October 12, 2012

सर नोचने के लिए अपने हाथ कम पड़े तो मदद लीजिये ------------mangopeople




1-करीब दशक भर पहले महाराष्ट्र सरकार ने मुंबई में एक बड़े बिल्डर समूह को जो महंगे बड़े आलिशान फ़्लैट बनाने के लिए जाना जाता है, उसे मुंबई के बाहर एक बेसकिमती जमीन दे दी ताकि गरीब और माध्यम वर्ग के लिए छोटे और उनके बजट में आने वाले फ़्लैट बनाये ( वो भी तब जबकि महाराष्ट्र में भी डी डी  ए  की तरह म्हाडा नाम का सरकारी विभाग है जो खुद भी लोगो के लिए सस्ते घर बनाता है ) नतीजा बिल्डर ने उस जमीन पर बड़े बड़े आलिशान फ़्लैट बना दिया ( ये भी आश्चर्य की बात है की नक्शा  पास हुआ एक पूरा टावर खड़ा हो गया और सरकार को कुछ भी पता नहीं चला ) खबर लगी हो हल्ला हुआ और सम्बंधित विभागों की तरफ से बिल्डर समूह पर पर हजारो करोड़ ( शायद 2 हजार करोड़ ) का जुर्माना  लगा दिया गया , किन्तु जल्द ही महाराष्ट्र के "पावरफुल" नेता की कृपा से ये हजार से सौ करोड़ ( 2 सौ करोड़ ) में बदल गया । मामला आज भी आदालत में है । बिल्डर और नेताओ का शानदार मजबूत गठजोड़ देखिये , कहा कहा से पकड़ियेगा जहा एक रास्ते बंद कीजिये दुसरे खोल देंगे ।

   2-   नोयडा मे गरीब किसानो की जमीन का अधिग्रहण करके उसे अमीरों को फार्म हॉउस के लिए दे दिया गया और नीलामी में कहा गया की वो किसान भी जिनसे सरकार ने 25 पैसे में इस जमीन को ख़रीदा था वो भी अपनी ही जमीन को अब सरकार से 1 रु में खरीद सकते है और वापस से खेती माफ़ कीजियेगा अंग्रेजी में फार्मिंग कर सकते है ।  सरकार और बाबु की शानदार नीतियों का,  सोच का और गरीब किसान की हालत का नजारा देखिये , जनता के लिए बनी सरकार के जमीन के दलाल बन जाने का नजारा देखिये ।


3- मुंबई में सैनिको की विधवाओ के लिए ईमारत बनने वाली थी 7 मंजिला,  जिस विभाग के पास वो क्लियरेंस के लिए जाती उसी विभाग के बाबु और मंत्री को एक फ़्लैट उपहार में मिला जाती और धीरे धीरे ईमारत की ऊंचाई आसमान छूने लगी सैनिक और उनकी विधवाए कही पीछे ही छुट गए , सामने की सड़क की चौड़ाई कम कर दी गई, बगल में बस डिपो की जमीन  भी इसमें मिला दी गई ताकि और ज्यादा बड़ी ईमारत बने और उनके विभागों के बड़े बाबु, मंत्री को भी घर दे दिए गए । हो हल्ला हुआ जाँच शुरू हुई तो अंत में बात ये आ गई की न तो जमीन सैनिको की थी न ईमारत सैनिको की विधवाओ के लिए बन रहे थे तो काहे का घोटाला । किस्सा सुना है , एक रेगिस्तान  में आदमी तंबू लगा कर सोया था रात को ऊंट ने कहा थोड़ी जगह दे दो उसने दे दी सुबह उठा तो देखा की वो तंबू से बाहर है और ऊंट तंबू में बैठा है ।

