June 17, 2011

अभी हम सभी ने एक हिंदूवादी बाबा को निपटाया है अब भ्रष्ट अन्ना हजारे की बारी है - - - - - - - mangopeople



                                                               लीजिये अन्ना हजारे ने फिर अनशन की धमकी दे कर अपनी राजनीतिक नौटंकी शुरू कर दी | अभी हम सभी ने एक भ्रष्ट, राजनीतिक महत्वाकांक्षा रखने वाले गेरुवा वस्त्रधारी हिंदूवादी बाबा को निपटाया है अब भ्रष्ट अन्ना हजारे की बारी है | आप सभी को आश्चर्य क्यों हो रहा है ,क्या आप को नहीं पता की अन्ना हजारे भी भ्रष्टाचार में लिप्त पाए गये थे,  बाकायदा उसकी जाँच हुई थी और वो दोषी भी पाये गए थे, वो अलग बात है अपनी ऊँची पहुँच और नाम के चलते वो बच गए | कुछ साल पहले उन्होंने महाराष्ट्र के दो भ्रष्ट कांग्रेसी मंत्रियो के खिलाफ अनशन किया था वहा की सरकार को मजबूर हो कर मंत्रियो को हटाना पड़ा हटाये गए माननीय मंत्री जी ने अन्ना पर अपने ट्रस्ट के पैसे का दुरुपयोग करने का आरोप लगाया बाकायदा माननीय पूर्व मंत्री जी के आरोप पर एक जाँच बैठाई गई और पता चला अन्ना के जन्मदिवस पर ट्रस्ट के दो लाख रुपये खर्च किये गए | ये भ्रष्टाचार नहीं है तो क्या है क्या लोगो ने ट्रस्ट को पैसे अन्ना के जन्मदिवस के लिए दिया था नहीं, उन्होंने जनता के सेवा के लिए मिले पैसे को अपने निजी कार्यो के लिए खर्चा किया था ( अब उन्होंने किया या उनके लोगो ने किया बात तो एक ही है ना, उन्होंने मना तो नहीं किया तो वो भी इस भ्रष्टाचार में उतने ही दोषी है जितने की कोई अन्य  ) | भ्रष्टाचार तो भ्रष्टाचार होता है चाहे वो हजारो करोड़ का हो या कुछ हजार का ही एक भ्रष्टाचारी को कोई हक़ नहीं बनता की वो किसी दुसरे भ्रष्टाचारी पर किसी तरह का आरोप लगाये उस पर उंगली उठाये या उसे भ्रष्ट तक कहे | जो खुद ये काम कर चूका है हम सभी महान ईमानदार आम जनता उस व्यक्ति का कैसे साथ दे सकते है | इसलिए जरुरी है की हम जैसे उच्च कोटि के ईमानदार आम जनता का नेता बिल्कुल उच्च कोटि का ईमानदार हो | क्योकि गाँधी जी ने कहा था की एक सच्ची और अच्छी चीज को पाने के लिए प्रयोग किये जा रहे साधन भी पवित्र होने चाहिए | क्या आप सभी को गाँधी जी की ये बात याद नहीं है, क्यों नहीं याद है, जब गाँधी जी याद है तो उनके विचार क्यों नहीं याद है शायद इसलिए याद नहीं है की हम सभी भेड़ चाल वाले भारतीय व्यक्ति पूजा में विश्वास करते है हम व्यक्ति का समर्थन करते है व्यक्ति का विरोध करते है, उसने क्या कहा उसके क्या विचार है उससे हमें मतलब नहीं है हम तो उसे सुनने की भी जरुरत नहीं समझते है, तो याद क्या खाक रखेंगे तभी तो गाँधी जी याद है किन्तु उन्होंने कहा क्या था गाँधी जी के विचार क्या थे गांधीवाद क्या था  ये हम सब भूल चुके है | हमें बाबा याद है हमें अन्ना याद है किन्तु वो दोनों कह क्या रहे है वो हममे से किसी को भी याद नहीं है व्यक्ति के आगे मुद्दे गुम हो गये | कोई बाबा का विरोध कर रहा है तो कोई उसका समर्थन कर रहा है हर जगह बस बाबा ही छाये हुए है पर उनके उठाये मुद्दे गुम हो गये है | 
