घिसु डिग्री धारी पर कम समझदार सीधा साधा बिल्कुल पति मैटिरियल वाला और चमेलिया जी कम पढ़ी लिखी और ज्यादा होशियार पत्नी खूबी विहीन महिला थी | राम ने मिलाई जोड़ी और दोनों की हो गई शादी | शादी के बाद घिसु ने कहा की हम घूमने के लिए वैष्णो देवी जा रहे है तैयारी कर लो और बाहर चला गया | समझदार चमेलिया जी ने सोचा की हमें अपने नए नए पति को अभी ही अपनी समझदारी का सबूत दे देना चाहिए ताकि जीवन आराम से कटे नहीं तो हमें बेफकुफ़ समझ सारी जिंदगी चराते रहेंगे | दो घंटे बाद जब घिसु आया तो चमेलिया जी शुरू हो गई |
"सुनते हो जी हम घूमने के लिए वैष्णो देवी नहीं जायेंगे क्या शादी के तुरंत बाद भी कोई तीर्थ यात्रा पर जाता है हम तो कश्मीर चलते है " चमेलिया जी ने शांति से कहा |
"ठीक है हम कश्मीर ही चलते है " घिसु ने कहा
ये सुनते ही चमेलिया जी को ४४० वॉल्ट का झटका लगा गया चेहरे का रंग उड़ गया काटो तो खून नहीं |
बोली " बस इतना ही, तुम मान गये, क्या तुम मेरी बात का विरोध नहीं करोगे "
"क्यों भाई मैं तुम्हारी बात का क्यों विरोध करूँ सही ही कह रही हो ये हमारे तीर्थ यात्रा की उम्र थोड़े ही है | " घिसु ने बड़े आराम से कहा |
" फिर भी तुम कुछ और ही बात का विरोध करो कहो की हम कश्मीर नहीं कही और ही जायेंगे | " चमेलिया जी ने माथे पर सिकन लाते हुए कहा |
" लेकिन क्यों भला कश्मीर तो ठीक ही है जम्मू तक की तो हमारी टिकट है ही आसानी होगी "
" फिर भी पत्नी का कुछ तो विरोध करो कैसे मर्द हो चुपचाप पत्नी की बात मान ली मर्द नहीं कम से कम पति बनो और मेरी बात का विरोध करो और जोरू का ग़ुलाम मत बनो पत्नी की कोई भी बात मानने वाला जोरू का ग़ुलाम हो जाता है | "
अब घिसु को लगा की कुछ तो गड़बड़ है बोला " क्या बात है कुछ सीधा सीधा बताओ "
" मैं क्या बताऊ पूरे दो घंटे की मेरी सारी मेहनत बेकार कर दी, दो घंटे से सोच रही थी की तुम आओगे और मेरी बात का विरोध करोगे और मैं अपनी बात मनवाने के लिए दुनिया जहान के तर्क दूंगी न जाने कहा कहा से तर्क लिंक रिफरेंसे ढूँढ कर लाई थी कि जैसे जैसे तुम मेरी बात का विरोध करोगे वैसे वैसे नए तर्क नए लिंक नए रिफ़रेंसेस रख रख कर तुम्हारी बातों का जवाब दूंगी | अंत में बहस में मेरी ही जीत होगी | "
घिसु सर खुजाते हुए बोला " तर्क लिंक रिफरेन्स बहस इ का बाला है | इ बहस क्या होता है और ई तर्क लिंक विंक से का होगा |"
" इतना भी नहीं जानते बहस करने से व्यक्ति की समझदारी का पता चलता है |"
" समझदारी का पता बहस से चलता है जो बहस ना करे तो "
" तो उसे समझदार विद्वान नहीं माना जाता है | "
" और तर्क लिंक देने से का होता है |"
" बहस करने वाला जितने अच्छे तर्क देता जाता है और अपनी बात को साबित करने के लिए जितने लिंक देता जाता है वो उतना ही विद्वान समझा जाता है | "
" अच्छा ऐसा करने वाले को लोग विद्वान समझने लगते है | "
" लोगों का तो पता नहीं पर वो खुद को विद्वान ज़रुर समझने लगता है | "
" तो ई बहस किया क्यों जाता है "
" ताकि दूसरे से अपनी बात मनवाई जा सके "
" तो क्या बहस के अंत में बहस करने वाले एक दूसरे की बात मान जाते है "
