July 04, 2011

आप इसे क्या कहेंगे उच्च कोटि का बलिदान, नादानी या बेवकूफ़ी - - - - - - -mangopeople

आज ये खबर पढ़ी आप भी पढिये और बताइये की आप इसे क्या कहेंगे उच्च कोटि का बलिदान, नादानी या  बेवकूफ़ी जो एक १२ साल की छोटी लड़की ने की है असल में ये लड़की नहीं बेटी है |

आशीष पोद्दार
नादिया (पश्चिम बंगाल) ।। 12 साल की मंफी से किसी ने कुछ नहीं कहा, लेकिन परिवार में सभी चिंतित थे। उसे पता था कि उसके पिता की आंखों की रोशनी जा रही है और भाई की जिंदगी भी खतरे में है। पिता के लिए आंख और भाई के लिए किडनी का बंदोबस्त करना परिवार के बूते की बात नहीं थी। आखिर उसने एक योजना बनाई जो उसके मुताबिक सभी समस्याओं का हल थी।


वह अपनी जिंदगी खत्म कर देगी। उसकी मौत से दहेज का पैसा तो बचेगा ही, उसके अंग भी पिता और भाई के काम आ जाएंगे। मंफी ने अपनी योजना पर अमल भी कर दिया, लेकिन मौत से पहले मां के नाम लिखा गया उसका खत परिवार वालों को तब मिला जब उसका अंतिम संस्कार हो चुका था।


यह घटना 27 जून को झोरपाड़ा के धंताला में हुई। छठी क्लास की छात्रा मंफी सरकार परिवार की समस्याओं को लेकर काफी परेशान थी। उसके नौवीं में पढ़ने वाले भाई मोनोजीत की एक किडनी खराब हो गई थी और दूसरी भी कमजोर हो रही थी। दिहाडी मजदूर पिता मृदुल सरकार की आंखों की रोशनी कम होती चली जा रही थी।


धंताला पंचायत के प्रधान तापस तरफदार बताते हैं,'परिवार ने लोकल एमएलए से संपर्क किया था। हमने फैसला किया कि उन्हें कुछ पैसा डोनेट करेंगे, लेकिन अचानक यह हादसा हो गया।'


मंफी ने 17 जून की सुबह ही अपनी योजना के बारे में आठवीं में पढ़ने वाली बड़ी बहन मोनिका से बात की थी। लेकिन, मोनिका ने उसकी बात को हंसी में उड़ा दिया और स्कूल चली गई। पिता काम पर थे और मां रीता सरकार चावल लाने गई थी। खुद को अकेला पाकर मंफी ने कीटनाशक पी लिया। उसके बाद वह पिता से मिलने दौड़ी।
जहर की बात पता चलते ही पिता उसे पास के दवाखाने ले गए। वहां से उसे लोकल अस्पताल भेज दिया गया। वहां भी हालत बिगड़ने पर मंफी को अनुलिया हॉस्पिटल ले जाया गया, लेकिन उसने रास्ते में ही दम तोड़ दिया।


मंफी का अंतिम संस्कार किए जाने के अगले दिन पिता मृदुल सरकार को मंफी के बिस्तर पर वह खत मिला जो मंफी ने मां के नाम लिखा था। खत में मंफी ने लिखा था कि उसकी आंखों और किडनी का इस्तेमाल करते हुए पिता और भाई का इलाज करवा लिया जाए। इस खत ने दुखी परिजनों का और बुरा हाल कर दिया। मां सदमे में हैं। पिता मृदुल सरकार रोते हुए कहते हैं,'हम उस छोटी सी बच्ची की भावनाओं को समय रहते समझ नहीं पाए।' 
  आप  इसे चाहे बलिदान कहे या नादानी या बेफकुफी आप की नजर में ये चाहे जो भी हो पर ऐसा कोई भी काम परिवार के लिए, उसके दुखो के अंत के लिए बस एक बेटी ही कर सकती है बेटा नहीं आप चाहे तो ऐसा कहने के लिए मुझे भी नारीवादी कह ले पर सच यही है | धन्य है वो महान लोग जो अपनी बेटियों को कोख में ही मार देते है, धन्य है वो लोग जो अपनी बेटी का लिंग बदलवा कर उसे बेटा बनवा रहे है,  धन्य है वो लोग जो राजेस्थान सरकार द्वारा बेटी के जन्म के एवज में मिलने वाले पैसे के लालचा में अब कन्या भ्रूण हत्या नहीं करते है बल्कि अब बेटी को जन्म देते है पैसे लेते है और उसके बाद उसे मार देते है |  ये सब हमारे २१ वी सदी के भारत में हो रहा है धन्य है हमारा भारत देश और यहाँ के लोग |

22 comments:

  1. उफ़ ...कलेजा दहल गया.क्या कहूँ समझ नहीं पा रही हूँ.तुमने जिनलोगों को धन्य कहा है वे वाकई धन्य हैं.

