कई दसको से पूछा जा रहा इस सवाल का जवाब ठीक से नहीं मिल पाया था कि
"इतना सन्नाटा क्यों है भाई ! अब इस सवाल का जवाब ठीक तरीके से और संतुष्टि
के लायक दिया है प्रधान मंत्री ने कि
हजार जवाबो से बेहतर है मेरी ख़ामोशी,
न जाने कितने सवालो की आबरू रखी है |
सोचिये कि यही सब एक आम आदमी को कही और भी सुनने को मिल जाये तो क्या होगा
, आम आदमी सुबह उठता है और देखता है फोन का नेटवर्क गायब है , ना फोन आ
रहा है ना जा रहा है बस नम्बर डायल करते ही पैसा कट रहा है , वो घबडा कर
कस्टमर केयर को फोन करता है दना दन सवालो की झड़ी लगा देता है और उधर से
मिलती है ख़ामोशी और वो कहता है इतना सन्नाटा क्यों है भाई , जवाब मिलता है
की
हजार जवाबो से बेहतर है मेरी ख़ामोशी
न जाने कितने सवालो की आबरू रखी है |
"भाई इसका क्या मतलब है , मै आप का ग्राहक हूं आप मेरे प्रति जवाब देह है आप को जवाब देना होगा | "
"
सर इसका मतलब है की हम यहाँ आप की सेवा के लिए नहीं पैसे कमाने के लिए
बैठे है , आप जैसे टुच्ची ग्राहक कोई रिंग टोन नहीं लेते, कालर टियून नहीं
लगाते, कोई गेम नहीं खेलते , नेट का प्रयोग नहीं करते है , बस खालिस फोन
सुनना और घडी देख कर फोन करना , क्या आप जैसे ग्राहकों से हमारी हजारो
करोड़ की कम्पनी चलेगी , दो चार रूपये कट क्या गये फ्री में मिल रही कस्टमर
सेवा का नाजायज प्रयोग करने चले आये , दिन में दस बारह मिनट बात करेंगे और
नेटवर्क हर दम फुल चाहिए, ये कंपनी आप जैसो को फोन सेवा देने के लिए नहीं
खोली गई है और ना ही आप के दम पर चलती है , आप को ये भी बता दे की जल्द ही
हमारी हर सेवा का दाम बढ़ने वाले है क्योकि कंपनी को बहुत घाटा हुआ है ,
पहले नेताओ को खिला पिला कर कम दाम में 3G में आप को बीजी रखा था लेकिन वो
पैसा डूब गया अब फिर से कंपनी को बोली लगानी होगी , जो खिलाने पिलाने में
कंपनी का पैसा डूब गया उसकी भरपाई कौन करेगा , तो तैयार रहिये |
आम आदमी परेशान ये क्या हो रहा है " अरे लगाता है गलत नंबर लगा दिया क्या "
जवाब मिलता है नहीं सर, मैंने तो पहले ही कहा था की मेरी ख़ामोशी बेहतर है आप के सवालो पर चुप रह कर मैंने सवालो के साथ आप की भी आबरू बचाई थी किन्तु आप समझे नहीं , तो भुगतिये |
बेचारा आम आदमी घबरा कर फोन रख देता है |
सोचता है नहा धो कर आफिस चला
जाये लेकिन ये क्या नल में सन्नाटा छाया है पानी नहीं है , परेशान हो कर जल
बोर्ड को फोन लगाता है " ये नलो में इतना सन्नाटा क्यों छाया है भाई" ,
जवाब में उसे भी सन्नाटा और ख़ामोशी ही मिलती है | " कोई है कोई जवाब देगा
मुझे " और जवाब मिलता है कि
हजार जवाबो से बेहतर है मेरी ख़ामोशी
न जाने कितने सवालो की आबरू रखी है |
वो परेशान ये क्या हो रहा है जिससे भी सवाल करो वो कोई जवाब ही नहीं देता
है और ये शेर बक देता है किसी की कोई जवाब देहि है की नहीं | वो फिर से