" अरे कोई दूसरे की बात मानने के लिए बहस थोड़े ही करता है वो तो अपनी बात मनवाने के लिए बहस करता है |"
" तो अंत में कौन किसकी बात मानता है "
" अंत में कोई किसी की बात नहीं मनाता है दोनों अपनी ही बात पर अड़े रहते है |"
" जब दोनों अपनी ही बात पर अड़े रहते है तो बहस करने का फायदा क्या |"
" अरे बहस करने से हम अपनी ही बात को साबित करने के लिए की नए तर्क जान जाते है और अपनी बात पर और अड़ जाते है |"
" वैसे ये बताओ की तर्क लाते कैसे है उन्हें पता कैसे चलता है की दूसरा कब कौन से तर्क रखने वाला है |"
" ये तो अकेले शतरंज खेलने जैसा है दोनों तरफ की चाल खुद ही सोचनी पड़ती है नहीं तो तुमको क्या लगा की बहस करना इतना आसान है |"
" और ई लिंक रिफरेन्स का क्या मतलब है |"
" उन लोगों का नाम पता जो आप की तरह ही सोच कर आप की तरह ही बात करते है | "
" कोई महान लोग |"
" ए लो तुमको किसने कहा की महान लोग होते है | किसी का भी नाम ले लो जो तुम्हारी तरह सोचते है | चाहे पनवारी का नाम लो चाहे बनवारी का चाहे ट्रक के पीछे लिखे इबारत का ही लिंक दे दो बुरी नजर वाले तेरा मुँह काला | जो तुम्हारी तरह सोचे वो सब महान तुम्हारी तरह विद्वान | पर एक बात बताइए घिसु जी कब से आप बहस करने पर बहस करते जा रहे है पर जिस बात पर बहस करनी है उसपे क्यों नहीं करते है |"
" पर ये बताओ की जब मैंने तुम्हारी बात बिना बहस के मान ली है तो बहस करने की अब क्या जरुरत है |"
" लेकिन जो मैंने इतने तर्क जुटाए है वो तुमको नहीं बताउंगी तो मैं समझदार कैसे कहलाउंगी | अच्छा ठीक है तुम बहस नहीं करना चाहते हो तो हम विचार विमर्श कर लेते है |"
" अब ई विचार विमर्श क्या है |"
" देखो इसमे कोई लफड़ातुमको कश्मीर जाने के फायदे गिनाती जाउंगी और तुम सभी को मानते जाओगे फिर मैं पूरे टूर का कार्यक्रम बनाउंगी और तुम उन सब को सुन कर वाह वाह करोगे और मानते जाओगे | तुम्हारा काम बस मेरी हा में हा मिलाना होगा |"
" इससे क्या फायदा होगा |"
" इससे फायदा ये होगा की तुम मेरी हर बात का समर्थन कर चुके होगे फिर तुम किसी बात से पलट नहीं सकोगे अब ये सारा कार्यक्रम सिर्फ मेरा बनाया हुआ नहीं कहा जायेगा फिर कहा जायेगा की ये हम दोनों ने मिल कर विचार विमर्श करके बनाया है | टूर अच्छा गया तो सारा क्रेडिट मेरा यदि कोई गड़बड़ी हुई तो सब दोष तुम्हारा "तुमने पहले क्यों नहीं बताया तुम किसी काम के नहीं हो सब मैंने किया एक चीज भी तुम ध्यान नहीं दिला सकते थे " मैं ऐसा उस समय कह सकती हुं |"
" अगर मैं तुम्हारी बात ना मनु और किसी बात को काट दू तो |"
" तो क्या ! फिर मैं कहूँगी की तुम हमेशा बहस करते रहते हो विचार विमर्श करने की बौद्धिक क्षमता तुम में नहीं है | वैसे तो ये जूमला महिलाओ के लिए होता है | पर मैं तुम्हारे लिए भी ये चला लुंगी |"
" पर तुम्हें पता है चमेलिया शास्त्रों में लिखा है की हर पत्नी को अपनी पति की बात माननी चाहिए |"
ये सुनते ही चमेलिया जी का चेहरा गुस्से से तमतमा गया गुस्से में बोली " मैं जानती थी तुम हो तो आखिर मर्द, वो भी पति , मर्दपना कहा जायेगा आगये ना अपनी पर |"
