देखीये ये जीवन क्या है बस एक छड भंगुर है हर किसी को एक दिन इस दुनिया से जाना है कोई आज जायेगा, कोई कल जायेगा किन्तु याद रखियेगा की हम सभी की आत्मा नहीं मरती है, मरता है तो ये शरीर आत्मा तो जीवित रहती है और जल्द ही किसी और शरीर में प्रवेश कर जाती है किसी और बम ब्लास्ट में मरने के लिए किसी और आतंकवादी हमले में किसी रेल दुर्घटना में मरने के लिए, उसके जाना का दुख नहीं करना चहिए | जो लोग मुंबई में हुए विस्फोटो में घायल हुए है तो लोगों को उनके लिए दुखी होने की जरुरत नहीं है क्योकि ये आतंकवादियों के कृत्य नहीं है असल में तो ये उनके ही पूर्व जन्मो के और इस जन्म के कर्मो का नतीजा है उनके बुरे कर्मो का फल है जिसको उन्हें भोगना ही पड़ेगा आतंकवादी तो बस उसे पुरा करने में हमारी मदद करते है वो तो बस निमित्य मात्र है साधन है हमारे कर्मो का फल हमें देने में | अब इन सबके बीच बेचारे हमारे मंत्री गण हमारी सुरक्षा एजेंसिया क्या कर सकती है आखिर वो ऊपर वाले के काम में दखलंदाजी क्यों करे | अब कुछ लोग केंद्रीय गृह मंत्री शिवराज पाटिल और महाराष्ट्र के गृह मंत्री भुजबल से पूछ रहे है की- - - --- -- क्या कहा मैंने गलत नाम लिखे है अच्छा तो ठीक है आप को यदि लगता है की सही नाम या कुछ और नाम लिखने से देश की आतंरिक सुरक्षा व्यवस्था सुधर जाएगी देश सुरक्षित हो जायेगा तो मुझे वो नाम बता दीजिये मै उसे वहा लिख दुँगी - - - - की २६/११ के बाद जो करोडो के अत्याधुनिक हथियार ख़रीदे गये बख्तर बंद गाड़िया खरीदी गई उसक क्या फायदा है वो क्या काम आये अब कोई इन मूर्खो से पूछे की भाई इसमे मंत्री क्या कर सकता है इस बार जब आतंकवादियों ने बिना बताये अपना पैटर्न बदल दिया वो वापस से अपने पुराने तरीके पे आ गये, तो बेचारे मंत्री क्या कर सकते है उन्होंने तो ये सोच कर बख्तर बंद गाड़ी ली थी की २६ /११ की तरह फिर से दस बारह आतंकवादी देश में घुस जायेंगे ( देश के युवराज ने कहा है की हम १००% सुरक्षा की गारंटी नहीं दे सकते है एक दो घटनाये तो हो ही सकती है सो आतंकवादी इतनी बार घुसपैठ करते है एक दो बार घुस कर हमला तो कर ही सकते है इतनी छुट तो हमारे भविष्य के प्रधान मंत्री भी आतंकवादियों को देते है ) तो हमारे पुलिस वाले कम से कम सुरक्षित हो, बख्तर बंद गाडियों के अंदर से वो आतंकवादियों से आसानी से लड़ सकते है अपना मुँह छुपा सकते है, और रही अत्याधुनिक हथियारों की बात तो उसी से तो उन्हें मारते पर कम्बख्त आये ही नहीं पिछले हमले की तरह ,ये भी कोई बात हुई एक बार में आतंकवादी कुछ तय नहीं कर रहे है की उन्हें हम पर कैसे हमला करना है वो एक तरह से हमला करते है हम उस तरीके से लड़ने के सारे इंतजाम करते है वो दूसरे तरीके से हमला कर देते है अब इसमे बेचारे हमारे मंत्री सुरक्षा एजेंसियों का क्या दोष है | वैसे कुछ शक उन्हें पहले से था की इस बार आतंकवादी सामने से हमला नहीं करने वाले है इसलिए सारे हथियार बेकार जाने वाले है सो उन हथियारों को पहले से ही बेकार कराने के लिए सभी आधुनिक हथियार सीलन वाली जगहों पर ख़राब होने के लिए सुरक्षित रख दिये गये थे और वो इतनी कड़ी सुरक्षा में थी की उनके ख़राब होने की खबर देने वाले पत्रकार को भी नहीं बख्सा गया उसे ना केवल पकड़ कर जेल में बंद कर दिया गया बल्कि कई धाराओ में सुरक्षा भंग करने के लिए मुकदमे भी दायर कर दिये गये |
