June 28, 2011

किसने कहा की ये "बेशर्मी मोर्चा" बाकि दुनिया से भारत आया है ये तो पूरी तरह से भारतीय है - - - - - - mangopeople




                                                                    आज कल काफी चर्चा है "बेशर्मी मोर्चा" की अब तक तो आप सभी इसकी इतिहास, भूगोल , पृष्ठभूमि और भारत में इसके प्रवेश आदि पर काफी कुछ पढ़ सुन और कह चुके होंगे | किन्तु सभी जगह लगभग यही बात दुहराई जा रही है की ये कनाडा से होते हुए बाकि दुनिया घूम कर भारत आया है किन्तु वास्तव में भारत में इस तरह का विरोध प्रदर्शन कोई नई बात नहीं है , हा पहले इतनी चर्चा नहीं हुई | कारण दो हो सकते है एक तो ये की अभी तक इस तरह का विरोध गरीब लाचार और कानून के आगे मजबूर तबके ने किया था दूसरा ये की हम सभी भारतीयों को विदेश से आई चीज की ज्यादा चर्चा की आदत होती है पर अफसोस की ये "बेशर्मी मोर्चा " तो भारतीय कांसेप्ट है |
                             भारत में बलात्कार का विरोध करने के लिए और महिलाओ की सुरक्षा के लिए इस तरह का मोर्चा निकालने की एक घटना सालो पहले देश के पूर्वोत्तर भाग में हो चुकी है | किन्तु वो मोर्चा आज के इस "बेशर्मी मोर्चा" से कही ज्यादा बोल्ड था क्योकि उस मोर्चे में महिलाओ ने एक भी वस्त्र धारण नहीं किये थे, सर से पांव तक वो नग्न थी और "आओ और मुझसे बलात्कार करो" के नारे भी लगा रही थी | ये मोर्चा निकाला गया था हमारे ही देश की सुरक्षा में लगे सेना के खिलाफ ( ये भी क्या गजब का संजोग है की कनाडा में भी ये विरोध मार्च सुरक्षा में लगे एक पुलिस वाले की कथन के बाद ही निकला गया था ) जिन पर आरोप था ( मै इसे सिर्फ आरोप नहीं मानती ये अपराध हुए थे ) की सेना के जवान वहा की लड़कियों का अपहरण करके सामूहिक बलात्कार करने के बाद हत्या कर देते है | इस तरह की कई घटाने हुई थी और सेना के जवानों पर आरोप लगाये गये किन्तु सेना ने कोई कार्यवाही नहीं की जिसके विरोध में वहा की ४५ से ६० साल की आम बुजुर्ग महिलाओ ने सेना के खिलाफ निर्वस्त्र हो कर प्रदर्शन किया और नारे लगाये की आओ और हमारा बलात्कार करो | ये सब मिडिया को दिखाने के लिए नहीं किया गया था (शायद वहा तो मिडिया के जाने की इजाजत तक नहीं थी) किन्तु फिर भी इस मोर्चे को घरो से छुप पर सुट किया गया और राष्ट्रिय न्यूज चैनलों ने इसे दिखाया भी गया | किन्तु मिडिया द्वारा इसे उस तरह  चर्चा में नहीं लाया गया ( आप देखिएगा अभी कुछ दिनों बाद आज के "बेशर्मी मोर्चे " को मिडिया कितना हाथो हाथ लेती है कितना इसे उछाला जाता है इस पे परिचर्चा की जाएगी बड़े बड़े लोगो को बुला कर इस पर राय ली जाएगी और महीनो तक प्राइम टाइम में ये छाया रहेगा )  जैसा इसे लाना चाहिए था कारण सरकार का दबाव भी हो सकता है क्योकि ये सेना के खिलाफ था और वैसे भी देश के उस हिस्से से हम सभी हमेसा से सौतेला व्यवहार करते आये है उसके दर्द परेशानी से हमें कभी कोई मतलब नहीं रहा है |
                                                                       ये तो रहा एक समूह द्वारा निकला गया मोर्चा किन्तु इस तरह का मोर्चा एक अकेली महिला ने भी निकला था | शहर था कोई यु पी का ( माफ़ करे घटना कुछ साल पुरानी है इसलिए शहर का नाम तो याद नहीं आ रहा है ) महिला गरीब तबके से थी और २७-२८ साल विवाहित महिला थी |  उसे इलाके का गुंडा काफी परेशान करता था छेड़छाड़ करता था उसको उठा ले जाने की धमकी देता और उसके पति द्वारा रोकने पर उसके साथ भी मारपीट करता था | महिला कई बार उसकी शिकायत पुलिस में कर चुकी थी किन्तु पुलिस कभी उसकी एफ आई आर दर्ज नहीं करती बस मुंह जबानी उसे आश्वासन दे देती थी | एक दिन जब उसके बर्दास्त करने की सारी हदे पार हो गई तो वो घर से निकल पड़ा पुलिस स्टेशन वो भी पहने जाने वाले सबसे कम कपड़ो में ( आप उसे बिकनी कह सकते है हिंदी में उसे जो कहते है उसे ठीक से लिख नहीं पा रही हूँ ) इस तरह के मोर्चे को देख पुलिस भी हडबडा गई और उसे तुरंत महिला की शिकायत दर्ज करनी पड़ी और थोड़ी कड़ी कार्यवाही भी करनी पड़ी और मिडिया के जाने के बाद महिला के इस कदम की खूब आलोचन भी की कि महिला को ये सब करने की कोई जरुरत नहीं थी | अब पुलिस वाले ने सारी कार्यवाही महिला के उस रूप को देख कर किया या मिडिया का मजमा लगने के कारण किया पता नहीं किन्तु जो बात वो महिला शालीनता से कहती रही उसे पुलिस वालो ने अनसुना कर दिया और सुना तभी जब महिला ने शर्म छोड़ बेशर्मी को अपना हथियार बना लिया | वैसे कुछ चैनल वालो का भी जवाब नहीं  उन्होंने ने भी महिला को टीवी पर जस का तस दिखाने में कोई गुरेज नहीं की दो तीन बार पूरी किलिपिंग दिखाने के बाद शायद उन्हें शर्म आई और तब जा कर महिला की तस्वीर को धुंधला करना शुरू किया ( पर यहाँ  भी संजोग देखिये की यहाँ भी बेशर्मी मोर्चा निकालने का कारण सुरक्षा में लगे लोगो की लापरवाही रही )
    
