June 02, 2022

सेक्युलिरिज़्म के आगे फेमिनिज्म शहीद


मैं कोई  तेरह चौदह बरस की रही होंगी जब एक दिन   हमारे घर काम करना शुरू कि महिला बोली कि उसकी बेटी की शादी होने वाली हैं उसे  छुटटी  लेनी होगी  | उसकी बेटी की आयु मुश्किल से पंद्रह सोलह साल की थी | हमारे अंदर का क्रन्तिकारी जागा और मैंने उसे बाल विवाह नहीं करना चाहिए का भाषण दे ये भी कह दिया अगर उसने अपने बेटी की शादी की तो मैं पुलिस को फोन कर दूंगी | 


उसे बात  एकदम समझ में आ गयी और तीन दिन बाद अपने पैसे ले कर उसने हमारे घर का  काम छोड़ दिया | मम्मी मुझे समझाने लगी कि वो गरीब लोग हैं जिन घरो में किराए पर रहते हैं वहां बहुत से लोग रहते हैं | इन्हे डर होता हैं कि  अपनी लड़की अकेले छोड़ कर आते हैं कोई बहला फुसला कर या जबरस्ती ,धोखे से उसके साथ कुछ कर दिया तो बदनामी भी होगी और लड़की की शादी भी नहीं हो पायेगी | इसलिए जल्दी शादी करके बोझा जैसे बेटियों को बिदा कर देते हैं | कितना कमजोर और फालतू का तर्क हैं ना ये किसी बाल विवाह के लिए |


  आज तीन दशक के बाद पढ़े लिखे और खुद को फेमिनिस्ट कहने वाले लोग   बुर्के के समर्थन में ऐसे ही तर्क दे रहे हैं  कि   वो गरीब,  पिछड़े इलाको , रूढ़िवादी समाज से आती हैं इसलिए उनके बुर्के पहनने की मांग को मान लिया जाए वरना उनकी पढाई छुड़वा दी जायेगी | कोई रूढ़वादी और उस वर्ग का व्यक्ति ऐसे तर्क देता तो एक बार हजम भी हो जाता लेकिन पढ़े लिखे फेमिनिस्ट कहे तो आश्चर्य होता  हैं | 


इस तरह देश में दो कानून बन जाए हर जगह गरीब , पिछड़े  और रूढ़िवादी समाज को उसकी मर्जी से काम करने की छूट दे दी जाये और उसी गर्त में उसे पड़ा   रहने दिया जाए | 


 ज्यादा समय  नहीं  हुआ जब पारंपरिक राजस्थानी वेशभूषा में घूँघट  किये एक दो स्त्रियों  की फोटो वायरल थी | जिसके साथ लिखा गया था कि फलाने जिला में ऑफिसर हैं या जिलाजज हैं लेकिन इतना पढ़ने लिखने के बाद भी अपनी परंपरा नहीं छोड़ी और आज भी घूँघट करती हैं | गर्व हैं हमें ऐसी स्त्रियों पर |  पता नहीं वो फोटो कितनी सच्ची थी लेकिन समाज में   हमें हर वर्ग से एक दो उदहारण मिल ही जाते हैं घूँघट और बुर्के हिजाब में | 


  ये सब करके रूढ़िवादी समाज दो तरफ़ा काम करता हैं  | एक वर्ग  पढ़ लिख रही स्त्रियों के सामने उदाहरण  रखता हैं कि कितना भी पढ़ लिख कुछ बन जाओ तुम्हे भी हर हालत में इन रूढ़ियों का पालन करना हैं इससे बाहर निकलने का प्रयास भी ना करना | अपनी  पढाई लिखाई अफसरी घर के बाहर छोड़ कर आना , घर में तुम वही हो जो समाज ने स्त्री के लिए तय किया हैं |  


दूसरा वर्ग   उन स्त्रियों की पढाई लिखाई करने कुछ बनने  से कोई प्रेरणा नहीं लेता अपने बच्चियों को काम करने या उच्च शिक्षा लेने नहीं देता लेकिन  बाकी स्त्री वर्ग को ये उदाहरण जरूर देता हैं कि देखो वो इतनी पढ़ी लिखी अधिकारी हो कर भी  घूँघट करती हैं बुर्क़ा , हिज़ाब पहनती हैं  और तुम उनसे कमतर हो कर भी आधुनिक बन ये सब छोड़ना चाहती हो | 


 जब पढ़ी लिखी फेमिनिस्ट कहलाने वाले खासकर स्त्रियां बुर्के के समर्थन में ऐसे तर्क देने लगती हैं तो रूढ़वादी , कट्टर समाज उन्हें उदाहरण बना कर पेश करता हैं और उसका हौसला बुलंद होता हैं कि वो सही है | फिर शुरू होता हैं अपनी कट्टरता और स्त्री दमन का एक और चक्र |  


सेक्युलर दिखने की ऐसी भी  क्या चाहत कि फेमिनिस्टो ने  अपना फेमिनिज़्म  शहीद कर दिया | जो वामपंथी हैं उनकी राजनैतिक मजबूरी हैं लेकिन बाकी लोगो की क्या मजबूरी हैं |  बुर्के हिज़ाब पर कुछ कहने के बजाये मौन ही धर लेते/लेती तो ज्यादा बेहतर होता | उनके धर्मनिरपेक्ष होने पर दाग भी ना लगता और नारीवाद भी बचा रहता | 

1 comment:

  1. सटीक उदाहरण के साथ अपनी बात कहीं है । बिना बोले बुद्धिजीवी कैसे कहलायेंगे ? भला बताओ आप ।।हर जगह दोहरा स्तर दिखाई देता है ।।

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