निवेदन करता है" भाई साहब क्या बताएँगे की नलों में पानी क्यों नहीं आ रहा
है और यदि आयेगा तो कब आयेगा |"
" तो आप को जवाब चाहिए तो सुनिये जनाब की सुबह ५ बजे १० मिनट के लिए पानी
आया था आप ने नहीं भरा तो ये आप की गलती है | पानी का संकट चल रहा है बचा
पानी वी आई पी इलाको के लिए है आप जैसे टुच्ची से आम लोगों के लिए नहीं |
वो वी आई पी देश की धरोहर है उनके जाने से देश को काफी नुकशान होता है उनके
ना नहाने से देश की इज्जत को कितना बट्टा लगेगा आप को पता है , उनके खाली
स्वीमिंग पुल और सूखे बगीचे देश की नाक नीची कर देंगे और आप ठहरे आम आदमी
यहाँ हम लोग आप की सेवा के लिए नहीं बल्कि इस लिए बैठे है की पानी को बड़े
लोगों के इलाको में ठीक से बचा कर सप्लाई किया जा सके कुछ बचा गया तो आप
लोगों को भी दे दिया जायेगा , और जरा अन्ना के इस सोच से बाहर आइये की आप
मालिक है और हम सब आप के नौकर ...................|
इसके पहले की उधर से कुछ और कहा जाता उसने फोन रख दिया |
किसी तरह तैयार हुए तो देखा की रात की गई बिजली अभी तक नहीं आई है , गर्मी
से बेहाल हो कर बाहर निकले तो पता चला की पूरी कालोनी में ही बिजली गायब है
, तो टहलते हुए बगल के ही बिजली विभाग के आफिस चले गये "भाई क्या इरादा है आज बिजली देनी है की नहीं "
" जी जब आना होगा तो आ जायेगी "
" ये क्या जवाब हुआ भला " लेकिन उधर से कोई जवाब नहीं मिला सन्नाटा पसरा
रहा | "कम से कम इतना तो बता दीजिये की कोई बड़ी परेशान तो नहीं है " तो
फिर से वही शेर दुहराया गया
हजार जवाबो से बेहतर है मेरी ख़ामोशी
न जाने कितने सवालो की आबरू रखी है |
" हे प्रभु यहाँ भी जवाब के बदले ये शेर कोई जवाब नहीं मिलेगा क्या "
" तो आप को जवाब चाहिए तो सुनिये की बिजली का उत्पादन बहुत कम है सो राज्य
को बिजली बहुत कम मिल रही है जो मिल रही है वो मंत्री नेताओ और वी आई पी
इलाको के लिए है उस पर से आप के राज्य में चुनाव हो चुके है नये चुनाव होने
में अभी तीन साल बाकि है जबकि दूसरे चार राज्यों में कुछ ही महीनो बाद
चुनाव होने है , कुछ वो राज्य है जिनके सरकारों के सहारे केंद्र की सरकार
टिकी है, सरकार के हिसाब से वहा पर लोगो को आप से ज्यादा बिजली की जरुरत
है उन्हें वोट देना है और आप पहले ही अपने वोट दे कर अपने हाथ कटा चुके है
आप के पास सरकार को बिजली के बदले देने के लिए कुछ भी नहीं बचा है इसलिए
जरा ठंड रखिये और गर्मी के मजे चार महीने और लीजिये और आम आदमी है और आम
आदमी ही बन कर रहिये काहे वी आई पी बनने की चेष्टा करते है और ऐसे मुँह
उठाये चले आते है जैसे की हम आप की सेवा के लिए ही बैठे है | "
आम आदमी परेशान कुछ तो गड़बड़ है कुछ है जो उसे नहीं पता चल रहा है , सोचा
बाहर निकले तो कुछ पता चले बाहर आ कर देखा तो विधायक जी अपने चेले चपाटो के