                                                   ये तो एक आध धटनाये है जब महिलाओ ने अपने खिलाफ हो रहे बलात्कार, शारीरिक शोषण और अपनी सुरक्षा के कारण शर्म त्याग कर "बेशर्मी मोर्चा" निकला | किन्तु हमारे भारतीय समाज में तो इस तरह की घटनाओ से भरा पड़ा है जब समाज के लोगो ने शर्म छोड़ कर महिलाओ का इस तरह का बेशर्मी मोर्चा निकाला हो | ये घटनाये इतनी आम सी है की हम तो उस पर ध्यान देने की जरुरत भी नहीं समझते है अख़बार के किसी एक कोने में या टीवी के समाचार में दो लाइनों की ये खबर सुनाई जाती है की फलाने गांव में कुछ दबंग लोगो ने महिला को निर्वस्त्र कर पुरे गांव में घुमाया कुछ दबंग लोग बेशर्म हो कर ये बेशर्मी का मोर्चा निकालते है और बाकि बेशर्म उसे चुपचाप होता देखते है | ये भी हमारे देश में निकाला जाने वाला एक तरह का बेशर्मी मोर्चा है जो समाज में बेशर्मी का सबूत हमें देता है |
      
                                                     समझ नहीं आता की ज्यादा बेशर्म कौन है वो बलात्कार करने वाला जो कुछ पलो के शारीरिक आन्नद के लिए किसी का पूरा जीवन नष्ट कर देता है या उसका जीवन ही ले लेता है या वो समाज और लोग जो ऐसे कृत्य के लिए पीड़ित को ही दोषी करार देते है और जीवित रहते भी उसे हर पल मारते है या वो सरकार, प्रशासन और सुरक्षा व्यवस्था जिसमे महिलाओ को अपने हक़ के लिए इस तरह के मोर्चे निकालने पड़ते है  या वो महिलाये जो अपने इसी शरीर के साथ सुरक्षित जीवन जीने के लिए, अपनी इच्छा का जीवन जीने के लिए एक सुरक्षित समाज की मांग करती है | 