                                   अब अँधा क्या चाहे दो आँखे और सरकार क्या चाहे भ्रष्टाचार के मुद्दे हवा हो जाये और लीजिये जी वो हवा हो गये | अब सरकार से कोई नहीं पूछ रहा है कि आप ने तो बाबा की सारी मांगे मान ली थी तो जरा बतायेंगे की उस पर कमेटिया बनाने के अलावा क्या जमीनी काम चल रहा है क्या बतायेंगे की कमेटिया कब तक अपना काम कर लेंगी, कब तक सरकार को अपनी रिपोर्ट दे देंगी, क्या उनका कोई समय सीमा तय किया है | चलिए वो जाने दीजिये विदेश से जो धन आएगा वो तो आएगा पर देश के अन्दर ही जो कला धन छुपा है उसका क्या हुआ उसको बाहर लाने के लिया आप क्या कर रहे है | सालो पहले आप लोगो ने खूब स्कीम लाई थी इतने प्रतिशत सरकार को दो और अपना सारा कला सफ़ेद में बदला लो | बहुतो ने अपना काला सफ़ेद किया था तब से तो आप को पता होगा ही की किस किस के पास कितना काला है उसके बाद आप लोगो ने उस पर रोक लगाने के लिए क्या कार्यवाही की है | चलिए वो भी छोडिये  कोर्ट ने आप की गर्दन पकड़ कर जब झकझोरा तब जा कर आप ने हसन अली को गिरफ्तार किया अब वो कई राज आप को बता चूका है की उसके पास किस किस का पैसा था सुना था की उसमे दो पूर्व कांग्रेसी मुख्यमन्त्रियो और वर्तमान केन्द्रीय मंत्रियो का पैसा था उनके खिलाफ आप क्या कर रहे है ये सवाल तो आम जनता क्या देश की अदालत भी आप से पूछ पूछ कर परेशान हो चुकी है आप क्या कर रहे है | २ जी में जो सरकारी पैसा डूब गया उसको फिर से पाने के लिए क्या कर रहे है उन कंपनियों पर क्या कार्यवाही कर रहे है जो असल में मंत्रियो द्वारा फर्जी बना कर सारा खेल खेला गया , उन बड़ी कंपनियों पर क्या कार्यवाही कर रहे है जो इन सरे खेल में शामिल थी | इस केस में जो की आप ने एक और विरोधी सांसद के और कोर्ट के दखल के बाद मज़बूरी में कार्यवाही के आलावा दुसरे लोगो के नाम आ रहे है उनके खिलाफ आप क्या करने वाले है आदि आदि आदि सवाल तो कई है  किन्तु आज कोई भी ये सवाल सरकार से नहीं पूछ रहा है क्योकि सरकार ने ऐसे हवा चलाई की ये सारे सवाल हवा में गुम हो गये |