साथ मोहल्ले के दौरे पर निकले है , पता चला की अभी अभी हत्या , अपहरण
फिरौती के केस में बरी हुए है , असल में दो गवाह थे और दोनों ही गवाहों की
एक मामूली सी सड़क दुर्घटना में मौत हो गई सो बच गये | आम आदमी को अच्छा
मौका मिला वो फट विधायक से पास गया और फुल माला से लदे सभी को देख हाथ जोड़े
उनका अभिवादन कर रहे विधायक जी रुक गये , उनके रुकते ही आम आदमी ने बिजली
पानी सड़क सब चीजो का रोना शुरू कर दिया , लेकिन ये क्या विधायक जी कोई जवाब
ही नहीं दे रहे है यहाँ भी सन्नाटा आम आदमी ने फिर निवेदन किया तो फिर से
वही शेर हाजिर था |
हजार जवाबो से बेहतर है मेरी ख़ामोशी
न जाने कितने सवालो की आबरू रखी है |
ये सुनते ही आम आदमी का दिमाग सटक गया वो झल्लाया और सीधे उनके सामने ही
खड़ा हो गया " विधायक जी मैंने आप को वोट दिया है अब आप हमें जवाब दीजिये "
" अच्छा तो तुमको जवाब चाहिए तो सुनो आप की आधी अवैध कालोनी को मैंने बड़ी
उम्मीद से क़ानूनी जामा पहनाया था की वोट की खेती होगी किन्तु आप लोगों में
से आधो ने वोट नहीं डाला और बाकियों ने किसे दिया पता ही नहीं चला यदि इतनी
मेहनत मैंने बगल के फलाने समुदाय वालो और जाति वालो की कालोनी को वैध करने
में की होती वो पुरा वोट बैंक बना गया होता , आप कोई वोट बैंक है आप की
औकात एक या दो वोट से ज्यादा की नहीं है और हम से जवाब मंगाते है , शुक्र
मनाईये ही रहने को छत है ना तो वो भी नहीं होती जो मिल गया उसी का संतोष
कीजिये ज्यादा की उम्मीद कर ज्यादा महत्वाकांक्षी ना बनिये , वैसे भी आज कल
आम आदमी की कमाई ज्यादा हो गई है उसको पैसे की क्या कमी है पानी बाजार से
खरीदिये और घरो में इनवर्टर लगाइये और हर बात में हमसे जवाब मांगना बंद कर
दीजिये वोटर है और वही बन कर रहिये , वो आप लोग ही है जिनकी वजह से मेरे
गरीब वोटरों को महंगाई का भर सहना पड़ रहा है आप ज्यादा कमा और खा रहे है
जिससे खाने की कमी हो गई है और महंगाई बढ़ रही है |
आम आदमी को लगा की विघायक जी ने तो आज नहाने की कसर सबके सामने पानी डाल कर पूरी कर दी , अब उसे सबके कहे जा रहे शेर सवाल जवाब , ख़ामोशी , आबरू का मतलब कुछ कुछ समझ आने लगा था |
घबराये और कुछ डरे हुए आम आदमी आफिस पहुंचता है वहा भी सन्नाटा छाया है ,
घुसते ही पता चलता है की इस साल भी उसकी प्रमोशन नहीं हुई उलटे वेतन
बढ़ोतरी भी उम्मीद के मुताबिक नहीं है | सारे मिल कर बात करते है और तय
किया जाता है की चल कर बॉस से सीधी बात की जाये , साल भर इतनी मेहनत की गई
है पसीने बहाए गये है उसका कुछ तो फल मिलना चाहिए ना और सभी का प्रतिनिधि
बना कर उसेको ही बॉस के केबन में ढकेल दिया जाता है | पसीने से तर बतर वो
सवाल करता है सर ये क्या इस बार भी प्रमोशन मेरे हिस्से नहीं आया उस पर से
सारे टार्गेट पुरा करने के बाद भी वेतन में इतनी कम वृद्धि | जवाब के
