October 30, 2023
सत्तर घंटे काम - कम या ज्यादा
October 17, 2023
रिश्ते और उसके सम्बोधन
मुंबई आयी तो ससुराल की एक मजेदार बात पता चली कि मेरे चाचा ससुर के बच्चे अपने पापा को चाचा कहतें हैं । शुरू मे उन लोगों से बात करते बहुत कन्फ्यूजन होता था । लगा गांव से चाचा आयें हैं उनकी बात हो रही है ।
बाद मे पता चला मेरे ससुर बड़े थे उनके बड़े बच्चे चाचा कहते उन्हे देख चाचा के बच्चे भी उन्हे चाचा ही कहने लगें ।
ऐसी ही बनारस मे मेरी एक मित्र अपनी मम्मी को बाजी कहतीं थीं । बचपन से वो नानी के घर रहतीं थीं । उनकी मम्मी सबसे बड़ी, सात छोटे भाई बहन वो सब उन्हे बाजी बुलातें मेरी दोस्त भी वही सीख गयी और उन्हे किसी ने मना भी नही किया ।
हम लोग तो दो तीन सालों तक यही समझते रहें कि वो अपनी बड़ी बहन की बात करतीं रही थीं । तब लगता वाह इसकी बड़ी बहन तो बहुत अच्छी है इसके सारे काम करती है ।
इसी तरह हमारे बचपन मे एक किरायेदार रहते थी उनके बच्चे उन्हे बहु बुलातें थे। शुरू मे लगा कि शायद इनके गांव इलाके मे ऐसा बुलाया जाता होगा ।
फिर एक दिन जब गाँव से उनके ससुर आयें वो भी बहु कहने लगे उन्हे तब पता चला कि उनकी तरफ कुछ ऐसा पुकारा नही जाता ।
वास्तव मे उनके बड़े संयुक्त परिवार मे वो सबसे छोटी बहु थीं । पूरा घर ही उन्हे बहु कहता था तो जेठ जेठानी के बच्चो से लेकर उनके अपने बच्चे भी उन्हें बहु ही पुकारने लगें ।
मेरी नानी मेरे सबसे छोटी मौसी के दोनो बेटो पर बहुत गुस्सा करतीं थीं क्योंकि दोनो अपने दादाजी को नाना बुलातें थें ।
असल मे उन दोनो से बड़ी उनकी एक बुआ की बेटी थी जो उनके साथ रहती थी । वो नाना जी बुलाती तो उन दोनो ने भी सीख लिया ।
जब छोटी मौसी की शादी हुयी थी तो नाना गुजर चुके थे । इसलिए नानी गुस्सा करती कि अपने दादा को नाना बोल कर इस उमर मे मेरा रिश्ता उनसे खराब कर रहे हो 😂😂
October 09, 2023
सर्वे और तथ्य
किसी अन्तर्राष्ट्रीय संस्थान के किये सर्वे तकनीकि रूप से कितने गलत हो सकते है वो इस सर्वे को देख कर समझा जा सकता है ।
हाल मे ही एक अन्तर्राष्ट्रीय संस्थान ने अपने सर्वे मे बताया कि स्कूली शिक्षा के स्तर मे भारत सबसे नीचे से दूसरे पायदान पर है । उसके अनुसार भारत के ग्रामीण इलाके के दूसरी तीसरी कक्षा के छात्र ठीक से किताब मे लिखा पढ़ नही पा रहे थे और दो और दो चार जैसे जोड़ घटाना भी नही कर पा रहे थें ।
ये खबर पढ पर ज्यादातर शहरी भारतीय भी इससे सहमत हो जायेंगें और सरकारी शिक्षा के स्तर को कोसने लगेंगे कि हमारे बच्चे तो दूसरी तीसरी तक फर्राटेदार किताबे पढ़तें है । गणित मे कहीं आगे के प्रश्न हल करने लगते हैं ये बच्चे कैसे नही कर पा रहे हैं ।
पर ज्यादातर लोग इस बात को भूल जाते हैं कि शहरी मध्यम और उच्च वर्गीय बच्चा दो से ढाई साल की आयु मे प्लेग्रूप फिर नर्सरी , एलकेजी , यूकेजी के तीन साल के बाद पहली फिर दूसरी तीसरी कक्षा मे जाता है ।
दूसरी से तीसरी कक्षा तक उसकी स्कूलिंग के पांच से छः साल हो चुके होते हैं । प्लेग्रूप मे वो अक्षरो को बोलना , नर्सरी मे पढ़ना लिखना उसके बाद शब्दो को जोड़ कर पढ़ना आदि सीख लेता है । तब पांच छः साल बाद फर्राटेदार रिडिंग करता है ।
जबकि सरकारी स्कूल जाने वाले बच्चे खासकर ग्रामीण इलाके के बच्चे छः से सात साल की आयु मे पहली बार स्कूल जाते है पहली क्लास मे जहां उन्हे अक्षर ज्ञान दिया जाता है ।
