June 14, 2022

रणथम्बौर की सैर और टाइगर का इंतजार



नसुरुद्दीन शाह की एक फिल्म थी जिसमे वो विदेश से  आये लोगों  को खुद को एक रॉयल फैमली से बता कर लुटते थे | उन्हें रात में जंगल में ले जा कर भूसा भरे बाघ को असली बता दिखाते थे | एक नौकर हाथ से पूंछ हिलाता था और अँधेरे में सब उसे ही असली मान उत्साहित हो जाते थे | 


बीते दिवाली  हम भी टाइगर देखने रणथम्बौर  गये थे । जंगल में इंट्री भी किसी जुरासिक पार्क की फिल्म जैसा हुआ लेकिन ना टाइगर दिखा न उसकी पूंछ | कहने को सबसे वीआईपी जोन , जोन थ्री में गए थे लेकिन सौ सवा सौ लोगों ( जितना उस जोन मे लोगों में लोगों को जाने की इजाज़त  थी ) में से किसी का तो बैड लक इतना अच्छा था कि टाइगर हमारे नहीं बगल के चार नंबर जोन में लोगों को दिखायी दिया | 

झील के एक तरफ हम थे दूसरी तरफ दूसरे जोन के लोग   | उधर से उत्साहित लोगों की आवाज झाड़ियों से आती रही कि उन्हें  टाइगर दिख रहा हैं |  हम लोग घंटो वही दम साधे बैठे रहें की अब इस तरफ आएगा अब आएगा लेकिन उस दिन टाइगर का मूड ही नहीं था हम लोगों  को दर्शन देने का सो वो आया ही नहीं | 



वैसे मुझे लगातार शक होता रहा कहीं झाडियोंमे रिकार्डिंग बजा कर हमें टाइगर होने का भ्रम तो नहीं दिया गया कि देखो टाइगर वही हैं उधर के लोगों को दिख रहा हैं बस आप को नहीं | खैर टाइगर ना दिखा तो हम लोगों ने वहां के चिड़िया चुनमुन को देख और खिला कर ही काम चला लिया | 

अगले दिन चंबल नदी गए एक और खूंखार पानी के जीव मगरमच्छ देखने , उसके प्रकृति वातावरण में | छोटे भाई की पत्नी को जब पता चला हम स्टीमर से उस नदी में जायेंगे जो मगरमच्छो और घड़ियालों से भरा हैं तो डर  के मारे  उसने जाने से ही मना कर दिया पहले | फिर मैंने उसे चिढ़ाना शुरू किया खून भरी  माँग देखी है ना | 


मगरमच्छो ने अपने प्रदर्शन दिखाने में कोई अगर मगर नहीं किया | अपने सुस्ताने से लेकर मजबूत जबड़े फ़ैलाने और नजदीक जाने पर  हिलडुल कर पानी में उतर कर सारे करतब ठीक से दिखाए | बस उन्हें शिकार करते और  खाते नहीं देखा  ,जबकि नदी के पानी में हाथ डाल डाल कर हमने कई बार चारा उन्हें दिखाया था | अपने देशी थे ना हॉलीवुड वाले ब्रीड के नहीं थे जो नाव पलट पलट इंसानो शिकार करते | 


टाइगर ना देखने का मलाल तो कम ना हुआ लेकिन ये भी लगा चलो खाली हाथ तो नहीं आये कुछ  तो देख ही लिया | 





2 comments:

  1. हिम्मत की दाद देनी पड़ेगी कि " खून भारी माँग " याद आने के बाद भी नदी में सैर कर आये । रोमांचक संस्मरण ।

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