October 25, 2012

नायक खलनायक और आम आदमी ---------mangopeople

कल बिटिया रानी को रावण दहन दिखाने ले गई थी ( मुंबई में जिस जगह गई थी वह बस रावण दहन ही होता है कुम्भकरण और मेघनाथ का नहीं ) तो उसने बड़े से रावण को देखते ही पूछा ये रावण इतना बड़ा क्यों है ,

मैंने कहा रावण बहुत बड़ा था इसलिए
 तो क्या राम जी भी इतने ही बड़े है
नहीं राम जी तो छोटे से ही है
 तो फिर वो इतने बड़े रावण को कैसे मारेंगे ,
वही तो ये इतना बड़ा है फिर भी छोटे से राम जी इसे मार देंगे क्योकि ये बैड मैन है और राम जी अच्छे है ।
ये जवाब तो बिटिया के लिए था किन्तु वास्तव में सोचे तो रावण को इतना बड़ा क्यों बनाया जाता है , शायद इसलिए की छोटे से राम जी उसे मार कर बड़े दिखे । असल में अच्छाई  को ज्यादा ताकतवर और बड़ा दिखाने के लिए हम पहले बुराई को और बड़ा और बड़ा बनाते है उसके बड़े होने का महिमा मंडन करते है ताकि उसे मारने वाली अच्छाई और बड़ी दिखे और लगे की अंत में जित हर हाल में सच्चाई की होती है भले ही बुराई कितनी भी बड़ी क्यों न हो । हमारा नायक तभी अच्छा और बड़ा दिखता है जब की उसके सामने खलनायक भी उतना ही बड़ा और खतरनाक हो , खलनायक जितना बड़ा होगा हमारा नायक उतना ही बड़ा हिम्मती, ताकतवर दिखेगा , और इसके लिए पहले खलनायक के बुरे कामो की खूब चर्चा की जाती है उसे बुरे से बुरा बनाया जाता है और साथ में ये भी दिखाया जाता है की आम से दिख रहे लोग उसका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते है , उसे ख़त्म करने के लिए तो किसी खास को ही आना होगा , एक नायक ही उसे ख़त्म कर सकता है कोई आम इन्सान नहीं , आम इन्सान बस नायक की सहायता भर कर सकता है, वो भी छोटी सी जिसका कोई महत्व न होगा , उसे ख़त्म करने का सारा क्रेडिट बस नायक को ही जायेगा । यदि खलनायक बड़ा न हो तो नायक भी  बड़ा नहीं दिखता है , खनायक जितना खूंखार होगा हमारा नायक उसे मारने के बाद उतना ही बड़ा दिखेगा ।  किन्तु अपने नायक को बड़ा बनाते बनाते हम भूल जाते है की हम इस चक्कर में बुराई  को भी बड़ा बनाते जा रहे है , और आज हम ने बुराई को इतना बड़ा बना दिया है की वो आम इन्सान के द्वारा ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रहा है या ये कहे की उस बुराई का बड़ा होना आम इन्सान की हिम्मत तोड़ दे रहा है की वो उसे ख़त्म कर सकता है , नतीजा की अब फिर से आज की बुराइयों  को ख़त्म करने के लिए भगवान के अवतार लेने का एक नायक का इंतजार किया जा रहा है, और नायक भी कैसा,  वो जिसमे कोई भी बुराई न हो बिलकुल पाक साफ पवित्र आत्मा । ये बात धीरे धीरे घर कर गई है की किसी भी बुराई को ख़त्म करने का काम बस किसी खास को किसी नायक को ही करना है आम आदमी इसे नहीं कर सकता है , दुसरे कोई भी बुराई एक बार में ही नायक समूल नष्ट करेगा, तब तक हम सभी को बैठ कर उस नायक का इंतजार करना है , और यदि कोई व्यक्ति आ कर उस बुराई को धीरे धीरे ख़त्म करने का प्रयास करेगा तो सबसे पहले हम उसकी परीक्षा लेंगे और देखेंगे की उसमे नायक वाले सारे तत्व है की नहीं , यदि उसमे राई बराबर भी बुराई है और वो कोई पवित्र आत्म न हुई तो वो हमारा नायक नहीं बना सकता है ,  कोई आम आदमी आगे आ कर बुराई को ख़त्म करने का प्रयास शुरू नहीं कर सकता है , ये सब कम बस भगवान के अवतारी व्यक्तियों का ही काम है आम इन्सान के बस की बात नहीं है , क्यों . क्योकि हमने नायक होने के भी मानक बड़े बना दिए है जिसमे शायद ही कोई फिट हो , ज्यादातर को तो हम उस ढांचे में अनफिट करार दे बाहर कर देते है , और उसकी कोई सहायता नहीं करते है , जबकि कोई भी नायक बिना सहायता के अकेले अपने दम पर खलनायक को ख़त्म नहीं करता है ।

                                                              हम भूल जाते है की हम ने ही अपनी कमजोरियों से इस बुराई को धीरे धीरे बड़ा किया है और हम जरा सी हिम्मत करके धीरे धीरे ही इसे ख़त्म कर सकते है ये जरुरी नहीं है की कोई एक नायक ही आ कर इसे एक बार में ही समूल नष्ट करे,  कई लोग हर तरफ से मिल कर हर तरीके से इस ख़त्म करने की शुरुआत कर सकते है , जरुरी ये है की हम उनकी सहायता करे न की ये कहे की लो जी इससे तो बुराई पूरी तरह से ख़त्म न होगी कुछ प्रतिशत ही ख़त्म होगी तो हम इसका साथ नहीं देंगे या इसकी हमें जरुरत नहीं है । न ख़त्म होने और बढ़ते जाने से अच्छा है की कुछ ही सही वो ख़त्म होना तो शुरू हो,  जिस तरह वो धीरे धीरे बढा था और हमें पता नहीं चला उसी तरह वो धीरे धीरे ख़त्म भी होगा और उसे पता नहीं चलेगा । वैसे तो जरुरत इस बात की है की बुराई को बढ़ने ही न दिया जाये और बढ़ गई है तो उसकी महिमा मंडन न किया जाये ,  वो कितना बड़ा हो गया है उसे ख़त्म करने में बहुत समय लगगा जैसी बातो से हिम्मत हारने की जगह , ये सोचे की. हा समय लगेगा किन्तु वो एक दिन ख़त्म होगा , जब हम उसकी शुरुआत आज से करेंगे और खुद करेंगे किसी नायक का इंतजार नहीं करेंगे , जब बुराई का कुछ अंश हमारे अन्दर है तो उस नायक का भी कुछ अंश हमारे ही अन्दर है , जब हम उसे नायक को अपने अन्दर से निकाल कर बाहर लायेंगे तो बाहर की बुराई के साथ अपने आप हमारे अन्दर की बुराई भी ख़त्म हो जाएगी और हमें पता भी नहीं चलेगा ।



                 




  
                                                                    

October 17, 2012

जेम्स बॉन्ड अभिनेत्रिया भी भई नारीवादी --------mangopeople





एक खबर पढ़ी की जेम्स बांड फिल्मो में काम करने वाली अभिनेत्रियों को " बॉन्ड गर्ल" कहा जाता है किन्तु 23 वे बॉन्ड फिल्म में काम कर रही हॉलीवुड अभिनेत्रीया  बेनेरिस  मार्लो  और निओमी  हैरिस को इस नाम से परहेज है उनका मानना है उन्हें "बॉड गर्ल"  नहीं "वुमन"  कहा जाये । असल में  इन फिल्मो में काम कर रही अभिनेत्रियो को केवल एक  सेक्स बम की तरह पेश किया जाता है जबकि ऐसा नहीं है , महिला किरदार भी बॉड की तरह ही चालक समझदार और कई मौको पर एक्शन भी करती है और बॉड की जान तक बचाती है , उसके मुकाबले जिस्म दिखाने के दृश्य तो काफी कम होते है किन्तु उन्हें अपना खुबसूरत बदन दिखने वाली किशोरी की तरह सेक्स बम ही बना कर प्रचारिक किया जाता है जो गलत है  । इसी बात का विरोध किया जा रहा है और ये विरोध भी कोई पहला नहीं है जहा बॉड फिल्म में नायिका बनने के लिए होड़ मची रहती है वही कुछ अभिनेत्रियों ने इस किरदार को करने से ही मना भी किया है .क्योंकि उनका मानना है की जेम्स बॉड को महिलाओं के जज्बातों की क़द्र नहीं हैं वह अपने काम निकालने के लिए उन्हें मोहरा बनाता हैं और फिर उनसे किनारा कर लेता हैं यहाँ तक की वह अलग अलग देशों में जाता है और अपने अहम् की संतुष्टी के लिए कई महिलाओं के साथ बेड साझा करता हैं.( राजन जी के ब्लॉग से ) । अमेरिका जैसे देशो में भी महिला अभिनेत्रिया अपने सही स्थान की मांग कर रही है ।  भारत के लिए भी ये नया नहीं है अभी हांल में भी विद्या बालन की फिल्म डर्टी पिक्चर ने खूब पैसा कमाया तो पत्रकार उनसे पुछने लगे की क्या अब उन्हें पैसा कमाने वाले खान अभिनेताओ की तरह विद्या खान कहा जाये तो उन्होंने तुरंत जवाब दिया की क्यों विद्या खान क्यों किया जाये शाहरुख , आमिर और सलमान बालन क्यों न कर दिया जाये ( नीजि रूप से भी मुझे उनका ये जवाब बहुत ही पसंद आया ) । लिजिये अब तो अभिनेत्रिया भी नारीवादी बन गई वो भी किस देश की जहा पर ज़माने से महिलाओ के बराबरी की बात की जा रही है किन्तु विरले ही कोई पुरुष उनके किये को सम्मान की दृष्टि से देखता हो और बराबरी का बात करता हो । ऐसा नहीं है की कुछ उदाहरन है ही नहीं , आप को याद होगा एक अमेरिकी टीवी सीरियल " फ्रेंड्स " आता था पूरी दुनिया में काफी प्रसिद्द था उसमे 6 दोस्तों की कहानी थी जिसमे 3 महिला और 3 पुरुष थे जब वो धारावाहिक काफी प्रसिद्द हो गया तो महिला कलाकारों ने मांग की की उन्हें भी उतना ही पैसा दिया जाये जितना की पुरुष कलाकारों को दिया जाता है क्योकि उस धारावाहिक की सफलता में उनका बराबर का हाथ है , उनके उस कदम पर धारावाहिक के तीनो पुरुष कलाकार अपना अहम् सामने रखने  की जगह उनके साथ खड़े हो गए और बराबर पैसे देने की मांग करते हुए काम करने से इंकार कर दिया , नतीजा उन दिन से सभी को एक सामान पैसे दिए जाने लगे ( मतलब की महिलाओ के पैसे बढा  दिए गए पुरुषो के कम नहीं किये गए )। अन्तराष्ट्रीय महिला टेनिस खिलाडी भी महिला और पुरुषो को पुरुस्कारों  में मिलने वाले पैसो में बराबरी की बात करती रही है , उनकी बात को ये कह कर ख़ारिज कर दिया जाता रहा है की पुरुष 5 सेट मैच खेलते है और महिलाए 3 सेट ( ये भी कोई तर्क हुआ ) महिला खिलाडियों का   कहना है की लोग अच्छा खेल देखेने आते है न की यहाँ समय बिताने क्या पुरुषो के जो मैच तीन  सेट में ही ख़त्म हो जाते है तो उन्हें कम पैसे दिए जायेंगे । किन्तु बराबरी की ये सभी मांगों को नारीवादी सोच कह कर ख़ारिज किया जाता रहा है ।
    
                     समझ नहीं आता की नारी जब भी अपनी ,अपने अधिकारों ,बराबरी की बात करती  है तो उसे नारीवादी कह कर ख़ारिज क्यों कर दिया जाता है , किसी पुरुष की बातो को तो पुरुषवादी कह कर नहीं ख़ारिज किया जाता है यहाँ तक की कोई पुरुष नारी के बारे में लिखे तो उसे भी नारीवादी कह कर ख़ारिज नहीं किया जाता है बल्कि उसे तब संवेदनशील कह कर प्रसंसा की जाती है । कुछ दिन पहले देवेन्द्र जी के ब्लॉग पर मुक्ति जी के फेसबुक पर विवाह को लेकर एक टिप्पणी पढ़ी  " कल एक ब्लोगर और फेसबुकिया मित्र ने मुझे ये सलाह दी की मै शादी कर लू , तो मेरा आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित हो जायेगा :) इस प्रकार का विवाह एक समझौता ही होगा , तब से मै स्त्रियों द्वारा  " सुरक्षा " के लिए  चुकाये जाने वाले कीमत के विषय में विचार विमर्श कर रही हूँ और पुरुषो के पास ऐसा कोई विकल्प न होने के मजबूरी के विषय में भी :) इससे पहले मुक्ति जी के मित्र की बात का ही जवाब दे दूँ , जिस समाज में हम रहते है वहां आज भी स्त्रिया खुद से विवाह नहीं करती है बल्कि उनका विवाह किया जाता है पिता, भाई आदि आदि के द्वारा और कब करना है किससे करना है कैसे करना है आदि आदि का निर्णय भी वही करते है तो सलाह किस पिता भाई को ऐसी देने चाहिए की ,  पिता जी भाई जी अपने बहन बेटी का झट से विवाह कर दे ताकि उसकी सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा का "बोझ" ( यदि वो ऐसा समझते  हो तो ) आप पर से उतर जाये , अब वो भाई और पिता उन्हें कैसे जवाब देते है ये तो इस बात पर निर्भर होगा की वो अपनी बेटी या बहन का विवाह क्या सोच कर करते है ( क्या आप को इसमे खाप पंचायत वाली सोच नहीं दिख रही है की बेटियों का बलत्कार हो रहा है तो उनका विवाह 15 साल में ही कर दो ताकि आप से उसकी सुरक्षा का झंझट छूटे और बला किसी और पर जाये )  स्त्री तो यहाँ कोई मुद्दा ही नहीं है क्योकि यदि मात्र सामजिक और आर्थिक सुरक्षा के लिए विवाह किये जाते है तो वो सब कुछ तो स्त्री को बिना कुछ भी किये अपने पिता के घर में मिल ही रही है उसके लिए उसे विवाह की क्या जरुरत है सोचना तो उस पिता को है की क्या वो अपनी जन्म दी हुई बेटी को आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा नहीं दे सकता है उनका लालन पालना जीवन भर नहीं कर सकता है , और यदि  ये सलाह किसी स्त्री को दी जा है की वो शादी कर ले , मतलब की वो अपने विवाह के लिए फैसले लेने के लिए स्वतंत्र है , तो ये बात भी ध्यान में रखनी चाहिए की हमारे समाज में जो स्त्री अपने विवाह के फैसले लेने के लिए स्वतंत्र  है उसे किसी और से सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा की जरुरत नहीं है ।

