आज हमारी ब्युटीफुल प्रिंसेस का हैप्पी वाला बर्थ डे है | ब्यूटीफुल क्यों ? वैसे तो हर माँ के लिए उसके बच्चे दुनिया में सबसे ब्यूटीफुल होते है , लेकिन मुझे बिटिया रानी के ये पूछने पर कि 'मॉमा मै ब्यूटीफुल दिख रही हु ना" दिन में तीन या चार बार उन्हें ये बताना पड़ता है की वो ब्यूटीफुल दिख रही है और प्रिंसेस इसलिए की उन्हें बड़ी हो कर प्रिंसेस बनना है | लो जी सिंड्रेला , स्नोवाईट , स्लीपिंग ब्यूटी , जास्मिन , प्रिंसेस बैली जैसी कहानियो रोज सुनती है उसका कुछ तो असर होना ही था ना |
बहुत साल पहले एक खबर पढ़ी थी की भविष्य में आप डिजाइनर बेबी को जन्म दे सकेंगे मतलब की रंग कैटरीना का आँखे ऐश्वर्य की कद सुष्मिता की और जो भी आप चाहे अपने बच्चे में वो आप को मिल जायेगा, वैज्ञानिक ये सब आप के लिए कर देंगे | सो जब मेरे माँ बनने का समय आया तो हम दोनों ने भी अपने बच्चे को डिजाइन करना शुरू किया मतलब ये सोचना शुरू किया की हमारी बच्ची कैसी होगी | अब हम वैज्ञानिको की तो मदद नहीं ले रहे थे तो सब कुछ पति पत्नी के बिच से ही चुनना शुरू किया वो भी सब अच्छी अच्छी वाली जो कुछ भी हम दोनों में था | तय किया की दिखने में वो पति जसी हो और व्यवहार में माँ जैसी हो ( मेरी बेटी पति जैसी सीधी साधी हम दोनों को ही मंजूर नहीं थी, और मेरे लिए सुन्दरता के मामले में बेहतर था की वो पिता जैसी ही हो क्योकि सुन्दरता से मेरा दूर दूर तक कोई रिश्ता नहीं है , हा हा हा हा हा ) मुझसे तो वो बस दो ही चीजे पाए एक तो घुंघराले बाल दुसरे गालो पर पड़ते डिम्पल ( मुझे बहुत थोड़े पड़ते है मै चाहती थी उसे खूब गहरे पड़े ) और पुत्री होना तो मेरे लिए हमेसा से ही निश्चित था उसके लिए कोई दो राय या कुछ और की तो बात ही नहीं थी और जब बच्ची हमारे सामने आई तो बाकि बाते तो पता नहीं चल रही थी लेकिन जब वो जन्म के दुसरे दिन मुस्कराई और उसके गालो पर गढ्ढे पड़ते देखा तभी समझ गई की हमारी एंजेल तो बिलकुल वैसी ही होनी है जैसी हमने सोचा है |
किन्तु सब आप के मन का हो ही जाये ये भी नहीं होता है ना हमने तो इसके जन्म का दिन भी तय किया था आज से 11 दिन बाद का, सब ठीक था किन्तु बीच में डाक्टरों ने अपनी कमाई के लिए ऐसा डराया की जानते हुए भी बेफकुफ़ बन गए क्या करे जब बात बच्चे पर किसी तरह के खतरे की हो तो सभी जान कर भी बेफकुफ़ बनने में ही अपना भला समझते है , वैसे अंत में ये १६ अप्रैल का दिन भी मैंने ही चुना था डाक्टर के दिए चार दिनों में से |
किन्तु सब आप के मन का हो ही जाये ये भी नहीं होता है ना हमने तो इसके जन्म का दिन भी तय किया था आज से 11 दिन बाद का, सब ठीक था किन्तु बीच में डाक्टरों ने अपनी कमाई के लिए ऐसा डराया की जानते हुए भी बेफकुफ़ बन गए क्या करे जब बात बच्चे पर किसी तरह के खतरे की हो तो सभी जान कर भी बेफकुफ़ बनने में ही अपना भला समझते है , वैसे अंत में ये १६ अप्रैल का दिन भी मैंने ही चुना था डाक्टर के दिए चार दिनों में से |