  मुझे तो लगता है की सबसे बेशर्म तो वो महिलाए है जो महिला हो कर खुद को इन्सान समझने की भूल करती है , अपने लिए सुरक्षित समाज की मांग करती है , महिला हो कर भी अपने लिए हक़ और अधिकार जैसी चीजो की मांग करती है बड़ी बेशर्म है ये महिलाये |


नोट - कोई लिंक आदि खोजना और आप को देना मेरे बस कि बात नहीं है जिन घटनाओ का जिक्र किया है सभी के वीडियो सबूत है आप खुद यु ट्यूब पर खंगाले आप को जरुर मिल जायेगा | किन्तु इस मुद्दे पर और जानकारी के लिए ये लिंक दे रही हूँ ( प्रवीण शाह जी के आभार )|
                                                                      
                                                             



35 comments:

  1. बेशर्म मोर्चे के बारे में जानकारी नहीं है, इसलिए पहले जानकारी ले लूं उसके बाद टिप्‍पणी करती हूँ।

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  2. kuchh samajh nahi pa raha kya kahun..


    par ye sach hai...aapne ko bold letter me likha hai..wo bhi sayad aap ka gussa pradarshit karne ka ek sahara matra hai...

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  3. कई सारी बातें हैं कहने को, लेकिन अभी सिर्फ मोर्चे का इंतज़ार करते हैं और उसपर, सरकार, पुलिस, और मिडिया का रवैय्या देखते हैं....
    हालांकि इस तरह ke मोर्चे का कोई परिणाम निकलता है क्या ???
    गुलाल फिल्म का एक गीत है "ओ री दुनिया" अगर नहीं सुना तो ज़रूर सुनियेगा...
    ये दुनिया अब जीने लायक नहीं रही...सच में....

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  4. दो-तीन साल पहले पहले गुजरात की एक महिला ने भी अपने पति और ससुराल वालों की ज्यादतियों के खिलाफ शिकायत करने पर भी पुलिस की निष्क्रियता के विरोध में टू -पीस बिकनी में सड़क पर मार्च किया था. टी.वी. का तो नहीं पता पर सभी अखबारों ने प्रमुखता से इस खबर के साथ तस्वीर भी प्रकाशित की थी.(अखबार वाले कुछ अखबार ज्यादा बेचने का ऐसा मौका कैसे चूक सकते थे...उन्हें लोगो की मानसिकता का खूब पता है.)

    उस महिला को उसके घरवालों और ससुराल वालों दोनों की तरफ से मानसिक रोगी घोषित कर दिया गया .पता नहीं अब वो महिला किस हाल में है...सचमुच किसी मेंटल हॉस्पिटल में है या नज़रबंद.

    पूर्वोत्तर क्षेत्र की महिलाएँ तो लगातार अपनी बहनों की बेइज्जती देख और दोषियों पर कोई कार्यवाई ना होती देख मजबूर हो गयीं थी, इस कदम के लिए.

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  5. अंशुमाला जी बहुत बढिया लिखा है.आप जब गुस्से में होती है तो आपके तर्कों की धार बहुत पैनी हो जाती है.जिस बात का विरोध किया जा रहा है वो पुरुषों के लिये बहुत बडी बात चाहे न हो लेकिन महिलाओं के लिये ये कोई छोटा मुद्दा नही है.आपने जो उदाहरण दिये और रश्मि जी ने जो बताया(शायद वे पूजा चौहान की ही बात कर रही है)उनमें विरोध अपराध या अपराधियों के खिलाफ किया गया था लेकिन यहाँ विरोध उस सोच का हो रहा है जो पीडिता को ही जिम्मेदार ठहराती है.अब निशाने पर बलात्कारी या छेडछाड करने वाले ही नही बल्कि कनाडा के पुलिसकर्मी जैसी सोच रखने वाले भी है.जाहिर सी बात है इसका विरोध ज्यादा होगा.

