सबसे पहले आप से अपना बिहार से जुड़ा अनुभव बताती हुं | बिहार का जिक्र हो और वहा के पहले के ( अब का पता नहीं ) बदहाल सड़को को जिक्र ना हो ये नहीं हो सकता | हम अपने परिवार के साथ भुनेश्वर जा रहे थे सड़क के रास्ते से हम पहले भी सड़क के रास्ते काफी घूमते फिरते थे सो हम सब ने हमेशा की तरह पहले सारा प्लान बना लिया, चुकी हमें बिहार की सड़को का अंदाजा था सो तय हुआ था कि वहा पर तो गाड़ी ४० से ऊपर की स्पीड से नहीं चलेगी सो पहले से तय कर ले की रात में किस किस शहर में रुकना है | पर जब हम बिहार में प्रवेश किये तो पता चला की वहा तो आप २० की स्पीड से ऊपर चल ही नहीं सकते थे और इस तरह के रास्ते कई किलोमीटर तक होते थे | हमारा बनाया सारा प्लान बेकार हो गया हम रात तक उन शहरों तक पहुंच ही नहीं सके जहा पर हमने रुकने का सोचा था और हमें हाइवे पर बने एक गंदे से होटल में रात डर डर कर गुजरना पड़ा | ये था सड़को का हाल फिर कानून व्यवस्था का हाल देखिये | वापसी के समय वही बात हुई रात एक बजे हमें पुलिस ने रोका और पूछ ताछ शुरू की और सीधा कहा की आप इतनी रात को बाहर क्यों है आप को पहले ही किसी शहर में रुक जाना था यहाँ इतनी रात को सड़क पर परिवार के साथ रहना ठीक नहीं है | धनबाद वहा से कुछ दूरी पर था हमने उन्हें बताया की हमारे रिश्तेदार वहा है हम उन्ही के घर रुकने वाले है ( ऐसा था नहीं ) इसलिए किसी और शहर में नहीं रुके | उसने कहा की आप तुरंत यहाँ से जितनी जल्दी हो धनबाद पहुचिये | बोलिये पुलिस को भी ये बाते कहनी पड़ रही थी ,वो लालू राज का समय था |
बिहार चुनावों में नितीश कुमार की जीत कोई अप्रत्याशित नहीं थी सभी को इसका अंदाजा था लेकिन शायद ही किसी को इतने बड़ी जीत का अंदाजा रहा होगा | कहा जा रहा है इसका कारण है उनके द्वारा बिहार में किया गया विकास कार्य और जनता ने उसी को वोट किया है | एक लम्बे समय से भारत में होने वाले हर चुनावों में जाति और धर्म एक बड़ा कारक रहा है | सारी चुनावी रणनीति इसी के आस पास बुनी जाती थी | पर अब ये बदल रहा है कई चुनावों में इसकी एक झलक दिख रही है मध्य प्रदेश , छत्तीसगढ़ ,दिल्ली गुजरात ,आंध्रप्रदेश और अब बिहार में जनता ने जाति और धर्म से ऊपर उठ कर विकास के नाम पर वोट दिया है | जिन नेताओं ने काम किया प्रदेश का विकास किया वो लौट कर सत्ता में वापस आये और जो केवल जाति धर्म के आधार पर चुनावों में आये और काम कुछ नहीं किया वो सत्ता से बाहर हो गए जैसे की राजस्थान में |
ये हमारी लोकतांत्रिक प्रणाली के लिए एक अच्छी खबर एक शुभ संकेत है | नहीं तो जाति और धर्म के समीकरण ने देश के विकास को काफी अवरुद्ध कर रख था | जनता को जाति और धर्म के नाम पर डरा डरा कर विकास के मुद्दों से ध्यान हटा दिया जाता था | कभी अगड़ी जातियों का डर दिखा कर कभी बहुसंख्यको का डर दिखा कर वोटों का ध्रुवीय करण किया जाता था और इसी गणित से, बिना काम किये ही लोग चुनाव जीत भी जाते थे |