पर लोगों को कुछ भी समझ नहीं आता है लोग बेकार में मंत्रियो को पुलिस वालो को बुरा भला कहने से बाज नहीं आते है लोग कहते है की सुरक्षा के लिए कुछ भी नहीं किया जा रहा है लोग मर रहे है | अब बताइये जब संसद पर हमला हुआ था तो कैसे सारे संसद की किले की तरह सुरक्षा व्यवस्था कर दी गई थी रातो रात करोडो के सुरक्षा उपकरण बाकायदा योजना बना कर ख़रीदे गये और वही उपकरण ख़रीदे गये जिससे सच में सांसद की कुछ सुरक्षा हो सके | बताइये उसके बाद हुआ संसद पर हमला उसके बाद हुआ किसी नेता मंत्री पर आतंकवादी हमला राजीव जी के बाद आज तक मरा कोई बड़ा ढंग का नेता आतंकवादी हमले में नहीं ना फिर भी लोग कहते है की इन्हें किसी के जान की परवाह नहीं है, देखीये कितनी है मंत्री नेता सांसद के जान की परवाह क्या उनकी परवाह करना उनकी सुरक्षा के लिए कुछ करना कुछ नहीं होता है |
लोग कहते है की सुरक्षा एजेंसियों के पास अंदर की ख़ुफ़िया खबर नहीं होती लीजिये अभी ज्यादा दिन नहीं हुए है जब सभी जगह शोर हुआ था की वित्त मंत्री की जासूसी हो रही थी उसके पहले राडिया, टाटा, बरखा की जासूसी हुई यहाँ तो अमर सिंह जैसे टुच्ची नेता तक की जासूसी की जाती है और लोग इल्जाम लगते है की हमारी सुरक्षा एजेंसियों के पास ख़ुफ़िया खबर नहीं होती | लोग कहते है की हमारे पुलिस को कुछ खबर ही नहीं होती हमले हो जाते है और वो कुछ नहीं कर पाती | देश के किसी भी कोने के पुलिस स्टेशन में चले जाइये इलाके के एक एक अपराध के बारे में उन्हें पहले से पता होता है पुलिस वालो की धाक तो इतनी है की खुद अपराधी आ कर बताता है की उसने कहा कौन सा अपराध किया है और उसके हाथ कितना पैस लगा है अरे उसी हिसाब से तो हफ्ता बनता है सभी पुलिस वालों का |
लोगों के पास कुछ काम नहीं है इल्जाम लगाने के सिवा उन्हें पता नहीं है किसी देश को चलाना किसी बच्चे का काम नहीं है हमें हर जगह संतुलन बना कर रखना पड़ता है | अब मुंबई में भीड़ कितनी बढ़ गई है यदि सरकारे किसी से बोलेंगे की भाई यहाँ मत आओ तो कोई भी उनकी बात सुनने वाला नहीं है तो दो उपाय है एक तो इस जगह पर हमलो की खुद छुट दो एक तो यहाँ की कुछ भीड़ कम ( चुपचाप रहिये इस भीड़ को लोग जनता आदि कहने की भूल मत करीये ) होगी दुसरे ये जगह इतनी असुरक्षित हो जाएगी की लोग खुद बा खुद यहाँ आने से डरने लगेंगे | पर ये सब बाते भीड़ तो समझती नहीं है ये सब काम देश के हित के लिए जनसंख्या के नियंत्रण के लिए करना पड़ता है कभी बाढ़ के नाम पर तो कभी आतंकवादी हमलो के नाम पर ये नियंत्रण का काम होते रहना चाहिए संतुलन बनाने के लिए जरुरी है |