                                                सरकार ने पहले हम सभी को बाबा के कपडे का रंग दिखाया ( वैसे समझ नहीं आता की जब एक दो नहीं तीन तीन केन्द्रीय मंत्री हवाई अड्डे पर बाबा की अगवानी में लगे थे तब क्या उन्हें बाबा के कपड़ो का रंग नहीं दिखाई दे रहा था ) अब वो बता रही है की आन्ना के सफ़ेद कपड़ो के नीचे भी वही गेरुआ कपडे है जिससे हम सभी को डरना चाहिए क्योकि गेरुआ रंग आम जनता के लिए भारत की राजनीति के लिए बड़ा खतरनाक है | पहले उसने बाबा के कपड़ो का रंग दिखा कर उनके मुद्दे को हवा में गुम कर दिया अब वही चाल वो आन्ना के साथ भी चल रही है | और हम व्यक्ति पूजक आम जनता हम तो व्यक्ति के पीछे भागते है हमें तो मुद्दों से कभी ना मतलब था और ना रहेगा हम सदा से व्यक्ति पूजक रहे है और रहेंगे जब तक हमें व्यक्ति अच्छा लगेगा हम उसकी हर बात को कान बंद कर हा में हा मिलाते रहेंगे जिस दिन व्यक्ति हमें ख़राब लगने लगेगा उस दिन हम उसकी अच्छी से अच्छी बात को भी नकारते चलेंगे और इस बात को सरकारे भी खूब जानती है | तभी तो देखिये सरकार के मुंह से जब भी निकालता है तो बाबा या अन्ना ही निकालता है उन्होंने जो सवाल उठाये थे उस बारे में सरकार की मुंह कभी नहीं खुलता है | फिर उसे दिग्गी राजा ने थोड़े काटा है की वो अपने मन से ही इन विषयों पर कुछ बोले जब आम जनता , महान भारितीय बुद्धिजीवी वर्ग और हमारा तथाकथित लोकतंत्र का चौथा खम्बा मिडिया और अपने आप को जबरजस्ती लोकतंत्र का पांचवा खंबा ?? बनाने का प्रयास करने वाला स्वघोषित विद्वान ?? ब्लोगर इस बारे में कुछ नहीं कह रहे है कोई सवाल नहीं कर रहे है तो उसे क्या पड़ी है कुछ भी कहने की | सभी यहाँ अपने निजी विचारो, संकुचित सोच को पोषित करने उसे बढ़ाने सभी से उसे मनवाने और सबसे सही और सभी का भला सोचने वाला साबित करने में लगे है ( मै भी इनमे शामिल हूँ मै कोई दुसरे ग्रह से थोड़े आई हूँ ) | असल में सभी अपने राजनीतिक सोच की खाल से बाहर आने को तैयार नहीं है सभी का अपना ही विचार उत्तम लग रहा है | किसी को तो ये सारा आन्दोलन ही लोकतंत्र पर हमला लग रहा है तो किसी को कांग्रेस विरोधियो बजापा की राजनीतिक साजिस लग रहा है | सही भी है ६० साल से ऊपर चिर निद्रा में सोये हुए हम आम जनता ये कैसे बर्दास्त करे की कोई बेवजह हमारे नीद में खलल डाले हम अपने घरो में सोफे पे पसर कर भ्रष्टाचार पर बकर बकर तो कर सकते है पर जब सड़क पर आ कर कुछ करना हो तो हम हर आन्दोलन में दुनिया जहान के मीन मेख निकाल कर बड़े आराम से इससे बचना चाहते है, हम क्रांति तो चाहते है बदलाव तो चाहते है पर वो सब बस हमारे आराम से बैठे बैठे बकर बकर बकने से आ जाये तो क्या बात है | हा जब बदलाव आ जाये और उसका क्रेडिट लेना होगा तो हम सब माला पहनने के लिए जमीन तक अपना सर और कमर झुकाने के लिए तैयार मिलेंगे | तो चलिए हमारी बकर बकर ख़त्म हुई कुछ आप के मन में हो तो यहाँ बक कर मन हल्का कर लीजिये मेरी तरह , बाकि हम इससे ज्यादा ना तो कर सकते है और ना ही करना चाहते है |
                                            