अब आप सोचिये पहली क्लास मे अक्षर और अंक बोलना सिखने वाला बच्चा दूसरी क्लास या तीसरी मे भी धाराप्रवाह पढ़ कैसे सकता है ।
पांच से छः साल स्कूलिंग किये बच्चो का मुकाबला क्या दो या तीन साल स्कूल गये बच्चो से किया जा सकता है । उसकी भी पांच या छः साल की स्कूलिंग हो जाये फिर उसके स्तर को देखा जाना चाहिए।
ये ठीक है कि आज भी सरकारी खासकर ग्रामीण क्षेत्र के स्कूलों मे पढाई का स्तर ठीक नही है । अध्यापक छात्र की संख्या कम , वो अनियमित है ,अध्यापको का ठीक से प्रशिक्षित ना होना , बीच मे स्कूल छोड़ देना जैसी हजारो समस्याएं है । लेकिन वो दूसरा विषय और समस्या है ।
शहरों के सरकारी स्कूल की स्थिति इतनी भी खराब नही है । हमारे समय के ना जाने कितने लोग सरकारी स्कूलों से पढ़ कर ही आये हैं । बनारस जैसे शहर मे स्कूल, अध्यापक, पढाई सब अच्छे थे उस जमाने मे भी । आज मुंबई जैसे बड़े शहर मे तो सरकारी स्कूलों मे कहीं कहीं क्लास मे प्रोजेक्टर आदि भी लगे हैं। दिल्ली मे भी स्कूल अच्छी हालत मे हैं ।
ऐसे सर्वे आदि मे यदि गलत जगह या इरादे के साथ से सैंपल लिया जायेगा तो ऐसे सर्वे कभी सही नही हो सकते हैं ।
ज्यादा समय की बात नही है जब अपना पड़ोसी पाकिस्तान एक सर्वे के अनुसार हैप्पीनेस इंडेक्स मे हमसे ऊपर था और पेट्रोल के दाम हमसे कम । पर आज उसकी स्थिति ये है कि वहां के नागरिक हर हाल मे वहां से भागने की सोच रहे हैं ।
October 06, 2023
नकरातमकता से बचें
दुनियां के कुछ क्रिकेट स्टेडियम मे दर्शको के बैठने की क्षमता । गुगल के अनुसार
मेलबर्न आस्ट्रेलिया 100000
लार्ड इंग्लैंड 31180
पर्थ आस्ट्रेलिया 61266
एडिलेड ओवल आस्ट्रेलिया 53583
सिडनी 80000
ईडन पार्क न्यूजीलैंड 42000
प्रेमादासा और महेन्द्रा राजपक्षे श्रीलंका 42000 और 40000
बाकि पचास हजार से ऊपर वाले सब भारत मे है और दुनियां के बाकी क्रिकेट मैदान की क्षमता पचास हजार से कम दर्शकों की है ।
कल अहमदाबाद मे खेले गये विश्व कप के पहले मैच मे साढ़े सैतालिस हजार लोग आये थे । वो भी सप्ताह के बीच यानी कामकाजी समय मे इसलिए शायद दर्शक धीरे धीरे मैदान मे आये , अपना काम जल्दी खत्म कर । दुनियां के ज्यादातर मैदान इतने दर्शकों के साथ पूरा या लगभग भरा होता ।
फिर समझ ना आ रहा है लोग ये सवाल क्यों कर रहें है कि पहले मैच मे दर्शक कहां हैं । भाई अहमदाबाद स्टेडियम की क्षमता एक लाख बत्तीस हजार की है । उसे पूरा भरने के लिए भारत का मैच होना चाहिए।
कल की दो टीमो मे से एक भी भारत क्या एशियाई टीम भी नही थी उसके बाद भी इतनी बड़ी संख्या मे दर्शक ना केवल मौजूद थे बल्कि ज्यादातर न्यूजीलैंड को सपोर्ट भी कर रहे थे । शायद मेरी ही तरह पिछले विश्व कप के फाइनल मे जिस तरह न्यूजीलैंड को हारा घोषित किया गया उसके कारण ।
कम से कम क्रिकेट के विश्व कप मे भी मेजबान और भारत तथा पाकिस्तान के मैचों के अलावा ज्यादातर मैदान खाली ही रहता है । फुटबॉल की तरह लाखो दर्शक टीम के साथ आयोजित देश नही जाते ।
कौन है ये लोग कहां से आते हैं । इतनी निगेटिवीटि के साथ कैसे जीते है । हर बात मे बुराई खोज लेना हर बात मे राजनीति डाल देना कैसे कर लेते हो आप लोग । चैन से सो और खा भी नही पाते होंगे ये लोग ।
जो पत्रकार क्रिकेट का क भी नही जानते जिनको ये भी नही पता की एक टीम मे खिलाड़ी कितने होते है वो भी दर्शकों को संख्या पर सवाल बस इसलिए कर रहे है ताकि अमित शाह के बेटे जय शाह को गरिया सकें ।