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  2. हो सकता है आप सही कह रही हैं। पर यहां तो मंफी ने दुखों का अंत करने की बजाय खुद का ही अंत कर लिया और परिवार को दुखों के सागर में धकेल दिया।
    सच तो यह है जो उसके पिता ने कहा कि समय रहते उन्‍होंने उसकी भावनाओं को नहीं समझा। इस घटना से यह सबक तो लिया ही जाना चाहिए, कि परिवार में चल रही घटनाओं से बच्‍चों के मन में किस तरह की हलचल मची रहती है,इसे समझने की जरूरत है।

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  3. @अंशुमाला जी:
    आज हम दोनों की तरफ से मौन श्रद्धांजलि!!
    सलिल
    चैतन्य
    चला बिहारी

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  4. Uf! Samajh me nahee aa raha kya kahun......waqayee dil dahal gaya!

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  5. मौन श्रद्धांजलि

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  6. गरीबी अपने साथ सौ बीमारियाँ लाती है। ये हादसे भी वहीं होते हैं।

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  7. दुखद घटना ..... पर यह भी सच है कि....

    आप इसे चाहे बलिदान कहे या नादानी या बेफकुफी आप की नजर में ये चाहे जो भी हो पर ऐसा कोई भी काम परिवार के लिए, उसके दुखो के अंत के लिए बस एक बेटी ही कर सकती है ...

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  8. सिर्फ़ इतना कि , हां ये सिर्फ़ एक बेटी ही कर सकती है , इसलिए कि वो बेटी है । बहुत ही हृदयविदारक , बहुत ही अफ़सोसजनक ,गरीबी ऐसी है इस देश की और पैसे खातों से लेकर तहखानों तक में दबे हुए हैं , हद है

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  9. खबर पढी, बहुत दुख हुआ। निस्वार्थ पर नादान नासमझी। बेचारी बच्ची! इस हृदयविदारक घटना से सबक लिया जाना चाहिये। जहाँ सम्भव हो वहाँ स्कूल आदि में स्वयंसेवी या मनोवैज्ञानिक रखे जा सकते हैं, विशेषकर मुसीबत में पडे परिवारों के संवेदनशील बच्चों को। मगर जहाँ बेसिक सुविधाओं का ही अभाव हो वहाँ क्या-क्या हो, कैसे हो? शर्म की बात है कि कुछ राजनैतिक दल ऐसी अफसोसनाक घटना में भी अपनी रोटियाँ सेंक लेंगे।

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  10. हृदयविदारक घटना

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  11. संवेदनशील बच्ची जो अपने परिवार को बहुत प्यार करती थी और मूर्ख माता पिता जो उसके प्यार को सहेज नहीं पाए !

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  12. ऐश्वर्य के गर्भवती होने की खबर पर आसमान एक कर देने वाले मीडिया को ये मंफियां क्यों नहीं दिखाई देती...दिखाई भी कैसे दें डाउनमार्केट जो ठहरीं...

    मंफी के जज़्बे को सलाम...आपको इस रिपोर्ट को पढ़वाने के लिए साधुवाद...

    जय हिंद...

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  13. रौंगटे खडे करने वाला सच्…………मौन कर गया।

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  14. बच्चे बहुत ही संवेदनशील और नाजुक होते हैं....बड़े से बड़ा त्याग करने को तत्पर. मंफी की भी बुद्धि में यही आया कि इस तरह वो अपने परिवार के काम आ सकती है और वो इतना बड़ा बलिदान कर बैठी.

    जब भी ऐसी कोई खबर सुनती हूँ...मंडल कमीशन के विरोध में छोटे-छोटे बच्चों का आत्मदाह याद आ जाता है....जब १२,१३ साल के बच्चे...भावुकता में आकर अपनी जान गँवा बैठे थे.

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  15. क्या कहें कहते कुछ नहीं बन रहा है ...बेहद अफसोसजनक

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  16. :( kuch kehna shayad sambhaw nahi hai...

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  17. द्रवित मन ...क्या कहेगा ..क्या सोचेगा ..!

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  18. कुछ-कुछ सुना था इस बारे में पर असल कहानी सुनकर दिल बैठ गया.. उसका समर्पण व्यर्थ ही गया.. पर फिर लगता है कि शायद "उन धन्य लोगों" में से कुछ की अक्ल ठिकाने लगेगी और २१ सदी का भारत सही मायनों में २१ सदी का भारत कहलाएगा...

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  19. प्रवीणजी के कुछ परेशाँ करते सवालों में आपकी टिप्पणी से यहाँ पहुँच कर दिल दहल गया...काश आपके इस तमाचे का असर कुछ तो हो...फिर कोई मंफी को ऐसे न जाने दे...

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