October 25, 2012

नायक खलनायक और आम आदमी ---------mangopeople

कल बिटिया रानी को रावण दहन दिखाने ले गई थी ( मुंबई में जिस जगह गई थी वह बस रावण दहन ही होता है कुम्भकरण और मेघनाथ का नहीं ) तो उसने बड़े से रावण को देखते ही पूछा ये रावण इतना बड़ा क्यों है ,

मैंने कहा रावण बहुत बड़ा था इसलिए
 तो क्या राम जी भी इतने ही बड़े है
नहीं राम जी तो छोटे से ही है
 तो फिर वो इतने बड़े रावण को कैसे मारेंगे ,
वही तो ये इतना बड़ा है फिर भी छोटे से राम जी इसे मार देंगे क्योकि ये बैड मैन है और राम जी अच्छे है ।
ये जवाब तो बिटिया के लिए था किन्तु वास्तव में सोचे तो रावण को इतना बड़ा क्यों बनाया जाता है , शायद इसलिए की छोटे से राम जी उसे मार कर बड़े दिखे । असल में अच्छाई  को ज्यादा ताकतवर और बड़ा दिखाने के लिए हम पहले बुराई को और बड़ा और बड़ा बनाते है उसके बड़े होने का महिमा मंडन करते है ताकि उसे मारने वाली अच्छाई और बड़ी दिखे और लगे की अंत में जित हर हाल में सच्चाई की होती है भले ही बुराई कितनी भी बड़ी क्यों न हो । हमारा नायक तभी अच्छा और बड़ा दिखता है जब की उसके सामने खलनायक भी उतना ही बड़ा और खतरनाक हो , खलनायक जितना बड़ा होगा हमारा नायक उतना ही बड़ा हिम्मती, ताकतवर दिखेगा , और इसके लिए पहले खलनायक के बुरे कामो की खूब चर्चा की जाती है उसे बुरे से बुरा बनाया जाता है और साथ में ये भी दिखाया जाता है की आम से दिख रहे लोग उसका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते है , उसे ख़त्म करने के लिए तो किसी खास को ही आना होगा , एक नायक ही उसे ख़त्म कर सकता है कोई आम इन्सान नहीं , आम इन्सान बस नायक की सहायता भर कर सकता है, वो भी छोटी सी जिसका कोई महत्व न होगा , उसे ख़त्म करने का सारा क्रेडिट बस नायक को ही जायेगा । यदि खलनायक बड़ा न हो तो नायक भी  बड़ा नहीं दिखता है , खनायक जितना खूंखार होगा हमारा नायक उसे मारने के बाद उतना ही बड़ा दिखेगा ।  किन्तु अपने नायक को बड़ा बनाते बनाते हम भूल जाते है की हम इस चक्कर में बुराई  को भी बड़ा बनाते जा रहे है , और आज हम ने बुराई को इतना बड़ा बना दिया है की वो आम इन्सान के द्वारा ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रहा है या ये कहे की उस बुराई का बड़ा होना आम इन्सान की हिम्मत तोड़ दे रहा है की वो उसे ख़त्म कर सकता है , नतीजा की अब फिर से आज की बुराइयों  को ख़त्म करने के लिए भगवान के अवतार लेने का एक नायक का इंतजार किया जा रहा है, और नायक भी कैसा,  वो जिसमे कोई भी बुराई न हो बिलकुल पाक साफ पवित्र आत्मा । ये बात धीरे धीरे घर कर गई है की किसी भी बुराई को ख़त्म करने का काम बस किसी खास को किसी नायक को ही करना है आम आदमी इसे नहीं कर सकता है , दुसरे कोई भी बुराई एक बार में ही नायक समूल नष्ट करेगा, तब तक हम सभी को बैठ कर उस नायक का इंतजार करना है , और यदि कोई व्यक्ति आ कर उस बुराई को धीरे धीरे ख़त्म करने का प्रयास करेगा तो सबसे पहले हम उसकी परीक्षा लेंगे और देखेंगे की उसमे नायक वाले सारे तत्व है की नहीं , यदि उसमे राई बराबर भी बुराई है और वो कोई पवित्र आत्म न हुई तो वो हमारा नायक नहीं बना सकता है ,  कोई आम आदमी आगे आ कर बुराई को ख़त्म करने का प्रयास शुरू नहीं कर सकता है , ये सब कम बस भगवान के अवतारी व्यक्तियों का ही काम है आम इन्सान के बस की बात नहीं है , क्यों . क्योकि हमने नायक होने के भी मानक बड़े बना दिए है जिसमे शायद ही कोई फिट हो , ज्यादातर को तो हम उस ढांचे में अनफिट करार दे बाहर कर देते है , और उसकी कोई सहायता नहीं करते है , जबकि कोई भी नायक बिना सहायता के अकेले अपने दम पर खलनायक को ख़त्म नहीं करता है ।