24 comments:

  1. अंशुमाला जी, इस विषय पर इतना लिखा और पढ़ा जा चुका है कि मन विक्षोभ से भर गया है। बुद्धिमानों की सूची में अपने आपको खड़ा रखने का मन भी नहीं रहा। लगता है कि काश हम भी बिना पढ़े-लिखे लोग होते और व्‍यक्ति पूजा करके ही अपने आपको धन्‍य मान लेते। हमारे देश में कभी भी मुद्दों का बात नहीं होती, हमेशा वस्‍त्रों के रंगों पर बात होती है। यदि इस रंग ने आवाज उठायी है तो वह दूसरे रंग के लिए हानिकारक ही होगा स्‍वत: ही मान लिया जाता है। यदि हम बेचारे की माँ मर गयी, बेचारी का पति मर गया आदि विशेषताओं के कारण अपना वोट देते हैं तब देश के मुद्दे कोई मायने नहीं रखते। आज कुछ लोग इस देश को राजशाही की ओर ले जा रहे हैं। जहाँ राजा ही परमेश्‍वर होता है। जिस भाषा में मंत्रियों के उद्गार निकल रहे हैं उससे तो उनकी तानाशाही स्‍पष्‍ट उजागर हो रही है। मुझे तो लगता है कि पहले इस देश का चरित्र नामक आदर्श समाप्‍त कर देना चाहिए और फिर मुद्दों की बात करनी चाहिए। कितना ही अच्‍छा कार्य कर ले व्‍यक्ति लेकिन उस पर चरित्र का कलंक कोई भी लगा सकता है, इसलिए इस बीमारी को ही समाप्‍त कर देना चाहिए।

    ReplyDelete
  2. सरकार की तानाशाही है और हम गाँधी जी के बंदरों की तरह अंधे गूंगे और बहरे है जिन पर कोई फर्क नहीं पड़ता

    ReplyDelete
  3. हम भ्रष्टाचार की जड़ को खोजें तो उसे उखाड़ पाएंगे।

    ReplyDelete
  4. रहिमन चुप ह्वे {मत} बैठिए, देख दिनन को फेर,
    पता नहीं नीके दिन आने में कितनी लागे देर।

    ReplyDelete
  5. खुद को हम सब सुधारे सब सही होगा
    समस्या जन आन्दोलन को चलाने की नहीं हैं

    समस्या हैं मुखोटो से बाहर आने की ।
    समस्या हैं परिवार वाद से बाहर आने की हैं .
    समस्या लोकतंत्र को परिवाद से उबारने की हैं

    समस्या भ्रष्टाचार होती तो निपटा सकते थे लेकिन समस्या हैं की हम भ्रष्टाचार विरोधी ना हो कर अब लोकतंत्र , संविधान और संसद विरोधी हो गए हैं
    पता नहीं क्यूँ लगता हैं अगर बात निर्वाचन आयोग की सबसे पहले हो और वहाँ संसद में प्रवेश के कानूनों में कुछ बदलाव की बात हो तो शायाद नेता जो बनते हैं उन में कोई बदलाव हो .
    कोई भी सरकार ना तो अच्छी होती हैं ना बुरी वो केवल हमे represent करती हैं .

    हम चुनते हैं और अपनी तरफ से सब काबिल को ही चुनते हैं पर चुनना उपलब्ध विकल्पों से ही हो सकता हैं .
    पोलिटिक्स मै सुधार लाना जरुरी हैं और वो तभी संभव हैं जब हम संविधान और संसद को मान देगे
    कोई भी सरकार अगर हर कानून को लागू कर देगी और जोर से मनवाएगी तो यकीं मानिये emergency जैसी स्थिती होगी देश मे


    कोई भी अगर भगवा वस्त्र पहन लेगा तो वो सही हो जायेगा
    अगर सारे नेता भगवा पहन ले तो क्या ये जन आन्दोलन ख़तम हो सकता हैं
    अगर सारे बड़े बड़े पैसे वाले व्यवसाई जैसे मुकेश अम्बानी इत्यादि भगवा वस्त्र पहन ले तो उन पर टंच कसना बंद हो जाएगा

    ये "भगवा वस्त्र " क्या कोई टिकेट है की कटवा लो और अपने को "निष्पाप " सिद्ध कर लो
    कम से कम जो लोग निरंतर हिन्दू होने में गर्व महसूस करते हैं उनको तो "भगवा वस्त्र " का मान रखना चाहिये .
    भगवा रंग पहन कर जनता को बेवकूफ बनाने वाले भी कम नहीं हैं और हिन्दू होने का मतलब भगवा पाखण्ड का मान मंडन करना तो कभी नहीं हो सकता .