फिर हर एक दो साल में एक बम ब्लास्ट होना या कोई आतंकवादी हमला मुंबई की सुरक्षा के लिए भी जरुरी है और यहाँ के सुरक्षा में लगे लोगों के लिए भी | अब देखीये साल दो साल के लिए मुंबई पूरी तरह सुरक्षित है क्योकि एक बार बम ब्लास्ट हो जाते है तो दूसरे को होने में इतना ही समय लगता है इस बीच सभी लोग बिकुल सुरक्षित हो कर रहते है साथ ही सुरक्षा एजेंसियों को भी आराम की नीद आती है की चलो अब कुछ दिन आतंकवादी हमला नहीं होगा नहीं तो साल दो साल होते ही सभी की नीद ख़राब हुई रहती है की कब कहा कोई हमला हो जाये | एक बार जब हमला हो जाये तो चलो शांति क्योकि आतंकवादियों को दूसरी आतंकवादी टीम बनने नई जगह की खोज करने और बम बनाने में इतना ही समय लगता है तब तक तो सभी सुरक्षित ही रहते है |
इसलिए कम अक्ल वाली भीड़ हर बात के लिए मंत्री संत्री नेता परेता और पुलिस वालो को दोष ना दिया करे कुछ अपनी भी अक्ल लगाये और एक आतंकवादी हमले की उपयोगिता को समझे |
चलते चलते
आतंकवादी देश पर इतनी बार हमला करते है खासकर पाकिस्तान परस्त आतंकवादी इतनी बार हमला करते है पर वो कभी भी सीधे किसी नेता मंत्री आदि के ऊपर हमला क्यों नहीं करते है उन्हें मारने का प्रयास क्यों नहीं करते है क्योकि उन्हें देश के लोगों को दुखी करना है उन्हें परेशान करना है उन्हें दहशत में डालना है उन्हें खुशिया मानने का मौका नहीं देना है | ये अच्छा काम कम्बख्त बस अपने यहाँ ही करते है |
( याद रखे की १३ दिसंबर को हुआ हमला संसद पर था किसी नेता मंत्री पर नहीं | वो हमला प्रतीकात्मक ज्यादा था नुकशान पहुचने के उद्देश्य से कम था तभी कोई नेता नहीं मरा और बाकि मंत्री नेता पर आतंकवादी हमले होने के पहले ही पकडे जाने की कई खबरे हम सुनते है उनका असली सच सभी जानते है )
July 15, 2011
July 12, 2011
कल से देश में भ्रष्टाचार घोटाले बंद राम राज का आगमन हो गया - - - - - - -mangopeople
कल से देश से भ्रष्टाचार मिट जायेगा अब कल से देश में कोई नया घोटाला नहीं होगा अब कल से महंगाई कम होने लगेगी कल से देश का आम आदमी ज्यादा सुरक्षित होगा अब कल से कोई नई रेल दुर्घटना नहीं होगी, हर मुसाफिर एक साफ सुथरी सुरक्षित रेल यात्रा करेगा | क्योकि इन सारे सवालो को दर किनारा कर या ये कहे की जनता द्वारा सरकार से पूछे जा रहे इन सारे सवालो के जवाब में हमारे "ईमानदार" प्रधानमंत्री ने अपने कुनबे का या मंत्री मंडल का या घोटालेबाजो का जो आप चाहे कह ले उसका विस्तार कर लिया है | लीजिये जी हो गया मंत्री मंडल का विस्तार अब देश में राम राज होगा | जनवरी में भी हमारे "ईमानदार" साहब ने अपने कुनबे का इसी तरह विस्तार किया था या ये कहिये की अपने कुनबे के लोगों को तास के पत्तो की तरह फेट दिया था लेकिन उससे क्या बदला कुछ भी नहीं आम आदमी का जीवन तो आज भी वैसे का ही वैसा ही है मंहगाई वैसे की वैसे ही है | लेकिन सरकार को शायद जनता के सवालो का कोई जवाब ना सुझा तो उन्होंने भी हवा में उछाल दिया मंत्री मंडल के विस्तार की खबर और इस खबर को पकड़ लिया हमारे खबरनवीसो ने जिस भी चैनल को देखीये सभी के सभी लगे थे हफ्ते भर से ये बताने में की मंत्री मंडल के फेरबदल में कौन कौन नया मंत्री बनेगा किसका कद बढेगा, किसका विभाग बदलेगा और किसका मंत्री मंडल से छुट्टी होना तय है | सभी के अपने अपने सूत्र है सभी के सूत्र कोई ना कोई दावा कर रहे थे और सभी लगे है मंत्री मंडल के विस्तार होने के पहले ही सारी जानकारी