June 28, 2011

किसने कहा की ये "बेशर्मी मोर्चा" बाकि दुनिया से भारत आया है ये तो पूरी तरह से भारतीय है - - - - - - mangopeople




                                                                    आज कल काफी चर्चा है "बेशर्मी मोर्चा" की अब तक तो आप सभी इसकी इतिहास, भूगोल , पृष्ठभूमि और भारत में इसके प्रवेश आदि पर काफी कुछ पढ़ सुन और कह चुके होंगे | किन्तु सभी जगह लगभग यही बात दुहराई जा रही है की ये कनाडा से होते हुए बाकि दुनिया घूम कर भारत आया है किन्तु वास्तव में भारत में इस तरह का विरोध प्रदर्शन कोई नई बात नहीं है , हा पहले इतनी चर्चा नहीं हुई | कारण दो हो सकते है एक तो ये की अभी तक इस तरह का विरोध गरीब लाचार और कानून के आगे मजबूर तबके ने किया था दूसरा ये की हम सभी भारतीयों को विदेश से आई चीज की ज्यादा चर्चा की आदत होती है पर अफसोस की ये "बेशर्मी मोर्चा " तो भारतीय कांसेप्ट है |
                             भारत में बलात्कार का विरोध करने के लिए और महिलाओ की सुरक्षा के लिए इस तरह का मोर्चा निकालने की एक घटना सालो पहले देश के पूर्वोत्तर भाग में हो चुकी है | किन्तु वो मोर्चा आज के इस "बेशर्मी मोर्चा" से कही ज्यादा बोल्ड था क्योकि उस मोर्चे में महिलाओ ने एक भी वस्त्र धारण नहीं किये थे, सर से पांव तक वो नग्न थी और "आओ और मुझसे बलात्कार करो" के नारे भी लगा रही थी | ये मोर्चा निकाला गया था हमारे ही देश की सुरक्षा में लगे सेना के खिलाफ ( ये भी क्या गजब का संजोग है की कनाडा में भी ये विरोध मार्च सुरक्षा में लगे एक पुलिस वाले की कथन के बाद ही निकला गया था ) जिन पर आरोप था ( मै इसे सिर्फ आरोप नहीं मानती ये अपराध हुए थे ) की सेना के जवान वहा की लड़कियों का अपहरण करके सामूहिक बलात्कार करने के बाद हत्या कर देते है | इस तरह की कई घटाने हुई थी और सेना के जवानों पर आरोप लगाये गये किन्तु सेना ने कोई कार्यवाही नहीं की जिसके विरोध में वहा की ४५ से ६० साल की आम बुजुर्ग महिलाओ ने सेना के खिलाफ निर्वस्त्र हो कर प्रदर्शन किया और नारे लगाये की आओ और हमारा बलात्कार करो | ये सब मिडिया को दिखाने के लिए नहीं किया गया था (शायद वहा तो मिडिया के जाने की इजाजत तक नहीं थी) किन्तु फिर भी इस मोर्चे को घरो से छुप पर सुट किया गया और राष्ट्रिय न्यूज चैनलों ने इसे दिखाया भी गया | किन्तु मिडिया द्वारा इसे उस तरह  चर्चा में नहीं लाया गया ( आप देखिएगा अभी कुछ दिनों बाद आज के "बेशर्मी मोर्चे " को मिडिया कितना हाथो हाथ लेती है कितना इसे उछाला जाता है इस पे परिचर्चा की जाएगी बड़े बड़े लोगो को बुला कर इस पर राय ली जाएगी और महीनो तक प्राइम टाइम में ये छाया रहेगा )  जैसा इसे लाना चाहिए था कारण सरकार का दबाव भी हो सकता है क्योकि ये सेना के खिलाफ था और वैसे भी देश के उस हिस्से से हम सभी हमेसा से सौतेला व्यवहार करते आये है उसके दर्द परेशानी से हमें कभी कोई मतलब नहीं रहा है |
                                                                       ये तो रहा एक समूह द्वारा निकला गया मोर्चा किन्तु इस तरह का मोर्चा एक अकेली महिला ने भी निकला था | शहर था कोई यु पी का ( माफ़ करे घटना कुछ साल पुरानी है इसलिए शहर का नाम तो याद नहीं आ रहा है ) महिला गरीब तबके से थी और २७-२८ साल विवाहित महिला थी |  उसे इलाके का गुंडा काफी परेशान करता था छेड़छाड़ करता था उसको उठा ले जाने की धमकी देता और उसके पति द्वारा रोकने पर उसके साथ भी मारपीट करता था | महिला कई बार उसकी शिकायत पुलिस में कर चुकी थी किन्तु पुलिस कभी उसकी एफ आई आर दर्ज नहीं करती बस मुंह जबानी उसे आश्वासन दे देती थी | एक दिन जब उसके बर्दास्त करने की सारी हदे पार हो गई तो वो घर से निकल पड़ा पुलिस स्टेशन वो भी पहने जाने वाले सबसे कम कपड़ो में ( आप उसे बिकनी कह सकते है हिंदी में उसे जो कहते है उसे ठीक से लिख नहीं पा रही हूँ ) इस तरह के मोर्चे को देख पुलिस भी हडबडा गई और उसे तुरंत महिला की शिकायत दर्ज करनी पड़ी और थोड़ी कड़ी कार्यवाही भी करनी पड़ी और मिडिया के जाने के बाद महिला के इस कदम की खूब आलोचन भी की कि महिला को ये सब करने की कोई जरुरत नहीं थी | अब पुलिस वाले ने सारी कार्यवाही महिला के उस रूप को देख कर किया या मिडिया का मजमा लगने के कारण किया पता नहीं किन्तु जो बात वो महिला शालीनता से कहती रही उसे पुलिस वालो ने अनसुना कर दिया और सुना तभी जब महिला ने शर्म छोड़ बेशर्मी को अपना हथियार बना लिया | वैसे कुछ चैनल वालो का भी जवाब नहीं  उन्होंने ने भी महिला को टीवी पर जस का तस दिखाने में कोई गुरेज नहीं की दो तीन बार पूरी किलिपिंग दिखाने के बाद शायद उन्हें शर्म आई और तब जा कर महिला की तस्वीर को धुंधला करना शुरू किया ( पर यहाँ  भी संजोग देखिये की यहाँ भी बेशर्मी मोर्चा निकालने का कारण सुरक्षा में लगे लोगो की लापरवाही रही )
    
