मुझे लगता है की इस आन्दोलन की सबसे बड़ी सफलता ये है की अब तंत्र को ये बात कुछ हद तक या कह ले मजबूरी में ही ये बात समझ मे आ गई है की जनतंत्र में जन बड़ा है तंत्र नहीं, ये सारा का सारा तंत्र जन, जनता, जनार्दन के लिए है ना की जनता इस तंत्र को चलने के लिए है | तंत्र का निर्माण ही इसी लिए किया गया था की जनता को सहूलियत हो उसका काम व्यवस्थित हो किन्तु धीरे धीरे तंत्र बड़ा होता गया और जनता छोटी, इस आन्दोलन ने किसी भी व्यवस्था को ना तो पलटा है और ना ही कुछ नया किया है उसने तो बस सारी व्यवस्था और चीजो को फिर से सीधा करने का काम किया है जो उलटी हो गई थी | उम्मीद है अब जनता फिर से एक लंबी नीद पर नहीं जाएगी और समय समय पर तंत्र को ये याद दिलाती रहेगी की वो हमारे लिए है ना की हम उसके लिए और तंत्र जनता के लिए कुछ नहीं करेगा तो फिर वहा पर बैठे लोगों को हटा दिया जायेगा या फिर उन्हें ऐसे ही झकझोर कर याद दिलाया जायेगा |
दूसरी सफलता इस बात की है की लोगों को ये लगने लगा था की आज के समय में अहिंसा से बात नहीं बनेगी | अब समय, लोग खास कर युवा इतने बदल गये है इतने उग्र स्वभाव के हो गए है कि अब शायद ही वो अहिंसा की शक्ति को समझे और उसके माध्यम से अपनी कोई बात कहे | हो सकता है की दो या चार दिन के लिए वो अहिंसा का पाठ याद रखे किन्तु जल्द ही अपना धैर्य खो कर हिंसक हो जाये | किन्तु ऐसा कुछ नहीं हुआ तब भी नहीं जब एक बार लगा रहा था की सरकार इस आन्दोलन को कोई महत्व नहीं दे रही है और अहिंसा से किया जा रहा आन्दोलन उसको समझ नहीं आ रहा है | लेकिन शायद हम सभी युवाओ को और खुद को भी गलत आंक रहे थे और उन्होंने हम सभी को गलत साबित कर दिया ना केवल अहिंसक आन्दोलन पर डटे रहे बल्कि आन्दोलन के इतने दिन तक खीचने के बाद भी अपना धैर्य बनाये रखा और मैदान छोड़ कर भागने के बजाये मैदान में डटे रहे |
आम आदमी में इस आन्दोलन को लेकर एक गजब का आत्मविश्वास जगा है , एक समय था जब लगभग हर आम आदमी एक निराशावादी सोच में जकड कर बस यही कहता रहता था की देश का कुछ नहीं हो सकता, हम कभी भी सरकार से कुछ नहीं करा सकते है , सरकारे अपनी मनमानी करती रहेंगी हम उसका कुछ नहीं कर सकते, हम इस व्यवस्था को कभी नहीं बदल सकते है | किन्तु इस आन्दोलन ने दिखाया की यदि आम आदमी करना चाहे तो जरुर बहुत कुछ कर सकता है | एक एक आम आदमी का शायद कोई अस्तित्व ना हो सरकार के लिए किन्तु जब यही आम आदमी एक एक कर लाखो में बदल जाते है और एक सुर में अपनी बात करते है तो सरकारों को ना केवल सुनाई देता है, उसे मजबूर हो कर ही सही काम तो करना ही पड़ता है | अब उम्मीद है की आम आदमी अपनी सोच बदलेगा निराशावादी होने की जगह आशावादी बनेगा अन्ना ने तो कहा है की ६५% भ्रष्टाचार कम होगा पर आम आदमी के लिए तो इतना भी कम नहीं है कि कम से कम कुछ तो कम होगा चाहे चौथाई भाग ही सही कुछ नहीं से कुछ तो भला ही है | बाकि कहने वाले लोग कहते रहे की लोकपाल से पुरा भ्रष्टाचार बंद नहीं होगा, आम आदमी के लिए तो थोड़ी राहत भी बहुत है, हम तो डूबते को भी तिनके का सहारा देने की बात करते है यहाँ तो सहारा तिनके से काफी बड़ा है |