जनता को दे देने में | पर सवाल ये है की क्या जनता ये जानने के लिए उत्सुक थी कि मंत्री मंडल के विस्तार में क्या होने वाला है, कोई पूछे इन खबर देने वालो से की कुछ दिन पहले या कुछ घंटो पहले इस बात को जान लेने से क्या फर्क पड़ेगा की कौन मंत्री बनने वाला है और कौन नहीं क्योकि जब मंत्री शपथ लेंगे तो अपने आप ही सारी बाते साफ पता चल जायेगी, पहले से जानने में जनता का तो कोई भला होने वाला नहीं है और यदि जनता बाद में भी जान जाये तो भी उसका कोई भला नहीं होने वाला है | मंत्रियो के विभागों में फेरबदल हो या किसी को निकाला जाये या किसी को रखा जाये जनता को किसी भी बात से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है जनता पहले भी त्रस्त थी और कैबिनेट विस्तार के बाद भी वैसे ही त्रस्त रहेगी | मंत्री मंडल में चाहे कोई भी नया मंत्री आ जाये महंगाई नहीं घटने वाली है घोटाले नहीं रुकने वाले है, भ्रष्टाचार कम नहीं होने वाला है सब कुछ वैसा ही रहेगा जैसा पहले था | रेल मंत्री कोई भी हो रेल दुर्घटनाओ में कोई कमी नहीं आने वाली है और ना ही रेल प्रशाशन द्वारा हर दुर्घटना के बाद उसके कारणों के ले कर वही लिपा पोती करना बदलने वाला है | ना तो कोई मंत्री देश की सेवा या जनता की सेवा के लिए बनता है और ना ही किसी मंत्री मंडल में फेर बदल जनता के लिए या उसकी परेशानियों को दूर करने के लिए होता है | पूरी कवायद सरकार का, सरकार के लिए, सरकार द्वारा किया जाता है | मतलब की मंत्री मंडल में नये चेहरों को लाना कुछ पुराने को इधर उधर करना और कुछ की छुट्टी करना सरकार अपने मतलब के लिए करती है, कही किसी को संतुष्ट करना है, कही सरकार की बिगड़ी छवि को ठीक करना है, कही किसी का कद उसके चमचागिरी से बढ़ना है, तो किसी के उग आये ज्यादा परो को काटना है | जो भी होगा वो सरकार केवल और केवल अपने लिए करती है आम आदमी के बारे में ना तो सोचा जाता है ना उसकी कोई सुध ली जाती है, यदि उसके बारे में कुछ सोचा जाता है तो ये कि कैसे सरकार की आम आदमी के सामने हो रही बदनामी कम हो जाये, या फिर काम हो या ना हो पर आम आदमी को लगना चाहिए की काम हो रहा है सरकार को उसकी चिंता है तभी तो देखो कैसे सरकार ने जनता के भलाई के लिए तुरंत कुछ मंत्रियो को हटाया बढाया है नये लोगो को लाया है जो जनता की अच्छी सेवा करेंगे | पर असल में होगा क्या की अब नये मंत्री नये घोटाले करेंगे नये तरीके के भ्रष्टाचार होंगे अब मंहगाई बढ़ने के शायद कुछ नये कारण गिनाये जायेंगे या एक और नई तारीख दे दी जाएगी महंगाई कम होने के, अब नये लोग कुछ तो नया करेंगे ही बाकि जनता के लिए तो बस नेताओ मंत्रियो के नाम बदलने के अलावा और कुछ भी नहीं बदलने वाला है | पर हा इन सभी बातो के बीच कम से कम जनता का ध्यान कुछ सरकार विरोधी मुद्दों से तो हट ही जाता है और इसे हटाने में सबसे बड़ा साथ देता है मीडिया | मंत्री मंडल में होने वाले फेरबदल या विस्तार को इस तरह बड़ी खबर बना कर पेश करने लगा था जैसे की बस इसके बाद तो देश में क्रांति ही आ जाएगी सब कुछ सुधर जायेगा देश से भ्रष्टाचार कम हो जायेगा घोटाले बंद हो जायेंगे महंगाई