कई जगह पढ़ती सुनती हूँ की हम सभी को हमेसा सकरात्मक
बाते करनी चाहिए उससे जीवन में उत्साह आता है उर्जा मिलती है जबकि
नकारात्मक बाते हम में निराशा भर देते है, हमें काम करने से रोकते है , न
केवल खुद सकरात्मक बाते करनी चाहिए बल्कि ऐसे लोगो से भी दूर रहना चाहिए जो
की हर समय नकारात्मक बाते करते है , नकारात्मक उर्जा कभी भी हमें अच्छा फल
नहीं देगी | किन्तु मै इस बात से बहुत ज्यादा सहमत नहीं हूँ मुझे तो लगता
है की हर समय सकारात्मकता की बात करने वाले भी नकारात्मकता को कुछ ज्यादा
ही नकारात्मक ढंग से लेते है | यदि आप वास्तव में ये मानते है की सकारात्मक
बाते करे वैसा ही सोचे तो मुझे लगता है की आप को इस तरह की बातो को भी एक
सकरात्मक ढंग से लेना चाहिए | मेरा तो मानना है की सकरात्मक व्यक्ति वो है
जो हर गलत से गलत और बुरी से बुरी बात में से भी कुछ अच्छा निकाल ले | एक
किस्सा गाँधी जी का पढ़ा था ( कितना सच है पता नहीं किन्तु अच्छा है ) की
गाँधी जी पानी के जहाज से कही जा रहे थे रास्ते में जब वो डेक पर खड़े थे तो
किसी अंग्रेज ने एक पेज पर उनके बारे में बुरा बुरा लिख कर उन्हें भेज
दिया उन्होंने उसे पढ़ा उसमे से पिन निकाल कर अलग रख और पेज को जेब में डाल
दिया जब उनके सहयोगियों ने पूछा की उसे रखा क्यों है फेक क्यों नहीं दिया,
तो उन्होंने कहा की दूसरी तरफ का पेज सादा है वो मेरे लिखने के काम में
आयेगा और पिन तो बहुत ही काम की चीज है इस जहाज पर ये कहा मिलती | असल में
तो ये आप के ऊपर है की आप चीजो को कैसे ले रहे है , कही गई बातो को कैसे
समझ रहे है | अक्सर हम सभी ( मेरा परिवार ) जब भी कोई नया काम करने के लिए
जाते है तो उसकी बुरईयो और बाद में आ सकने वाली परेशानियों के बारे में
पहले विमर्श करते है , या काम संफल नहीं हुआ तो उसके बाद क्या करना है ये
भी सोच लेते है , लोग कहते है की जिस काम को पहले ही मान लिया की ये संफल
नहीं होगा तो फिर वो कैसे सफल होगा और जब पहले के लिए ही आत्मविश्वास नहीं
है तो दूसरा भी कैसे होगा , या तुम लोग बुराई तो पहले देखते हो इस तरह तो
कोई भी काम नहीं कर सकती हो या कोई भी व्यक्ति तुमको पसंद ही नहीं आयेगा |
पर हमारी नकरात्मक सोच बड़ी सकरात्मक होती है हमारा मानना है की अच्छा हुआ
तो बहुत अच्छा है किन्तु बुरा हुआ तो हम पहले से उसके लिए तैयार है और बुरा
होने पर रोने, घबराने और निराश होने में अपना समय नहीं व्यर्थ करेंगे
क्योकि हमारे पास पहले से ही एक प्लान बी भी तैयार रहता है , या कभी हम
किसी चीज की बुराई देखते है तो हम ये सोचते है की इसमे ये बुराईया है तो
इनसे बचा कैसे जाये , इनका समाधान कैसे करे या उसका सामना कैसे करे ( कुछ
चीजो, समस्याओ और लोगो की सोच का कोई समाधान नहीं होता है तब उनका सामना
करना पड़ता है ), इस तरह तो हम चीजो को एक तरह से बुराई मुक्त कर देते है
या कम से कम हानिकारक बना देते है | हम खुद तक ही नहीं रुकते है जब दूसरे
भी हम से किसी बारे में राय मंगाते है तो ज्यादातर हम उस चीजो से जुडी