हम सभी कभी ना कभी एक कहानी सुन चके है या अपने बच्चो को कभी सुनाई होगी की कैसे यदि पांचो उंगलिया मिल जाये तो मुठ्ठी बन जाती है और फिर हाथ में ज्यादा ताकत आ जाती है इसे कहते है एकता की शक्ति | पर हम में से ज्यादातर इस कहानी को या तो भूल चुके थे या ये कहे की स्वार्थ पूर्ण राजनीति ने हमें भूलने पर मजबूर कर दिया था | हम बटे थे धर्म को लेकर जातियों को लेकर अपने अपने क्षेत्रवाद भाषावाद को लेकर या राजनीतिक वादों को लेकर किन्तु इस आन्दोलन ने उसे कुछ हद तक ( अफसोस से कहना पड़ रहा है की बस कुछ हद तक, कुछ नेताओ की अपनी निजी नेतागिरी के चक्कर में कुछ अति बुद्धिजीवी टाईप के लोगों के कारण जो धर्म और जाति और वाद को इस आन्दोलन से जोड़ कर अपनी राजनीतिक सोच को पोश रहे थे ) उसे आम आदमी के दिमाग से बाहर निकाल दिया और उसे समझने के लिए मजबूर किया की आप चाहे किसी भी धर्म जाति क्षेत्र या वाद के हो भ्रष्टाचार आप सभी को एक ही रूप में देखता है आप सभी को एक ही तरीके से प्रभावित करता है | भले ही किसानो, मजदूरों, दलितों मुस्लिमो से ये कहा जा रहा था की ये आप की लड़ाई नहीं है ये तो खाये पिये ठसक में रह रहे मध्यम वर्ग की लड़ाई है किन्तु ये बात सिर्फ बरगलाने वाली थी जिन किसानो से उनकी जमीने सस्ते में लेकर सरकारे बिल्डरों को करोडो में बेच कर मुनाफा कमा रही थी क्या वो भ्रष्टाचार नहीं है, किसानो को उनकी फसलो का उचित मूल्य नही दिया जाता किन्तु विदेशो से ब्लैक लिस्डेड कंपनियों से ऐसा सडा गेहू दुगने दामो पर मगा लिया जाता है जो जानवरों के खाने के लायक भी नहीं है क्या ये भ्रष्टाचार नहीं है , क्या मजदूरो के घर के लिए रखी जमीनों को बेच बड़ी इमारते बनाई जा रहा है क्या ये भ्रष्टाचार नहीं है क्या मजदूरो को बेरोजगार कर मिले बंद कर वहा बड़े बड़े शापिंग मॉल खड़े करने की नीति भ्रष्टाचार नहीं है , क्या दलितों के नाम पर अल्पसंख्यको के नाम पर हर साल करोडो रूपये की योजनाये बनाई जाती है उसके बाद भी आजदी के ६४ साल के बाद भी उनकी स्थिति में ज्यादा फर्क नहीं आया क्या ये भ्रष्टाचार नहीं है इसके आलावा रोजमर्रा के जीवन में हो रहे भ्रष्टाचार से सभी रूबरू होते है | समाज का कोई भी ऐसा वर्ग नहीं है जो भ्रष्टाचार से प्रभावित नहीं हो रहा है ये लड़ाई सभी की है किन्तु जानबूझ कर इस आन्दोलन को बार बार ये कह कर झुठलाया गया इसे ख़ारिज करने का प्रयास किया गया की ये दलितों के लिए नहीं है ये अल्पसंख्यको के लिए नहीं है ये किसानी के लिए नहीं है तो ये मजदूरों के लिए नहीं है | फिर भी इन सभी वर्गों से लोग निकल कर बाहर आये और अपनी आवाज सभी के साथ बुलंद की और कई नेताओ और तथाकथित बुद्धिजीवी ? वर्ग को समझाया की अब समाज के किसी भी वर्ग को आप ज्यादा दिनों तक बेफकुफ़ बना कर बाट कर नहीं रख सकते है और एकता से बड़ी कोई शक्ति नहीं होती है |
उम्मीद है की जो लोग इस आन्दोलन से अभी तक इन लोगों के बहकावे के कारण नहीं जुड़े थे वो आगे इस आन्दोलन से जुड़ेंगे और सक्रिय रूप से जुड़ेंगे क्योकि ये आन्दोलन ख़त्म नहीं हुआ है इसे अभी और बहुत आगे जाना है और हम सभी को अपनी ताकत, एकता धैर्य को यु ही बनाये रखना होगा क्योकि जैसे जैसे हमारी जीत होती जाएगी वैसे वैसे आगे की लड़ाई और भी कठिन और मुश्किल होती जाएगी |