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  7. मुझे तो लगता है की सबसे बेशर्म तो वो महिलाए है जो महिला हो कर खुद को इन्सान समझने की भूल करती है , अपने लिए सुरक्षित समाज की मांग करती है , महिला हो कर भी अपने लिए हक़ और अधिकार जैसी चीजो की मांग करती है बड़ी बेशर्म है ये महिलाये | bilkul sahii

    हम दूर क्यूँ जाते हैं इस ब्लॉग जगत में जितनी बेहूदा बेशर्मी से भरी पोस्ट मेरे ऊपर आयी हैं शायद ही किसी के ऊपर आयी हो . और महज इस लिये क्युकी मैने नारी ब्लॉग बना कर मोरल पोलिसिंग की ब्लॉग जगत के उन पुरुषो की जो नितान्त बेहुदे हैं और महिला को दोयम का दर्जा देते हैं . मोरल पोलिसिंग के पुरुष के अधिकार को मैने अपने हाथ में ले लिया तो तिलमिला गया वो पुरुष समाज जो हमेशा महिला के ऊपर मोरल पोलिसिंग करता रहा हैं और फिर मेरे ऊपर व्यक्तिगत आक्षेप लगते रहे और लोग दांत निपोरते रहे . प्रवीण , नीरज रोहिला , निशांत मिश्र , अमित , हिमांशु , दीप पाण्डेय , कुछ गिने चुने नाम हैं जिन्होने हर समय आपत्ति दर्ज की ऐसी पोस्ट पर . बाकी वो जो अपने को बड़ा भाई , दादा { पिता के पिता } , चाचा इत्यादि कहते हैं हमेशा चुप रहे और तमाशा देखते रहे क्युकी उनको ब्लॉग पर टीप चाहिये अपने अपने . महिला को बेशर्म कहना उतना ही आसन हैं जितना पुरुष को कहना
    थूकने का मन करता हैं मेरा जब जो मेरे ऊपर बेशर्मी की हद को पार करती हुई पोस्ट अपने ब्लॉग पर लगाते हैं , कमेन्ट मोद्रशन के बाद भी अप्रोव करते हैं वही दूसरे ब्लॉग पर जा कर जहां किसी पुरुष ने नारी विषय पर पोस्ट दी हो तुरंत अपनी सहमति दर्ज कराते हैं

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  8. वैसे बेशर्म मोर्चे का मतलब
    बेशर्मो का मोर्चा क्यूँ माना जा रहा हैं
    बेशर्मो के खिलाफ मोर्चा क्यूँ नहीं माना जा रहा हैं ????

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  9. Rachna ji ka kahna thheek hai -बेशर्मो के खिलाफ मोर्चा क्यूँ नहीं माना जा रहा हैं ??.main is morche ka matlab yahi manti hun .

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  10. यह स्लट वॉक का तरीका क्रूड व भौंडा भी लग सकता है किन्तु शायद अब ये तरीके ही हमारी झोली में बचे हैं। प्रेम से, क्रोध से, खुशामद से हर तरह से स्त्री ने अपनी तरह से जीने का अधिकार पाने की कोशिश की है और असफल रही है। वह तुम्हारे अनुसार जीते जीते थक गई है। अब उसे अपने लिए अपने अनुसार जीने दो, अपने अनुसार विरोध करने दो। सच तो यह है कि ऐसे ही तरीके सफल भी होंगे। जरा कल्पना कीजिए। एक गाँव में एक स्त्री का अपमान कर उसे मारपीटकर नग्न घुमाया जाता है। गाँव की सन्नारियाँ ये सब करती हैं....
    १.चुप रहती हैं।
    २.अनुनय विनय करती हैं कि ऐसा न करें।
    ३.अपने घर के पुरुषों से कहतीं हैं कि यदि ऐसा हमारे साथ होता तो? यही सोचकर आप अन्य के साथ ऐसा न करें।
    ४.स्त्रियों की बैठक बुलाकर इस कृत्य की भर्त्सना करती हैं।
    ५. जुलूस निकालती हैं। नारे लगाती हैं। स्त्रियों का सम्मान करो के प्लेकार्ड लेकर घूमती हैं।
    ६. अपराधियों को पकड़कर पीटती हैं।
    ७. सारे गाँव की स्त्रियाँ सन्नारियाँ नहीं, केवल स्त्रियाँ, अपराधियों के परिवार की भी, इकट्ठे हो नग्न हो जुलूस निकालती हैं।( बोलो अब क्या कर लोगे? और किस किसको घूरोगे? तुम्हारी अपनी बहना, मैय्या, बिटिया व पत्नी भी इन्हीं में है। )
    ८. हाँ, सबसे महत्वपूर्ण तो मैं भूल ही गई थी। पुलिस में रपट लिखवा आती हैं.
    घुघूती बासूती

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  11. अंशुमाला जी! पूरी पोस्ट को दो बार पढने के बाद पहली प्रतिक्रया यही है कि दिमाग में सन्नाटा छाया हुआ है.. क्या कहूँ शायद शान्ति से दुबारा लौटूं, तो कुछ कहने की हालत में रहूँ...
    इस मुद्दे पर असहमति का तो प्रश्न ही नहीं होता.. लेकिन कल्पना करके बदन सिहर जाता है!! लौटता हूं!! अभी क्षमा!!

