अभी हाल में ही टीवी पर एक फिल्म देखी थी "राजनिती" देखने से पहले सोचा था की अच्छी राजनीतिक दांव पेंच दिखाया जायेगा ऐसी फिल्मे अच्छी लगती है, किन्तु फिल्म देख कर निराशा हुई क्योकि फिल्म में जिस तरह से एक के बाद एक राजनितिक हत्याए दिखाया जा रहा था कि कैसे लोग अपने विरोधियो की हत्या किये जा रहे थे वो सही और वास्तविक नहीं लगा | अपने विरोधियो की हत्या करना गैंगवार लगता है राजनिती नही वास्तविक राजनीति में ऐसा कम ही देखने में आता है की कोई अपने राजनितिक विरोधियो का एक के बाद एक हत्या करवाता चला जाये | हा लोग एक दूसरे पर झूठे सच्चे मुकदमे करते है सरकार में आने के बाद तरह तरह की जाँच करवाते है और सबूत हाथ में आने के बाद उसका राजनीतिक फायदा उठाते है समय समय पर उनका अप्रत्यक्ष सहयोग लेते है उन्हें हमेशा के लिए जेल में नहीं डालते या सजा नहीं दिलाते है | कई बार हमने देख होगा की इधर सरकार पर कोई संकट आया उधर मुलायम, मायावती ,लालू और किसी भी छोटे मोटे विरोधियो पर सी बी आई कोई जाँच, मुक़दमा की कार्यवाही शुरू हो जाती है सरकार को समर्थन मिल जाता है और जाँच फिर से ठन्डे बस्ते में चली जाती है | अभी हाल में ही सी वी सी थामस के मुद्दे पर जो सुषम स्वराज मीडिया में बोल रही थी की वो सरकार के खिलाफ हलफनामा देंगी वो बाद में चितम्बरम के एक फोन के बाद शांत हो जाती है यानी विपक्ष भी सरकार को किसी ऐसे मामले में नहीं फसाती की वो क़ानूनी पचड़े से बाहर ही ना आ सके या तकनीकी रूप से उसमे बुरी तरह से फंस जाये |
ये देख कर साफ लगता है की सारे नेता एक दूसरे से अच्छे से मिले होते है और भले बाहर एक दूसरे की गलतियों, नीतियों पर उँगली उठा कर राजनीतिक फायदा उठाते हो पर एक दूसरे की हत्या करनी जैसी बाते थोडा गले नहीं उतरती है | अब पाकिस्तान में बेनजीर भुट्टो की हत्या में मुशर्रफ के खिलाफ भी मुक़दमा किया गया है उन्हें हत्या के षड्यंत्र में शामिल बताया जा रहा है | ये सुन कर समझ नहीं आता की सच क्या है क्या वाकई ऐसा है या पाकिस्तानी सरकार मुशर्रफ के पाकिस्तान लौटने और उनके राजनीतिक पार्टी बनाने से डर कर उनके खिलाफ ये सब कर रही है | अंत में होना कुछ भी नहीं है, ये करके शायद मुशर्रफ को पाकिस्तान आने से रोकने का प्रयास किया जा रहा है उन्हें गिरफ़्तारी का डर दिखाया जा रहा है | पाकिस्तान के लोगों की भावनाए भारत के लोगों से बहुत अलग नहीं होती है इस वास्तविकता से मुशर्रफ़ भी परिचित होंगे क्या वो इतना भी नहीं समझ सकते है की चुनावों के समय एक बड़े नेता की इस तरह हत्या लोगों में उनकी पार्टी के प्रति सहानभूति की लहर पैदा कर सकती है और अंत में हुआ भी वही| फिर किस किस नेता को मारते बेनजीर की तो हत्या हो गई क्या उसके बाद उनके लिए हालात बदले, बेनजीर नहीं तो किसी और नेता को तो गद्दी पर बैठना ही था | हालात ये है कि आज खुद निरवासित जीवन जी रहे है अपने देश आने की हिम्मत भी नहीं है | बेनजीर होती तो भी उनका यही हाल होना था |