इंतजार में खड़ा उसको मिलती है ख़ामोशी , सर कुछ तो बोलिये |
हजार जवाबो से बेहतर है मेरी ख़ामोशी
न जाने कितने सवालो की आबरू रखी है , बॉस का जवाब |
अब वो सुबह से ये सुन सुन कर पक चूका है तय किया की इस बार तो जवाब ले कर ही रहूँगा , सर ऐसे नहीं चलेगा कुछ तो बताना होगा |
"
तो सुनो की टार्गेट पुरा कराने के लिए दो चार अच्छी अच्छी बाते मोटिवेशन
के लिए कहा
दिया कि तुम लोग तो कंपनी के असली ताकत हो , कंपनी तुम लोगो से चलती है
आदि आदि लगता है तुम लोगो ने उसे कुछ ज्यादा ही गंभीरता से ले लिया |
तुमको क्या लगता है की ये कंपनी तुम्हारे बल पर तुम्हारे काम से चल रही है
तो ये गलतफहमी दिमाग से निकाल दो , तुम्हारे जैसे हजारो अपनी प्रतिभा फईलो
में लिए बाहर लाइन लगा कर खड़े है, तुमसे आधे में नौकरी पर आ जायेंगे और गधो
की तरह बिना कुछ पूछे काम करेंगे , लाख करोड़ कंपनी में तुम बस चवन्नी भर
हो जो चलना बंद भी हो जाये तो किसी को कोई फर्क भी नहीं पड़ेगा | कहते हो की
मेहनत किया है उसका फल चाहिए तो जो हर महीने वेतन घर ले जाते हो वो क्या
है, ये सरकारी आफिस नहीं है , यहाँ हराम की खाने आये हो क्या , जीतनी
मेहनत की है उतना हर महीने तुमको मिल जाता है , अब क्या इस टुच्ची सी मेहनत
के लिए कंपनी के शेयर तुम्हारे नाम लिखा दिया जाये , और चले आये नेता गिरी
करने ज्यादा चू चपेड करोगे तो कंपनी ही यहाँ बंद कर कही और शिफ्ट कर दी
जाएगी , फिर करते रहना ये यूनियन गिरी , जो मिल रहा है उससे भी हाथ धो
दोगे |
केबन के साथ ही उसके दिमाग में भी सन्नाटा छा जाता है और अपनी आबरू गवा के केबन से बाहर आ जाता है |
शाम
थके हारे घर में आता है सर दर्द से फटा जा रहा है , एक तरफ बैग फेका
दूसरी तरफ जूता कपडे निकाल पर बिस्तर पर फेका और सोफे पर धस गए " एक कप चाय
मिलेगी " कोई जवाब नहीं मिलता है और ना ही चाय " वो दुबारा आवाज लगाता है "
ये घर कितना फैला रखा है , कब से एक कप चाय मांग रहा हूं कोई जवाब क्यों
नहीं दे रही हो " एक बार फिर सन्नाटा ! तभी पत्नी जी अवतरित होती है उनकी
बड़ी हो रही आखे देख कर ही इस सन्नाटे से वो डर जाता है दिल जोर जोर से
धड़कने लगता है उसे सामने आ रह तूफान साफ दिख जाता है | " क्या कहा तुम्हे
जवाब चाहिए " वो दोनों हाथ जोड़ कर घुटनों के बल पर जमीन में गिर जाता है
और गिडगिडाने लगता है " नहीं नहीं मुझे कोई जवाब नहीं चाहिए , मैंने तो कोई
सवाल किया ही नहीं फिर जवाब किस बात का , मेरे नादानी में किये गये सवालो
को चूल्हे में डालो , मेरी बची खुची आबरू की रक्षा करो जो आज कई बार लुट
चुकि है " |
" नहीं नहीं आज मै खामोश नहीं रहूंगी और सब जवाब दुँगी , मुझे समझ क्या रखा
है तुम्हारे बाप की नौकरानी हूं , बैग यहाँ फेका जूते कपडे वहा फेके और
मुझी से पूछते हो की घर क्यों फैला रखा है , मेरे लिए कौन सा सोने का