                                    
                                                              दुनिया में सत्ता पाने उसे बनाये रखने का सबसे कारगर तरीका है डर पैदा करना , धर्म राजनीति से लेकर पुरुष भी स्त्री पर अपनी  सत्ता,  डर दिखा कर ही काबिज रखता है , जैसे की विवाह को सुरक्षा का नाम दे कर उसके अन्दर स्त्री पर सत्ता सिन रहना , अब जब की स्त्री को ये बात  समझ में आ रही है कि  एक तो विवाह मात्र सुरक्षा नहीं है दुसरे ये की अब कम से कम हम अपनी सामजिक और आर्थिक सुरक्षा के लिए किसी और पर निर्भर नहीं है , वैसे ये बात भी सोचने की है की जिस विवाह को स्त्री के लिए हर तरीके से सुरक्षा बताया गया वहां  वो सारी सुरक्षा उसे मिलती हो ऐसा भी नहीं है , घरेलु हिंसा के सामने आते मामले बता रहे है की वो शारीरिक प्रताड़ना से अपने ही घर और घरवालो से सुरक्षित नहीं है , यहाँ तक की महिलाए अपने ही घर में बलात्कार से भी सुरक्षित नहीं है , निम्न वर्ग, खेती बड़ी वाले गांवो, मुंबई जैसे शहरों में बड़ी संख्या में महिलाए आर्थिक रूप से घर में बराबर का सहयोग कर रही है तभी घर चल रहा है , फिर किस बात की सुरक्षा ये विवाह उन्हें प्रदान कर रहा है , फिर वो क्यों उस विवाह को अपनाये जो उन्हें मात्र गुलाम बनाने और अपनी जरूरतों को पूरा करने की सोच के साथ पुरुष करता है ( यहाँ मै सभी पुरुषो की बात नहीं कर रही हूँ पर जिनके विचार ऐसे है उनके लिए , किन्तु अफसोस की ज्यादातर के ऐसी ही है,  चाहे जानकर या चाहे अनजाने में  ) । अब जब नारी विवाह के "अर्थो" को बदलने की बात कर रही है तो कुछ पुरुषो के द्वारा एक नया डर  पैदा किया जा रहा है , लो जी नारी विवाह नहीं करेगी तो बच्चे कैसे होंगे  समाज कैसे चलेगा , दुनिया नष्ट हो जाएगी , समाज में आराजकता फ़ैल जाएगी ( एक स्त्री के लिए समाज हमेसा से  अराजक ही रहा है है गोवाहाटी कांड से लेकर हजारो उदाहरण पड़े है  )परिवार का नमो निशान मिट जायेगा और न जाने क्या क्या बकवास । कितनी अजीब बात है की स्त्री सिर्फ ये कह रही है की आज विवाह के मायने बदलने चाहिए , विवाह एक तरफ़ा समझौतों पर नहीं हो , बल्कि दो लोगो के आपसी समझ पर होनी चाहिए , विवाह में जब दो पक्ष होते है और कोई एक पक्ष के बिना विवाह नहीं हो सकता है तो फिर दोनों का स्थान भी बराबर होना चाहिए , एक विवाह में जितना महत्व पुरुष के शरीर की जरूरतों को दिया जाता है उतना ही महत्व स्त्री के मन भावनाओ को भी दिया जाना चाहिए , साथ ही माँ कब बनना है और कितने बच्चो की माँ बनना है इसका निर्णय भी वो खुद करेगी , अपवाद स्वरुप ही कोई महिला ये कहती हो की उसे कभी भी माँ नहीं बनना  है , साफ है की वो बस इतना चाहती है की उसे अब विवाह के लिए पति परमेश्वर की नहीं "जीवन साथी" की जरुरत है ( वैसे उम्मीद है की लोग "जीवन साथी" का मतलब तो समझते होंगे ) । किन्तु शोर मचाया जा रहा है की लो ये नारीवादिया दुनिया ख़त्म करने पर तुली हुई है  महिलाए विवाह की नहीं करना चाहती है और न ही बच्चे को जन्म देना चाहती है , हा ये ठीक है की आज विवाह न करने वाली लड़कियों की संख्या बढ़ रही है क्योकि समस्या वही है की विवाह करने के लिए पति तो हजार मिल रहे है किन्तु कोई जीवन साथी नहीं मिल रहा है यदि वो विवाह नहीं कर रही है तो उसका सबसे बड़ा करना है की विवाह करने के लिए उन्हें कोई साथी ही नहीं मिल रहा है । अब जबकि वो आर्थिक और सामाजिक रूप से किसी और पर निर्भर नहीं है तो  वो पारम्परिक विवाह के उस रूप से बाहर आ चुकी है और विवाह के नए मयानो के साथ विवाह करना चाह  रही है किन्तु जिस रफ़्तार से स्त्री बदल रही है उस रफ़्तार से पुरुष नहीं बदल रहे है , ये बिलकुल ठीक बात है की आज विवाह के पारम्परिक सोच से पुरुष भी बाहर आ रहा है और वो भी मात्र  पत्नी की जगह हर कदम पर उसके साथ देने वाली जीवन संगनी की चाह रखता है ( कई बार उन्हें भी अपने लिए साथी खोजने में परेशानी होती है किन्तु शायद वो अपनी जरूरतों के आगे झुक जाते है और हार मान कर अंत में जो मिल जाये उसी से विवाह कर लेते है शायद कुछ महिलाए ये समझौते नहीं कर रही है इसलिए वो या तो देर से विवाह करती है या न करने का ही निर्णय ले लेती है , वैसे अपवाद हर जगह होते है  ) कुछ स्त्रियों के विवाह न करने से दुनिया नहीं ख़त्म होने वाली है और न ही समाज में आराजकता आने वाली है यदि आराजकता आज समाज में है और कभी ये बढ़ी तो उसका  कारण  पुरुष का चारित्रिक पतन होगा कोई स्त्री का विवाह न करना नहीं होगा।

                                                                                  दुख इस बात पर नहीं होता है की कुछ सिरफिरे दिमाग अपने चात्रित्रो के कारण  बेमतलब की चिल्ल पो करते है और चीजो को गलत ढंग से पेश कर लोगो को मुर्ख बनाने या डराने का काम कर रहे है , दुःख  इस बात का होता है की कुछ समझदार बिना बात को समझे उनकी बातो का समर्थन करने लगते है । विवाह एक बहुत ही नीजि सोच है हर व्यक्ति का अपना विचार होता है हर व्यक्ति के विवाह करने और न करने के अपने कारण  हो सकते है हमें उसमे हस्तक्षेप करने की या ये कहने की कोई आवश्यकता नहीं है की उनके लिए क्या सही या गलत है , कल को यदि वो जबरजस्ती विवाह कर लेते है और बाद में परिणाम तलाक होता है तो दो जिन्दगिया बर्बाद होती है उसका जिम्मेदार कौन होगा , क्या समाज इस बात से अच्छा बना रहेगा जिसमे ढेर सारे बेमेल, बे-मन से बने विवाह हो और वो सारा जीवन कुढ़ते हुए लड़ते हुए घुट घुट कर बिताये , क्या ऐसे विवाह वाले समाज बहुत अच्छे होंगे , एक बार कल्पना कीजिये की इस समाज में जन्म लेने वाले बच्चे कैसे होंगे , उन पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा । इसलिए जरुरी ये है की समय के साथ बदला जाये आज की जरूरतों को समझा जाये बदल रहे समाज के साथ लोग भी बदले और ये बात समझ ले की नारी भी बदल रही है बदल गई है और उसी के हिसाब से उसके आस पास की चीजो को भी बदलना होगा , और पुरुष को तो सबसे ज्यादा । ये बदलाव बहुत कठिन नहीं है बस आप स्त्री की जगह ये सोचिये की मेरी छोटी बहन या बेटी का मामला है देखिये ये  बदलवा आप में खुद ब खुद आ जायेगा , और बदलाव आ भी रहा है देखा है न जाने कितने ही पिताओ को जो अपनी बेटी के लिए समाज से पंगे लेते है , मुंह उठाये किसी से भी बेटी का विवाह नहीं कर देते है , कितने ही लड़को को इंकार कर देते है , सीना फुला कर बताते है की उनकी बेटी कितनी पढ़ी लिखी है और उसका वेतन कितना है , आज पिता बताते है की उन्हें कैसे वर की तलास है अपनी बेटी के लिए , बस ऐसे पिताओ  की संख्या कम है । किन्तु जैसे ही ये पुरुष पिता से पति के रूप में आता है इसकी भाषा बोली और सोच दोनों ही बदल जाती है इसलिए अब जरुरी है की पिता के बाद भावी पतियों की सोच में भी बदलाव आये नहीं तो वो सदा भावी पति ही बन कर रह जायेंगे ,क्योकि स्त्री को अपनी जरूरतों और भावनाओ को दबाना आता है वो उन्हें दबा कर विवाह न करने का तो निर्णय आसानी से ले लेगी और उसे निभा भी लेगी किन्तु किसी पुरुष के लिए ये करना मुश्किल होगा इसलिए नारी को ये बताने के बजाये की वो क्या करे और न करे अपने आप को बदलिए अपनी सोच को बदलिए , वरना हर स्त्री समाज की और लोगो की परवाह करना बिलकुल भी बंद कर देगी क्योकि अब घरो में बेटिया नहीं राजकुमारिया जन्म लेती है और याद रखिये की  राजकुमारिया कपडे नहीं धोती :)।



चलते चलते  

                    एक हमारा देश है जहा महिलाओ से जुड़ा शायद ही कोई मुद्दा कभी भी चुनावी मुद्दा बनता हो और एक अमेरिका है , राष्ट्रपति का चुनाव दुबारा लड़ने जा रहे ओबामा ने अपने प्रतिद्वंदी से बहस करते हुए बताया की  उन्होंने महिलाओ और पुरुषो को सामान वेतन दिलाये है , जरा देखिये और सुनिए की ये मुद्दा वहां का चुनावी मुद्दा भी है और खुद ओबामा भी इस बात का जिक्र कर रहे है । असल में वहा पर महिलाए वोट करती है मतलब अपनी सोच समझ के हिसाब से,  इसलिए वो भी वोटर है , जबकि भारत में महिलाए वोट देती है किन्तु वोटर नहीं है मतलब की ज्यादातर महिलाए अपने घर के पुरुष सदस्यों के कहने पर ही वोट दे देती है या उनकी बाते ही सुन कर उसी से प्रभावित हो कर वोट दे दिया , राजनीति में वो रूचि नहीं लेती है और अपना दिमाग नहीं लगाती है ज्यादा से ज्यादा सिलेंडर महंगाई को ले कर हाय तौबा मचा दिया बस , तो जरा अपनी वोट की शक्ति पहचानिए और वोटर बनिये।


October 12, 2012

सर नोचने के लिए अपने हाथ कम पड़े तो मदद लीजिये ------------mangopeople




1-करीब दशक भर पहले महाराष्ट्र सरकार ने मुंबई में एक बड़े बिल्डर समूह को जो महंगे बड़े आलिशान फ़्लैट बनाने के लिए जाना जाता है, उसे मुंबई के बाहर एक बेसकिमती जमीन दे दी ताकि गरीब और माध्यम वर्ग के लिए छोटे और उनके बजट में आने वाले फ़्लैट बनाये ( वो भी तब जबकि महाराष्ट्र में भी डी डी  ए  की तरह म्हाडा नाम का सरकारी विभाग है जो खुद भी लोगो के लिए सस्ते घर बनाता है ) नतीजा बिल्डर ने उस जमीन पर बड़े बड़े आलिशान फ़्लैट बना दिया ( ये भी आश्चर्य की बात है की नक्शा  पास हुआ एक पूरा टावर खड़ा हो गया और सरकार को कुछ भी पता नहीं चला ) खबर लगी हो हल्ला हुआ और सम्बंधित विभागों की तरफ से बिल्डर समूह पर पर हजारो करोड़ ( शायद 2 हजार करोड़ ) का जुर्माना  लगा दिया गया , किन्तु जल्द ही महाराष्ट्र के "पावरफुल" नेता की कृपा से ये हजार से सौ करोड़ ( 2 सौ करोड़ ) में बदल गया । मामला आज भी आदालत में है । बिल्डर और नेताओ का शानदार मजबूत गठजोड़ देखिये , कहा कहा से पकड़ियेगा जहा एक रास्ते बंद कीजिये दुसरे खोल देंगे ।

   2-   नोयडा मे गरीब किसानो की जमीन का अधिग्रहण करके उसे अमीरों को फार्म हॉउस के लिए दे दिया गया और नीलामी में कहा गया की वो किसान भी जिनसे सरकार ने 25 पैसे में इस जमीन को ख़रीदा था वो भी अपनी ही जमीन को अब सरकार से 1 रु में खरीद सकते है और वापस से खेती माफ़ कीजियेगा अंग्रेजी में फार्मिंग कर सकते है ।  सरकार और बाबु की शानदार नीतियों का,  सोच का और गरीब किसान की हालत का नजारा देखिये , जनता के लिए बनी सरकार के जमीन के दलाल बन जाने का नजारा देखिये ।


3- मुंबई में सैनिको की विधवाओ के लिए ईमारत बनने वाली थी 7 मंजिला,  जिस विभाग के पास वो क्लियरेंस के लिए जाती उसी विभाग के बाबु और मंत्री को एक फ़्लैट उपहार में मिला जाती और धीरे धीरे ईमारत की ऊंचाई आसमान छूने लगी सैनिक और उनकी विधवाए कही पीछे ही छुट गए , सामने की सड़क की चौड़ाई कम कर दी गई, बगल में बस डिपो की जमीन  भी इसमें मिला दी गई ताकि और ज्यादा बड़ी ईमारत बने और उनके विभागों के बड़े बाबु, मंत्री को भी घर दे दिए गए । हो हल्ला हुआ जाँच शुरू हुई तो अंत में बात ये आ गई की न तो जमीन सैनिको की थी न ईमारत सैनिको की विधवाओ के लिए बन रहे थे तो काहे का घोटाला । किस्सा सुना है , एक रेगिस्तान  में आदमी तंबू लगा कर सोया था रात को ऊंट ने कहा थोड़ी जगह दे दो उसने दे दी सुबह उठा तो देखा की वो तंबू से बाहर है और ऊंट तंबू में बैठा है ।

4-  किसानो से खेती लायक उपजाऊ जमीने ली जाती है क्योकि घरो की कमी है और लोगो के लिए घर बनाना है किन्तु वहा बनते है अमीरों के लिए फार्मूला वन रेस का ट्रैक , गोल्फ कोर्स  ( निजी रूप से इस दोनों के बनाने से मुझे कोई आपत्ति नहीं है किन्तु वो खेती की जमीन सस्ते में गरीब किसानो से लेकर न बने जाये करोडो कमाते है तो खुद बाजार भाव पर जमीने ख़रीदे और उस पर बनाये ) और बड़ी बड़ी शानदार हर आलिशान सुविधाओ से युक्त इमारते, जो बस अमीरों की पहुँच में होती है, गरीब तो छोडिये माध्यम उच्च वर्ग के बस की बात भी नहीं होती है , बना दी जाती है और सरकारे कहती है की सब कानून के अंतर्गत हुआ है सब जनहित है । इस जन को भी देखिये और  जनहित का नजारा भी देखिये ।

5-कोर्ट ने कहा की देश की प्राकृतिक और खनिज सम्पदा को यदि सरकार चाहे तो देश हित में किसी भी नीजि  पार्टी को दे सकती है ।( पूर्व कानून मंत्री ने  जेटली  जी ने कहा की जज दो तरह के होते है एक वो जो कानून को जानते है और एक वो जो कानून मंत्री को जानते है, मैंने कुछ नहीं कहा ) वो सरकार जो जमीन अधिग्रहण बिल को सालो से अपने अंटी में दबा के बैठी है ( शायद इंतजार कर रही है की जब सभी जमीनों का अधिग्रहण हो जायेगा तब ये बिल लायेंगे ) क्योकि वो अभी तक इस बात को भी परिभाषित नहीं कर पाई है की बिल में जनहित की परिभाषा क्या रखे,  क्या ऐसी सरकारे भरोसे के लायक है । मोटरसाइकिल पर बैठ का युवराज जब भट्टा पर्सौला गए जल्द कानून का निर्माण करने का आश्वासन दे कर हीरो बन गए पर ये हिरोगिरी अपने सरकार से क्यों नहीं दिखा पा रहे है ।