                                                   ये तो एक आध धटनाये है जब महिलाओ ने अपने खिलाफ हो रहे बलात्कार, शारीरिक शोषण और अपनी सुरक्षा के कारण शर्म त्याग कर "बेशर्मी मोर्चा" निकला | किन्तु हमारे भारतीय समाज में तो इस तरह की घटनाओ से भरा पड़ा है जब समाज के लोगो ने शर्म छोड़ कर महिलाओ का इस तरह का बेशर्मी मोर्चा निकाला हो | ये घटनाये इतनी आम सी है की हम तो उस पर ध्यान देने की जरुरत भी नहीं समझते है अख़बार के किसी एक कोने में या टीवी के समाचार में दो लाइनों की ये खबर सुनाई जाती है की फलाने गांव में कुछ दबंग लोगो ने महिला को निर्वस्त्र कर पुरे गांव में घुमाया कुछ दबंग लोग बेशर्म हो कर ये बेशर्मी का मोर्चा निकालते है और बाकि बेशर्म उसे चुपचाप होता देखते है | ये भी हमारे देश में निकाला जाने वाला एक तरह का बेशर्मी मोर्चा है जो समाज में बेशर्मी का सबूत हमें देता है |
      
                                                     समझ नहीं आता की ज्यादा बेशर्म कौन है वो बलात्कार करने वाला जो कुछ पलो के शारीरिक आन्नद के लिए किसी का पूरा जीवन नष्ट कर देता है या उसका जीवन ही ले लेता है या वो समाज और लोग जो ऐसे कृत्य के लिए पीड़ित को ही दोषी करार देते है और जीवित रहते भी उसे हर पल मारते है या वो सरकार, प्रशासन और सुरक्षा व्यवस्था जिसमे महिलाओ को अपने हक़ के लिए इस तरह के मोर्चे निकालने पड़ते है  या वो महिलाये जो अपने इसी शरीर के साथ सुरक्षित जीवन जीने के लिए, अपनी इच्छा का जीवन जीने के लिए एक सुरक्षित समाज की मांग करती है | 

