अपने देवता के साथ ऐसा व्यवहार करने का महान कार्य अपना हिन्दू उर्फ सनातन धर्म ही कर सकता है । तस्वीरे देखिये, जिस गणपति को दस दिन भक्तिभाव से पूजा और रोते खुश होते नाचते गाते विदा किया । उसे किस दुर्दशा मे समुद्र किनारे छोड़ आये हैं ।
कल बिटिया बीच की सफाई के लिए गयी थीं जो दृश्य देखा वो उनसे भी बर्दास्त नही हो रहा था । गन्दगी की पराकाष्ठा देख बहुत दुखी हुयी और देवता की मूर्तियों की ऐसी हालत कि ईश्वर मे विश्वास ना होने के बाद भी उन्हे आश्चर्य रूपी दुख हो रहा था ।
समुद्र अपने पास कुछ ना रखता सब लौटा देता है नतिजा विसर्जन के दूसरे दिन मुर्तियां रेत पर टुटी फूटी खराब हालत मे पड़ी थी । बड़ी मूर्तियों को जेसीबी मशीन से तोड़ा जा रहा था ताकि उन्हे आसानी से निस्तारण किया जा सके।
ये देख उनकी एक मित्र तो रोने लगी क्योंकि उसके घर गणपति आये थे और एक दिन पहले वो विसर्जन के लिए आयी थी । गणपति से उसकी श्रद्धा प्रेम के कारण ये सब उसके लिए असहनीय हो रहा था ।
सालों से पर्यावरण प्रेमी से लेकर समझदार वर्ग कहता आ रहा है कि मूर्तियों का आकार छोटा किया जाये और उन्हे मिट्टी से बनाया जाये । लेकिन श्रृद्धा कम बाजारवाद मे डूबे पूजा पंडाल इसको मानने को तैयार नही होते है । बीस से चालीस फिट ऊंची मूर्तियां बनायी जाती हैं ।
यही सारे मंडल तब चुपचाप सरकारी फरमान को मान रहे थें जब कोविड के कारण मूर्ति का आकार सिर्फ पांच फिट निर्धारित था । लेकिन उसके बाद सब अपने ढर्रे पर वापस आ गया ।
जिस धर्म के मानने वाले ही जब ऐसा व्यवहार अपने ही देवता की मूर्ति से करे तो उस धर्म को क्या किसी और से खतरा हो सकता है ।
खैर हम अ-धार्मिक लोगों का क्या बिटिया सब पूजनियों को कचरे की तरह साफ करने का सहयोग कर घर आ गयीं ।
सटीक और विचारणीय प्रश्न।
ReplyDeleteकाश कि आंडबर और कृत्रिमता को हम अपने कर्मकांड से दूर कर पाते ...।
सादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार ३ अक्टूबर२०२३ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
सटीक
ReplyDeleteकटु सत्य....
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