February 11, 2010

जस प्रजा तस राजा और तस सेवक

शर्मा जी राशन कार्ड ऑफिस के चक्कर लगा लगा के थक चुके है | उन्हें अपने राशन कार्ड से स्वर्ग सिधार चुके पिता जी का नाम कटवाना है और घर में ६ महीने पहले आ चुकि बहु का नाम डलवाना है | पर राशन कार्ड ऑफिस का बाबु है कि  चक्कर लगवा लगवा कर परेशान कर रहा है | अब शर्माजी  समझ  गए है कि बिना कुछ  दिए काम नहीं होने वाला है परेशान हो कर कहते है कि क्या किया जाये आम आदमी की  सुनता कौन है आम आदमी तो इसी तरह पिसता है | ये हालत सिर्फ शर्मा जी की ही  नहीं है हर  सरकारी दफ्तर में काम के लिये जाने  वाले  हर खासो आम  की  यही हालत  होती है | हम सभी को उनकी शर्तो पर काम करवाना पड़ता है | पर  जरा इसी तस्वीर का एक रुख और देखीये  अब पाटिल बाबु अपना लाइसेंस बनवाने के लिए आर टी ओ का चक्कर लगा लगा कर परेशान है पर उनकी फाइल चार नंबर की मेज  से आगे नहीं बढती क्योकि चार नंबर पर बैठने वाले शर्मा जी ( वाही शर्मा जी जो राशन कार्ड ऑफिस में परेशान थे ) कहते  है की जब तक फाइल का वजन नहीं बढेगा फाइल भी आगे नहीं बढेगी | जो शर्माजी किसी दुसरे सरकारी दफ्तर में आम आदमी थे वही शर्माजी अब सरकारी बाबु  बनते ही वही कर रहे है जिससे वो खुद परेशान थे | मतलब ये की सरकारी दफ्तर में बैठने वाला बाबु किसी और दुनिया से नहीं आता वो हमारे आप के बीच का  ( कृपिया इस" बीच का" का मतलब कुछ और न समझीए )  एक आम आदमी ही होता है जो सरकारी बाबु बनते ही अपने रौब के आगे हमें कुछ  समझाता ही नहीं | वो दिन और हम हिन, वो भगवन और हम तुच्छ प्राणी बन जाते है | वो भूल जाता है कि इस ऑफिस  से बाहर आते ही वो भी  एक आम आदमी ही हो जाता है | 
           सोचिये जब कभी हमें किसी सरकारी ऑफिस में कोई काम करवाने जाना होता है (इस ब्लॉग को पढने वाले हर किसी के लिए ऊपर वाले से दुआ करुँगी की आप को कभी किसी सरकारी ऑफिस में न  जाना पड़े) तो सर से पाव तक एक सिहरन सी दौड़ जाती है लो हो गई मेरे ऑफिस  की दो चार छुट्टी  और हो गई जेब ढीली बिगड़ गया महीने का बजट | अगर जल्दी काम करवाना है तो इतना त्याग तो करना ही होगा नहीं तो लगाते रहो चक्कर, फाइल में गलतिया तो निकलती ही रहेंगी और आप उनको दूर करने के लिए भागते रहेंगे | 
                          जब खुद को आम आदमी बता कर हम पानी पी पी कर किसी गवर्मेंट ऑफिसर  को कोसते है तो ये भूल जाते है कि कई बार हम खुद ही चाहते है कि ऑफिसर पैसे ले ले और जल्द से जल्द बिना हमारी फाइल ठीक से जाचे हमारा काम कर दे | कभी  हमारे पास नियमानुसार  पुरे कागजात नहीं होते तो कभी पुरा काम ही गैरकानूनी होता है और कभी तो बस अपना काम जल्दी कराने के लिये खुद ही घुस देने लगते है | ज्यादातर तो होता ये है कि हम पहले ही मान कर  जाते है कि किसी सरकारी दफ्तर में बिना पैसा दिए हमारा काम ही नहीं होगा और हम पहले से ही घुस देने के लिए तैयार रहते है उसने मागा नहीं कि  हमने निकल कर दे दिया | इस तरह से एक तो हम स्वयम ही सरकारी कर्मचारियों को रिश्वत लेने के लिए उकसाते है और उनके मागने पर  बिना देर किये उन्हें रिश्वत दे कर उन्हें और बढ़ावा देते है | क्योकि हम सभी  खुद भ्रष्ट है और चाहते है कि वो भी भ्रष्ट बने रहे ताकि हमारा काम बिना किसी विघ्न के होता रहे | 
