August 18, 2011

जन लोकपाल बिल और सरकारी लोकपाल बिल कुछ बिंदु जिन पर दोनों में असहमति है - - - - -mangopeople



सरकार का कहना है की उसने अन्ना हजारे की ज्यादातर मांगे मान ली है कुछ मांगे जो मानने लायक नहीं है बस उन्हें नहीं माना है तो यहाँ मै उन कुछ खास मांगो का जिक्र करुँगी और उस पर सरकार के रुख का भी |
१ - अन्ना की तरफ से सबसे बड़ी मांग है की लोकपाल के दायरे में प्रधानमंत्री को लाना चाहिए
                       जबकि सरकार प्रधान मंत्री को लोकपाल के दायरे में लाने को तैयार नहीं है |

            संसद में  अब तक आठ बार लोकपाल बिल विभिन्न रूपों में आ चूका है जिसमे से पांच बार के बिल में प्रधानमंत्री को भी लोकपाल के दायरे में रखा गया था | प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी पत्रकारों से कहा की उन्हें भी लोकपाल के दायरे में आने से कोई परहेज नहीं है , हाल में ही कांग्रेस की नेता जयंती नटराजन की कमिटी ने भी प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में लाने की बात की फिर अचानक से इससे परहेज क्यों किया जा रहा है | मतलब ये मांग करके सिविल सोसायटी ने कोई नई बात नहीं कही है ये पहले से ही बिल में मौजूद था जिसे फिर से शामिल करने की मांग की जा रही है |

२- न्यायपालिका को भी लोकपाल के दायरे में आना चाहिए |
         न्यायपालिका को लोकपाल के दायरे में नहीं लाना चहिए जजों के लिए अलग से कानून बना सकते है |
                                                         सौमित्र सेन जिन पर अभी महाभियोग चल रहा है उन पर २००५ में ही आरोप लगे थे पर मुख्य न्यायाधीश ने उनकी जाँच का आदेश २०१० में दिया जब वो रिटायर हो गए | हाल में ही पंजाब के एक जज को पैसे पहंचाए गए पता चला की किसी और जज को पैसे पहुँचने थे |

३-  संसद में सांसदों के आचरण को भी लोकपाल के दायरे में लाना चाहिए |
           संसद में सांसदों का आचरण इस दायरे में नहीं आना चाहिए संसद खुद अपने सांसदों के बारे में फैसले लेगा |
                       सांसदों ने पैसे ले कर संसद में प्रश्न किया राज्यसभा चुनावों में और किसी खास मुद्दे पर सांसदों को ख़रीदा बेचा जाता है जाँच में कुछ नहीं निकलता और किसी को संसद कोई खास सजा नहीं देती |
४- कोई भी जाँच ६ महीने से दो साल में पूरी हो जानी चाहिए |
            जाँच के लिए सात साल तक का समय दिया जाना चाहिए |
                                        सात साल में तो जाँच का क्या हाल होगा सभी जानते है ये तो बस जाँच को टरकाने जैसा है |
५- भ्रष्टाचार में पकडे जाने पर कम से कम ५ साल और ज्यादा से ज्यादा उम्रकैद हो |
                        पकडे जाने पर ६-७ महीने की ही सजा हो ( संभव है की टीवी पर गलत बताया जा रहा हो हजरों करोड़ के घोटाले के लिए इतनी कम सजा का प्रावधान सरकार नहीं कर सकती है आप किसी के पास इस बारे में कोई और जानकारी हो तो दे ) 
                                            कोई हजारो करोड़ का घोटाला करे उसे इतनी कम सजा कैसे दे सकते है |                    
       