4-  किसानो से खेती लायक उपजाऊ जमीने ली जाती है क्योकि घरो की कमी है और लोगो के लिए घर बनाना है किन्तु वहा बनते है अमीरों के लिए फार्मूला वन रेस का ट्रैक , गोल्फ कोर्स  ( निजी रूप से इस दोनों के बनाने से मुझे कोई आपत्ति नहीं है किन्तु वो खेती की जमीन सस्ते में गरीब किसानो से लेकर न बने जाये करोडो कमाते है तो खुद बाजार भाव पर जमीने ख़रीदे और उस पर बनाये ) और बड़ी बड़ी शानदार हर आलिशान सुविधाओ से युक्त इमारते, जो बस अमीरों की पहुँच में होती है, गरीब तो छोडिये माध्यम उच्च वर्ग के बस की बात भी नहीं होती है , बना दी जाती है और सरकारे कहती है की सब कानून के अंतर्गत हुआ है सब जनहित है । इस जन को भी देखिये और  जनहित का नजारा भी देखिये ।

5-कोर्ट ने कहा की देश की प्राकृतिक और खनिज सम्पदा को यदि सरकार चाहे तो देश हित में किसी भी नीजि  पार्टी को दे सकती है ।( पूर्व कानून मंत्री ने  जेटली  जी ने कहा की जज दो तरह के होते है एक वो जो कानून को जानते है और एक वो जो कानून मंत्री को जानते है, मैंने कुछ नहीं कहा ) वो सरकार जो जमीन अधिग्रहण बिल को सालो से अपने अंटी में दबा के बैठी है ( शायद इंतजार कर रही है की जब सभी जमीनों का अधिग्रहण हो जायेगा तब ये बिल लायेंगे ) क्योकि वो अभी तक इस बात को भी परिभाषित नहीं कर पाई है की बिल में जनहित की परिभाषा क्या रखे,  क्या ऐसी सरकारे भरोसे के लायक है । मोटरसाइकिल पर बैठ का युवराज जब भट्टा पर्सौला गए जल्द कानून का निर्माण करने का आश्वासन दे कर हीरो बन गए पर ये हिरोगिरी अपने सरकार से क्यों नहीं दिखा पा रहे है ।


6-अस्पताल के लिए ली गई जमीन पर एक दसक तक अस्पताल नहीं बनता है किन्तु सरकार को कोई फर्क नहीं पड़ता है,  फिर अस्पताल नहीं बना तो वो जमीन बिल्डर को दे देती है क्योकि उसे अधिकार है की वो जमीन का प्रयोग , बदल सकती है । बड़े अस्पतालों , स्कुलो कालेजो को कौड़ियो के दाम में  जमीने दे दी जाती है इस शर्त के साथ की वह गरीबो का इलाज और पढाई मुफ्त में होगी किन्तु वहा गरीबो के लिए कुछ नहीं होता और सरकारों को कई फर्क नहीं पड़ता है । क्या ऐसी सरकारों से हम उम्मीद करे की वो जनहित के बारे में सोचेंगी या इस बात को आगे भी लागु करवाएंगी की उनकी नीतियों से गरीबो का हित होता रहे । सरकारों का काम केवल नीतिया बना देना नहीं होता है उन्हें ठीक से लागु करवाना भी उन्ही का काम है ।

7-जरा सरकारी मुआवजे का भी हाल देखिये , किसानो को उनकी फसल बर्बाद होने पर 10 रु से लेकर 50 रु तक का मुआवजे का चेक दिया गया बेचारो को बैंक तक पहुँचने में ही 20 रु खर्च हो गए ( भुनाना जरुरी था क्योकि नहीं भुनाया तो अगली बार मुआवजा नहीं मिलेगा ) , टिहरी गांव जब डूबा तो लोगो को जमीन दी गई और मकान बनाने के लिए इतने कम रुपये ( 20 से 25 हजार रुपये दिए गए थे शायद ) दिए गए की उससे तो दो कमरों का ढ़ांचा भी खड़ा न होता , इंदिरा विकाश योजना में आज भी लगभग 20 हजार रुपये दिए जाते है लोन में घर बनाने के लिए (सरकारे खुद इतने में घर बना के दिखा दे )  । जमीन अधिग्रहण के लगभग हर केस में चाहे वो सेज, बांध , इमारते , सड़क आदि आदि किसी के नाम पर भी लिए गए, जमीने कौड़ियो के दाम में ख़रीदे गए और वह रहने खेती करने वालो को फिर से ठीक से बसाया नहीं गया स्थापित नहीं किया गया । गरीब के दो कौड़ी की औकत देखिये ।