6-अस्पताल के लिए ली गई जमीन पर एक दसक तक अस्पताल नहीं बनता है किन्तु सरकार को कोई फर्क नहीं पड़ता है,  फिर अस्पताल नहीं बना तो वो जमीन बिल्डर को दे देती है क्योकि उसे अधिकार है की वो जमीन का प्रयोग , बदल सकती है । बड़े अस्पतालों , स्कुलो कालेजो को कौड़ियो के दाम में  जमीने दे दी जाती है इस शर्त के साथ की वह गरीबो का इलाज और पढाई मुफ्त में होगी किन्तु वहा गरीबो के लिए कुछ नहीं होता और सरकारों को कई फर्क नहीं पड़ता है । क्या ऐसी सरकारों से हम उम्मीद करे की वो जनहित के बारे में सोचेंगी या इस बात को आगे भी लागु करवाएंगी की उनकी नीतियों से गरीबो का हित होता रहे । सरकारों का काम केवल नीतिया बना देना नहीं होता है उन्हें ठीक से लागु करवाना भी उन्ही का काम है ।

7-जरा सरकारी मुआवजे का भी हाल देखिये , किसानो को उनकी फसल बर्बाद होने पर 10 रु से लेकर 50 रु तक का मुआवजे का चेक दिया गया बेचारो को बैंक तक पहुँचने में ही 20 रु खर्च हो गए ( भुनाना जरुरी था क्योकि नहीं भुनाया तो अगली बार मुआवजा नहीं मिलेगा ) , टिहरी गांव जब डूबा तो लोगो को जमीन दी गई और मकान बनाने के लिए इतने कम रुपये ( 20 से 25 हजार रुपये दिए गए थे शायद ) दिए गए की उससे तो दो कमरों का ढ़ांचा भी खड़ा न होता , इंदिरा विकाश योजना में आज भी लगभग 20 हजार रुपये दिए जाते है लोन में घर बनाने के लिए (सरकारे खुद इतने में घर बना के दिखा दे )  । जमीन अधिग्रहण के लगभग हर केस में चाहे वो सेज, बांध , इमारते , सड़क आदि आदि किसी के नाम पर भी लिए गए, जमीने कौड़ियो के दाम में ख़रीदे गए और वह रहने खेती करने वालो को फिर से ठीक से बसाया नहीं गया स्थापित नहीं किया गया । गरीब के दो कौड़ी की औकत देखिये ।


8-करीब 50 हजार भूमिहीन मजदूरों ने मोर्चा निकला दिया और अंत में सरकार ने एक बार फिर उन्हें बेफकुफ़ बनाने हुए कहा की उनकी बाते मान ली गई है और लोगो को उनकी जरूरतों के हिसाब से घर खेती के लिए जमीने दी जाएँगी । क्या कहे एक तरह तो सरकारे किसानो से जमीने ले कर उन्हें भूमिहीन बना रही है दूसरी तरह वो भूमिहीन किसानो मजदूरो को जमीन देने का वादा  कर रहे है । संभव ये भी है की कल को  जंगल की जमीनों को इन्हें दे दिया जाये क्योकि गरीबो के नाम पर पर्यावरण मंत्रालय भी ज्यादा कुछ रोक नहीं पायेगा और मंजूरी आसानी से मिल जाएगी उसके बाद यही मजदुर जब उस जमीन को अपनी मेहनत से काम खेती के लायक बना देंगे तो उनका भी ऐसी ही अधिग्रहण कर लिया जायेगा,  बिलकुल वैसे ही जैसे राजनीति में पहुँच रखने वाला कोई किसी बिल्डर से लोन ले कर जमीन अपने नाम पर ले फिर उस जमीन का प्रयोग सरकार द्वारा बदलवाये जैसे खेती की या अस्पताल की जमीन पर ईमारत बनाने की इजाजत क्योकि बिल्डर के मुकाबले वो ये काम आसानी से और कम समय में करा सकता है और फिर उस जमीन को उसी बिल्डर को ऊँचे दाम पर बेच दे जिससे उसने लोन ले कर जमीन खरीदी थी । सत्ता में बैठी और उनके करीबी लोगो का तिकड़मी दिमाग देखिये ।


9-जो लोग ये सोच रहे है की ये एक दलीय कार्यक्रम है वो जान ले की ये घपले घोटाले भी अन्य  सभी घपले घोटाले की तरह ही सर्वदलीय है , इसमे सभी दल की सरकारे और लोग मिले हुए  है , और सभी इन कंपनियों से बराबर का रिश्ता रखती है और फायदा लेती है । जैसे अब खबर आ रही है की डी एल ऍफ़ को गुजरात में भी जमीने दी गई है बिना किसी नीलामी के,  वहां वही कांग्रेस हल्ला मचा रही है जो कहती है की हरियाणा में कुछ भी गलत नहीं हुआ  और ये रिश्ता भी आज का नहीं है जैसे डी  एल ऍफ़ का रिश्ता राजीव से बहुत ही घनिष्ठ रहा है और इस घनिष्ठता ने ही उसे इतना आगे बढाया था । रिश्तो के इस मजबूत और लम्बी जोड़ को देखिये ।


10-कल टीवी पर एक और खिजाने वाले केस के बारे में सुना की कर्नाटक टूरिज्म विभाग ने अपनी जरूरतों के लिए जमीन अधिग्रहित की जमीन लेने के बाद कहती है की उसके पास मुआवजे के लिए पैसे नहीं है ( लो कल्लो बात अंटी  में नहीं कौड़ी अम्मा भुनाने दौड़ी ) बाद में उसने कहा की एक दूसरी प्राइवेट पार्टी  है जो पैसे देने के लिए तैयार है बस एक छोटी सी शर्त है वो ये की ये सारी जमीने उसे देनी  होंगी हा हा हा हा हा हा हा हा सुकर  है की मामला कोर्ट में गया और कोर्ट ने विभाग की  अच्छी खबर ली और किसानो को न्याय दिया ।  टीवी पर ये सुन कर मैंने कहा की बिटिया रानी मेरे दो हाथ मेरा सर नोचने के लिए कम पड़  रहे है दो अपने भी लगाना , आप के अपने हाथ भी अपने सर नोचने के लिए कम पड़े तो मित्रो से मदद लीजिये और हमारी तरह ही कुछ न कर पाने की खीज में अपने खिजाने वाले किस्सों की एक पोस्ट बना दीजिये । 



चलते चलते 
       
              कहा जा रहा था की वालमार्ट आएगा तो भारत में रोजगार मिलेगा , अच्छा वेतन मिलेगा , काम   की सही सुविधा जनक जगह मिलेगी आदि आदि , अब सुना है की अमेरिका में वालमार्ट के कर्मचारी कम वेतन , काम के ज्यादा घंटे , सुविधाओ की कमी आदि आदि को लेकर हड़ताल पर चले गए है ।










October 09, 2012

स्पष्टीकरण ----------mangopeople



                                              मै भी हूं मैंगो पीपल लेकिन मै बनाना रिपब्लिक में नहीं रहती हूं , या मै अपने देश को बनाना रिपब्लिक नहीं मानती हूं , या मै अपने देश को बनाना रिपब्लिक नहीं बनाना चाहती हूं , या मैंने देश को बनाना रिपब्लिक नहीं बनाया है | सोचा स्पष्टीकरण दे दू इसके पहले की लोग आ कर मुझसे पूछे की आप भी सोनियागांधी के दामाद और प्रियंका गाँधी के पति राबर्ट वाड्रा , अब सवाल ना उठाइये की इतना लंबा परिचय क्यों, तो ये परिचय देना पड़ता है क्योकि इसके बिना उनका अपना कोई अस्तित्व नहीं है,  ये परिचय है तो डी एल एफ से वो बड़ा करीबी वाला रिश्ते है , साथ में कर रहे व्यापार में इतना विश्वास है की जो कंपनी खुद ब्याज के साथ उठाए कर्ज के बोझ तले दबी है वाड्रा को बिना ब्याज के करोडो का लोन दे देती है, इसी के बल पर डी एल एफ को मन चाही जमीने मिल जाती है , ये  परिचय है तो वो विभिन्न सरकारी विभागों को जैसा चाहे वैसा अपने व्यपार का लेख जोखा  बना कर दे दे वो ठीक बन जाता है , उनकी जाँच नहीं होती है , कोई पूछता नहीं की बिना एक भी कर्मचारी की कंपनी बिना किसी लेन देने के बिना किसी व्यापार के कैसे कई सौ करोड़ की कंपनी में बदल जाती है ,कोई पूछ ताछ नहीं होती है , ये परिचय है तभी आज विभिन्न राजनैतिक दल उन पर आरोप लगा रहे है उन से जवाब मांग रहे है,  ये परिचय है तभी १२१ साल ??? पुरानी कांग्रेस पार्टी का चपरासी से लेकर मंत्री संत्री नेता परेता तक उन्हें बचाने पर लगी है जिसके वो प्राथमिक सदस्य भी नहीं है , साफ है की कालिदास ? ने भले कहा है की नाम में कुछ नहीं रखा है किन्तु नाम के आगे पीछे लेगे परिचय में बहुत कुछ रखा है | तो अब इस परिचय गाथा के आगे मूल बात पर आते है की इसके पहले की कोई मुझसे पूछे आप भी उनकी तरह मैंगो पीपल है तो जरा बताइये की तीन साल में ५० लाख कुछ सौ करोड़ मै कैसे बदला जाता है , कैसे इतने बड़े बिल्डर से इतने कम दाम में मकान , प्लाट आदि ख़रीदा जाता है , कैसे किसी से भी बिना ब्याज के लोन लिया जाता है , तो आप को बता सभी को बता दूँ  की मुझे इस बारे में कुछ नहीं पता है,  अरे पता होता तो कब का खुद ही घर मकान दुकान गहना गुत्ता बेच बांच कर हम भी लाखो को अरबो में बदल चुके होते ( हा यदि रातो रात हम पेट्रोल पर 3 रु का फ़ायदा पा  रही सरकार के पेट्रोल की कीमतों में  71( मुंबई में ) पैसे की भारी भरकम राहत से करोडपति बन जाये तो मेरी गलती नहीं है )  | एक बात याद रखिये की मैंगो कई तरह का होता है एक होता है , एक होता है देशी मांगो पिलपिला सा जिसे काट कर , गुलगुला कर निचोड़ कर बेदर्दी से खा लिया जाता है सड़क पर ढ़ेले पर उलट कर २० रु किलो बेच दिया जाता है वो वाले मैंगो पीपल है आप और हम और दूसरा होता है  खास मैंगो यदि उसे बिदेश से मंगाया जाये या किसी बिदेश और भारतीय खास मैंगो से मिला कर उगाया जाये तो वो और भी खास हो जाता है  जो बड़े बड़े सुपर स्टोर में झाड पोछ कर सजा कर रखा जाता है और बिकता है १००० से १५०० रु दर्जन जिसे हम और आप बस देख कर आँख ही सेक सकते है उसे पाने का सपना देख सकते है , उसे पा नहीं सकते है | जरा  नींद से जागिये और अपने देशी पिलपिले मैंगो के अवतार को स्वीकार कीजिये और हा ये भी मत सोचिये की देश यदि बनाना रिपब्लिक बन गया है या बन जाये तो आप को बनाना सस्ते में मिलेंगे जी नहीं ऐसा भी नहीं होने वाला है , हा एक मायने में अपना देश तो बनाना रिपब्लिक बन ही गया है की यहाँ सरकार में बैठे लोगों , उससे जुड़े लोग , उसको फायदा पहुँचाने वाले लोगों के लिए कोई नियम कानून आदि आदि नहीं होता है इसलिए यदि श्री श्री १०४ राबर्ट वाड्रा अपने देश को बनाना रिपब्लिक बोलते है तो सही ही कह रहे है इसमे मजाक वाली का बात है |
                                                  दिमाग पर जोर डालू तो कुछ ६-७ साल पुरानी बात है नोयडा के एक बड़ी कंपनी के बड़े आफिसर का छोटे बच्चे का अपहरण हो गया था फिरौती ५ करोड़ मांगी गई थी सपा के अमर सिंह रात दिन वहा जा कर बैठे थे उनकी सरकार थी बड़ा हो हंगामा हुआ था पिता हाथ जोड़ जोड़ कर मिडिया के सामने रो रहा था की आप लोग खबर ना दिखाए मेरे बेटे की जान को खतरा हो सकता है बच्चा कुछ दिन बाद सही सलामत आ गया खबर उडी की रकम दे कर बच्चा वापस आया और अमर सिंह ने कहा की रकम दी गई थी किन्तु बच्चे के साथ वो भी बरामद हो गई , लो जी जैसे ही ये खबर आयकर विभाग को मिली विभाग ने उस पिता को नोटिस भेज दिया की आप के पास ये रकम कहा से आई पूरी जानकारी दे और बाद में इनके घर रेड भी पड़ी , इधर अमिताभ का रिश्ता गाँधी परिवार से टुटा और उधर उनको आयकर विभाग की नोटिस मिलने की झड़ी लग गई , यहाँ तक की अस्पताल में भर्ती थे वहा भी नोटिस भेज दिया गया और कितन किस्से कहानी सुनाये आप सभी समझदार है |

                                                                            २



 हरियाणा में महीने भर के अंदर महिलाओ के साथ बलात्कार होने का रिकार्ड बनने जा रहा है ( केवल पुलिस में  दर्ज होने वाले ) परेशान हो कर खाप पंचायतो ने इसका तोड़ निकाल दिया कहा है की हम सरकार के पास प्रस्ताव भेजेंगे की अब लड़कियों का विवाह १५ साल में कर देने की आज्ञा दे | विवाह एक बहुत बड़ी सुरक्षा कवच होती है लड़कियों की सुरक्षा के लिए एक बार विवाह हो जाये तो कोई भी उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता है | इस तरह की घटनाए आज जन्म ली बच्चियों के साथ और छोटे बच्चो के साथ भी हो रही है तो क्या कल विवाह की आयु और कम किये जाने की वकालत की जाएगी । हमें तो ये  उपाय समझ नहीं आ रहा है  बढ़े बूढ़े जो कह रहे है वो ठीक ही कह रहे होंगे , हम लोगों को आदत है बुजुर्गो का अनादर करने की , उनकी बात नहीं सुनने की  |

September 26, 2012

ये किस पेड़ के पैसे से हो रहा छवि निर्माण --------------mangopeople



आज कल बड़े जोर शोर से सभी टीवी चैनलों पर भारत का निर्माण हो रहा है और इस निर्माण पर करोड़ो  रूपये खर्च कर रही है वो सरकार जो कहती है की उसके पास जनता को सब्सिडी देने के लिए पैसे नहीं है , अब कोई पुछे  की सरकार की छवि निर्माण के लिए किस पेड़ से पैसे आ रहे है ( उस पेड़ का नाम है आम जानता की जेब ), शायद राजनीति में सबक लेने की परम्परा नहीं है यदि होती तो मौजूदा सरकार पूर्व में इण्डिया शाइनिंग का हाल देख कर ये कदम नहीं उठाती | बचपन में नागरिक शास्त्र की किताब में पढ़ा था की किसी देश की सरकार का काम बस लोगों से टैक्स वसूलना और खर्च करना नहीं होता है उसका काम ये भी है की अपने देश में रह रहे गरीब ,असहाय लोगों को हर संभव मदद भी करना और उनके लिए जीवन की प्राथमिक जरूरतों को पुरा करना  , सब्सिडी उसी के तहत आती है ताकि गरीब लोगों तक भी उन सुविधाओ को पहुँचाया जा सके जो उनके बस में नहीं है , सरकार ये काम देश से आंकड़े जुटा कर करती है  किन्तु जब सरकार के आकडे ही सही नहीं है तो वो ठीक से योजनाए कैसे बनाएगी ,  ३२ रु रोज कमाने  वाले को गरीब ना मानने वाली सरकार भला गरीबो के लिए क्या करेगी | विश्व बैंक का दबाव है की सब्सिडी ख़त्म की जाये किन्तु समस्या सब्सिडी नहीं है समस्या ये है की सही लोगों को सब्सिडी नहीं मिल रही है | महंगाई को सबसे ज्यादा बढ़ाने का काम करता है डीजल की बढ़ती कीमते क्योकि डीजल की कीमत बढने के साथ ही सभी सामानों की माल ढुलाई का खर्च बढ़ता है और एक ही बार में सभी चीजो के दाम बढ़ जाते है |  प्रयास तो ये करना चाहिए था की डीजल की खपत कम किया जाये उसे केवल कुछ जरुरी कामो के लिए प्रयोग किया जाये ना की महँगी बड़ी गाडियों के लिए या बिजली के उत्पादन आदि के लिए , होना तो ये चाहिए था की बाजार में सभी डीजल गाडियों और एक के बाद एक आ रही बड़ी महँगी डीजल गाडियों पर बड़ा टैक्स लगाना जाये  ,( कुछ आर्थिक सलाहकारों ने यही राय दी थी किन्तु सरकार ने उसे माना नहीं क्यों वही बेहतर बता सकती है  )  इससे सरकार की आमदनी भी बढ़ती और लोग डीजल गाड़िया लेने से परहेज करते उसकी खपत कम होती और सरकार पर सब्सिडी का बोझ कम होता , इसी तरह डीजल के अन्य गैर जरुरी प्रयोगों को रोक कर सब्सिडी के बोझ को कम किया जा सकता था,  किन्तु सरकार ने बड़ी कार कंपनियों को नाराज करने के और महँगी गाड़िया खरीदने वालो पर टैक्स का बोझ डालने के बजाये एक आसान रास्ता अपनाया की डीजल की ही कीमत बढ़ा दिया जाये और पूरे देश को हर रूप में इसका बोझ सहने के लिए मजबूर किया जाये |
                                                   