दुनिया की ये परम्परा रही है की पिता अपने बेटो को अपना नाम देते है जार्ज और लुई से चला ये रिवाज बुश तक पहुँच गया और हमारे यहाँ भी पिता का नाम जोड़ा जाता है | पर कभी ये रिवाज क्यों नहीं बना की माँ बेटियों को अपना नाम देंगी, सो मैंने भी तय कर लिया था वो भी हमेशा से, की अपनी बेटी को तो मै अपना नाम दूंगी | उसके जन्म के बाद शुरू हुई नाम की खोज जो पहला नाम पसंद आया वो था "पार्थवि" जिसका अर्थ पार्वती जी का नाम बताया गया पसंद आया क्योकि पार्वती जी नारीत्व गुणों के साथ ही देवी की शक्ति रूप थी ( बाद में पता चला की ये नाम देवी के शक्ति रूप का ही है यानि दुर्गा को भी "पार्थवि" कहते है ) पर ये मेरा नाम नहीं था सो खोज जारी रखी (अब हम लोग हिंदी के बड़े ज्ञानी तो थे नहीं सो अपने नाम की पर्यायवाची खोजना एक मुश्किल काम था वो भी बिना नेट के) और अंत में हमें मिल ही गया नाम "अनामित्रा" दोनों नाम पसंद आया सो हमने उसके दो नाम रख दिये एक घर के लिए "पार्थवि" जो हम दोनों को पसंद था और स्कुल के लिए "अनामित्रा" ताकि दुनिया में वो मेरे नाम से ही जानी जाएगी ( जबकि आज की तारीख में हम अपनी ईमारत में और उसके स्कुल में उसके नाम से जाने जाते है की हम "पार्थवि" के मम्मी पापा है ) |
कहते है की नाम का असर बच्चो पर होता है इसी का नतीजा है की उनमे जहा लड़कियों वाले सारे गुण, सजना सवरना खुबसूरत दिखने का प्रयास करना गुडियों से खेलना है तो साथ में शारीरिक दम ख़म वाली और अपनी शक्ति दिखाने वाले भी गुण है | पार्क में गई तो ज्यादातर लड़को के साथ ही खेलती है क्योकि वही दौड़ने उछलने कूदने और शरारत करने में इनका साथ देते है | स्कुल में रेस में भी भाग लिया और पहला स्थान पाया , पाना ही था रोज मुझे पकड़ कर पार्क ले जाती और ८-१० साल के लड़को के साथ रेस करके अपना अभ्यास करती थी बिना मेरे कहे खुद से | अब नाम के साथ जुड़ा गुण है तो उसके साथ जुड़े दोषों से कैसे दूर रह सकती थी सो नाम के साथ जुड़े दोष भी है वो है गुस्सा और गर्मी | गुस्सा हर समय नाक पर और १८ के तापमान में भी कहना की गर्मी लग रही है |
अपने लम्बे बालो से बड़ा प्यार है इन्हें क्या मजाल की कोई हाथ भी लगा दे या उन्हें कटवाने की बात कर दे और हर समय इन्हें खुले बाल चाहिए , फैशन है | जन्म से अभी तक इसका मुंडन नहीं हुआ है, अब कराना तो भगवान के बस में भी नहीं है अब तो देर भी हो गई है और वो और भी लम्बे हो चुके है |
तीसरे जन्मदिन की फोटो है बार्बी बनने के लिए बार्बी पार्लर गई थी और चुपचाप बैठ कर इस तरह तैयार हुई बाल बनाये की सब आश्चर्य कर रहे थे , तीन साल में ही ये हाल है बड़ी हो कर क्या करेंगी |