गलतियों बुराइयों और समस्याओ की तरफ ही लोगो का ध्यान पहले दिलाते है ,
मेरा मानना है की उस चीज की अच्छाई तो सामने वाला पहले ही देख चूका है तभी
वो काम करने जा रहा है तो जब वो हमारी राय मांग रहा है तो ये हमारी
जिम्मेदारी है की उससे जुडी समस्याओ को भी वो पहले समझ ले ताकि बाद में
उसका नुकशान न हो, कभी कभी लोग इस बात को समझ लेते है किन्तु कभी कभी होता
ये है की जब वो व्यक्ति हर हाल में वो काम करना चाहता है और हमसे बस हामी
भरवाने आता है तो उसे हमारी बाते नकरात्मक लगने लगती है | मै सोचती हूँ की
किसी चीज के साथ जुडी अच्छी चीजे तो हमारे पास आने के बाद हमें मिल ही
जाएँगी उसको लेकर पहले से ही ज्यादा बाते करने की जरुरत ही क्या है जब पास
होंगी तो उपयोग भी होता रहेगा किन्तु किसी नुकशान से बचने के उपाय तो पहले
ही सोच लेने चाहिए क्योकि उसके सर पर आ जाने के बाद कई बार आप कुछ भी नहीं
कर पाते है सिवाए पछताने के और ये सोचने के की पहले ही इस बारे में क्यों
नहीं सोचा | जबकि हर समय सकारात्मक कहने सुनने और सोचने की बाते कभी कभी
इन्सान को हर सिक्के का एक ही पहलू देखने के लिए मजबूर कर देती है, वो
पहलू जो बस अच्छा अच्छा है और ये सोच हमें असावधान बनाती है, बुरे वक्त
और बुरी चीजो के लिए तैयार नहीं होने देती है एकतरह से ये हमें आधा अँधा
बना देती है जो सिर्फ अच्छा अच्छा देखता है और समस्याओ बुराइयों को नहीं देख पाता है और कभी कभी तो इन्सान में अति आत्मविश्वास भर देता है | नतीजा ये
होता है की जब हर समय अच्छा अच्छा सोचने वाले के साथ बुरा होता है तो वह
अन्य की तुलना में कुछ ज्यादा ही दुखी हो जाता है और मै सफल ही होंगा का
आत्म विश्वास ( असल में तो अति आत्मविश्वास ) से भरे व्यक्ति को असफलता हाथ
लगती है तो वो कही ज्यादा निराश हो जाता है कभी कभी इतना की फिर कभी
कामयाबी की सोचे ही नहीं खड़ा हो ही नहीं पाये , क्योकि उसे तो लगता है की
उसने तो बड़े सकारात्मक ढंग से हर अच्छी सोच और इरादे से काम किया कही कुछ
गलत था ही नहीं फिर भी सफलता नहीं मिली तो वो दुबारा कैसे मिलेगी , जबकि हर
काम में थोड़ी नकारात्मकता असफल होने का डर आप को फिर से अपनी गलतियों की
सुधार कर खड़े होने फिर से सफलता के लिए संघर्ष करने की हिम्मत देता है ( अब
ये भी जरुरी नहीं है कि सभी के साथ ऐसा हो ही ) , ये व्यक्ति की सोच पर
निर्भर है नकारात्मकता और बुराई से भागना हर समय सही हो ये भी ठीक नहीं है |
लोग अपने घरो में महाभारत का पाठ नहीं करते है क्योकि कहा जाता है की महाभारत का पाठ करने से घर में महाभारत होती है ये एक नकरात्मक पाठ होगा , जबकि मुझे लगता है की महाभारत का तो पाठ होना चाहिए और अंत में इस बात की शिक्षा खुल कर देनी चाहिए की पैसा , पद , गद्दी और राज्य का लालच इतना ख़राब होता है की १०० पुत्रो वाला वंश भी ख़त्म हो जाता है और एक पूरे वंशावली का नाश होने से किसी तरह बची थी ( यदि कृष्ण ने अश्वाथामा का चलाया तीर अपने ऊपर न लिया होता तो उत्तर के गर्भ में ही उसके बच्चे