                                                  यही काम उसने गैस पर दी जा रही सब्सिडी पर भी किया , कहने को वो सब्सिडी दे रही है किन्तु जिसे मिलना चाहिए उसे मिल ही नहीं रहा है | साल में  मुझे ६ सिलेंडरो की जरुरत होती है जो मौजूदा नियम के अनुसार मुझे सब्सिडी वाली मिल जाएगी किन्तु बेचारी मेरी गरीब काम वाली बाई जिसे साल में ९ से १२ सिलेंडर की जरुरत है उसे पूरी सब्सिडी नहीं मिल रही है , हाल में ही आर टी आई के जरिये पता चला की एक बड़े उधोगपति , सांसद जिन्हें कोल ब्लोक भी मिला था उन्हें साल में करीब ७०० से ऊपर सब्सिडी वाले सिलेंडर मिल रहे थे , इसे देख कर आप समझ सकते है की योजनाओ में कितनी गड़बड़ी है सब्सिडी असल में मिलना किसे चाहिए था और मिल किसे रही है, क्या कोई उद्योगपति सांसद या जिनकी आय साल में १० लाख रूपये से ऊपर है  इस लायक होता है की उसे एक भी सब्सिडी वाला सिलेन्डर मिले  , लेकिन  जो नियम अभी सरकार ने बनाया है इससे भी उन्हें ६ सब्सिडी वाले सिलेंडर तो मिलेंगे ही,  इस नियम से सिलेंडरो की कालाबाजारी ही ज्यादा होगी , साथ ही ये नियम कम से कम भारत जैसे देश में जहा संयुक्त परिवार की परम्परा है वहा के लिए तो बिल्कुल भी उपयुक्त नहीं है जहा माता पिता बच्चो के साथ ही रहते है , कुछ समय पहले पढ़ा था की अब से एक पते पर बस एक ही गैस कनेक्शन मिलेगा ये बड़े शहरों में एकल परिवारों के लिए तो ठीक है किन्तु छोटे शहरो और गांवो में जहा संयुक्त परिवार है या एक ही घर में कई भाई रहते है वहा  के लिए ये नियम कैसे ठीक होगा  |  समझ नहीं आता की सरकार में बैठे लोग जो नियम कानून बनाते है उन्हें भारतीय परिवेश रहन सहन की कोई भी जानकारी है भी या नहीं | एक टीवी चैनल पर सुना की सरकार कहती है की देश में २८ % लोग ही एल पी जी का प्रयोग करते है और जिसमे से आधे से ज्यादा  शहरी लोग है यदि ये खबर सही है तो आप अंदाजा लगा सकते है की सरकार के पास कितने गलत आंकड़े है और गलत आंकड़ो के साथ वो गलत नियम ही बनाएगी |
            
                                                                   नीति नियम बनाने वाले क्या, सरकार की प्राथमिकता तय करने वाले भी भारत के बारे में और उसकी प्राथमिकता के बारे में कितना जानते है उस पर भी शक होता है,  एक तरफ देश में एक के बाद एक राज्य में कुपोषण की खबरे हमें शर्मसार कर रही थी वही यु एन के रिपोर्ट ने तो हमें पाकिस्तान और अफ़्रीकी देशों से भी गया गुजरा बता दिया कुपोषण के मामले में , जहा सरकार की प्राथमिकता भूख कुपोषण से मर रहे लोगों तक भोजन पहुँचाने की होनी चाहिए थी वहा सरकार किराना में एफ डी आई  लाने के लिए अपनी  सरकार ही दांव पर लगाने के लिए तैयार थी |  सरकार के चिंता का विषय गरीब भूखे लोग नहीं बल्कि वो है जिन्हें कभी अपने खाने पीने की चिंता करने की जरुरत ही नहीं होती है और सरकार उनकी चिंता में मरी जा रही है ( असल में तो उन लोगों की भी चिंता नहीं है असल चिंता तो अमेरिकी कंपनिया उनके हित और अमेरिका में होने जा रहे राष्ट्रपति चुनाव है )   | वो सरकार जो खुद कई बार अपने किसानो को उनकी फसलो का ज्यादा दाम देने के बजाये विदेशो से सडा गला अनाज कई गुना महंगे दामो पर खरीद कर लाती है वो उम्मीद कर रही है की कोई विदेश कंपनी उनके किसानो को उचित दाम दे कर रातो रात अमीर बना देगी , मतलब गरीबी हटाओ का उनका नारा कोई विदेशी कंपनी पुरा करेगी , और वो अपना मुनाफा छोड़ कर ऐसा क्यों करेगी इसका जवाब तो सरकार ही दे सकती है | यदि किसानो के भले का तर्क देने वाले भारत के किसानी  का हाल देखते तो ऐसा नहीं कहते , शायद उन्हें पता नहीं है की गरीब वो किसान नहीं है जिनके पास सैकड़ो एकड़ जमीने होती है या जो आधुनिक खेती करते है जिनकी संख्या काफी कम है गरीब वो किसान है जिनके बस दो चार बीघा जमीन है और पैदावार बहुत कम जिनकी संख्या देश में लाखो है , पता नहीं ये वालमार्ट वाले कैसे एक एक छोटे किसान के पास सीधे जा कर उनसे माल खरीदेंगे जो आज तक हमारे भारतीय व्यापारी नहीं कर पाये वो भी सीधे खरीद कर ज्यादा माल कमा सकते थे | ये भी समझ नहीं आता की यदि रिटेल में एफ डी आई इतना ही भारतीय उपभोक्ता के लिए फायदे मंद है और वो महंगाई को जमीन पर ला देगी ( ये काम भी हमारी सरकार नहीं कर पाई वो तो बस तारीख पर तारीख देती रही और महंगाई बढ़ती रही उसके लिए भी आउट सोर्सिंग की जा रही है की २०१४ चुनावों  तक सस्ते माल बेच दो उसके बाद जो चाहे करते रहना कौन पूछने वाला है यहाँ ) तो फिर १० लाख लोगों वाले शहर तक की इसे क्यों सिमित किया जा रहा है इसे पूरे भारत में लागु करना चाहिए था,  केवल बड़े शहर ही क्यों सस्ते समान का लाभ ले , छोटे शहरो गांवो के लोगों को भी इसका फायदा मिलना चाहिए , साथ में जितना माल बेचेंगे उतना हमारे किसान खुशहाल होंगे ( जो वालमार्ट खुद अमेरिका में भी चीनी सस्ते समान बेचता है वो हमारे यहाँ हमारे लोगों से समान ले कर बेचेगा,  ३०% समान भारत से खरीदने की सर्त का क्या हाल होता है वो किस रूप में प्रयोग होता है वो भी दिख जायेगा ) |
                     
                                                                    जो सरकार लोकपाल, महिला आरक्षण  जैसे अनेको बिल को आम सहमती के नाम पर लटकाए रहती है वो इन मुद्दों पर आम सहमती बनाने की जरुरत नहीं समझती है बल्कि अपनी सरकार तक को दांव पर लगा देती है और रातो रात काम होता है नोटिफिकेशन जारी हो जाता है | यदि  सरकार देश से महंगाई , भ्रष्टाचार , कुपोषण आदि समस्याओ को ख़त्म करने की  इतनी इच्छा शक्ति दिखाती तो देश कहा से कहा पहुंचा गया होता | करीब १०-१२ साल पहले एक खबर पढ़ी थी की अमेरिका के एक कस्बे में वालमार्ट अपना स्टोर खोलना चाह रहा था, तो वहा के प्रशासन ने पहले लोगों से राय जानने के लिए इस मुद्दे पर वोटिंग कराई और ९०% लोगों ने स्टोर खोलने का विरोध किया और कहा की वो यहाँ के छोटे स्टोर चला रहे लोगों के हितो को अनदेखा नहीं कर सकते है , क्या भारत में कभी ऐसा हो सकता है , शायद कभी नहीं यहाँ तो हम एक बार वोट देने के बाद अपने हाथ और जबान कटवा लेते है ५ साल के लिए |

 प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को उनके  जन्मदिन पर ढेरो बधाई और अपने जन्मदिन के पहले ही वोट के बदले हम जैसो को रिटर्न गिफ्ट में इतना कुछ देने के लिए  धन्यवाद !



चलते चलते

               इधर सरकार ने सब्सिडी वाले गैस सिलेंडरो की संख्या कम की उधर बाजार में अचानक से राजमा , मटर, बैगन , गोभी की मांग आसमान छूने लगा , असल में लोगो ने महंगे सिलेंडरो को देखते हुए तय किया की वो बाकि के गैस का उत्पादन खुद कर लेंगे !

August 28, 2012

आखिर प्रधानमंत्री ने जवाब दिया की इतना सन्नाटा क्यों है भाई ! - - - - - mangopeople