पालना डाल रखा है या नौकरों की फौज खड़ा कर रखा है, सारे दिन खटती रहती हूं
तब भी ये तुम्हारा ये दो कमरों का महल ढंग का नहीं दिखता है , और आते ही
लाट सहाबी झाड़ने लगते हो टुच्ची से आप आदमी इतना कम कमाते हो की सारा
जीवन एक एक पैसे की जुगत लगाते हिसाब किताब करते बीत रहा है , सारे अरमान
मेरे एक एक कर दम तोड़ रहे है , और लाट साहब को चाय चाहिए , कभी पूछा है की
दूध और चाय का भाव क्या चल रहा है गैस की कीमते कितनी बढ़ती जा रही है,
बच्चो कि फ़ीस कैसे दे रही हूं महीने का राशन कैसे पुरा हो पा रहा है | अरे
सारी जिंदगी तुम्हारी और तुम्हारे बाप की आबरू ही बचाती रही खामोश रह कर
कम बोल कर , उन्हें सादा ही गऊ कहा, हमेसा कहा की तुम्हारे गऊ जैसे पिता ने
मेरे बाप से लाखो का दहेज़ लिया और शादी के पहले तुम्हारे बारे में इतनी
ढींगे हांकी की मै विवाह के लिए राजी हो गई और बदले में तुम्हे और ये दो
कमरों का महल हमारे लिए छोड़ गये , गऊ का मतलब जानते हो ग से गदहा और ऊ से
उल्लू गधे और उल्लू के कम्बीनेशन को कहते है गऊ लेकिन साफ साफ कभी नहीं कहा
! अरे ये तो मेरे संस्कार थे की कभी तुम्हे सार्वजनिक रूप से अबे गधे नहीं
कहा हमेसा उसे छोटा कर ए जी कह कर बुलाती रही | टुच्ची से आम आदमी मुझसे
सवाल करते हो , मुझे आँखे दिखाते हो धमकी देते हो , शोर शराबा करते हो ,
मुझसे जवाब चाहिए तुम्हे , तुम्हारा तो बोलना ही बंद कर देती हूं , देख रही
हूं आज कल कभी चेहरा की किताब पर बोलते हो तो कभी चिडियों की तरह चहकते हो
, जरुरत से ज्यादा बोल रहे हो , तुम्हारी तो मै बोलती ही बंद कर देती हूं
"|
बेचारा आम आदमी घर में जो बची खुची आबरू थी वो भी अब नहीं बची थी , " सरकार हाथ जोड़ता हूं अब कोई सवाल नहीं करूँगा अब मै समझा गया हूं की एक आम आदमी के लिए ख़ामोशी में ही उसकी इज्जत है उसे कभी किसी से सवाल नहीं करना चाहिए , देश में किसी की कोई जवाबदेही नहीं बनती है इस आम आदमी के प्रति और इस आम आदमी को कोई जवाब चाहिए भी नहीं ,क्योकि जवाब सुन कर भी वो कर कुछ नहीं सकता है बस उसे यही लगेगा की उसकी संपत्ति लुटा जा रहा है और उसे पता ही नहीं है और सही भी है पता चल भी गया तो वो कर ही क्या लेगा , अच्छा है की उसे पता ही ना चले की उसकी इज्जत और जरुरत किसी को है ही नहीं , ख़ामोशी में ही वो अपनी गलत फहमी में जीता है , अपने आप को देश का नागरिक समझता है जबकि असल में तो वो मात्र एक वोट है जिसे हर ५ साल बाद कोई भी अपने तिकड़म से जोड़ घटाने से ले लेता है और उसे लूटने में लगा होता है | ५ साल तक ना वो कुछ बोल सकता है ना सवाल कर सकता है , अब अच्छे से समझा में आ गया की
हजार जवाबो से बेहतर है ये ख़ामोशी
इसी में देश और आम आदमी की आबरू रखी है |
आज चार दसक बाद जवाब मिल गया कि इतना सन्नाटा क्यों है भाई !