                                                              हम भूल जाते है की हम ने ही अपनी कमजोरियों से इस बुराई को धीरे धीरे बड़ा किया है और हम जरा सी हिम्मत करके धीरे धीरे ही इसे ख़त्म कर सकते है ये जरुरी नहीं है की कोई एक नायक ही आ कर इसे एक बार में ही समूल नष्ट करे,  कई लोग हर तरफ से मिल कर हर तरीके से इस ख़त्म करने की शुरुआत कर सकते है , जरुरी ये है की हम उनकी सहायता करे न की ये कहे की लो जी इससे तो बुराई पूरी तरह से ख़त्म न होगी कुछ प्रतिशत ही ख़त्म होगी तो हम इसका साथ नहीं देंगे या इसकी हमें जरुरत नहीं है । न ख़त्म होने और बढ़ते जाने से अच्छा है की कुछ ही सही वो ख़त्म होना तो शुरू हो,  जिस तरह वो धीरे धीरे बढा था और हमें पता नहीं चला उसी तरह वो धीरे धीरे ख़त्म भी होगा और उसे पता नहीं चलेगा । वैसे तो जरुरत इस बात की है की बुराई को बढ़ने ही न दिया जाये और बढ़ गई है तो उसकी महिमा मंडन न किया जाये ,  वो कितना बड़ा हो गया है उसे ख़त्म करने में बहुत समय लगगा जैसी बातो से हिम्मत हारने की जगह , ये सोचे की. हा समय लगेगा किन्तु वो एक दिन ख़त्म होगा , जब हम उसकी शुरुआत आज से करेंगे और खुद करेंगे किसी नायक का इंतजार नहीं करेंगे , जब बुराई का कुछ अंश हमारे अन्दर है तो उस नायक का भी कुछ अंश हमारे ही अन्दर है , जब हम उसे नायक को अपने अन्दर से निकाल कर बाहर लायेंगे तो बाहर की बुराई के साथ अपने आप हमारे अन्दर की बुराई भी ख़त्म हो जाएगी और हमें पता भी नहीं चलेगा ।



                 




  
                                                                    

28 comments:

  1. सच तो यह है कि अच्‍छाई और बुराई एक दूसरे के प्रतिबिम्‍ब हैं। उसी तरह नायक और खलनायक भी हमारे अंदर ही हैं।

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  2. बिल्कुल सही कहा आपने.

    रामराम.

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  3. खरी बात! राम की महानता ने कैकेयी को विलन बना दिया.. जबकि राम की महानता, कैकेयी के बिना कुछ नहीं.. दुर्योधन, कर्ण आदि को खलनायक बनाकर अर्जुन का नायकत्व स्थापित किया.. पटना में दुर्गा पूजा की बड़ी धूम होती है.. मगर एक बात मुझे बचपन से खलती थी.. वहाँ प्रतिमाओं के माध्य प्रतियोगिता होती थी कि कौन सी प्रतिमा सबसे सुन्दर बनी है और उन्हें बाकायदा पुरस्कृत किया जाता था.. देवी माँ की प्रतिमा नहीं, महिषासुर की!! इतने विकराल-विकराल महिषासुर बनाए जाते थे कि मत पूछिए.. उनके मध्य माता कोमल सी किन्तु आग्नेय नेत्रों से उसका संहार करती हुई..!
    आपकी बात सवा सोलह आने सही है.. हमने तो नारा भी यही बना रखा है कि फलाना तुम संघर्ष करो-हम तुम्हारे साथ हैं.. संघर्ष कोई और करे और हम बस साथ दें!! बस शहीदों की चिताओं पर मेले लगाते रहो और बाकी निशाँ पर आंसू बहाते रहो!! जय श्री राम!!

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    1. एक खबर पढ़ी की दिल्ली जे एन यु में ऑल इंडिया बैकवर्ड स्‍टूडेंट फोरम (AIBSF) महिषासुर का शहादत दिवस मनाने जा रहा है उनका उनका कहना है की महिषासुर देश के जनजातीय, दलित और पिछड़ी जाति के लोगों के पूर्वज थे, जिन्हें देवी की मदद से आर्यों ने मारा था। वे अपने इस पूर्वज की शहादत मनाने के लिए एक अभियान चलाना चाहते हैं। अब बोलिए खलनायक है तो क्या हुआ उसका साथ देंगे क्योकि वो हमारी जाति से है बस इसलिए वो हमारा नायक है । अब तो लगता है नायक और खलनायक की परिभाषा ही बदलनी होगी और इससे पता चलता है की आज समाज से बुराई क्यों नहीं जाती है ।

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    2. मानना पड़ेगा जे एन यु की राजनीति को भी. समाज को एक नए त्यौहार के लिए अपने को तैयार कर लेना चाहिए. महिषासुर की मूर्तियों के साथ महानगरों में शोभा यात्रा निकाली जायेंगी. ट्रेफिक से भरी सड़कों पर एक जाम का एक और दिन. :)

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    3. aapaka post aur bade bhaiya (Salil) ka comment.... kuchh aur bacha nahi bolne ke liye:)