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  12. अपने को केवल इतना कहना है कि सबको खाने,पहनने,ओढ़ने की स्‍वतंत्रता होनी चाहिए, बस इतनी अपेक्षा है कि उससे किसी और को असहजता महसूस न हो।
    *
    सुंदरता को निहारना ठीक है लेकिन जब निहारना घूरने में बदल जाए तो बात बिगड़ जाती है। निहारने में प्रशंसा का भाव होता है और घूरने में कामुकता का। इन दोनों के बीच बहुत बारीक सा अंतर है।

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  13. मुझे तो लगता है की सबसे बेशर्म तो वो महिलाए है जो महिला हो कर खुद को इन्सान समझने की भूल करती है , अपने लिए सुरक्षित समाज की मांग करती है , महिला हो कर भी अपने लिए हक़ और अधिकार जैसी चीजो की मांग करती है बड़ी बेशर्म है ये महिलाये |


    ये व्यंगात्मक पंक्तियाँ ही हकीकत लगती हैं अब तो.....

    कभी कभी मन व्यथित हो जाता है सोचकर की महिलाओं के साथ अपराध करने में समाज का कौन सा वर्ग शामिल नहीं है........

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  14. ये बेशर्मी मोरचा पूरे देश के मर्दों के लिए कलंक है क्योकि उन्ही के कारण ये मोरचा निकालने की जरूरत पड़ी है
    अब आप कहेंगी की तुमने तो सबको लपेट दिया(चोर का साथ देने वाला भी चोर होता है)
    आभार

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  15. .
    .
    .
    अंशुमाला जी,

    जबरदस्त झकझोरन पोस्ट !

    @ मुझे तो लगता है की सबसे बेशर्म तो वो महिलाए है जो महिला हो कर खुद को इन्सान समझने की भूल करती है , अपने लिए सुरक्षित समाज की मांग करती है , महिला हो कर भी अपने लिए हक़ और अधिकार जैसी चीजो की मांग करती है बड़ी बेशर्म है ये महिलाये |

    काश मेरे जीवनकाल में ही सारी दुनिया की स्त्रियाँ इतनी बेशर्म हो जाती !



    ...

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  16. ज़ाहिर है,जिस बदलाव और सशक्तिकरण का जब-तब हवाला दिया जाता है,वह सतही है और वास्तविक धरातल पर अभी बहुत कुछ होना बाक़ी है। परिवर्तन की गति बेहद धीमी है। मीडिया अगर लोकतंत्र का स्तम्भ बन सके,तो हम किसी क्रांति की उम्मीद कर सकते हैं।

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  17. इस मार्च के बाए में जानकारी मिली।
    पोस्ट कई मिनट तक हमें निःशब्द छोड़ देती है।
    इस पोस्ट को पढ़ने के बाद यह प्रश्न मन में आया ... क्या इसी और ऐसे समाज के अंग हैं हम? अगर हां, तब सही में ऐसे बेशर्मों के खिलाफ़ मार्च होना ही चाहिए।

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  18. बधाई

    आपका यह आलेख प्रिंट मीडिया द्वारा पसंद कर छापा गया है। इसकी अधिक जानकारी आप यहाँ क्लिक कर देख सकते हैं

    इसके अलावा,
    यदि आप अपने ब्लॉग को हिंदी वेबसाईट ब्लॉग गर्व की कसौटी पर खरा पाते हैं तो इसे वहाँ शामिल कीजिए।
    इसे अधिकाधिक पाठकों तक पहुंचाने के लिए ब्लॉग मंडली का सहारा लीजिए
    कोई तकनीकी समस्या या बात हो तो ब्लॉग मंच पर अपनी बात रखें और उसका हल पाएं

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  19. अंशुमाला जी अपनी ब्लॉग्गिंग के शुरू में मैंने अपनी एक पोस्ट में कहा था की पुरुषों की मनोवात्ति पर स्त्रियों को विश्वास नहीं करना चाहिए और मेरी उस पोस्ट पर कुछ महिला ब्लोग्गेर्स ने (जो शायद एक दो ही थी) बड़ा सख्त विरोध किया था और कहा था की उनके परिचित पुरुष ऐसे नहीं हैं . अब मैं कुछ सवालों के साथ उस पोस्ट को दुबारा लगाऊंगा.मुझे लगता है उस पोस्ट को दुबारा लगाने का ये सही वक्त है जब ऐसा लग रहा है की दुनिया में अच्छे पुरुष बचे ही नहीं हैं.