    ReplyDelete
  6. रचना जी

    हम सुधर जायेंगे तो क्या उससे हमारे नेता भी सुधर जायेंगे हमारे भ्रष्ट नौकरशाह भी सुधर जायेंगे मै जानती हूँ की आम आदमी भी बेईमान है तो इसका मतलब ये नहीं की वो भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज ही न उठाये असल में तो आम आदमी कई बार बेईमान इसलिए ही हो जाता है क्योकि सभी अपने भ्रष्टाचार में लगे है और कोई भी कानून का सही पालन करने में नहीं लगा है | आज के समय में जो आन्दोलन चल रहा है वो सरकार गिराने के लिए नहीं या अपनी सरकार बनाने के लिए नहीं हो रहा है ये तो सरकार को सुधारने के लिए हो रहा है वो भी पूरी तरह से शांतिपूर्वक लोकतान्त्रिक तरीके से लोकतंत्र में इस तरह के आन्दोलन की पूरी आजादी है ये कही से भी लोकतंत्र संसद का विरोधी नहीं है |

    जो नेता लोकपाल बिल पास नहीं होने दे रहे है महिला आरक्षण बिल तक पास नहीं कर रहे है क्योकि ये उनको नुकसान पहुंचाएगा तो आप को लगता है की ये सांसद कोई भी चुनाव सुधार का बिल खुद पास करेंगे टी एन शेषन से लेकर आज के चुनाव आयुक्त तक सरकारों को चुनाव सुधारो के लिए कई बार सलाह दे चुकी है पर किसी भी सरकार ने उस पर कान देने की जरुरत नहीं समझी | हा जब राजनीती में भ्रष्टाचार के सारे रास्ते बंद हो जाये तो शायद अपने आप अपराधी और सिर्फ भ्रष्टाचार कर अरबो रुपये कमाने के लालसा में चुनाव लड़ने वाले जरुर इससे दूर हो जाये |

    और मैंने कभी नहीं कहा की भगवा धारी हर भ्रष्टाचार पाप से दूर होता है मैंने तो अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार को भी सामने रखा है | मुझे लगता है की जितना अधिकार आप को हमें भ्रष्टाचार पर उंगली उठाने का अधिकार है राजनीति में आने का अधिकार है उतना ही किसी भी रंग को धारण करने वालो को भी है | हा हमें यदि कुछ ध्यान रखना होगा तो वो ये की वो उद्दा क्या उठा रहा है कही वो वही धर्म जाती प्रान्त भाषा जैसे भावनत्मक देश तोड़ने वाले मुद्दे उठा कर लोगो को बहका तो नहीं रहा है | बाकि आप खुद जानती है की मै कितनी धर्म और ईश्वर विरोधी हूँ |

    ReplyDelete
  7. बकर बकर तो इस मुद्दे पर वाकई बहुत हो चुकी. अब सच में अपनी बकर शुरू करने का मन नहीं.

