May 22, 2022

गोडसे दिवस

हम  छोटे से बड़े हो गए और सिर्फ इतना समझा पढ़ा और जाना था कि गाँधी को किसी गोडसे नाम के सिरफिरे हत्यारे ने गोली मार दी थी | उससे ज्यादा ना कभी बताया पढ़ाया गया और ना किसी की भी इच्छा हुयी जानने की कि  हत्यारा गोडसे क्या था क्या सोचता था | 


कहते हैं हमारी संस्कृति में अपराधी का नाम लिखने की मनाही थी | तर्क ये था कि जब अपराधी के बारे में उसके जीवन , सोच विचार आदि के बारे में ज्यादा लिखा बोला जाता हैं तो उसके जैसे विचार वालो उभर  कर सामने आते हैं | उसके समर्थक उसके अपराध को दूसरे तरीको से पेश करते है और जनता के बीच सहनभूति पाने के लिए उसके अपराध  को न्याय की तरह पेश करने का प्रयास करते हैं |   दुनियां में हर ख़राब से ख़राब विचार के भी समर्थक मिल जायेंगे | 


सालो तक इसलिए गोडसे एक मामूली अपराधी बन कर ही देश  में रहा  | लेकिन सत्ता , शक्ति और गद्दी से तथाकथित  सांप्रदायिक ताकतों को दूर रखने के नाम पर गोडसे का नाम बार बार आरएसएस से जोड़ गया ताकि  उससे जुडी बीजेपी को  गाँधी की हत्या के लिए कटघरे में खड़ा किया जा सके | अपने राजनैतिक स्वार्थो को पूरा करने के लिए खूब गाँधी और उनके हत्यारे गोडसे के नाम का प्रयोग हुआ | 


इस चक्कर में बार बार इतनी बार उसका नाम लिया गया उसके हिंदूवादी  विचारों पर इतना बोला बतियाया गया  |  उसके सोच , विचारो आदि पर इतनी बहस हुयी   कि गोडसे मामूली सिरफिरे हत्यारे से एक पढ़ा लिखा समझदार , सिद्धांतवादी  और विचार रखने वाला विद्वान बनने लगा  |  वो मामूली हत्यारे से एक वैचारिक विरोधी , अपराधी बन गया | 


अब आप भले  उसके विचार और सोच को ख़राब , सांप्रदायिक अगैरा वगैरा  कहते रहें | लेकिन उसके  जैसी सोच वालो को उभरने का उसके बारे में बात करने का और अपने  जैसे लोगों के बीच उसे हीरो बना के प्रस्तुत करने का मौका देने का पुनीत काम तो आज विपक्ष में बैठे लोगों और गाँधी के विचारो से दूर दूर तक रिश्ता ना रखने वाले  सिर्फ गाँधी का नाम रटने वालों ने ही किया | 


आप छः सात सालों से  देखिये सोशल मिडिया पर चाहे  गाँधी का जन्मदिवस हो या  उनकी पुण्यतिथि खुद को गाँधी के समर्थक कहने वाले भी गाँधी के बारे में कम गोडसे के बारे में ज्यादा लिखते बोलते हैं ताकि उसके नाम पर सत्ताधारी पार्टी  को गरिया सके   |  ये दो दिन ऐसा लगता हैं जैसे गाँधी नहीं गोडसे दिवस हो (गोडसे समर्थको की इसमें गिनती  मत कीजिये )  |  क्या वास्तव में ये दो दिन सिर्फ और सिर्फ गाँधी को याद नहीं किया जा सकता क्या अपने राजनैतिक स्वार्थ  को किनारे नहीं किया जा सकता हैं  | 


इन दो दिन को छोड़ दीजिए आप सिर्फ ये देखिये कि इन कुछ सालों में गोडसे के नाम और विरोध पर कितना कुछ उसके बारे में लिखा गया और अपनी किताबे बेच अपना नाम बनाया गया |  आप ये भी देखेंगे ऐसा करने वाले ज़्यदातर को गाँधी के विचार , सोच छू के भी नहीं निकलते  हैं |   


अगर कभी गाँधी को पढ़ा समझा हैं तो एक बार सोच कर देखिये कि अपराध से घृणा करो अपराधी से नहीं  कहने वाले गाँधी क्या कभी अपने प्रति किये हुए अपराध पर अपराधी के बारे में इतनी बाते करते  जितना आज उनके समर्थक कहे जाने वाले करते हैं   |  क्या वो भी गोडसे से इतनी ही नफरत घृणा करते | उसे भूल जाते ताकि सारी दुनियां उसे भूल जाए उसका नामोनिशां ना बचे |  


चाहे  आरएसएस हो बीजेपी हो या कोई भी हिंदूवादी पार्टी गोडसे से अपने रिश्ते ना होने की बात करती हैं या गाँधी को नमन करती हैं तो वास्तव में इसे गाँधी के विचारो और गाँधी की  जीत उनकी सफलता के रूप में पेश करने की जरुरत हैं | कि देखिये एक हत्यारा जिस विचारधारा के नाम पर गाँधी की हत्या कर देता हैं आज उसी विचारधारा ,  संगठन के लोग उसे अपना मानने से इंकार करते हैं गाँधी को समर्थन देते  हैं उन्हे सम्मान देने योग्य समझते  हैं | ये हैं गाँधी की ताकत ,  प्रभाव,  असर  लोगो पर देश पर  |  


अफसोस हैं लेकिन  गाँधी को मारने वाले गोडसे को गाँधी के तथाकथित गाँधी समर्थको  ने ही पुनर्जीवित करने का काम   किया हैं |

2 comments:

  1. सोच तथ्यपरक और वैज्ञानिक होनी चाहिए, न कि व्यक्तिपूजक और विचारधारापरस्त!

    ReplyDelete
  2. सटीक विश्लेषण है ।
    1974 में जब मैं B.Ed. कर रही थी तब पुस्तकालय से एक पुस्तक मेरे हाथ लगी थी । " नाथू राम गोडसे गाँधी वध और मैं"
    गोपाल गोडसे की लिखी हुई । आधी ही पढ़ी थी कि वापस मांग ली गयी । और इस पुस्तक को बैन कर दिया गया । बहुत सी सच्ची बातें आम जनता से छुपा ली गईं ।।आज नेट पर गोडसे द्वारा कोर्ट में दिया गया बयान पढ़ने को मिलता है । जिसे आम जनता से छुपा लिया गया था ।
    मैं गोडसे को हत्यारा मानती हूँ लेकिन मन देशद्रोही मानने को तैयार नहीं ।।

    ReplyDelete