ये केवल पाकिस्तान का मामला नहीं है भारत में हुए कई हत्याओ और मृत्यु के पीछे भी षडयंत्र की बात सामने आती रही है उनमे कितना सच है कितना झूठ पता नहीं | कही पढ़ा था की शास्त्री जी के रूस में मृत्यु को भी संदेह की नजर से देखा जाता है | अभी हाल ही में उनके मौत के मामले में सूचना के अधिकार के तहत कुछ जानकारिया मांगी गई तो वो नहीं दी गई और बताया गया की उनका कोई पोस्मार्टम नहीं हुआ था जिस पर काफी सवाल उठाये गए थे और उनकी प्राकृतिक मृत्यु पर संदेह जताया गया था | पता नहीं सच क्या है फ़िलहाल तो उनका परिवार उसी कांग्रेस में है और उसे कोई परेशानी नहीं है |
इसी तरह सोनिया गाँधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद भी जिस तरह से एक के बाद एक बड़े कांग्रेसी नेताओ की दुर्घटना में मौत हुई उसमे भी कुछ गड़बड़ी मानी जाती है जैसे राजेस पायलट की मौत एक सड़क दुर्घटना में और माधवराव सिंधिया की मौत प्लेन क्रैस में हुई | कहा जाता है की जिस प्लेन से सिंधिया की मौत हुई उसमे उनके साथ शीला दीक्षित और कुछ और बड़े नेता जाने वाले थे किन्तु बिल्कुल अंतिम समय पर वो नहीं गये और अकेले सिंधिया जी गये और उनकी मौत हो गई | ये बाते तो उनकी मौत के समय ही काफी फैली थी खुद मुझे भी इसमे सक होता था पर उतने विस्तार से जानकारी नहीं थी पर ब्लॉग जगत में आ कर इस बारे में और विस्तार से पढ़ लिया | पर लगता नहीं कि ये सच कभी भी बाहर आयेगा कि ये मात्र अफवाह है या वाकई ऐसा है |
कभी कभी तो इन रहस्यमयी मौतों को लेकर ऐसी ऐसी बाते लोगो के बीच फ़ैल जाती है की एक बारगी सोचना पड़ जाता है की इन्सान आखिर क्या क्या सोचता है और राजनीति जगत को ले कर उसके मन में कितनी नकारात्मक बाते भरी है | जब संजय गाँधी की मृत्यु हुई थी तब मेरा जन्म भी नहीं हुआ था अतः ये तो नहीं पाता की उनकी मौत के बाद क्या क्या बाते खबरों में आई या फैली किन्तु बड़े होने के बाद लोगो के मुंह से सुना जो यहाँ तक कह जाते है की उनकी हत्या की गई थी और उसके पीछे इंदिरा जी थी जो उनके रवैये और अपनी सत्ता के उनकी तरफ खीचने से परेशान थी | यहाँ तक कह दिया गया की जब उनके मौत की खबर आई तो इंदिरा एयरपोर्ट गई और मृत संजय के हाथ से एक घडी निकाल ली असल में उसमे उनके स्विस बैंक का खाता नंबर और कोड था ( लो जी यदि आप से सोचते है की ये स्विस बैंक में ब्लैक मनी वाली बात आज की है तो ये आप की भूल है उस ज़माने में भी स्विस बैंक और उसके खाते को लेकर इतनी बाते थे ) और बेचारी मेनका गाँधी के हाथ कुछ नहीं आया जो वहा पहुँचने में देर कर दी | मतलब ये की माँ और पत्नी वहा घडी के लिए गई थी उनको देखने के लिए नहीं |
उफ़ ये सब सुन कर थोडा अजीब लगता है की राजनितिज्ञो के लिए लोगो के मन में कैसी कैसी भावनाए होती है लोग उनको कितना गिरा हुआ समझते है | पता नहीं उन्हें इस बात की जानकारी है की नहीं की एक आम आदमी उन लोगो के बारे में कितना कुछ सोच जाता है | ये बाते पहले बस सुनी सुनाई सी थी पर ब्लॉग जगत में कही लेख पढ़ा जिसमे बाकायदा सबूत भी दिए गए थे कुछ तकनीकी सवाल भी उठाये गए थे | उसी तरह पायलट और सिंधिया के मौत पर भी वहा काफी कुछ कहा गया था |