    ReplyDelete
  8. बेवजह एक अच्छे मुद्दे को लेकर किये गये प्रयास को कैसे साम्प्रदायिक रंग दिया जाता है ये तो कोई हमारे वामपंथी बुद्धीजीवियों से सीखें(ये अलग बात है कि इन्हे साम्प्रदायिकता भी केवल एक ही तरफ दिखाई देती है).टीवी पर एक इंटरव्यू के दौरान अन्ना से सवाल किया जाता है कि अपने सैनिक जीवन के बारे में कुछ बताइये.अन्ना बातों ही बातों में अपने माथे पर एक निशान दिखाते है कि यह मेरे सैनिक जीवन की ही निशानी है जब पाकिस्तान के साथ लडाई के दौरान गोली लगी थी.अब अन्ना की इस बात का हमारे सेकुलर बुद्दिजीवियों ने क्या मतलब निकाला आप सोच भी नही सकती.जी हाँ इसका मतलब है कि अन्ना मुस्लिम विरोधी है और भारत में अल्पसंख्यकों के प्रति लोगों के ऐसे ही विचार हैं.अब आप ही बताइए क्या ऐसे लोग किसी कट्टरपंथी की भी (अन्ना की तो छोडिये)आलोचना करने के काबिल हैं.क्या ये भी एक किस्म का कट्टरपंथ नहीं हैं.और जहाँ तक बात है भगवा समर्थन की तो ये तो वैसे ही है कि आप भ्रष्टाचार के खिलाफ कोई पोस्ट लिखे और कोई संघी आकर उसको अच्छी पोस्ट बता दे और फिर मैं कहूँ कि अंशुमाला जी तो संघी मानसिकता रखती है.तो क्या ये सही होगा ?लेकिन नहीं.आपकी बात से बिल्कुल सहमत हूँ की जनता में जरा सी चेतना आई मगर उसे भी तरह तरह के बहानों से दबा दिया गया.

    ReplyDelete
  9. लेकिन फिर भी इतने बडे आंदोलनों की कमान सम्भालने वालों के पास कुछ सवालों के जवाब तो होने ही चाहिये.भ्रष्टाचारियों को फाँसी देने की माँग को जो लोग अव्यवहारिक बता रहे है वो पूरी तरह गलत तो नही है इसी तरह अन्ना से सरकार ने ये पूछ लिया की कैसे ये 11सदस्य देश के सवा करोड सरकारी कर्मचारियों पर अंकुश रखेंगे तो इस तरह के तार्किक प्रश्नों के जवाब तो इनके पास होने ही चाहिये.

    ReplyDelete
  10. लगता तो यही है...सिर्फ बौद्धिक जुगाली करके हम भी क्या कर लेंगे...
    जबतक इस आन्दोलन का हिस्सा आम जनता ना बने. ..और सरकार को घुटने टेकने पर मजबूर ना कर दे...फिर सरकार में पढ़े-लिखे ईमानदार लोगो की बड़ी भागेदारी भी बहुत जरूरी है...ताकि ऐसे हालात ही पैदा ना हों.

    ReplyDelete
  11. फिर सरकार में पढ़े-लिखे ईमानदार लोगो की बड़ी भागेदारी भी बहुत जरूरी है...ताकि ऐसे हालात ही पैदा ना हों.
    this is the real truth
    all those who want a change have to start associating them and forming a political party
    fight elections and change the system after sitting in the system
    but for this we need to first become honest

    no country can run without a government . the more we will try to destabilize the govt the more we will become targets

    to bring a change we have to learn to fight at the place where we are and get the thing changed

    join political parties and devote time there

    civil society will succeed when they form a political party fight election and come to the parliament

    ReplyDelete
  12. यह इस देश की जनता का दुर्भाग्य है की किसी भी अच्छे मुद्दे पर वो एकजुट हो या कोई उन्हें एकजुट करने की कोशिश करे तो इस सांप्रदायिक बना दो....... अपने आप बिखर जायेंगें ........ रंजन जी की बातों में काफी कुछ सही लगा ...अन्शुमालाजी आपसे सहमत हूँ......

    ReplyDelete
  13. खाता न बही, जो हम कहें वही सही...

    देश के एक अरब बाइस करोड़ आबादी में मेरे समेत हर एक की यही सोच है...

    जय हिंद...

