सरकार के लिए किराने में विदेशी निवेश अब साख का सवाल है कहती है की अब कदम वापस नहीं ले सकते है हमारी इज्जत का सवाल है भले लोग कितना भी विरोध करे संसद ठप रहती है तो रहे उसे क्या | सरकार का व्यवहार बिलकुल परिवार में उस बाप की तरह है जो बेटी यानि की आम जनता को अपने इज्जत के नाम पर मारने पर तुली है | सरकार को जनता रूपी बेटी का पिता होना चाहिए किन्तु वो बाप सा व्यवहार कर रही है | बाप और पिता शब्दों का अंतर तो समझते होंगे ही ना , पिता शब्द आते ही दिमाग में परिवार चलाने वाला परिवार की ख़ुशी का ध्यान रखने वाला उसकी जरूरतों के लिए कुछ भी कर गुजरने वाले का ध्यान आता है और बाप शब्द आते है दिमाग में अपनी बपौती ज़माने वाला हर समय अपनी ही चलाने वाला , सिर्फ परिवार पर बाप होने की धौस ज़माने वाले की छवि बनती है जो अधिकार तो सब रखता है और परिवार के प्रति अपना कोई कर्तव्य नहीं समझता है | बस सरकार भी जनता के पिता के बजाये उसकी बाप बन गई है जिसके लिए परिवार उसके हित से बड़ा उसकी इज्जत हो गई है और जनता यहाँ बेटी की तरह अपने खुशियों जरूरतों के लिए उसका मुंह ताक रही है | अब जब बाप जी ने कह दिया है की ये उसकी साख का सवाल है तो बेटी के हित की कुर्बानी तो होगी ही | इसे क्या कहेंगे खालिस सरकारी ऑनर किलिंग बाप के इज्जत के नाम पर बेटी के हत्या |
पर यहाँ भी सारी इज्जत बस बेटी का मामला होने पर ही ख़राब होता है जब मामला बेटो यानि सरकारी कर्मचारी या बड़े उद्योगपतियों का हो तो ये बाप को अपने कदम वापस खीचने में कोई गुरेज नहीं होता है , प्रधानमंत्री ने अन्ना को लिखित में आश्वाशन दिया था की उनके मुख्य तीन मांगे मान ली गई है यहाँ तक की संसद में भी सभी सांसदों ने हामी भर दी थी, हद तो तब हो गई जब स्थाई समिति ने भी इन मांगो को मान लिया था लेकिन दुसरे ही दिन पुत्र प्रेम जाग गया और फिर कदम वापस ले लिए गए क्योकि उसके कदमो से बेटो को परेशानी जो होती, फिर इन बाप लोगो को इज्जत का ख्याल नहीं आया की जो जबान दी है तो उसे कैसे वापस ले , पर कहते है न बेटो के लिए सब कुछ, उनके तो सात खून भी माफ़ पर जब बात बेटी की हो तो एक कदम भी पीछे नहीं होगा | सोचती हूँ की इस विषय में अब उन लोगो का क्या मत होगा जो कुछ दिन पहले तक देश में संसद को ही सर्वोच्च मान रहे थे उनके अनुसार परिवार में माँ बाप ही सब कुछ है बच्चो की कोई कीमत नहीं है बच्चे होते ही इसलिए है की वो माँ बाप बना सके इसलिए घर में चलेगी तो माँ बाप यानि सत्ता पक्ष और विपक्ष को मिला कर संसद की | तो अब बताइए की जब ये हमारे माँ बाप ही अपनी बातो से पलट जाये बच्चो को सरेआम आश्वासन दे कर बदल जाये तो उनका क्या करे क्या अब भी संसद को ही सर्वोच्च मानाने की दलील को वो सही बताएँगे | आम लोग, देश हित उसकी जान की कीमत तथाकथित बाप की इज्जत के सामने कुछ भी नहीं है | तो भाई इस देश की परम्परा रही है की बेटियों ने हमेशा अपने हित को बाप के इज्जत के नाम पर मार दिया है तो आम लोग भी तैयार रहे बलिदान के लिए |
