जब भारतीय भोजन विकसित हो रहें थे तब शायद उन्हें उस ख़ास परिस्थितियों का सामना नहीं करना पड़ता होगा जिसका आज की महिलाओं को सामना करना पड़ता हैं | यही कारण हैं कि ज्यादातर भारतीय भोजन के तैयारी और उन्हें बनने में समय लगता हैं | कुछ झटपट बन जाए जिसके लिए पहले से तैयारी ना करना पड़े जो ठंडा होने के बाद भी अच्छा लगे ऐसी भोजन श्रृंखला बहुत कम हैं |
लेकिन आवश्यकता आविष्कार की जननी हैं सो महिलाओं ने सुबह छः सात बजे स्कूल जा रहें बच्चो के लिए भारतीय खानो में बहुत से परिवर्तन किये और उन्हें नया रूप रंग दे दिया | मेरा अंदाजा हैं आज के बच्चे चावल के इडली और डोसा से ज्यादा रवा इडली और डोसा अपने टिफिन में ले जाते होंगे |
रवा के साथ सोडा को पीछे छोड़ते हुए इनो ने लगभग एंजल जैसा काम भारतीय महिलाओं के लिए किया हैं | वो घंटो की तैयारी को मिनटों में पूरा कर देता हैं | पास्ता नूडल सैंडविच जैसे विदेशी भोजन भी घरों में झटपट तैयार हो जाने के कारण ज्यादा घुसे हैं |
बड़े काम पर जाते हैं तो वो नाश्ता करके दोपहर का खाना ले जाते हैं जबकि सुबह छः सात बजे स्कूल निकलने वाले बच्चे बहुत हल्का फुल्का या कभी कभी तो बिलकुल खाली पेट ही निकलते हैं टिफिन में नाश्ता ले कर | इसलिए ज्यादातर वह बहुत भारी , बहुत मसालेदार , या ठंडा होने पर ना अच्छा लगने वाले भोजन की जगह नाश्ते में खाने लायक हल्का फुलका ही खाना चाहते हैं |
हम लोगों ने तो सारा जीवन पराठे अचार या सब्जी ही टिफिन में पाया हैं लेकिन आज के बच्चे शायद ही ये सब खाना चाहे | फिर इसका कारण ये भी हैं हम दस से चार के स्कूल जाते थे और दोपहर का भोजन स्कूल में करते थे भरपेट पराठा सब्जी | हमारे बच्चे ब्रेकफास्ट स्कूल में करते हैं लंच तो घर पर करते हैं | उस पर से पसंद का कुछ ना दो तो टिफिन वैसा ही घर वापस आ जाता हैं कि खाने का टाइम नहीं मिला |
मैं कभी अपना कुकरी शो करुँगी तो उसका नाम आई हेट किचन होगा और उसमे दुनिया भर के वो सारे डिश बनाये जायेंगे जो बहुत आसानी से बिना टिटिम्मा के फटाफट बन जाए | बता रहीं हूँ बहुत हिट शो होगा | अकेले काम या कॉलेज जा रही बच्चो की फौज तैयार हो रही हैं जिन्हे ऐसे ही भोजन की तलाश हैं |
इंतज़ार है आपके हिट होने वाले कुकरी शो का , वैसे अब हमें तो ज़रूरत नहीं टिफिन तैयार करने की , लेकिन घर में भी कुछ फटाफट बन जाय तो क्या बुराई ।।
ReplyDelete