    ReplyDelete
  14. @ राजन जी

    ये सब अनजाने में नहीं किया जा रहा है बल्कि काफी सोच समझ कर एक रणनीति के तहत किया जा रहा है ताकि मुख्य सवालो को भुला दिया जाये और हुआ भी वही आज से बाबा पर बात कर रहे है भ्रष्टाचार पर नहीं | ये बात भी बड़ी अजीब है जैसे ही आप बाबा का समर्थन करते है आप भाजपाई संघी हो जाते है और जैसे ही बाबा के खिलाफ लिखते है कांग्रेसी हो जाते है | कम से कम इस मुद्दे पर लोगो को अपनी राजनीतिक सोच से बहार आना होगा क्योकि चाहे वो भाजपाई हो या कांग्रेसी सभी देश को भ्रष्टाचार से मुक्त ही करना चाहते है | और जिस तरह देश के लगभगसवा अरब लोगो पर कुछ हजार मंत्री राज करते है कुछ लाख नौकरशाह देश चलाते है उसी तरह ये ग्यारह लोग कम से कम उच्च स्तर पर तो कुछ भ्रष्टाचार पर लगाम कसने का प्रयास तो कर ही सकते है कुछ नहीं से कुछ तो भला ही है |

    ReplyDelete
  15. रचना जी

    लोग राजनीति में आये कैसे आप को लगता है की परिवार वाद के आगे कोई आम आदमी किसी दल से चुनाव लड़ पायेगा लड़ भी लिया तो क्या मंत्री बन पायेगा | दो चार आ भी गए तो इन घाघ नेताओ की भीड़ में वो अपना कुछ भी नहीं चला सकते है | और फिर बाबा भी तो यही कर रहे है वो भ्रष्टाचार का मुद्दा उठा कर राजनीति में आना ही तो चाह रहे है फिर लोग उनका साथ नहीं दे रहे है ये कह कर की बाबा राजनीति कर रहे है | अब जब लोग भ्रष्टाचार के मुद्दे का साथ नहीं देंगे तो कोई अन्य दल कैसे इस मुद्दे को उठायेगा उसे लगेगा की लोग इस मुद्दे पर उसके साथ नहीं आयेंगे इस मुद्दे पर वोट नहीं करेंगे तो उसे उठाने से क्या फायदा होगा | वैसे इस बारे में पूरी एक पोस्ट लिखनी पड़ेगी |

    ReplyDelete
  16. क्या फायदा ? दोनो पक्ष किसी की सुनने को तयार नही केवल अपने अपने साथ जुडे लोगों की ही सुनी जायेगी। और हम किसी के साथ नही तो क्या फायदा बोलने का मै तो एक सुझाव दे सकती हूँ कि अनिल कपूर की फिल्म की तरह एक दिन के लिये या एक माह के लिये बाबा या अन्ना हजारे को प्रधानमन्त्री बना दिया जाये काम हो जायेगा। इस तरफ ध्य्7अन क्यों नही जाता? सोचो। शुभकामनायें\

    ReplyDelete
  17. अंशुमाला जी, बाबाजी को किसी ने नहीं निपटाया, उनकी नियत ने निपटाया है। अगर बुरी नियत से कोई बडा काम भी किया जाए, तो उसका हश्र इसी तरह का होता है। और बाबाजी की नियत में कई छेद थे, यह अनेक तरीके से प्रमाणित हो चुका है।

    हां, बाबाजी ने अंजाने में ही इस सबसे भ्रष्‍टाचार के प्रति शंका का भाव तो जगा ही दिया है। जाहिर सी बात है कि इसका खामियाजा अन्‍ना को भी थोडा बहुत तो भुगतना ही पडेगा।

    ---------
    ब्‍लॉग समीक्षा की 20वीं कड़ी...
    2 दिन में अखबारों में 3 पोस्‍टें...

    ReplyDelete
  18. और अंत में एक बात, बाबाजी धार्मिक भ्रष्‍टाचार को अपने एजेंडे में क्‍यों नहीं शामिल कर रहे हैं। अभी सत्‍य साईं के कमरे से अरबों खरबों की सम्‍पत्ति निकली है, देश में ऐसे हजारों लाखों बाबा है। उनकी सम्‍पत्ति को जब्‍त किये बिना भ्रष्‍टाचार की लडाई बेमानी है।

    ReplyDelete
  19. रजनीश जी

    काश की आप लेख के मूल बात को समझते तो आप बाबा पर नहीं भ्रष्टाचार पर कोई टिप्पणी दे जाते | क्यों बाबा की चर्चा करे ये मुद्दा उनका दिया नहीं है उन्होंने बस उठाया है तो हम मुद्दे की चर्चा करे व्यक्ति की चर्चा क्यों करे चाहे समर्थन करके चाहे विरोध करके व्यक्ति को चर्चित क्यों करे |

    ReplyDelete
  20. मेरा बिना पानी पिए आज का उपवास है आप भी जाने क्यों मैंने यह व्रत किया है.