चलते चलते
" ये कपडे प्रेस कर दो " आम आदमी आयरन करने का काम करने वाले से |
" साहब दो कपड़ो के २० रु लगेंगे " प्रेस करने का काम करने वाला |
" अरे कपडे प्रेस करने को कहा है धोने के लिए नहीं "
" साहब प्रेस का ही दाम बता रहा हूं "
" अरे इतना महंगा "
"साहब बिजली कितने महँगी हो गई है आप को पता है "
" लेकिन बिजली महँगी कैसे हो गई सरकार तो कोयला लगभग मुफ्त में दे रही है "
" ये तो सरकार से पूछिये हम को तो कुछ भी सस्ते में नहीं मिल रहा है उलटे साल दर साल बिजली के दाम बढ़ते ही जा रहे है "
बेचारे परेशान सोचा आगे कोयले से आयरन करने का काम करता है उससे पूछता हूँ |
" साहब २० रुपये लगेंगे "
" अरे भैया कोयले से भी इतना महंगा "
" साहब हमें थोड़े कोयले की खदान मुफ्त में मिली है हमें तो बाजार भाव से
ही खरीदना पड़ता है कोयला , उनके पास जाइये जिन्हें कम दाम में खदाने मिली
है "
gungae boltae nahin par inko gungae kehna gungo ki insult karna hotaa haen
ReplyDeletedesh ko bech khayaa haen wo bhi mil baant kar
हालत ये है की संसद में कांग्रेस के नेताओ को जवाबी हमला बोलने के लिए भी सोनिया को प्रत्यक्ष रूप से ईशारा करना पड़ता है तब वो खड़े हो कर कुछ बोलते है तो प्रधानमंत्री से क्या गिला करे |
Deleteहजार जवाबो से बेहतर है मेरी ख़ामोशी,
ReplyDeleteन जाने कितने सवालो की आबरू रखी है |
@ बेशर्मी की हद 'मनमोहनी' इस शेर से झलकती है...
जवाब में अर्ज है :
एक खामोश दाग से बेहतर है होली के हजार हुडदंगी छींटे.
न जाने कितने छुपे-रुस्तम खामोश दाग लिये बैठे हैं.
अंशुमाला जी,
पूरा आलेख अभी नहीं पढ़ सका हूँ, कल पढूँगा.
जवाबी शेर अच्छा है उम्मीद है आज पढ़ लिया होगा |
Deleteपूरा पढ़ा.... 'खामोशी' के शेर पर जबरदस्त कटाक्ष किया है आपने.
Deleteपहले तो इनकी इमानदारी से मैं बड़ा दुखी था और फिर इस सन्नाटे से।खैर ये तो पता चला कि इनकी चुप्पी के पीछे सवाल (सवालों की)इज्जत मर्यादा आदि का है।पर कहीं दूसरे लोग जवाबदेह मंत्री आदि भी इनसे प्रेरणा न लेने लगे नहीं तो संसद में प्रश्नकाल जैसी व्यवस्था ही खत्म करनी पड़ेगी बल्कि तब तो सूचना के अधिकार कानून को भी वापस लेना पड़ेगा क्योंकि कोई नहीं चाहता कि सवालों की आबरू पर कोई आँच आए।अरे भाई हमें खुद अपने सवालों की इज्जत की नहीं पड़ी फिर आप क्यों इतने परेशान है।
ReplyDeleteवैसे ये न भी बोले तो भी कोई बात नहीं इनकी सुनता ही कौन है और सुन भी ले तो समझ में किसे आता है।देश चल रहा है जैसे चलने दीजिए और इन्हें शेरो शायरी की महफिल सजाने दीजिए।बस ये शुक्र मनाइये कि हम भी सलामत है और हमारे सवालो की इज्जत भी(जिसके बारे मे हमें भी अभी पता चला)
गऊ और एजी का मतलब याद रखेंगे।
यदि दूसरो को गलत करते हुए देख कर चुप रहना उनकी हा में हा मिलाने को ईमानदारी कहते है तो शायद हम मूर्खो को ईमानदारी की बदल गई परिभाषा का ज्ञान ना था
Deleteयह असली मुद्दे का जवाब नहीं,विपक्ष को लपेटने की कोशिश भर है। पिछले लोकसभा और दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस ने एक विज्ञापन जारी किया था जिसमें सारी अनियमितताएं,हमले आदि एनडीए शासनकाल की थीं,केवल एक मामला यूपीए शासनकाल का था। इन्हें पता है कि शासन कैसे किया जाता है,वोट कैसे ली जाती है। जब चुनाव का वक्त आएगा,न किसी को कोई घोटाला याद रहेगा,न विपक्ष मुद्दे को भुना पाने में क़ामयाब होगा। आम आदमी भी,जो आज हलकान दिख रहा है,ऐन वक्त पर न जाने किधर ले जाने को तैयार रहता है देश को!