  मुझे तो लगता है की सबसे बेशर्म तो वो महिलाए है जो महिला हो कर खुद को इन्सान समझने की भूल करती है , अपने लिए सुरक्षित समाज की मांग करती है , महिला हो कर भी अपने लिए हक़ और अधिकार जैसी चीजो की मांग करती है बड़ी बेशर्म है ये महिलाये |


नोट - कोई लिंक आदि खोजना और आप को देना मेरे बस कि बात नहीं है जिन घटनाओ का जिक्र किया है सभी के वीडियो सबूत है आप खुद यु ट्यूब पर खंगाले आप को जरुर मिल जायेगा | किन्तु इस मुद्दे पर और जानकारी के लिए ये लिंक दे रही हूँ ( प्रवीण शाह जी के आभार )|
                                                                      
                                                             



June 20, 2011

काश होती मै लता मंगेशकर - - - - - mangopeople



                                                                       अचानक से कुछ महीनो से अपने लता मंगेशकर न होने क अफसोस हो रहा है, काश की मै भी लता जी जैसी कोई बड़ी सेलिब्रेटी होती, नहीं नहीं अचानक से मुझे गाने का शौक नहीं हुआ है असल में मै सोच रही थी की 
यदि होती मै लता मंगेशकर तो मै भी अपने घर की तरफ आने वाले हवा, पानी, धुप को रोकने वाली सारी बाधाओ  को अपनी ऊँची पहुँच और रुतबे का प्रयोग कर रोक लेती किन्तु मै ऐसा कुछ नहीं कर पा रही हूँ | लता जी ने तो एक बार धमकी दी की यदि उनके घर के आगे फ्लाई ओवर बना तो वो मुंबई ही छोड़ कर चली जायेंगी राज्य के मुख्यमंत्री तक से इस विषय में मिल आई और उनके सम्मान और सेहत को ध्यान में रखते हुए उस प्रोजेक्ट को रोक दिया गया | किन्तु मै आम आदमी हूँ मेरे और मेरे परिवार के सेहत की चिंता किसी नेता की किसी भी लिस्ट में नहीं आता है मरता है तो मरे हमें क्या ,जीता है तो हमें वोट दे नहीं तो जा कर कही मरे, बिगड़ती है उसकी सेहत तो बिगड़े हमें क्या |
                                      एक तो पहले से ही मै कंक्रीट के जंगल मुंबई में रहती हूँ जहा हरियाली कम और सीमेंट के बड़े बड़े पेड़ चारो तरफ उगते जा रहे है जो खुद एक दुसरे का भी और कुछ छोटे पौधा का भी हवा पानी धुप रोक रहे है उस पर से विकास के नाम पर चल रहे नए प्रोजेक्ट ने तो हमारा साँस लेना भी मुहाल कर रखा है | पिछले एक दो सालो से अचानक लगने लगा की जैसे गर्मी कुछ ज्यादा ही पड़ रही है अब हवा चलना बंद हो गया है, पश्चिम की तरफ हमारे बेडरूम की खिड़की से अब वैसी हवा नहीं आती जैसी की कुछ समय पहले तक आती थी | राज कुछ महीनो पहले पता चला जब एक दिन सुबह सुबह वो खिड़की खोली और सूरज की तेज रोशनी से आँखे चौंधिया गई | लगा ये भगवान क्या दुनिया ख़त्म होने का समय आ गया है सूरज पश्चिम से क्यों उग आया है | असल में सड़क के उस पार और ठीक हमारी खिड़की के सामने जो टावर खड़ा हो रहा था उस पर बड़े बड़े कांच लगा दिए गए थे जिससे सूरज की रोशनी टकरा कर सीधे हमारी खिड़की के अन्दर आ रहा था और तब पता चला की वही टावर हमारे घर आ रहे हवा को भी रोक रहा था | सड़क के उस पार एक पुरानी बंद पड़ी मिल थी और उसके बाद रेलवे ट्रैक था जिसके कारण दूर दूर तक खुली जगह थी जो बिना किसी बाधा के हमारे घर तक समन्दर से आने वाली हवा लाती थी साथ ही डूबते सूरज का सुन्दर नजारा भी दिखाता था जो उस टावर के खड़े होने के बाद बंद हो गई | वो टावर हमारे इलाके की शान बनता जा रहा है इस प्रचार के साथ की वो दक्षिण मुंबई का सबसे ऊँचा व्यवसायिक ईमारत  है और कोई हम लोगो से पूछे की वो इलाके का शान कैसे पुरे इलाके की हवा को रोका रहा है | मामला यही ख़त्म नहीं होता है मेरे लिविंग रूम की