    दिल्ली पुलिस का कोई खाकी वर्दी वाला मेरे मृतक शरीर को न छूने की कोशिश भी न करें. मैं नहीं मानता कि-तुम मेरे मृतक शरीर को छूने के भी लायक हो.आप भी उपरोक्त पत्र पढ़कर जाने की क्यों नहीं हैं पुलिस के अधिकारी मेरे मृतक शरीर को छूने के लायक?

    मैं आपसे पत्र के माध्यम से वादा करता हूँ की अगर न्याय प्रक्रिया मेरा साथ देती है तब कम से कम 551लाख रूपये का राजस्व का सरकार को फायदा करवा सकता हूँ. मुझे किसी प्रकार का कोई ईनाम भी नहीं चाहिए.ऐसा ही एक पत्र दिल्ली के उच्च न्यायालय में लिखकर भेजा है. ज्यादा पढ़ने के लिए किल्क करके पढ़ें. मैं खाली हाथ आया और खाली हाथ लौट जाऊँगा.

    मैंने अपनी पत्नी व उसके परिजनों के साथ ही दिल्ली पुलिस और न्याय व्यवस्था के अत्याचारों के विरोध में 20 मई 2011 से अन्न का त्याग किया हुआ है और 20 जून 2011 से केवल जल पीकर 28 जुलाई तक जैन धर्म की तपस्या करूँगा.जिसके कारण मोबाईल और लैंडलाइन फोन भी बंद रहेंगे. 23 जून से मौन व्रत भी शुरू होगा. आप दुआ करें कि-मेरी तपस्या पूरी हो

    ReplyDelete
  21. लगता है कि इस तरह के आंदोलनों से पहले धर्मपरिवर्तन कर लेना चाहिये !

    ReplyDelete
  22. sach mein is par itna padha itna likha ki ab aur man nahi hai.... waise anna ko bhi sambhal jana chahiye...

    ReplyDelete
  23. सरकार के पास ऐसे मामलों से निबटने के लिये जबरदस्त सरकारी व गैर सरकारी मशीनरी है, और वर्तमान हालात में भी वह इसमें सफ़ल रही है। कल ही मैडम का अन्ना को लिखा पत्र दिखाया जा रहा था जिसमें बाहर होने के कारण जवाब देने में देरी की बात कही गई है और साथ ही कहा गया है कि आपने(अन्ना ने) जवाब आने से पहले ही अपना पत्र सार्वजनिक कर दिया। गोया, ऐसा करना सिर्फ़ सत्ता का विशेषाधिकार है। अब अन्ना के असफ़ल होने का ठीकरा भी रामदेव जी पर फ़ोड़ा जा रहा है और फ़ोड़ा जायेगा।
    इस सबके अलावा हम लोगों की कंडीशनिंग भी ऐसी हो चुकी है कि भ्रष्टाचार रहित शासन हम लोगों को आसानी से पचेगा नहीं, यही कुछ लोग चाहते हैं।

    ReplyDelete
  24. आपका आदेश स्वीकार है आदर्श व्यवस्था के आकांक्षियों द्वारा सुव्यवस्था पर विचार विमर्श के लिए प्रारंभ किया गया पहला विषय आधारित मंच , हम आप के सहयोग और मार्गदर्शन के आकांक्षी हैं |
    सुव्यवस्था सूत्रधार मंच
    http://www.adarsh-vyavastha-shodh.com/"

    ReplyDelete