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  20. इस बुजदिल समाज के लिए कुछ भी शर्मनाक नहीं है ! इनकी आँखें खोलने के लिए हमारी बेटियों को शर्म छोड़ कर आगे आना होगा ! मगर तब भी इन्हें शर्म आएगी ...?
    शक है !
    शुभकामनायें आपको !

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  21. @ अजित जी

    आप की टिप्पणी का इंतजार रहेगा |

    @ मुकेश जी

    अब इस बातो पर गुस्सा नहीं आता है यदि आता तो शायद हर महिला हर समय गुस्से में ही होती |

    @ दिनेशराय द्विवेदी जी

    धन्यवाद |

    @ शेखर सुमन जी

    हमें खुद प्रयास करना होगा की ये दुनिया जीने लायक बन जाये |

    @ रश्मि जी

    जानकारी देने के लिए धन्यवाद | कई बार महिलाओ को न चाहते हुए भी ऐसे कदम उठाने पड़ते है |

    @ राजन जी

    समाज के लिए महिलाओ की हर तकलीफ परेशानी मुद्दा छोटा ही होता है |

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  22. @ रचना जी

    @बेशर्मो के खिलाफ मोर्चा क्यूँ नहीं माना जा रहा हैं

    बलकुल सहमत असल में तो मोर्चा उन्ही के खिलाफ है |

    @ शिखा कौशिक जी

    धन्यवाद |

    @ घुघूती बासूती जी

    महिलाओ ने समाज को समझाने के लिए साम, दाम दोनों कर के देख लिया है अब दंड और भेद की बारी है |

    @ चैतन्य जी

    सहमती के लिए धन्यवाद |

    @ राजेश जी

    धन्यवाद | महिलाए भी बस एक इन्सान की तरह जीने का हम ही मांग रही है |

    @ मोनिका जी

    सही कहा सभी अपने अपने स्तर से महिलाओ का उत्पीडन करने में लगे है |

    @ दीपक सैनी जी

    कड़वी लेकिन सही बात कही है जो महिलाओ के प्रति हो रहे अपराध को चुपचाप होता देखता है सामर्थ होने के बाद भी उसका विरोध नहीं करता वो भी कही न कही उस अपराध में शामिल हो जाता है |

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  23. @ प्रवीण जी

    कुछ बेशर्म महिलाये इसी काम में लगी है |

    @ कुमार राधारमण जी

    बिलकुल सही कहा है अभी तक कुछ प्रतिशत महिलाए ही अपने हक़ और अधिकारों के प्रति सजग है बाकि आज भी कई अत्याचारों को सहते चुप है |

    @ मनोज कुमार जी

    धन्यवाद सहमती के लिए |

    @ Blogs In Media

    जानकारी दने के लिए धन्यवाद |

    @ दीप जी

    आप जो कहना चाह रहे है उससे सहमत किन्तु ये भी सच नहीं है की अच्छे पुरुष बचे ही नहीं है आप की पोस्ट का इंतजार रहेगा उस पर विस्तार से इस बारे में लिखूंगी |

    @ सतीश जी

    हा शक तो मुझे भी है बात को समझने के बजाये आँख मूंद कर बस मार्च का विरोध करने वालो की भी कमी नहीं है |

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  24. मुझे इस मोर्चे की जानकारी के लिए लिंक दें, तभी अपने विचार रख सकूंगी।