६- घोटाले की सारी रकम घोटालेबाजो से वसूली जाये
           रकम वसूली को कोई व्यवस्था नहीं है |
                        राजा ने पौने दो करोड़ लाख का घोटाला किया लगभग तीन हजार करोड़ अपने जेब में डाल लिया मान लीजिये की उन्हें सजा हो गई और वो ५ साल बाद आ कर तीन हजार करोड़ के मालिक हो जायेंगे | जनता के टैक्स के पैसे उनकी जेब में चले जायेंगे | 
७- लोकपाल के दायरे में सभी सरकारी कर्मचारी हो
                        संयुक्त सचिव से नीचे के कर्मचारी लोकपाल के दायरे में नहीं होंगे  |
                                           आम आदमी तो रोज इन बड़े अधिकारियो के चंगुल में नहीं फस्ता है तो आम आदमी जब छीटे अधिकारियो से परेशान होगा तो वो क्या करेगा वही पहले की तरह उसी विभाग के एंटी करप्शन ब्योरो को शिकायत करेगा जहा आरोपी अधिकारी के ही भाई बंधु बैठे है |            
८- लोकपाल को नियुक्त करने की कमेटी में न्यायिक, गैरसरकारी और  वो लोग हो जो लोकपाल दे दायरे से बाहर है 
                       जबकि सरकारी लोकपाल बिल में कमेटी के १० सदस्यों में सत्तासीन पार्टी के सांसदों का बहुमत है |
                                                  जो लोकपाल के दायरे में है वो ही कैसे उसे चुन सकते है क्या आरोपी ही अपने लिए जाँच अधिकारी चुनेगा |
९- सी बी आई का एंटी करप्सन विंग पर लोकपाल का अधिकार हो साथ ही सी वी सी पर भी
                          सरकार सीबी आई को लोकपाल के अधिकार में देने को तैयार नहीं है |
                          सरकार के अधिकार क्षेत्र में रह कर सी बी आई कैसे आज तक काम कर रही है  ये सभी जानते है |
१० लोकपाल और लोकायुक्त दोनों के लिए एक ही कानून बने
                             सरकार का कहना है की लोकायुक्त राज्य के अधिकार में है वो उसमे हस्तक्षेप नहीं कर सकती |
                        जमीन अधिग्रहण की तरह सभी राज्य सरकारे अपने अपने हिसाब से कानून बनाने लगे तो क्या होगा |
११-भ्रष्टाचार का आरोप लगाते ही पद से हटा दिया जाये
                               जाँच होने के बाद दोषी होने पर ही हटाया जाये |
                                यदि आरोपी को उसके पद से हटाय नहीं जायेगा तो वो उसी विभाग या पद पर बैठ कर अपने खिलाफ सबूतों को नष्ट नहीं कर देगा जैसे आदर्श की फाईल एक के बाद एक गायब हो रही है या अपने मातहत लोगों को सूचना देने से रोक नहीं सकता है | ये संभव है की कुछ आरोप गलत लगाये जाये किन्तु जब कोई भी लोकपाल को किसी की शिकायत करेगा तो कुछ ना कुछ दस्तावेज या सबूत के साथ ही करेगा उसे देखा कर तो समझ ही जा सकता है  |
१२- लोकपाल को सजा की सिफारिश करने क अधिकार हो
                                  सरकार के अनुसार उसे केवल निलंबित करने का अधिकार हो |
                                  इस मामले में सरकार से सहमत हूँ एक ही व्यक्ति का जाँच और सजा का धिकार नहीं होना चाहिए | हा यदि सिफारिस कर दे तो भी क्या बुरा है अंत में न्यायालय को ही सजा देना है |
१३- सरकार का कहना है की यदि किसी के आरोप साबित नहीं होते है तो आरोप लगाने वाले को सजा मिलेगी वो भी २ से ५ साल की |
                        जबकि अन्ना की टीम इसका विरोध कर रही है इससे लोग शिकायत करने से डरेंगे बल्कि लोगो का नाम छुपा कर रखना चाहिए और बेनामी शिकायत का भी अधिकार होना चाहिए
                                अब इस प्रावधान को आप क्या कहेंगे आज की तारीख में कितने अधिकारी पैसे लेते रंगे हाथ पकडे जाते है किन्तु बाद में छुट जाते है इअतानी मिली भगत है हर जगह ऐसे में कैसे सारे आरोप एक व्यक्ति साबित कर सकता है वो तो आरोप और सबूत भर दे सकता है | यदि इस तरह सजा का प्रावधान होगा तो कोई ही शिकायत करने ही नहीं आयेगा | आज तो सूचना मागने वाले तक को मार दिया जाता है फिर क्या शिकायत करने वाला सुरक्षित होगा |
१४ - जब लोकपाल ही भ्रष्टाचारी निकले तो को भी उसकी शिकायत मुख्य न्यायाधीस से कर सकता है जो उसको हटाने के लिए अधिकृत होंगे
                                  सरकार का कहना है की ये व्यवस्था ठीक नहीं है कोई भी लोकपाल का शिकायत नहीं कर सकता है |  
                            एक तरफ तो सरकार कहती है की जन लोकपाल बिल का लोकपाल निरंकुश हो जायेगा सुप्रीम पवार बन जायेगा जब उसी के खिलाफ सभी को शिकायत करने की छुट दी जा रही है तो उसे वो भी मंजूर नहीं है |


