February 06, 2013

कुपोषित भावनाओ को चवनप्रास खिलाये ! - - - - - mangopeople

नोट  ---- कमजोर भावनाओ वाले लोग इस लेख को न पढ़े आप की भावनाए आहत हो सकती है ।


टीवी पर आज कल एक सरकारी विज्ञापन आ रहा है ,
पापा पापा स्कुल के बच्चे मुझे बुद्धू कहते है , क्योकि मुझे जल्दी बाते समझ नहीं आती है ।
 क्या आप का बच्चा बातो को देर से समझता है पढाई में कमजोर है , बार बार बीमार पड़ता है तो जरा उसकी सेहत की जाँच कराये आप का बच्चा कुपोषण का शिकार हो सकता है , उसके खानपान पर ध्यान दे और उसे सेहतमंद बनाये ताकि वो बार बार बीमार न पड़े ।
यही विज्ञापन जरा कुछ बड़ो पर लागु करे तो कैसे होगा , क्या आप की भावनाए बार बार आहत होती है किसी फिल्म , पेंटिंग,  किताब, साहित्य को  देख, लड़कियों को नाचते गाते देख, कर उनके कपड़ो को देख तो अपनी भावनाओ  की सेहत की जाँच कराये कही वो कुपोषण का शिकार तो नहीं हो गया है , उसके खानपान पर ध्यान दे उसे इतना  सेहतमंद बनाये की वो थोडा सहनशील बने और दूसरो को भी अपनी बात कहने की आजादी दे , उनके मुंह में प्रतिबंध , फतवे,   धर्म, जाति,  संस्कृति का कपड़ा न ठुसे , आप की भावनाए है तो दूसरो की भी , इसलिए ऐसी हरकते न करे की दुनिया आप को भी बुद्धुओ की क़तार में खड़ा कर दे , और आप को अनदेखा करना शुरू कर दे ।
   
                           धोनी चवनप्रास बेचते हुए कहते है की दो चम्मच की तैयारी रखे दूर बीमारी , सोचती हूँ की क्या बाजार में ऐसा चवनप्रास मिलेगा जो लोगो की भावनाओ की सेहत ठीक कर सके जो बार बार, हर बात पर आहत हो जाती है , वैसे तो हमारे यहाँ जो बच्चा बार बार बीमार पड़ता है बार बार गिरता  पड़ता है तो लोग राय देते है की भाई ऐसे बच्चे को घर से बाहर ही न निकालो जी, जरा सी बात पर रोने लगे बीमार पड  जाये , सोचती हूँ की उन लोगो को भी ऐसी ही राय दी जानी चाहिए कि  जी आप की भावनाए बार बार आहत होती है हो तो अच्छा है की आप बन्दर बन जाये , कौन से, वही गाँधी जी वाले जो न देखता है न सुनता है और न ही फालतू का बोलता है देखेगा सुनेगा नहीं तो बोलेगा भी नहीं , फिर न आप की भावनाए आहत होगी और न कोई बवाल होगा ।
       
                                 किसी को भावनाए आहत है क्योकि इस्लाम धर्म में जन्म लेने वाली लड़कियों ने अपना एक रॉक बैंड  बना लिया "था ",( बोलिए एक साल पुराना बैंड अब "था" बन गया ) और कुछ लोगो का मानना है की इस धर्म में लड़कियों के   ( और वो भी आम सी लड़किया जिन पर इनका बस नियंत्रण बड़ी आसानी से हो सकता है ) संगीत के लिए कोई जगह नहीं है , लड़को और ताकतवर लोगो को , और उन लोगो को इसकी इजाजत है जो ऐसी लोगो की बातो को तवज्जो नहीं देते है , क्योकि मुझे उन लोगो के नाम गिनाने की जरुरत नहीं है जो इस्लाम धर्म में जन्म लेने के बाद भी सारी  उम्र संगीत के साथ ही जिए , आश्चर्य होता है की धर्म के नाम पर लड़कियों के गाने को बैन करने की बात करने वाले उन लोगो के खिलाफ कुछ नहीं कहते है जो खुलेआम उन लड़कियों को फेसबुक पर बलात्कार करने की धमकी देते है , क्या धर्म इस बात की इजाजत देता है की आप लड़कियों को इस तरह की धमकी दे ।  कुछ समय पहले कुछ लोगो को कमल हासन की फिल्म से भी इतराज था , और उस फिल्म को एक राज्य में प्रतिबंधित कर दिया गया जिसे सेंसर बोर्ड ने पास किया था , गई फिल्म देख कर आई और उन लोगो की बुद्धि पर तरस आया जिन्हें इस फिल्म से एतराज था ( हिंदी में फिल्म में कोई भी नया सेंसर नहीं किया गया है वही फिल्म देखी है जो सेंसर बोर्ड ने पास की थी और जिस पर ऐतराज जताया गया था, फिल्म तो बहुत ही शानदार थी  ) समझ नहीं आया की जो तालिबान इस्लाम के नाम पर लोगो को बेफकुफ़ बना कर अपनी निजी स्वार्थो के लिए एक युद्ध लड़ रहा है , वो नमाज पढ़ते फिल्म में नहीं दिखाया जायेगा तो क्या मंदिरों में आरती करते दिखाया जायेगा । फिल्म के खलनायक के साथ ही नायक भी इस्लाम धर्म का ही है , और साफ दिखाया जाता है की सभी मुस्लिम बुरे नहीं होते है , फिल्म में केवल और केवल तालिबानीयो को ही दिखाया गया है कही और के मुस्लिमो का जिक्र तक नहीं है उसमे ,( मेरी आँख और कान और समझ ख़राब हो तो छुट दीजियेगा मुझे ) फिर भी लोगो को किस बात का ऐतराज है , क्यों तालिबानियों को बस इस्लाम से जोड़ कर देखा जा रहा है क्या वो सच में इस्लाम का प्रतिनिधित्व करते है । यही ब्लॉग जगत में पढ़ा जहा कहा गया की मामला कोर्ट में है तो लोगो को बोलना नहीं चाहिए , क्या कोई बताएगा की फिल्म को सेंसर करने का काम कोर्ट में कब से शुरू हुआ , किसी भी फिल्म को सेंसर करने का काम सरकार द्वारा निर्मित बोर्ड का है जब वो एक बार किसी फिल्म को पास कर देती है तो उस पर कोई भी दूसरा व्यक्ति, सरकार बैन नहीं कर सकता है , किसी को आपत्ति है तो वो सेंसर बोर्ड में अपील करेगा न की कोर्ट में , और उस बोर्ड में वो लोग भी शामिल है जो इस्लाम धर्म को मानते है , इसके पहले के एक मामले में कोर्ट ने साफ कहा था की किसी भी फिल्म को सेंसर बोर्ड पास कर देती है तो कोई भी उस पर अपनी तरफ से बैन नहीं लगा सकता है यदि सरकार से कानून व्यवस्था नहीं संभलती है तो सरकार से हट जाये  । अगर हर मामले की सुनवाई कोर्ट को ही करनी है तो बाकि सारी व्यवस्थाओ को बंद कर देना चाहिए और कोर्ट को ही हर मामला सुलझाने के लिए बिठा देना चाहिए । समझ नहीं आता की किसी धर्म की छवि किस कारण ख़राब हो रही है किसी फिल्म , साहित्य , किताब के कारण या धर्म के ऐसे ठेकेदारी के कारण ।
                             