बड़ी खिड़की दक्षिण दिशा में खुलती है वहा पर मैंने ३० -३५ गमले लगा रखे है (पहले गार्डेन में गमले होते थे, मुंबई में तो गमलो में ही गार्डेन है ) वहा पर पौधो को तो अच्छी धुप लगती ही है साथ ही वो रास्ता है मेरे घर में धुप आने का ,किन्तु अब कुछ महीनो बाद उस धुप पर भी रोक लगने वाली है क्योकि हमारे घर के सामने से मोनो रेल का ट्रैक बनने जा रहा है जो हमरी मंजिल से ऊपर बनेगा | हम जो पहले ही दूसरी मंजिल पर रहते है सामने से गुजर रहे फ्लाई ओवर से त्रस्त थे ( शुक्र था की वो मुख्य रास्ता न हो कर बस दो मुख्य सड़को को जोड़ने वाला छोटा रास्ता ही था जहा सुबह शाम ही भीड़ होती थी ) अब हमारे सर पर से मोनो रेल गुजरने वाली है वो लगभग तीसरी मजिल तक बनेगा | मोनो रेल दिल्ली की मैट्रो की तरह ही ब्रिज बना कर उस पर चलाया जायेगा | ये प्रोजेक्ट हमसे हमारी धुप ही नहीं छिनेगा बल्कि बरसात में मिलने वाला नजारा और मेरे पौधो को मिलने वाला बरसाती पानी भी रोकेगा जो बरसात के दिनों में उन्हें मिलता है |
                                                             किसानी के जमीन की और किसानो की , कटते जंगल की वहा रहते आदिवासियों की ,  पर्यावरण को हो रहे नुकशान की सभी को चिंता है आन्दोलन हो रहे है किसानो के हक़ में उद्योगपतियों को भगाया जा रहा है आदिवासियों के लिए आन्दोलन हो रहे है जंगल बचाने के लिए आन्दोलन हो रहे है | पर हम शहरो में रहने वाले मध्यमवर्ग के हवा पानी धुप को जो रोका जा रहा है उसकी सेहत के साथ जो खिलवाड़ हो रहा है उसकी चिंता किसी को नहीं है न केंद्र सरकारों को न राज्य सरकारों को ( कम्बखत दोनों जगह तो एक ही सरकार है तो किसको हमारी चिंता होगी, उड़ीसा ,पश्चिम बंगाल, यु पी की तरह अलग अलग सरकारे होती तो बात कुछ बन सकती थी )  न यहाँ के समाज सेवको को ( मेधा पाटेकर तो उड़ीसा जा रही है कभी हम लोगो का दर्द भी देख लेती ) अब हमारे लिए कौन आन्दोलन करेगा क्योकि हम लता मंगेशकर तो है नहीं जो अकेले कुछ कहे ( मिल कर भी कहे तो कौन सुनने वाला है ) और कोई सुन ले या यहाँ से जाने की धमकी दे तो कई सुन लेगा ( ये तो गलती से भी नहीं कह सकती, यहाँ तो पहले से ही एक नहीं दो पार्टिया हमें भागने में लगी है कह दिया तो जरुर घर तक आ जाएँगी हमारी मदद के लिए सामान बंधवा कर स्टेशन तक छोड़ने के लिए ) | फिर आन्दोलन करे भी तो क्या करे हमारे पास जमीन तो है नहीं जिसके जाने का नाम ले कर लड़े,  हम तो हवा में लटक रहे है न जमीन अपनी है न तो छत अकेले हमारी है और लड़े तो हवा पानी धुप के लिए कितने लोग साथ देंगे और हमारी सुनेगा कौन | हा ये हो सकता है की साथ देने कोई नहीं आये किन्तु आवाजाही की परेशानी झेल रहा एक बड़ा वर्ग हमारा विरोध करने जरुर चला आये |
  मोनो रेल के लिए हमारे घर के सामने खड़े तीन बड़े बड़े पेड़ काट दिए गये जो हमारे घर आने वाली हवा का दूसरा स्रोत था और हमारे घर के आगे से जब वो आगे दो किलीमीटर तक बढ़ता है तो पुरे रास्ते में जो पहले पूरी तरह से पेड़ो से भरा था और पुरे रास्ते को बारह महीने पड़ने वाली मुम्बईया गर्मी से राहत देता था को जड़ से काट दिया गया | फर्क कल नहीं आज से ही पता चल रहा है दिन पर दिन असनीय गर्मी बढ़ती जा रही है अब उस रास्ते पर चलना उतना आराम दायक सकून भरा नहीं रहा , जबकि पहले ऐसा नहीं था पेड़ो से भरा वो रास्ता न केवल सूरज की गर्मी जमीन पर कम कर देता था साथ ही अच्छी हवा भी देता था , जो अब हमें नहीं मिल रहा है उस पर से बीच में ब्रिज बनने रास्ते के सकरे होने के कारण होने वाला ट्रैफिक जाम हमारे लिए बोनस है | जो गाडियों के प्रेट्रोल की खपत और बढ़ा रहा है साथ ही और ज्यादा  धुँआ और ज्यादा शोर की जगह भी बनता जा रहा है | सिर्फ एक दो सालो में ये पूरा क्षेत्र विकास के नाम पर पर्यावरण पुरे वातावरण की बलि चढ़ा चूका है और लोग खुश है की विकास हो रहा है |