मुझे लगता है की यदि कोई किसी को राजनीति से हटाना चाहता है तो उसके कई उपाय है और लोग उसे अपनाते भी है अपने विरोधियो को परास्त करने के लिए वो विरोधी चाहे दूसरी पार्टी के हो, सहयोगी पार्टी के हो, या अपने ही पार्टी के लोग है | आज उमा भारती , गोविन्दाचार्य , नटवर सिंह , अमरसिंह जैसे कई बड़े नाम है जिनका एक समय राजनिती में बड़ा नाम था पर ये सब आज कहा है कोई नहीं जनता राजनीति के ये सब लगभग शून्य हो चुके है | सभी जानते है की इसके पीछे उनके विरोधियो का हाथ था | यहाँ तक की लोग अपने सहयोगी दलों से भी लोगों को निकलवा दिया जाता है सभी जानते है की शिव सेना से संजय निरुपम को बाहर का रास्ता बी जे पी नेता प्रमोद महाजन के कारण दिखाया गया था | इस तरह की लोगों की लिस्ट काफी लंबी है |
ऐसा नहीं है की राजनीतिक हत्याए होती ही नहीं पर उनमे वो लोग ज्यादा शामिल होते है जो पहले से ही अपराधी प्रवित्ति के होते है और कई बार तो विरोधी होने के कारण नहीं बल्कि अपना राज छुपाने के लिए भी अपनो की हत्या कर दी जाती है जैसे झारखण्ड के गुरु जी के ऊपर आज भी हत्या के केस में फंसे है | अब क्या कहा जाये की इसमे सच क्या है, वैसे भी हम जिस देश के वासी है वहा गद्दी के लिए अपनो की हत्याओं की पुरानी परम्परा है |
चलते चलते
जब राजीव गाँधी की हत्या हुई थी तो सभी को सुबह अखबारों के जरिये ही पता चला था जिसने पढ़ा उसे ही आश्चर्य हुआ और कइयो को तो इस खबर पर विश्वास ही नहीं हुआ | उनकी मौत के कुछ दिनों बाद मेरे एक रिश्तेदार बिहार के छपरा से आये बताने लगे की जिस दिन छपरा में सभी को उनकी मौत के बारे में पता चला लोग विश्वास नहीं कर पा रहे थे तभी सभी जगह ये अफवा फ़ैल गई की असल में राजीव जिन्दा है और उनको अपने हत्या के षडयंत्र के बारे में पहले ही पता चला गया था इसलिए वो अमेरिका चले गए थे और अपनी जगह नकली राजीव वहा गए थे और उनकी हत्या हो गई राजीव किसी भी समय अमेरिका से विमान से भारत आ जायेंगे | वो दूरदर्शन का जमाना था और कार्यक्रम २४ घंटे नहीं आते थे एक निश्चित समय बाद कार्यक्रम नहीं आता और टीवी केवल झिलमिल करता था जिसे हम सभी कहते थे की बारिस हो रही है | इस खबर की पुष्टि को देखने के लिए लोग पुरा दिन वहा पर टीवी खोल कर उसकी बारिस देखते रहे |
राजनीति में हत्याएं हमेशा से होती आई हैं....
ReplyDeleteचाहे लाल बहादुर शास्त्री हो या उनके बाद संजय गाँधी, इंदिरा, राजीव.... ये सब राजनितिक कारणों से ही मारे गए...दुःख होता है ये सब सोचकर...
बात तो तुमने सही उठाई है ..कभी कभी सच में लगता है कि ये राजनीति है या गेंग वार ...परन्तु फिर से राजनीति में हत्याएं आदि काल से चली आ रही हैं.और हर देश में होती आ रही हैं . अब भी होती हों तो क्या आश्चर्य है..
ReplyDeleteफिलहाल तो मुशर्रफ को पाकिस्तान में घुसने से रोकना ही वहाँ तात्कालिक उद्देश्य हो सकता है ।
ReplyDelete'राजनीति फिल्म में काफी हत्याएं दिखा दी गयीं...और तीन घंटे के अंदर इतनी मौतें देख दर्शक भी दहल उठे.
ReplyDeleteलेकिन ऐसा नहीं है कि राजनितिक हत्याएं नहीं होतीं...जिन लोगों की मृत्यु का आपने जिक्र किया है...उनमे से कुछ हत्याएं निश्चय ही राजनीतिक कारणों से की गयीं होंगी...हाँ उनका सच कभी बाहर नहीं आ पायेगा...यानि आम जनता को मालूम नहीं पड़ेगा....वे बस कयास लगाकर कहानियाँ ही बनाते रहेंगे.