                कहने के लिए तो हम कहते है कि यदि हमारे नौकरशाह सुधर जाये तो ये देश सुधर जायेगा पर किसी ईमानदार  ऑफिसर  की और किसी बेईमान ऑफिसर के लिये हमारी क्या सोच होती  है जरा इसका भी नमूना देख लेते  है | खुद हमारे भी कई अपने या जान पहचान वाले  इस तरह के सरकारी ऑफिसों में बैठते है और हम बड़े फक्र के साथ बताते है की  हमारे फलाने, फलाने पोस्ट पर है और उनकी कमाई कितनी ज्यादा है |  अपनी बेटी और बहन की शादी के लिए किसी सरकारी पद पर बैठे लड़के की पोस्ट काम और वेतन देखने से पहले ये देखा जाता है की उसकी  ऊपरी कमाई कितनी है | यदि वो गलती से ये कह दे की वो तो बड़ा ईमानदार है और घुस नहीं लेता  तो लोग आईएस ओफिसर से भी अपनी लड़की की शादी न करे बोलेगे की पहले जा का कर इसका इलाज कराओ  जब घुस ही नहीं लेना था तो सरकारी नौकरी की ही क्यों | मतलब ये की सरकारी नौकरी तो घुस लेने के लिये ही की जाती है आप ले या न ले पर  आप से सब यही उम्मीद करते है |  अगर आप कहे की आप थोड़े ईमानदार टाईप के है और किसी से पैसे ले कर काम करना अच्छा नहीं लगता तो आप के आस पास के लोग कहेंगे की अरे वो तो डरपोक है पकडे जाने से डरता है इस लिय नहीं लेता, अरे उस बेफकुफ़ (जी हा रिश्वत न लेने वाला लोगों की नजर में बेवकूफ ही होता है)  की जगह हम होते तो अब तक दो चार बंगले खड़े कर चुके होते सरकार  भी कैसे इन बेवकूफो को नौकरी पर रखा लेती है | जैसे की सरकार अपने कर्मचरियो को घुस के रूप में जनता से धन उगाहने के लिए ही रखती हो | किसी सरकारी कर्मचारी के प्रति हमारी सोचा कितनी  बंधी हुई है जरा इसका भी मुजाहिरा कीजिये | हमारा काम नहीं हुआ तो फाइल में पांच सौ का नोट रखा कर आगे कर दिया जवाब आता है की अरे इसकी जरुरत नहीं है तो हमारे दिमाग  में तुरंत आता है लगता है की इतने में नहीं मानेगा इसे और चाहिए | हम ये कभी मान कर चलते ही नहीं की वो ईमानदार भी हो सकता है |
             एक आम आदमी कितना भ्रष्ट है इस बात का अंदाजा हम इसी से लगा सकते है की मामूली से मामूली सरकारी पदों के लिये लाखो रूपए की घुस देने को हम सभी तैयार हो जाते है | सोचिये की सात से आठ हजार की सरकारी नौकरी के लिए भी सात से आठ लाख की घुस किस बिना पर दे दी जाती है निश्चित रूप से उस पद पर हो रही  ऊपरी कमाई को देख  कर | सीधी सी बात है भाई वो आठ लाख तो हम आठ महीनो में वापस  कमा लेंगे बस एक बार नौकरी मिल तो जाये फिर देखीये हमारी प्रतिभा, क्या मजाल है  कि कोई हमें पकड के दिखा दे | यदि रिश्वत लेते पकडे भी गये तो रिश्वत दे कर आराम से छुट भी जायेगे | देखा जितना विश्वास रिश्वत कि ताकत पर है उतना तो ईश्वर पर भी नहीं होगा | ये है हमारे आम आदमी कि भ्रष्ट  सोच जो एक दिन सरकारी कर्मचारी बनता है | जस प्रजा तस राजा और तस सेवक | इस लिए आगे से किसी सरकारी कर्मचारी को बुरा भला कहने से पहले अपना गिरेबान जरुर  झांक  लिजियेगा |