                                                                            किन्तु सभी को इससे परेशानी नहीं है कुछ लोगो का नजरिया हमसे बिलकुल अलग है वो हमें मोनो रेल बनने और पुरे क्षेत्र में खड़े हो रहे बड़े बड़े कंक्रीट के जंगलो के लिए बधाई देते है की आप का एरिया तो काफी विकास कर रहा है मोनो रेल के आने से तो आप के घर की कीमत तो और भी बढ़ जायेगी ( जो पहले से ही आसमान पर है ) | आप को कही भी आने जाने के लिए और भी आराम हो जायेगा मुंबई को जोड़ने वाली तीनो लाइने आप के घर के दरवाजे पर होगी ( जिसका प्रयोग हम कभी कादर ही करते है शायद इसीलिए हमारा नजरिया दूसरो से अलग है ) | जबकि हमें अब लगने लगा है जैसे कुछ ही दिनों बाद हमें लगेगा की हम किसी स्लम में रह रहे है सामने ओवर ब्रिज ऊपर मोनो रेल आस पास तीन रेलवे स्टेशन , फिर शोर, भीड़, धुल, गर्मी, तो बोनस में हमें और मिलने ही वाले है |
                                         ये सब हमारे ही क्षेत्र में नहीं हो रहा है ये तो पुरे मुंबई का हाल है | कहने के लिए तो संजय गाँधी नेशनल पार्क मुंबई का सबसे बड़ा हरित क्षेत्र है किन्तु अब ये धीरे धीरे सिकुड़ता जा रहा है लोग नेशनल पार्क को काट काट कर घर बनाते जा रहे है और कुछ तो उनके अन्दर ही पूरी बस्ती बना कर रह रहे है | अब सुना है की सी लिंक परियोजना बंद कर दी जायेगी क्योकि ये महंगा पड रहा है अब उसकी जगह समुन्द्र के किनारों को पाट कर समुन्द्र के किनारे किनारे एक सड़क का निर्माण किया जायेगा | जबकि कई बार समुन्द्र को इस तरह पाटने को लेकर विरोध किया जा चूका है और इससे होने वाले नुकशान को भी बताया जा चूका है पर सुनने वाला कोई नहीं है, तब भी नहीं जब ये मुंबई कुछ साल पहले २६ जुलाई को आई बाढ़ की भयानकता को झेल चूका है जिसके लिए एक बड़ी वजह यहाँ पर बह रही मीठी नदी को पाट कर बिलकुल गायब कर देना भी था ( तभी से मीठी नदी भी गंगा बन चुकी है उसकी सफाई और रख रखाव के नाम पर करोडो हजम हो चुके है पर नदी अब भी वैसी की वैसी ही है जैसे की गंगा के गन्दगी कभी साफ नहीं हुई करोडो रुपये जरुर सरकारी तिजोरी से साफ हो गये ) |
                              ऐसा नहीं है की विकास बिना पर्यावरण को नुकशान पहुचाये हो ही नहीं सकता है किन्तु उसके लिए शायद ज्यादा दिमाग और पैसे खर्च करने पड़े जिसका काफी टोटा है हमारे देश में | नीति निर्माता हर प्रोजेक्ट वर्तमान देख कर बना रहे है भविष्य के बारे में कोई कुछ भी सोचने के लिए तैयार नहीं है और न ही इस अंधाधुंध होने वाले विकास के नाम के बर्बादी के बारे में | सभी हर मुश्किल का फौरी इलाज कर रहे है और इस इलाज से होने वाले साइड इफेक्ट के बारे में कोई भी सोचने के लिए तैयार नहीं है सभी का रवैया वही है तब की तब देख ली जाएगी या तब फिर उसके लिए भी कोई फौरी नीति बना ली जायेगी | इन सब से सबसे ज्यादा नुकशान किसे होगा शायद हमारे बच्चो को जो अभी अपने शारीरिक मानसिक विकास के दौर से गुजर रहे है पता नहीं उन पर क्या असर हो रहा है | बड़ो में दिन पर दिन बढ़ता चिडचिडापन गुस्सा तो हमें दिख रहा है पर बच्चो पर क्या असर हो रहा है हमें नहीं पता क्या पता जब तक हमें पता चले तब तक सब कुछ हमारे हाथ से जा चूका हो और हम सिवाय पछताने के उस समय कुछ न कर पाये |
      