तर्क तो कई दिए जा रहे है कहते है की दलाल दलाली खा खा कर, सामान कई हाथो में जा जा कर महंगाई बढ़ा रहा है और सरकार को बदनाम कर रहा है | किसान से ६ रु का प्याज खरीदते है उसमे ट्रांसपोर्ट , दलाली, व्यापारी ,मजदूरी, थोक, फुटकर सब मिला कर उपभोक्ता के पास २० रु में पहुंचता है , विदेशी आयेंगे तो ऐसा नहीं होगा वो सीधे किसानो से खरीद कर आप को देंगे बीच का सब खर्चा ख़त्म उस पर से कोल्ड स्टोरेज बनायेंगे सामान ख़राब नहीं होगा | सोचती हूँ क्या इन विदेशियों के पास कोनो जादू की छड़ी है क्या जो फसल खेत से उड़ा कर सीधे हमारे घर पहुंचा देगा और ट्रांसपोर्ट का खर्च बच जायेगा, कोल्ड स्टोरेज का खर्चा , बड़े बड़े मॉल खोलेगा जगह का खर्चा उसमे लगे ए सी का खर्चा कर्मचारी का खर्चा , सब राज्यों में लगा टैक्स और टीवी से लेकर अखबार तक में अपने बड़े बड़े विज्ञापन का खर्चा खुद उठाएगा , और अपना मुनाफा छोड़ हमको सस्ता सामान देगा | किसानो को भी फायदा होगा कंपनी साहब के लोग आयेंगे हरपत्तू, खरपत्तो , भोला, माधव सभी के झोपड़ो में खुद जायेंगे और सबकी कुछ कुछ बीघे में उगी फसल खरीदेंगे कोई दलाल बीच में न होगा | क्या वाकई ऐसा होगा , काहे की कई बार पतिदेव से सुन चुकी हूँ की आफिस की स्टेशनरी से लेकर कोई भी सामान की खरीद में इ काम में लगा आफिसर हमेशा पहले अपना कमीशन तय करता है फिर सामान खरीदता है कंपनी के लिए , हा दलाली बंद हो जाएगी कमीशन शुरू होगा बिलकुल अंग्रेजी काम | सच्चो में इ में तो किसान और हम उपभोक्ता का बड़ा फायदा है , लगता है कोनो चैरिटेबल संस्था है इ वालमार्ट और का का , शायद सरकार महंगाई खुद से कम नहीं कर पा रही है तो इ संस्था को बुला रही है की लो भैया अब तुम ही यहाँ की महंगाई दूर करो हमरे बस की बात तो ना है ये |
दसक पहले भी जब भारत के बड़े उद्योगिक घरानों को किराना कारोबार में लाया गया तब भी यही दलील दी गई थी की उपभोक्ता और किसान दोनों को फायदा होगा उपभोक्ता को कितना फायदा है सब जानते है जब इन शानदार मॉल में सामानों पर १० से ५० पैसे की भारी छुट दी जाती है और एक समय में एक के बजाये जबरजस्ती दो सामान बेच दिया जाता है एक लो दूसरे पर छुट पाओ सामान घर लाने पर पता चलता है की १०० की जगह २०० का दो सामान लाये और कुछ छुट मिली ५ रुपये का इतनी छुट तो थोक बाजार में हमेशा ही मिल जाती है कई सामानों पर और आज भी कोई भी कंपनी सीधे किसानो से शायद ही कुछ खरीदती हो | सस्ता सामान कैसे दे वो उनके भी तो हजार खर्चे है वो अपने जेब से थोड़े ही भरेंगे वो भी खरीदारों के ही जेब से जायेगा | पर यहाँ तो अब भी उपभोक्ता को सब्ज बाग दिखाया जा रहा है सस्ता सामान का महंगाई कम होने का | मंत्री जी कहते है की जब देशी लोगो को छुट दिया गया था तब भी हो हल्ला मचा था बाद में सब ठीक हो गया कोनो फर्क पड़ा किराना दुकान चलाने वालो को | मंत्री जी सही ही कह रहे है मंत्री जो है इन मॉल में जाने वाले तो शायद आसमान से टपके है उसके पहले तो वो किसी किराना दुकान पर जाते ही नहीं थे इसलिए छोटे दुकानदारो के ग्राहकी पर तो कोनो फर्क पड़ा ही नहीं आगे भी नहीं पड़ेगा बेकार में लोग हो हल्ला मचा रहे है | जैसे की कोनो शराबी ख़राब लड़का से बिया करने पर बिटिया पहले खूब चिल्लाती है बाद में "भयल बिया मोर करबो का" की तर्ज पर मार खा कर रो कर गा कर निभाती ही है, बाप के इज्जत का सवाल है तो एक बार आने दीजिये विदेशी दुकानदारो को उसके बाद किसान जनता सब झेलबे करेगी जाएगी कहा कोनो और ठोर ठिकाना तो है नहीं उनका, दोनों जगह पराई ही होती है | तो हम आम लोग जब अपने ही देश की सरकार के लिए पराये हो गए है तो इ विदेशी हमको क्या अपना समझेंगे दोनों मिल कर खून चूसेंगे |