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  25. अंशुमाला जी!
    कहा था लौटता हूँ, इसलिए लौटा हूँ!!... यह कहने कि यह मुद्दा काफी साल पहले बी आर चोपडा साहब ने उठाया था.. फिल्म थी "इन्साफ का तराजू".. उसमें एक महिला वकील द्वारा कहा गया एक संवाद कि तुम चाहो तो कोर्ट में जा सकती हो, मगर वहाँ वकीलों के सवाल उस अत्याचार से भी घिनौने होंगे जो तुमपर हुआ है!
    एक बंगला फिल्म उससे भी सालों कबल बनी थी (श्वेत-श्याम).. नाम था "ऑदालते एकटी मेये".. और इस फिल्म में वकीलों की जिरह देखकर फिल्म का पर्दा फाड़ देने जैसा गुस्सा आता था..
    वे फ़िल्में नहीं हकीकत है.. पता नहीं उस फिल्म में सुझाया अंत ही सही रास्ता है..लेकिन बेशर्मों से भरे इस समाज में इस बेशर्मी परेड क्या असर दिखा पाएगी.. आवश्यकता हल की है,सिर्फ समस्या की तरफ ध्यानाकर्षण की नहीं!!

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  26. @सलिल जी

    कुछ समय हुआ दिल्ली में एक महिला पत्रकार की हत्या हो गई माननीय मुख्यमंत्री ने अपनी जिम्मेदारी भूल कहा की महिलाओ को रात में बाहर नहीं निकलना चाहिए सभी ने उनके इस बयान का विरोध किया यदि नहीं करते तो क्या होता महिलाए डर जाती घर से नहीं निकलती और अपराधी के हौसले बुलंद हो जाते अगली बार वो पुरुषो को लुटता फिर वही बयान आते लोग डर कर घर में रहते अपराधी के हौसले और बुलंद हो जाता अब तो वो घरो में घुस कर लूटना शुरू कर देता | यहाँ भी वही हो रहा है यदि समय रहते समाज की इस सोच को खास कर सुरक्षा में लगे जिम्मेदार लोगो की सोच का अभी विरोध नहीं किया गया तो इससे अपराधियों के हौसले ही बुलंद होंगे और ये सोच एक सच के रूप में स्थापित हो जायेगा की महिलाओ के साथ हो रहे यौन अपराध का कारण वो है उनके कपडे है उनका चरित्र है | अगली बार जब किसी लड़की के साथ छेड़ छाड़ या बलात्कार जैसी घटनाये होंगी तो पहले उसके ही चरित्र का विश्लेषण शुरू हो जायेगा और उसके कपडे उसके हाव भाव को ही अपराध का कारण मान उसे ही दोषी करार दिया जायेगा | इस तरह की सोच और बयान से ऐसा अपराध करने वालो के ही हौसले बुलंद होंगे की चलो किसी लड़की ने आधुनिक कपडे पहने है तो उसे छेड़ देते है यदि उसने विरोध किया किसी को बुलाया तो लोग उसे ही भला बुरा कहेंगे हम बच कर निकल जायेंगे | क्या पता कल को अपराधी आदालत में ये कहने लगे की लड़की के कपड़ो ने हमें बलात्कार के लिए उकसाया हम क्या करे | इसलिए जरुरी है की सभी मिल कर इस सोच का इतने जोरदार ढंग से विरोध करे की बेशर्म हो चुके समाज से किसी की आगे से ऐसा कहने की हिम्मत न हो किसी अपराध के लिए किसी पीड़ित को ही दोषी न माना जाये |

    माफ़ करे ऊपर की प्रति टिप्पणी में आप को चैतन्य जी कह संबोधित किया है मैंने आप को चैतन्य जी समझ लिया था |

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  27. अंशुमाला जी!
    चैतन्य और मैं दो होते हुए भी एक हैं... मुख्य मंत्री का बयान बिलकुल गैरजिम्मेदाराना था... राजनेताओं (शर्म आती है इस शब्द के प्रयोग पर)से तो उम्मीद करना ही फ़िज़ूल है.. यदि कोइ भ्रष्टाचार का विरोध करे, तो उसे ही भ्रष्ट साबित करने लगते हैं..
    पत्थर हो चुके समाज में "अब किसी भी बात पर खुलती नहीं हैं खिडकियां.."