 चलते चलते 
             पेड़ लगाओ पेड़ लगाओ का नारा दिया जा रहा है | करोडो रुपये का हर साल वृक्षा रोपण होता है लोगो से अपील की जाती है की तोहफे में पेड़ दे अपने आस पास पेड़ लगाये पर समझ नहीं आता की पेड़ लगाये कहा पर घर की छत पर या बीच रास्ते पर शहरों में पेड़ लागने के लिए भी जगह कहा है | मुंबई में तो कुत्ता भी अपनी पूंछ दाये बाये नहीं ऊपर निचे हिलाता है |  
                                     
       

June 17, 2011

अभी हम सभी ने एक हिंदूवादी बाबा को निपटाया है अब भ्रष्ट अन्ना हजारे की बारी है - - - - - - - mangopeople



                                                               लीजिये अन्ना हजारे ने फिर अनशन की धमकी दे कर अपनी राजनीतिक नौटंकी शुरू कर दी | अभी हम सभी ने एक भ्रष्ट, राजनीतिक महत्वाकांक्षा रखने वाले गेरुवा वस्त्रधारी हिंदूवादी बाबा को निपटाया है अब भ्रष्ट अन्ना हजारे की बारी है | आप सभी को आश्चर्य क्यों हो रहा है ,क्या आप को नहीं पता की अन्ना हजारे भी भ्रष्टाचार में लिप्त पाए गये थे,  बाकायदा उसकी जाँच हुई थी और वो दोषी भी पाये गए थे, वो अलग बात है अपनी ऊँची पहुँच और नाम के चलते वो बच गए | कुछ साल पहले उन्होंने महाराष्ट्र के दो भ्रष्ट कांग्रेसी मंत्रियो के खिलाफ अनशन किया था वहा की सरकार को मजबूर हो कर मंत्रियो को हटाना पड़ा हटाये गए माननीय मंत्री जी ने अन्ना पर अपने ट्रस्ट के पैसे का दुरुपयोग करने का आरोप लगाया बाकायदा माननीय पूर्व मंत्री जी के आरोप पर एक जाँच बैठाई गई और पता चला अन्ना के जन्मदिवस पर ट्रस्ट के दो लाख रुपये खर्च किये गए | ये भ्रष्टाचार नहीं है तो क्या है क्या लोगो ने ट्रस्ट को पैसे अन्ना के जन्मदिवस के लिए दिया था नहीं, उन्होंने जनता के सेवा के लिए मिले पैसे को अपने निजी कार्यो के लिए खर्चा किया था ( अब उन्होंने किया या उनके लोगो ने किया बात तो एक ही है ना, उन्होंने मना तो नहीं किया तो वो भी इस भ्रष्टाचार में उतने ही दोषी है जितने की कोई अन्य  ) | भ्रष्टाचार तो भ्रष्टाचार होता है चाहे वो हजारो करोड़ का हो या कुछ हजार का ही एक भ्रष्टाचारी को कोई हक़ नहीं बनता की वो किसी दुसरे भ्रष्टाचारी पर किसी तरह का आरोप लगाये उस पर उंगली उठाये या उसे भ्रष्ट तक कहे | जो खुद ये काम कर चूका है हम सभी महान ईमानदार आम जनता उस व्यक्ति का कैसे साथ दे सकते है | इसलिए जरुरी है की हम जैसे उच्च कोटि के ईमानदार आम जनता का नेता बिल्कुल उच्च कोटि का ईमानदार हो | क्योकि गाँधी जी ने कहा था की एक सच्ची और अच्छी चीज को पाने के लिए प्रयोग किये जा रहे साधन भी पवित्र होने चाहिए | क्या आप सभी को गाँधी जी की ये बात याद नहीं है, क्यों नहीं याद है, जब गाँधी जी याद है तो उनके विचार क्यों नहीं याद है शायद इसलिए याद नहीं है की हम सभी भेड़ चाल वाले भारतीय व्यक्ति पूजा में विश्वास