भला हो सागर ब्रदर्स का जो उन्होंने मुझे कृष्ण के रूप में संतान पाने की इच्छा पूरी करवा दी | नया वाला कृष्ण (कृष्णा ) देख कर ये भी मुझे काफी दिनों तक मैया मैया कह कर पुकारती थी | लग रही है ना पूरी कृष्ण जैसी |
उनके जन्म के बारे में जान लिया नाम के बारे में जान लिया और उनके स्वभाव के बारे में जान लिया अब हमारी एंजेल की कुछ फोटो सोटो भी देख लीजिये |
पचपन से कैमरे के लिए पोज देने की आदत है इन्हें | बचपन में कभी भी इनकी कोई शरारत मै सुट करना चाहती भी थी तो कैमरा देखते ही ये वो करना छोड़ कर बस कैमरा ही देखने लगती थी | देखिये अभी भी कैसे कैमरे के लिए पोज दे रही है |
बस एक बार सैंटा मिल जाये फिर तो खिलौनों की इतनी लम्बी लिस्ट बनेगी की पूरा साल सैंटा हमारे ही घर खिलौने डिलेवर करते रह जायेंगे |
भला हो सागर ब्रदर्स का जो उन्होंने मुझे कृष्ण के रूप में संतान पाने की इच्छा पूरी करवा दी | नया वाला कृष्ण (कृष्णा ) देख कर ये भी मुझे काफी दिनों तक मैया मैया कह कर पुकारती थी | लग रही है ना पूरी कृष्ण जैसी |
हम बड़े भी पहले बचपन में अपने शौक में बच्चो में नई नई आदते डाल देते है फिर जब बच्चे बड़े होने पर वही करते है तो हम शिकायत करते है | अब देखिये ६ माह की है बड़े आराम से गॉगल लगा कर बैठी है क्या मजाल की गिर जाये, अब बड़े हो कर जब बिना गॉगल के बाहर नहीं जाती तो हम कहते है की कितना फैशन करती है |
सब तो हो गया अब इनकी शरारतो का और मीठी सी मुस्कान का एक वीडियो देखिये, जरा देखिये तो क्या चीज ये बड़े जतन मेहनत और चाव से खाने का प्रयास कर रही है |
चलते चलते
आज चलते चलते में हमारी डॉल का किस्सा | इन्हें सिखाने के क्रम में हमने उन्हें सप्ताह के नाम सिखाये केवल सात दिनों में ये नाम याद कर ली, हमारा उत्साह बढ़ गया सो सोचा की इन्हें महीनो के नाम भी सिखा दे | अब हमने कोई किन्नर गार्डेन का कोर्स तो किया नहीं है जो पता रहे की बच्चो को सिखाना कैसे है सो हमसे सीधे कहा की "बाबु वन इयर में 12 मंथ होते है " इन्होने फाटक से सवाल दागा " मॉमा इयर क्या होता है " तब समझ आया की बच्चो को इस तरह हम नहीं समझा सकते है, फिर भी कोशिश जारी रखा और सोचा की इन्हें इनके मतलब की बातो से समझाते है तो ये जल्दी समझ जाएँगी | हमने कहा कि " बेटा तुम्हारा फर्स्ट बर्थ डे जब हुआ तब तुम वन इयर की हुई सकैंड में तुम टु इयर की हुई थर्ड में थ्री इयर की अब तुम्हारा फोर्थ बर्थ डे आ रह है तुम फोर इयर की हो जाओगी | ये रुकी कुछ सोचा फिर बोला " मॉमा फोर्थ बर्थ डे पर आई हैव फोर इयर(कान) सो हाउ मेनी आइस (आँखे ) मॉमा" | जवाब आप के पास हो तो जरुर दीजियेगा मै तो अभी नहीं दे पाई हूँ |
आज मेरी प्यारी सी परी को उसके जन्मदिन पर ढेर सारा आशीर्वाद दीजिये ताकि जीवन में वो हमेशा खुश रहे और वो सब पाए जो उसे एक सफल इन्सान बनने में सहयोग करे |