पर कहते है ना की आप किसी को एक बार बेफकुफ़ बना सकते है दो बार बना सकते है बार बार भी बना सकते है पर आप किसी को हमेशा बेफकुफ़ नहीं बना सकते है | अभी तक जनता बेफकुफ़ बनती रही पर अब उसे समझ आ रहा है कि वो इन चक्करों में पड़ कर क्या खो रही थी अपना ही नहीं पूरे देश का नुकसान करा रही थी | पर अब नेताओं को समझ लेना चाहिए की जनता तो उनके सारे जाति धर्म वाले चक्करों से बाहर आ गई है और अब उन्हें प्रदेश और देश के विकास का काम करना ही पड़ेगा यदि वो दुबारा सत्ता में आना चाहते है तो | अब उनके गणित लोगों को समझ आने लगे है और लोग उनका हल भी जान गये है और अपने वोट देने की ताकत को भी पहचान गये है |
ये तो हुई जनता की बात पर क्या हमारे राजनीतिक दल और नेता इस जात पात और धर्म सम्प्रदाय की सोच से बाहर निकल पाए है शायद नहीं , तभी तो क्षेत्र देख कर उम्मीदवार खड़े किये गए जिस क्षेत्र में जिस जाति के लोग ज्यादा है जिस धर्म के लोग ज्यादा है वहा पर उसी धर्म या जाति के लोगो को उम्मीदवार बनाया गया क्यों ? शायद हमारे नेता अभी इससे बाहर नहीं आ पाए है | चलिए उम्मीद करते है कि जनता ने अब नेताओ का ये भ्रम तोड़ दिया होगा की वो जनता को हमेसा बेफकुफ़ बना सकते है | जनता जरा सयानी होने लगी है और अब अपना हक़ लेना सिख रही है | हमारे लोकतंत्र के लिए यह एक शुभ संकेत है
एक बात नितीश जी के लिए कि पिछले पांच साल काम करके इन चुनावों को जितना बड़ा आसन काम था क्योकि उनके काम की और राज की तुलना लालू के किये कामो ( जो की उन्होंने कभी किया ही नहीं ) और उनके राज करने के तरीके ( जो उनको आता नहीं था ) से होती थी किन्तु अब उनकी तुलना और उनके किये काम की समीक्षा देश के अन्य राज्यों से होगी सो वो अब पहले से ज्यादा कमर कस कर तैयार हो जाये आने वाले पांच साल पिछले पांच साल से ज्यादा मुश्किल होने वाले है |
चलते चलते एक और मजेदार बात हुई एक तरफ इस बार महिलाओ को वोटिंग प्रतिशत पुरुषो से ज्यादा था दूसरी तरफ सबसे बड़ी और चर्चित महिला उम्मीदवार राबड़ी देवी दोनों जगहों से चुनाव हार गई | मतलब !!! अब मै क्या कहू आप खुद सोच ले अपनी समझ से |
बिहार आज काफी बदला बदला सा है हालाँकि मैं खुद पिछले ४-५ सालों से बिहार के बाहर ही रह रहा हूँ, लेकिन कभी छुट्टियों में आना होता था तो एक सुखद अनुभव होता था....
ReplyDeleteनितीश जी के सामने बहुत ही कठिन चुनौती है इतना भरी बहुमत भारतवर्ष के इतिहास में आज तक किसी पार्टी को नहीं मिला है...
मतलब स्पष्ट है उम्मीदें बहुत ज्यादा हैं...और उसपर खरा उतरना एक चैलेंज...
और हाँ अब सडकें पहले से काफी अच्छी हैं उम्मीद हैं अब और सुधरेगी हालत....
हालाँकि अभी उनकी नज़र सड़कों से ज्यादा उन भ्र्स्ताचारियों पर हैं जो कला धन जमकर बैठे हुए हैं...
उन्होंने कल साफ़ कर दिया गया ऐसी नाजायज इमारतों को जब्त करके वहां विद्यालय और अस्पताल खोले जायेंगे...
इशारा साफ़ है....
एक नई क्रान्ति (सोच समझ कर वोट देना) की शुरूआत हो चुकी है
ReplyDeleteजनता जागरूक होने लगी है
धीरे - धीरे पूरा भारत बिहार का अनुशरण करेगा यही आशा करता हूं
हम भी विकास के पक्षधर हैं,खुशहाली के पक्षधर हैं। तो बिना किसी को कोसे यह कहते हैं कि आगे आगे देखिए होता है क्या।
ReplyDeleteलोकतांत्रिक देश उतना ही ज्यादा उन्नत होगा, जितनी ज्यादा जागरूक उसकी जनता होगी, बिहार सरकार विकास को मुद्दा बना कर वोट मांगने गयी थी और उसे मिले, ये वाकई में शुभ संकेत है... इसी तरह पूरे देश में विकास के मुद्दे की ही की लहर चले तो इससे बढ़िया और क्या बात हो सकती है ....
ReplyDeleteहमारे लोकतंत्र के लिए यह एक शुभ संकेत है ..