सूचना    
                                  मेरी पोस्ट टीवी पर बताई जानकारी पर आधारित है यदि किसी तथ्य में कोई गड़बड़ी है तो बता दे या आप के पास कोई जानकारी है तो दे, उसे पोस्ट में शामिल कर लुंगी |

21 comments:

  1. @अंशुमाला जी
    अभी मैं पोस्ट ठीक से नहीं पढ़ पाया हूँ
    एक लिंक दे रहा हूँ , अभी मेरे पास आया है
    इसे भी एक बार पढ़ लें , शायद काम का हो
    http://www.patrika.com/news.aspx?id=658248

    [आप चाहें तो पढने के बाद ये टिपण्णी हटा भी सकती हैं ]

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  2. समय की कमीं से चलते...कमेन्ट के द्वारा ही सही आपके इस प्रयास में हम आपके साथ हैं .. शुभकामनाएं :)

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  3. काफी जानकारी दी है ...अरविन्द केजरीवाल जी की साईट पर भी और मैटर मिल जायेगा !

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  4. अंशुमाला जी
    यहाँ भी डाउन लोड करने के लिए मटेरिअल है [हिंदी में भी ]

    http://www.indiaagainstcorruption.org/downloads.html

    सामान्य सवाल भी हिंदी में

    http://lokpal-hindi.blogspot.com/p/blog-page_10.html

    [कमेन्ट के विषयांतर लगने पर इसे हटाया जाना ब्लॉग एडमिनिस्ट्रेटर का अधिकार है ]

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  5. बहुत कुछ समझा दिया आपने इस लेख के द्धारा।

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  6. अति संग्रहणिय और सहज वांछित जानकारी को आपने एकत्रित करके रख दिया है, बहुत ही उत्तम प्रयास है, शुभकामनाएं.

    रामराम

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  7. @ग्लोबल अग्रवाल जी , वाणी जी
    धन्यवाद ! काफी कुछ नेट पर पढ़ चुकि हूं जन लोकपाल के बारे में और सरकारी लोकपाल के बारे में काफी कुछ है यहाँ पर किन्तु इन सब का विरोध करने वाले बार बार कहते है की लोगों को कुछ पता ही नहीं है बस अंधे हो कर किसी के पीछे भाग रहे है ( जबकि मै भी व्यक्ति की जगह मुद्दे की बात करने की कहती हूँ ) तो ये पोस्ट उनके लिए है की आम आदमी इतना भी कम जानकार नहीं है , ये सब बाते तो टीवी पर भी कई बार बता दिया गया है ना जानने वाली तो कोई बात नहीं है |
    पर शायद उन्होंने उसे नहीं देख सुना या पढ़ा है सो बार बार कुछ मजबूत तर्क देने के बजाये बस ना जानकारी की बात करते है
    नेट से लुंगी तो पोस्ट इतनी बड़ी हो जाएगी की पढ़ना ही मुश्किल हो जायेगा ये पोस्ट तो बस हल्की फुल्की रखी है |

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  8. अंशुमाला जी,
    वैसे तो इन मुख्य बिंदुओं के बारे में पहले से जानकारी थी फिर भी यहाँ आपने और स्पष्ट कर दिया.ग्लोबल जी द्वारा दिये गये लिंक भी उपयोगी है.एक अन्तर ये भी है कि सरकारी लोकपाल सात साल पुराने मामलों पर कोई कार्रवाही नहीं करता.सरकारी लोकपाल के लिए चयन समिति में अध्यक्ष समेत नौ सदस्य होगें या दस एक बार आप या पाठकों में से कोई कंफर्म कर बता सके तो मेहरबानी होगी.क्योंकि इसमें अभी असमंजस है.
    जहाँ टिप्पणियों के लिए अलग से पृष्ठ नहीं खुलता वहाँ सीधे टिप्पणी करने पर यह किसी वज़ह से ठीक से प्रकाशित नहीं हो पा रही है.आपको और पाठकों को अब तक हुई असुविधा के लिए खेद है.