बेचारा घिसु हडबडा गया की उसने ये क्या कहा दिया की शांत सी दिख रही सीता साक्षात काली का रूप धर लिया बोला " शांत देवी शांत भक्त आप से क्षमा मागता है मैंने ऐसा क्या कह दिया की आप ने ये रौद्र रूप धारण कर लिया |"
घिसु को क्षमा मांगता देख चमेलिया जी का गुस्सा शांत हो गया बोली " जब तुम मर्दों की हमारे आगे कुछ नहीं चलती है तुम हमारे सवालों का जवाब नहीं दे पाते हो तो तुम शास्त्रों की बात करके शास्त्रार्थ करने लगते हो |"
" पर मैंने कब शास्त्रार्थ किया आप से, मैं तो सीधा साधा प्राणी कुछ बोल ही नहीं रहा हुं सिर्फ गलती से शास्त्र का नाम भर लिया है |"
" अभी अभी तुमने शास्त्रों की बात की है ना जानते हो की महिलाएँ शास्त्रार्थ नहीं करती है | ये काम सिर्फ विद्वान पुरुषों का है महिलाओ का ये करना वर्जित है |"
" वैसे शास्त्रार्थ का मतलब क्या होता है और ये महिलाओ के लिए वर्जित क्यों है |" घिसु ने डरते डरते धीरे से पूछा |
" शास्त्रार्थ का अर्थ होता है जब दो विद्वान पुरुष अपने अपने मतलब की बात शास्त्रों से उठाते है या शास्त्रों की बातों की व्याख्या अपने मतलब के हिसाब से करते है | जब जरुरत हो तो शास्त्रों की बात मान लो जब उसे मानने से तुम्हारा नुकसान हो तो उसे मानने से ही इंकार कर दो या ये कह दो की ये तो बाद में कुछ मेरे विचारों के दुश्मनों ने जोड़ दिया है ,ये शास्त्रों का अंग है ही नहीं और रही बात महिलाओ की तो उन्हें हमेशा इससे दूर रखा गया एक तो उन्हें विद्वानों कि श्रेणी में नहीं रखा जाता है दूसरे उन्हें भी विद्वान पुरुष अपने लाभ और मतलब के हिसाब से शास्त्रों की व्याख्या करके बेफकुफ़ बनाते रहे | उन्हें शास्त्र के हिसाब से चलने का प्रवचन देते रहे और खुद उससे दूर रहे |"
" अब ये बताओ की बहस और शास्त्रार्थ में अंतर क्या हुआ |"
" हे प्रभु तुम तो सच में पति मैटेरियल से परिपूर्ण हो तुमको महिलाओ की बेकार की बहस और विद्वान पुरुषों के बीच के शास्त्रार्थ में कोई अंतर ही नहीं लग रहा है |" चमेलिया जी ने दोनों हाथ जोड़ कर ऊपर वाले को धन्यवाद दिया " हे प्रभु आप का धन्यवाद जो आप ने हमें घिसु जैसा पति दिया | समझ गई अब ये मुझे जीवन भर नहीं चरायेगा |"
अपने आस पास लोगों को बेमतलब की बहस करेते हुए देख कर और महिलाओ की काम की ज्ञान वाली बातो को भी बेकार कह कर ख़ारिज करते देख कर ये पोस्ट की उपज हुई थी | खुद मुझे भी कई बार इस तरह की बातो का सामना करना पड़ा है जब मेरी बात को महिला होने के कारण काट दिया गया और वही बात जब किसी पुरुष ने कही तो उसे विद्वान कह दिया गया | ऐसा बहुत सी महिलाओ के साथ हुआ होगा और बहुत से पुरुष भी कुछ लोगों की बेमतलब की बहसों से परेशान हुए होंगे |
good one anshumala keep it up
ReplyDeleteलोक व्यवहार के मर्मज्ञ डेल कारनेगी का कथन है कि बहस से सर्वश्रेष्ठ नतीजा प्राप्त करने का तरीका ही यही है कि बहस न की जाए।
ReplyDelete---------
त्रिया चरित्र : मीनू खरे
संगीत ने तोड़ दी भाषा की ज़ंजीरें।
संदर्भ क्या है?