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  28. अंशुमाला जी, आपका दिया लिंक पर बेशर्म मोर्चे के बारे में पढ़ा। सभी की अपनी राय होती है। मेरा मानना है कि भारतीय समाज परिवार प्रधान है। यहाँ स्‍त्री और पुरुष का पृथक भेद नहीं है। इसलिए हम कहते हैं कि हम व्‍यक्तिवादी नहीं है। किसी भी समाज में यदि कोई विकृति है तो इसे समूह रूप से ही दूर करनी होगी। यदि हम समाज को स्‍त्री और पुरुष के भेद में बांटकर समस्‍या का हल चाहेंगे तो कभी भी समस्‍या का हल नहीं निकलेगा। चाहे महिलाएं कितना ही मोर्चा निकाल लें या फिर अपनी दिनचर्या में ही नग्‍नता को धारण कर ले। मुझे एतराज है इस शब्‍द से जो यह कहते हैं कि महिला को समाज ने दोयम दर्जा दिया हुआ है। मेरा मानना है कि महिला जननी है अत: उसके पास अधिकार अधिक है। वह चाहें जैसी संतान पैदा कर सकती है। पुरुष जनित समस्‍याएं क्‍यों हमारे परिवारों में नहीं हैं? इसका उत्तर भी खोजना चाहिए। क्‍योंकि हम बच्‍चे के निर्माण में सहायक होते हैं। जहाँ हमने बच्‍चे पर ध्‍यान ही नहीं दिया है वहीं यह समस्‍य उत्‍पन्‍न हो रही है। या फिर जहाँ भी परिवार या समाज का नियन्‍त्रण बच्‍चे से छूट गया है वहीं पर बच्‍चा अनियन्त्रित हो रहा है। इसलिए मेरा तो यही कहना है कि यह समाज की समस्‍या है, इसे मिलकर ही सुलझा सकते हैं, ऐसे मोर्चे निकालकर कुछ नहीं होगा। इस बात को भी समझना चाहिए कि सभी प्रजातियों में यौन सम्‍बंध ही प्रमुख है, केवल मनुष्‍य ही ऐसा प्राणी है जो समाज के नियमों से बंधा है। इस कारण उस पर प्रतिबंध लगे हैं। लेकिन सामाजिक प्रतिबंध लगाने से मनुष्‍य की मूल प्रकृति नहीं बदली जा सकती है। इसलिए समाज को ही इस समस्‍या का हल खोजना होगा।

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  29. सच, ये गंभीर मसला है, लेकिन हमें हताश नहीं होना चाहिए। सभी समस्याओं का समाधान हुआ है, इसका भी होगा। मैं अजित गुप्ता जी की बातों से पूरी तरह सहमत हूं।

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  30. बेशर्मी मोर्चे के बारे में जानकारी मिली ... आज कैसी स्थिति है यह कि अपने अस्तित्व के लिए बेशर्म होना पड़ रहा है ... जब हर बात हद से गुज़र जाए तो शायद ऐसे कदम उठाने भी ज़रुरी हों ..पर फिर भी अजीत गुप्ता जी की बात को मैं महत्त्व देती हूँ

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  31. ये तो इंसानियत की हत्या है मगर क्या करें हमारा देश ना जाने कहां जा रहा है…………सोच मे पड गयी कि आज औरत को अपने हक के लिये कितना लड्ना पड रहा है जो उसका अधिकार है उसके लिये इतना संघर्ष्…………आखिर ऐसा कब तक? सच मे बेशर्मी की इंतहा हो गयी इस देश और समाज की …………कि आज ऐसे कदम उठाने पडते हैं।

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  32. aapki post padhkar sochti hun."kamvkqt in besharmon ke liye koi alag gaon hota to kitna achha hota!

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  33. इस मोर्चे के भूगोल, इतिहास वगैरह के बारे में जानकारी न के बराबर है और पता नहीं क्यों जानने की इच्छा भी नहीं हो रही है। मुद्दे को पब्लिसिटी मिल भी रही है और अगर उसके कारण शोषित नारी की स्थिति सुधरती है तो हमारी शुभकामनायें साथ हैं। लेकिन व्यक्तिगत राय अपनी वही है जो पहले भी आपके ब्लॉग पर जाहिर कर चुका हूँ और आप असहमत भी हो चुकी हैं। ब्लात्कार जैसे जघन्य अपराधों का निपटारा free, fast & fair trial के जरिये ही होना चाहिये और जब तक ऐसी स्थिति न आये तब तक जंगल का कानून..बेशक उसमें बर्बरता झलके लेकिन जहाँ लोगों को बात से समझ न आये वहां लात ही समझा सकती है।

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