                                                 कल बेंगलोर में एक नया मामला आया , एक युवा पेंटर की कुछ तस्वीरों को आर्ट गैलरी से हटा दिया गया , क्योकि उससे किसी की भावनाए आहत हो रही थी , लगभग सभी पेंटिंग देवी देवताओ की थी जिसमे से एक या दो में उन्हें नग्न दिखाया गया था (आपत्ति करने वालो और खबर के अनुसार ) लो जी , पेंटर ने आज के ज़माने के युवा होने के बाद भी देवी देवताओ को अपना विषय बनाया उनकी अच्छी तस्वीरे बनाई सभी ने सराहा किन्तु कुछ विद्वानों को देवी देवता नहीं दिखे उन्हें बस उनकी नग्नता ही दिखाई दी वो भी मात्र एक या दो में , नजर किसकी ख़राब थी यही सोच रही हूँ , गजब की उनकी भावनाए है , और उससे गजब प्रशासन की तत्परता है , फोन पर मिली धमकी पर उसने तुरंत कार्यवाही की और पेंटिंग हटा ली गई , वैसे बता दो उन पेंटिंग को बनाने वाले ने भी हिन्दू धर्म में ही जन्म लिया है ( मै अंदाजा लगा रही हूँ क्योकि उसका पूरा नाम हिन्दू था ) । कुछ समय पहले कोर्ट में केस गया की एक गाने में राधा के सेक्सी कहा गया है लो जी किसी की भावनाए आहत हो गई , अब क्या किया जाये दुनिया में जितने भी भगवान के नाम रखे आम लोग है उन्हें या तो अपना नाम बदल लेना चाहिए या फिर अपना चरित्र बिलकुल उस भगवान जैसा ही रखना चाहिए नहीं तो लोगो की भावनाए आहत हो जाएँगी और आप पर कोर्ट केस हो सकता है ( मेरा खुद का नाम भगवान सूर्य का पर्यायवाची है , सोचती हूँ की मेरा व्यवहार उन जैसा हो जाये या उन जैसी मै  बन जाओ तो , उफ़ इतनी गर्म मिजाज ) एक बार तो एक समूह कोर्ट गया क्योकि किसी गाने के बोल थे की "कहा राजा भोज कहा गंगू तेली " उनकी भावनाए आहत हो गई उन्हें तेली कहा गया उनका मजाक उड़ाया गया , बेचारा फ़िल्मकार परेशान  बोल जज साहब इस गीत को लिखने वाले को कहा से पकड़ कर लाऊ क्योकि ये तो कहावत है और हमें नहीं पता की कहावत कैसे और किसने बनाई । सालो पहले दीपा मेहता की वाटर फिल्म को लेकर बनारस में जीतनी नौटंकिया  हुए उन सभी की गवाह मै हूँ । फिल्म का विरोध किया गया की फिल्म में दिखाया जा रहा है की बनारस में रह रही हिन्दू विधवाओ का कैसे शारीरिक शोषण किया जाता था ज़माने पहले , ये हिन्दू धर्म को बदनाम करने की साजिस है और ब्ला ब्ला , फिल्म की शूटिंग नहीं हुई ,( हमने तो अपने कॉलेज में अपने छोटे से रिसर्च का विषय ही यही बनया की "वाटर फिल्म और मिडिया की भूमिका" 100 में से 90 मिले बिलकुल सही रिसर्च और रिपोर्टिंग के लिए  ) और कुछ ही महीनो के बाद वहा एक बड़े सेक्स रैकेट का खुलासा हुआ की कैसे वहा पर नारी संरक्षण गृह में पुलिस के द्वारा भेजी गई लड़कियों का शारीरक शोषण हो रहा था उन्हें नेताओ , अधिकारियो के पास भेज जाता था । फिर वो सारे लोग अचानक से गायब हो गए जिनकी भावनाए फिल्म के कारण आहत थी , इस तरह की घटना से किसी की कोई भी भावना आहत नहीं हुई , कोई विरोध नहीं कोई प्रदर्शन नहीं  ।

