December 14, 2019

भूख और खाने का कदर --------mangopeople



                                 बिटिया जन्म लेने के पहले ही  खाने को लेकर नखरे बाज थी | दो दो बार उन्होंने माँ के पेट में खाना  पीना छोड़ अपना ग्रोथ रोक लिया था , मजबूर हो कर उन्हें समय से पहले बाहर लाना पड़ा था  | जन्म के बाद भी ये जारी रहा हम सहते रहे हर तरह का मान मनौवल करते रहें | नतीजा हमेशा अपने उम्र से उनका वजन बहुत कम होता |

                                 जब कुछ बड़ी  हुई तो जरुरी लगा कि इन्हे समझाया जाए कि खाने का  महत्व क्या हैं और भूखे होने के कष्ट कैसा होता हैं |  तो उन्हें धमकी दी जाती कि खाने से मना करोगी तो खाना ही नहीं दिया जायेगा | कई बार धमकी देती लेकिन फिर मन नहीं मानता कि कैसे उसे भूखा रखूं | खासकर स्कूल से जब आतीं तो लगता सुबह की भूखी हैं टिफिन बॉक्स भी वैसे ही वापस आ गया हैं अब कैसे खाना खिलाने में देर कर सकती हूँ |

                               फिर होता ये हैं कि दो चार बार धमकी देने के बाद बच्चे समझ जाते हैं कि मम्मी खाना तो दे ही देगी या खिला देगी उसकी सुनने की जरुरत नहीं हैं |  फिर वो ऐसी धमकियों को भाव नहीं देते | लेकिन मैं थी तो उनकी अम्मा ही उन्हें समझाने  के लिए उनके  पापा जी से मिली भगत किया गया |
पापा जी को बता दिया गया कि किसी दिन मैंने गुस्से में उसे खाना  नहीं दिया तो ये तुम्हारी ड्यूटी हैं कि तुम कुछ देर बाद उसे समझाओगे , मुझे सॉरी बोलवाओगे और हर हाल में उसे खाना खिलाने के बाद ही सुलाओगे |  बिना खाये वो सो गई तो समझना तुम्हे भी खाना नहीं मिलेगा | उसे समझना चाहिए कि मम्मी सच में ऐसा कर सकती हैं | दो तीन बार में ही कुछ घंटों की भूख ने उन्हें भूख के कष्टों को समझा दिया |

                              लेकिन खाने की कदर करना अभी बाकी था | एक दिन उन्हें स्कूल से लेकर आ रही थी सिग्नल पर एक भिखारी बच्चा आया और कार का शीशा नॉक कर खाना मांगने लगा | बच्चे की हालत ठीक नहीं थी म   मैंने बिटिया से कहा तुम्हारा टिफिन बॉक्स में खाना बचा होगा दो इसे दे देतीं हूँ | पहली बार उनका ध्यान भिखारियों पर गया था और वो पूछने लगी कोई बच्चा इस तरह सड़क पर मुझसे खाना क्यों मांग रहा हैं |

                             घर आ कर उन्हें अच्छे से बताया गया कि कितने लोगों को दुनिया में  खाना नहीं मिलता वो भूखे सोते हैं  और तुम खाना छोड़ देती हो फेक देती हो | मुझे उम्मीद नहीं थी कि वो इस चीज को बहुत अच्छे से एक बार में ही समझ जाएँगी , लेकिन वो समझ गई |

                            वो दिन हैं और आज को दिन ,  वो कभी खाने को नहीं फेकती हैं | ना ना वो अपनी थाली का खाना आज भी पूरा ख़त्म नहीं करती , असल में वो थाली का बचा हुआ खाना या तो अपने पापा को जबरजस्ती खिला कर ख़त्म करतीं हैं या थाली समेत बचा खाना फ्रिज में चुपके से रख देतीं हैं | एक टुकड़ा रोटी छूटा हो या एक दो आलू का टुकड़ा सब मेरे फ्रिज में जाता हैं , जूठी थाली समेत और बाद में जब मुझे दिखता हैं तो वही मेरा उन पर चीखना चिल्लाना आज भी जारी ही हैं | मेरे इन कष्टों से मुझे आज भी मुक्ति नहीं मिली , मेरा चिल्लाना आज भी अनवरत जारी हैं , पता नहीं ये कब उन्हें  समझ आएगा |

#मम्मीगिरि

1 comment:

  1. वाह अंशुमाला जी , बहुत ही प्यारी पोस्ट है आपकी | मुझे मेरी दादी की सीख याद आ गयी जो वह हम बच्चों को बचपन में दिया करती थी और कुछ इसी तरह से खाने का महत्व बताती थी | खाते पीते घरों में अक्सर बच्चे खाने को लेकर ये अरुचिकर रवैया अपनाते हैं , उन्हें समझाने के लिए उन्हें ऐसे लोगों को दिखाना और उनकी संवेदनाओं को जगाना जरूरी है |सुंदर लेख और रोचक लेखन शैली के लिए बधाई |

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