एक बात जो अभी तक समझ नहीं आई वो ये की इस आन्दोलन के पीछे आखिर हाथ किसका था ???? और उसे क्या क्या फायदा हुआ ??? एक गुट कह रहा था की इसके पीछे आर आर एस और हिंदूवादी संगठनो का हाथ है, तो लो जी अब बताया जाये की उन्हें क्या फायदा हुआ इससे क्योकि यदि उनका इरादा अपनी राजनीतिक पार्टी को फायदा पहुँचाना होता तो ये आन्दोलन आज नहीं बल्कि अगस्त २०१३ में हो रहा होता चुनावों से ६ महीने पहले या कम से कम उनकी पार्टी बी जे पी बहुत पहले ही इसका साथ दे रही होती ना की इतने हिल हिलावे के बाद | दूसरे भी थे जो कह रहे थे की इसके पीछे कांग्रेस का हाथ बता रहे थे उनके अनुसार ये राहुल की ताजपोशी के लिए था वो तो हुआ नहीं बस एक मामूली से भाषण के सिवा जिसे कांग्रेसियों के अलावा किसी ने भी तवज्जो नहीं दिया , फिर ये भी लगता है की युवराज को कल का प्रधानमंत्री बनने से हम में से कोई भी नहीं रोक सकता है वो तो एक ना एक दिन हो कर रहेगा क्या राहुल एक जनता द्वारा चुने गये प्रधान मंत्री की जगह किसी को हटा कर थोपे गये प्रधानमंत्री के रूप में पहचाना जाना पसंद करेंगे, मुझे तो नहीं लगता है वैसे इस गुट से जवाब आ गया है की अभी नहीं बाद में पता चलेगा की कांग्रेस की कितनी बड़ी चाल थी :))) ठीक है भईया जब आप को उस चाल का पता चले तो हमको भी जरा खबर कीजियेगा और तीसरा हाथ था अमेरिका का :)))))))) अब क्या कहे वहा तो खुद १८ लाख लोगो की बत्ती गुल हो गई है क्रेडिट रेट घटा दिया गया है ( और ऐसा करने के लिए एक भारतीय की बलि भी ले ले गई ) दूसरी आर्थिक मंदी की आहट से डरे पड़े है , बेरोजगारी बढ़ती जा रही है ओबामा अवतार का खुमार उतर रहा है अब वो अपने देश की अराजकता देखे की हमारे देश में अराजकता फैला कर दक्षिण एशिया को अपने लिए एक और मुसीबत बना ले जहा वो पहले ही चीन और पाकिस्तान से परेशान है | मतलब की !! कोई है जो बताएगा की आखिर इस आन्दोलन के पीछे कौन सा और किसका हाथ था |
इस आन्दोलन के पहले कभी सोचा नहीं था की मुझमे भी इस तरह के किसी आन्दोलन में सक्रीय रूप से भागीदारी करने की हिम्मत होगी लेकिन धन्यवाद दूंगी इस आन्दोलन का विरोध करने वालो का खाकर की ब्लॉग जगत के विरोधियो का जिन्होंने मुझमे हिम्मत जगाई की मै कई बार समय निकाल कर धरना स्थल पर गई बल्कि दो बड़ी रैलियों में भी परिवार के साथ गई | वहा का जो माहौल था जो जोश था उसे शब्दों में नहीं कहा जा सकता है उसे तो वही समझ सकता है जो वहा गया | मै अपने पति को एक बार धरने पर ले गई थी अपनी इच्छा से उसके बाद दो बार उन्होंने मुझे बताया की हमारे घर दूर रैलिया है और मुझे ले कर गए ये असर था वहा एक बार जाने का | एक गाना जो ए आर रहमान ने बनाया है हीरो कंपनी के लिए पर मुझे तो लगता है जैसे ये गाना आन्दोलन के लिए ही बनाया गया था जिसे हर आम आदमी गा रहा है | एक बार अपनी आंखे बंद कीजिये और इस गाने को देखिये नहीं बस सुनिये चाहे यहाँ या चाहे अपने टीवी सेट पर |
हम में है हीरो रो रो रो रो रो
हम में है हीरो रो रो रो रो रो
दिल से कहो ये
हम में है हीरो
मिल के कहो ये
हम में है हीरो
हर हिन्दुस्तानी में एक हीरो है |