हमने जो पहली राजनैतिक हत्या सुनी थी वो थी रेल मंत्री ललित नारायण मिश्र की.. उनके बारे में भी लोगों का कहना था कि इसमें उनके भाई जगन्नाथ मिश्र का हाथ था ताकि वो मुख्य मंत्री बन सकें.. फिर तो जो सिलसिला चला वो आकर आंध्र प्रदेश के मुख्य मंत्री वाई.एस.आर. की विमान दुर्घटना में मृत्यु तक आता है...
ReplyDeleteजब मामूली हत्याकाण्ड को सुलझाना (जिसमें राजनेताओं का हाथ हो) असम्भव हो जाता हो तो जहाँ उनका डायरेक्ट इंवॉल्वमेण्ट हो वहाँ तो इस तरह की बातें सिर्फ कॉन्सपिरेसी थ्यौरी बनकर या बनाकर रख दी जती है!!
कानाफूसी तो होती ही है और बिना आग के धुँआ भी नहीं निकलता है.. लेकिन आग का पता नहीं चल पाता और धूमा तो सदियों से रहस्य का प्रतीक माना जाता है!!
राज प्राप्त करने के लिए अपने ही सगे संबंधियों कि हत्याएं करवाना बहुत पहले से होता आया है इसलिए किसी भी राजनेता कि अस्वाभाविक मौत हमें एक षड़यंत्र ही मालूम होती हैं बेशक वो एक दुर्घटना ही क्यों ना हो .
ReplyDeleteये फिल्म अतिवादी थी, राजनैतिक हत्याएं होतीं जरूर हैं लेकिन इतनी ज्यादा और सिलसिलेवार नहीं जितनी की फिल्म में दिखाई गयी है.
ReplyDeleteराजीव गाँधी की ह्त्या के बाद ये अफवाह हमने भी सूनी थी इसी तरह नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की मौत तो हमेशा गुत्थी ही बनी रही.
राजनिती मे हत्या तो बहुत पुरानी रीत हैै, हमारे यहाँ भी एक बहुत अच्छे इंसान एवं विधायक निर्भय पाल शर्मा जी को उनके प्रतिद्वन्धी ने मौत के घाट उतार दिया था।
ReplyDeleteकमाल की बात देखिये उनका घर थाने से मात्र 300 मीटर दूर था, उनके फोन करने पर मुज्जफर नगर थाने की पुलिस पहले आ गयी और पडोसी थाने की पुलिस बाद मे
किसी बात की केवल अफवाह उडती है तो कुछ मे सच्चाई भी होती है
यह बिलकुल गलत है की पुलिस मौके पर नहीं पंहुची थी ,विधायक निर्भय पाल शर्मा की हत्या के समय पुलिस मौके पर पंहुची थी और बदमाशों की गोली से सुनील अहलावत एस आई घायल हुए थे जो थाना सदर सहारनपुर में ही तैनात थे | साथ ही यह बिलकुल गलत है की उनकी राजनीतिक हत्या हुयी बल्कि बदमाशों ने उनके यंह डकैती डालने का प्रयास किया था | बबरियों के गैंग उस समय सक्रीय थे जिन्होंने केवल वही घटना नहीं की बल्की बहुत जगह इस प्रकार की घटना की थी | पहले इलेक्ट्रोनिक मीडिया नहीं था | उस वक्त मनोहर कहानियां जैसी पत्रिकाएं थी जो घटनाओं को सनसनीखेज बना कर प्रस्तुत करतीं थीं|
Deleteराजनीति के क्षेत्र में रहस्य, भ्रष्टाचार, गोपनीयता और सता लोलुपता का वातावरण और परिद्श्य इतनी गहराई के साथ रच बस गया है कि किसी भी घटना दुर्घटना को लोग सामान्य रूप से लेने के लिये स्वयं को मानसिक रूप से तैयार ही नहीं कर पाते ! राजनेताओं और प्रशासनिक अधिकारियों को लोग घोर अविश्वास और शंका की नज़र से देखते हैं और यह हमारा सबसे बड़ा दुर्भाग्य है कि हमें कहीं से न्याय की आशा नहीं कर सकते ! आपका आलेख बहुत पसंद आया ! बधाई एवं आभार !