ReplyDeleteसही कहा गलती आम आदमी की भी है वो क्यों केवल एक वोट बन कर रहा जाता है उसकी निसक्रियता भी कम जिम्मेदार नहीं है |
Delete" हज़ार जवाबों से बेहतर है मेरी ख़ामोशी
ReplyDeleteन जाने कितने बेशर्मों की आबरू बचा रखी है "
सहमत हूं आप से !
Delete'खामोश शेर' के मुकाबले में राकेश चंद्र जी का शेर 'बब्बर' लगा.
Delete:)
ReplyDeleteयह इस्माइल मेरी नहीं है। उनकी है जो हमेशा खामोश रहते हैं। लाख व्यंग्य लिखो पर यह :) उनके चेहरे पर स्थाई रूप से चिपकी रहती है।
:( ये है आम आदमी |
DeleteHmmmmm....sach kaha.....badee sickening hoti hai ye khamoshi!
ReplyDeleteवो चाहते है उनके साथ ही सब खामोश ही रहे |
Deleteअरे वाह!! बड़ा एहसान किया उन्होंने देश और देशवासियों पर जो उन्होंने खामोशी की वज़ह बता दी.. वरना हम तो उनकी ज़नानी आवाज़ के मुगालते में ही रहते.. रचना जी की बात मेरी भी कि गूंगे बोलते नहीं, लेकिन इनको गूंगा कहना तो गूंगों की तौहीन है.. कठपुतलियाँ भी नहीं बोलती हैं, बोलता वो है जो उन्हें डोर में बाँधे चलाता रहता है!!
ReplyDeleteएक दम रापचिक पोस्ट है, आपके तेवर के मुताबिक़!!
गूंगा और कठपुतली होना ही उनकी योग्यता थी प्रधानमंत्री पद के लिए नहीं तो क्या कांग्रेस में इसने अच्छे नेताओ की कमी थी जो कम से कम जवाब देना तो जानते थे |
Deleteकोंग्रेस को "कम से कम" जवाब देने वाला नहीं, कम से कमतर (गूंगा और कठपुतली) वाला चाहिए था.. :)
Deleteआपके जवाब से निकली बात, मगर सटीक!!
हम्म आपने तो सोदाहरण बता दिया कि सवालों के जबाब देना कितना मुश्किल है....बेचारे दया के पात्र हैं, रहम की जाए उनपर और अहसान भी माना जाए सवालों की आबरू रखने के लिए .
ReplyDeleteरहम के लायक तो आम आदमी है |
Deleteहजार जवाबो से बेहतर है ये ख़ामोशी
ReplyDeleteइसी में देश और आम आदमी की आबरू रखी है |CHUP RAHNE ME HI BHALAI HAI .शानदार प्रस्तुति.बधाई.तुम मुझको क्या दे पाओगे?
हा आम आदमी की भलाई है |
Delete.
ReplyDelete.
.
बेहतरीन, धारदार व्यंग्य...
पर प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह आज के दौर में एक अपवाद से हैं... यह शेर कहने का मतलब इतना ही था कि जिस तरह की बातें उनके बारे में कही जा रही हैं... उतना नीचे उतर कर वह जवाब नहीं दे सकते...
...
आपक बात से सहमत हूँ...