8-करीब 50 हजार भूमिहीन मजदूरों ने मोर्चा निकला दिया और अंत में सरकार ने एक बार फिर उन्हें बेफकुफ़ बनाने हुए कहा की उनकी बाते मान ली गई है और लोगो को उनकी जरूरतों के हिसाब से घर खेती के लिए जमीने दी जाएँगी । क्या कहे एक तरह तो सरकारे किसानो से जमीने ले कर उन्हें भूमिहीन बना रही है दूसरी तरह वो भूमिहीन किसानो मजदूरो को जमीन देने का वादा  कर रहे है । संभव ये भी है की कल को  जंगल की जमीनों को इन्हें दे दिया जाये क्योकि गरीबो के नाम पर पर्यावरण मंत्रालय भी ज्यादा कुछ रोक नहीं पायेगा और मंजूरी आसानी से मिल जाएगी उसके बाद यही मजदुर जब उस जमीन को अपनी मेहनत से काम खेती के लायक बना देंगे तो उनका भी ऐसी ही अधिग्रहण कर लिया जायेगा,  बिलकुल वैसे ही जैसे राजनीति में पहुँच रखने वाला कोई किसी बिल्डर से लोन ले कर जमीन अपने नाम पर ले फिर उस जमीन का प्रयोग सरकार द्वारा बदलवाये जैसे खेती की या अस्पताल की जमीन पर ईमारत बनाने की इजाजत क्योकि बिल्डर के मुकाबले वो ये काम आसानी से और कम समय में करा सकता है और फिर उस जमीन को उसी बिल्डर को ऊँचे दाम पर बेच दे जिससे उसने लोन ले कर जमीन खरीदी थी । सत्ता में बैठी और उनके करीबी लोगो का तिकड़मी दिमाग देखिये ।


9-जो लोग ये सोच रहे है की ये एक दलीय कार्यक्रम है वो जान ले की ये घपले घोटाले भी अन्य  सभी घपले घोटाले की तरह ही सर्वदलीय है , इसमे सभी दल की सरकारे और लोग मिले हुए  है , और सभी इन कंपनियों से बराबर का रिश्ता रखती है और फायदा लेती है । जैसे अब खबर आ रही है की डी एल ऍफ़ को गुजरात में भी जमीने दी गई है बिना किसी नीलामी के,  वहां वही कांग्रेस हल्ला मचा रही है जो कहती है की हरियाणा में कुछ भी गलत नहीं हुआ  और ये रिश्ता भी आज का नहीं है जैसे डी  एल ऍफ़ का रिश्ता राजीव से बहुत ही घनिष्ठ रहा है और इस घनिष्ठता ने ही उसे इतना आगे बढाया था । रिश्तो के इस मजबूत और लम्बी जोड़ को देखिये ।


10-कल टीवी पर एक और खिजाने वाले केस के बारे में सुना की कर्नाटक टूरिज्म विभाग ने अपनी जरूरतों के लिए जमीन अधिग्रहित की जमीन लेने के बाद कहती है की उसके पास मुआवजे के लिए पैसे नहीं है ( लो कल्लो बात अंटी  में नहीं कौड़ी अम्मा भुनाने दौड़ी ) बाद में उसने कहा की एक दूसरी प्राइवेट पार्टी  है जो पैसे देने के लिए तैयार है बस एक छोटी सी शर्त है वो ये की ये सारी जमीने उसे देनी  होंगी हा हा हा हा हा हा हा हा सुकर  है की मामला कोर्ट में गया और कोर्ट ने विभाग की  अच्छी खबर ली और किसानो को न्याय दिया ।  टीवी पर ये सुन कर मैंने कहा की बिटिया रानी मेरे दो हाथ मेरा सर नोचने के लिए कम पड़  रहे है दो अपने भी लगाना , आप के अपने हाथ भी अपने सर नोचने के लिए कम पड़े तो मित्रो से मदद लीजिये और हमारी तरह ही कुछ न कर पाने की खीज में अपने खिजाने वाले किस्सों की एक पोस्ट बना दीजिये । 