ReplyDeleteeverything is possible under the sky.
ReplyDeleteकुछ भी हो सकता है। इस हमाम में सब नंगे हैं।
आपकी पोस्ट मे एक आयाम और जोड़ना चाहूँगा, एक घटना के माध्यम से।
एक मोस्ट वांटिड माफ़िया कई साल से पुलिस की आंख में धूल झोंक रहा था। अखबार में एक खबर आई कि तत्कालीन मुख्यमंत्री को मारने के लिये उसे सुपारी दी गई है। सी.एम.साहब से पत्रकारों ने इस बारे में पूछा तो जवाब मिला, "जाको रखे साईंया मार सके न कोय" ये पढ़कर हम भी उनकी हिम्मत के कायल हो गये थे। इससे बिल्कुल अगले दिन ही वो माफ़िया डान पुलिस एनकाऊंटर का शिकार हो गया।
जो आदमी बरसों से हाथ नहीं आ रहा था, जैसे ही उसके बारे में ऐसी खबर फ़ैली, उसके अगले ही दिन उसका एनकाऊंटर हो गया।
बात सिर्फ़ शासकों की इच्छाशक्ति की है। जिस दिन यह जाग्रत हो जाती है, उस दिन एक्शन अंजाम ले लेता है चाहे वह विरोधियों के प्रति हो, चाहे भीतरघातियों के प्रति, चाहे संभावित प्रतिद्वंदियों के खिलाफ़।
बाकी तो ये सब रहस्य ही रह जायेंगे।
कभी कभी चीज़ें इतनी आपस में इतनी जुड़ी हुई लगती हैं की राजनीतिक हत्याएं सच लगती हैं...... पर राजनीति ऐसा दलदल है की सच कहाँ सामने आता है..... यहाँ तो हत्या हो जाने के बाद भी राज नीति और हत्या करवाने के लिए भी राजनीति ......
ReplyDeleteयह राजनीति बहुत ही धिन्नोनी हे जी, ओर यहां सही मे ऎसे ही हत्या भी होती हे, जेसे जेसे आदमी ऊपर ओर ऊपर पहुचता हे ओर उस स्थान पर टिका रहना चाहता हे वेसे वेसे उस की कुस्री के नीचे पता नही कितने लोगो को लाशे होती हे, ओर कई बार तो अपनो की हत्या इस लइये हो जाती हे कि हारी हुयी वाजी पलट जाये, ओर अगले चुनाव मे भी कुछ ऎसा हो जाये कुछ अलग नही होगा, बाल्कि अब जनता को चाहिये इन मोतो पर अपनी सहानुभुति ना दे, ओर दिमाग से अगली बार अपनी कीमती वोट दे
ReplyDeleteधुआँ उठा है कहीं आग भी जली होगी ....
ReplyDeleteकभी मैने भी एक कथानक में अपने विचार रखे थे:
ह्त्या की राजनीति
अंशुमाला जी, राजनीति फिल्म पर मैंने भी यही टिप्पणी की थी कि इस फिल्म का नाम राजनीति नहीं गेंगवार होना चाहिए था, क्योंकि राजनीति में हत्याएं नहीं होती। राजनीति तो वो कूटनीति है जो अपनी चातुर्य से व्यक्ति को समाप्त कर देती है। यदि कुछ लोग हत्या का सहारा भी लेते हैं तो वह सफल राजनेता नहीं हैं।
ReplyDeleteनटवर लाल ?....शायद आप नटवर सिँह की बात कर रही है.
ReplyDeleteखैर ...छोटे मोटे नेताओं की तो अपने प्रतिद्वंदियों की हत्या में संलिप्तता उजागर होती रही हैं.बाकी इन अफवाहों पर तो हमें भी कभी यकीन नहीं रहा.
.
ReplyDelete.
.
अंशुमाला जी,
भारत की राजनीति में यह सभी दल व नेता भी एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं... एक दूसरे से मिले हैं यह सब... सब मिलकर अपनी नई पीढ़ी को भी बढ़ाते हैं... बॉलीवुड फेमिलीज की तरह ही सब मिलकर यह भी सुनिश्चित करते हैं कि पहले तो कोई 'बाहरी' राजनीति में आये न और यदि भूलेभटके आ गया तो रहे इनकी ही शर्तों पर... सत्ता भले ही किसी के पास रहे... सत्ता सुख सभी को मिलता रहता है...