कई दसको  से पूछा जा रहा  इस सवाल का जवाब ठीक से नहीं मिल पाया था कि "इतना सन्नाटा क्यों है भाई ! अब इस सवाल का जवाब ठीक तरीके से और संतुष्टि के लायक दिया है प्रधान मंत्री ने कि
हजार जवाबो से बेहतर है मेरी ख़ामोशी,
न जाने कितने सवालो की आबरू रखी है |
सोचिये कि यही सब एक आम आदमी को कही और भी सुनने को मिल जाये तो क्या होगा
  , आम आदमी सुबह उठता है और देखता है फोन का नेटवर्क गायब है , ना फोन आ रहा है ना जा रहा है बस नम्बर डायल करते ही पैसा कट रहा है  , वो घबडा कर कस्टमर केयर को फोन करता है दना दन सवालो की झड़ी लगा देता है और उधर से मिलती है ख़ामोशी और वो कहता है इतना सन्नाटा क्यों है भाई , जवाब मिलता है की
हजार जवाबो से बेहतर है मेरी ख़ामोशी
न जाने कितने सवालो की आबरू रखी है |
"भाई इसका क्या मतलब है , मै आप का ग्राहक हूं आप मेरे प्रति जवाब देह है आप को जवाब देना होगा | "
" सर इसका मतलब है की हम यहाँ आप की सेवा के लिए नहीं पैसे कमाने के लिए बैठे है , आप जैसे टुच्ची ग्राहक कोई रिंग टोन नहीं लेते, कालर टियून नहीं लगाते, कोई गेम नहीं खेलते , नेट का प्रयोग नहीं करते है , बस खालिस फोन सुनना और घडी देख कर फोन करना , क्या आप जैसे ग्राहकों से हमारी हजारो करोड़ की कम्पनी चलेगी , दो चार रूपये कट क्या गये फ्री में मिल रही कस्टमर सेवा का नाजायज प्रयोग करने चले आये , दिन में दस बारह मिनट बात करेंगे और नेटवर्क हर दम फुल चाहिए, ये कंपनी आप जैसो को फोन सेवा देने के लिए नहीं खोली गई है और ना ही आप के दम पर चलती है , आप को ये भी बता दे की जल्द ही हमारी हर सेवा का दाम बढ़ने वाले है क्योकि कंपनी को बहुत घाटा हुआ है , पहले नेताओ को खिला पिला कर कम दाम में  3G में आप को बीजी रखा था लेकिन वो पैसा डूब गया अब फिर से कंपनी को बोली लगानी होगी , जो खिलाने पिलाने में कंपनी का पैसा डूब गया उसकी भरपाई कौन करेगा , तो तैयार रहिये  |
  आम आदमी परेशान ये क्या हो रहा है " अरे लगाता है गलत नंबर लगा दिया क्या  "
जवाब मिलता है नहीं सर,  मैंने तो पहले ही कहा था की मेरी ख़ामोशी बेहतर है आप के सवालो पर चुप रह कर मैंने सवालो के साथ आप की भी आबरू बचाई थी किन्तु आप समझे नहीं , तो भुगतिये |
बेचारा आम आदमी घबरा कर फोन रख देता है |
सोचता है नहा धो कर आफिस चला जाये लेकिन ये क्या नल में सन्नाटा छाया है पानी नहीं है , परेशान हो कर जल बोर्ड को फोन लगाता है " ये नलो में इतना सन्नाटा क्यों छाया है भाई"  , जवाब में उसे भी सन्नाटा और ख़ामोशी ही मिलती है | " कोई है कोई जवाब देगा मुझे " और जवाब मिलता है कि
हजार जवाबो से बेहतर है मेरी ख़ामोशी
न जाने कितने सवालो की आबरू रखी है |
वो परेशान ये क्या हो रहा है जिससे भी सवाल करो वो कोई जवाब ही नहीं देता है और ये शेर बक देता है किसी की कोई जवाब देहि है की नहीं | वो फिर से निवेदन करता है"  भाई साहब क्या बताएँगे की नलों में पानी क्यों नहीं आ रहा है और यदि आयेगा तो कब आयेगा |"
" तो आप को जवाब चाहिए तो सुनिये जनाब की सुबह ५ बजे १० मिनट के लिए पानी आया था आप ने नहीं भरा तो ये आप की गलती है | पानी का संकट चल रहा है बचा पानी वी आई पी इलाको के लिए है आप जैसे टुच्ची से आम लोगों के लिए नहीं | वो वी आई पी देश की धरोहर है उनके जाने से देश को काफी नुकशान होता है उनके ना नहाने से देश की इज्जत को कितना बट्टा लगेगा आप को पता है , उनके खाली स्वीमिंग पुल और सूखे बगीचे देश की नाक नीची कर देंगे और आप ठहरे आम आदमी यहाँ हम लोग आप की सेवा के लिए नहीं बल्कि इस लिए बैठे है की पानी को बड़े लोगों के इलाको में ठीक से बचा कर सप्लाई किया जा सके कुछ बचा गया तो आप लोगों को भी दे दिया जायेगा , और जरा अन्ना के इस सोच से बाहर आइये की आप मालिक है और हम सब आप के नौकर ...................|
इसके पहले की उधर से कुछ और कहा जाता उसने फोन रख दिया |
किसी तरह तैयार हुए तो देखा की रात की गई बिजली अभी तक नहीं आई है , गर्मी से बेहाल हो कर बाहर निकले तो पता चला की पूरी कालोनी में ही बिजली गायब है , तो टहलते हुए बगल के ही बिजली विभाग के आफिस चले गये  "भाई क्या इरादा है आज बिजली देनी है की नहीं "
" जी जब आना होगा तो आ जायेगी "
" ये क्या जवाब हुआ भला " लेकिन उधर से कोई जवाब नहीं मिला सन्नाटा पसरा रहा | "कम से कम इतना तो बता दीजिये की कोई बड़ी परेशान तो नहीं है " तो  फिर से वही शेर दुहराया गया
हजार जवाबो से बेहतर है मेरी ख़ामोशी
न जाने कितने सवालो की आबरू रखी है |
" हे प्रभु यहाँ भी जवाब के बदले ये शेर कोई जवाब नहीं मिलेगा क्या  "
" तो आप को जवाब चाहिए तो सुनिये की बिजली का उत्पादन बहुत कम है सो राज्य को बिजली बहुत कम मिल रही है जो मिल रही है वो मंत्री नेताओ और वी आई पी  इलाको के लिए है उस पर से आप के राज्य में चुनाव हो चुके है नये चुनाव होने में अभी तीन साल बाकि है जबकि दूसरे चार राज्यों में कुछ ही महीनो बाद चुनाव होने है , कुछ वो राज्य है जिनके सरकारों के सहारे केंद्र की सरकार टिकी है,  सरकार के हिसाब से वहा पर लोगो को आप से ज्यादा बिजली की जरुरत है उन्हें वोट देना है और आप पहले ही अपने वोट दे कर अपने हाथ कटा  चुके है आप के पास सरकार को बिजली के बदले देने के लिए कुछ भी नहीं बचा है इसलिए जरा ठंड रखिये और गर्मी के मजे चार महीने और लीजिये और आम आदमी है और आम आदमी ही बन कर रहिये काहे वी आई पी बनने की चेष्टा करते है और ऐसे मुँह उठाये चले आते है जैसे की हम आप की सेवा के लिए ही बैठे है | "
आम आदमी परेशान कुछ तो गड़बड़ है कुछ है जो उसे नहीं पता चल रहा है , सोचा बाहर निकले तो कुछ पता चले बाहर आ कर देखा तो विधायक जी अपने चेले चपाटो के साथ मोहल्ले के दौरे पर निकले है , पता चला की अभी अभी हत्या , अपहरण फिरौती के केस में बरी हुए है , असल में दो गवाह थे और दोनों ही गवाहों की एक मामूली सी सड़क दुर्घटना में मौत हो गई सो बच गये | आम आदमी को अच्छा मौका मिला वो फट विधायक से पास गया और फुल माला से लदे सभी को देख हाथ जोड़े उनका अभिवादन कर रहे विधायक जी रुक गये , उनके रुकते ही आम आदमी ने बिजली पानी सड़क सब चीजो का रोना शुरू कर दिया , लेकिन ये क्या विधायक जी कोई जवाब ही नहीं दे रहे है यहाँ भी सन्नाटा आम आदमी ने फिर निवेदन किया तो फिर से वही शेर हाजिर था |
हजार जवाबो से बेहतर है मेरी ख़ामोशी
न जाने कितने सवालो की आबरू रखी है |
ये सुनते ही आम आदमी का दिमाग सटक गया वो झल्लाया और  सीधे उनके सामने ही खड़ा हो गया " विधायक जी मैंने आप को वोट दिया है अब आप हमें जवाब दीजिये "
" अच्छा तो तुमको जवाब चाहिए तो सुनो आप की आधी अवैध कालोनी को मैंने बड़ी उम्मीद से क़ानूनी जामा पहनाया था की वोट की खेती होगी किन्तु आप लोगों में से आधो ने वोट नहीं डाला और बाकियों ने किसे दिया पता ही नहीं चला यदि इतनी मेहनत मैंने बगल के फलाने समुदाय वालो और जाति वालो की कालोनी को वैध करने में की होती वो पुरा वोट बैंक बना गया होता , आप कोई वोट बैंक है आप की औकात एक या दो वोट से ज्यादा की नहीं है और हम से जवाब मंगाते है , शुक्र मनाईये ही रहने को छत है ना तो वो भी नहीं होती जो मिल गया उसी का संतोष कीजिये ज्यादा की उम्मीद कर ज्यादा महत्वाकांक्षी ना बनिये , वैसे भी आज कल आम आदमी की कमाई ज्यादा हो गई है उसको पैसे की क्या कमी है पानी बाजार से खरीदिये और घरो में इनवर्टर लगाइये और हर बात में हमसे जवाब मांगना बंद कर दीजिये वोटर है और वही बन कर रहिये , वो आप लोग ही है जिनकी वजह से मेरे गरीब वोटरों को महंगाई का भर सहना पड़ रहा है आप ज्यादा कमा और खा रहे है जिससे खाने की कमी हो गई है और महंगाई बढ़ रही है   |
आम आदमी को लगा की विघायक जी ने तो आज नहाने की कसर सबके सामने पानी डाल कर पूरी कर दी , अब उसे सबके कहे जा रहे शेर सवाल जवाब , ख़ामोशी , आबरू का मतलब कुछ कुछ समझ आने लगा था |
घबराये और कुछ डरे हुए आम आदमी आफिस पहुंचता है वहा भी सन्नाटा छाया है , घुसते ही पता चलता है की इस साल भी  उसकी प्रमोशन नहीं हुई उलटे वेतन बढ़ोतरी भी उम्मीद के मुताबिक नहीं है | सारे मिल कर बात करते है और तय किया जाता है की चल कर बॉस से सीधी बात की जाये , साल भर इतनी मेहनत की गई है पसीने बहाए गये है उसका कुछ तो फल मिलना चाहिए ना और सभी का प्रतिनिधि बना कर उसेको ही बॉस के केबन में ढकेल दिया जाता है | पसीने से तर बतर वो सवाल करता है सर ये क्या इस बार भी प्रमोशन मेरे हिस्से नहीं आया उस पर से सारे टार्गेट पुरा करने के बाद भी वेतन में इतनी कम वृद्धि | जवाब के इंतजार में खड़ा उसको मिलती है ख़ामोशी , सर कुछ तो बोलिये |
हजार जवाबो से बेहतर है मेरी ख़ामोशी
न जाने कितने सवालो की आबरू रखी है , बॉस का जवाब |
अब वो सुबह से ये सुन सुन कर पक चूका है तय किया की इस बार तो जवाब ले कर ही रहूँगा , सर ऐसे नहीं चलेगा कुछ तो बताना होगा |
" तो सुनो की टार्गेट पुरा कराने के लिए दो चार अच्छी अच्छी बाते मोटिवेशन के लिए कहा दिया कि तुम लोग तो कंपनी के असली ताकत हो , कंपनी तुम लोगो से चलती है आदि आदि लगता है  तुम लोगो ने उसे कुछ ज्यादा ही गंभीरता से ले लिया  | तुमको क्या लगता है की ये कंपनी तुम्हारे बल पर तुम्हारे काम से चल रही है तो ये गलतफहमी दिमाग से निकाल दो , तुम्हारे जैसे हजारो अपनी प्रतिभा फईलो में लिए बाहर लाइन लगा कर खड़े है, तुमसे आधे में नौकरी पर आ जायेंगे और गधो की तरह बिना कुछ पूछे काम करेंगे , लाख करोड़ कंपनी में तुम बस चवन्नी भर हो जो चलना बंद भी हो जाये तो किसी को कोई फर्क भी नहीं पड़ेगा | कहते हो की मेहनत किया है उसका फल चाहिए तो जो हर महीने वेतन घर ले जाते हो वो क्या है, ये सरकारी आफिस नहीं है ,  यहाँ हराम की खाने आये हो क्या , जीतनी मेहनत की है उतना हर महीने तुमको मिल जाता है , अब क्या इस टुच्ची सी मेहनत के लिए कंपनी के शेयर तुम्हारे नाम लिखा दिया जाये , और चले आये नेता गिरी करने ज्यादा चू चपेड करोगे तो कंपनी ही यहाँ बंद कर कही और शिफ्ट कर दी जाएगी , फिर करते रहना ये यूनियन गिरी ,  जो मिल रहा है उससे भी हाथ धो दोगे |
केबन के साथ ही  उसके दिमाग में भी सन्नाटा छा जाता है और अपनी आबरू गवा के केबन से बाहर आ जाता है |
शाम थके हारे घर में आता है सर दर्द से फटा जा रहा है  , एक तरफ बैग फेका दूसरी तरफ जूता कपडे निकाल पर बिस्तर पर फेका और सोफे पर धस गए " एक कप चाय मिलेगी " कोई जवाब नहीं मिलता है और ना ही चाय " वो दुबारा आवाज लगाता है " ये घर कितना फैला रखा है ,  कब से एक कप चाय मांग रहा हूं कोई जवाब क्यों नहीं दे रही हो " एक बार फिर सन्नाटा ! तभी पत्नी जी अवतरित होती है उनकी बड़ी हो रही आखे देख कर ही इस सन्नाटे से वो डर जाता है दिल जोर जोर से धड़कने लगता है उसे सामने आ रह तूफान साफ दिख जाता है | " क्या कहा तुम्हे जवाब चाहिए " वो दोनों हाथ जोड़ कर घुटनों के बल पर जमीन में गिर जाता है और गिडगिडाने लगता है " नहीं नहीं मुझे कोई जवाब नहीं चाहिए , मैंने तो कोई सवाल किया ही नहीं फिर जवाब किस बात का , मेरे नादानी में किये गये सवालो को चूल्हे में डालो , मेरी बची खुची आबरू की रक्षा करो जो आज कई बार लुट चुकि है " |
" नहीं नहीं आज मै खामोश नहीं रहूंगी और सब जवाब दुँगी , मुझे समझ क्या रखा है तुम्हारे बाप की नौकरानी हूं , बैग यहाँ फेका जूते कपडे वहा फेके और मुझी से पूछते हो की घर क्यों फैला रखा है , मेरे लिए  कौन सा सोने का पालना डाल रखा है या नौकरों की फौज खड़ा कर रखा है, सारे दिन खटती रहती हूं तब भी ये तुम्हारा ये दो कमरों का महल ढंग का नहीं दिखता है , और आते ही लाट सहाबी झाड़ने लगते हो    टुच्ची से आप आदमी इतना कम कमाते हो की सारा जीवन एक एक पैसे की जुगत लगाते हिसाब किताब करते बीत रहा है , सारे अरमान मेरे एक एक कर दम तोड़ रहे है , और लाट साहब को चाय चाहिए , कभी पूछा है की दूध और चाय का भाव क्या चल रहा है गैस की कीमते कितनी बढ़ती जा रही है, बच्चो कि फ़ीस कैसे दे रही हूं महीने का राशन कैसे पुरा हो पा रहा है  | अरे सारी जिंदगी तुम्हारी और तुम्हारे बाप की आबरू ही बचाती रही खामोश रह कर कम बोल कर , उन्हें सादा ही गऊ कहा, हमेसा कहा की तुम्हारे गऊ जैसे पिता ने मेरे बाप से लाखो का दहेज़ लिया और शादी के पहले तुम्हारे बारे में इतनी ढींगे हांकी की मै विवाह के लिए राजी हो गई और बदले में तुम्हे और ये दो कमरों का महल हमारे लिए छोड़ गये ,  गऊ का मतलब जानते हो ग से गदहा और ऊ से उल्लू गधे और उल्लू के कम्बीनेशन को कहते है गऊ लेकिन साफ साफ कभी नहीं कहा ! अरे ये तो मेरे संस्कार थे की कभी तुम्हे सार्वजनिक रूप से अबे गधे नहीं कहा हमेसा उसे छोटा कर ए जी कह कर बुलाती रही |  टुच्ची से आम आदमी मुझसे सवाल करते हो , मुझे आँखे दिखाते हो धमकी देते हो , शोर शराबा करते हो , मुझसे जवाब चाहिए तुम्हे , तुम्हारा तो बोलना ही बंद कर देती हूं , देख रही हूं आज कल कभी चेहरा की किताब पर बोलते हो तो कभी चिडियों की तरह चहकते हो , जरुरत से ज्यादा बोल रहे हो , तुम्हारी तो मै बोलती ही बंद कर देती हूं  "|

                                                  बेचारा आम आदमी घर में जो बची खुची आबरू थी वो भी अब नहीं बची थी , " सरकार हाथ जोड़ता हूं अब कोई सवाल नहीं करूँगा अब मै समझा गया हूं की एक आम आदमी के लिए ख़ामोशी में ही उसकी इज्जत है उसे कभी किसी से सवाल नहीं करना चाहिए , देश में किसी की कोई जवाबदेही नहीं बनती है इस आम आदमी के प्रति और इस आम आदमी को कोई जवाब चाहिए भी नहीं ,क्योकि जवाब सुन कर भी वो कर कुछ नहीं सकता है बस उसे यही लगेगा की उसकी संपत्ति लुटा जा रहा है और उसे पता ही नहीं है और सही भी है पता चल भी गया तो वो कर ही क्या लेगा ,  अच्छा है की उसे पता ही ना चले की उसकी  इज्जत और जरुरत किसी को है ही नहीं , ख़ामोशी में ही वो अपनी गलत फहमी में जीता है , अपने आप को देश का नागरिक समझता है जबकि असल में तो वो मात्र एक वोट है जिसे हर ५ साल बाद कोई भी अपने तिकड़म से जोड़ घटाने से ले लेता है और उसे लूटने में लगा होता है | ५ साल तक ना वो कुछ बोल सकता है ना सवाल कर सकता है ,  अब अच्छे से समझा में आ गया की
हजार जवाबो से बेहतर है ये ख़ामोशी
इसी में देश और आम आदमी की आबरू रखी है |

आज चार दसक बाद  जवाब मिल गया कि  इतना सन्नाटा क्यों है भाई !