Deleteप्रवीण जी और शाहनवाज जी तो क्या इससे वाजिब सवालो का जवाब भी उन्हें नहीं देना चाहिए ?ये तो उनका कर्तव्य है।और लोगों ने यूँ ही नहीं उनके खिलाफ बोलना शुरू कर दिया।इस सरकार पर घोटाले भ्रष्टाचार आदि के आरोप पहले भी लगते रहे है लेकिन लोगों ने कभी भी प्रधानमंत्री की व्यक्तिगत छवि पर शक नही किया जैसे वाजपेयी जी पर नहीं करते थे यहाँ तक कि विरोधी भी सीधे आरोप नही लगाते थे महँगाई बढ़ जाने पर भी शुरुआत में लोग ये मानकर बैठे थे कि ये अंतर्राष्ट्रीय मंदी की वजह से है बल्कि लोग प्रधानमंत्री की प्रशंसा कर रहे थे कि भारत पर वैश्विक मंदी का उतना असर क्यों नहीं हुआ (हालाँकि इसमें खुश होने की इतनी जरूरत नहीं थी क्योंकि इसका एक बड़ा कारण ये भी है कि भारत ने अपने प्राकृतिक संसाधनो का दोहन पिछले कुछ वर्षों में ज्यादा ही किया है जितना किसी देश ने नही किया) लेकिन लोगों ने तब कहना शुरू किया जब अति हो गई खासकर इस कोयला घोटाले के बाद बल्कि वो टाईम पत्रिका है या कोनसी उसने भी पहले प्रशंसा मे कसीदे कढे थे लेकिन अब मजाक उडाते हुए पपेट ही बता दिया।ये तो पीएम खुद भी देखे कि लोग क्यो ये सब कहने पर मजबूर हो रहे हैं।
Deleteप्रवीण जी ,शाह नवाज जी
Deleteप्रधानमंत्री की कोई भी जवाबदेही जानता के प्रति बनती है की नहीं, या वो बस विपक्ष के सवालो में ही उलझे रहेंगे , होना तो ये चाहिए था की कैग की रिपोर्ट सामने आने के दूसरे दिन ही वो इसका जवाब देते जैसे अब दिया है हो हल्ले के बीच, किन्तु वो खामोश रहे , अपने पद की गरिमा को गिराया देश की साख को भी बट्टा लगाया और लोगों को उन पर शक करने का मौका दिया | ये तो हमें भी पता है की उनके कहे का कोई मूल्य नहीं है सरकार में नहीं तो उनके नीलामी करने की राय को २ जी में और अब कोयले के आवंटन में यु रद्दी के टोकरे में नहीं डाल दिया गया होता , दोनों ही मामलों में खबर आई की उन्होंने नीलामी की बात की पर किसी ने नहीं सुनी पिछली बार तो सहयोगी पार्टी की बात कर बचने का प्रयास किया था किन्तु इस बार क्या हुआ, प्रक्रिया में ही इतने साल लगा दिये , आप कब तक कठपुतली बने रहेंगे और देश पर खडाऊ शासन चलता रहेगा , यदि ऐसा ही है तो कम से कम नैतिक जिम्मेदारी तो ले ,कि वो भी नहीं लेंगे |
राजन जी
Deleteआप कि बातो से सहमत हूं |
अब तो जनता भी खामोश होने लगी है। वैसे भी कभी किसी ने बिजूका को बोलते देखा है क्या?
ReplyDeleteजनता खामोश नहीं निराश होने लगी है |
Deleteहजार जवाबो से बेहतर है मेरी ख़ामोशी
ReplyDeleteन जाने कितने सवालो की आबरू रखी है |
इन्तेज़ार कीजिए, चंद महीनो की बात है, फिर सरदार जी ग़ालिब का ये शेर भी गुनगुनायेंगे...
बड़े बेआबरू होकर तेरे कुचे....
rashmi ravija ji ki baat se poorntah sahamat hoon...
ReplyDeleteइत्ता बढ़िया शेर मारा है हमारे सिंह साहब ने, हम सबको इससे प्रेरणा लेनी चाहिए| जहां जवाब देने न बने वहीं ये वाला शेर ठोक देना चाहिए, सवालों की आबरू रह जायेगी, बहुत है | वैसे भी जनता रूपी भेड़ बकरियों की क्या तो आबरू और क्या इज्जत, सवालों की आबरू रखने का ये ख्याल अच्छा है|
ReplyDeleteबेहतरीन कटाक्ष ....... यहाँ चुप्पी को युक्ति के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है.... युक्ति अपने बचाव की और पद पर बने रहने की.....
ReplyDeleteहाहाहा... मजा आया पढ़के... मन्नू जी की शायरी ने तो भगदड़ मचा दी... ;)
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