यह बात सही है कि पारंपरिक व प्रोफेशनल राजनीतिज्ञ अभी भी हमारे देश में बैलट पर ही भरोसा करते हैं बुलेट पर नहीं... कुछ आपराधिक छुटभय्यों को छोड़ अन्य हत्या आदि के बारे में विचार तक नहीं करते हैं... शायद इसीलिये हम जीवंत लोकतंत्र हैं !
...
@ शेखर जी
ReplyDeleteधन्यवाद |
@ शिखा जी
ऐसा लगता है जब से राजनीति का अपराधिकरण हुआ है तब से ये और बढ़ गई है |
@ सुशील बाकलीवाल जी
हा वहा तो यही कारण लग रहा है |
@ रश्मि जी
खुद फिल्म में भी समय काफी कम दिखाया गया है चुनावों के घोसणा के साथ शुरू होता है और चुनाव होने तक ये सब कुछ हो जाता है | और राजनितिक हत्याओ पर कहानिया तो आदमी जैसी चाहता है बना लेता है |
@ सम्वेदना के स्वर जी
हा वाई. एस .आर की मृत्यु मुझे भी संदेहास्पद लगती है आज के आधुनिक तकनीक के ज़माने में उनका हेलीकाफ्टर पूरे दिन नहीं मिल पाना थोडा आश्चर्य लगता है और उसके बाद आंध्र में क्या हो रहा है सब देख रहे है | जब तक जाँच एजेंसियों पर सरकारों की पकड़ रहेगी इस तरह के रहस्य कभी बाहर नहीं आ पाएंगे |
@ दीप जी
ReplyDeleteहा ये भी होता है की हम सब दुर्घटना को भी षडयंत्र मान बैठते है |
@ सोमेश जी
फिल्मे अक्सर अतिवादी बन जाती है | चलिये आप ने इस अफवाह के होने की पुष्टि कर दी |
@ दीपक जी
वैसे तो पुलिस हर मौके पर ही देर पर पहुंचती है फिर ऐसे मामलों में जल्दी पहुँचने का सवाल ही नहीं उठता है |
@ साधना जी
आप सही कह रही है , धन्यवाद |
@ संजय जी
शायद आप गुजरात की बात कर रहे है | मुझे तो लगता है की वो खबर भी उनके द्वारा ही फैलाई गई थी ताकि आसानी से उसका एनकाऊंटर हो सके और ज्यादा सवाल ना खड़ा हो लेकिन आज क्या हो रह है आप जानते ही है |
@ मोनिका जी
हा सहमत हूँ आप से |
बिलकुल सही कहा है |राजनीती फिल्म में हत्याओं का सिलसिला देखकर" राजनीती "की भी गलत तस्वीर ही पेश करती है फिल्म ठीक उसी तरह जिस तरह करण जोहर की बनावटी फिल्मे एक भारतीय परिवार का बनावटीपन या मनगढ़ंत रूप पेश करती है |और रही देश की राजनीती की बात या राजनितिक हत्याओ की बात ?जब देश पर अकेले किसी का राज होता था तो पारदर्शिता होती थी और राजनितिक हत्या भी उसी का एक अंग जो बहुत जरुरत या देश के हित में होता था |अब हर कोई नेता ,हर कोई की महत्वाकांक्षाएं हर व्यक्ति चलाऊ राजनीती करने को तैयार और उसकी आड में व्यक्तिगत शत्रुता निकालने पर अमादा |व्यक्तिगत स्वार्थ की राजनीती |बाकि नेताओ की हत्याए ?
ReplyDeleteउनकी असलियत अगर मालूम भी हो जाय तो फिर राजनीती कैसे होगी ?अगर गरीबी मिट जाये तो राजनीती कैसे हो ?
एक आदमी जो सचमुच काम करना चाहता है वो नामी संगठन में शामिल हो जाता है अंदर जाने पर उसे पिस्तऔ थमा दी जाती है और जब वोफंस जाता संगठन उससे हाथ झाड़ लेता है और दुसरे कोई नये जूनून वाले युवक को सन्गठन में भरती कर लेता है |और ये राजनीती के गुरु बन ने का दावा करते है ?
