अब आप ही सोचिये अगर हमको आराम ना मिले तो हम पूरी लगन से काम कैसे करेंगे और आप सभी तो जानते ही होंगे की हम सरकारी कर्मचारी कितनी मेहनत से पूरे आठ घंटे काम करते है क्या कहा की काम तो हम सिर्फ छ: घंटे करते है जी बस के धक्के खा कर जो आँफिस आते है और जो पेट पूजा करते है उसे क्या हमारे काम के घंटे में नहीं जोडियेगा अरे हम क्या अपने लिए खाते है जी हम तो दूसरों के लिए खाते है न खाए तो सोचिये क्या होगा, खाने से पहले हमारे काम की रफ़्तार देखिये क्या मजाल की कोई फाइल एक मेज से आगे पढ़ जाये और खाने के बाद देखिये बदन में क्या स्फूर्ति आती है फटा फट फाइल पास हो जाती है तो बताई ये की क्या हम अपने लिए खाते है | देखिये आप ने बातों बातों में मुद्दे से भटका दिया ना हा तो हम छुट्टियों की बात कर रहे है आप तो जानती है की हमारे यहाँ तो कहावत ही है की सात वार और नौ त्यौहार और इस मामले में हम सभी बड़े सामाजिक सदभाव वाले है हमसे बड़ा धर्मनिरपेछ तो कोई है ही नहीं, क्या ईद क्या दीवाली होली क्या क्रिस्मस क्या बैशाखी जी हम त्यौहार मनाने में कुछ नहीं देखते हम सब त्यौहार मिल कर मानते है और हर छुट्टी का दिल से स्वागत करते है | त्यौहार क्या जी हम तो महा पुरुषों की जयंतियो का भी दिल खोल के स्वागत करते है गाँधी जयंती नानक जयंती आम्बेडकर जयंती सब हमारे लिए बराबर है | हम तो कश्मीर से कन्याकुमारी तक पता लगाते है की कही किसी महापुरुष के साथ ज़्यादती तो नहीं हो रही है उसके सम्मान में छुट्टी की माग करते है | अरे किसी को सम्मान देने का इससे बड़ा और क्या ज़रिया होगा की उसके लिए छुट्टी घोषित किया जाये | भाई हम सरकारी कर्मचारियों के सम्मान देने का तो यही तरीका है | हम तो आप लोगों से भी विनती करते है की आप के नजर में है कोई ऐसा महा पुरुष या कोई तीज त्यौहार जिसको सरकार उचित सम्मान नहीं दे रही है तो तुरंत हमारे पास उनका लेख जोखा भेजिए हम सरकार की तरफ से उन्हें उचित सम्मान दिलवायेगे | घबराइये नहीं हम इसमे जात पात धर्म जैसे आडम्बर नहीं पालते हम सम्मान दिलाने के मामले में सबको समान रूप से देखते है |
और अंत में
हमारा देश ने फिर से हमारे पांच हजार साल पुराने वैभव को पा लिया हर तरफ दूध की नदिया बह रही है मंदिर फिर से सोने चाँदी से मढ़ गए है हमारा ख़ज़ाना हीरो जवाहरातो से भरा पड़ा है कही कोई गरीबी नहीं है हर जगह उल्लाश फैला है देश में पैसे की कोई कमी नहीं है इसलिए अब किसी को भी रोज काम करने की जरुरत नहीं है व्यवस्था को उलटा कर दिया गया है अब छ: दिन छुट्टी होगी और सिर्फ एक दिन काम करना होगा सिर्फ सन्डे को काम करना होगा | ये सुनते है एक चीख की आवाज़ आई और कोई जोर से चिल्लाया क्या कहा सन्डे तो छुट्टी का दिन है एक दिन काम करना होगा क्या ख़राब दिन आगये है |
सही कहा चाहे गणतंत्र दिवस हो या स्वतत्रता दिवस हम उसे केवल छुट्टी के दिन के रूप में याद करते है और उसी तरह मनाते है | ना तो हम देश को आजाद कराने वाले शहीदों को याद करते है और न ही देशा के बारे में सोचते है | अच्छा लेख |
ReplyDeleteहम भारतीयों के कामचोरी का एक और दिन वाकई हम पंद्रह अगस्त मनाते है स्वतंत्रता दिवस नहीं | हमें तो बस छुट्टियों का बहाना चाहिए इस मामले में हम सब एक हो जाते है हमारे विचार सोच सब एक हो जाते है |
ReplyDeleteकटाक्ष सटीक है।
ReplyDeletesach byan kiya aapne.............lekin kuchh ho nahi sakta.......
ReplyDeleteसच कहा आपने।
ReplyDelete"आप के ब्लॉग पर पहली बार आई हु
ReplyDeleteकहानी अच्छी लगी अब लगता है कि हमेशा आना होगा
मेरी तीन वर्षीय बेटी को कहानिया सुनने का काफी शौक है|"
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अपनी रचनाओं के ब्लॉग "रविमन" पर आपकी उक्त टिप्पणी पढ़ी!
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लघुकथा "शेर और सियार" आपकी तीन वर्षीय बेटी के लिए नहीं है!
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उसके लिए तो बहुत-सी रचनाएँ "सरस पायस" पर सरस रही हैं!
बढिया आलेख।
ReplyDeleteदिल्ली प्रेस की पाक्षिक पत्रिका "चंपक" में
ReplyDeleteजानवरों से संबंधित बहुत-सी कहानियाँ छपती हैं!
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यह पत्रिका हिंदी के साथ-साथ
कई अन्य भारतीय भाषाओं में भी छपती है!
bahut sahi farmaya aapne..