                                          कोई लड़कियों के कपड़ो , पढ़ने लिखने से आहत है , पर उन्हें तमाम धर्मो  में जन्म लेने वाले उटपटांग  कपडे पहनने और लड़कियों को परेशान करने वाले लड़को और  उन अभिनेताओ से कोई परेशानी नहीं थी जो अपना शरीर बनाते ही इसलिए है ताकि उसे फिल्मो में कपडे उतार कर दिखा सके , कोई पूनम पण्डे और शर्लिन चोपड़ा के नग्नता से परेशान  है , पर उसे उन लोगो से कोई परेशानी नहीं है जो विभिन्न शोशल नेटवर्क पर कहते है की उनका बलात्कार किया जाना चाहिए , और उनके साथ दिल्ली में हुए गैंग रेप जैसा हाल करना चाहिए । अजीब सी भावनाए है लोगो की , जो कमजोर , और उनकी बात मान लेने के लिए मजबूर लोगो को देख कर ही आहत होती है , कमल हासन और उनके जैसे फिल्म निर्माता  मजबूर थे , क्योकि फिल्मो में उनका करोडो रुपया लगा होता है और एक दिन का प्रतिबन्ध उन्हें सड़क पर ला सकता है , कुछ जगहों में फिल्मे रिलीज हुई और दो चार दिन में ही उनकी पायरेटेड सीडी उस बाजार में आ जाएगी जहा फिल्म नहीं रिलीज हुई फिर होती रहे बाद में फिल्म रिलीज ,कौन थियेटर में जा कर उनकी फिल्म देखेगा , किसी फ़िल्मी नायक नायिका , गायक संगीतकार आदि आदि पर किसी का कोई बस नहीं चलता है उनके खिलाफ कही कोई फतवा आदि आदि नहीं पास किया जाता है ,क्योकि उनमे से किसी पर भी इन चीजो का फर्क नहीं होगा , सानिया ने भी अपनी स्कर्ट पर दिए फतवे को कोई तवज्जो नहीं दिया था वैसे ये भी निर्भर है की लोगो का अपना संबंध सरकारों से कैसे है मुंबई में जब शाहरुख़  का विरोध शिवसेना करती है तो पूरी मुंबई पुलिस सड़क पर आ जाती है उनकी फिल्म को ठीक से रिलीज कराने के लिया ,( और यही पुलिस राज ठाकरे और शिवसेना की गुंडा गर्दी से आम लोगो को कोई सुरक्षा नहीं प्रदान कर पाती है ) वही जब मोदी आमिर का विरोध करते है तो किसी की भी हिम्मत उनकी फिल्म गुजरात में रिलीज करने की नहीं होती है , कमल हासन के साथ भी वही हुआ , विरोध करने वाले सरकार में बैठे दल के नजदीकी थे तो लग गया फिल्म पर बैन। जिस तस्लीमा को बड़े आजाद ख्याल आदि आदि के नाम पर वाम सरकार कोलकाता में शरण देती है वही धर्म और वोट की राजनीति  सामने आने पर उन्हें वहा से भगा देती है , जो राजनैतिक दल फ़िदा हुसैन को यहाँ से भगा देती है वो सलमान रुश्दी का स्वागत करती है , और खुद को सबसे बड़ी धर्म निरपेक्ष दल कहने वाला राजनैतिक दल जो सरकार में भी है वो न तो हुसैन को और न ही सलमान रश्दी को न तसलीमा को सुरक्षा दे पाती है ।
   
                                          जिन बुद्धुओ को अभी तक बात समझ नहीं आया उनके लिए , धर्म ,जाति  और संस्कृति   के नाम पर समाज में कई ठेकेदार है जो अपनी निजी फायदे के लिए आम लोगो को उकसाते है की देखो फलाने ने हमारे धर्म के हमारी जाति खिलाफ ये कहा है वो दिखाया है , न जाने क्या लिख दिया है , विरोध विरोध विरोध बैन बैन बैन , तो भैया दिखावे पर न जाये अपनी अक्ल लगाये , पढ़े लिखे है गवारो सा व्यवहार न करे , कोई कह दे की कौवा कान ले गया तो कौवे के पीछे न भागिए अपनी कान टटोलिये,  थोड़े सहनशील बने दूसरो को भी बोलने का अपनी बात कहने का अधिकार दे आप उससे असहमत हो सकते है उसकी आलोचना भी कर सकते है , पर प्रतिबन्ध की मांग करना , या व्यक्ति को निजी रूप से परेशान करने वाला और हानि पहुँचाने वाली हरकत  मत कीजिये , बुद्धू मत बनिए अपनी कुपोषित भावनाओ को सही पोषण दीजिये  ।
                                                       
                                               ब्लॉग  जगत प्रत्यक्ष उदहारण है जहा हम सभी दूसरो की बातो से सहमत न होने पर उनकी आलोचना करते है उनसे अपनी असहमति जताते है , किन्तु किसी को बैन नहीं करते है , हद हुई तो अनदेखा करना शुरू कर देते है समझ जाते है की अब उस तरफ देखना ही नहीं है , बात अगर बस ध्यान खीचने के लिए बेमतलब की होगी तो अपने आप की बंद हो जाएगी । यही बात समाज में भी लागु कीजिये , कोई बात आप को पसंद नहीं आती है तो आप उससे असहमति प्रकट कीजिये उसकी आलोचना कीजिये किन्तु किसी का मुंह बंद करने का प्रयास मत कीजिये ।


चलते चलते 
                 अभी हाल में ही टीवी पर एक फिल्म देखी  इंगलिस विन्गलिस साथ में पतिदेव को भी बिठा लिया , फिल्म के पहले ही दृश्य में दिखाया जाता है की श्री देवी सुबह बिस्तर से उठ कर अपने लिए कॉफ़ी बनाती है फिर अखबार ले कर जैसे ही बैठती है की उनकी सास आ जाती है वो कॉफ़ी और अख़बार छोड़कर उन्हें चाय बना कर देती है फिर वापस कॉफ़ी पिने और अखबार पढ़ने के लिए बैठती है तो पति और बच्चे उठ जाते है वो कॉफ़ी और अखबर छोड़ कर उनके काम में लग जाती है , मैंने पतिदेव से कहा की बताओ क्या समझे क्या दिखाया जा रहा है,  तो बोले की यही की वो खुद कॉफ़ी पी रही है और सास को चाय दे रही है , मै  मुस्कराई और कहा नहीं वो दिखा रही है की एक आम गृहणी आराम से सुबह  एक कप कॉफ़ी नहीं पी  सकती अखबार नहीं पढ़ सकती उसके लिए उसका परिवार उससे ज्यादा महत्व रखता है उनके काम ज्यादा महत्व रखते है उसके आराम और काम से । सोचने लगी की बात बात पर जो आम आदमी मौका परस्तो की बातो में आ कर चीजो का विरोध करने लगता है क्या उसे कलाकार और उसकी कृति की इतनी समझ होती है की वो क्या दिखाना चाह रहा है , क्या कहना चाह  रहा है , शायद नहीं ।


  स्पष्टीकरण ---- लेख किसी की भावनाए आहत करने के लिए नहीं लिखी गई है , बात को समझाने के लिए लिखी गई है फिर भी यदि किसी को भावनाए आहत होती है तो मेरी माने आप की भावना जरुरत से ज्यादा कुपोषित हो गई है , अपनी भावनाओ को आप दो नहीं चार चम्मच चवनप्रास खिलाए, वैसे चवनप्रास मिल जाये तो थोडा मुझे भी दीजियेगा  :)