चलते चलते

 " ये कपडे प्रेस कर दो " आम आदमी आयरन करने का काम करने वाले से |
" साहब दो कपड़ो के २० रु लगेंगे " प्रेस करने का काम करने वाला |
" अरे कपडे प्रेस करने को कहा है धोने के लिए नहीं "
" साहब प्रेस का ही दाम बता रहा हूं "
" अरे इतना महंगा "
"साहब बिजली कितने महँगी हो गई है आप को पता है "
" लेकिन बिजली महँगी कैसे हो गई सरकार तो कोयला लगभग मुफ्त में दे रही है "
" ये तो सरकार से पूछिये हम को तो कुछ भी सस्ते में नहीं मिल रहा है उलटे साल दर  साल बिजली के दाम बढ़ते ही जा रहे है "
बेचारे परेशान सोचा आगे कोयले से आयरन करने का काम करता है उससे पूछता हूँ |
" साहब २० रुपये लगेंगे "
" अरे भैया कोयले से भी इतना महंगा "
" साहब हमें थोड़े कोयले की खदान मुफ्त में मिली है हमें तो बाजार भाव से ही खरीदना पड़ता है कोयला , उनके पास जाइये जिन्हें कम दाम में खदाने मिली है "




July 30, 2012

नकारात्मक सोच क्या वास्तम में गलत है- - - - - mangopeople

                                         
                         जब मै गर्भवती थी तो आखरी समय में कुछ ऐसी परेशानिया हो गई की डाक्टर ने कहा की अब सर्जरी कर बच्चे को जन्म दे देना ही ठीक है, सो हम सब अस्पताल जाने के एक दिन पहले सारी तैयारिया करने लगे उसी क्रम में मै अपनी सबसे छोट बहन को कुछ दिशा निर्देश दे रही थी, ये दिशा निर्देश तब के लिए थे यदि मुझे कुछ हो जाये तो ( हमारे देश में हर साल लाखो महिलाओ की बच्चो को जन्म देते समय मौत हो जाती है और उसमे से कुछ अस्पतालों में मरती है, मै कोई अमृत का घड़ा पी कर थोड़ी आई थी )  मेरी बेटी को कैसे रखा जाये और  उसके साथ क्या क्या किया जाये आदि आदि, जी नहीं उस समय न तो मै रो रा रही थी और न ही दुखी थी , मै कहते खुश थी और वो सुनते दुखी नहीं थी , लेकिन जब अचानक से माता जी ने हमारी बाते सुनी तो हैरान हो गई बोली, हे  भगवान कल तुम्हारी डिलेवरी है और कैसी अशुभ अशुभ बाते बोल रही हो शुभ शुभ अच्छा अच्छा बोलो,  हम दोनों बहने हंसने लगे , मैंने कहा की ये कोई फ़िल्मी जीवन नहीं है जहा आप के पास  मरने से पहले अपनी बात बोलने का मौका मिले ,फ़िल्मी स्टाइल में डाक्टर आपरेशन थियेटर से बाहर निकले और कहे मुबारक हो बेटी हुई है,( मुझे हमेसा से पता था की मुझे बेटी ही होगी ) लेकिन माँ की हालत बहुत ख़राब है शायद वो चंद घंटो की मेहमान है अब तो दवा नहीं दुआ की जरुरत है, सब भाग कर रोते मेरे पास आये और मै अपनी बेटी को परिवार को सौपते बोलू की मेरी मेरी मेरी  ...............मेरी बेटी का ख्याल रखना और टे, राम नाम सत्य |   ये तो असली जीवन है क्या पता की मै जब आपरेशन थियेटर में जाऊ तो वापस ही नहीं लौटू तब ये सारी बाते कौन बताएगा और कौन बतायेगा की मेरी बेटी की देखभाल कैसे करनी है उसे कैसा बनाना है आदि इत्यादी असली जीवन में मौत आप को आप का आखरी डायलाग बोलने का मौका नहीं देती है यहाँ तो पता ही नहीं होता है की कौन सा डायलाग आप का आखरी होने वाला है |  कई लोगो के लिए ऐसी सोच एक नकरात्मक सोच लग सकती है और कहेंगे की ये एक निराशावादी विचार है, किन्तु हमारे घर के लिए इस तरह की बातो में कुछ भी नया नहीं है खासकर हम बहनों के लिए तो कभी भी नहीं,  हम कभी भी ऐसी बाते करते समय ये नहीं सोचते है की ये नकारात्मक बाते है हमें तो ये आगे के लिए ली गई सावधानिया और बुरे समय के लिए हर समय तैयार रहने जैसा लगता है |
             
                                                 कई जगह पढ़ती सुनती हूँ की हम सभी को हमेसा सकरात्मक बाते करनी चाहिए उससे जीवन में उत्साह आता है उर्जा मिलती है जबकि नकारात्मक बाते हम में निराशा भर देते है, हमें काम करने से रोकते है , न केवल खुद सकरात्मक बाते करनी चाहिए बल्कि ऐसे लोगो से भी दूर रहना चाहिए जो की हर समय नकारात्मक बाते करते है , नकारात्मक उर्जा कभी भी हमें अच्छा फल नहीं देगी | किन्तु मै इस बात से बहुत ज्यादा सहमत नहीं हूँ मुझे तो लगता है की हर समय सकारात्मकता की बात करने वाले भी नकारात्मकता को कुछ ज्यादा ही नकारात्मक ढंग से लेते है | यदि आप वास्तव में ये मानते है की सकारात्मक बाते करे वैसा ही सोचे तो मुझे लगता है की आप को इस तरह की बातो को भी एक सकरात्मक ढंग से लेना चाहिए | मेरा तो मानना है की सकरात्मक व्यक्ति वो है जो हर गलत से गलत और बुरी से बुरी बात में से भी कुछ अच्छा निकाल ले | एक किस्सा गाँधी जी का पढ़ा था ( कितना सच है पता नहीं किन्तु अच्छा है ) की गाँधी जी पानी के जहाज से कही जा रहे थे रास्ते में जब वो डेक पर खड़े थे तो किसी अंग्रेज ने एक पेज पर उनके बारे में बुरा बुरा लिख कर उन्हें भेज दिया उन्होंने उसे पढ़ा उसमे से पिन निकाल कर अलग रख और पेज को जेब में डाल दिया जब उनके सहयोगियों ने पूछा की उसे रखा क्यों है फेक क्यों नहीं दिया, तो उन्होंने कहा की दूसरी तरफ का पेज सादा है वो मेरे लिखने के काम में आयेगा और पिन तो बहुत ही काम की चीज है इस जहाज पर ये कहा मिलती | असल में तो ये आप के ऊपर है की आप चीजो को कैसे ले रहे है , कही गई बातो को कैसे समझ रहे है | अक्सर हम सभी ( मेरा परिवार ) जब भी कोई नया काम करने के लिए जाते है तो उसकी बुरईयो और बाद में आ सकने वाली परेशानियों के बारे में पहले विमर्श करते है , या  काम संफल नहीं हुआ तो उसके बाद क्या करना है ये भी सोच लेते है , लोग कहते है की जिस काम को पहले ही मान लिया की ये संफल नहीं होगा तो फिर वो कैसे सफल होगा और जब पहले के लिए ही आत्मविश्वास नहीं है तो दूसरा भी कैसे होगा , या तुम लोग बुराई तो पहले देखते हो इस तरह तो कोई भी काम नहीं कर सकती हो या कोई भी व्यक्ति तुमको पसंद ही नहीं आयेगा | पर हमारी नकरात्मक सोच बड़ी सकरात्मक होती है हमारा मानना है की अच्छा हुआ तो बहुत अच्छा है किन्तु बुरा हुआ तो हम पहले से उसके लिए तैयार है और बुरा होने पर रोने, घबराने और निराश होने में अपना समय नहीं व्यर्थ करेंगे क्योकि हमारे पास पहले से ही एक प्लान बी भी तैयार रहता है , या कभी हम किसी चीज की बुराई देखते है तो हम ये सोचते है की इसमे ये बुराईया  है तो इनसे बचा कैसे जाये , इनका समाधान कैसे करे या उसका सामना कैसे करे ( कुछ चीजो, समस्याओ और लोगो की सोच का कोई समाधान नहीं होता है तब उनका सामना करना पड़ता है ), इस तरह तो हम चीजो को एक तरह से बुराई मुक्त कर देते है या कम से कम हानिकारक बना देते है  | हम खुद तक ही नहीं रुकते है जब दूसरे भी हम से किसी बारे में राय मंगाते है तो ज्यादातर हम उस चीजो से जुडी गलतियों बुराइयों और समस्याओ की तरफ ही लोगो का ध्यान पहले दिलाते है , मेरा मानना है की उस चीज की अच्छाई तो सामने वाला पहले ही देख चूका है तभी वो काम करने जा रहा है तो जब वो हमारी राय मांग रहा है तो ये हमारी जिम्मेदारी है की उससे जुडी समस्याओ को भी वो पहले समझ ले ताकि बाद में उसका नुकशान न हो,  कभी कभी लोग इस बात को समझ लेते है किन्तु कभी कभी होता ये है की जब वो व्यक्ति हर हाल में वो काम करना चाहता है और हमसे बस हामी भरवाने आता है तो उसे हमारी बाते नकरात्मक लगने लगती है | मै सोचती हूँ की किसी चीज के साथ जुडी अच्छी चीजे तो हमारे पास आने के बाद हमें मिल ही जाएँगी उसको लेकर पहले से ही ज्यादा बाते करने की जरुरत ही क्या है जब पास होंगी तो उपयोग भी होता रहेगा किन्तु किसी नुकशान से बचने के उपाय तो पहले ही सोच लेने चाहिए क्योकि उसके सर पर आ जाने के बाद कई बार आप कुछ भी नहीं कर पाते है सिवाए पछताने के और ये सोचने के की पहले ही इस बारे में क्यों नहीं सोचा | जबकि हर समय सकारात्मक कहने सुनने और सोचने की बाते कभी कभी इन्सान को हर सिक्के का एक ही पहलू देखने के लिए मजबूर कर देती है,  वो पहलू जो बस  अच्छा अच्छा है और ये सोच हमें असावधान बनाती है,  बुरे वक्त और बुरी चीजो के लिए तैयार नहीं होने देती है एकतरह से ये हमें आधा अँधा बना देती है जो सिर्फ अच्छा अच्छा देखता है और समस्याओ बुराइयों को नहीं देख पाता  है और कभी कभी तो इन्सान में अति आत्मविश्वास भर देता है | नतीजा ये होता है की जब हर समय अच्छा अच्छा सोचने वाले के साथ बुरा होता है तो वह अन्य की तुलना में कुछ ज्यादा ही दुखी हो जाता है और मै सफल ही होंगा का आत्म विश्वास ( असल में तो अति आत्मविश्वास ) से भरे व्यक्ति को असफलता हाथ लगती है तो वो कही ज्यादा निराश हो जाता है कभी कभी इतना की फिर कभी कामयाबी की सोचे ही नहीं खड़ा हो ही नहीं पाये , क्योकि उसे तो लगता है की उसने तो बड़े सकारात्मक ढंग से हर अच्छी सोच और इरादे से काम किया कही कुछ गलत था ही नहीं फिर भी सफलता नहीं मिली तो वो दुबारा कैसे मिलेगी , जबकि हर काम में थोड़ी नकारात्मकता असफल होने का डर आप को फिर से अपनी गलतियों की सुधार कर खड़े होने फिर से सफलता के लिए संघर्ष करने की हिम्मत देता है ( अब ये भी जरुरी नहीं है कि सभी के साथ ऐसा हो ही ) , ये व्यक्ति की सोच पर निर्भर है नकारात्मकता और बुराई से भागना हर समय सही हो ये भी ठीक नहीं है |
                                   
                                                 लोग अपने घरो में महाभारत का पाठ नहीं करते है क्योकि कहा जाता है की महाभारत का पाठ करने से घर में महाभारत होती है ये एक नकरात्मक पाठ होगा , जबकि मुझे लगता है की महाभारत का तो पाठ होना चाहिए और अंत में इस बात की शिक्षा खुल कर देनी चाहिए की पैसा , पद , गद्दी और राज्य का लालच इतना ख़राब होता है की १०० पुत्रो वाला वंश भी ख़त्म हो जाता है और एक पूरे वंशावली का नाश होने से किसी तरह बची थी ( यदि कृष्ण ने अश्वाथामा  का चलाया तीर अपने ऊपर न लिया होता तो उत्तर के गर्भ में ही उसके बच्चे की मृत्यु हो जाती और पांडव वंश का भी नाश हो जाता ),यहाँ देखना ये है की हमें सिखाना क्या है , बुराई दिखा कर हमें लोगो को उससे सावधान करना है उससे जुडी परेशानिया और हानियों से लोगो को परिचित करना है और सकरात्मकता का इतना ऊँचा मानदंड नहीं खड़ा करना चाहिए रामायण और पुरुषोत्तम राम की तरह की लोगो को लगे की ये मानदंड तो इतना ऊँचा है की हम उसे कभी छू ही नहीं सकते है तो वैसा बनने का प्रयास ही बेकार है हम तो बुरे ही भले है | कहने का अर्थ, तात्पर्य , मतलब,  यानि की ये है की सकारात्मकता और नकारात्मकता अपने आप में कुछ नहीं होती है ये आप की सोच है उसे अपने पर लेने का तरीका है जो उससे आप को लाभ या हानि कराती है |


अपडेट  :- कभी कभी आप के बारे में नकरात्मक खबरे आप का कितना फायदा कर देती है इसी का उदाहरण देखा टीवी पर,  परसों तक जो टीवी चैनल चीख रहे थे की अन्ना का आन्दोलन फ्लाप हो गया , अन्ना का जादू ख़त्म हो गया , अब लोग अन्ना के साथ नहीं आयेंगे , अन्ना के आन्दोलन से भीड़ नदारत, वो सारे टीवी चैनल कल से अन्ना के आन्दोलन में भीड़ को दिखा रहे है | असल में उन नकरात्मक खबरों ने उन लोगों में जोश भर दिया जो अभी तक काम , आलस जैसे अनेको कारण से बाहर निकल कर इस आन्दोलन से नहीं जुड़ रहे थे वो बाहर आ गये ।  यदि उनके बारे में कोई भी खबर ही नहीं दिखाई जाती तो शायद लोगों में ऐसा जोश नहीं आता ,यहाँ पर अन्ना के अन्दोअलन से जुडी नकारात्मक खबरों ने उन्हें फायदा पहुंचा दिया ।




चलते चलते
               कहा जाता है की हर समय इन्सान को शुभ शुभ बोलना चाहिए क्योकि दिन भर में एक बार माँ सरस्वती हमारी जबान पर बैठती है औरउस समय जो कहा जाये वो सच हो जाता है और वो कब बैठेंगी ये कोई नहीं जानता इसलिए हर समय शुभ बोलना चाहिए | एक बार हमारी माता जी मेरी बहनों के साथ लक्ष्मी पूजा के लिए माला बना रही थी उसमे खासियत ये थी की वहा हर काम १६ बार करना होता है यानि माला में १६ गुड़हल के फुल होंगे साथ में १६ दुप और १६ चावल के दाने हर फुल के साथ बांधे जायेंगे , पूजा भी १६ दिन करने होते है दूसरा दिन आखरी था रात का समय था और अचानक से बिजली चली गई और काफी देर तक नहीं आई थी , ये मुश्किल काम कम रोशनी में संभव नहीं था , माता जी ने विनती की की ये लक्ष्मी मैया माला बनाने के लिए बिजली दे दो , लो जी मुंह से निकला था और बिजली आ गई , माला फटाफट बनना शुरू हो गई और जैसे ही माला पूरी हुई बिजली चली गई , ये देखते ही मेरी दोनों बहनों ने सर ठोक लिया और कहा की माता जी इतने दिन पूजा किया पाठ किया और बदले में माँगा भी तो क्या बस माला बनाने तक के लिए बिजली अरे कुछ बड़ा मांग लेना था न |

शिक्षा :-  इस कथा से हमें ये शिक्षा मिलती है की बस शुभ बोलने से ही काम नहीं चलेगा जब भी बोलो तो कुछ बड़ा बोलो कुछ बड़े की मांग करो क्या पता कब सरस्वती मैया जबान पर विराजमान हो जाये |

तो जल्द ही मुझे पुलित्जर उसके बाद बुकर उसके बाद आस्कर और उसके बाद नोबेल शांति पुरुस्कार मिले ! सरस्वती मैया क्या आप ने सुना !!!
 