माने हद है भाई तुम लोगों क्रिकेट को बख्श दो अपनी गंदी राजनीति और नकारात्मक सोच से ।
October 04, 2023
दवाओं के सहारे जीवन
कल रात इमारत मे किसी की हार्ट अटैक से मृत्यु हो गयी । 65 के करीब थें । कुछ साल पहले मुंह के कैंसर से पीड़ित थें पर अब उससे छुटकारा पा चुकें थे ।
बस दो दिन से अपने हाई बीपी की दवा नही खा रहें थें और बीपी बढ़ गया था । कल शाम ही बीपी नापा तो वो बहुत हाई निकला ।
घर आये पड़ोसी से इस बात का अफसोस भी जाहिर किया कि दवा नही खाया तो देखो कितना बीपी बढ़ गया है । कुछ समय बाद ही जब घर मे अकेले थे तो शायद हार्ट अटैक आया और बच नही पायें ।
इन्होनें तो दो दिन दवा नही खाया था । दो साल पहले हमारे फ्लोर के एक बुजुर्ग तो बस रात मे दवा नही खाया और अगली सुबह गुजर गयें।
उन्हे बहुत सारी समस्याएं थी , दवा खा खा कर तंग आ गये थे । उस रात जिद्द पकड़ ली कि अब से दवा नही खायेंगे जब मौत आनी है आ जाये । पत्नी बेटे से इस बात को लेकर झगड़ा भी हो गया ।
अगली सुबह ही तबियत बिगड़ गयी अस्पताल ले जाने के लिए बिल्डिंग के बाहर निकलते ही मौत हो गयी ।
हमारी अपनी छोटी चाची पचास से भी कम आयु मे पैरालाइसिस के अटैक का शिकार हो गयी बस दो तीन दिन दवा छोड़ने पर । हाई ब्लडप्रेशर और और पैरालाइसिस उनका फैमली इतिहास था ।
यही कारण था कि चाचा उनकी दवा का हमेशा ध्यान रखते थे । भाई दूज पर मायके गयी और दवा को लेकर लापरवाही बरत दी । तीन दिन बाद घर आयी तो दवा फिर से ले लिया था लेकिन शरीर के लिए देर हो चुका था ।
मंदिर मे सुबह पूजा करते गिर गयी । वो तो चाचा को फैमली हिस्ट्री उनकी पता थी तो तुरंत समझ गये । सीधा स्पेशलिस्ट हास्पिटल गये और डाॅक्टर को खुद बता दिया कि पैरालाइसिस का अटैक है ।
समय से इलाज मिल गया और लंबी फिजियो थेरपी से धीरे धीरे इतना रिकवर कर लिया कि आराम से चल फिर सकती है घर और अपना काम कर लेती है । लेकिन उलटे हाथ से कुछ पकड़ नही सकतीं और कहीं भी अकेले नही जाने दिया जाता है ।
अब आधा दर्जन दवा चार पांच सालों से रोज खा रहीं । कुछ कुछ महीनों मे हाथ पैर मे अकड़न और दर्द की समस्या अलग से ।
एक महीने पहले मेरी कामवाली अचानक स्टेशन पर चलते हुए एकदम से बेहोश हो कर पटरियों पर गिर गयी । बहुत ज्यादा चोट आ गयी थी एक महीना लगा उसे ठीक होने मे ।
डाॅक्टर ने बताया सुगर बहुत ज्यादा हाई हो गया था । उसे अपनी बीमारी के बारे मे पता ही नही था । वो तो शुक्र था कोई ट्रेन नही आ रही थी और लोगो ने उसे तुरंत पटरी से हटाया ।
दो दिन से काम पर आ रही है मैने उसे ढेर सारी हिदायते दी । परहेज को लेकर और दवा के प्रति लापरवाही ना करने को लेकर।
तो भाई दवाओं और स्वास्थ्य को लेकर लापरवाही जरा भी ना बरते । अपने लिए नही तो अपने अपनों का सोचें । ठीक है मौत तो जब आनी है तब आयेगी ही लेकिन ये सोच कर कोई बीच सड़क से चलना या नदी मे छलांग तो नही लगाता ना ।
तो ख्याल रखिये अपना भी और अपने अपनो का भी ।
October 01, 2023
इस अधर्म को कौन रोके
अपने देवता के साथ ऐसा व्यवहार करने का महान कार्य अपना हिन्दू उर्फ सनातन धर्म ही कर सकता है । तस्वीरे देखिये, जिस गणपति को दस दिन भक्तिभाव से पूजा और रोते खुश होते नाचते गाते विदा किया । उसे किस दुर्दशा मे समुद्र किनारे छोड़ आये हैं ।