ReplyDeleteaaj ke waqt me yahi hota hai...
Meri Nai Kavita padne ke liye jaroor aaye..
aapke comments ke intzaar mein...
A Silent Silence : Khaamosh si ik Pyaas
... prabhaavashaalee abhivyakti !!!
ReplyDeletebahut badhiya likha hai..aam aadmi ki aam si soch..khas ko bhi aam kar deti hai..gud one :)
ReplyDeleteबढ़िया प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.
ReplyDeleteढेर सारी शुभकामनायें.
संजय कुमार
हरियाणा
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
मुझे आपका ब्लोग बहुत अच्छा लगा ! आप बहुत ही सुन्दर लिखते है ! मेरे ब्लोग मे आपका स्वागत है !
ReplyDeletehum bhartiya har samasya se chhutkara pa lenge siway kaamchori ke.phir se ek sundar prastuti.keep writing.
ReplyDeleteबिकुल सच कह रही है आप |क्या देश प्रेम अब स्कूली रस्म बन कर रह गया है ?उसमे भी माँ बाप को कही बाहर जाना हो तो बच्चो की गलत ढंग से छुट्टी करवा देते है |
ReplyDeleteबहुत नाइन्साफ़ी है।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
क्या कहने साहब
ReplyDeleteजबाब नहीं निसंदेह
यह एक प्रसंशनीय प्रस्तुति है
satguru-satykikhoj.blogspot.com
इत्ती नाइंसाफ़ी मत करो जी, संडे को छुट्टी होती है फ़िर उस दिन भी काम करवाना जरूरी है क्या?
ReplyDeleteअपने शानदार कमेंट्स से फ़त्तू का उत्साह बढ़ाने के लिये बहुत बहुत धन्यवाद।
भारतीय स्वतंत्रता दिवस की आपको व आपके परिवार को हार्दिक शुभकामनायें।
आइये कामना करें कि हम अपनी आजादी को अक्षुण्ण रख सकें।
आभार।
एक बार फिर से ब्लॉग का टाइटल " मेंगो पीपल " से जुड़ा हुआ सार्थक और सच्चा लेख
ReplyDeleteइस लेख के लिए धन्यवाद
हाँ ...एक बात कहना चाहूँगा की जहां तक "खाने" की बात है हर कर्मचारी के "खाने वाला कर्मचारी" बन जाने के पीछे अनेक स्वार्थी नागरिकों का भी बराबर हाथ होता है , हम सब को अपना काम जल्दी करवाने की जल्दी होती है , रिश्वत देने वाला अपने आप को समझदार साबित करने में सफल हो जाता है , इमानदार बेवकूफ कहा जाता है
खैर "मेंगो पीपल" और "मांगो पीपल" को छोड़िये , लेख बहुत अच्छा और सार्थक है
एक बार फिर से आभार
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
ये एक कड़ुवा सच है ,... पर है तो सच ही ... इस बार एक छुट्टी मारी गयी ....
ReplyDeleteबहुत सही बात कही आपने....और ये सच्चाई है...
ReplyDelete१५ अगस्त, २६ जनवरी अपना अर्थ खो चुके हैं...ये दिन अब सिर्फ एक सरकारी छुट्टी में तब्दील हो चुके हैं....और फिर जब छुटियों की आदत हो तो यह बात खल ही जाती है लोगों को...गौर से देखा जाए तो कितना काम करते हैं सभी सरकारी संस्थाओं में ...बेचारे ..देखिये न..!
सरकारी नौकर नहीं दामाद/बहू इस तरह से काम करते हैं..
कुल मिला कर ३६५ दिन होते हैं साल में ...ये रहा काम करने का लेखा जोखा.....
५२ दिन -Sunday
५२ दिन -Saturday
६५.५ दिन -एक घंटा देर से आना और एक घंटा पहले जाना
४० दिन -लंच
१६ दिन-चाय
८ दिन-सिगरेट/गप्प
२० दिन-त्यौहार
१५ दिन-ऑफिस के टाइम में पर्सनल काम करने में
१२ दिन-Casual Leave
३० दिन-मेडिकल
पूरे साल में हम सिर्फ ५४.५ दिन सही मायने में काम करते हैं...
हाँ नहीं तो...!!
हा हा हा
ReplyDeleteगजब का रीसर्च किया है अदा जी ने
यह तो आपने हिन्दुस्तान के केवल तीस प्रतिशत लोगों की ही बात की। सत्तर प्रतिशत आबादी को इतवार भी नसीब नहीं होता। क्योंकि वे अगर काम नहीं करें तो खाएंगे क्या। छुट्टी तो उनके लिए बेकारी लेकर ही आती है।
ReplyDeleteसवाल और चिंता सही है।
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ReplyDeleteदेश प्रेम या सिर्फ रस्म ?
दुखद ।
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आपकी लिखी रचना सोमवार 25 जुलाई 2022 को
ReplyDeleteपांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
वाक़ई सोचने वाली बात है
ReplyDeleteसही लिखा है। बढ़िया कटाक्ष।
ReplyDeleteदेशभक्ति को बड़ी मेहनत से ढ़ोने वाले राष्ट्र भक्तों की पोल खोल दी आपने तो।
ReplyDeleteबेहतरीन व्यंग्य
सादर।
सरकारी नौकरी इसीलिए तो चाहते हैं .....पर हद है एक छुट्टी कम हो गयी...
ReplyDeleteलाजवाब सृजन
वाह!!!
बहुत ही करारा, जबरदस्त
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