July 17, 2012

क्या माँ दुर्गा और काली के रूप को आप हिंसक मानते है - - - - - - -mangopeople

                  इस पोस्ट को हिंसा को बढ़ावा देने के रूप में न देखे किन्तु जरुरत पड़ने पर अपनी रक्षा में किसी पर हमला करने को मै हिंसा नहीं मानती हूँ |
                                    कबीर दास अपने एक दोहे में कहते है की दुनिया की सोच बड़ी उलटी होती है जो घटनी है उसे बढ़नी कहती है और जो चलती है उसे गाड़ी | मै इससे बिलकुल सहमत हूँ इसलिए पिछली पोस्ट उलटी लिखी थी ताकि लोग सीधी बात को समझ सके किन्तु लोगो की सोच भी बड़ी अजीब होती है, वो मान कर चलते है की सोचेंगे समझेंगे तो हम वही जो हम चाहते है आप चाहे सीधा लिखे या उलटा , सो आज सीधी बात करते है | आज भी बात  गुवाहाटी कांड की करुँगी पिछली पोस्ट पर ही उसे जारी लिखा था जान रही थी की हम किसी भी प्रकार से इस तरह की घटनाओ का विरोध करे किन्तु समाज में एक जो पुरुवादी सोच  ( पुरुषवादी सोच जब लिख जाता है तो बात बस पुरुष की नहीं पूरे समाज की होती है जिसमे हर वर्ग और लिंग के लोग शामिल है )  है हम उसे नहीं बदल सकते है  इसलिए जरुरी है की हम लड़कियों की सुरक्षा के लिए उठाये जा रहे कदमो की भी बात करे | ( अब ठीक है ना संजय जी )  पहले उन कदमो की बात करते है जो आम तौर पर एक परम्परावादी समाज किसी लड़की की सुरक्षा के लिए चाहता है | रात में आप घर से बाहर न निकालिये , सुन शान इलाको में आप मत जाइये , ऐसी जगहों पर आप कभी भी अकेले न जाये भरोसेमंद पुरुष को साथ रखे , इस तरह के कपडे न पहने जो लड़को को भड़काऊ लगे उन्हें ऐसा करने के लिए प्रेरित करे , ( यदि मुझेसे कोई उपाय छुट गये हो तो याद दिला दे ) किन्तु ये उपाय भी कारगर नहीं है क्योकि  इस तरह की घटाने दिन के उजाले में भी होती है , लड़कियों को राह चलते रास्ते में गाड़ी में खीच लेना , या मुंबई में बिलकुल एक व्यस्त सड़क के बीच बने पुलिस केबिन में पुलिस वाले द्वारा बलत्कार जैसी घटनाओ के बारे में सभी ने सुना होगा | भीड़ भाड़ इलाको में तो और भी ज्यादा छेड़छाड़ की घटनाये होती है बसों में ट्रेनों में भीड़ भरे बाजार में  , पुरुषो को साथ रहने से कोई फायदा होगा कह नहीं सकते कुछ महीने पहले इस तरह की ही एक घटना में दो लडकिय अपने पुरुष मित्रो के साथ रात में घूम रही थी कुछ लोगो ने उन्हें छेड़ने लगे , उनके पुरुष मित्रो ने उसका विरोध किया तो वो और साथी ले आये और उन दोनों लड़को पर हमला कर दिया जिसमे से एक लडके की मौत हो गई और दूसरे की बड़ी मुश्किल से जान बची , इस तरह की घटनाये हर तरह की महिलाओ के साथ होता है चाहे उसने सलवार कमीज पहन रखी हो साड़ी पहनी हो या बुर्के में ही क्यों न हो सभी जगह होती है , कई बार हमें सुना है की गांवो में दबंगों ने महिला को निर्वस्त्र कर घुमाया , मुझे नहीं लगता है की उसने कोई भड़काऊ कपडे पहन रखे हो वहा भी वही महिला को अपमानित करने का सबसे आसान तरीका अपनाया जाता है उसे इस तरह सार्वजनिक जगहों पर निर्वस्त्र करना |  ये सभव नहीं है की लड़किया घर से बाहर निकले ही नहीं स्कुल कालेज बहुत सी जरुरी जगहों के लिए उन्हें हर हाल में घर से तो निकलना ही पड़ेगा | हा यदि आप इन कारणों से भी लड़की को घर से नहीं निकलना देना चाहते है तो उसके आगे मै कुछ नहीं कह सकती हूँ |  इसलिए जरुरी है की लड़कियों को इतना शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत बनाया जाये की वो किसी अन्य से मदद मांगने और ऐसा कर रहे दुष्टों से माँ बहन की दुहाई देने की जगह खुद ऐसी परिस्थितयो से निपट सके कुछ हद तक उसे रोक सके उसका सामना कर सके |
                                                                                                    शारीरिक रूपों से लड़कियों को मजबूत बनाने के साथ साथ जरुरी है की लड़कियों को मानसिक रूप से भी मजबूत बनाया जाये | हम जिस देश में रहते है वहा नारी के साथ एक पवित्रता वाला कांसेप्ट चलता है मतलब की आप का शारीर ही आप का सब कुछ है किसी ने गलत इरादे से आप पर हाथ भी रख दिया तो आप अपवित्र हो जाएँगी | अब आप कहेंगे की इसमे क्या गलत है क्या हम किसी को भी कही भी हाथ लगाने दे | जो लड़किया है नारी है वो इस बात को अच्छे से जानती है जो नहीं है उनके लिए बताते है पहली बात की लड़कियों को उनके शारीर को ले कर इतना संवेदनशील बना दिया जाता है और समाज में तुम्हारे साथ ये हो सकता है वो हो सकता हा जैसी चीजो से इतना डरा दिया जाता है की किसी ने जरा सा गलत हाथ लगाया नहीं या कुछ भद्दी टिपण्णी की नहीं कि उनकी हिम्मत जवाब दे जाती है ,शरीर डर से कापने लगता है दिमाग काम करना बंद कर देता है , मन में विरोध की जगह डर की भावना घर कर जाती है,  इसने मुझे गलत छू लिया या अब ये मेरे साथ और गलत कर देगा , अब मै घर वालो को क्या बताउंगी ,  इस मानसिक स्थिति में तो कोई भी इन्सान सामने वाले का मुकाबला नहीं कर सकता है फिर किसी लड़की से क्या उम्मीद करे जो शारीरिक रूप से ज्यादातर ऐसा करने वालो से कमजोर होती है | हालत ये है की पुरुष क्या किसी महिला का भी मुकाबला करने की हालत में कई बार लड़किया नहीं होती है | महीने भर पहले की बात है लोकल ट्रेन से जा रही थी भीड़ कम थी और मेरा स्टेशन आने वाला था मै दरवाजे पर ही खड़ी थी साथ में कोई १४-१५ साल की चार लड़किया भी खड़ी थी शायद टियुशन जा रही थी उनके कंधो पर बैग था,  दो मेरे आगे थी तभी पीछे से खड़ी एक लड़की ने शरारत में धीरे से मेरे बगल से हाथ डाला और आगे खड़ी लड़की के कंधे पर थपकी दे झट हाथ पीछे कर लिया आगे वाली लड़की मुड़ी और मुझे देखने लगी मैंने  कुछ नहीं कहा उसने कुछ सेकेण्ड के लिए मुझे देखा और मारे डर के मम्मी मम्मी करने लगी उसका चेहरा बिलकुल डर गया और वो कस कर अपने बगल में खड़ी सहेली से लिपट गई, मुझे देख कर आश्चर्य हुआ की वो किस बात से डर रही है | मैंने कहा तुम क्यों डर रही हो उसकी सहेली ने भी पूछ तो उसने मराठी में कहा की इन्होने मुझे कंधे पर थपकी दी पीछे खड़ी उसकी सहेलियों ने हंसते हुए कहा की अरे वो तो मैंने किया था , मैंने उससे कहा की इसमे डरने की क्या बात है यदि मैंने ही तुमको थपकी दी उसकी सहेलिय भी इस बात पर उसे चिढाने लगी इतने में मेरा स्टेशन आ गया और मै उतर गई | मुझे आश्चर्य हो रह था की एक लड़की किसी महिला के थपकी देने भर से इतना डर जा रही है यदि मेरी जगह कोई पुरुष होता तो इसकी क्या हालत होती | विश्वास कीजिये हमारे देश की ज्यादातर आम लड़किया इस तरह की ही डरपोक होती है , हम उन्हें डरपोक बना देते है वो कई बार सामान्य सी परिस्थिति का भी का सामना नहीं कर पाती है तो किसी मुश्लिक परिस्थिति का क्या करेंगी | लड़को से दूर रहो वो ऐसे होते है वो वैसे होते है वो कुछ भी करेंगे तो उनका तो कुछ नहीं बिगड़ेगा हा तुम्हारी बेइज्जती जरुर हो जाएगी जैसी बात उन्हें लड़को से हर समय डरने की प्रेरणा दे देते है | फिर जब कभी भी उनके सामने इस तरह की घटना होती है तो वो पहले ही मान लेती है की वो मुकाबला कर ही नहीं सकती है वो उसे रोक नहीं सकती है अब ये सामने वाले के ऊपर है की वो हमारे साथ क्या करेगा
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                                                                              दूसरी बात है घर की इज्जत वाली, गुवाहाटी कांड हो या इस तरह का कोई अन्य कांड में मैंने देखा की लड़की उन लड़को से मुकाबला करने की जगह बस अपना चेहरा कैमरे में दिखाए जाने से बचाती है ,  वही दुनिया ने चेहरा देख लिया की तुम्हरे साथ क्या हुआ है तो तुम्हारा क्या होगा तुम्हारे माँ बाप की इज्जत चली जाएगी इसलिए जरुरी है की अपना चेहरा न दिखाओ भले तुम्हारे साथ कुछ भी हो जाये अपनी पहचान छुपाओ न की उनसे कोई मुकाबला करो पहली प्राथमिकता तुम्हारी यही है | ये ठीक है की इस तरह किसी भीड़ से एक अकेली लड़की का मुकाबला करना बड़ा मुस्किल काम है किन्तु बिलकुल ही आत्म समर्पण कर देना भी ठीक नहीं है | हम सदा अपनी बेटियों को शांत शौम्या नजरे नीचे कर सह कर घर चले आने की शिक्षा देते है | हम कभी उन्हें ये नहीं कहते है की किसी भी संकट के समय में जरुरत पड़े तो अपनी रक्षा में हमला करने से मत चुको,  हम कभी भी उनमे ये विश्वास क्यों नहीं पैदा करते है की वो स्वयं भी किसी घटना से निपटने में सक्षम है कम से कम किसी अपने या मददगार के आने तक उस घटना का सामना कर सकती है उसे रोक सकती है उसका मुकाबला कर सकती है और ये सब करके वो कुछ भी गलत नहीं कर रही है और उनका परिवार उनके खुद की रक्षा के लिए उठाये गये किसी भी कदमे उनके साथ है | इसलिए जरुरी है की लड़कियों को ऐसी घटनाओ के बाद ये न बताये की देखो ऐसे कपडे पहनने से ऐसे रात में निकालने से या इस जगह जाने से तुम्हारे साथ ये हो सकता है , ये कह कर उन्हें डराए नहीं उन्हें डरपोक न बनाये बल्कि उनमे विश्वास पैदा करे उससे  ये कहे की ऐसी स्थिति आने पर कभी भी डरो मत मुकाबला करो , जरुरत पड़ने पर हमला करो , क्योकि इस भीड़ में ज्यादातर भीड़ बहादुर होते है जो भीड़ की शक्ल में तो बड़े बहादुर बनते है किन्तु अकेले में इनकी इतनी हिम्मत भी नहीं होती है की वो एक चूहे को भी मार सके,  ज्यादातर बन्दर घुड़की दने वाले होते है जो सामने वाले ही हिम्मत जांचते है यदि आप पीछे जाते  तो उनकी हिम्मत बढ़ती है और जब आप हिम्मत से आगे बढ़ते है तो वो पीछे हट जाते है | मानसिक रूप से मजबूर बने घबराए या हडबडाये नहीं हर किसी के पास मोबाईल होता है तुरंत पुलिस को या जो सबसे करीब है उसे कॉल करके बुलाये और जरुरत पड़े तो अपनी आत्म रक्षा में तुरंत हमला बोल दे ( जब आप के पास वहा से भाग जाने का विकल्प न हो तब , जब आप ऐसे लोगो से घिर जाये तब )   किसी पर भी जो भी आप के हाथ में आये उसी से ऐसे समय पर हमला कर दे  आप का पर्स,  पेन, बालो के काटे से लेकर सड़क पर पड़ा पत्थर भी आप का हथियार बन सकता है | जब मै छोटी थी तो मेरे चाचा हम लोगो से एक बात बोलते थे (सभी के लिए)  की जब कभी भी कई लोग तुम पर हमला करे तो सभी से मुकाबला करने की जगह थोडा ध्यान दो और उनमे से जो सबसे कमजोर या डरपोक दिखे बस उसे पकड़ो और बेतहाशा धोना शुरू कर दो,  यहाँ पर सभी आप की ताकत देखना चाहते है पर ये नहीं देखते है की ताकत किसके खिलाफ प्रयोग किया जा रहा है उस कमजोर को जब आप बिना दाये बाये देखे कही भी पिटते है तो वो आप से डरता है और उस समय आप ताकतवर दिखते हो और ऐसे भीड़ के साथ बहादुरी दिखाने वाले डर जाते है और फिर उन्हें समझ में आता है की उसके बाद उनका नंबर भी लग सकता है ( आप ने देखा होगा दो चार मजनू लड़कियों को छेड़ते है जैसे ही लड़की पलट कर किसी एक को पकड़ती है बाकि वहा से भाग जाने में ही अपनी भलाई समझते है तब तो और भी जब लड़किया भी झुण्ड में हो )
                          
                           यहाँ पर शारीरिक मजबूती के साथ ही मानसिक मजबूती काम आती है जब आप इस बात की परवाह न करे की आप को कौन कहा मार रहा है पिट रहा है या आप के किस अंग को छू रहा है तो आप उस स्थिति से मुकाबला करने के लिए ज्यादा तैयार होते है | किन्तु होता क्या है की लड़किया कुछ भी हो जाये मुकाबला करने की जगह अपने चहरे या नीजि अंगो को छुए जाने से बचाने में लगी होती है जबकि ऐसा करने वाला आप के साथ ये करने की जिद पर आ जाये तो आप उसे बहुत मुश्लिक से ही रोक पाएंगी और जब वो भीड़ की शक्ल में हो तो शायद ये आप के लिए नामुमकिन हो जाता है , अच्छा हो अपने दोनों हाथो का प्रयोग उस पर हमला करने उसे पीटने में लगाये क्योकि दोनो ही स्थिति में आप अपने आप को छुए जाने को रोक नहीं सकती है जब आप मुकाबला नहीं करेंगी तो ये सब आप के साथ तब तक होता रहेगा जब तक वो चाहेंगे या जब तक कोई अन्य आप को आ कर वहा न बचाए जबकि जब आप मुकाबला करेंगी तो आप जल्दी से उस बुरी स्थिति से बाहर आ सकती है  | मुकाबला करने के लिए जरुरी ये भी है की हम पहले से ही अपनी बेटियों को कोमलान्गनी बनाने के बजाये थोडा शारीरिक रूप से भी मजबूत बनाये उन्हें अपनी सुरक्षा के आत्म रक्षा ट्रेनिग भी दिलवा दे बिलकुल वैसे ही जैसे आज भी लाखो लोग अपने बेटियों के पढ़ाने लिखाने से  लेकर सिलाई कटाई के स्कुलो में भेज देते है ताकि बुरे समय में काम आये | तो फिर किसी ऐसी संकट में अपनी रक्षा करने की ट्रेनिग क्यों न उन्हें दी जाये वो उसका कितना प्रयोग करती है या नहीं ये तो बाद की बात है किन्तु ऐसी कोई भी प्रशिक्षण उनमे आत्म विश्वास तो पैदा कर ही देगा | ये कभी न सोचे की आप के साथ या आप के घर की महिलाओ के साथ ये नहीं हो सकता है इस तरह की घटाने या इससे मिलती जुलती घटाने कभी भी कही भी किसी के साथ भी हो सकता है इसलिए ऐसे प्रशिक्षण केवल बेटियों के लिए नहीं उनकी माँ को भी दिया जाना चाहिए ( जब मै १२ वि में थी तो मै ताई- क्वांडू सीखती थी हमारे साथ एक १२ साल की लड़की और उसकी माँ भी सीखने आती थी )  जरुरी नहीं है की ये छेड़ छड कर रहे व्यक्ति के ऊपर ही काम आये चेन, पर्स खीच कर भाग रहे उच्चके को या घर में घुसे लुटेरे से बचने के भी काम आ सकता है आप हर समय अपने घर की महिलाओ के साथ उनकी सुरक्षा के लिए मौजूद नहीं हो सकते है | ये जरुरी नहीं है की इतना कुछ सीखने के बाद भी आप सुरक्षित हो ही जाएँगी किन्तु जितने उपायों से हम अपनी रक्षा कर सकते है उतनी तो हमें सिख ही लेनी चाहिए संभव है की आप से साथ घटी हटाना में अपराधी के पास कोई खतरनाक हथियार हो और आप कुछ न कर सके | जब लोग हथिहर बंद हो कर हमला करे तो फिर मै यही कह सकती हूँ की तब तो प्रेरणा लेने के लिए हमारे पास दो महिलाए है हरियाणा की है जिन्हें आप सब ने आमिर के शो सत्यमे जयते में देखा होगा, तब तो यही कहूँगी की जब समाज के पुरुषो की हिम्मत इतनी बढ़ जाये तो हम सभी को भी एक आटोमेटिक ............ के लाइसेंस के लिए आवेदन कर देना चाहिए |
बहुत सारे उपाय है इन जैसी घटनाओ से खुद को बचाने के लिए सभी दे , देखिये रश्मि जी ने भी एक उपाय सहशिक्षा का दिया है पता नहीं लडके इससे कितने सुधरेंगे और लड़कियों को समझेंगे पर ये कह सकती हूँ की लड़किया कम से कम लड़को से डरना उन्हें खुद से ज्यादा ताकतवर या काबिल होने की गलतफहमी से जरुर बाहर आजायेगी और किस तरह के लड़को को किस तरह से हैंडल करना है ये तो सिख ही जाएँगी |