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  4. बहुत ही आवश्यक और उत्कृष्ट पोस्ट।
    बुराई को इतना विशाल रूप धारण करने की छूट ही क्यों दी जाए। शुरुआत में ही इसका सामना कर उसका खात्मा क्यूँ नहीं किया जाता
    जब बुराइयां रावण जितनी बड़ी हो जाती हैं , तो फिर किसी राम की जरूरत पड़ ही जाती है, उसे ख़त्म करने के लिए।

    आदर्श स्थिति तो यही है कि सबके अन्दर छोटे से राम हों जो अन्दर के रावण के पनपते ही उसका नाश कर दें।

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    1. कई बार हम जान बुझ कर बाहर और अन्दर के रावण को बड़ा बनाते है अपने हितो के लिए ।

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  5. जब हमारी सोच इस दिशा में जाएगी तभी हम अपने भीतर की बुराइयों को मिटा पायेंगें ..... अभी विचार ही कहाँ कर रहे हैं...?

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  6. सही कहती हैं आप, किसी मसीहा की राह तकने की बजाय अपने स्तर से काम होना चाहिये।
    वैसे ये नायका जो है, ब्लॉगरा कहे जाने का प्रतिशोध है क्या?

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    1. एक बार मैंने अपनी पोस्ट में एक टंग ट्विस्टर दिया था अंग्रेजी का जिसमे लिखे सारे स्पेलिंग गलत थे फिर भी हम सब उसे बड़ी आसानी से पढ़ते चले गए क्योकि हम पहले के एक दो अक्षर देख कर ही उसे पढ़ जाते है, उसी तरह मैंने अपनी तरफ से तो नायक लिखा था किन्तु हर जगह वो नायका होता गया और मेरे बार बार पढ़ने पर भी वो नजर नहीं आ रहा था प्रकाशन के पहले दिखा एक दो जगह सुधारा था किन्तु शायद कई जगह छुट गया । आप को कोई परेशानी हुई उसके लिए खेद है :)

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  7. सारगर्भित आलेख....

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  8. थोड़ी सी शक्ति और आत्मविश्वास कर क्यों किसी राम की प्रतीक्षा !!
    सच कहा !

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  9. रावण शक्ति और सत्ता का नाम है जबकि राम त्‍याग का। जब-जब भी सत्ता का मद चढ़ता है हम रावणरूपी ही बन जाते हैं। किसी का भी अपहरण करने में देर नहीं लगती। लेकिन कभी त्‍याग करके नहीं देखते, नहीं तो रामत्‍व भी हमें हमारे अन्‍दर ही दिखायी देता।

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    1. सही कहा आप ने किन्तु कई बार त्याग भी करने की जरुरत नहीं है बस गलत न करे उतना ही काफी है बुराइयों को ख़त्म करने के लिए पर वो भी नहीं करते ।

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  10. कैसी बुराई और कैसी अच्छाई. आज राम रावण सभी एक ही तराजू में दीखते हैं... बीच की लाइन धुंधली हो गयी हैं.

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  11. हम भूल जाते है कि‍ हम ने ही अपनी कमजोरियों से इस बुराई को ...


    दि‍क़्कत यही तो है कि‍ हमारे पास सोचने का समय ही नहीं है

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  12. रावण बहुत सी बुराईयों का प्रतीक था. बुराई का पुतला बड़ा और अच्छाई का पुतला छोटा बनाने का एक उद्देश्य यह भी है कि बुराई चाहे जितनी बड़ी हो और अच्छाई चाहे जितनी छोटी हो... हारना बुराई हो ही है बस अपनी अच्छाई के साथ हिम्मत से डटे रहो...

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  13. आपने एक अलग दृष्टिकोण रखा है.नायक के मापदंड हमने सचमुच बहुत बड़े कर लिए हैं.वहीं कुछ लोग यदी बुराइयों से नहीं लड़ना चाहते तो कोई बात नहीं लेकिन ये लोग दूसरों को भी हतोत्साहित करते रहते हैं की आपके करने से कुछ नहीं होगा ये भी गलत है.
    और ये जेएनयू वाली खबर मैंने भी पढी थी पर समझ नहीं आया महिषासुर को दलित कैसे मान लिया गया.

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  14. आपका लेखन प्रभावशाली है, और विचार-प्रस्तुति सटीक. यहाँ एक अलग दृष्टिकोण है नायक/खलनायक के महिमामंडन में सम्मिलित विकृतियों का...

    यह पोस्ट पढ़ते हुए अनायास ही हैरी पॉटर की कहानी याद आयी... बुराई तो बड़ी है वहाँ, पर नायक स्वयं-भू सक्षम नहीं है, वह गलतियों से सीखता एक आम बच्चा है, और कई लोगों की मदद से बुराई को खत्म करता है. कभी समय निकालकर पढ़ें, मुझे उम्मीद है, आपको आपकी पसंद का 'के' नायक व नायिका मिलेंगे. :)

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