आपने बहुत अच्छे विषय पर बहुत ही सूक्ष्मता से अपने विचार रखे है जन -जन तक ये बाते पहुंचनी ही चाहिए और इन पर मंथन होना ही चाहिए |सभी टिप्पणिया भी सारगर्भित है |
@ राज भाटिया जी
ReplyDeleteहा कई बार नेता लाशो की सीढ़ी से चढ़ कर ऊपर पहुंचाते है |
@ अनुराग जी
धन्यवाद | हा आप की कहानी रूपी वास्तविकता पढ़ी बहुत अच्छी लगी , वास्तव में ऐसा ही होता है |
@ अजित जी
सही बात कही आप ने राजनीति में कूटनीति से चलने वाला ज्यादा सफल होता है |
@ राजन जी
हा हा हा अनजाने में ही सही पर मैंने उनका असली नाम लिख दिया |
@ प्रवीण जी
परिवारवाद तो हमारे खून में है फिर नेता इससे कैसे बच सकते है | हा शायद यही वजह है कि हमारा लोकतंत्र दुनिया के कई दूसरे देशों से अलग है |
@ शोभना जी
फिल्मो में तो बनावटीपन होता है | पर वास्तविकता में भी देश हित में बाते करने वाले ये नेता भी काम बनावटी नहीं होते है |
अभी तक दो तीन बार मैंने अपने कमेंट्स में कुछ घटनाओं का आधा अधूरा जिक्र किया था, शायद जानबूझकर और आपने उन घटनाओं को एकदम सही पहचाना था। इस बार आप हार गईं:) चिराग तले अंधेरा सुना है न? ये घटना आपही के राज्य से संबंधित है, अगर बनारस आपका शहर रहा है। और वो एनकाऊंटर जहाँ तक मुझे याद है,नौएडा में हुआ था।
ReplyDeleteफ़िर दोहराता हूँ, अपने स्वार्थ के लिये ही किस को कब प्रोटैक्शन देनी है और किसको कब निबटाना है, सब शासन के हाथ में है।
@ संजय जी
ReplyDeleteआप के इतना बताने के बाद भी मै नहीं समझ पाई की आप किस नेता से जुडी घटना बता रहे है शायद ९ साल से यु पी छोड़ने का नतीजा है और आप को बता दे की बनारस यु पी के एक कोने पर है और नोयडा दूसरे कोने पर है :))
पर हा इससे किसी घटना के ना पता होने पर कोई फर्क नहीं पड़ता है |
जबकि सोहराबुद्दीन और नरेंद्र मोदी वाली घटना बिल्कुल ऐसी ही है मोदी ने भी बिल्कुल यही कहा था प्रेस कांफ्रेंस में
" जाको राखे ............ सोहराबुद्दीन के ढेर होने से पहले और इस केस में भी अब पता चला रहा है की वो उनका ही आदमी था |
और ई तो बताइये की हमको बिना बताये ई हार जीत का खेल आप अकेले ही खेलते रहे कम से कम हमको बताया तो होता और उससे बड़ी ज्यादती ये की जब मै जीती तब नहीं बताया की आप जीती , ऊफ बड़ी ख़राब बात है काहे की अपनी लाइफ में इससे बड़ी कम मुलाकात होती है जब अनजाने में जीती थी कम से कम उसी की पार्टी मना लेती :)))
jwlant vishay par bahut hi sarthak lekh ..
ReplyDeleteराजनैतिक हत्याएं होती जरुर हैं , मगर फिल्म की तरह नहीं ...
ReplyDeleteपोस्ट का शीर्षक पढ़ते ही मुझे राजेश पायलट और सिन्धियाजी का ख्याल आया और आगे देखा टी आपने उनका जिक्र भी किया है ...
आपकी पोस्ट की फीड मुझे नहीं मिल रही है !