43 comments:

  1. भावनाओं के पोषण के लिए जरूरी है कि दिमाग की खिड़कियाँ खुली रखी जाएँ, जो ताज़ी बयार और बाहर की रौशनी से कोने कतरे में लगे जाले ,धूल और गन्दगी की सफाई कर डाले।
    वरना बंद दिलो दिमाग सडांध ही पैदा करते हैं . इन्हें पालने वाले को तो इसकी आदत पड़ जाती है पर उसकी बदबू दूसरों को भी परेशान करती है।

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    1. बहुत सही कहा आप ने उम्मीद है लोग इसे पढ़ रहे होंगे और समझेंगे भी ।

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  2. अभी कुछ दिन पहले ही लिखी पंक्तियाँ याद आ रही हैं.- भावनाएं छुई मुई का पेड़ हो गई हैं, ज़रा छुआ नहीं कि बस...
    आजकल तो वैसे हद्द ही हो रही है, जिसे देखो आहत भावनाएं लेकर फिर रहा है.

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    1. और अपनी बातो से दूसरो को आहत करने से बाज नहीं आ रहा है ।

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  3. पहली बात तो यह कि हमारी भावनाएं बहुत दिनों से आहत हो रही थी कि आपकी पोस्‍ट क्‍यों नहीं आ रही है। अब आज जाकर कुछ राहत सी महसूस हो रही है। अब मुझे भी लगता है कि कुछ लोगों ने आहत होने का ठेका ले रखा है और कुछ लोगों ने आहत करने का। तो सारे ही देवी देवता और खुदा आदि सभी सुन लो, अब हम तुम्‍हारी जिम्‍मेदारी नहीं लेते, तुम स्‍वयं अपनी रक्षा करो। बहुत हो गया भाई, हमारी रक्षा तो हमसे हो नहीं पाती और फिर तुम्‍हारी जिम्‍मेदारी कब तक उठाएं।

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    1. अजित जी धन्यवाद ! ये बात सही कही की भगवान को अपनी रक्षा के लिए हम मनुष्यों की क्या जरुरत है , और दुनिया का कोई भी धर्म इतना कमजोर नहीं होता की जरा सी बातो से उसे कोई नुकशान हो ।

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  4. स्पष्टीकरण
    isko disclaimer kehtae haen
    mae aahat hun aap ke galt shabd chayan sae :}

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    1. डिस्क्लेमर तो अंग्रेजी शब्द हो गया हिंदी में तो अपनी तरफ से स्पष्टीकरण ही दिया जाता है ।

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  5. जानिए मच्छर मारने का सबसे आसान तरीका - ब्लॉग बुलेटिन आज की ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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    1. ब्लॉग बुलेटिन में मेरी पोस्ट शामिल करने के लिए धन्यवाद !

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  6. भावनाएं आहत हों तो हों, लाइलाज़ बीमारी के लिए कडवी गोली ही थोडा असर दिखाती है ............... कथनी,करनी और अंधे की तरह आगे बढ़ने का असली दृश्य उपस्थित किया आपने

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    1. किन्तु हो ये रहा है कि जो बीमार है वही लोगो को गोली बाट रहे है ।

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  7. पहली बात तो यह कि हमारी भावनाएं बहुत दिनों से आहत हो रही थी कि आपकी पोस्‍ट क्‍यों नहीं आ रही है। अजित की टिपण्णी से, मुझे भी यह कहना है :)

    भावनाएं भी वही आहत हो रहीं हैं जो हमें नहीं भा रहा | हमारी सोच के चलते | इसी के लिए औरों की भावनाओं को आहत करना हमें अच्चा लगने लगा है....

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    1. मोनिका जी

      धन्यवाद ! सहज और सामान्य शब्दों में बिना किसी गलत इरादे के अपनी बात कहने की छुट सभी को मिलनी चाहिए , किस किस की भावनाओ की परवाह करे ।

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  8. दुनि‍या में दूसरे भी ढेरों रंग हैं

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    1. किन्तु लोग चाहते है की जो रंग वो देखना चाहे बस सभी वही दिखाए ।

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  9. बहुत नाजुक है हम , हमारी भावनाएं और हमारा लोकतंत्र !
    आहतों की भीड़ से मन इतना उब गया है की कुछ कहने को मन ही नहीं होता !

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    1. हा एक दिन ऐसा आयेगा जब लोग ऐसे विरोध प्रतिबन्ध की मांगो पर ध्यान देना ही बंद कर देंगे ।

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  10. जिसको जो समझना होता है वही समझता है. बात सही हो तो आहत होने ना होने से कोई फ़र्क नही पडता, शुभकामनाएं.

    रामराम.

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    1. हमें आप को फर्क नहीं पड़ेगा पर जिसे देश और अपना शौक कैरियर छोड़ना पड़े करोडो का नुकशान सहन पड़े उसे तो फर्क पड़ेगा ही ना ।

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  11. अंशुमाला जी,आपकी सलाह मान मैंने भी चयवनप्राश साल भर के लिए स्टॉक कर लिया है।क्योंकि कई बार मैं भी विरोध करने वालों पर तो ध्यान नहीं देता पर विरोध का विरोध जब गलत तरीके से होता है तो विरोध करता हूँ।अब देखिए हुसैन का विरोध करने वाले कट्टरपंथियों के विरोध में लिख रहे थे तो साथ में तस्लीमा का अवमूल्यन कर र रहे थे सिर्फ इसलिए कि तस्लिमा अपने देश में हिंदुओं पर होने वाले अत्याचार का विरोध करती आई हैं और इसलिए संघ और वीएचपी को बहुत पसंद आती हैं अब बताइए इसमें तस्लीमा की क्या गलती?ऐसे ही अभी विश्वरूपम् विवाद पर बहस होती है तो रवीश कुमार बीच में शिवसेना का मुद्दा घुसा देते है और कहते हैं कि हमें मतलब हिंदुओं को अपने अंदर झाँककर देखना चाहिए कि हम मुसलमानों को क्या मानते हैं।अब बताइए इस बात का यहाँ क्या तुक है।क्या रवीश जी किसी ओवेसी का विरोध करते हुए मुसलमानों से ठीक यही आह्वान कर सकते हैं? इस तरह की बातें गुस्सा तो दिलाती ही है।हर चीज हम अनदेखी नहीं कर सकते।अब आपको भी लिखना पड़ा ही न ।