रुक जाएगी सभी देशवासी नेताओ की तरह ही सुरक्षित जिंदगी जियेंगे, अब तो देश में सब कुछ अच्छा हो जायेगा | ये भी कम नहीं था जो अब नेताओ के संतुष्ट असंतुष्ट इस्तीफे की नौटंकी को बड़ी खबर बना कर पेश किया जा रहा है | पर जनता भी अब पहले की तरह ना तो भोली रही और ना ही बेफकुफ़ जो वो इन तिकड़मो को समझ ना सके सरकार की इन चालबाजियो को समझ नहीं सके | जनता ना तो भ्रष्टाचार के मुद्दे को भूलेगी ना महंगाई के मुद्दे को भूलेगी और ये बात सरकार के साथ मीडिया भी समझ ले तो उसके लिए ज्यादा अच्छा होगा |
July 04, 2011
आप इसे क्या कहेंगे उच्च कोटि का बलिदान, नादानी या बेवकूफ़ी - - - - - - -mangopeople
आज ये खबर पढ़ी आप भी पढिये और बताइये की आप इसे क्या कहेंगे उच्च कोटि का बलिदान, नादानी या बेवकूफ़ी जो एक १२ साल की छोटी लड़की ने की है असल में ये लड़की नहीं बेटी है |
आशीष पोद्दार
नादिया (पश्चिम बंगाल) ।। 12 साल की मंफी से किसी ने कुछ नहीं कहा, लेकिन परिवार में सभी चिंतित थे। उसे पता था कि उसके पिता की आंखों की रोशनी जा रही है और भाई की जिंदगी भी खतरे में है। पिता के लिए आंख और भाई के लिए किडनी का बंदोबस्त करना परिवार के बूते की बात नहीं थी। आखिर उसने एक योजना बनाई जो उसके मुताबिक सभी समस्याओं का हल थी।
वह अपनी जिंदगी खत्म कर देगी। उसकी मौत से दहेज का पैसा तो बचेगा ही, उसके अंग भी पिता और भाई के काम आ जाएंगे। मंफी ने अपनी योजना पर अमल भी कर दिया, लेकिन मौत से पहले मां के नाम लिखा गया उसका खत परिवार वालों को तब मिला जब उसका अंतिम संस्कार हो चुका था।
यह घटना 27 जून को झोरपाड़ा के धंताला में हुई। छठी क्लास की छात्रा मंफी सरकार परिवार की समस्याओं को लेकर काफी परेशान थी। उसके नौवीं में पढ़ने वाले भाई मोनोजीत की एक किडनी खराब हो गई थी और दूसरी भी कमजोर हो रही थी। दिहाडी मजदूर पिता मृदुल सरकार की आंखों की रोशनी कम होती चली जा रही थी।
धंताला पंचायत के प्रधान तापस तरफदार बताते हैं,'परिवार ने लोकल एमएलए से संपर्क किया था। हमने फैसला किया कि उन्हें कुछ पैसा डोनेट करेंगे, लेकिन अचानक यह हादसा हो गया।'
मंफी ने 17 जून की सुबह ही अपनी योजना के बारे में आठवीं में पढ़ने वाली बड़ी बहन मोनिका से बात की थी। लेकिन, मोनिका ने उसकी बात को हंसी में उड़ा दिया और स्कूल चली गई। पिता काम पर थे और मां रीता सरकार चावल लाने गई थी। खुद को अकेला पाकर मंफी ने कीटनाशक पी लिया। उसके बाद वह पिता से मिलने दौड़ी।
जहर की बात पता चलते ही पिता उसे पास के दवाखाने ले गए। वहां से उसे लोकल अस्पताल भेज दिया गया। वहां भी हालत बिगड़ने पर मंफी को अनुलिया हॉस्पिटल ले जाया गया, लेकिन उसने रास्ते में ही दम तोड़ दिया।
मंफी का अंतिम संस्कार किए जाने के अगले दिन पिता मृदुल सरकार को मंफी के बिस्तर पर वह खत मिला जो मंफी ने मां के नाम लिखा था। खत में मंफी ने लिखा था कि उसकी आंखों और किडनी का इस्तेमाल करते हुए पिता और भाई का इलाज करवा लिया जाए। इस खत ने दुखी परिजनों का और बुरा हाल कर दिया। मां सदमे में हैं। पिता मृदुल सरकार रोते हुए कहते हैं,'हम उस छोटी सी बच्ची की भावनाओं को समय रहते समझ नहीं पाए।'