चलते चलते 
       
              कहा जा रहा था की वालमार्ट आएगा तो भारत में रोजगार मिलेगा , अच्छा वेतन मिलेगा , काम   की सही सुविधा जनक जगह मिलेगी आदि आदि , अब सुना है की अमेरिका में वालमार्ट के कर्मचारी कम वेतन , काम के ज्यादा घंटे , सुविधाओ की कमी आदि आदि को लेकर हड़ताल पर चले गए है ।










21 comments:


  1. जमीनों के लिये किसानों से किया गया छल, ये नित नये घोटाले, नेताओं की कैंची सी चलती जुबान, जनता में फैलता भीतरी असंतोष सब देखताक कर कभी-कभी यूं लगता है कि कही भारत किसी बड़ी अस्थिरता की ओर तो नहीं बढ़ रहा, क्या पता लोगों का गुस्सा अचानक फूट पड़े और जैस्मिन क्रांति की तरह कोई बड़ी घटना न हो जाय। ऐसी स्थिति मे भी जो समर्थ हैं उनको तो कुछ न कुछ ठौर मिल जायगा, बिगडेगा अंत में निरीह और असहाय लोगों का ही। देखें ।आगे क्या होता है।

    ReplyDelete
    Replies
    1. अपने देश में लोकतंत्र की जड इतनी मजबूत है की किसी आराजकता की स्थिति कभी नहीं बनेगी , ये जड़ नेताओ के बलबूते नहीं यहाँ के आम लोगो की वजह से मजबूत है , जो जानते है की पञ्च साल बाद ही सही बजी एक बार तो हमारे हाथ आएगी ही ।

      Delete
  2. हो गया तंत्र बेलगाम देखिये..अब क्या होगा अंजाम देखिये.

    ReplyDelete
    Replies
    1. बस कुछ दिन का और इंतजार ।

      Delete
  3. सच में दुखद ...... न जाने ऐसे कितने ही और मामले दबे पड़े हैं......

    ReplyDelete
    Replies
    1. जितने बाहर आये है उससे कही ज्यादा ।

      Delete
  4. मुझे इनमें से तीन के बारे में ही पता था।ऐसी ज्यादातर जानकारियाँ आरटीआई के जरिये ही सामने आई हैं ।कल सुना प्रधानमन्त्री जी कैसे सूचना का अधिकार कानून के नुकसान बता रहे थे।हो सकता है जल्द ही इसमें कुछ 'जरूरी' बदलाव किए जाएँ।तब हमारे लिए भी अच्छा रहेगा,शायद कुछ कम सर नोचना पडे।

    ReplyDelete
    Replies
    1. कुछ जरुरी बदलाव तो पहले ही किये जा चुके है , जैसे अब अ धिकारियो की नोटिंग, मामले पर उनकी टिप्पणी नहीं मिलती है , कुछ और जरुरी बदलाव करेंगे किन्तु जब आप को हथियार को कैसे चलाना है पता हो तो उसकी धार कितनी भी कुंद कर दी जाये उससे काम निकाल ही लिया जाता है ।

      Delete
  5. समय बड़ा कठिन चल रहा है।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बाहर निकलने का उपाय हमें ही करना होगा ।

      Delete
  6. लोग पैसों के पीछे पागल हो गए हैं, सारा समाज ही इस ओर भाग रहा है। भोगवाद का कभी तो अन्‍त होगा। इसके लिए समाज को ही आगे आना होगा। हम निश्‍चय कर लें कि ऐसे किसी पागलपन में शामिल नहीं होंगे तो शायद कुछ बात बने।

    ReplyDelete
    Replies
    1. ये भ्रष्टाचार का पेड़ उलटा होता है जिसकी जड़े ऊपर होती है शुरुआत तो ऊपर से काटने से होगा ।

      Delete
  7. आज ही मैंने अखबार खोला और पहले तीन पन्ने स्किप कर गयी,वही स्कैम की ख़बरें थीं। टी वी पर समाचार देखना छोड़ ही चुकी हूँ। पहले Times Now और NDTV पर बहस देखने में रूचि थी , अब लगता है सिर्फ लफ्फाजी है,एंकर भी परदे पर आम लोगो के हिमायती दिखते हैं पर कुछ की असलियत सामने आ ही चुकी है।