ReplyDeleteबिना रेफरन्स के कुछ समझ नहिं आया।:)
तर्क लिंक रिफरेन्स बहस इ का बाला है...:P
ReplyDeleteachchha laga!
अंशुमाला जी,
ReplyDeleteसंदर्भ मैने किसी ब्लॉग के किसी विवाद इंगित नहिं किया था।
मैने तो टिप्पणी में चर्चा की जगह घिसु वाला व्यवहार अपनाया था। एक चुहल की तरह।
हा हा हा
ReplyDeleteसुज्ञ जी माफ़ कीजियेगा मै उसे समझ ही नहीं पाई | चलिये आप का नाम स्पष्टीकरण से हटा देती हु पर स्पष्टीकरण रहने देती हु ताकि किसी और को ये ना लगे |
अरी बहिना ये व्यंग के ऐसे चुभते हुए बाण ना मारा करों बहुते दर्द होता है. और हम तो सामने वाले के हाथ में तीर कमान देखते ही अपनी पीठ दिखा देते हैं. सोचो तुमरे तीर कहाँ कहाँ चुभे होंगे.... वैसे हम तो कृपालु महाराज जी के चेले हैं. उन्हीने सिखाया है कि अपना अनुभव चाहे जो कुछ भी हो पर अपने हर तर्क के समर्थन में कहा करो कि ये बात फलां किताब के फलां पृष्ठ कि फलां पंक्ति में लिखी है.
ReplyDeleteअरी मैया री ! दर्द बहुते है.....
mujhe to kuch samajh nahi aaya....
ReplyDeleteबहस नही तो विचार विमर्श! बहस और शास्त्रार्थ में अंतर!!
ReplyDeleteबहुत ही विचारणीय और बौद्धिक विष्लेषण किया.
" हे प्रभु आप का धन्यवाद जो आप ने हमें घिसु जैसा पति दिया | समझ गई अब ये मुझे जीवन भर नहीं चरायेगा |"
मजेदार सटीक.
खुद मुझे भी कई बार इस तरह की बातो का सामना करना पड़ा है जब मेरी बात को महिला होने के कारण काट दिया गया और वही बात जब किसी पुरुष ने कही तो उसे विद्वान कह दिया गया!!!
अब बेचारा घीसू और क्या करे?:)
सभी तरह के रंग और व्यंग समेटे शानदार रचना के लिये बधाई और शुभकामनाएं.
रामराम.
यह घीसू बेचारा मेरे जेसा होगा, जो ब्लांग मे कभी बहस नही करता, बल्कि बहस देख कर, ओर टांग खींचने वालो को देख कर सोचता जरुर हे कि इन्हे क्या मिलता हे, बेचारा घीसू जी...इस महान रचना के लिये धन्यवाद
ReplyDelete.
ReplyDelete.
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खुद मुझे भी कई बार इस तरह की बातो का सामना करना पड़ा है जब घर में मेरी बात को पुरूष होने के कारण काट दिया गया और वही बात कुछ समय बाद जब घर की किसी महिला ने कही तो उसे सही कह दिया गया !!!
... :(
...