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    1. उसे खाना भी शुरू कर दीजिये सुना है आप के राज्य में स्वाईन फ्लू H1N1 फ़ैल गया है सेहत का ध्यान रखे । सभी जानते है की एन डी टीवी कुछ ज्यादा ही "धर्म निरपेक्ष " चैनल है :) फिर भी कभी कभी चैनल वालो को एक पक्ष का विरोध करते समय संतुलन बनाने के लिए दुसरे पक्ष की गलतियों को भी गिनाना पड़ता है खुद को तटस्थ दिखाने के लिए , वैसे उदाहरण गलत नहीं था मैंने भी तो दिया है , जितनो ने वो अपराध किया है हाजरी तो सभी की लगेगी ।

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    2. अंशुमाला जी ,सबसे पहले तो ये कि बचपन से ही मैं यदि चयवनप्राश(हिमानी वाला नहीं डाबर वाला)की एक चम्मच खाना शुरू करूँ तो खाता ही चला जाता हूँ।और अगर सारा चवनप्राश मैं ही खा गया तो भावनाओं को क्या खिलाउँगा? :-)
      इसलिए थोड़ा ठहरकर ।और ये आपने क्या किया।कम से कम स्वयं की तुलना ndtv वालों से कर हमारी भावनाओं का तेल न करें।इतना भी चयवनप्राश नहीं है।आपकी पोस्ट केवल विश्वरुपम् के विरोध पर आधारित नहीं जैसी कि वह बहस थी।इसलिए आपका बैलेंस करना समझ आता है और चलिए शिवेसेना को बीच में ले आए तो बात उसकी आलोचना तक रखते।मुसलमानों को विक्टिम बताते हुए आम हिंदू को बीच में लाने की जरूरत नहीं थी।और यदि उन्हें भी ले ही आए तो थोड़ा दूसरों को भी अपने अंदर झाँककर देखने का प्रवचन देना था बिना किसी किन्तु परंतु के बिल्कुल उसी अंदाज में कि आप दूसरों के बारे में या हिंदुओं के बारे में क्या सोचते हैं।या दूसरी तरफ के लोगों में मजहबी संकीर्णता के नाम पर उन्हें बस वीराना ही दिखाई दिया?
      वैसे भी कोई एक उदाहरण नहीं है।ये अलग बात कि जब शिवसेना या विहिप जैसे संगठनों की बात हो रही होती है तो ऐसे बहुत से न्यायाप्रिय लोग कई बारसंतुलन बनाना भूल जाते हैं।

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    3. एन डी टीवी से मैंने अपनी तुलना नहीं की है संतुलन वाली बात मैंने टीवी के लिए लिखा था अपने लिए नहीं , मुझे कुछ कहने के लिए कोई संतुलन बनाने की जरुरत नहीं महसूस होती वो मै सीधे कहती हूँ । संभवतः वो कार्यक्रम मैंने देखा था किन्तु आप का बताया वाक्य याद नहीं आ रहा है ( बिच बिच में चैनल बदलता है तो छुट गया होगा ) इसलिए उस पर कुछ कहा नहीं सकती , हा अपने आप में ये एक सवाल तो है ही की अधिकांश हिन्दू मुस्लिमो के बारे में क्या राय रखते है ।

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    4. अंशुमाला जी,
      @एन डी टीवी से मैंने अपनी तुलना नहीं की है संतुलन वाली बात मैंने टीवी के लिए लिखा था अपने लिए नहीं , मुझे कुछ कहने के लिए कोई संतुलन बनाने की जरुरत नहीं महसूस होती वो मै सीधे कहती हूँ ।
      okk,ठीक है।हम भी ये ही चाहते हैं।
      माना की संतुलन वाली बात आपने टीवी के लिए लिखा था लेकिन आपने यह भी कहा था-@वैसे उदाहरण गलत नहीं था मैंने भी तो दिया है , जितनो ने वो अपराध किया है हाजरी तो सभी की लगेगी ।
      हाजिरी शब्द ज्यादा सही रहेगा।मैं भी यही कहता हूँ की जब आप किसी अपराध की बात करते हैं तो हाजिरी सबकी लगवाएं जो भी दोषी हों।और ये काम तब भी करें जब आप धर्म के आधार पर गलत मानसिकता की बात कर रहे हों न की केवल एक तरफ के लोगों की गलती बताएं। लेकिन अक्सर ऐसा हो नहीं पाता।एक बात लोकतंत्र के लिहाज से बहुत महत्तपूर्ण है और अक्सर कही जाती है की न्याय होना ही नहीं चाहिए बल्कि दिखना भी चाहिए की न्याय हुआ है।तो इस लिहाज से यदी किसीने संतुलन बनाने वाली बात कर दी तो उसमें इतनी कोई गलत बात नहीं हैं(हाँ यदि निजी रूप से आपको बुरा लग गया हो तो इसके लिए खेद है।)।एक कक्षा में टीचर का ये फर्ज है की वह बच्चों को एक सामान समझे और उन्हें समझाए की एक जैसी गलती पर सजा भी सबके लिए सामान होगी।लेकिन यदी वो ऐसा नहीं कर पाते तो बच्चों में गलत सन्देश जायेगा बल्कि उनमें और ज्यादा विभाजन और वैमनस्यता बढ़ेगी।फायदे की जगह नुक्सान हो जायेगा।
      आप ठीक है की संतुलन बनाने के इरादे से नहीं लखती लेकिन क्या आप ये भी ध्यान नहीं रखती की आप जो सन्देश दूसरों को देना चाहती है वो ठीक से पहुँच भी रहा या नहीं?मुझे नहीं लगता आप ऐसा नहीं सोचती होंगी।जाहिर है अगर आपके विचार एकतरफ़ा होंगे तो लोग सवाल उठाएंगे।और ये बहुत स्वाभाविक है।वैसे ही जैसे एक चुटकले का विरोध किया और एक का नहीं तो आपको लगा की बस सब अपनी ही भावनाओं का ख्याल रखते हैं।तो बस जिन लोगों की मैं बात कर रहा हूँ उनसे यही अपेक्षा है।लेकिन मुझे ऐसे इमानदारों से ज्यादातर निराशा ही हाथ लगी है।किसी चैनल या किसी व्यक्ति आदी के बारे में एक ही बार में कोई राय नहीं बना लेता,वो तो सिर्फ एक उदाहरण दिया था मैं किसी चैनल या व्यक्ति विशेष की ही बात नहीं कर रहा।
      @ये एक सवाल तो है ही की अधिकांश हिन्दू मुस्लिमो के बारे में क्या राय रखते है ।
      सवाल तो बहुत महत्वपूर्ण है इससे इनकार नहीं लेकिन किसी सवाल को किस तरह उठाया जा रहा है,सन्दर्भ क्या है।और जो सवाल उठा रहा है वो खुद कितना निरपेक्ष है और उसका उद्देश्य क्या है ये भी देखना पड़ता है।