चलते चलते

 मै धार्मिक महिला नहीं हूँ इस कारण मै देवी देवताओ को उस रूप में नहीं देखती जीस रूप में कोई अन्य देखता है यही कारण है की मै देवी देवताओ को एक सामाजिक जरुरत के कारण समाज द्वारा बनया गया मानती हूँ | इसी के तहत मै ये भी सोचती हूँ की जब संसार में पहले से ही देवी लक्ष्मी , सरस्वती के रूप में नारी के शांत रूप और सती तथा पार्वती के रूप में शक्ति रूप मौजूद था तो क्या कारण था की देवी दुर्गा का निर्माण किया गया  | संभव है की समाज ने इस बात की जरुरत समझी हो की नारी को और भी शक्तिशाली और थोडा हिंसक रूप में दिखाया जाये जिससे ये बात स्थापित हो सके की समाज की रक्षा या खुद की रक्षा के लिए नारी को अपना शौम्य, शांता ,संस्कारी, अहिंसक रूप त्याग देने की जरुरत महसूस हो तो वो आसानी से ये कर सके और समाज उसे मान्यता दे सके साथ ही बुरे लोग नारी से भी डर सके | फिर ये भी लगता है की जब दुर्गा जी पहले से ही मौजूद थी तो उनसे भी वीभत्स और रक्त पीने वाली काली का निर्माण क्यों किया गया शायद इस रूप में ये दर्शाना था की दुष्टों को जड़ से ख़त्म किया जाये , इस बार तो उनका संहार हो ही किन्तु इस तरह हो की वो दुबारा जन्म ही न ले सके,  दुष्टों दानवों का सम्पूर्ण विनाश करने की शक्ति भी नारी को दी गई शायद कारण ये रहा हो की जन्म देने वाली ही उसे जड़ से ख़त्म कर सकती है , ऐसे दुष्टों का दुबारा जन्म वो ही रोक सकती है साथ की दुर्गा जी के साथ माँ, ममता और दया का जो एक अंश बचा था उसे काली के रूप में बिलकुल भी ख़त्म कर दिया जाये या बहुत कम कर दिया जाये | यही कारण है की कई बार संकट के समय दुष्ट लोगो से खुद को और अपने परिवार को बचाने के लिए नारी से दुर्गा या काली का रूप धारण करने का आवाह्न किया जाता है और इसे कही से भी गलत और हिंसक नहीं माना जाता है | मुझे नहीं लगता है की कोई भी व्यक्ति  दुर्गा या काली के रूप में दानवों दुष्टों के विनाश को और समाज दुनिया को बचाने के लिए किये गये संहार को हिंसक मानता होगा | अब ये समाज को तय करना है की क्या वो हर नारी को दुर्गा या उससे भी वीभत्स काली के रूप में बदलने के लिए मजबूर करे या नहीं | ये एक आम महिला की आम सी नीजि राय और सोच है आप इससे विपरीत विचार भी रख सकते है |

July 13, 2012

गुवाहाटी मामले में पहले लड़की की असलियत जानिए फिर लड़को को कुछ कहिये - - - - -mangopeople

                                                                                          

                                                    गुवाहाटी में एक लड़की के साथ  क्या क्या हुआ सब ने देखा मुझे उसका विवरण देने की आवश्यकता नहीं है | बहुत से लोग जुबानी खर्च में लगे है कह रहे है की ऐसा करने वालो को कड़ी सजा होनी चाहिए आदि आदि किन्तु बिना सच्चाई को जाने जिसके मुंह में जो आये जा रहा है वो बके जा रहा है  | कितने है जो असलियत को जानते है शायद ही कोई हो,  मेरी ही तरह कईयो के मन में ये विचार आ रहे होंगे किन्तु बेचारे लोगो के डर से नहीं कह पा रहे है (बस अभी के लिए जब तक उस लड़की के प्रति लोगो के बेमतलब की सहानभूति उफान पर है) जब ये उफान ख़त्म होगा तो मेरी तरह कई विद्वान् लोग ये सवाल कर रहे होंगे |
                                                                          सबसे पहले सवाल ये है कि ये बताइये आप सब ने वीडियो में देखा होगा की ये रात की घटना है सोचिये की इतनी रात को कोई भले घर की लड़की घर से बाहर निकलती है और निकली भी तो क्या घर से अकेली निकलती है या कभी भी किसी "बार"  के आस पास नजर आती है,  बिलकुल भी नहीं किसी भी भले घर की लड़की जो अभी मात्र ११वि में पढ़ रही है ( मिडिया रिपोर्ट के अनुसार ) इनमे से ऐसा कोई भी काम नहीं करती है | फिर आप लोगो ने उसके कपडे देखे,  उसने किस तरह "बदन दिखाऊ", " भड़काऊ "  आधुनिक कपडे पहन रखे थे जो सीधे सीधे लड़को को आमंत्रित करने के लिए काफी थे | अब आप सोचिये की इस तरह के आधुनिक कपडे पहने रात में अकेली कोई लड़की किस दारू बार के पास जाएगी तो उसके साथ ये नहीं होगा तो और क्या होगा,  वो लड़की इसी के लायक थी , संभव तो ये भी है की उसने ही लड़को को ये सब करने के लिए उकसाया होगा वरना लड़को को क्या पड़ी थी की उससे छेड़खानी या मारपीट करने की | वीडियो को ध्यान से सुनिए उसमे हमारी संस्कृति हमारी परंपरा की रक्षा करने वाले लोग है जो लड़की से पूछ रहे है की  तुने शराब पी है , बोल शराब पीयेगी , बार में जाएगी , मतलब साफ है की लड़की ने शराब पी रखी है ( जब वो लडके पूछ रहे है तो जरुर पी रखी होगी वो बेमतलब का ये बात तो पूछेंगे नहीं ) अब सोचिये की कोई  अच्छी सभ्य लड़की कभी भी शराब पीयेगी या किसी बार में जाएगी,   पर क्या है की आज कल की लड़कियों को बराबरी के नाम पर पुरुषो की तरह ही शराब पीने बार , पब में जाने की आदत लग गई है तो ऐसी परम्पराव के खिलाफ जाने वाली हमारी महान संस्कृति को बदनाम करने वाली लड़कियों के साथ ऐसा ही होना चाहिए ताकि उन्हें सबक मिले की उन्हें ऐसा करने का अधिकार नहीं है ये सब बस पुरुषो के करने का काम है वो इसे नहीं कर सकती है | याद होगा कुछ साल पहले दिल्ली में भी इसी तरह एक महिला को सरेआम खूब पिटा गया था उसके ही मोहल्ले वालो ने क्योकि उसने अपने मकान मालिक पर बलात्कार का आरोप लगाया था और बाद में एक दिन सभी समाज के ठेकेदारों ने  मिल कर उस महिला को भी अच्छे से सबक सिखाया था सब ने कहा की महिला ने शराब पी रखी थी और महिलाओ का शराब पीना जुर्म है तो इस जुर्म की सब ने मिला कर खूब सबक सिखाया,  | कुछ समय पहले हिन्दू धर्म के ठेकेदारों ने भी बंगलोर में भी इसी तरह पब  में गई लड़कियों को ऐसे ही सबक सिखाया था हम सब ने देखा था | इस तरह की हर घटना के बाद लोग जुबानी जमा खर्च शुरू कर देते है चिल्ल पो करते है और फिर शांत हो जाते है पर इन चिल्ला पो मचने वालो को हमरी परम्परा संस्कृति की जरा भी चिंता नहीं है | जब तक लड़किया ठीक से सबक न सिखा ले उनके साथ ऐसा ही किया जाता रहना चाहिए |
                                                 ये भी संभव है की वो लडके लड़की के लिए अनजान हो ही नहीं मतलब की अभी कुछ समय पहले की घटना है अपने मित्रो के साथ जन्मदिन की पार्टी में गई लड़की के साथ उसके दोस्तों ने ही उसे शराब पिला कर बलात्कार किया था बाद में हमारी महानी खोजी पुलिस ने पता लगाया था असल में वो लड़की एक वेश्या थी भला कोई सभ्य  घर की  लड़की लड़को के साथ अकेले जा कर पार्टी करती  है या शराब पीती है या  लड़को को मित्र बनाती  है , असल में लड़की  और लड़को के साथ पैसे के लिए झगडा हुआ था और कोई बात नहीं हुई थी और इस तरह के धंधा करने वालो के साथ भी कोई बलात्कार होता है | संभव है की इस मामले में भी लड़की ही चरित्रहिन हो और लड़को को फ़साने का प्रयास किया हो और कामयाब नहीं हो पाई या उसने पैसे की ज्यादा मांग की हो या लड़को पर  इल्जाम लगाने लगी हो और तब उसे मात्र सबक सिखाने के लिए लड़को ने उसे दो चार हाथ मार दिया हो जिसे बढ़ा चढ़ा कर दिखाया जा रह है | कुछ समय पहले एक टीवी चैनल पर पुलिस वालो ने देश में हो रही सारी बलात्कार और छेड़ छड की घटनाओ की असलियत सभी को बताई थी की कोई भी सभ्य महिला या लड़की कभी भी अपने साथ हुए बलात्कार या छेड़छाड़ की रिपोर्ट पुलिस स्टेशन में लिखवाने नहीं आती है अरे भाई वो तो अपने इज्जत को यु सरे आम क्यों ख़राब करेगी वो तो सब छुपा कर घर में बैठ जाती है , जो भी इस तरह की घटनाओ की रिपोर्ट लिखाने पुलिस स्टेशन में आती है वो सभी अच्छे और सभ्य घरो की नहीं होती है उन्हें रिपोर्ट लिखवाने से फायदा होता है तभी आती है , वो मर्दों को फंसा कर पैसा ऐठना चाहती है इसलिए ही पुलिस के पास आती है | सोचिये कितना बड़ा सच उजागर किया था पुलिस ने और लोग है की इस तरह की घटनाओ पर लगते है लड़की के प्रति सहानभूति जताने और पुरुषो को गाली देने | लोगो की आदत है की बिना सोचे वो भावनाओ में बहने लगते है और कुछ भी कहने लगते है | अब जैसे बागपत की पंचायत ने एक सही और महान फैसला लिया है की अब उस गांव से कोई भी ४० वर्ष तक की महिला बाजार नहीं जाएगी , मोबाईल नहीं रखेगी सोचिये की यदि ये फैसला पहले ही सारे देश में लागु हो जाती तो कितना अच्छा होता तब तो ये घटना होती ही नहीं महिलाए अपने अपने घरो में सुरक्षित होती | जिस तरह चोर डाकू से बचा कर आप अपनी संपत्ति तिजोरी में रखते है उसी तरह लड़किया भी घर के पुरुषो की इज्जत है उसे बचाने के लिए पुरुषो को अपने अपने घरो की महिलाओ को घरो में ताला बंद कर रखना चाहिए | कुछ लोग हर बात में पुरुषो को गाली देने लगते है उन्हें भला बुरा कहते है किन्तु वो ये नहीं समझ पाते है की किसी स्त्री के प्रति किसी पुरुष का आकर्षित होना प्राकृतिक क्रिया है बनाने वाले ने ही उनके अन्दर ऐसा कैमिकल लोचा किया है की वो महिला के प्रति आकर्षित होंगे ही उसमे उनका कोई भी दोष नहीं है,  यदि मौका हो ,उद्दीपन हो, भड़काऊ तत्व हो तो कई "सभ्य" के दिलों में धड़कता पुरुष जानवर पैजामे से बाहर आएगा ही 
इसलिए मै तो कहती हूँ की लड़कियों को घरो में नहीं बल्कि घर के एक कमरे में बंद रखना चाहिए ताकि उन पर उनके भाइयो पिता चाचा मामा फूफा किसी भी पुरुष की नजर ना पड़े क्योकि प्राकृतिक नियम के अनुसार स्त्री को देखते ही पुरुषो के मन में उनके शिकार की भावना जगा जाएगी क्योकि बाहर तो उन्हें देखने तक के लिए लड़किया नहीं मिलेगी और घर में रह रही लड़किया भी तो स्त्री लिंग ही है ना  इसलिए अच्छा है की उन्हें सभी पुरुषो से दूर कमरों में बंद रखा जाये |  किन्तु लोग समझते नहीं है और पंचायतो के फैसलों को  भी बुरा कहने लगते है अब क्या जवाब है उनके पास , क्या अब भी आप को लगता है की पंचायत ने कोई गलत फैसला किया है | लोग नाहक इमोशनल होते है असल में तो ये घटना इस लायक है ही नहीं की इस पर चर्चा भी की जाये किन्तु "चर्चाए" हो रही है क्योकि  इन सब के लिए  पुलिस व्यवस्था जलील पत्रकार जिम्मेदार हैं और इसे मिठाई बनाकर प्रस्तुत करने वाले लोग |
                                                                   
चलिए यदि आखिर में हम मान भी ले की ठीक है लड़को ने जवानी को जोश में भड़काने के करण कुछ मारपीट कर दिया या लड़की को छू दिया ( अब लड़की को इतना भी छुई मुई होने की क्या जरुरत है ) तो क्या उन्हें आप मार ही डालेंगे क्या, कुछ लोग बार बार कड़ी सजा की पैरवी करते है,  किन्तु ये सही नहीं है हिंसा कभी भी किसी भी मर्ज का इलाज नहीं होता है हिंसा गलत बात है हर किसी को सुधरने का एक मौका तो मिलना ही चाहिए,  ना की उनको सजा दे कर उनका जीवन बर्बाद करना चाहिए | इन सभी लड़को को सुधरने का मौका देते हुए हम सभी को इन्हें माफ़ कर देना चाहिए ये बच्चे है और इन्होने "मात्र " "छोटी " सी "मुर्खता" की है जिसकी सजा की कोई जरुरत नहीं है माफ़ी बड़ी जीज है ये जरुर इन की पहली गलती होगी सौवी भी हो तो क्या आखिर गलती तो इन्सान से ही होती है याद रखिये माफ़ी देने वाला बड़ा होता है और उस लड़की से भी उम्मीद करती हूँ की वो अपने साथ हुए "छोटी मोटी" घटना को भूल कर उसे माफ़ कर देगी |
                                      जारी ..................................................

                                                                                   कुछ समय पहले रचना जी ने बताया था कि  सटायर को ब्लैक ह्यूमर भी कहा जाता है । पर अपनी पोस्ट को ये नाम देते डर लगा कही कालापन मुझ पर अपने अपमान का मुक़दमा न कर दे और रही बात ह्यूमर की तो हा ये हो सकता है तभी तो वो लडके लड़की के साथ ऐसा करते हँस रहे थे | वो करते हँस रहे थे आप पढ़ कर हँस लीजिये हमें तो नहीं आई ............