की एक तो बच्चे की जिज्ञासा समाप्त हो जाएगी और किसी गलत जगह से कुछ बे मतलब के ज्ञान लेने से बच जायेगा | अगर आप उसके दस में से पांच सवालों के जवाब भी दे देते है तो बाकी पांच सवाल जो उसको समझने लायक नहीं है उसे आप ये कह कर टाल भी सकते है की जब आप बड़े हो जायेंगे तो उनका जवाब समझ पाएंगे तो बच्चा खुद ही शांत हो जायेगा | अब कहने वाले कहेंगे कि देखा ये हमारे संस्कार ना मानने का नतीजा है या धर्म के अनुसार ना चलने का नतीजा है ब्ला ब्ला ब्ला जमाना इसी कारण ख़राब हो गाय है तो मुझे लगता है कि अब इसके लिए हम क्या कर सकते है ये तो ख़राब हो ही चूका है हम इसको तो नहीं सुधार सकते है पर अपने बच्चो की सुरक्षा के लिए जो हमें करना चाहिए और जो हम कर सकते है  वो तो करेंगे ही मतलब की उसे तो समझाना ही पड़ेगा की वो कैसे इस ख़राब जमाने में खुद को सुरक्षित रख सकता है  भले इसके लिए एक और संस्कार को छोड़ना पड़े |
पर ये सब तो उनके लिए है जो माँ बाप समझदार है जो उनके सवालों के जवाब दे सकते है पर हमारे देश में एक बड़ी संख्या ऐसे माँ बाप की है जो जानते ही नहीं की वो बच्चों को बताये क्या या कम पढ़े लिखे है | इसके लिए तो मुझे लगता है की सरकार और स्कूलों को ही इस बारे में पहल करनी चाहिए पता नहीं वो क्यों इसको शुरू करने में डर रहे है | शायद ये डर भारतीय सभ्यता संस्कृति के रक्षकों का है | मेरा ज्ञान अपनी संस्कृति के बारे में काफी छोटा है मुझे पता ही नहीं था की " काम सूत्र " स्पेनिश में लिखा गया था और " खजुराहो " से ले कर अनेक प्राचीन मंदिर किसी पश्चिमी देश से इम्पोर्ट किये गये थे ..............

नोट -----------मै इस विषय की बड़ी जानकार नहीं हु एक आम और निजी विचार है लेख में और सुधार संभव है आप अपने विचार देकर इसे पूरा कर सकते है |

18 comments:

  1. मैं इस विषय पर आपके विचारों से सहमत हूँ. मैं भी यही मानता हूँ कि सेक्स सम्बन्धी विषयों पर हमें परम्परावादी शर्म व झिझक को त्याग कर अपने बच्चों को इस विषय में खुद ही स्पष्ट जानकारी देनी चाहिए. मेरा आठ वर्षीया पुत्र है और दो वर्षीया पुत्री है. इस कैब वाली घटना के बाद मैंने अपने पुत्र को टीवी चेनलों पर आ रही खबरें दिखाई और उसे सारी बात साफ़ साफ़ समझाई कि अगर कभी कोई भी उसके साथ कैसी भी गलत हरकत करे तो वो मुझे बताये. जब मेरी बिटिया बड़ी हो जाएगी तो मैं अपनी पत्नी के द्वारा उसे भी इस विषय पर आवश्यक ज्ञान अवश्य दूंगा. ये सब आज के हालात में बहुत जरुरी है. एक बढ़िया लेख के लिए धन्यवाद.

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  2. आपसे पूरी तरह सहमत..... उम्मीद है आपकी इस पोस्ट से कई लोग अपने बच्चों के और करीब जायेंगे....... मैं हमेशा अपने बच्चे से खुलकर बात करने की कोशिश करती हूँ.....
    कृपया यहाँ भी जाएँ एक बच्चा कुछ कह रहा है....
    http://chaitanyakakona.blogspot.com
    .......

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  3. बच्चों से करीबी संवाद ज़रूरी है. बहुत अच्छा आलेश.

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  4. आपसे पूरी तरह से सहमत हूँ

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  5. कई बार ये भी होता है की लोग समझते है की ये सब केवल घर के बाहर होता है और अजनबी लोग ये सब करते है हम अपने बच्चे को तो घर से बाहर अकेले जाने ही नहीं देते है तो उनके साथ ऐसा होगा ही नहीं पर ये जरुरी नहीं है अक्सर घर के अन्दर ही अपनों द्वारा बच्चे शोषित होते है और घर वालो को पता ही नहीं होता है |

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  6. @ विचार शून्य जी

    ये तरीका भी ठीक है कि हम बच्चो को टीवी या अखबार में आ रही इस तरह की घटनाओ के बारे में बता कर भी उनको समझा सकते है |