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  13. और अपनी ही बात करूँ तो मैं सभी का विरोध नहीं करता ।यहाँ ही कई लोग हैं जो धर्म के बारे में लड़ते रहते हैं उन पर कोई ध्यान नहीं देता लेकिन यदि आप कोई एकतरफा बात करती हैं या कुछ गलत कहती हैं तो आपका विरोध जरूर करूँगा क्योंकि आपमें और उनमें अंतर है।इसका मतलब ये नहीं कि मैं कोई दोगली मानसिकता रखता हूँ।अभी मैंने इसलिए लोकसंघर्ष नामक ब्लॉग की पिछली पोस्ट पर टिप्पणी की थी।और सभी विरोध करने वाले भी एक जैसा नहीं सोचते।साथ ही कई बार ये भी होता है कि जिनका विरोध हम करते हैं वो खुद अपनी पोल खोल देते हैं।अदाहरण के लिए दिग्विजय सिंह या अरुंधति जैसे लोगों का विरोध खूब जोर शोर से होता था लेकिन अब कोई गंभीरता से नहीं लेता।वहीं लोगों को जबरदस्ती गंभीर करने की कोशिश भी की जाती हैं।अब वो फिल्म OMG कितनी पसंद की गई लेकिन सुषमा स्वराज जी कहती हैं कि हिंदुओं की भावनाओं को ठेस पहुँचाने की कोशिश की गई।पता नहीं किन हिंदुओं की बात कर रही थी।मुसलमानों ने खुदा के लिए जैसी फिल्म खूब पसंद की थी लेकिन इस बार विरोध भडका दिया गया।

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    1. असल में कई संगठनो राजनैतिक दलो के लिए विरोध प्रतिबन्ध चर्चा में आने के लिए अपनी पहचान बनाने का जरिया बन गया है , इनका इलाज यही है की इन पर ध्यान ही न दिया जाये ।

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  14. हिंदू पेंटर का विरोध?
    हा हा हा ...
    अपन तो पहले से ही कहते रहे कि हिंदुओं का भी विरोध हिंदू करते हैं।लेकिन हुसैन के समर्थक ये बात नहीं समझते ।यहाँ राम सीता या हनुमान पर कोई चुटकुला हिंदू कह दे तो बवाल हो जाता है।
    और हाँ अंशुमाला जी उस गाने को शायद आपने ध्यान से नहीं सुना ।किसी लडकी का नाम राधा नहीं कहा है बल्कि उन्हीं राधा कृष्ण की बात करते हुए कहा गया है कि कृष्ण अब पहले जैसा नहीं रहा और राधा सैक्सी हो गई।गीतकारों को भी पता नहीं विवाद खड़ा करने में क्या मजा आता है।और सानिया ने भले ही फतवों पहले ध्यान नहीं दिया लेकिन बाद में मुस्लिम छात्राओं के दल से ये कहा कि मेरी तो मजबूरी है ऐसे कपड़े पहनना लेकिन आप हिजाब को मत छोड़ना ।ये बात सानिया ने किसी मुस्लिम देश (शायद सउदी अरब ) में कही।

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    1. बस अपनी ही भावनाओ का ख्याल, जब उसी व्यक्ति ने जीसस के सूली पर होने पर चुटकुला बनाया तो किसी ने भी विरोध नहीं किया , जितना मुझे समझ आया वो गाने में राधा और कृष्ण बने थे किन्तु बात वो अपनी कर रहे थे न की कृष्ण और राधा के बारे में , मतलब की लड़का पहले जैसा ही रहा गया और लड़किया सेक्सी हो गई , और लड़कियों को सेक्सी कहना कुछ भी गलत नहीं है ये उनकी तारीफ है और उन्हें बुरा नहीं मानना चाहिए ऐसा महिला आयोग की अध्यक्ष ममता जी कह चुकी है :)

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    2. अब आप उस पूरे ही विवाद को बीच में ला रही हैं जबकि मैंने वह उदाहरण सिर्फ इसलिए दिया क्योंकि हुसैन का बचाव करते हुए कहा जा रहा था कि उसका विरोध केवल इसलिए किया गया कि वह एक मुस्लिम है वर्ना तो उसकी पेंटिंग में कुछ गलत नहीं ।और ये मान भी लें कि विरोध करने वालों में कुछ गलत लोग भी है तो क्या इसलिए वह व्यक्ति या उसका कृत्य सही हो जाता है?रही बात केवल अपनी भावनाओं की परवाह करने की तो जब सभी धर्मों को समान समझने वाले और धर्मनिरपेक्षता,मानवता आदि जैसी लफ्फाजी ठेकेदारी की तर्ज पर करने वाले सेकुलरपंथी इतने एकतरफा हो सकते हैं तो उनसे क्या उम्मीद करें जो अपने ही धर्म को सर्वश्रेष्ठ मानते हैं जबकि उन्होने खुद को कोई बहुत बडा धर्मनिरपेक्ष घोषित नहीं किया।तो उनसे ही ऐसी अपेक्षा क्यों ?अगर जीसस के चुटकुले का कोई विरोध कर रहा होता और हिंदू केवल इसलिए उस ब्लॉगर को बचाएँ कि वह हिंदू है तब आप ये आरोप लगाए।वैसे जहाँ तक मुझे याद है उन ब्लॉगर का विरोध सरदारों पर बने चुटकुलों पर भी किया गया था