की मृत्यु हो जाती और पांडव वंश का भी नाश हो जाता ),यहाँ देखना ये है की हमें सिखाना क्या है , बुराई दिखा कर हमें लोगो को उससे सावधान करना है उससे जुडी परेशानिया और हानियों से लोगो को परिचित करना है और सकरात्मकता का इतना ऊँचा मानदंड नहीं खड़ा करना चाहिए रामायण और पुरुषोत्तम राम की तरह की लोगो को लगे की ये मानदंड तो इतना ऊँचा है की हम उसे कभी छू ही नहीं सकते है तो वैसा बनने का प्रयास ही बेकार है हम तो बुरे ही भले है | कहने का अर्थ, तात्पर्य , मतलब, यानि की ये है की सकारात्मकता और नकारात्मकता अपने आप में कुछ नहीं होती है ये आप की सोच है उसे अपने पर लेने का तरीका है जो उससे आप को लाभ या हानि कराती है |
अपडेट :- कभी कभी आप के बारे में नकरात्मक खबरे आप का कितना फायदा कर देती है इसी का उदाहरण देखा टीवी पर, परसों तक जो टीवी चैनल चीख रहे थे की अन्ना का आन्दोलन फ्लाप हो गया , अन्ना का जादू ख़त्म हो गया , अब लोग अन्ना के साथ नहीं आयेंगे , अन्ना के आन्दोलन से भीड़ नदारत, वो सारे टीवी चैनल कल से अन्ना के आन्दोलन में भीड़ को दिखा रहे है | असल में उन नकरात्मक खबरों ने उन लोगों में जोश भर दिया जो अभी तक काम , आलस जैसे अनेको कारण से बाहर निकल कर इस आन्दोलन से नहीं जुड़ रहे थे वो बाहर आ गये । यदि उनके बारे में कोई भी खबर ही नहीं दिखाई जाती तो शायद लोगों में ऐसा जोश नहीं आता ,यहाँ पर अन्ना के अन्दोअलन से जुडी नकारात्मक खबरों ने उन्हें फायदा पहुंचा दिया ।
चलते चलते
कहा जाता है की हर समय इन्सान को शुभ शुभ बोलना चाहिए क्योकि दिन भर में एक बार माँ सरस्वती हमारी जबान पर बैठती है औरउस समय जो कहा जाये वो सच हो जाता है और वो कब बैठेंगी ये कोई नहीं जानता इसलिए हर समय शुभ बोलना चाहिए | एक बार हमारी माता जी मेरी बहनों के साथ लक्ष्मी पूजा के लिए माला बना रही थी उसमे खासियत ये थी की वहा हर काम १६ बार करना होता है यानि माला में १६ गुड़हल के फुल होंगे साथ में १६ दुप और १६ चावल के दाने हर फुल के साथ बांधे जायेंगे , पूजा भी १६ दिन करने होते है दूसरा दिन आखरी था रात का समय था और अचानक से बिजली चली गई और काफी देर तक नहीं आई थी , ये मुश्किल काम कम रोशनी में संभव नहीं था , माता जी ने विनती की की ये लक्ष्मी मैया माला बनाने के लिए बिजली दे दो , लो जी मुंह से निकला था और बिजली आ गई , माला फटाफट बनना शुरू हो गई और जैसे ही माला पूरी हुई बिजली चली गई , ये देखते ही मेरी दोनों बहनों ने सर ठोक लिया और कहा की माता जी इतने दिन पूजा किया पाठ किया और बदले में माँगा भी तो क्या बस माला बनाने तक के लिए बिजली अरे कुछ बड़ा मांग लेना था न |
शिक्षा :- इस कथा से हमें ये शिक्षा मिलती है की बस शुभ बोलने से ही काम नहीं चलेगा जब भी बोलो तो कुछ बड़ा बोलो कुछ बड़े की मांग करो क्या पता कब सरस्वती मैया जबान पर विराजमान हो जाये |
तो जल्द ही मुझे पुलित्जर उसके बाद बुकर उसके बाद आस्कर और उसके बाद नोबेल शांति पुरुस्कार मिले ! सरस्वती मैया क्या आप ने सुना !!!