    @ हास्य फुहार जी

    धन्यवाद

    @ मोनिका जी

    आप की तरह सभी करे तो ये घटाने कम की जा सकती है

    @ भूषण जी

    आप ने सही कहा

    @ महक जी

    धन्यवाद

    @ देबू जी

    आप ने एक अच्छी बात उठाई ये सब घरो में भी होता है मेरे लेख में ये छुट गया था | नई बात जोड़ने के लिए धन्यवाद

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  7. आपकी बात से पूरी तरह सहमत हूँ।मुझे भी लगता हैं कि सरकार से भी पहले यह जिम्मेदारी अभिभावकों की हैं।हम खुद अपने ही बच्चों के प्रति लापरवाह बने हुए हैं,अपनी शर्म और झिझक को छोड नहीं पा रहे हैं और सरकार से चाहते हैं कि वह स्कूलों में यौन शिक्षा के बारे मेँ तुरन्त निर्णय ले।यदि सरकार ऐसा करती हैँ तब भी इससे छोटे बच्चों को तो कोई फायदा नहीं होगा,जब तक कि उन्हें घर पर ही कुछ व्यवहारिक बातें नहीं समझाई जाती ।अभिभावकों को समझना होगा कि उनके संस्कार उनके बच्चों की सुरक्षा से ज्यादा जरुरी नहीं हैं।इन संस्कारों का क्या करेंगें जब उनका बचपन ही सुरक्षित न रहा।

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  8. आप ने सही कहा है बात जब बच्चो की सुरक्षा की हो तो फिर हमें बाकि सभी चीजे नजर अंदाज करना चाहिए यदि हमारे संस्कार हमारे बच्चो के लिए खतरे और मुसीबत का कारण बन रहे है तो उसे भी | हमारे बच्चो की सुरक्षा की पहली जिम्मेदारी हमारी है |

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  9. राजन जी प्रेम जी

    आप दोनों सही कह रहे है की ज़िम्मेदारी तो हमारी ही पहली बनती है क्योंकि बच्चे तो हमारे है | हर बात के लिए सरकार की तरफ देखना सही नहीं है | लेकिन सरकार ने इस दिशा में कुछ किया तो उन बच्चों को फायदा होगा जिनके माँ बाप कम पढ़े लिखे है या जो ज्यादा ही परम्परावादी है |

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  10. ok.... moderation nahi hai

    शर्मनाक घटना..... एक जागरूक करता लेख
    पोस्ट पर लगे नोट ने मुझे अपने विचारों के लिए प्रेरित किया
    कृपया लेख में ये भी जोड़ें की

    "बच्चों की शिक्षा और पालन पोषण में माता पिता इस "आधुनिक युग" की भागदौड़ में तरह परेशान रहते हैं की भारतीय संस्कृति का तो क्या उन्हें किसी भी संस्कृति के अनुरूप बच्चों को ढालने के लिए समय नहीं मिलता .. ये भी एक बड़ा कारण हो सकता है क्या ??... दरअसल मेरी जानकारी भी कम है संस्कृति के अनुचित प्रभावों के बारे में वो भी दिल्ली जैसे "आधुनिक महानगर" में ..

    और जो भारतीय धरोहरों के बारे में अपने नयी जानकारी दी है उनके वेब लिंक्स दें तो मुझे कुछ ठीक लगेगा

    कुछ संस्कृतियाँ बद होती है कुछ सिर्फ बदनाम

    विदेशों में इस तरह की घटनाएं अब आम हो गयी हैं शायद वहां भारतीय संस्कृति का कोई योगदान नहीं है

    ये घटनाएं एकल परिवारों में होने सम्भावना अधिक होती है उन संस्कृति में जहा पर बुजुर्गो को इग्नोर किया जाता है जो की इस तरह की घटनाओं को रोकने में बेहद अहम् भूमिका निभाते है अपने अनुभव से

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  11. अगर बच्चे १० सवाल पूछें तो उन्हें सभी दस उत्तर [मोटे तौर पर ही सही] देने चाहिए क्योंकि बालमन हमेशा उन बचे हुए सवालों पर ही गौर करता है
    कृपया उस देश का भी नाम बताएं जहां इस "विशेष शिक्षा" से अपराधों में कमीं आयी हो..... जिस शिक्षा की आपने बात की है वो माता पिता को मिलनी चाहिए बच्चों को नहीं ....[जब उन्हें अपराध के आंकड़े सही ढंग से दिखाए जायेंगे तो अपने आप बात समझ जायेंगे]
    शिक्षक भी ड्रावर की तरह तीसरी और बाहरी एजेंसी है

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  12. [सुधार ]
    *शिक्षक भी ड्राइवर की तरह तीसरी और बाहरी एजेंसी होते हैं उनपर इतना भरोसा क्यों ??

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  13. .

    कोई भी विषय हो, बच्चों से बात अवश्य करनी चाहिए। उनके मन में उपजे हर विचार का निराकरण सही तरीके से होना चाहिए।

    .