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    3. अभी कुछ दिन पहले ही मैंने राजकुमार संतोषी निर्देशित "लज्जा" नामक एक महान फिल्म देखी ।इस फिल्म के अंत में एक चीज पर अचानक ध्यान गया कि इसमें जितनी भी नायिकाएँ है जो समाज द्वारा सताई गई हैं उनका नाम सीता के नाम पर रखा गया जैसे वैदेही,जानकी,रामदुलारी आदि।अब एक तरीके से देखें तो ये केवल नाम हैं लेकिन दूसरी तरह देखें तो निर्देशक यह ही तो बताना चाहता है कि तब भी सीता ने बहुत दुख उठाए और आज भी महिला सीता की तरह ही कष्ट उठा रही है।अब ये बहस का विषय हो सकता है कि सीता को दुखी महिला ही क्यों माना गया ।अब इस गाने में यदि वो लड़के लड़की अपनी बात कर रहे थे तो कृष्ण और राधा का नाम ओढने की जरूरत थी ही नहीं।लेकिन साफ साफ कहा गया है कि ये आधुनिक कृष्ण और राधा है।जैसे संतोषी की फिल्म में नायिकाएँ सीता थी।मैं ये नहीं कह रहा कि गाना गलत है और विरोध करना चाहिए बल्कि मुझे पसंद है पर आपने पोस्ट में जैसा लिखा कि केवल नाम का मसला है ऐसा भी नहीं।वो गाने में अपनी बात कर रहे हैं लेकिन एक दूसरे को राधा कृष्ण बता रहे हैं ।

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    4. मैंने वो बात बस इसलिए लिखी की हम सभी को बस अपनी ही भावनाओ का ख्याल रहता है जिसका विरोध किया जा रहा है उसकी भावना का क्या होगा उसने भी तो किसी भावना के तहत ही बात कही होगी , और फिर ये कौन तय करेगा की बात सही है या गलत , जैसे फिल्म को सेंसर बोर्ड ने पास कर दिया तो उसे गलत कहने का किसी को अधिकार नहीं है , जैसे कीई एक तस्वीर को बनाने पर आप ने एक कोर्ट केस कर दिया ठीक है अब फैसला आने दीजिये न की उस व्यक्ति का जीना मुहाल कीजिये , जबकि उसके बाद उसने कुछ किया ही न हो । रही बात की कौन सांप्रदायिक है और कौन धर्म निरपेक्ष तो हर व्यक्ति का इस पर अपना नजरिया है , किसी के लिए मै धर्म निरपेक्ष लग सकती हूँ तो किसी को सांप्रदायिक , तो किसी को एक तरफ़ा सेकुलर पंथी जिसके सोच के खिलाफ बोलूंगी वो मुझे अपनी तरफ से एक नाम दे देगा , तो मै या आप सभी की परवाह करेंगे । दूसरी टिपण्णी में जो आप ने कहा मै भी वही कह रही हूँ , जैसे वहा सीता नाम होने का हम विरोध नहीं कर रहे है वैसे ही यहाँ भी विरोध का कोई मतलब नहीं है , भले ही वो कृष्ण और राधा बने है किन्तु वो बात अपनी कर रहे है , लोगो को इन चीजो को समझाना चाहिए ।

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    5. @जिसका विरोध किया जा रहा है उसकी भावना का क्या होगा उसने भी तो किसी भावना के तहत ही बात कही होगी
      अब ऐसा तो नहीं हो सकता की आप ये बात नहीं जानती हों की किसी धर्म जाति या समुदाय विशेष आदी पर कोई विपरीत टिप्पणी हमेशा किसी सुधारवादी कदम के तहत ही नहीं की जाती है।बल्कि इसके पीछे कई बार तो बहुत घिनोनॆ मानसिकता होती है तो कई बार किसी एक समुदाय या वर्ग की भाव्नाओं को भड़काकर दुसरे की नजर में खुद को न्यायप्रिय दिखाना।ये काम हमेशा कोई जनहित में नहीं किये जाते बल्कि धिक्कार है ऐसी भावना को।यहाँ मैं जानबूझकर उदाहरण नहीं रख रहा हूँ पर यदि जरुरी हुआ तो बहुत से दे भी सकता हूँ,हाँ ये मैं जरूर मानता हूँ की हमेशा इनका विरोध नहीं करना चाहिए पर कभी कभी तो जरूर करना चाहिए।सेंसर बोर्ड तो पता नहीं क्या क्या पास कर रहा है उसमें भी लोगों में मतभेद होते हैं।क्या गलत है और क्या सही ये इसी तरह तय होगा की जिसने ये काम किया है वो अपने काम की व्याख्या करे की उसने ऐसा किस उद्देश्य से किया है।जो सवाल उठ रहे हैं उनका ठीक ठीक जवाब दे।गलती हुई है तो उसे सुधारे अन्यथा लोगों की शंकाओं का समाधान करे।और आप कोर्ट की दुहाई दे रही हैं।लेकिन मैं जिन लोगों की बात कर रहा हूँ वो लोग और उनके समर्थक तो कोर्ट और दुसरी तमाम संवेधानिक संस्थाओं को भी कुछ नहीं मानते।कोर्ट को तो वो लोग सांप्रदायिक बताते हैं।राष्ट्र नाम की अवधारणा में ज्यादातर अंग्रेजी लेखक और पत्रकार,साहित्यकार,वाम बुद्धिजीवी,कथित मानवाधिकारवादी और इनके समर्थक विश्वास ही नहीं करते।यदी कोर्ट का फैसला आने से पहले विरोध गलत है तो इसी हिसाब से उसके समर्थन में मुहीम चलाना भी गलत है, और ये तो मैं खुद मानता हूँ की जरूरी नहीं की हर बात कोर्ट ही तय करे या सेंसर बोर्ड ही तय करे।अगर ऐसा है तो फिर समाचार चैनेल्स पर बहस क्यों होती है,अख़बारों में एडिटोरियल क्यों लिखे जाते हैं,वाद विवाद क्यों किये जाते हैं संगोष्ठी सेमीनार आदी क्यों होते हैं,ब्लॉग क्यों लिखे जाते हैं?जाहिर है समाज से जुड़े किसी मुद्दे पर सब बोल सकते हैं।बल्कि मैं तो कहता हूँ की ऐसे मामलों को अदालत ले जाना ही गलत है जब तक कोई बहुत गंभीर बात न हो और इसके लिए जेल वगेरह भी गलत ही हैं ।लेकिन ऐसे लोगों की कड़ी आलोचना तो होनी चाहिए,और ये स्पष्ट कर दूँ की जो विरोध के लिए गलत तरीका अपनाते हैं या हिंसा करते हैं मैं इसके बिलकुल खिलाफ हूँ बल्कि ऐसे लोग मेरा पक्ष कमजोर ही करते हैं।पर जैसा की मैंने पहले कहा की यदि कोई गलत तरीके से विरोध कर रहा है तो इसका मतलब ये नहीं है की सभी विरोधी गलत हो गए।
      और उनको कोई और नहीं कह रहा की वो सेकुलर है या बुद्धिजीवी है बल्कि ये शब्द तो वे और उनके समर्थक खुद के लिए खुद ही इस्तेमाल करते हैं।हाँ इस उपाधि के उलट बातें यदि एकतरफा करेंगे तो उन्हें एकतरफा ही कहा जायेगा।और जब ये कोई बात या सवाल मन माफिक न होने पर दूसरों के लिए कट्टरपंथी तालिबानी आदि एक से एक विशेषण लेकर कूद पड़ते हैं तो थोडा सम्मान तो इनके लिए भी बनता ही है।
      @भले ही वो कृष्ण और राधा बने है किन्तु वो बात अपनी कर रहे है , लोगो को इन चीजो को समझाना चाहिए ।
      शायद मैं अपनी बात ठीक से नहीं कह पाया।खैर जो भी हो इसका विरोध तो नहीं होना चाहिए था।अच्छा गाना।