नादिया (पश्चिम बंगाल) ।। 12 साल की मंफी से किसी ने कुछ नहीं कहा, लेकिन परिवार में सभी चिंतित थे। उसे पता था कि उसके पिता की आंखों की रोशनी जा रही है और भाई की जिंदगी भी खतरे में है। पिता के लिए आंख और भाई के लिए किडनी का बंदोबस्त करना परिवार के बूते की बात नहीं थी। आखिर उसने एक योजना बनाई जो उसके मुताबिक सभी समस्याओं का हल थी।
वह अपनी जिंदगी खत्म कर देगी। उसकी मौत से दहेज का पैसा तो बचेगा ही, उसके अंग भी पिता और भाई के काम आ जाएंगे। मंफी ने अपनी योजना पर अमल भी कर दिया, लेकिन मौत से पहले मां के नाम लिखा गया उसका खत परिवार वालों को तब मिला जब उसका अंतिम संस्कार हो चुका था।
यह घटना 27 जून को झोरपाड़ा के धंताला में हुई। छठी क्लास की छात्रा मंफी सरकार परिवार की समस्याओं को लेकर काफी परेशान थी। उसके नौवीं में पढ़ने वाले भाई मोनोजीत की एक किडनी खराब हो गई थी और दूसरी भी कमजोर हो रही थी। दिहाडी मजदूर पिता मृदुल सरकार की आंखों की रोशनी कम होती चली जा रही थी।
धंताला पंचायत के प्रधान तापस तरफदार बताते हैं,'परिवार ने लोकल एमएलए से संपर्क किया था। हमने फैसला किया कि उन्हें कुछ पैसा डोनेट करेंगे, लेकिन अचानक यह हादसा हो गया।'
मंफी ने 17 जून की सुबह ही अपनी योजना के बारे में आठवीं में पढ़ने वाली बड़ी बहन मोनिका से बात की थी। लेकिन, मोनिका ने उसकी बात को हंसी में उड़ा दिया और स्कूल चली गई। पिता काम पर थे और मां रीता सरकार चावल लाने गई थी। खुद को अकेला पाकर मंफी ने कीटनाशक पी लिया। उसके बाद वह पिता से मिलने दौड़ी।
जहर की बात पता चलते ही पिता उसे पास के दवाखाने ले गए। वहां से उसे लोकल अस्पताल भेज दिया गया। वहां भी हालत बिगड़ने पर मंफी को अनुलिया हॉस्पिटल ले जाया गया, लेकिन उसने रास्ते में ही दम तोड़ दिया।
मंफी का अंतिम संस्कार किए जाने के अगले दिन पिता मृदुल सरकार को मंफी के बिस्तर पर वह खत मिला जो मंफी ने मां के नाम लिखा था। खत में मंफी ने लिखा था कि उसकी आंखों और किडनी का इस्तेमाल करते हुए पिता और भाई का इलाज करवा लिया जाए। इस खत ने दुखी परिजनों का और बुरा हाल कर दिया। मां सदमे में हैं। पिता मृदुल सरकार रोते हुए कहते हैं,'हम उस छोटी सी बच्ची की भावनाओं को समय रहते समझ नहीं पाए।'
आप इसे चाहे बलिदान कहे या नादानी या बेफकुफी आप की नजर में ये चाहे जो भी हो पर ऐसा कोई भी काम परिवार के लिए, उसके दुखो के अंत के लिए बस एक बेटी ही कर सकती है बेटा नहीं आप चाहे तो ऐसा कहने के लिए मुझे भी नारीवादी कह ले पर सच यही है | धन्य है वो महान लोग जो अपनी बेटियों को कोख में ही मार देते है, धन्य है वो लोग जो अपनी बेटी का लिंग बदलवा कर उसे बेटा बनवा रहे है, धन्य है वो लोग जो राजेस्थान सरकार द्वारा बेटी के जन्म के एवज में मिलने वाले पैसे के लालचा में अब कन्या भ्रूण हत्या नहीं करते है बल्कि अब बेटी को जन्म देते है पैसे लेते है और उसके बाद उसे मार देते है | ये सब हमारे २१ वी सदी के भारत में हो रहा है धन्य है हमारा भारत देश और यहाँ के लोग |
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