@ रचना जी
ReplyDeleteधन्यवाद |
@ रजनीश जी
जरुर ये मर्मज्ञ डेल कारनेगी कोई बड़े महान आदमी है उनकी बात सही ही है मेरी सोच उनसे मिलती है |
@ सुज्ञ जी
रेफरेंस देती तो अभी ही हमारी बहस हो जाती और पोस्ट पर २०-२५ टिप्पणिया हम दोनों की ही होती :)))
@ मुकेश जी
धन्यवाद
@ दीप जी
धन्यवाद | आज ब्लॉग जगत में मुझे एक भाई और मिल गया वैसे आप बड़े भाई बनेगे की छोटे | बहन की बात मानिये तो हल्दी वाला दूध पी लीजिये या कपोत की तरह एक टांग पर खड़े हो कर योग कीजिये दर्द से कुछ आराम मिलेगा | ई उपाय फला किताब की फला पेज की फला पंक्ति में लिखा है |
@ शेखर जी
मुझे तो ये समझ नहीं आया की ब्लॉग अपने आप कैसे गायब हो जाता है मुझे तो अपने ब्लॉग की चिंता हो रही है मेरी तकनीकी जानकारी तो काफी काम है | वैसे आप का ब्लॉग तीन दिन से ओपेन नहीं हो रहा था | नए ब्लॉग के लिए शुभकामनाये |
@ ताऊ जी
" बौद्धिक विष्लेषण " वो भी मैंने किया | पूरे एक किलो मिठाई मगाई है इसको पढ़ने के बाद |
@अब बेचारा घीसू और क्या करे?:)
सबको अपने जैसा पति बनने की ट्रेनिंग दे
धन्यवाद
मेरी तरफ से सीता सीता
@ राज भाटिया जी
कभी कभी तो चुपचाप बहस देखने में भी बड़ा मजा आता है और हम मन ही मन सोचने लगते है की अब कौन, कौन सा तर्क देने वाला है |
@ महान रचना
ये महान सच वाला है या पनवारी वाला है |
@ प्रवीण जी
मै वो लाइन लिखते हुए काफी सीरियस थी वो मजाक नहीं था | पर आप की बात बिल्कुल सच है कुछ मसालों पर हम महिलाएँ मान कर चलते है की इस पर कोई पुरुष बोलेगा तो जरुर वो बिना सर पैर का होगा उसे तो सुनना ही नहीं है | आप के घर पर आप की बात सुन ली जाती है आप इसी बात का शुक्र मनाईये :))))
ज़बरदस्त व्यंग जो विचारणीय पहलू भी रखता है.....
ReplyDeleteअंशुमाला जी,आप यूँ ही परेशान है अब बहस में जीता कैसे जाता है इसके गुर महिलाओं को नहीं आते तो इसमें बेचारा पुरूष क्या करे ?उससे कुछ सीखने के बजाय उसको दोष देना कहाँ तक सही हैं?अरे भई कितना आसान है,कोई महिला बहस में आप पर हावी हो रही हैं उसकी बातों का आपके पास कोई तोड नहीं है या उसकी कोई बात आपको पसंद नहीं आ रही है (भले ही मन ही मन उससे सहमत ही क्यों न हो)तो एक काम कीजिए फट से उसके तर्कों को उसका बचपना कह दीजिये,कुतर्क बता दीजिये बेचारी की आधी हिम्मत वहीं जवाब दे जाएगी फिर भी बात न बने तो कह दीजिऐ कि आपको इस विषय की नॉलेज ही नहीं है पहले अपनी जानकारी दुरूस्त कीजिए फिर आईयेगा बस हो गया काम अब अपनी जीत को सेलिब्रेट कीजिये वैसे तो ये सारे तरीके उन महिलाओं के लिये ही होते हैं जो ज्यादा बोलना सीख गई है लेकिन कई बार औरतो की बातों में आ जाने वाले भटके हुए पुरूषों पर भी ये तरीके इफैक्टिव है(अब हम क्या बताऐं हम तो खुद कई बार के भुक्तभोगी है परंतु हम है बहुत ढीठ सुनेंगे सबकी पर करेंगे अपनी) .अब आप ही बताइये क्या ये तरीके महिलाओं के लिऐ इतना मुश्किल है जो वे सीख ही नहीं सकती?इन्हे आजमाईये और आप भी पुरूषों की बौलती बन्द कर दीजिये . लेकिन नही... मैं जानता हूँ कोई महिला ये नही करेगी.उन्हें तो चाहिये साफ सुथरी बहस जो केवल तर्क आधारित हो.अब हम तो आपको कुछ टिप्स दे दिये है इन्हें अपनाना न अपनाना आपकी मर्जी है और यदि आप न भी अपनाऐं तो कम से कम ये घीसू कहीं मिले तो इसे जरूर बताय देना.....और हाँ मेरे इस कमेंट को किसी विशेष संदर्भ में बिल्कुल न देखें.हम तो बस यूँ ही कह दिये है.