ReplyDeleteफिलहाल तो इतना ही कह सकते हैं ..."आमीन "
@ शेखर जी
ReplyDeleteबस जो कहा है वो कर दे तो भी बिहार काफी आगे निकाल जायेगा |
@ deepak saini
जी हा बात तो तभी बनेगी जब पूरा भारत यही करे |
@ राजेश जी
सही कहा बहुत सी बाते तो भविष्य में पता चलेंगी |
@ मजाल जी
जागरूकता देश की कई समस्याओं का हल निकाल सकती है |
@ शिखा जी
" आमीन "
अजी जब इरादा नेक हो तो भविष्य में भी अच्छा ही देखने को मिलेगा। आपने हामारे राज्य का जिक्र किया, अच्छा लगा।
ReplyDeleteजनता जागरूक हो गई है भाई...शुभ संकेत.
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ReplyDelete4.5/10
ReplyDeleteपरिवर्तन सुखद है.
बिहार के बाहर आम जनमानस के पास जो भी जानकारी है वो मीडिया द्वारा प्राप्त जानकारी है या फिर ऊपर-ऊपर का दर्शन.
बिहार के बारे में प्रतिक्रिया देने से पहले वहां एक-दो साल रहना बहुत आवश्यक है. बिहार का कायाकल्प सड़कें, बिजली और पुल से नहीं होने वाला.
मजबूरीवश गरीब होना जुदा बात है किन्तु गरीबी में रहने की लत पड़ जाए तो ? जनचेतना के दर्शन अभी भी वहां के अनगिनत क्षेत्रों में दुर्लभ हैं. शिक्षा व चिकित्सा की हालत बेहद कंडम है. वहां के लोगों में मानसिकता में बदलाव अभी भी बहुत दूर की कौड़ी है, जिसे मैं सर्वाधिक महत्वपूर्ण चीज मानता हूँ. इसके लिए सरकार पहले भी उदासीन थी और अब भी है.
मीडिया द्वारा दी गयी जानकारी पर यकीन करने से बेहतर है कि वहां कार्यरत किसी एन.जी.ओ. से पूछिए.
हमारे लोकतंत्र के लिए यह एक शुभ संकेत है - - - - - - -
ReplyDeleteयक़ीनन :)
अब लोग धर्म या जाति के नाम पर राजनीति करने वालो से उकता चुके है जनता को केवल विकास से मतलब है ।नितीश ने बिहार में न सिर्फ कानून वयवस्था को सुचारू किया बल्कि युवाओं महिलाओं मजदूरों आदि सभी वर्गो को संतुष्ट करने की कोशिशें की ।राज्य में केन्द्र द्वारा चलाई जा रही रोजगार गारंटी योजना के सही क्रियान्वन के कारण बिहार से मजदूरों का पलायन रूक गया इसका फायदा भी नितीश को मिला ।परंतु आपका कहना सही है कि अब उनके सामने कही बडी चुनौती है।एक क्षेत्र जिस पर अब उन्हें ज्यादा ध्यान देना होगा वह है कृषि ।वैसे बिहार के नतीजों से सबसे ज्यादा सीख लेनी चाहिए कांग्रेस को उसे उन राज्यों मे विकास पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए जहाँ उसकी सरकार है ।लेकिन अब लालू क्या करेंगे ?
ReplyDeleteउस्ताद जी थोड़े परेशान लग रहे हैं..इसलिए कुछ भी बोल रहे हैं....
ReplyDeleteअरे जो लोग खुद बिहार के हैं और यहाँ रह रहे हैं... उन्हें मीडिया या अन गी ओ से क्या लेना देना.. क्या वो खुद अपने आस पास हो रहे बदलाव को नहीं देख सकते....
... saarthak abhivyakti !!!