मेरे द्वारा इंगित घटना आपके प्रदेश की ही है। मुख्यमंत्री थे श्री कल्याण सिंह। एनकाऊंटर में मारा गया था पूर्वी उत्तर प्रदेश का रहने वाला एक मोस्ट वांटेड जिसका सही नाम इस समय मुझे याद नहीं, शायद मुन्ना शुक्ल या मुन्ना मिश्र(कुछ और भी हो सकता है)। वैसे नाम से कुछ फ़र्क पड़ता भी नहीं, मैं यही कहना चाहता था कि सभी पार्टियां कमोबेश एक सी हैं और सभी नेता लगभग एक से। जब तक कोई उनके हित में काम कर रहा है तब तक सब ठीक और जहाँ कुछ तीन-तेरह होती दिखे उस समय इच्छाशक्ति जाग्रत हो जाती है।
ReplyDeleteहार जीत की बात सिर्फ़ एक मजाक थी। अब तो हम खेल भी स्पाईडर जैसे खेलते हैं, खुद से ही खुद का मुकाबला:))
शायद विचारशून्य की पोस्ट पर बलात्कारी को सजा देने वाले मामले में मैंने कोलकाता के एक पुराने केस का जिक्र किया था(जानबूझकर आधा अधूरा) ये देखने के लिये कि किसी को उस केस की याद भी है कि नहीं और आपने बाकायदा नाम क्वोट करके कमेंट किया था। और भी एक ऐसी बात हुई थी, आपकी तरह शार्प नहीं कि ’चिडि़या बिल्ली’तक याद रख सकूं, नहीं तो लिंक दे देता:) पार्टी अब मना लीजियेगा, whenever you get something to cheer up, celebrate it. Its never too late.
श्रीप्रकाश शुक्ला बदमाश मारा गया था | वो दिल्ली पोलिस और उत्तर प्रदेश का सयुंक्त अभियान था | मगर राजनितिक हत्या नहीं थी | उत्तर प्रदेश में राजनितिक हत्याओं में पूर्व मंत्री ब्रह्म दत्त द्वेदी की हत्या राजनीतिक हत्या थी जो वंही के सफेदपोशों ने मुजफ्फरनगर के संजीव महेश्वरी , रमेश ठाकुर जैसे भाड़े के बदमाशों से कराई | इसी प्रकार विधायक कृष्णानंद राय की हत्या भी राजनीतिक थी जो मुख़्तार अंसारी ने अपने गुर्गों से कराई उसमें अन्य बदमाशों के अलावा संजीव महेश्वरी भी शामिल था
Delete|
@ संजय जी
ReplyDeleteक्या बाई जी तो हम कौन से गंभीर थे हार जीत पर हम भी मजाक का जवाब मजाक में ही दिये और आप गंभीर हो गये और सफाई दे दिया | :)))
और एक टिप्पणी में दो जानकारी देने के लिए धनबाद और पटना दोनों | एक तो यु पी वाली वैसे बता दू ई काम करने वाले यहाँ कई मुन्ना है शुक्ल भी बजरंगी भी दूजा स्पाईडर वाली हमें तो पता ही नहीं था की मकड़ी खुद से ही मुकाबला करती है हमको लगा की वो तो अपने शिकार से मुकाबला करती है | तो आप का ये नया नामकरण स्पाइडर बाई जी :)))
और आखिर में जब आप को दीप जी की पोस्ट और उसकी टिप्पणी याद है मेरी जीत याद है तब हमको क्या आप की चिड़िया बिल्ली याद नहीं हो सकती हमको तो आप की बिपासा और लारा भी याद है | चलिये आप के नये नामकरण पर एक पार्टी तो आप की तरफ भी बनती है |
जिसका नामकरण होता है, वो पार्टी देता है क्या?
ReplyDeleteवैसे हम दे देंगे:)
mujhe to raajneeti bilkul pasand nahin aayi...mahabharat ka plot uthakar uski band baja di !
ReplyDelete;)
par haan, rajneetik hatyaein to hoti hi aayi hain...its shameful
...........................................
aur vo doordarshan ki jhilmil...baris....hihi, ham kehte the ke tv pe kuch nahin aa raha....macchhar aa rahe hain bas....hihihihih
party...!!!! where's the party....me too me too me tooo.................
ReplyDeleteये राजनीति है ही ऐसी चीज। इसलिए मैं इससे दूर रहता हूँ।
ReplyDelete---------
अंतरिक्ष में वैलेंटाइन डे।
अंधविश्वास:महिलाएं बदनाम क्यों हैं?