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    अंशुमाला जी,

    बहुत लम्बे ब्रेक (१०४ दिन) के बाद शानदार वापसी... बधाई !

    @ जिन बुद्धुओ को अभी तक बात समझ नहीं आया उनके लिए , धर्म ,जाति और संस्कृति के नाम पर समाज में कई ठेकेदार है जो अपनी निजी फायदे के लिए आम लोगो को उकसाते है की देखो फलाने ने हमारे धर्म के हमारी जाति खिलाफ ये कहा है वो दिखाया है , न जाने क्या लिख दिया है , विरोध विरोध विरोध बैन बैन बैन , तो भैया दिखावे पर न जाये अपनी अक्ल लगाये , पढ़े लिखे है गवारो सा व्यवहार न करे , कोई कह दे की कौवा कान ले गया तो कौवे के पीछे न भागिए अपनी कान टटोलिये, थोड़े सहनशील बने दूसरो को भी बोलने का अपनी बात कहने का अधिकार दे आप उससे असहमत हो सकते है उसकी आलोचना भी कर सकते है , पर प्रतिबन्ध की मांग करना , या व्यक्ति को निजी रूप से परेशान करने वाला और हानि पहुँचाने वाली हरकत मत कीजिये , बुद्धू मत बनिए अपनी कुपोषित भावनाओ को सही पोषण दीजिये ।

    बात आपकी सही है पर यह ठेकेदार अपने मकसद में कामयाब सिर्फ और सिर्फ इसलिये हो जाते हैं क्योंकि हममें से बहुसंख्य अपने अपने धर्म पर अंध आस्था रखते हैं और अपने धार्मिक विश्वासों को डिफेंड करने के लिये सत्य, तर्क और सहज बुद्धि सभी को दरकिनार कर देते हैं... अंग्रेजी में एक शब्द युग्म है Holy Cow, तो हममें से सभी ने एकाध Holy Cow पाली हुई है जिसकी शान में गुस्ताखी हमको बर्दाश्त नहीं... भले ही हमें इंसान का खून बहाना पड़े... इसलिये अक्सर लोग आपको कहते मिलेंगे ' भला है, बुरा है जैसा भी है मेरा Holy Cow मेरा देवता है'... जब तक धर्म, जाति, वर्ण, वर्ग, संस्कृति और समाज के साथ इनके अंतर्संबंधों को लेकर हमारी सामूहिक समझ बेहतर नहीं होती, ऐसे वाकये होते रहेंगे... या यों कहिये कि हम सब यह सब कुछ झेलने के लिये अभिशप्त हैं... बहुत बड़ी विफलता है यह हमारी... Knowledge तो काफी हद तक हम बाँट-फैला पाये हैं पर Wisdom तक हम लोग नहीं पहुंच पाये हैं अब तक...



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    1. प्रवीण जी

      धन्यवाद !आम आदमी तो कई बार अपनी बुद्धि से ये समझ ही नहीं पाता है की लिखी गई या दिखाई गई चीज विरोध के लायक है और कई बार तो बाते उस की नजर में आती ही नहीं है, ये ठेकेदार है जो बताते है की देखिये ये विरोध और प्रतिबन्ध के लायक बाते है आन्दोलन कीजिये , वरना क्या कारण है की फिल्म जहा पुरे देश में रिलीज हुई और केवल तमिलनाडू में ही प्रतिबन्ध लगा क्या मुस्लिम सिर्फ वही पर है ।

      वैसे केक की चेरी गिनने से आसन रहा होगा 104 दिन गिनना :))

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  16. बाबाओं\हकीमों\डाक्टरों ने लौकी-एलोवेरा के दिन बदले थे, आप च्यवनप्राश के भाव उठाकर मानेंगी।
    वैसे भावनायें आहत होनी बंद हो गईं तो बहुत सी दुकानें बंद हों जायेंगी, बहुत से झंडाबर्दार बेरोजगार हो जायेंगे।

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    1. संजय जी

      ये च्यवनप्राश नहीं है चवनप्रास है जो शरीर की सेहत के लिए नहीं भावनाओ की सेहत के लिए है , मैंने नए उत्पाद का बाजार बनाने का प्रयास किया है , जिनकी दुकाने बंद हो जाएँगी वो इसी का धंधा शुरू कर दे पहले लोगो को भड़काए और कहे की देखिये आप की भावना आहत है और फिर उसको अपना चवनप्रास बेच दे ।

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