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  9. अंशुमाला जी ,
    एक दम दिल की बात है की मेरी नज़रों में आपकी हल्की फुल्की पोस्ट ऐसे कईं सारे लिंक्स से बेहतर है
    मैंने तो बस आपकी पोस्ट के बहाने बस मौक़ा ढूंढ लिया गिलहरी [राम सेतु वाली ] बनने का :)
    मैं तो पहले से ही आपको इन मामलों में एक अच्छा जानकार [जिनका एक लोजिकल ओपिनियन होता है] मानता रहा हूँ, इसीलिए तो इस विषय पर आपसे लिखने का अनुरोध करता रहा हूँ

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  10. जब सरकार ने ऐसा नकारा लोकपाल विधेयक बनाया है तो उसे प्रधानमंत्री और न्यायपालिका को लोकपाल के दायरे में लाने में क्या दिक्कत है जबकि जाँच करने वाले लोग खुद इनके ही होंगे और सरकार को पता है कि इस विधेयक से किसीका कुछ नहीं बिगडने वाला है.इससे तो लग रहा है सरकार ऐन वक्त पर सबसे पहले सिविल सोसायटी की इसी माँग को मानेगी जिसे ये लोग अपनी सबसे बडी माँग बता रहे है.ताकि सरकार कह सके कि देखो हम इतना झुक गये अब तुम भी थोडा झुको लेकिन जनलोकपाल का फायदा तभी है जब इसकी सभी बातों पर सहमति हो.टीम अन्ना और जनता को किसी भी माँग से पीछे नहीं हटना चाहिए वर्ना ये मौका फिर जल्दी नहीं आने वाला.

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  11. बिल्कुल तर्कपूर्ण और सहज तरीके से आपने दोनों पक्षों के मतभेद वाले मुद्दों को सबके सामने प्रस्तुत किया है ।

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  12. अंशुमाला जी,
    मेहनत से तैयार किए गए आलेख के लिए साधुवाद...

    मैं भ्रष्टाचार से देश को सौ फीसदी मिटाने का कट्टर समर्थक हूं...मार्च-अप्रैल में मैंने ब्लॉग पर अन्ना के समर्थन के लिए जो मुझसे बन सका था, मैंने किया था...लेकिन इस दौरान ऐसा बहुत कुछ हुआ जिसने मुझे और भी बहुत कुछ सोचने को मजबूर किया...ये वक्त अन्ना पर अंधश्रद्धा का नहीं है...ये वक्त हर भारतीय के अपने अंतर्मन में झांकने का है...ये सोचने का है कि उसने सिवा अपना फायदा सोचने के इस देश के लिए क्या किया...आपके इस ब्लॉग की टैगलाइन है...मेरा देश महान सौ में से निन्यानबे बईमान...देखा जाए तो इसी लाइन में जड़ छुपी है...गांधी डर से किसी को नहीं बदलते थे...वो इनसान को अंदर से बदलने की कोशिश करते थे...जनलोकपाल या लोकपाल जो भी हो, आखिर कितनों पर डंडा चलाएगा...क्या गारंटी की वहां भी जुगाड़ू बचने का रास्ता नहीं निकाल लेंगे...ज़रूरत है आज आपके ब्लॉग की टैगलाइन को इस तरह बदलने की...सौ में से एक बेइमान, इसलिए मेरा भारत महान...और ये तभी होगा जब सब खुद अपने को बदलेंगे...अन्ना जैसे ईमानदार हो जाएंगे...तब जो रास्ता निकलेगा वही फिर भारत को सोने की चिड़िया बनाने की ओर ले जाएगा...बाकी सारी बातें मेरी नज़र मे मृगतृष्णा हैं...

    जय हिंद...

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  13. बढ़िया जानकारी के लिए आभार आपका !