ReplyDelete@ मनोज जी
ReplyDeleteबिहार हमारा पड़ोसी प्रदेश भी है और देश का एक महत्वपूर्ण हिस्सा भी उसके विकास से पूरे देश पर काफी असर होगा |
@ वंदना जी
धन्यवाद
@ उस्ताद जी
आप जो बात कर रहे है उसका जिक्र मैंने पहले ही कर दिया है कि
@उनके काम की और राज की तुलना लालू के किये कामों ( जो की उन्होंने कभी किया ही नहीं ) और उनके राज करने के तरीके ( जो उनको आता नहीं था ) से होती थी किंतु अब उनकी तुलना और उनके किये काम की समीक्षा देश के अन्य राज्यों से होगी |
फिर महत्वपूर्ण मुद्दा तो ये है कि कम से कम जनता तो इन जात पात धर्म के चक्कर से बाहर आ गई है | जितनी सीटें उन्हें मिली है उससे तो यही दिखता है | देश के लिए तो यही शुभ संकेत है कि जनता जागरूक हो रही है विकास के महत्व को समझ रही है |
@ मोनिका जी
धन्यवाद
@ राजन जी
मुझे तो लगता है उन सभी सरकारों को जो चुनावों को जितना बस एक समीकरण मान कर विकास का कम नहीं करते है इन सभी सरकारों से सीख लेना चाहिए जो विकास का काम करके दोबारा और अच्छे बहुमत से सत्ता में वापस आये |
@ शेखर जी
सही बात है बिहार के लोग खुद ज्यादा अच्छे से वहा कि वास्तविक स्थिति को बता सकते है |
@ उदय जी
धन्यवाद |
अंशुमाला जी,
ReplyDeleteलालू १९९० में ४० फीसदी सीटों के साथ सत्ता में आए...१९९५ में उन्हें ५० फीसदी सीटों पर कामयाबी मिली...२००० चुनाव तक लालू की पत्नी राबड़ी देवी के हाथ में बिहार की बागडोर थी...लालू को उस चुनाव में ५१ फीसदी सीटों पर कामयाबी मिली...इसके बाद लालू का डाउनफॉल शुरू हुआ...पहले फरवरी २००५ और फिर अक्टूबर २००५ में दो बार हुए विधानसभा चुनाव में...लालूराज खत्म हो गया...नीतीशराज शुरू हुआ...नीतीश कुमार ने बिहार में उद्योग की तरह पनप रही अपहरण इंडस्ट्री पर रोक लगाई...अपराधी वहीं पहुंच गए जहां उन्हें होना चाहिए था...यानि जेल में...आम आदमी देर रात तक भी बेखौफ पटना की सड़कों पर निकलने लगा...लोगों को बड़े पैमाने पर विकास नहीं लेकिन काम होता दिखा...नतीजा नीतीश को २०१० के चुनाव में रिकॉर्डतोड़ कामयाबी मिली...लालू-पासवान-कांग्रेस का करीब-करीब सफाया हो गया...लेकिन कहानी यहां खत्म नहीं हो जाती, यहां से शुरू होती है...नीतीश को अक्टूबर २००५ के चुनाव में ६० फीसदी सीटों पर कामयाबी मिली थी जिसे इस बार उन्होंने ८१ फीसदी से ऊपर पहुंचा दिया...बिहार की जनता ने विरोध के सफाये की कीमत पर नीतीश को इस बार जनादेश दिया है...अब नीतीश को बिहार में विकास की रफ्तार को धार देनी होगी...कोई अगर-मगर नहीं...केंद्र के पैसे पर बैठे रहने के भरोसे की जगह खुद ही बिहार को देश के विकसित राज्यों में लाने के लिए अभिनव योजनाएं बनानी होंगी...नीतीश भी ये राजनीति शुरू न कर दें कि केंद्र बिहार के साथ सौतेला व्यवहार करता है...लीडर किसी के पीछे नहीं चलते, बल्कि औरों को अपने पीछे लेकर चलते हैं...नीतीश अब अगले पांच साल आपके लिए करो या मरो वाले हैं...अगर इसमें बिहार नहीं बदला तो जनता आपको बदल देगी...लालू चुप नहीं बैठने वाले हैं...वो सब कुछ खोकर ज़ीरो पर आ चुके हैं...अब यहां से वो और नीचे नहीं जाएंगे, बल्कि ऊपर ही उठेंगे...क्योंकि हमारी जनता बहुत सहिष्णु है...जल्दी ही सब भूल जाती है...नीतीश जी को शुभकामनाएं....
जय हिंद...