करते है हम व्यक्ति का समर्थन करते है व्यक्ति का विरोध करते है, उसने क्या कहा उसके क्या विचार है उससे हमें मतलब नहीं है हम तो उसे सुनने की भी जरुरत नहीं समझते है, तो याद क्या खाक रखेंगे तभी तो गाँधी जी याद है किन्तु उन्होंने कहा क्या था गाँधी जी के विचार क्या थे गांधीवाद क्या था  ये हम सब भूल चुके है | हमें बाबा याद है हमें अन्ना याद है किन्तु वो दोनों कह क्या रहे है वो हममे से किसी को भी याद नहीं है व्यक्ति के आगे मुद्दे गुम हो गये | कोई बाबा का विरोध कर रहा है तो कोई उसका समर्थन कर रहा है हर जगह बस बाबा ही छाये हुए है पर उनके उठाये मुद्दे गुम हो गये है | 
                                   अब अँधा क्या चाहे दो आँखे और सरकार क्या चाहे भ्रष्टाचार के मुद्दे हवा हो जाये और लीजिये जी वो हवा हो गये | अब सरकार से कोई नहीं पूछ रहा है कि आप ने तो बाबा की सारी मांगे मान ली थी तो जरा बतायेंगे की उस पर कमेटिया बनाने के अलावा क्या जमीनी काम चल रहा है क्या बतायेंगे की कमेटिया कब तक अपना काम कर लेंगी, कब तक सरकार को अपनी रिपोर्ट दे देंगी, क्या उनका कोई समय सीमा तय किया है | चलिए वो जाने दीजिये विदेश से जो धन आएगा वो तो आएगा पर देश के अन्दर ही जो कला धन छुपा है उसका क्या हुआ उसको बाहर लाने के लिया आप क्या कर रहे है | सालो पहले आप लोगो ने खूब स्कीम लाई थी इतने प्रतिशत सरकार को दो और अपना सारा कला सफ़ेद में बदला लो | बहुतो ने अपना काला सफ़ेद किया था तब से तो आप को पता होगा ही की किस किस के पास कितना काला है उसके बाद आप लोगो ने उस पर रोक लगाने के लिए क्या कार्यवाही की है | चलिए वो भी छोडिये  कोर्ट ने आप की गर्दन पकड़ कर जब झकझोरा तब जा कर आप ने हसन अली को गिरफ्तार किया अब वो कई राज आप को बता चूका है की उसके पास किस किस का पैसा था सुना था की उसमे दो पूर्व कांग्रेसी मुख्यमन्त्रियो और वर्तमान केन्द्रीय मंत्रियो का पैसा था उनके खिलाफ आप क्या कर रहे है ये सवाल तो आम जनता क्या देश की अदालत भी आप से पूछ पूछ कर परेशान हो चुकी है आप क्या कर रहे है | २ जी में जो सरकारी पैसा डूब गया उसको फिर से पाने के लिए क्या कर रहे है उन कंपनियों पर क्या कार्यवाही कर रहे है जो असल में मंत्रियो द्वारा फर्जी बना कर सारा खेल खेला गया , उन बड़ी कंपनियों पर क्या कार्यवाही कर रहे है जो इन सरे खेल में शामिल थी | इस केस में जो की आप ने एक और विरोधी सांसद के और कोर्ट के दखल के बाद मज़बूरी में कार्यवाही के आलावा दुसरे लोगो के नाम आ रहे है उनके खिलाफ आप क्या करने वाले है आदि आदि आदि सवाल तो कई है  किन्तु आज कोई भी ये सवाल सरकार से नहीं पूछ रहा है क्योकि सरकार ने ऐसे हवा चलाई की ये सारे सवाल हवा में गुम हो गये |