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  14. informative post and small one always better

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  15. इस देश का कानून सभी के लिए समान होना चाहिए क्‍योंकि हमने लोकतंत्र को अपनाया है। अंग्रेजों के कानून की हूबहू नकल करने से ही यह हुआ है। अंग्रेज राजा थे और हम प्रजा, इसकारण उन्‍होंने दोहरे कानून बनाए। आज के मंत्री संसद में इसी भाषा का प्रयोग कर रहे हैं कि हम राजा है और ये प्रजा। लोकपाल बिल के माध्‍यम से यदि कानून के अन्‍तर्गत समानता आती है तो अच्‍छी बात है। यदि नहीं तो जनता को अभी लम्‍बी लड़ाई लड़नी पड़ेगी। कुछ लोग समझते हैं कि जनता आज सड़कों पर निकली है वह समझदार नहीं है। लेकिन आज इस तथ्‍य को सभी जान गए हैं कि राजशाही के कानूनों के कारण ही देश में भ्रष्‍टाचार फैल रहा है। आज सड़क पर जो जनता है, उसमें से आधे से अधिक उच्‍च शिक्षित वर्ग है।

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  16. बहुत ही सरल रूप में उपयोगी जानकारी...

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  17. अच्छी जानकारी बहुत अच्छे से साझा की आपने.........
    अभी अभी एक मेल मिला उसमे पढ़ा की NGOs
    को इस दायरे में लाने के लिए अन्ना जी और उनकी टीम खिलाफ है
    ऐसा क्यों .... .क्योंकि शायद सभी NGO ही चलाते हैं.... जाने क्या और कौन सही है....

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  18. @ मोनिका जी
    जिस तरह सरकार कहा रही है की लोकपाल में से जजों को बाहर निकल दिया जाये और उनके लिए अलग से कानून बनाया जाये और संयुक्त सचिव से नीचे के अधिकारी इसमे शामिल ना किया जाये क्योकि इससे लोकपाल का काम बढ़ जायेगा | उसी तरह जन लोकपाल बनाने वालो का कहना है की जो चीजे सरकार से जुडी हुई सरकार के नियंत्रण में उसके ले एक कानून बनाया जाये और उसको एक ही समिति समूह के द्वारा नियंत्रित किया जाये और कार्पोरेट ,वकील ,एन जी ओ आदि सरकार से बाहर के लोगों में व्याप्त भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए एक अलग कानून बनाया जाये ताकि कानून में कोई घाल मेल ना हो और काम करने वालो को एक ही तरीके के लोगों की जाँच करने उससे जुड़े कानूनों को लागु करने में आसानी हो | एन जी ओ को भ्रष्टाचार करने की छुट नहीं दी जा रही है ये सारी बाते उन लोगों द्वरा फैलाई जा रही है जी इन सब के विरोधी है |

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  19. बिंदुवार ढंग से बढ़िया जानकारी मिली। वैसे अब सवाल यह नहीं रहा कि अन्ना के लोकपाल में और सरकार के लोकपाल में क्या अंतर है, बल्कि अब सवाल नीयत और उससे जुड़े खेल का बन गया है। सरकारी नीयत क्या है ये मनीष तिवारी जैसे टुच्चे नेता के कुवचनों से ही पता चल गया था लेकिन अब जो सरकार खेल खेल रही है कि स्टैंडिंग कमेटी के पास भेजा जाय, उसके बाद फलां कमेंटी आदि तो ये सब पहले ही टाला जा सकता था, वर्तमान परिदृश्य में संसद में बिल आराम से रखा जा सकता था लेकिन वही है कि जब तक सरकार चार बार जुतिया न उठे तब तक आगे कैसे बढ़ें।
    अन्ना के बिल में जरूर छोटी मोटी खामी होगी लेकिन इतनी भी नहीं है कि एकदम से नकार दिया जाय। जहां तक प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में लाने की बात है, मैं मानता हूं कि प्रधानमंत्री को कई बार ऐसे फैसले लेने पड़ सकते हैं जो कि सभी को नागवार गुजरे, लेकिन व्यापक हित में वह फैसले जरूरी हों। लेकिन यह तब की बात है जब प्रधानमंत्री फैसला ले, यहां तो मुंह में दही जमी है तो फैसला तो दूर की बात है....हूं हां भी नहीं कर सकते....डर है कहीं दही के जमाव में कोई दरक न आ जाय....दरार न आ जाय। कमसे कम प्रधानमंत्री को मैं इस लोकपाल के दायरे से बाहर रखने के पक्ष में हूं।

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  20. क्या कहें, अगर अन्ना की बात मान ली जाये तो संसद के ऊपर एक तानाशाह बैठ जायेगा और ये होगा एक लोकतंत्र का धीमा अंत,
    अरे भाई ठीक से वोट दो तो किसी अन्ना की जरुरत ही नहीं है,
    विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

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