9 comments:

  1. it's right when we are corrpede how we can point out other

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  2. सही कहा असल में तो भ्रष्टाचार को हम ही बढ़ावा देते है

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  3. कली बेंच देगें चमन बेंच देगें,
    धरा बेंच देगें गगन बेंच देगें,
    कलम के पुजारी अगर सो गये तो
    ये धन के पुजारी
    वतन बेंच देगें।


    होली की पूर्व संध्या पर मिलना खूब रहेगा .... कहें तो अपने संग ढोल-झाल भी ले आयेंगे ..... फागुन का रंग खूब जमेगा
    हिंदी चिट्ठाकारी की सरस और रहस्यमई दुनिया में प्रोफेशन से मिशन की ओर बढ़ता "जनोक्ति परिवार "आपके इस सुन्दर चिट्ठे का स्वागत करता है . . चिट्ठे की सार्थकता को बनाये रखें . नीचे लिंक दिए गये हैं . http://www.janokti.com/ ,

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  4. मूल समस्याओं पर प्रकाश डाला है आपने! असल में समस्या यह कतई नहीं कि किसी काम को कोई कैसे करता है- समस्या यह है कि हम क्यों किसी काम को किस तरह 'होना' चाहते हैं! और 'होने की प्रक्रिया वाला रास्ता' कैसा है 'अच्छा या बुरा' इसके चुनाव पर है निर्भर- गिरेबान देखो या झांको!

    !हम सुधरे तो जग सुधरे! मेरे ख़याल से यह एक सूत्र ताकतवर-प्रभावशाली है! इसे अपनाया जाना चाहिए!
    --
    जारी रहें.
    अमित के सागर
    [उल्टा तीर]

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  5. हिंदी चिट्ठा जगत में आपको देखकर खुशी हुई .. सफलता के लिए बहुत शुभकामनाएं !!

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  6. हिंदी चिट्ठा जगत में आपको देखकर खुशी हुई .. सफलता के लिए बहुत शुभकामनाएं !!

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  7. 100 feesdi sach kaha hai aapne......
    v nice post.... hakiqat to yehi hai.

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  8. अंशुमाला जी, आपने उपरोक्त पोस्ट में बहुत सही बात कहीं है . रिश्वत न लेने वाले और देने वाले को "पागल" कहना रिवाज बन गया है. इसलिए मुझे कोई पागल कहे उससे पहले मैंने स्वंय को "सिरफिरा" कहना और लिखना शुरू कर दिया था.
    # निष्पक्ष, निडर, अपराध विरोधी व आजाद विचारधारा वाला प्रकाशक, मुद्रक, संपादक, स्वतंत्र पत्रकार, कवि व लेखक रमेश कुमार जैन उर्फ़ "सिरफिरा" फ़ोन:9868262751, 9910350461 email: sirfiraa@gmail.com, महत्वपूर्ण संदेश-समय की मांग, हिंदी में काम. हिंदी के प्रयोग में संकोच कैसा,यह हमारी अपनी भाषा है. हिंदी में काम करके,राष्ट्र का सम्मान करें.हिन्दी का खूब प्रयोग करे. इससे हमारे देश की शान होती है. नेत्रदान महादान आज ही करें. आपके द्वारा किया रक्तदान किसी की जान बचा सकता है.

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