                                                सरकार ने पहले हम सभी को बाबा के कपडे का रंग दिखाया ( वैसे समझ नहीं आता की जब एक दो नहीं तीन तीन केन्द्रीय मंत्री हवाई अड्डे पर बाबा की अगवानी में लगे थे तब क्या उन्हें बाबा के कपड़ो का रंग नहीं दिखाई दे रहा था ) अब वो बता रही है की आन्ना के सफ़ेद कपड़ो के नीचे भी वही गेरुआ कपडे है जिससे हम सभी को डरना चाहिए क्योकि गेरुआ रंग आम जनता के लिए भारत की राजनीति के लिए बड़ा खतरनाक है | पहले उसने बाबा के कपड़ो का रंग दिखा कर उनके मुद्दे को हवा में गुम कर दिया अब वही चाल वो आन्ना के साथ भी चल रही है | और हम व्यक्ति पूजक आम जनता हम तो व्यक्ति के पीछे भागते है हमें तो मुद्दों से कभी ना मतलब था और ना रहेगा हम सदा से व्यक्ति पूजक रहे है और रहेंगे जब तक हमें व्यक्ति अच्छा लगेगा हम उसकी हर बात को कान बंद कर हा में हा मिलाते रहेंगे जिस दिन व्यक्ति हमें ख़राब लगने लगेगा उस दिन हम उसकी अच्छी से अच्छी बात को भी नकारते चलेंगे और इस बात को सरकारे भी खूब जानती है | तभी तो देखिये सरकार के मुंह से जब भी निकालता है तो बाबा या अन्ना ही निकालता है उन्होंने जो सवाल उठाये थे उस बारे में सरकार की मुंह कभी नहीं खुलता है | फिर उसे दिग्गी राजा ने थोड़े काटा है की वो अपने मन से ही इन विषयों पर कुछ बोले जब आम जनता , महान भारितीय बुद्धिजीवी वर्ग और हमारा तथाकथित लोकतंत्र का चौथा खम्बा मिडिया और अपने आप को जबरजस्ती लोकतंत्र का पांचवा खंबा ?? बनाने का प्रयास करने वाला स्वघोषित विद्वान ?? ब्लोगर इस बारे में कुछ नहीं कह रहे है कोई सवाल नहीं कर रहे है तो उसे क्या पड़ी है कुछ भी कहने की | सभी यहाँ अपने निजी विचारो, संकुचित सोच को पोषित करने उसे बढ़ाने सभी से उसे मनवाने और सबसे सही और सभी का भला सोचने वाला साबित करने में लगे है ( मै भी इनमे शामिल हूँ मै कोई दुसरे ग्रह से थोड़े आई हूँ ) | असल में सभी अपने राजनीतिक सोच की खाल से बाहर आने को तैयार नहीं है सभी का अपना ही विचार उत्तम लग रहा है | किसी को तो ये सारा आन्दोलन ही लोकतंत्र पर हमला लग रहा है तो किसी को कांग्रेस विरोधियो बजापा की राजनीतिक साजिस लग रहा है | सही भी है ६० साल से ऊपर चिर निद्रा में सोये हुए हम आम जनता ये कैसे बर्दास्त करे की कोई बेवजह हमारे नीद में खलल डाले हम अपने घरो में सोफे पे पसर कर भ्रष्टाचार पर बकर बकर तो कर सकते है पर जब सड़क पर आ कर कुछ करना हो तो हम हर आन्दोलन में दुनिया जहान के मीन मेख निकाल कर बड़े आराम से इससे बचना चाहते है, हम क्रांति तो चाहते है बदलाव तो चाहते है पर वो सब बस हमारे आराम से बैठे बैठे बकर बकर बकने से आ जाये तो क्या बात है | हा जब बदलाव आ जाये और उसका क्रेडिट लेना होगा तो हम सब माला पहनने के लिए जमीन तक अपना सर और कमर झुकाने के लिए तैयार मिलेंगे | तो चलिए हमारी बकर बकर ख़त्म हुई कुछ आप के मन में हो तो यहाँ बक कर मन हल्का कर लीजिये मेरी तरह , बाकि हम इससे ज्यादा ना तो कर सकते है और ना ही करना चाहते है |