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ReplyDeleteबेहतरीन पोस्ट लेखन के बधाई !
आशा है कि अपने सार्थक लेखन से,आप इसी तरह, ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।
आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है-पधारें
अंशुमाला जी, आपकी चमेलिया जी का ईमेल ऐड्रेस तो दीजिये - ब्लॉग गुरू मानने का मन कर रहा है।
ReplyDeleteवैसे घिसु भी कम नहीं है, बहस वाली जगह पर विचार विमर्श वाला फ़ार्मूला लगा रहा है और जहाँ विचार विमर्श की जरूरत है, उधर बहस कर रहा है - पक्का ब्लॉगर है।
लिंक\रेफ़रेंस नहीं दिये आपने, कोई बात नहीं लेकिन इनकी यात्रा के फ़ोटो डाल देतीं तो ये तो पता चल जाता कि आखिर गये कहाँ थे ये घूमने के लिये। या फ़िर ’दो बांके’ वाली कहानी की तरह अंत में वही ’मुला खूब स्वांग रचायो’ वाली बात चरितार्थ करके कठौती में गंगा मान ली।
बहुत सीरियस व्यंग्य लिखती हैं आप, सच में।
सिर्फ एक शब्द....:----- ग़ज़ब...
ReplyDeleteहे प्रभु तुम तो सच में पति मैटेरियल से परिपूर्ण हो
ReplyDeleteहा हा मस्त :)
बहुत अच्छा लगा ये पोस्ट..चमेलिया और घिसु जबरदस्त हैं जी..
बहुत अच्छा व्यंग रहा ये...
@ मोनिका जी
ReplyDeleteधन्यवाद
@ राजन जी
वैरी बैड वैरी बैड ऐसी बाते नहीं करनी चाहिए | मेरी पोस्ट विवादित हो जाएगी |
@ शिवम जी
मेरी पोस्ट अपनी वार्ता में शामिल करने के लिए धन्यवाद |
@ संजय जी
इस भली फ़ीमेल का ईमेल बताने से पहले उनके मेल घिसु जी से पूछना पड़ेगा |
चमेलिया जी भी कच्ची ब्लॉगर नहीं है देखिये पहली मुलाकात में ही आप गुरु बनाने के लिए तैयार हो गए |
फोटो कैसे दिखाए सब घिसु की गलती है कैमरे में रील डालना भूल गया था |
@ महफूज जी
सिर्फ एक शब्द ........ धन्यवाद |
@ अभी जी
जोड़ी सीधे राम ने जो बनाई है तो ज़बरदस्त तो होंगे ही |
इस बार तो बड़े बदले बदले अंदाज़ नज़र आतें है ;)
ReplyDeleteजारी रखिये ....
सुन्दर बौद्धिकता से परिपूर्ण पोस्ट...तर्कों की सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteमुझे लगता है कि ‘घीसू’ और `चमोलिया’ तो एक बहाना थे...आपने उन्हें प्रतीक-रूप में प्रयोग किया है! आप तो तर्क....बहस...शास्त्रार्थ ...आदि को ही अपना अभीष्ट बनाकर चली थीं...मेरे ख़्याल से!
इस सुन्दर पोस्ट के लिए बधाई!
हम तो बिना बहस मान लेते है जी आपकी बात। बस इस बात पर बहस मत करना कि कैसे मान लिया? हा हा हा हा। बहुत अच्छा व्यंग्य।
ReplyDeleteबड़े धीरज से बनाई है आपने यह पोस्ट, हमारी तो स्पीड धीरे-धीरे बढ़ती ही गई और सरपट ही आ गए यहां.
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