बिहार, झारखंड के अपने मित्रों से हाल के वर्षों में जब भी बात हुई है तो सड़कें और कानून-व्यवस्था, इन दोनों विषयों पर कमोबेश लोगों का नजरिया खुशी वाला ही लगा। शुभ संकेत है कि विकास को वोटिंग में तरजीह मिली। कहते हैं, 'power corrupts, absolute power corrupts absolutely' नीतीश इस बार एब्साल्यूट पावर में है। मैं अपनी शुभकामनायें उनकी बजाय बिहार की जनता को देना चाहूंगा क्यूंकि अगर अब नीतीश बदल गये तो खामियाजा जनता ज्यादा भुगतेगी।
ReplyDelete@ खुशदीप जी
ReplyDeleteये बात तो पहले ही लिख दी थी कि
@उनके काम की और राज की तुलना लालू के किये कामों ( जो की उन्होंने कभी किया ही नहीं ) और उनके राज करने के तरीके ( जो उनको आता नहीं था ) से होती थी किंतु अब उनकी तुलना और उनके किये काम की समीक्षा देश के अन्य राज्यों से होगी |
और ये बात नितीश जी भी अच्छे से जानते है तभी बिहार के विकास की जगह बिहार को २०१५ तक एक विकसित प्रदेश बनाने की बात की |
रही केंद्र के पैसे की बात तो कल एक न्यूज़ चैनल पर देखा की पहली से हाल तक के पंच वर्षीय योजनाओं में हमेशा बिहार को दूसरे प्रदेशों के मुकाबले काफी कम पैसा आवंटित होता रहा है | पर हा अब केंद्र सरकार ने पैसा बढाया है पर वो भी अन्य छोटे और विकसित राज्यों के मुकाबले काफी कम है | अब नितीश पैसे निकलवाने में थोड़े सफल हो रहे है और उसका उपयोग भी कर रहे है | बाकी तो भविष्य के गर्त में है बस आम आदमी जागरुक रहे तो वो देश की कई समस्याओं का हल निकाल सकता है |
@ संजय जी
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा की शुभकामनाये तो जनता को ही देनी चाहिए क्योंकि उसने खुद को जाती धर्म से ऊपर उठा कर विकास को महत्व दिया है बस ये हमारे नेता ना फिर बदल जाये या कोई नया शगूफा न पैदा कर दे | जनता की जागरूकता का फायदा भी उसे ही होगा और उसके शिथिल होने का नुकसान भी उसे ही होगा नेता तो हर हाल में मजे से ही रहेगा |
खुशदीप जी की बात से सहमत। लेकिन जनता अब जान गयी है कि उसे क्या चाहिये। बिहार की जनता की जीत के लिये बधाई।
ReplyDeletesabse pahle to main bilkul bhi iss baat se sahmat nahi hoon jo aapne apna anubhav bataya...bihar ki sadke khastahaal hain, lekin jitna aapne bataya utni nahi..............wahan kanun vyavastha ki problem thi..........ya hai...par sayad aisa hi kuchh delhi ka bhi hai....!!
ReplyDeletepata nahi kyon logo ko BIhar ko kosne ki aadat si ban gayee hai....
sorry agar bura laga to!!
waisee ummid bahut hai, kushdip sir ne ek dum sach kaha...
Please Bihar ko Somalia mat feel karwayie......:(
ReplyDelete@ निर्मला जी
ReplyDeleteधन्यवाद |
@ मुकेश जी
ये आज की बात नहीं है ये आज से ११ साल पहले की बात है मैंने लिखा है की वो लालू राज का समय था | मैं जानती हुं की कई बाते मीडिया में बढ़ा चढ़ा कर दिखाई जाती है इसलिए मैंने मीडिया की बात करने की जगह स्वयं का अनुभव बताया था | उसमे एक बात भी झूठ नहीं है | जब कोई गांव क़स्बा आ जाता था तब तो सड़को की हालत इतनी ही बुरी हो जाती थी की आप गाड़ी को २० की स्पीड से ऊपर ले कर नहीं जा सकते थे | कच्ची सड़क पर भी चलना आसान होता है पर वहा का हाल तो बहुत ही बुरा था | अच्छी सड़के भी उतनी अच्छी नहीं थी फर्क तब दिखा जब हम उड़ीसा के बार्डर पर आये टोल नाका पर सड़क देख कर ही कोई साफ बता सकता था की कहा तक बिहार है और कहा से उड़ीसा शुरू हो रहा है |
और मैंने बिहार को कही कोसा तो नहीं है मैं तो यहाँ पर बिहारियों की तारीफ ही कर रही हुं की वो जाती धर्म से ऊपर उठ कर विकास को वोट कर रहे है सभी को इससे सबक लेना चाहिए | साथ ही मैं क्या कोई भी बिहार को नहीं कोसता है वो तो सब लालू का किया धरा था लोग उनको कोसते थे | देखिये अब नितीश की तारीफ हो रही है ना |
फिर भी आप को लेख की किसी बात से बुरा लगा हो तो क्षमा चाहती हुं मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं था |
ताऊ पहेली 102 का सही जवाब :
ReplyDeletehttp://chorikablog.blogspot.com/2010/11/blog-post_27.html