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  14. @गौरव जी

    यह लेख किसी संस्कृति की बुराई या किसी संस्कृति की बढाई के लिए नहीं लिखा गया है यहाँ मात्र इतना कहा गया है कि हमें अपनी झिझक छोड़ कर अपने बच्चों को बताना चाहिए कि उनके साथ इस तरह का शोषण हो सकता हो और उन्हें इससे कैसे बचना चाहिए |

    आप ने शायद पोस्ट को ध्यान से नहीं पढ़ा है और ना ही उसकी मूल भावना समझ पाए है तभी मुझसे लिंक की मांग कर रहे है | वहा मैं ये कहना चाह रही हुं कि सेक्स के मुद्दे पर हमारी संस्कृति उतनी बंद नहीं है जितना बताया जा रहा है ये चीजें हमारी संस्कृति से ही जुड़ीं है | आप मेरे लिखे एक मामूली से व्यंग को भी नहीं समझ पाये |

    @ दिव्या जी

    आप ने सही कहा हमें बच्चों से हर विषय में बात करना चाहिए इससे कई और समस्याएँ भी हाल हो सकती है |

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  15. मैं इस विषय पर आपके विचारों से सहमत हूँ.

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  16. मेरे ही कमेन्ट का नया अर्थ जो मुझे भी नजर नहीं आया समझाने के लिए धन्यवाद

    स्टेप वन
    मेरे कमेन्ट को दुबारा पढ़े , ऐसे जैसे आप गौरव अग्रवाल नाम के किसी ब्लोगर को जानती ही नहीं हो
    स्टेप टू
    अब इसे पढ़िए

    आपका कहना है
    @आप ने शायद पोस्ट को ध्यान से नहीं पढ़ा है और ना ही उसकी मूल भावना समझ पाए है तभी मुझसे लिंक की मांग कर रहे है |
    इसका उत्तर है
    आपका व्यंग इतना तथ्यात्मक था की लगा किसी अफवाह से रिलेटेड भी हो सकता है , जिस पर आपने व्यंग्य किया है, वैसे भी भारत की ऐतिहासिक धरोहरों पर लोग अपना नाम लिखने में इंट्रेस्टेड होते हैं [मैं उसी संभावित अफवाह के लिंक की मांग कर रहा था]

    मैंने ये भी लिखा है , आप ही सोचिये क्यों लिखा होगा ??
    @ एक जागरूक करता लेख

    मैंने ये भी लिखा है
    @"बच्चों की शिक्षा और पालन पोषण में माता पिता इस "आधुनिक युग" की भागदौड़ में तरह परेशान रहते हैं की भारतीय संस्कृति का तो क्या उन्हें किसी भी संस्कृति के अनुरूप बच्चों को ढालने के लिए समय नहीं मिलता

    इसे अंत में "समय नहीं मिलता होता होगा" पढ़ें

    आपके लेख में ये लिखा है
    @पर "इससे बड़ा कारण मुझे लगता है" ये है कि भारत में संस्कार के नाम पर खास कर माध्यम और निम्न वर्ग अपने और अपने बच्चों के बीच इस मामले में इतनी मोटी दीवार खड़ा कर लेता है जिसे बच्चे पार नहीं कर पाते है |

    उसका उत्तर ये है
    विदेशों में इस तरह की घटनाएं अब आम हो गयी हैं शायद वहां भारतीय संस्कृति का कोई योगदान नहीं है

    मतलब बात कुछ और भी है जिसे अनलाईज करना जरूरी है, मैंने कमेन्ट साभी देशो की युवा पीढी को ध्यान में रखते हुए लिखा क्योंकि वो भी इंसान ही है , और ये भी सच है की जो वो अभी झेल रहे हैं हम बाद में झेल रहे होंगे

    मैंने ये भी लिखा है

    @ दरअसल मेरी जानकारी भी कम है संस्कृति के अनुचित प्रभावों के बारे में वो भी दिल्ली जैसे "आधुनिक महानगर" में ..

    इसे अपने लेख के नोट से मिलाएं अगर वो व्यंग है तो ये भी है ... यहाँ संस्कृति लिखा है भारतीय या विदेशी संस्कृति नहीं

    और बातें नहीं दोहरा रहा हूँ उम्मीद है आप बाकी बातों को उसी अर्थ में समझेंगी जिन अर्थों में मैंने लिखा है


    जब मुझे लेख समझ में नहीं आता तो मैं टिपण्णी ही नहीं करता या पूछ लेता हूँ की लिखने वाले /वाली ने क्या कहना चाहा है ??
    कहिये तो ये बात भी लिंक देकर साबित कर सकता हूँ

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  17. .
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    .
    सही कह रही हैं आप,
    आम हिन्दुस्तानी परिवारों में माँ बाप अपने बच्चों से सेक्स संबंधी मामलों में बात नहीं करते...टैबू माना जाता है इसे... सोचता हूँ कि एक ब्लॉग जो सेक्स एजुकेशन को ही समर्पित होता तो कितना अच्छा होता... कोई सुन रहा है क्या ???... या फिर यह काम मुझे ही करना होगा...:(


    ...

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