    कहीं पढ़ा था, इतने दिनों तक अंग्रेजों का साम्राज्य रहने की वजह से अपने देश को अपना समझने की भावना ही नहीं पनप पायी है। जबतक इसे अपना समझकर इसकी साज संभाल का ख्याल नहीं आएगा, ये सब नहीं रुकने वाला है। अब वो दिन , सौ साल बाद आएगा या दो सौ साल बाद,या पांच सौ साल बाद, कहना मुश्किल है पर ऐसा न हो कि तब तक अपने हाथों ही अपने देश को तबाह कर डाले हों और कुछ बचा ही न रहे।

    ReplyDelete
    Replies
    1. रश्मि जी

      मुझे निजी रूप से लगता है ये भ्रष्टाचार को स्वीकार कर लेने और उसे अनदेखा करने की हमारी ( आप और मै दोनों ) प्रवित्ति ने ही इसे इतना बढा दिया है , यदि हम पहले ही घोटाले के प्रति आक्रमक होते और उसे किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं करते तो हालात इतने बुरे नहीं होते ।

      Delete
  8. हमारी नौकरी की सबसे बड़ी फ्रस्ट्रेशन यही है अंशुमाला जी.. हम तो रोज यही देखते हैं और वो सारे दस्तावेज़ भी जिनमें लगी लाल रंग की सरकारी मुहर कई बार उन गरीब किसानों का खून मालूम पडती है!! हम भी कागज़ फ़ाइल कर देते हैं और ऊपर लिख दिया जाता है कि अनुमति प्राप्त कर ली गयी..
    एक सरपंच अपने मातहत सारे किसानों के अंगूठे लगवाकर ले आता है!! रोज यही सब देखते हुए घुटन होती है!! तभी तो हम भावनगर भेज दिए जाते हैं!!

    ReplyDelete
    Replies
    1. कल ही देखा की हरियाणा के एक आई ए एस आफिसर बता रहे थे की पिछली बार 80 दिन में ट्रांसफर हुआ इस बार 50 दिन में ही हो गया क्योकि इस बार मैंने अपने विभाग का घोटाला 50 दिन में ही पकड़ लिया था , किरण बेदी तो सीधा उदाहरन है की किस तरह इमानदार और काबिल लोगो को बेमतलब के विभागों में भेज दिया जाता है , पर अच्छे लोग जहा जाते है वहां भी कुछ कर जाते है चाहे दिल्ली यातायात विभाग हो या तिहाड़ जेल , वैसे ही आप से भी उम्मीद है ।

      Delete
  9. किसान, गरीब, विकलांग इनके हिस्से की ग्रांट, मकान, फ़लैट, जमीन, सब्सिडी हड़प कर जाने वालों का हाजमा तो काबिलेगौर है। लोग इन सुविधाओं के आश्रित बने रहें, यह व्यवस्था इस बात को भी सुनिश्चित करती है। गरीब गरीब रहे, निर्बल निर्बल रहे तभी तो उनके हिस्से को पचाने का मौका मिलेगा।

    ReplyDelete
    Replies
    1. इस गरीबी निरक्षरता के दो फायदे है एक तो उनसे आसानी से वोट मिलता रहेगा दुसरे उनके कल्याण के नाम पर नई नई योजनाए बना कर पैसा हजम किया जायेगा ।

      Delete
  10. @कहा जा रहा था की वालमार्ट आएगा तो भारत में रोजगार मिलेगा , अच्छा वेतन मिलेगा , काम की सही सुविधा जनक जगह मिलेगी आदि आदि , अब सुना है की अमेरिका में वालमार्ट के कर्मचारी कम वेतन , काम के ज्यादा घंटे , सुविधाओ की कमी आदि आदि को लेकर हड़ताल पर चले गए है ।

    europe america , ityadi me bahut recession haen is liyae yae log apni dukaan dusri jagah lae jaa rahey haen

    ReplyDelete
    Replies
    1. बिलकुल सही कहा जिन दिन यहाँ भी फायदा नहीं होगा बोरिया बिस्तर ले कर चले जायेंगे ।

      Delete
  11. अभी तो देखिये और क्या क्या होता है यहाँ !!

    ReplyDelete